Posted in गौ माता - Gau maata

*गोबर है गऊ का बरदान*

*आओ इस को लें पहचान*
वैसे तो भारत के ग्रामीण आंचल में आज भी हम हिंदूओ का अंतिम संस्कार गोसो (उपलों) से ही किया जाता है लेकिन हम शहरी कुछ ज्यादा ही पढ़ लिख गये और कुछ ज्यादा ही समझदार हो गए। शहरों के लगभग सभी शमशान घाटों पर लकड़ी से ही अंतेष्ठी की जाती है तथा कई जगह तो आधूनिकता व पर्यावरण संरक्षण के नाम पर गैस या बिजली से भी अंतिम संस्कार होने लगे हैं जो कि पूर्णतया गलत हैं। 
हम हिन्दूओं का सोलहवां संस्कार एक यज्ञ ही तो है और वह यज्ञ गौमाता के गोबर में ही होना चाहिए। पर्यीवरण रक्षक हमारे पुर्वजों ने जो अंतिम संस्कार की जो विधि बनाई थी उस में गोबर अनिवार्य अंग था लेकिन आज हम अपने अंतिम संस्कार के लिए हर वर्ष पांच से छः करोड़ पेड़ काट कर शमशान घाटों में जला देते हैं तथा हमारी अज्ञानता से गोबर गौशालाओं में सड़ रहा है व गौशालाएं चंदे पर चल रही हैं।
अगर गोबर का सही प्रबंधन कर हम उस गोबर को शमशान घाट पहुंचाने लगें तो सोने पर सुहागा होगा और गौशाला आर्थिक रूप से स्वावलंबी होंगी। कल हमने रोहतक के शीला बाईपास स्थित रामबाण में यह प्रयोग कर के देखा। एक अंतिम संस्कार पर औसतन तीन सौ किलो लकड़ी यानि एक पंद्रह साल का पेढ़ लगता है। हमनें जब गौकाष्ठ में अंतेष्ठी की तो मात्र 200 किलो ही गौकाष्ठ लगा। कल हमनें एक पेड़ व 2500/- ₹ बचाए तथा एक विलुप्त होती परम्पारा को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया। 
इस अवसर के बाबा कर्ण पुरी जी  महाराज, भारत भूषण खुराना, गुलशन डंग, सुरेन्द्र बत्रा, गुलशन खुराना, कृष्ण लाल शर्मा, नरेंद्र वासन, शमशेर दहिया, डॉ. संदीप कुमार तथा मिडिया के साथी व पराहवर गौशाला के सदस्य साक्षी बने।
यह रोजगार सृजन का, पर्यीवरण संरक्षण का, व गौ संवर्धन का एक सटीक तरीका है अगर हर गौशाला यह गौकाष्ठ बनाना शुरु कर दे तथा इसको हर शमशान घाट पर अनिवार्य कर दें तो गौशाला गौधाम बन जाएंगी। 
करना हमें व आपको ही है, क्योंकि यह हमारे व आपके धर्म से जुड़ा है विदेशी कंपनी तो चाहें गी ही कि उनकी बिजली व गैस बिके। कल के गौकाष्ठ से अंतेष्ठी के कुछ चित्र आप सबके लिए नीचे डाल रहा हूँ।
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