बंदरो की एक टोली थी –
बंदर फलो के बग़ीचों मे फल तोड कर खाया करते साथ ही माली की मार और डंडे भी खाते थे !
एक दिन बन्दरों के सरदार ने सब बंदरो से विचार विमर्श कर निर्णय किया कि रोज माली के डन्डे खाने से बेहतर है हम अपना फलों का बग़ीचा लगा ले और खाने से ना कोई
रोकेगा न टोकेगा और हमारे अच्छे दिन भी आ जायगे !
सभी बन्दरों को यह प्रस्ताव बहुत पसन्द आया ! जोर शोर से गड्ढे खोद कर फलो के बीज बो दिये गये ! पूरी रात बन्दरों ने बेसब्री से इन्तज़ार किया ! सुबह देखा गया अभी तो फलो के पौधे भी नहीं आये !दो चार दिन बन्दरों ने और इन्तज़ार किया , परन्तु पौधे तो आए नहीं ! बन्दरों ने मिट्टी हटाई – देखा फलो के बीज जैसे के तैसे ही है !
बन्दरों ने कहा – लोग झूठ बोलते हैं ! हमारे अच्छे दिन कभी नही आने वाले ! हमारी क़िस्मत मैं तो माली के डन्डे ही लिखे हैं ! बन्दरों ने सभी गड्ढे खोद कर, फलो के बीज निकाल कर फेंक दिये ! और फिर माली की मार और डन्डे खाने लगे !
# दोस्तों, जरा सोचिये – – 60 साल बनाम 3 साल एक परिपक्व समाज का उदाहरण पेश करिये ! …..
# बंदरो वाली हरकत ना करे ..और दूसरे को भी न करने दें