Posted in संस्कृत साहित्य

ऋग्वेद की रचना


#इतिहास_के_पन्नो_से_भाग_4
#वेदो_की_रचना_कब_और_कैसे_हुई

ब्रिटेनकी sacred books of east पुस्तक माला में मेक्समूलर ने ऋग्वेद की रचना ईसा से 1200 वर्ष पूर्व बताते है साथ में वह यह भी कहते है की यह तिथि निश्चित नहीं है क्यों की वेदो का कालनिर्धारित करना सरल कार्य नही है कदाचित् ही कोई इस बात का पता लगा सके की वेदो की रचना कब हुई थी कोलब्रुकस विलसन ,कीथ आदि की राय मेक्समूलर से मिलती है हॉग आर्कबिशप ऋग्वेद का काल ईसा से 2000 वर्ष पूर्व मानते है किन्तु कोई प्रमाणिक तर्क नही कोई अखंडणीय युक्ति नही सम्भवतया इनकी युक्ति का आधार यह है की बाइबल के अनुसार 6 हजार से 7 हजार वर्ष पूर्व सृष्टि की रचना हुई थी इस लिए इनके भीतर ही कोई पदार्थ रचा गया होगा (अर्थात इनलोगो की सोच और अनुमान उनकी बाईबल के इर्द गिर्द ही घूमता है इसके बाहर निकलने की चेष्टा इन विद्वानों ने कभी नही की )
कल्पसूत्रो में विवाह प्रकरण में “ध्रुव इव स्थिरा भव् “वाक्य आया है इस पर प्रसिद्ध जर्मन ज्योतिषी जैकोबी ने लिखा है की पहले ध्रुव तारा अधिक चमकीला और स्थिर था इसकी अवस्था की तिथि ईसा से 2700 वर्ष पूर्व की है इसतरह कल्प सूत्रो का निर्माण 4700 वर्ष पूर्व हुआ ज्योतिर्विज्ञान अर्थात नक्षत्रो और ग्रहो के आकाशीय स्थिति के आधार पर जैकोबी ने वेदो का निर्माण काल 6500 से अधिक सिद्ध किया ।
लोकमान्य बालगंगाधर तिलक ,रामकृष्ण भण्डार,शंकर पाण्डुरंग ,शंकर बालकृष्ण दीक्षित ने बिदेशियो की अंधानुकरण छोड़ स्वयं वेदो का कालअन्वेषण किया लोक मान्य बालगंगाधर तिलक ने खोज की
की ब्राह्मणग्रन्थों के समय कृतिका नामक नक्षत्र से नक्षत्रो की गाड़ना होता था और कृतिका नक्षत्र ही सब नक्षत्रो में आदि गिना जाता था उनदिनों कृतिका नक्षत्र में दिन रात बराबर होते थे आजकल 21 मार्च और 23 सितम्बर दिन रात बराबर होते है और सूर्य अश्विनी नक्षत्र में रहता है खगोल और ज्योतिर्विज्ञानो के अनुसार यह परिवर्तन आज से 4500 वर्ष पूर्व हुआ था इसलिए 4500 वर्ष पूर्व ब्राह्मण ग्रन्थ बने ।
मन्त्र संहिताओं के समय नक्षत्रो की गड़ना मृगशिरा ही सबसे पहले गिना जाता था और इसी नक्षत्र के सूर्य में दिनरात बराबर होते थे खगोल और ज्योतिष के अनुसार आज से 6500 वर्ष पूर्व ये स्थिति थी फलतः संहिताएं 6500 वर्ष पूर्व बनी लोकमान्य के मत से 2000 वर्षो में सारे मन्त्र रचे गए इसतरह कुछ प्राचीन ऋचाएं 8500 वर्ष पूर्व रची गई मृगशिरा में वसन्त की समाप्ति होना ही इस दिशा में लोकमान्य की सबसे बड़ी युक्ति और आधार है ।
अलेक्जेंडर (सिकंदर ) के समय ग्रीक विद्वानों ने अनेक वंशावलियों का जो संग्रह किया था उनके अनुसार चन्द्रगुप्त तक 154 राज वंश 6457 वर्ष भारत में राज्य कर चुके थे इन समस्त राजवंशो के पहले ही वेदो की रचना हो चुकी थी इस आधार पर वेदो की रचना 8000 वर्षो का हुआ ।
पूना के नारायण भवनराव ने भुगर्भशात्र के प्रमाण के आधार पर ऋग्वेदीय निर्माण काल 9000 वर्षो का सिद्ध किया ।
ऋग्वेद (10/136/5) में पूर्व और पश्चिम समुद्रो का उल्लेख मिलता है पूर्व समुद्र पंजाब के ठीक पूर्व में
समस्त गांगेय प्रदेश को आच्छादित करके अवस्थित था इसके भीतर ही पाञ्चाल ,कोशल,वत्स् ,मगध ,बिदेह,ये सारे भूभाग समुद्र गर्भ में थे पश्चिम समुद्र कदाचित् अरब सागर था ऋग्वेद के दो मंत्रो में (10/47/2 और 9/33/6) में चार समुद्रो का उल्लेख है इस प्रकार आर्य निवास के पूर्व ,पश्चिम,उत्तर ,दक्षिण, चार समुद्र थे उत्तरी समुद्र बाहलिक और फारस के उत्तरी भाग में तुर्किस्तान जो प्राकृतिक कारणों से शुष्क हो कर इन दिनों कृष्णह्नद(Black sea ,) कश्यप ह्नद ( caspean sea ,) अराल ह्नद(sea of aral )और बल्काह्नद ( lake Balkash) के रूपो में अवस्थित है भूगोल वेत्ताओं ने इनका नाम एशियाई भूमध्य सागर रखा है इसके उत्तर में आर्कटिक महासागर था इसके पास ही वर्तमान भूमध्य सागर था एशियाई समुद्र का तल ऊँचा तथा यूरोपीय सागर तल निचा था प्राकृतिक परिवर्तनों ने जब वासफारस का मार्ग बना डाला तब एशियाई समुद्र का जल यूरोपीय समुद्र में चला गया और एशियाई समुद्र नष्ट सा हो गया इसके अंश उक्त ह्नदो के रूप में हो गए दक्षिणी समुद्र का नाम राजपुताना समुद्र था (imperial cazetteer of india vol -1) इसी में वह सरस्वती नदी गिरती थी जिनके तटो पर सैकड़ो वेद मन्त्र बने थे प्राकृतिक कारणों से राजपुताना समुद्र और सरस्वती नदी सुख गई आज भी राजपुताना के गर्भ में खारे जल की सांभर आदि झील और नमक की तथे मरुभूमि में बिलुप्त राजपुताना समुद्र की साक्ष्य दे रही है H-G -WELLS -ने अपने THE OUTLINE OF HISTORY में 25 हजार से 50 हजार के वर्षो के बिश्व का नक्शा दिया है उसमे ऐसे समुद्रो का आस्तित्व 25 हजार से 50 हजार वर्षो के बिच माना गया है गांगेय प्रदेश सरस्वती नदी और चारो समुद्र के सम्बन्ध में भूगर्भशास्त्रो का मत है की 25 हजार वर्षो से लेकर 75 हजार वर्षो के भीतर ये सब लुप्त गुप्त और रूपांतरित हुए है इन्ही और ऐसे अन्य प्रमाणों से अमल करने पर ऋग्वेद का निर्माण काल 66 हजार वर्षो का अविनाश चन्द्र दाश ने 75 हजार वर्षो का माना है प्रोफ़ेसर लौटुसिंह गौतम के सामान कुछ कट्टर सनातनी ऐतिहासिक तो ऋग्वेद का रचना काल 4 लाख 32 हजार वर्ष माना है इनके प्रमाण आप्तवचन ही अधिक है जिन यूरोपीय ने वैदिक साहित्य के बारे में लेखनी उठाई है उन सब ने कालनिर्णय पर बड़ी माथापच्ची की है वैदिक उपदेश क्या है उनकी अपूर्वता क्या है उनका प्रतिपाद्य क्या है वैदिक संस्कृति क्या है इन सब बातो पर कम ध्यान दिया गया है और कालनिर्णय पर अधिक इसी उलझन को समझ कर प्रसिद्ध जर्मन विद्वान श्लेगल ने पहले ही लिख दिया की वेद सबसे प्राचीनतम ग्रन्थ है जिसका समय निश्चित नही किया जा सकता परंतु सबसे मुख्य बात लिखी है प्रसिद्ध जर्मन वेद विद्यार्थी वेबरने उन्होंने कहा की वेद का रचना काल निश्चित नही किया जा सकता है ये उस तिथि के बने हुए है जहाँ तक पहुचने के लिए हमारे पास उपयुक्त साधन नही है बर्तमान प्रमाण राशि हम लोगो को उस समय के उन्नत शिखर पर पहुचाने में असमर्थ है यह उन वेबर साहब की राय है जिन्होंने अपना अधिकाँश जीवन वेदाध्ययन में बिताये है ।
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वैदिक मन्त्रो का निर्माणकाल निर्धारित करना मात्र प्रयास ही हो सकता है क्यों की श्रुतियां ( वैदिक मन्त्र) स्पष्ट कहती है ।

निःश्वसितमेतद्यदृग्वेदोयजुर्वेदःसामवेदोऽथर्वाङ्गिरस इतिहासः पुराणंविद्या उपनिषदः(बृहदारण्यक उपनिषद)
ऋग्वेद यजुर्वेद अथर्वेद इतिहास पुराण उपनिषद विद्या सभी ईश्वर के निस्वास् से निकला हुआ है
वेदो नारायण साक्षात् ( वेद ही नारायण का रूप है )
अतः उनका काल निर्धारण करना मूढ़ता का ही परिचायक हो सकता है ।
एवं वैदिक मन्त्रो का रचना किसी ने नही किया उन मंत्रो को दिब्य दृष्टि द्वारा दर्शन किया गया था ।
ऋषिदर्शनात् ( निरुक्त नैगम काण्ड २/११)
अर्थात _ मन्त्रद्रष्टा को ऋषि कहते है
इससे ये प्रमाणित होता है की मन्त्रो की रचना किसी नेे नही किया ऋषियो मात्र उनका दर्शन किया था

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