कल मैंने कहा कि पाकिस्तान के पास जो सबसे बड़ा हथियार है वह उसका परमाणु बम नहीं, बल्कि वे बीस करोड़ मुसलमान हैं जो हमारे देश में रह रहे हैं.
कुछेक मित्रों ने नाराजगी जताई. तो एक बात और साफ कर दूँ, यह मेरी कही बात नहीं है. यह स्ट्रेटेजिक डॉक्ट्राइन 80 के दशक में जनरल जिया-उल-हक ने दी थी. उसने कहा था कि जब भारत में पाकिस्तान से ज्यादा मुसलमान हैं तो हमें अपने फौजी लड़ने के लिए भेजने की क्या जरूरत है? तब से पाकिस्तान ने भारत के मुसलमानों को रेडिकलाइज करने में इन्वेस्ट करना शुरू किया. भारत की अपनी सरकारों ने भी आगे इस आग में खूब घी डाला.
आज एक सबसे कन्जर्वेटिव आकलन से भी कम से कम दस प्रतिशत मुसलमानों का तो रेडिकलाइजेशन हो ही चुका है. संख्या में ये कितने हुए? दो करोड़. यानि पूरे भारत की फौजों से पंद्रह-बीस गुना ज्यादा.
अब अगर पाकिस्तान इन्हें भारत में दंगे-फसाद फैलाने का सिग्नल दे दे, तो आप कैसे संभालोगे? और बाकी के अठारह करोड़ आपके साथ खड़े होकर इसका विरोध करते नहीं दिखेंगे. वे या तो मूक दर्शक बनकर हवा का रुख भांपेंगे, या शोर मचाएँगे कि मुसलमानों के साथ कितना अत्याचार हो रहा है. अगर दो-चार प्रतिशत मुसलमान सचमुच इसके विरोध में भी होंगे तो वे वैसे ही अप्रासंगिक होंगे जैसे 1947 के पहले थे.
पिछले कुछ समय से भारत के अलग-अलग शहरों में किसी ना किसी बहाने से पचास हजार-एक लाख मुसलमान जुटे हैं, हिंसक प्रदर्शन किए हैं. कभी किसी हिन्दू त्योहार के मौके पर, या कहीं पैगम्बर से गुस्ताखी के विरोध के बहाने से. यह सब उसी मारक हथियार की मिकेनिज्म को टेस्ट करने की प्रक्रिया भर थी.
आतंकी हमलों के विरोध में पाकिस्तान पर आस्तीनें चढ़ाना अपनी जगह है. पर कोई लड़ाई छेड़ने से पहले यह सोच लीजिए कि उनके इस हथियार का आपके पास क्या जवाब है? बिना पूरी तैयारी के जंग में कूदना मूर्खता के अलावा कुछ नहीं होता. यह समय पाकिस्तान पर कारवाई की माँग करने के बजाय उस टेरर नेटवर्क को नष्ट करने की माँग करने का है जो हमारे अपने देश में फैला है.
कॉपी
गजेंद्र पाल