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इंगलैण्ड की राजधानी लंदन में यात्रा के दौरान


इंगलैण्ड की राजधानी लंदन में यात्रा के दौरान एक शाम महाराजा जयसिंह सादे कपड़ों में बॉन्ड स्ट्रीट में घूमने के लिए निकले और वहां उन्होने रोल्स रॉयस कम्पनी का भव्य शो रूम देखा और मोटर कार का भाव जानने के लिए अंदर चले गए। शॉ रूम के अंग्रेज मैनेजर ने उन्हें “कंगाल भारत” का सामान्य नागरिक समझ कर वापस भेज दिया। शोरूम के सेल्समैन ने भी उन्हें बहुत अपमानित किया, बस उन्हें “गेट आऊट” कहने के अलावा अपमान करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी।अपमानित महाराजा जयसिंह वापस होटल पर आए और रोल्स रॉयस के उसी शोरूम पर फोन लगवाया और संदेशा कहलवाया कि अलवर के महाराजा कुछ मोटर कार खरीदने चाहते हैं।

कुछ देर बाद जब महाराजा रजवाड़ी पोशाक में और अपने पूरे दबदबे के साथ शोरूम पर पहुंचे तब तक शोरूम में उनके स्वागत में “रेड कार्पेट” बिछ चुका था। वही अंग्रेज मैनेजर और सेल्समेन्स उनके सामने नतमस्तक खड़े थे। महाराजा ने उस समय शोरूम में पड़ी सभी छ: कारों को खरीदकर, कारों की कीमत के साथ उन्हें भारत पहुँचाने के खर्च का भुगतान कर दिया।

भारत पहुँच कर महाराजा जयसिंह ने सभी छ: कारों को अलवर नगरपालिका को दे दी और आदेश दिया कि हर कार का उपयोग (उस समय के दौरान 8320 वर्ग कि.मी) अलवर राज्य में कचरा उठाने के लिए किया जाए।

विश्‍व की अव्वल नंबर मानी जाने वाली सुपर क्लास रोल्स रॉयस कार नगरपालिका के लिए कचरागाड़ी के रूप में उपयोग लिए जाने के समाचार पूरी दुनिया में फैल गया और रोल्स रॉयस की इज्जत तार-तार हुई। युरोप-अमरीका में कोई अमीर व्यक्‍ति अगर ये कहता “मेरे पास रोल्स रॉयस कार” है तो सामने वाला पूछता “कौनसी?” वही जो भारत में कचरा उठाने के काम आती है! वही?

बदनामी के कारण और कारों की बिक्री में एकदम कमी आने से रोल्स रॉयस कम्पनी के मालिकों को बहुत नुकसान होने लगा। महाराज जयसिंह को उन्होने क्षमा मांगते हुए टेलिग्राम भेजे और अनुरोध किया कि रोल्स रॉयस कारों से कचरा उठवाना बन्द करवावें। माफी पत्र लिखने के साथ ही छ: और मोटर कार बिना मूल्य देने के लिए भी तैयार हो गए।

महाराजा जयसिंह जी को जब पक्‍का विश्‍वास हो गया कि अंग्रेजों को वाजिब बोधपाठ मिल गया है तो महाराजा ने उन कारों से कचरा उठवाना बन्द करवाया !                  अब जरा सोचो मेरे दोस्त, यदि हम सभी भारत वासी चीन निर्मित सामानों का बहिष्कार कर दें तो चीन को भी घुटने टेकना पड़ जायेगा।

विक्रम प्रकाश राइसोनि

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जमुनादास जी एक बार ठाकुर जी के लिए फूल लेने के लिए बाजार में निकले।


जमुनादास जी एक बार ठाकुर जी के लिए फूल लेने के लिए बाजार में निकले।
माली की दूकान पर एक अच्छा सा कमल देखा ,

उन्होंने सोचा कि आज अपने ठाकुरजी के लिए यही सुंदर कमल ले जाऊं।
इसी समय वहाँ एक यवनराज आया जो एक स्त्री के लिए फूल लेना चाहता था।
जमनादास भक्त ने उस कमल फूल की कीमत पूछी तो माली ने कहा कि पांच रूपये का है ,
तो यवनराज ने बीच में ही कह दिया कि मै इस फूल के लिए दस रूपये दूंगा ,
तू यह फूल मुझे ही दे। तब उस जमनादास भक्त ने कहा कि मै पच्चीस रूपये देने को तैयार हु , फूल मुझे ही देना।
इस प्रकार फूल लेने के लिए दोनों के बीच होड़-सी लग गई।

यवनराज ने दस हजार की बोली लगाई तो भक्त जमनादास ने कहा कि एक लाख।
स्त्री के लिए यवनराज को वैसा कोई सच्चा प्रेम नहीं था , केवल मोह था।
उसने सोचा की मेरे पास लाख रूपये होंगे तो कोई दूसरी स्त्री भी मिल ही जायेगी पर उधर जमनादास भक्त के लिए तो ठाकुर जी सर्वस्व थे ।
उनका प्रभु – प्रेम सच्चा था , शुद्ध था। उन्होंने अपनी सारी सम्पति बेच दी और लाख रूपये में वह कमल फूल खरीद कर श्री नाथ जी की सेवा में अर्पित कर दिया।
फूल अर्पित करते ही श्री नाथ जी के सिर से मुकुट नीचे गिर गया। इस प्रकार भगवान् ने बताया कि भक्त के इस फूल की कीमत अमूल्य है।
देखा प्रभु जब हम अपना सर्वस्व त्याग करके केवल और केवल ठाकुर जी की प्रीति के लिए काम करते हैं

तो ठाकुर भी सोच में पड जाते हैं की ऐसे भक्त को क्या दे दूँ और अंत में वो अपने आप को ही न्योछावर कर देते हैं।
हम उन छोटी छोटी तुछ सांसारिक चीजों के लिए अपना अमूल्य समय गवा देते है और ये सारी वस्तुए जिनसे उदभूत होती हैं उनको भूला के बैठे हैं।
जय श्री राधे
R K Neekhara

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नवग्रहों के सभी प्रकार के मंत्र, रत्न

और धारण विधि

नवग्रहों के सभी प्रकार के मंत्र, रत्न और धारण

विधि –

नवग्रहों के मूल मंत्र –

सूर्य : ॐ सूर्याय नम:

चन्द्र : ॐ चन्द्राय नम:

गुरू : ॐ गुरवे नम:

शुक्र : ॐ शुक्राय नम:

मंगल : ॐ भौमाय नम:

बुध : ॐ बुधाय नम:

शनि : ॐ शनये नम: अथवा ॐ शनिचराय नम:

राहु : ॐ राहवे नम:

केतु : ॐ केतवे नम:

नवग्रहों के बीज मंत्र –

सूर्य : ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं स: सूर्याय नम:

चन्द्र : ॐ श्रां श्रीं श्रौं स: चन्द्राय नम:

गुरू : ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं स: गुरवे नम:

शुक्र : ॐ द्रां द्रीं द्रौं स: शुक्राय नम:

मंगल : ॐ क्रां क्रीं क्रौं स: भौमाय नम:

बुध : ॐ ब्रां ब्रीं ब्रौं स: बुधाय नम:

शनि : ॐ प्रां प्रीं प्रौं स: शनये नम:

राहु : ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं स: राहवे नम:

केतु : ॐ स्त्रां स्त्रीं स्त्रौं स: केतवे नम:

नवग्रहों के वेद मंत्र –

सूर्य : ॐ आकृष्णेन रजसा वर्त्तमानो

निवेशयन्नमृतं मतर्य च

हिरण्येन सविता रथेना देवो याति भुवनानि

पश्यन॥

इदं सूर्याय न मम॥

चन्द्र : ॐ इमं देवाS सपत् न ग्वं सुवध्वम् महते

क्षत्राय महते ज्येष्ठयाय

महते जानराज्यायेन्द्रस्येन्द्रियाय इमममुष्य

पुत्रमुष्यै पुत्रमस्यै विश एष

वो S मी राजा सोमो Sस्माकं ब्राह्मणानां ग्वं

राजा॥ इदं चन्द्रमसे न मम॥

गुरू : ॐ बृहस्पते अति यदर्यो अहार्द्

द्युमद्विभाति क्रतुमज्जनेषु।

यददीदयच्छवस ॠतप्रजात तदस्मासु द्रविणं

धेहि चित्रम॥

इदं बृहस्पतये , इदं न मम॥

शुक्र : ॐ अन्नात् परिस्रुतो रसं ब्रह्मणा

व्यपिबत् क्षत्रं पय:।

सोमं प्रजापति: ॠतेन सत्यमिन्द्रियं पिवानं

ग्वं

शुक्रमन्धस Sइन्द्रस्येन्द्रियमिदं पयो S मृतं मधु॥

इदं शुक्राय , न मम।

मंगल : ॐ अग्निमूर्द्धा दिव: ककुपति:

पृथिव्या अयम्।

अपा ग्वं रेता ग्वं सि जिन्वति। इदं भौमाय, इदं

न मम॥

बुध : ॐ उदबुध्यस्वाग्ने प्रति

जागृहित्वमिष्टापूर्ते स ग्वं सृजेथामयं च।

अस्मिन्त्सधस्थे अध्युत्तरस्मिन् विश्वेदेवा

यजमानश्च सीदत॥

इदं बुधाय , इदं न मम॥

शनि : ॐ शन्नो देविरभिष्टय आपो भवन्तु

पीतये।

शंय्योरभिस्त्रवन्तु न:। इदं शनैश्चराय , इदं न मम॥

राहु : ॐ कयानश्चित्र आ भुवद्वती सदा वृध:

सखा।

कया शचिंष्ठया वृता॥ इदं राहवे , इदं न मम॥

केतु : ॐ केतुं कृण्वन्न केतवे पेशो मर्या अपेशसे।

समुषदभिरजा यथा:। इदं केतवे , इदं न मम॥

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नवग्रहों के रत्न –

भारतीय ज्योतिष में मान्यता प्राप्त नवग्रहों

के रत्न निम्नलिखित हैं : —–

माणिक्य : यह रत्न ग्रहों के राजा माने जाने

वाले सूर्य महाराज को बलवान बनाने के लिए

पहना जाता है। इसका रंग हल्के गुलाबी से

लेकर गहरे लाल रंग तक होता है। धारक के लिए

शुभ होने की स्थिति में यह रत्न उसे व्यवसाय में

लाभ , प्रसिद्धि, रोगों से लड़ने की शारीरिक

क्षमता, मानसिक स्थिरता , राज-दरबार से

लाभ तथा अन्य प्रकार के लाभ प्रदान कर

सकता है। किन्तु धारक के लिए अशुभ होने की

स्थिति में यह उसे अनेक प्रकार के नुकसान भी

पहुंचा सकता है। माणिक्य को आम तौर पर

दायें हाथ की कनिष्का उंगली में धारण

किया जाता है। इसे रविवार को सुबह स्नान

करने के बाद धारण करना चाहिए।

मोती : यह रत्न सब ग्रहों की माता माने

जाने वाले ग्रह चन्द्रमा को बलवान बनाने के

लिए पहना जाता है। मोती सीप के मुंह से

प्राप्त होता है। इसका रंग सफेद से लेकर हल्का

पीला, हलका नीला , हल्का गुलाबी अथवा

हल्का काला भी हो सकता है। ज्योतिष

लाभ की दृष्टि से इनमें से सफेद रंग उत्तम होता

है तथा उसके पश्चात हल्का नीला तथा

हल्का पीला रंग भी माननीय है। धारक के

लिए शुभ होने की स्थिति में यह उसे मानसिक

शांति प्रदान करता है तथा विभिन्न प्रकार

की सुख सुविधाएं भी प्रदान कर सकता है।

मोती को आम तौर पर दायें हाथ की

अनामिका या कनिष्का उंगली में धारण

किया जाता है। इसे सोमवार को सुबह स्नान

करने के बाद धारण करना चाहिए।

पीला पुखराज : यह रत्न समस्त ग्रहों के गुरु

माने जाने वाले बृहस्पति को बल प्रदान करने

के लिए पहना जाता है। इसका रंग हल्के पीले

से लेकर गहरे पीले रंग तक होता है। धारक के

लिए शुभ होने की स्थिति में यह उसे धन ,

विद्या, समृद्धि , अच्छा स्वास्थय तथा अन्य

बहुत कुछ प्रदान कर सकता है। इस रत्न को आम

तौर पर दायें हाथ की तर्जनी उंगली में गुरुवार

को सुबह स्नान करने के बाद धारण किया

जाता है।

हीरा ( सफेद पुखराज ) : यह रत्न शुक्र को

बलवान बनाने के लिए धारण किया जाता है

तथा धारक के लिए शुभ होने पर यह उसे

सांसरिक सुख-सुविधा , ऐशवर्य , मानसिक

प्रसन्नता तथा अन्य बहुत कुछ प्रदान कर सकता

है। हीरे के अतिरिक्त शुक्र को बल प्रदान करने

के लिए सफेद पुखराज भी पहना जाता है। शुक्र

के यह रत्न रंगहीन तथा साफ़ पानी या साफ़

कांच की तरह दिखते हैं। इन रत्नों को आम तौर

पर दायें हाथ की मध्यामा उंगली में शुक्रवार

की सुबह स्नान करने के बाद धारण किया

जाता है।

लाल मूंगा : यह रत्न मंगल को बल प्रदान करने के

लिए पहना जाता है तथा धारक के लिए शुभ

होने पर यह उसे शारीरिक तथा मानसिक बल,

अच्छे दोस्त, धन तथा अन्य बहुत कुछ प्रदान कर

सकता है। मूंगा गहरे लाल से लेकर हल्के लाल

तथा सफेद रंग तक कई रगों में पाया जाता है ,

किन्तु मंगल ग्रह को बल प्रदान करने के लिए

गहरा लाल अथवा हल्का लाल मूंगा ही

पहनना चाहिए। इस रत्न को आम तौर पर दायें

हाथ की कनिष्का अथवा तर्जनी उंगली में

मगलवार को सुबह स्नान करने के बाद पहना

जाता है।

पन्ना : यह रत्न बुध ग्रह को बल प्रदान करने के

लिए पहना जाता है तथा धारक के लिए शुभ

होने पर यह उसे अच्छी वाणी , व्यापार , अच्छी

सेहत, धन-धान्य तथा अन्य बहुत कुछ प्रदान कर

सकता है। पन्ना हल्के हरे रंग से लेकर गहरे हरे रंग

तक में पाया जाता है। इस रत्न को आम तौर

पर दायें हाथ की अनामिका उंगली में बुधवार

को सुबह स्नान करने के बाद धारण किया

जाता है।

नीलम : शनि महाराज का यह रत्न नवग्रहों के

समस्त रत्नों में सबसे अनोखा है तथा धारक के

लिए शुभ होने की स्थिती में यह उसे धन , सुख ,

समृद्धि, नौकर-चाकर , व्यापरिक सफलता

तथा अन्य बहुत कुछ प्रदान कर सकता है किन्तु

धारक के लिए शुभ न होने की स्थिती में यह

धारक का बहुत नुकसान भी कर सकता है।

इसलिए इस रत्न को किसी अच्छे ज्योतिषि

के परामर्श के बिना बिल्कुल भी धारण नहीं

करना चाहिए। इस रत्न का रंग हल्के नीले से

लेकर गहरे नीले रंग तक होता है। इस रत्न को

आम तौर पर दायें हाध की मध्यमा उंगली में

शनिवार को सुबह स्नान करने के बाद धारण

किया जाता है।

गोमेद : यह रत्न राहु महाराज को बल प्रदान

करने के लिए पहना जाता है तथा धारक के

लिए शुभ होने की स्थिति में यह उसे अक्समात

ही कही से धन अथवा अन्य लाभ प्रदान कर

सकता है। किन्तु धारक के लिए अशुभ होने की

स्थिति में यह रत्न उसका बहुत अधिक नुकसान

कर सकता है और धारक को अल्सर, कैंसर तथा

अन्य कई प्रकार की बिमारियां भी प्रदान

कर सकता है। इसलिए इस रत्न को किसी अच्छे

ज्योतिषि के परामर्श के बिना बिल्कुल भी

धारण नहीं करना चाहिए। इसका रंग हल्के शहद

रंग से लेकर गहरे शहद रंग तक होता है। इस रत्न

को आम तौर पर दायें हाथ की मध्यमा अथवा

अनामिका उंगली में शनिवार को सुबह स्नान

करने के बाद धारण किया जाता है।

लहसुनिया : यह रत्न केतु महाराज को बल

प्रदान करने के लिए पहना जाता है तथा धारक

के लिए शुभ होने पर यह उसे व्यसायिक सफलता ,

आध्यात्मिक प्रगति तथा अन्य बहुत कुछ

प्रदान कर सकता है किन्तु धारक के लिए अशुभ

होने की स्थिति में यह उसे घोर विपत्तियों में

डाल सकता है तथा उसे कई प्रकार के मानसिक

रोगों से पीड़ित भी कर सकता है। इसलिए इस

रत्न को किसी अच्छे ज्योतिषि के परामर्श के

बिना बिल्कुल भी धारण नहीं करना चाहिए।

इसका रंग लहसुन के रंग से लेकर गहरे भूरे रंग तक

होता है किन्तु इस रत्न के अंदर दूधिया रंग की

एक लकीर दिखाई देती है जो इस रत्न को हाथ

में पकड़ कर धीरे-धीरे घुमाने के साथ-साथ ही

घूमना शुरू कर देती है। इस रत्न को आम तौर पर

दायें हाथ की मध्यमा उंगली में शनिवार को

सुबह स्नान करने के बाद धारण किया जाता

है।

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रत्न धारण करने की विधि –

अपने लिए उपयुक्त रत्न जान लेने के पश्चात

आपके लिए यह जान लेना आवश्यक है कि इन

रत्नों को धारण करने की सही विधि क्या है।

तो आइए आज इसी विषय पर चर्चा करते हैं कि

किसी भी रत्न को धारण करते समय किन

किन बातों का ध्यान रखना चाहिए। सबसे

पहले यह जान लें कि प्रत्येक रत्न को धारण

करने के लिए सबसे बढ़िया दिन कौन सा है।

प्रत्येक रत्न को धारण करने के लिए उत्तम दिन

इस प्रकार हैं :

माणिक्य : रविवार

मोती : सोमवार

पीला पुखराज : गुरुवार

सफ़ेद पुखराज : शुक्रवार

लाल मूंगा : मंगलवार

पन्ना : बुधवार

नीलम : शनिवार

गोमेद : शनिवार

लहसुनिया : शनिवार

आइए अब इन्हें धारण करने की विधि पर विचार

करें। सबसे पहले यह जान लेते हैं कि किसी भी

रत्न को अंगूठी में जड़वाते समय किन बातों

का ध्यान रखना चाहिए। जिस अंगूठी में आप

रत्न को जड़वाना चाहते हैं, उसका नीचे का

तला खुला होना चाहिए तथा आपका रत्न

उस खुले तले में से हलका सा नीचे की तरफ

निकला होना चाहिए जिससे कि वह आपकी

उंगली को सही प्रकार से छू सके तथा अपने से

संबंधित ग्रह की उर्जा आपकी उंगली के इस

सम्पर्क के माध्यम से आपके शरीर में

स्थानांतरित कर सके। इसलिए अपने रत्न से

जड़ित अंगूठी लेने पहले यह जांच लें कि आपका

रत्न इस अंगूठी में से हल्का सा नीचे की तरफ़

निकला हुआ हो। अंगूठी बन जाने के बाद सबसे

पहले इसे अपने हाथ की इस रत्न के लिए

निर्धारित उंगली में पहन कर देखें ताकि अंगूठी

ढीली अथवा तंग होने की स्थिति में आप इसे

उसी समय ठीक करवा सकें।

अंगूठी को प्राप्त कर लेने के पश्चात इसे धारण

करने से 24 से 48 घंटे पहले किसी कटोरी में

गंगाजल अथवा कच्ची लस्सी में डुबो कर रख दें।

कच्चे दूध में आधा हिस्सा पानी मिलाने से

आप कच्ची लस्सी बना सकते हैं किन्तु ध्यान

रहे कि दूध कच्चा होना चाहिए अर्थात इस

दूध को उबाला न गया हो। गंगाजल या कच्चे

दूध वाली इस कटोरी को अपने घर के किसी

स्वच्छ स्थान पर रखें। उदाहरण के लिए घर में

पूजा के लिए बनाया गया स्थान इसे रखने के

लिए उत्तम स्थान है। किन्तु घर में पूजा का

स्थान न होने की स्थिति में आप इसे अपने

अतिथि कक्ष अथवा रसोई घर में किसी उंचे

तथा स्वच्छ स्थान पर रख सकते हैं। यहां पर यह

बात ध्यान देने योग्य है कि इस कटोरी को

अपने घर के किसी भी शयन कक्ष में बिल्कुल न

रखें। रत्न धारण करने के इस चरण को रत्न के

शुद्धिकरण का नाम दिया जाता है।

इसके पश्चात इस रत्न को धारण करने के दिन

प्रात उठ कर स्नान करने के बाद इसे धारण

करना चाहिए। वैसे तो प्रात:काल सूर्योदय से

पूर्व का समय रत्न धारण करने के लिए श्रेष्ठ

माना जाता है किन्तु आप इसे अपने नियमित

स्नान करने के समय पर भी धारण कर सकते हैं।

स्नान करने के बाद रत्न वाली कटोरी को

अपने सामने रख कर किसी स्वच्छ स्थान पर बैठ

जाएं तथा रत्न से संबंधित ग्रह के मूल मंत्र, बीज

मंत्र अथवा वेद मंत्र का 108 बार जाप करें। इसके

बाद अंगूठी को कटोरी में से निकालें तथा इसे

अपनी उंगली में धारण कर लें। उदाहरण के लिए

यदि आपको माणिक्य धारण करना है तो

रविवार की सुबह स्नान के बाद इस रत्न को

धारण करने से पहले आपको सूर्य के मूल मंत्र ,

बीज मंत्र अथवा वेद मंत्र का जाप करना है।

रत्न धारण करने के लिए किसी ग्रह के मूल मंत्र

का जाप माननीय होता है तथा आप इस ग्रह

के मूल मंत्र का जाप करने के पश्चात रत्न को

धारण कर सकते हैं। किन्तु अपनी मान्यता तथा

समय की उपलब्धता को देखकर आप इस ग्रह के

बीज मत्र या वेद मंत्र का जाप भी कर सकते हैं।

रत्न धारण करने के इस चरण को रत्न की प्राण-

प्रतिष्ठा का नाम दिया जाता है। नवग्रहों

में से प्रत्येक ग्रह से संबंधित मूल मंत्र, बीज मत्र

तथा वेद मंत्र जानने के लिए नवग्रहों के मंत्र

नामक लेख पढ़ें।

कृप्या ध्यान दें : कुछ ज्योतिषि किसी विशेष

रत्न जैसे कि नीलम को रात के समय धारण करने

की सलाह देते हैं किन्तु रत्नों को केवल दिन के

समय ही धारण करना चाहिए। कई बार कोई

रत्न धारण करने के कुछ समय के बाद ही आपके

शरीर में कुछ अवांछित बदलाव लाना शुरू कर

देता है तथा उस स्थिति में इसे उतारना पड़ता

है। दिन के समय रत्न धारण करने से आप ऐसे

बदलावों को महसूस करते ही इस रत्न को

किसी भी प्रकार का कोई नुकसान पहुंचाने से

पहले ही उतार सकते हैं किन्तु रात के समय रत्न

धारण करने की स्थिति में अगर यह रत्न ऐसा

कोई बदलाव लाता है तो सुप्त अवस्था में होने

के कारण आप इसे उतार भी नहीं पाएंगे तथा कई

बार आपके प्रात: उठने से पहले तक ही यह रत्न

आपको कोई गंभीर शारीरिक नुकसान पहुंचा

देता है। इसलिए रत्न केवल सुबह के समय ही

धारण करने चाहिएं।

विक्रम प्रकाश राइसोनि

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મારી નજરે ભગવાન “શ્રીકૃષ્ણ” – Nikesh Panchal


 

મારી નજરે ભગવાન
“શ્રીકૃષ્ણ”

શ્રી કૃષ્ણ ભગવાન ની કથા એમ કહે છે કે તેઓ જન્મ્યા પહેલાજ તેમને મારી નાખવાની તૈયારી થઇ ગયી હતી . પણ તેમાંથી તેઓ આબાદ ઉગરી ગયા આગળ તેમના જીવન માં ઘણા સંકટો આવ્યા પણ તેઓ લડતા રહ્યા કોઈ ને કોઈ યુક્તિ કરીને હંમેશા બચતા રહ્યા કોઈ પ્રસંગ માં તો તેઓ રણ છોડી ભાગી પણ ગયા હતા,

પણ મારા જીવન માં આટલી બધી તકલીફો કેમ છે કરી ને તેઓ કોઈ દિવસ પણ કોઈ ને પણ પોતાની
જન્મકુંડળી બતાવવા નથી ગયા કે એવી કોઈ નોધ મેં નથી વાચી,

ના કોઈ ઉપવાસ કર્યા, ના ખુલ્લા પગે કસે ચાલવા ની માનતા કરી, કે કોઈ માતાજી ના ભુવા પાસે દાણા જોવડાવ્યા,

તમે પણ વિચાર જો જરાક,

તેમણે તો યજ્ઞ કર્યો તે ફક્ત અને ફક્ત કર્મો નો.

યુદ્ધ ના મૈદાન માં જયારે અર્જુને ધનુષ્ય બાણ નીચે નાખી દીધા,
ત્યારે ભગવાન શ્રી કુષ્ણ એ ના તો અર્જુન ના જન્માક્ષર જોયા, ના તો તેને કોઈ દોરો કે તાવીજ તેને આપ્યા,
આ તારું યુદ્ધ છે અને તારેજ કરવાનું છે એમ અર્જુન ને સ્પષ્ટ કહી દીધું,

અર્જુને જયારે ધનુષ્ય નાખી દીધું ત્યારે તે ધનુષ ઉપાડી ભગવાને અર્જુન વતી લડાઈ નથી કરી।

બાકી શ્રી કુષ્ણ ભગવાન ખુદ મહાન યોદ્ધા હતા.
તેઓ એકલા હાથે આખી કૌરવો ની સેના ને હરાવી શકે તેમ હતા,પણ ભગવાને શસ્ત્ર હાથ માં નહોતું પકડ્યું પણ જો અર્જુને લડવાની તૈયારી બતાવી તો તેઓ તેના સારથી ( માર્ગદર્શક ) બનવા તૈયાર હતા.

આ રીતે ભગવાન શ્રી કૃષ્ણ આપણ ને સમજાવે છે કે જો દુનિયા ની તકલીફો માં તું જાતે લડીશ તો હું હંમેશા તારી આગળ ઉભો હોઈશ

તારી તકલીફો ને હું હળવી કરી નાખીશ અને તને માર્ગદર્શન પણ આપીશ,

કદાચ આજ ગીતા નો સહુથી સંક્ષિપ્ત સાર છે.

જયારે તમે કોઈ ભગવાન ના દર્શને જાવ તો ભગવાન ને એટલું જરૂર કહેજોં ભગવાન મારી તકલીફો થી લડવાની મને શક્તિ આપજો,

નહિ કે ભગવાન મારી તકલીફો થી છુટકારો આપજો,

ભગવાન આપની પાસે ઉપવાસ નથી માંગતા
નહિ કે તું ચાલતો આવ કે બીજું કઈ,

ભગવાન માંગે છે તો તમારું કર્મ,

માટે કર્મ કરતા રહેવું.

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जय श्री कृष्णा