किस प्रकार धर्मराज युधिष्ठिर के कारण चारो पांडव पुनर्जीवित हो उठे? यक्ष युधिष्ठिर संवाद – यक्ष प्रश्न यक्ष युधिष्ठिर संवाद महाभारत के वन पर्व का एक बहुत ही रोचक प्रसंग है। युधिष्ठिर की वाक्चातुर्य और प्रतिउत्पन्न मति के कारण उनके चारो भाई पुनर्जीवित हो उठे। यक्ष के प्रश्न का उत्तर नहीं दिए जाने के कारण यक्ष ने उनलोगों को मार दिया था। यक्ष प्रश्न इतना जटिल था की आज भी किसी जटिल प्रश्न को लोग यक्ष प्रश्न की संज्ञा दे देते हैं। युधिष्ठिर संवाद” पांडवों के 12 वर्ष का वनवास और एक वर्ष का अज्ञात वास हुआ था। अपने वनवास की अवधी वो पूरा कर चुके थे अब उन्हें १ वर्ष के अज्ञात वास की चिंता सता रही थी। इस बारे में वो कृष्ण से विचार विमर्श कर रहे थे, तभी रोते हुए एक ब्राम्हण उनके पास आया। रोने का कारण पूछने पर उसने कहा वीर पुत्रों – मेरे कुटिया के बाहर अरणी की लकड़ी टंगी थी। एक हिरण आया और उस लकड़ी से अपने सिर में खुजली करने लगा। ऐसा करते हुए लकड़ी उसके सींग में फँस गयी जिससे घबड़ाकर ओ जंगल की ओर भाग गया। अरणी के लकड़ी के विना मैं आग कैसे उत्पन्न करूँगा और विना आग के मैं अपने दैनिक होम आदि कैसे कर पाउँगा। ब्राम्हण की दीन पुकार सुनकर युधिष्ठिर सहित पांचो पांडव उस हिरण की खोज में निकल पड़े। तेजी से भागते हिरण का पीछा करते हुए वो दूर घने जंगल में जा पहुंचे। थकानजनित प्यास से बुरा हाल था हिरण के नहीं मिलने से लज्जित होकर वो एक बरदग की पेड़ की छाव में बैठकर विश्राम करने लगे और नकुल से जल लाने को कहा। प्यासे नकुल भाइयो की आज्ञा से जल की तलाश में निकले। कुछ दूर जाने पर उन्हें एक सरोवर दिखा। सरोवर बहुत ही मनोरम था उसके सुन्दर और स्वच्छ जल थे। प्यास से परेशान नकुल शीघ्रता से सरोवर की और बढे। तभी उन्हें एक आवाज सुनाई दी। माद्री पुत्र ये सरोवर मेरे द्वारा रक्षित है पहले मेरे प्रश्नों का उत्तर दो फिर जल पियो। तृष्णा से क्षिप्त नकुल ने उस ध्वनि को अनसुनी कर के सरोवर से जल पी लिया। जल पीते ही ओ प्राणहीन होकर सरोवर तट पर गिर गए। बहुत देर प्रतीक्षा करने के बाद युधिष्ठिर ने सहदेव को नकुल की सुध लेने के लिए भेजा। उस अदृश्य पुरुष ने सहदेव को भी वैसे ही आवाज देकर पहले प्रश्नों के उत्तर देने के लिए रोका। सहदेव ने भी उस पुरुष के बात की अनदेखी के और जल पीकर प्राणहीन होकर गिर पड़े। सहदेव के नहीं आने पर अर्जुन और भीम को एक एक कर भेजा। ये दोनों भाई भी नकुल और सहदेव की भाति प्रश्न की अनसुनी कर के मृतवत सरोवर तट पर पर गए। बहुत देर की प्रतीक्षा के बाद युधिष्ठिर अपने भाइयों की खोज में निकल पड़े। कुछ दूर जाने के पश्चात उन्होंने सरोवर तट पर अपने चारों भाइयों को मृत देखा। युधिष्ठिर से भी उस अदृश्य पुरुष ने कहा पहले मेरे प्रश्न के उत्तर दो फिर जल पियो। युधिष्ठिर ने पूछा की तुम कौन हो इस तरह मेरे भाइयों को क्यों मार दिए हो। उस पुरुष ने उत्तर दिया- मैं यक्ष हूँ मेरे प्रश्न की अवहेलना करने के कारण तुम्हारे भाई मृत्यु को प्राप्त हुए हैं। तुम मेरे प्रश्न का उत्तर दो तो मैं तुम्हारे किसी एक भाई को जीवित कर सकता हूँ। युधिष्ठिर की स्वीकारोक्ति पर यक्ष ने प्रश्न पूछना आरम्भ किया। यक्ष उवाच (“बोला”) – मनुष्य का सच्चा मित्र कौन है कौन मनुष्य का साथ देता है? युधिष्ठिर उवाच (“बोले”) – धैर्य ही मनुष्य का सच्चा साथी है। यक्ष उवाच (“बोला”) – यश लाभ करने का सरल उपाय क्या है ? युधिष्ठिर उवाच (“बोले”) – दान करने से यश लाभ होता है। यक्ष उवाच (“बोला”) – हवा से तेज गति किसकी है ? युधिष्ठिर उवाच (“बोले”) – मन की गति सबसे तेज है। यक्ष उवाच (“बोला”) – विदेश जाने वाले का साथी कौन ? युधिष्ठिर उवाच (“बोले”) – सुविद्या ही विदेश में साथी है। यक्ष उवाच (“बोला”) – किस चीज का त्याग कर देने से मनुष्य प्रिय हो जाता है ? युधिष्ठिर उवाच (“बोले”) – अहंकार का त्याग कर देने से आदमी प्रिय हो जाता है। यक्ष उवाच (“बोला”) – किस चीज़ के नष्ट जानें पर दुःख नहीं होता ? युधिष्ठिर उवाच (“बोले”) – क्रोध यक्ष उवाच (“बोला”) – किस चीज़ को त्याग कर मनुष्य धनी बन सकता है ? युधिष्ठिर उवाच (“बोले”) – लोभ यक्ष उवाच (“बोला”) – सर्वोत्तम लाभ क्या है ? युधिष्ठिर उवाच (“बोले”) – आरोग्य , स्वस्थ शरीर यक्ष उवाच (“बोला”) – धर्म से बढ़कर संसार में और क्या है ? युधिष्ठिर उवाच (“बोले”) – दया यक्ष उवाच (“बोला”) संसार में सबसे बड़ा आश्चर्य क्या है ? युधिष्ठिर उवाच (“बोले”) -नित्य प्रति दिन लोग मरते है और जमलोक को जाते है, इसके बावजूद को अपने को यही रहने वाला अमरनशील मान लेता है इससे बड़ा कोई आश्चर्य नहीं है। यक्ष उवाच (“बोला”) – सही मार्ग क्या है युधिष्ठिर उवाच (“बोले”) – तर्क वितर्क का अंत नहीं है शास्त्र पुराण इतने है जिनका पार पाना सम्भव नहीं है। अतः महापुरुष लोग जिस रास्ते पर जाते है वही सही मार्ग है। यक्ष उवाच (“बोला”) – वार्ता क्या है बातचीत किसे कहते हैं ? युधिष्ठिर उवाच (“बोले”) – इस महान मोह रूपी कटाह में सूर्य की अग्नि, दिन रात रूपी ईंधन से , महीनों और ऋतुओं के कलछी से काल जीवों को पकता है। यही वार्ता है। यक्ष उवाच (“बोला”) – कौन दिन रात प्रसन्न रहता है ? युधिष्ठिर उवाच (“बोले”) -दिन के पांचवे या छठे पहर में जो यथा उपलब्ध साग पका के खता है, जिसपर कोई कर्ज नहीं है और जो प्रवास में नहीं जी रहा ऐसा मनुष्य दिन रात खुश रहता है। इसप्रकार युधिष्ठिर की बात सुनकर यक्ष बहुत प्रसन्न हुआ। अपने वादे के अनुसार मैं तुम्हारे किस एक भाई को जीवित कर सकता हूँ। बोलो किसको जीवित देखना चाहोगे। कुछ सोचने के बाद युधिष्ठिर ने उत्तर दिया मैं अपने छोटे भाई नकुल को जीवित देखना चाहता हूँ। युधिष्ठिर की बात सुनकर यक्ष ने आश्चर्य प्रकट किया। तुम अर्जुन भीम इन दो वीर भाइयों में से किसी का जीवन क्यों नहीं मांगते। इसपर यधिष्ठिर ने उत्तर दिया हम कुंती और माद्री इन दो माताओं से पांच भाई थे। जिसमे कुंती का एक पुत्र मई जीवित हूँ। मई चाहता हूँ माँ माद्री का भी एक पुत्र जीवित हो जाए। युधिष्ठिर की इस बात को सुनकर यक्ष द्रवित हो गया। यक्ष ने कहा वत्स तुमने मुझे जीत लिया। मैं नकुल सहित तुम्हारे शेष तीन भाइयों को भी जीवित कर देता हूँ। इस प्रकार धर्मराज युधिष्ठिर के कारण चारो पांडव पुनर्जीवित हो उठे।
संजय गुप्ता