Posted in भारत का गुप्त इतिहास- Bharat Ka rahasyamay Itihaas

ये इंडिया गेट शहीदों की याद में नहीं बल्कि सुवरों और ग़द्दारों की याद में बनवाया गया था


… देश के ग़द्दारों की दास्ताँ…!
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“ये इंडिया गेट शहीदों की याद में नहीं बल्कि सुवरों और ग़द्दारों की याद में बनवाया गया था!”

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[ चेतावनी: मेरी इस राष्ट्र-भावना से ओतप्रोत पोस्ट पर अनर्गल प्रलाप करने वाले कौवे, काँव-काँव करने से पहले अपने सामान्य ज्ञान में वृद्धि करके ही आयें अन्यथा ब्लॉक कर दिया जायेगा, छोड़ा नहीं जायेगा. ]

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ये इंडिया गेट उन शहीदों की याद में नहीं बनवाया गया है जिन्होंने अपने मुल्क की आज़ादी के लिए अपने आपको कुर्बान कर दिया. ये इंडिया गेट उन ग़द्दार, हरामखोर, बुजदिल हिन्दोस्तानी गुलाम सुवरों की याद में बनवाया गया है जो हमारे राष्ट्र-भक्तों पर ज़ुल्म ढाने के लिए अंग्रेजी सेना में भर्ती हुए थे और बाद में प्रथम विश्व-युद्ध और अफ़ग़ान युद्ध में अंग्रेजी साम्राज्य के हितों की रक्षा करते हुए लड़े और कुत्ते की मौत मारे गए थे.

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कुछ ऐतिहासिक तथ्य:-

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1. इसका डिजाइन सर (कटे) एडवर्ड लुटियन्स (शैतान अँगरेज़) ने तैयार किया था।

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2. यह स्मारक पेरिस के आर्क डे ट्रॉयम्फ़ से प्रेरित है।

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3. इसे सन् 1931 में बनाया गया था।

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4. मूल रूप से अखिल भारतीय युद्ध स्मारक के रूप में जाने जाने वाले इस स्मारक का निर्माण (ज़ालिम) अंग्रेज शासकों द्वारा उन 90000 भारतीय सैनिकों की (कु)स्मृति में किया गया था जो ब्रिटिश सेना में भर्ती होकर प्रथम विश्वयुद्ध और अफ़ग़ान युद्धों में कुत्ते की मौत मारे गए थे।

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5. जब इण्डिया गेट बनकर तैयार हुआ था तब इसके सामने (शैतान) जार्ज पंचम की एक मूर्ति लगी हुई थी। जिसे बाद में ब्रिटिश राज के समय की अन्य मूर्तियों के साथ कोरोनेशन पार्क में (कु)स्थापित कर दिया गया। अब (शैतान) जार्ज पंचम की मूर्ति की जगह प्रतीक के रूप में केवल एक छतरी भर रह गयी है।

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6. इण्डिया गेट की दीवारों पर हजारों ग़द्दार सुवरों के नाम खुदे हैं और सबसे ऊपर अंग्रेजी में लिखा हैः-

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“To the dead of the Indian armies who fell honoured in France and Flanders Mesopotamia and Persia East Africa Gallipoli and elsewhere in the near and the far-east and in sacred memory also of those whose names are recorded and who fell in India or the north-west frontier and during the Third Afgan War.”

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(हिन्दई अनुवाद :- भारतीय सेनाओं के शहीदों के लिए, जो फ्रांस और फ्लैंडर्स मेसोपोटामिया फारस पूर्वी अफ्रीका गैलीपोली और निकटपूर्व एवं सुदूरपूर्व की अन्य जगहों पर शहीद हुए, और उनकी पवित्र स्मृति में भी जिनके नाम दर्ज़ हैं और जो तीसरे अफ़ग़ान युद्ध में भारत में या उत्तर-पश्चिमी सीमा पर मृतक हुए।)

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7. इण्डिया गेट के सामने स्थित वह छतरी जिसमें (शैतान) जार्ज पंचम की मूर्ति लगी हुई थी, नीचे चित्र में प्रदर्शित है.

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स्वतंत्र भारत में इण्डिया गेट की उपस्थिति हमारे लिए शान की नहीं अपितु शर्म करने की बात है. जितना जल्दी हो सके इसको ध्वस्त करवा कर असली शहीद स्मारक बनवाना चाहिए जिस पर नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, शहीदे-आज़म भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु, चंद्रशेखर आज़ाद, रामप्रसाद बिस्मिल, अशफ़ाक उल्लाह खां, लक्ष्मीबाई, बहादुरशाह ज़फर, वीर सावरकर, बाल गंगाधर तिलक, खुदीराम बोस जैसे तमाम देशभक्तों के नाम खुदे हों ….

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. (तथा एक इससे भी महत्वपूर्ण बात)

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….उस शहीद स्मारक की ज़मीन पर जो टाइल्स लगाये जाएँ उन पर पर अंग्रेजों के मित्र सिंधिया, सरदार शोभा सिंह (पत्रकार ख़ुशवंत सिंह का नाजायज़ बाप जिसने सरदार भगत सिंह के खिलाफ कोर्ट में गवाही दी थी जिसके आधार पर भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव वीर देशभक्तों को फांसी की सजा दी गयी थी), और उन समस्त ग़द्दार सुवरों के नाम जिनके नाम अभी हाल-फ़िलहाल में इंडिया गेट पर लिखे हुए हैं, भी लिखे जाएँ ताकि शहीदों को श्रद्धांजलि देने आने वाले लोग इन हरामी सुवरों को जूतांजलि भी दे सकें!

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जय हिन्द 🇮🇳

वन्देमातरम 🇮🇳

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Ref:

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1.http://hi.wikipedia.org/wiki/इण्डिया_गेट

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2. http://www.delhitourism.gov.in/delhitourism/tourist_place/india_gate.jsp

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3. http://knowindia.gov.in/hindi/knowindia/culture_heritage.php?id=44

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4. http://qna.navbharattimes.indiatimes.com/Politics-and-History/Others/क्या-आपको-पता-है-कि-इंडिया-गेट-किसकी-याद-में-बना-है-आप-कहेंगे-कि-शहीदों-की-याद-में-550874.html

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5. https://www.google.co.in/url?sa=t&rct=j&q&esrc=s&source=web&cd=12&cad=rja&uact=8&ved=0CHYQFjAL&url=http%3A%2F%2Fhindi.webdunia.com%2Fmiscellaneous%2Fkidsworld%2Fgk%2F0903%2F28%2F1090328100_1.htm&ei=sRPvU7XQII2D8gXhg4CQBg&usg=AFQjCNEPsETuBT5nKjsPNsT8GxPBIP7YPg&sig2=qg91rgRcllg29frJlC0AHQ

विपिन खुराना

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लस्सी


“लस्सी”
लस्सी का ऑर्डर देकर हम सब आराम से बैठकर एक दूसरे की खिंचाई मे लगे ही थे…

कि एक लगभग 70-75 साल की माताजी कुछ पैसे मांगते हुए मेरे सामने हाथ फैलाकर खड़ी हो गईं ..

उनकी कमर झुकी हुई थी ,.चेहरे की झुर्रियों मे भूख तैर रही थी ..आंखें भीतर को धंसी हुई किन्तु सजल थीं ..

उनको देखकर मन मे ना जाने क्या आया कि मैने जेब से सिक्के निकालने के लिए डाला हुआ हाथ वापस खींचते हुए उनसे पूछ लिया ..”दादी लस्सी पियो गे ?”

मेरी इस बात पर दादी कम अचंभित हुईं और मेरे मित्र अधिक ..

क्योंकि अगर मैं उनको पैसे देता तो बस 2-4-5 रुपए ही देता लेकिन लस्सी तो 30 रुपए की एक है ..

इसलिए लस्सी पिलाने से मेरे गरीब हो जाने की और उन दादी के मुझे ठग कर अमीर हो जाने की संभावना बहुत अधिक बढ़ गई थी !

दादी ने सकुचाते हुए हामी भरी और अपने पास जो मांग कर जमा किए हुए 6-7 रुपए थे वो अपने कांपते हाथों से मेरी ओर बढ़ाए ..

मुझे कुछ समझ नही आया तो मैने उनसे पूछा .. “ये काहे के लिए अम्मा ?”

“इनको मिला के पिला दो बेटे !”

भावुक तो मैं उनको देखकर ही हो गया था ..

रही बची कसर उनकी इस बात ने पूरी कर दी !

एका एक आंखें छलछला आईं और भर भराए हुए गले से मैने दुकान वाले से एक लस्सी बढ़ाने को कहा ..

उन्होने अपने पैसे वापस मुट्ठी मे बंद कर लिए और पास ही जमीन पर बैठ गईं …

अब मुझे वास्तविकता मे अपनी लाचारी का अनुभव हुआ क्योंकि मैं वहां पर मौजूद दुकानदार ,अपने ही दोस्तों और अन्य कई ग्राहकों की वजह से उनको कुर्सी पर बैठने के लिए ना कह सका !

डर था कि कहीं कोई टोक ना दे ..कहीं किसी को एक भीख मांगने वाली बूढ़ी महिला के उनके बराबर मे बैठ जाने पर आपत्ति ना हो ..

लेकिन वो कुर्सी जिस पर मैं बैठा था मुझे काट रही थी ..

लस्सी से भरा ग्लास हम लोगों के हाथों मे आते ही मैं अपना लस्सी का ग्लास पकड़कर दादी के पड़ोस मे ही जमीन पर बैठ गया

क्योंकि ये करने के लिए मैं स्वतंत्र था ..इससे किसी को आपत्ति नही हो सकती .

हां ! मेरे दोस्तों ने मुझे एक पल के लिए घूरा ..

लेकिन वो कुछ कहते उससे पहले ही दुकान के मालिक ने आगे बढ़कर दादी को उठाकर कुर्सी पर बिठाया और मेरी ओर मुस्कुराते हुए हाथ जोड़कर कहा ..”ऊपर बैठ जाइए साहब !”

अब सबके हाथों मे लस्सी के ग्लास और होठों पर मुस्कुराहट थी

बस एक वो दादी ही थीं जिनकी आंखों मे तृप्ति के आंसूं ..होंठों पर मलाई के कुछ अंश और सैकड़ों दुआएं थी…!!!

ना जाने क्यों जब कभी हमें 10-20-50 रुपए किसी भूखे गरीब को देने या उस पर खर्च करने होते हैं तो वो हमें बहुत ज्यादा लगते हैं

लेकिन सोचिए कभी….. कि क्या वो चंद रुपए किसी के मन को तृप्त करने से अधिक कीमती हैं ?

क्या उन रुपयों को बीयर , सिगरेट ,पर खर्च कर दुआएं खरीदी जा सकती हैं!

मुझे आशा है आपको ये पोस्ट अच्छी लगेगी  👏👏
विजय खट्टर

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एक दिन चित्रगुप्त ने ब्रह्माजी से


एक दिन चित्रगुप्त ने ब्रह्माजी से

प्रार्थना की – “प्रभु, ये ‘करवा चौथ के व्रत से सात जनम तक एक ही पति’ मिलने वाली योजना बंद कर दीजाए !”
ब्रह्माजी – “क्यों ?”
चित्रगुप्त – “प्रभु, मैनेज करना कठिन

होता जा रहा है … औरत सातों जनम

वही पति मांगती हैं लेकिन पुरुष हर बार

दूसरी औरत मांगता है … बहुत दिक्कत हो रही है समझाने में !”
ब्रह्माजी – “लेकिन यह स्कीम आदिकाल से चली आ रही है इसे बंद नहीं किया जा सकता !”
तभी नारद मुनि आ गए. उन्होंने सुझाव

दिया कि पृथ्वी पर   narendra modi  नाम के एक महान विचारक रहते हैं. उनसे जाकर सलाह ली जाये.
चित्रगुप्त   modi ke  पास गए.

modi

ने एक पल में समस्या का समाधान कर दिया – “जो भी औरत सातों जनम वही पति डिमांड करे … उसे दे दो. लेकिन शर्त ये लगा दो कि यदि पति वही चाहिए तो “सास” भी वही मिलेगी !!!”
” डिमांड बंद ..”
पत्नियाँshocked

मोदी rocked 😂
R K Neekhara

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संगत का असर


“संगत का असर”

।।प्रेरक कथा।।
एक थे राजा।

वह  एक तोता पाला थे।

एक दिन तोता मर गया।

राजाने मंत्री को कहा: मंत्रीप्रवर! हमारा तोते का पिंजरा सूना हो गया है।

इसमें पालने के लिए एक तोता लाओ।

अब, तोते सदैव तो मिलते नहीं।

लेकिन राजा पीछे पड़ गये तो मंत्री एक संत के पास गये और कहा: भगवन्! राजा साहब एक तोता लाने की जिद कर रहे हैं। आप अपना तोता दे दें तो बड़ी कृपा होगी।
संत ने कहा: ठीक है, ले जाओ।
राजा ने सोने के पिंजरे में बड़े स्नेह से तोते की सुख-सुविधा का प्रबन्ध किया।

ब्रह्ममुहूर्त होते ही तोता बोलने लगता: ओम् तत्सत्….ओम् तत्सत् … उठो राजा! उठो महारानी! दुर्लभ मानव-तन मिला है। यह सोने के लिए नहीं, भजन करने के लिए मिला है।
‘चित्रकूट के घाट पर ,

भई संतन की भीर।

तुलसीदास चंदन घिसै,

तिलक देत रघुबीर।।’
कभी रामायण की चौपाई तो कभी गीता के श्लोक तोते के मुँह से निकलते।
पूरा राजपरिवार बड़े सवेरे उठकर उसकी बातें सुना करता था।
राजा कहते थे कि सुग्गा क्या मिला, एक संत मिल गये।
हर जीव की एक निश्चित आयु होती है।

एक दिन वह सुग्गा मर गया। राजा, रानी, राजपरिवार और पूरे राष्ट्र ने हफ़्तों शोक मनाया। झण्डा झुका दिया गया।

किसी प्रकार राजपरिवार ने शोक संवरण किया और राजकाज में लग गये।
पुनः राजा साहब ने कहा– मंत्रीवर! खाली पिंजरा सूना-सूना लगता है, एक तोते की व्यवस्था हो जाती!
मंत्री ने इधर-उधर देखा, एक कसाई के यहाँ वैसा ही तोता एक पिंजरे में टँगा था।
मंत्री ने कसाई से कहा कि इसे राजा साहब चाहते हैं।
कसाई ने कहा कि आपके राज्य में ही तो हम रहते हैं। हम नहीं देंगे तब भी आप उठा ही ले जायेंगे।
मंत्री ने कहा– नहीं, हम तो प्रार्थना करेंगे।

कसाई ने बताया कि किसी बहेलिये ने एक वृक्ष से दो सुग्गे पकड़े थे। एक को उसने महात्माजी को दे दिया था और दूसरा मैंने खरीद लिया था।

राजा को चाहिये तो आप ले जायँ।
अब कसाईवाला तोता राजा के पिंजरे में पहुँच गया।
राजपरिवार बहुत प्रसन्न हुआ।
सबको लगा कि वही तोता जीवित होकर चला आया है। दोनों की नासिका, पंख, आकार, चितवन सब एक जैसे थे।

………लेकिन बड़े सवेरे तोता उसी प्रकार राजा को बुलाने लगा जैसे वह कसाई अपने नौकरों को उठाता था कि -उठ! हरामी के बच्चे! राजा बन बैठा है। मेरे लिए ला अण्डे, नहीं तो पड़ेंगे डण्डे!
राजा को इतना क्रोध आया कि उसने तोते को पिंजरे से निकाला और गर्दन मरोड़कर किले से बाहर फेंक दिया।
दोनों तोते सगे भाई थे। एक की गर्दन मरोड़ दी गयी, तो दूसरे के लिए झण्डे झुक गये, भण्डारा किया गया, शोक मनाया गया।
आखिर भूल कहाँ हो गयी?

अन्तर था तो संगति का!

सत्संग की कमी थी।
‘संगत ही गुण होत है

, संगत ही गुण जाय।

बाँस फाँस अरु मीसरी,

एकै भाव बिकाय।।’

दोस्तों, संगत का असर बहुत कुछ मनुष्य के स्वभाव पर पड़ता है।जैसी संगति वैसा असर।आज का दौर भागम भाग का सभी पड़ लिख कर राजा जैसा आराम चाहते है।इस दौड़ के लिए बच्चे माता -पिता की आँखों से हजारों किलोमीटर दूर हो जाते है।वह अच्छे मित्र ,बुरी आदतों के मित्र मिलते है किस से कौन से गुण ले ले कह नही सकते।अतः हमें धयान देना आवश्यक है।

।।आपका भाई कमलेश देसाई।।

Posted in संस्कृत साहित्य

हिन्दू धर्मग्रन्थ प्राचीन भारतीय धार्मिक साहित्य के मुख्य दो भाग हैं:    *  श्रुति * स्मृति


हिन्दू धर्मग्रन्थ
प्राचीन भारतीय धार्मिक साहित्य के मुख्य दो भाग हैं:
*  श्रुति

*  स्मृति

श्रुति :
श्रुति का शाब्दिक अर्थ होता है – सुना हुआ। कुछ लोग श्रुति को गुरू-शिष्य परम्परा से जोड़कर देखते हैं क्योंकि शिष्य गुरू के सम्मुख बैठकर सीधे सुनता है।
*  श्रुतियां ही मुख्य धर्मग्रंथ मानी जातीं हैं।

*  श्रुतियां अन्य सभी धर्मग्रंथों से श्रेष्ठ मानी जाती हैं।

*  वेद प्रमुख रूप से श्रुतियों में गिने जाते हैं। कुछ लोग भागवत गीता को भी श्रुति ही मानते हैं।

वेद: भारतीय दर्शन और धर्म के मुख्य ग्रंथ वेद हैं। वेद शब्द का अर्थ है – ज्ञान/जानना ; यह ‘विद्’ धातु से बना है, जिसका अर्थ है – जानना/जानने वाला (ज्ञाता)

वेदों की कुल संख्‍या चार है:
ॠग्वेद – यह प्राचीनतम वेद है

यजुर्वेद

सामवेद

अथर्ववेद
वेदों को समझने के लिये उन्‍हें छह वेदांगों (वेदों के अंगों) में वि‍भक्‍त कि‍या गया है:
*  शिक्षा – सम्यक् उच्चारण का ज्ञान कराती है

*  छन्द

*  व्याकरण

*  निरुक्त

*  ज्योतिष

*  कल्प – कर्मकाण्ड से सम्बन्धित
वेदों को एक भिन्न आधार पर निम्नलिखित दो भागों में बांटा जाता है:
संहिता

ब्राह्मण
पुन: ब्राह्मण के दो प्रभाग किए जाते हैं:

अरण्यक और उपनिषद।
* संहिता या मंत्र

* ब्राह्मण – इनमें सभी मंत्रों और कर्मकाण्ड के अर्थ की व्याख्या की गई है।

— अरण्यक – मंत्रो की व्याख्या

—  उपनिषद – वेदों का अंतिम और उपसंहारात्मक भाग

उपनिषद: उपनिषद वेदों के अत्यन्त दार्शनिक भाग हैं। चूंकि ये वेदों के अंतिम भाग हैं इसीलि‍ए इन्हे वेदों का सार भी कहा जा सकता है। उपनिषद = उप + नि + षद ; जिसका अर्थ है पास बैठना।
उपनिषदों को वेदान्त भी कहते हैं, जिसका अर्थ है वेदों का अंतिम भाग।
दूसरा शब्द जो प्रयोग में आता है वह है – उत्तर मीमांसा, जिसका अर्थ है काल-क्रम में बाद की मीमांसा (इंक्‍वायरी)
आज तक दो सौ से भी अधिक उपनिषद ज्ञात हैं। मुक्तिकोपनिषद में इनकी कुल संख्‍या १०८ गि‍नाई गई है। सभी उपनिषद किसी न किसी वेद से सम्बद्ध हैं। इनमें से १० ऋग्वेद से, १९ शुक्ल यजुर्वेद से, ३२ कृष्ण यजुर्वेद से, १६ सामवेद से और ३१ अथर्ववेद से सम्बद्ध हैं।
१०८ उपनिषदों में से प्रथम १० को मुख्य उपनिषद कहा जाता है; २१ उपनिषदों को सामान्य वेदांत , २३ उपनिषदों को सन्यास, ९ को शाक्त, १३ को वैष्णव , १४ को शैव तथा १७ उपनिषदों को योग उपनिषद की संज्ञा दी गयी है।
मुख्य उपनिषद निम्नलिखित हैं:
१.  ईश – शुक्ल यजुर्वेद

२.  केन – सामवेद

३.  कथा – कृष्ण यजुर्वेद

४.  प्रश्न  – अथर्ववेद

५.  मुण्डक  – अथर्ववेद

६.  मान्डूक्य  – अथर्ववेद

७.  तैत्रेय  – कृष्ण यजुर्वेद

८.  एत्रेय  – ऋग्वेद

९.  छान्दोग्य  – सामवेद

१०.  वृहदारण्यक  – शुक्ल यजुर्वेद

स्मृति : स्मृति का शाब्दिक अर्थ है – याद किया हुआ। स्मृतियाँ एक बहुत लम्बे समयान्तराल में संकलित की गईं हैं और भिन्न-भिन्न विषयों से संबंधि‍त हैं।
॰  स्मृति का स्थान श्रुति से नीचे है,

॰  यदि श्रुति और स्मृति के बीच कोई विरोधाभास होता है तो श्रुति ही मान्य होगी।

स्मृति के ६ मुख्य भाग हैं:
॰   धर्मशास्त्र

॰   इतिहास

॰   पुराण

॰   सूत्र

॰   आगम

॰   दर्शन

धर्मशास्त्र: –
धर्मशास्‍त्रों में मनुष्‍य के कर्त्तव्‍यों को बताया गया है। अधि‍कांश धर्मशास्‍त्र वेदों की देन हैं।

धर्मशास्‍त्रों को नि‍म्‍नलि‍खि‍त तीन मुख्‍य श्रेणि‍यों में बाँटा जा सकता है –
*  आचार – कर्त्तव्‍य/अधि‍कार

*  व्यवहार

*  प्रायश्‍चि‍त

पि‍छली असंख्‍य सदि‍यों में सहस्रों धर्मशास्‍त्र लि‍खे जा चुके हैं। कुछेक मुख्‍य धर्मशास्‍त्रों के नाम नि‍म्‍नलि‍खि‍त दि‍ए गए हैं –
*  अपस्‍तम्‍भ का धर्मशास्‍त्र

*  गौतम का धर्मशास्‍त्र

*  बौधयान का धर्मशास्‍त्र

*  मनु स्मृति

*  याज्ञवल्क्य स्मृति

*  नारद स्मृति

*  आदि‍.

इतिहास :
इति‍हास ग्रंथों का संग्रह है। कई बार इति‍हास पुराण के अंतर्गत आते हैं।

इति‍हास में मुख्‍यत: नि‍म्‍नलि‍खि‍त ग्रंथ शामि‍ल हैं-
*  रामायण

*  महाभारत

*  योगवाशिष्ठ

*  हरिवंश

*  आदि‍.

पुराण :
Purana literally means Ancient/Old. Main characteristics of Puranas are traditions and rituals. Puranas mainly deals with Triguna ( त्रिगुण ) – ‘Three qualities’: Satva ( सत्व ) – Truthfulness, Rajas ( रजस ) – Passion, and Tamas ( तमस ) – Darkness/Ignorance.

पुराणों को नि‍म्‍नलि‍खि‍त चार श्रेणि‍यों में वि‍भक्‍त कि‍या गया है-
*  महापुराण – प्रमुख पुराण.

*  उपपुराण – अन्‍य पुराण.

*  स्थलपुराण – वि‍शि‍ष्‍ट स्‍थलों से संबंधि‍त पुराण.

*  कुलपुराण – वंशों से संबंधि‍त पुराण.

मुख्‍य पुराणों में कुछ के नाम नि‍म्‍नलि‍खि‍त दि‍ए गए हैं-
*  श्रीमदभागवत पुराण

*  विष्णु पुराण

*  देवी भागवत पुराण

*  भविष्य पुराण

*  मत्‍स्‍य पुराण

*  कर्म पुराण

*  ब्रह्म पुराण

*  तथा अन्‍य.

सूत्र –
मुख्‍य सूत्रों में से कुछ नाम नि‍म्‍नलि‍खि‍त दि‍ए गए हैं-
*  Yoga Sutra ( योग सूत्र ) – Sutras of Yoga.

*  Nyaya Sutra ( न्याय सूत्र ) – Sutras of Justice.

*  Brahma Sutra ( ब्रह्म सूत्र ) – Sutras of Brahm.

*  Kama Sutra ( काम सूत्र ) – Sutras of Sensual Desire.

*  Vyakarana Sutra ( व्याकरण सूत्र ) – Sutras of Grammar.

*  Jyotish Sutra ( ज्योतिष सूत्र ) – Sutras of Astrology and Astronomy.

*  Sulva Sutra ( सल्व सूत्र ) – Sutras of Geometry.

*  etc.

आगम –
आगम अर्थात् आगमन. आगम मूलत: कर्मकाण्‍डों के नि‍यम हैं।

दर्शन –
दर्शन अर्थात् देखना अथवा अवलोकन करना।  दर्शन की प्रकृति‍ मुख्‍यत: आध्‍यात्‍मि‍क है। दर्शन के अंतर्गत अनेक सूत्र आते हैं।
आचार्य विकाश शर्मा

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ऑफिस से निकल कर शर्माजी ने 


ऑफिस से निकल कर शर्माजी ने
स्कूटर स्टार्ट किया ही था कि उन्हें याद आया,

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पत्नी ने कहा था 1 दर्ज़न केले लेते आना।

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तभी उन्हें सड़क किनारे बड़े और ताज़ा केले बेचते हुए
एक बीमार सी दिखने वाली बुढ़िया दिख गयी।

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वैसे तो वह फल हमेशा “राम आसरे फ्रूट भण्डार” से
ही लेते थे,

पर आज उन्हें लगा कि क्यों न
बुढ़िया से ही खरीद लूँ ?

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उन्होंने बुढ़िया से पूछा, “माई, केले कैसे दिए”

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बुढ़िया बोली, बाबूजी 20 रूपये दर्जन,
शर्माजी बोले, माई 15 रूपये दूंगा।

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बुढ़िया ने कहा, 18 रूपये दे देना,
दो पैसे मै भी कमा लूंगी।

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शर्मा जी बोले, 15 रूपये लेने हैं तो बोल,
बुझे चेहरे से बुढ़िया ने,”न” मे गर्दन हिला दी।

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शर्माजी बिना कुछ कहे चल पड़े
और राम आसरे फ्रूट भण्डार पर आकर
केले का भाव पूछा तो वह बोला 28 रूपये दर्जन हैं

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बाबूजी, कितने दर्जन दूँ ?
शर्माजी बोले, 5 साल से फल तुमसे ही ले रहा हूँ,
ठीक भाव लगाओ।

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तो उसने सामने लगे बोर्ड की ओर इशारा कर दिया।
बोर्ड पर लिखा था- “मोल भाव करने वाले माफ़ करें”
शर्माजी को उसका यह व्यवहार बहुत बुरा लगा,
उन्होंने कुछ  सोचकर स्कूटर को वापस
ऑफिस की ओर मोड़ दिया।

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सोचते सोचते वह बुढ़िया के पास पहुँच गए।
बुढ़िया ने उन्हें पहचान लिया और बोली,

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“बाबूजी केले दे दूँ, पर भाव 18 रूपये से कम नही लगाउंगी।
शर्माजी ने मुस्कराकर कहा,
माई एक  नही दो दर्जन दे दो और भाव की चिंता मत करो।

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बुढ़िया का चेहरा ख़ुशी से दमकने लगा।
केले देते हुए बोली। बाबूजी मेरे पास थैली नही है ।
फिर बोली, एक टाइम था जब मेरा आदमी जिन्दा था

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तो मेरी भी छोटी सी दुकान थी।
सब्ज़ी, फल सब बिकता था उस पर।
आदमी की बीमारी मे दुकान चली गयी,
आदमी भी नही रहा। अब खाने के भी लाले पड़े हैं।
किसी तरह पेट पाल रही हूँ। कोई औलाद भी नही है

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जिसकी ओर मदद के लिए देखूं।
इतना कहते कहते बुढ़िया रुआंसी हो गयी,
और उसकी आंखों मे आंसू आ गए ।

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शर्माजी ने 50 रूपये का नोट बुढ़िया को दिया तो
वो बोली “बाबूजी मेरे पास छुट्टे नही हैं।

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शर्माजी बोले “माई चिंता मत करो, रख लो,
अब मै तुमसे ही फल खरीदूंगा,

और कल मै तुम्हें 500 रूपये दूंगा।
धीरे धीरे चुका देना और परसों से बेचने के लिए
मंडी से दूसरे फल भी ले आना।

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बुढ़िया कुछ कह पाती उसके पहले ही
शर्माजी घर की ओर रवाना हो गए।
घर पहुंचकर उन्होंने पत्नी से कहा,
न जाने क्यों हम हमेशा मुश्किल से
पेट पालने वाले, थड़ी लगा कर सामान बेचने वालों से
मोल भाव करते हैं किन्तु बड़ी दुकानों पर
मुंह मांगे पैसे दे आते हैं।

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शायद हमारी मानसिकता ही बिगड़ गयी है।
गुणवत्ता के स्थान पर हम चकाचौंध पर
अधिक ध्यान देने लगे हैं।

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अगले दिन शर्माजी ने बुढ़िया को 500 रूपये देते हुए कहा,
“माई लौटाने की चिंता मत करना।
जो फल खरीदूंगा, उनकी कीमत से ही चुक जाएंगे।
जब शर्माजी ने ऑफिस मे ये किस्सा बताया तो
सबने बुढ़िया से ही फल खरीदना प्रारम्भ कर दिया।
तीन महीने बाद ऑफिस के लोगों ने स्टाफ क्लब की ओर से
बुढ़िया को एक हाथ ठेला भेंट कर दिया।
बुढ़िया अब बहुत खुश है।
उचित खान पान के कारण उसका स्वास्थ्य भी
पहले से बहुत अच्छा है ।
हर दिन शर्माजी और ऑफिस के
दूसरे लोगों को दुआ देती नही थकती।

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शर्माजी के मन में भी अपनी बदली सोच और
एक असहाय निर्बल महिला की सहायता करने की संतुष्टि का भाव रहता है..!
जीवन मे किसी बेसहारा की मदद करके देखो यारों,
अपनी पूरी जिंदगी मे किये गए सभी कार्यों से
ज्यादा संतोष मिलेगा…!!

😊😊
नोट: – यदि लेख अच्छा लगा हो तो अपने Group Me जरुर शेयर करे…..

सोच को बदलो जिंदगी जीने का नजरिया बदल जायेगा।
त्यौहारों की खरीदी_

_ऐसी जगह से करें_
_जो आपकी खरीदी की वजह से_

_त्यौहार मना सके ❜_🙏

Posted in काश्मीर - Kashmir

POK_गिलगित_बाल्टिस्तान


#POK_गिलगित_बाल्टिस्तान
पोस्ट थोड़ी लम्बी है, लेकिन समय निकाल कर पढियेगा जरूर।।
वास्तव में अगर जम्मू कश्मीर के बारे में बातचीत करने की जरूरत है तो वह है POK  और अक्साई चीन के बारे मेंl इसके ऊपर देश में चर्चा होनी चाहिए गिलगित जो अभी POK में है  विश्व में एकमात्र ऐसा स्थान है जो कि 5 देशों से जुड़ा हुआ है.

अफगानिस्तान, तजाकिस्तान (जो कभी Russia का हिस्सा था), पाकिस्तान, भारत और  तिब्बत -चाइना l
“वास्तव में *जम्मू कश्मीर का महत्व, जम्मू के कारण नहीं,  कश्मीर के कारण नहीं, लद्दाख के कारण नहीं है. वास्तव में अगर इसका महत्व है तो उसका कारण है

गिलगित-बाल्टिस्तान l”
भारत के इतिहास में भारत पर जितने भी आक्रमण हुए यूनानियों से लेकर आज तक (शक , हूण, कुषाण , मुग़ल ) वह सारे ‘गिलगित’ से हुएl  हमारे पूर्वज, जम्मू-कश्मीर के महत्व को समझते थे उनको पता था कि अगर भारत को सुरक्षित रखना है तो दुश्मन को हिंदूकुश अर्थात गिलगित-बाल्टिस्तान उस पार  ही रखना हैl  किसी समय, इस गिलगित में, अमेरिका बैठना चाहता था, ब्रिटेन अपना नियंत्रण केन्द्र, “गिलगित” में बनाना चाहता था , Russia भी गिलगित में  बैठना चाहता था यहां तक कि पाकिस्तान में 1965 में गिलगित को रूस, को देने का वादा तक कर लिया था. आज चाइना “गिलगित” में बैठना चाहता है और वह अपने पैर पसार भी चुका है और पाकिस्तान तो बैठना चाहता ही थाl
दुर्भाग्य से इस “गिलगित” के महत्व को सारी दुनिया ने समझा है  केवल एक को छोड़कर, जिसका वास्तव में “गिलगित-बाल्टिस्तान” है और वह है भारत l
क्योंकि हमको इस बात की कल्पना भी नहीं है, भारत को अगर सुरक्षित रहना है तो हमें “गिलगित-बाल्टिस्तान” किसी भी हालत में  चाहिए l आज हम “आर्थिक शक्ति” बनने की सोच रहे हैं.  🌟✨

क्या आपको पता है?  गिलगित से सड़क के रास्ते, आप विश्व के अधिकांश कोनों में जा सकते हैं!!  “गिलगित’ से ,  5000 Km दुबई है,

1400 Km  दिल्ली है,

2800 Km  मुंबई है,

3500 Km रूस  है,

चेन्नई 3800 Km है और

लंदन 8000 Km है l

जब हम सोने की चिड़िया थे, हमारा सारे देशों से “व्यापार चलता था.” 85 % जनसंख्या इन मार्गों से जुड़ी हुई थी, मध्य एशिया, यूरेशिया, यूरोप, अफ्रीका सब जगह हम सड़कों से जा सकते हैं अगर “गिलगित-बाल्टिस्तान” हमारे पास हो l आज हम पाकिस्तान के सामने IPI (Iran-Pakistan-India) गैस लाइन बिछाने के लिए गिड़गिड़ाते हैं. ये तापी की परियोजना है, जो  कभी पूरी नहीं होगी अगर हमारे पास “गिलगित” होता तो गिलगित के आगे तज़ाकिस्तान था. हमें किसी के सामने हाथ नहीं फ़ैलाने पड़ते l   💫 🍃
हिमालय की 10 बड़ी चोटियाँ हैं जो कि विश्व की 10 बड़ी चोटियों में से है. ये सारी हमारी है और इन 10  में से 8  गिलगित-बाल्टिस्तान में है l  तिब्बत, पर चीन का कब्जा होने के बाद जितने भी पानी के वैकल्पिक स्त्रोत (Alternate Water Resources) हैं. वह सारे “गिलगित-बाल्टिस्तान” में हैं l
आप हैरान हो जाएंगे, वहां बड़ी-बड़ी 50-100  यूरेनियम और सोने की खदानें हैं. आप POK के “मिनरल डिपार्टमेंट” की रिपोर्ट को पढ़िए आप आश्चर्यचकित रह जाएंगे !!  वास्तव में  गिलगित-बाल्टिस्तान का महत्व हमको मालूम नहीं है और *सबसे बड़ी बात, “गिलगित-बाल्टिस्तान” के लोग बहुत बड़े पाकिस्तान विरोधी हैं l

दुर्भाग्य क्या है? हम हमेशा ‘कश्मीर’ बोलते हैं, जम्मू- कश्मीर नहीं बोलते हैं l कश्मीर, कहते ही जम्मू, लद्दाख, गिलगित-बाल्टिस्तान दिमाग से निकल जाता है l ये जो पाकिस्तान के कब्जे में, जो POK  है, उसका क्षेत्रफल 79000 वर्ग किलोमीटर है. उसमें ‘कश्मीर’ का हिस्सा तो सिर्फ 6000 वर्ग किलोमीटर है, 9000 वर्ग किलोमीटर का हिस्सा ‘जम्मू’ का है और 64000 वर्ग किलोमीटर हिस्सा लद्दाख का है, जो कि “गिलगित-बाल्टिस्तान” है l यह कभी “कश्मीर का हिस्सा” नहीं था. यह “लद्दाख” का हिस्सा था, वास्तव में सच्चाई यही है l इसलिए “पाकिस्तान” यह जो बार-बार कश्मीर का राग अलापता रहता है, “उसको कोई यह पूछे तो सही – क्या गिलगित-बाल्टिस्तान और जम्मू का हिस्सा जिस पर  तुमने कब्ज़ा कर रखा है, क्या ये  भी कश्मीर का ही भाग है ??

😶😶 कोई जवाब नहीं मिलेगा l   💫
क्या आपको पता है “गिलगित-बाल्टिस्तान” , लद्दाख, के रहने वाले लोगो की औसत आयु  विश्व में सर्वाधिक है! यहाँ के लोग विश्व अन्य लोगो की तुलना में ज्यादा जीते है l

😮

भारत में आयोजित एक सेमिनार में गिलगित-बाल्टिस्तान के एक बड़े नेता को बुलाया गया था उसने कहा, “we are the forgotten people of forgotten lands of BHARAT”.

 

उसने कहा,  “देश हमारी बात ही नहीं जानता l” ❕😲

किसी ने उनसे सवाल किया, “क्या आप भारत में रहना चाहते हैं??”

तो उन्होंने कहा, “60 साल बाद तो आपने मुझे भारत बुलाया और वह भी अमेरिकन टूरिस्ट वीजा पर, और आप मुझसे सवाल पूछते हैं कि क्या आप भारत में रहना चाहते हैं l आप गिलगित-बाल्टिस्तान के बच्चों को IIT , IIM  में दाखिला दीजिए  AIIMS  में हमारे लोगों का इलाज कीजिए l हमें यह लगे तो सही कि भारत हमारी चिंता करता है हमारी बात करता है l गिलगित-बाल्टिस्तान में पाकिस्तान की सेना कितने अत्याचार करती है लेकिन आपके  किसी भी राष्ट्रीय अखबार में उसका जिक्र तक नहीं आता है l आप हमें ये अहसास तो दिलाइये की आप हमारे साथ है l”
यहाँ, मैं खुद आपसे यह पूछता हूं कि आप सभी ने पाकिस्तान, को हमारे कश्मीर में हर सहायता उपलब्ध कराते हुए देखा होगा l वह बार-बार कहता है कि हम कश्मीर की जनता के साथ हैं, कश्मीर की  आवाम हमारी है l लेकिन क्या आपने कभी यह सुना है कि किसी भी भारत के नेता, मंत्री या सरकार ने यह कहा हो कि हम POK गिलगित-बाल्टिस्तान की जनता के साथ हैं, वह हमारी आवाम है, उनको जो भी सहायता उपलब्ध होगी हम उपलब्ध करवाएंगे आपने यह कभी नहीं सुना होगा l  कांग्रेस सरकार ने, कभी POK  गिलगित-बाल्टिस्तान, को पुनः भारत में लाने के लिए कोई बयान तक नहीं दिया प्रयास तो बहुत दूर की बात है l हालाँकि पहली बार “अटल बिहारी वाजपेयी जी” की सरकार के समय POK का मुद्दा उठाया गया फिर 10 साल पुनः मौन धारण हो गया और फिर से नरेंद्र मोदी जी की सरकार आने पर विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने संसद में ये मुद्दा उठाया l
आज अगर आप किसी को गिलगित के बारे में पूछ भी लोगे तो उसे यह पता नहीं है कि यह जम्मू कश्मीर का ही भाग है l वह यह पूछेगा क्या यह कोई चिड़िया का नाम है ?? वास्तव में हमें जम्मू कश्मीर के बारे में जो गलत नजरिया है उसको बदलने की जरूरत है l
अब करना क्या चाहिए?? तो पहली बात है सुरक्षा में किसी भी प्रकार का समझौता नहीं होना चाहिए जम्मू-कश्मीर की सुरक्षा का मुद्दा बहुत “संवेदनशील” है. इस पर अनावश्यक वाद-विवाद नहीं होना चाहिए l

एक अनावश्यक वाद विवाद चलता है कि जम्मू कश्मीर में इतनी  सेना क्यों है??

तो ‘बुद्धिजीवियों’ को बता दिया जाए कि जम्मू-कश्मीर का 2800 किलोमीटर का “बॉर्डर” है, जिसमें 2400  किलोमीटर पर LOC है l आजादी, के बाद भारत ने “पांच युद्ध लड़े* वह सभी “जम्मू-कश्मीर से लड़े,” भारतीय सेना के 18 लोगों को “परमवीर चक्र” मिला और वह 18 के 18 जम्मू कश्मीर में ‘शहीद’ हुए हैं l
इनमें 14000 भारतीय सैनिक शहीद हुए हैं जिनमें से 12000 जम्मू कश्मीर में शहीद हुए हैं l

अब सेना, “बॉर्डर” पर नहीं, तो क्या मध्यप्रदेश में रहेगी? क्या यह सब जो सेना की इन बातों को नहीं समझते, वही यह सब अनर्गल चर्चा करते हैं l
वास्तव में जम्मू कश्मीर पर बातचीत करने के बिंदु होने चाहिए👉 POK  ,  वेस्ट पाक रिफ्यूजी, कश्मीरी हिंदू समाज, आतंक से पीड़ित लोग, धारा 370 और 35A  का दुरूपयोग, गिलगित-बाल्टिस्तान का वह क्षेत्र जो आज पाकिस्तान -चाइना के कब्जे में है l

जम्मू- कश्मीर के गिलगित- बाल्टिस्तान में अधिकांश जनसंख्या शिया मुसलमानों की है और वह सभी “पाक विरोधी” हैं. वह आज भी अपनी लड़ाई खुद लड़  रहे हैं. पर “भारत” उनके साथ है ऐसा उनको महसूस कराना चाहिए. देश कभी उनके साथ खड़ा नहीं हुआ वास्तव में पूरे देश में इसकी चर्चा होनी चाहिएl
वास्तव में जम्मू-कश्मीर के विमर्श का मुद्दा बदलना चाहिएl जम्मू कश्मीर को लेकर सारे देश में सही जानकारी देने की जरूरत हैl  इसके लिए एक इंफॉर्मेशन कैंपेन चलना चाहिए l  पूरे देश में  वर्ष में एक बार 26 अक्टूबर को  जम्मू कश्मीर का दिवस मनाना चाहिएl सबसे बड़ी बात है कि जम्मू कश्मीर को “राष्ट्रवादियों* की नजर से देखना होगा जम्मू कश्मीर की चर्चा हो तो वहां के राष्ट्रभक्तों की चर्चा होनी चाहिए तो उन 5 जिलों के कठमुल्ले तो फिर वैसे ही अपंग हो जाएंगे l

इस कश्मीर श्रृंखला के माध्यम से मैंने आपको पूरे जम्मू कश्मीर की पृष्ठभूमि और परिस्थितियों से अवगत करवाया और मेरा मुख्य उद्देश्य सिर्फ यही है कि जम्मू कश्मीर के बारे में देश के प्रत्येक नागरिक को यह सब जानकारियां होनी चाहिए l

अब आप इतने समर्थ हैं कि जम्मू कश्मीर को लेकर आप किसी से भी वाद-विवाद या तर्क कर सकते हैं l किसी को आप समझा सकते हैं कि वास्तव में जम्मू-कश्मीर की परिस्थितियां क्या है l वैसे तो जम्मू कश्मीर पर एक ग्रन्थ लिखा जा सकता है लेकिन मैंने जितना हो सका उतने संछिप्त रूप में इसे आपके सामने रखा है l

अगर आप  इस श्रंखला को अधिक से अधिक जनता के अंदर प्रसारित करेंगे तभी हम जम्मू कश्मीर के विमर्श का मुद्दा बदल सकते हैं अन्यथा नहीं l इसलिए मेरा आप सभी से यही अनुरोध है श्रृंखला को अधिक से अधिक लोगों की जानकारी में लाया जाए ताकि देश की जनता को जम्मू कश्मीर के संदर्भ में सही  तथ्यों  का पता लग सके l
Refrences :

INDIA INDEPENDECE ACT 1947

INDIAN CONSTITUTION ACT 1950

JAMMU & KASHMIR ACT 1956

INDIAN GOVT. ACT 1935

Dr. Kirshandev Jhari

Dr. kuldeep Chandra Agnihotri

Jammu-kashmir Adhyan Kendra

Sushil pandit (kashmiri pandit)

SC & J&K HC Court judgements

News sources  &

Various ACCORDS & Statements
जय हिन्द !  #कश्मीर_श्रृंखला भाग ९

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

एक बनिये की बाजार में छोटी सी मगर बहुत पुरानी दुकान थी। 


एक बनिये की बाजार में छोटी सी मगर बहुत पुरानी दुकान थी।

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ऊसकी दुकान के बगल में एक बिल्ली बैठी एक पुराने गंदे कटोरे में दूध पी रही थी।

एक बहुत बड़ा कला पारखी बनिये की दुकान के सामने से गुजरा।

कला पारखी होने के कारण जान गया कि कटोरा एक एंटीक आइटम है और कला के बाजार में बढ़िया कीमत में बिकेगा।

लेकिन वह ये नहीं चाहता था कि बनिये को इस बात का पता लगे कि उनके पास मौजूद वह गंदा सा पुराना कटोरा इतना कीमती है।

उसने दिमाग लगाया और बनिये से बोला,— ‘लाला जी, नमस्ते, आप की बिल्ली बहुत प्यारी है, मुझे पसंद आ गई है।

क्या आप बिल्ली मुझे देंगे? चाहे जो कीमत ले लीजिए।’

बनिये ने पहले तो इनकार किया मगर जब कलापारखी कीमत बढ़ाते-बढ़ाते दस हजार रुपयों तक पहुंच गया तो लाला जी बिल्ली बेचने को राजी हो गए और दाम चुकाकर कला पारखी बिल्ली लेकर जाने लगा।

अचानक वह रुका और पलटकर लाला जी से बोला— “लाला जी बिल्ली तो आपने बेच दी। अब इस पुराने कटोरे का आप क्या करोगे?

इसे भी मुझे ही दे दीजिए। बिल्ली को दूध पिलाने के काम आएगा।

चाहे तो इसके भी 100-50 रुपए ले लीजिए।’

कहानी में twist:

बनिये ने जवाब दिया, “नहीं साहब, कटोरा तो मैं किसी कीमत पर नहीं बेचूंगा,

क्योंकि इसी कटोरे की वजह से आज तक मैं 50 बिल्लियां बेच चुका हूं।’

😂😂😜😎’

!😄😄😄

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

राधिका अपने पति के तबादले के बाद पहली बार दिल्ली आयी थी। 


राधिका अपने पति के तबादले के बाद पहली बार दिल्ली आयी थी।
पांच महीने की गर्भवती और पांच साल के एक बच्चे की माँ राधिका के लिए
बिना किसी कामवाली की मदद के घर को संभालना मुश्किल हो रहा था।
उसने अपने पड़ोसियों से बात की तो एक ने अपनी कामवाली कंचन को उसके घर भेज दिया।
कंचन ने राधिका से सारा काम समझ लिया और काम में लग गयी।
कंचन को देख राधिका के बेटे हर्ष ने पूछा- माँ ये कौन है?
राधिका ने कहा- ये आंटी मम्मा की मदद करने आई है घर के काम में।
अगले दिन जब कंचन राधिका के घर पहुँची तो हर्ष ने उसे देखकर कहा- मम्मा कामवाली आ गयी।
राधिका ने हर्ष को समझाया- ऐसा नही कहते बेटे।
वो तुमसे बड़ी है। बड़ो को इज्जत देते है।
कंचन ने कहा- भाभी, बबुआ ठीक तो कह रहे है।
राधिका ने उसे चुप रहने का इशारा कर हर्ष से कहा- हर्ष बेटे, कंचन बुआ को सॉरी बोलो।
हर्ष सॉरी बुआ बोलकर खेलने में मगन हो गया।
इस घटना ने कंचन के दिल में राधिका के प्रति सम्मान का भाव जगा दिया।
वो हर वक्त राधिका के हर काम, हर मदद के लिए मौजूद रहती थी।
एक दिन दोपहर में कुछ काम करते हुए राधिका अचानक बेहोश हो गयी।
नन्हा हर्ष परेशान हो गया। उसे कुछ समझ नही आ रहा था।
हर्ष भागकर गया और बगल वाले घर की घंटी बजाई।
दोपहर की नींद खराब होने से उस घर की मालकिन गुस्से में बाहर निकली।
हर्ष की बात सुनकर उसने कहा- तो मैं क्या करूँ?
जाओ गली के कोने से जाकर कंचन को बुलाओ।
कंचन हर्ष की बात सुन उसे गोद में लिए दौड़ती हुई राधिका के पास पहुँची और उसे जल्दी से अस्पताल ले गई।
उस दिन से कंचन मानों उनके परिवार का ही हिस्सा बन गयी।
सही वक्त पर राधिका ने एक प्यारी सी बेटी को जन्म दिया।
इस खुशी में विनीत ने घर में छोटा सा कार्यक्रम रखा और
पास के शहर में रहने वाली अपनी बहन को भी न्योता दिया
लेकिन उसने ये कहक़र आने से मना कर दिया कि
भैया नेग में ज्यादा से ज्यादा क्या दे पाएंगे एक मामूली सी साड़ी।
उसके लिए इतना खर्च करके जाना फिजूल है।
तब कंचन ने खुशी-खुशी बुआ द्वारा की जाने वाली रस्मों को पूरा किया।
कुछ ही वक्त के बाद विनीत को तरक्की मिली और
उनकी आर्थिक स्थिति बेहतर हो गयी और वो अपने खुद के घर में आ गए। कंचन हर जगह उनके साथ बनी रही।
वक्त पंख लगकर उड़ता गया।
आज विनीत और राधिका की बेटी रावि की शादी थी।
सारे नाते-रिश्तेदार आये हुए थे जिनमें विनीत की बहन भी थी।
विनीत की बहन खुशी से चहकते हुए बोली- भैया इकलौती भतीजी है तगड़ा नेग लूंगी मैं तो हर रस्म में।
तभी राधिका ने कंचन को आवाज़ दी और कहा-
रावि की शादी की रस्म भी उसकी वही बुआ करेगी जिसने जन्म के वक्त अपना रिश्ता निभाया।
कंचन ने कहा- नहीं, नहीं भाभी, हम छोटे लोगों की आपसे क्या बराबरी।
विनीत आगे आया और कहा- कंचन, राधिका ठीक कह रही है।
छोटे तो वो लोग होते है जो रिश्तों को मोल-भाव की नज़र से देखते है।
अब कंचन ना नही कह सकी। उसकी आँखों में खुशी के आंसू आ गए थे।
तभी रावि बोल उठी- बुआ आंसू विदाई के लिए रखो।
अभी मुस्कुराते हुए आओ वर्ना फ़ोटो खराब हो जाएगी।
ये सुनकर सब तनाव को भूल हंस पड़े और रस्में शुरू हो गयी।
विनीत की बहन चुपचाप अपने घर के लिए रवाना हो गयी।
रिश्तों के खूबसूरत रंग ने आज विनीत और राधिका के घर-आंगन को अलग ही रंग में रंग दिया था,
जिसकी चमक अब कभी फीकी नही पड़ने वाली थी।

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लष्मीकांत वर्शनय