कांग्रेस के चाचा के कुकर्म :
डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद और पंडित नेहरू के बीच गम्भीर मतभेदों की ओर अधिक चर्चा करना जरूरी हो गया है।
यह सर्वविदित तथ्य है कि डाॅ. प्रसाद ने एक पत्र लिखकर प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को उनकी चीन नीति के बारे में कड़ी चेतावनी दी थी। यह पत्र डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद और नेहरू के पत्राचार में शामिल है। डाॅ. प्रसाद ने लिखा था कि चीन कभी भी भारत के लिए खतरा बन सकता है इसलिए तिब्बत का प्रभुत्व स्वीकार करना देशहित में नहीं होगा। तिब्बत को यथावत बफर स्टेट के रूप में बरकरार रखना देशहित में होगा मगर नेहरू ने डाॅ. प्रसाद के इस मशवरे को नहीं माना और इसकी भारी कीमत 1962 में देश को अदा करनी पड़ी। चीन ने भारत की जिस दो लाख किलोमीटर वर्ग भूमि पर कब्जा किया था उसे आज तक भारत खाली नहीं करवा सका। त्रासदी यह है कि दिसम्बर, 1962 में संसद में सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित किया गया था जिसमें कहा गया कि जब तक भारत चीन के कब्जे से एक-एक इंच अपनी भूमि आजाद नहीं करवा लेता चीन से बातचीत नहीं की जाएगी। लज्जाजनक बात यह है कि इस संकल्प के बावजूद हम आज तक 23 बार चीन के साथ वार्तालाप कर चुके हैं। मगर उससे कुछ भी हासिल नहीं हुआ। चीन का रूख आज भी भारत के प्रति रूख आक्रामक है और वह तवांग पर अपना दावा ठोक रहा है।
नेहरू जी के साथ अपने मतभेदों की कीमत डाॅ. प्रसाद को अदा करनी पड़ी। नेहरू जी के विरोध के कारण कांग्रेस ने डाॅ. प्रसाद को राष्ट्रपति के रूप में तीसरी बार मनोनीत करने से इनकार कर दिया और नेहरू जी के दबाव के कारण डाॅ. राधाकृष्णन को राष्ट्रपति बनााया गया।
देशरत्न डाॅ. प्रसाद से अपने द्वेष को नेहरू राष्ट्रपति पद से सेवानिवृत्त होने के बाद भी नहीं भूले। संविधान और परम्परा के अनुसार केन्द्र सरकार सेवानिवृत्त राष्ट्रपति के लिए जहां वह चाहे आवास की व्यवस्था करती है मगर पंडित नेहरू ने बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री डाॅ. श्रीकृष्ण सिन्हा पर इस बात के लिए दबाव डाला कि वह सरकारी तौर पर पटना में डाॅ. प्रसाद के लिए आवास की कोई व्यवस्था न करें।
डाॅ. प्रसाद के अंतिम दिनों में मुझे उनके दर्शन करने का सौभाग्य पटना में प्राप्त हुआ। क्योंकि डाॅ. प्रसाद के पास उनका आवास नहीं था इसलिए उन्होंने अंतिम दिन सदाकत आश्रम के एक कमरे में बिताए। यह कमरा बहुत ही छोटा और सीलन भरा था। मुझे डाॅ. प्रसाद की चिकित्सा करने वाले डाॅक्टरों ने बताया कि क्योंकि डाॅ. प्रसाद दमा के मरीज हैं इसलिए यह सीलन भरा वातावरण उनके स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है। कहा जाता है कि डाॅ. प्रसाद के परिजनों ने बिहार सरकार से अनुरोध किया था कि डाॅ. प्रसाद के लिए आवास की व्यवस्था की कहीं और की जाए। मगर नेहरू के व्यक्तिगत दबाव के कारण बिहार सरकार को डाॅ. प्रसाद को आवास देने की हिम्मत नहीं हुई। सबसे दुखद बात यह है कि उन दिनों डाॅ. प्रसाद की हालत गम्भीर चल रही थी और बलगम को निकालने के लिए राज्य सरकार ने उनके डाॅक्टरों को एक मशीन दी हुई थी। मगर न जाने किसके दबाव के कारण इस मशीन को सदाकत आश्रम से वापस मंगवा लिया गया। उसी रात को डाॅ. प्रसाद की हालत गम्भीर हो गई। क्योंकि मशीन उपलब्ध नहीं थी। इसलिए उनके जीवन को बचाया न जा सका और भारत माता का यह सपूत नेहरू जी की जिद का शिकार हो गया।
इस संदर्भ में यह उल्लेख करना भी जरूरी है कि डाॅ. प्रसाद के निधन के बाद उनकी अंत्येष्टि में न तो पंडित नेहरू शामिल हुए थे और न ही उन्होंने किसी अन्य मंत्री को पटना जाकर अंत्येष्टि में भाग लेने की अनुमति प्रदान की थी।
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आदणीय अग्रज Manmohan Sharma जी का आलेख।
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#राष्ट्रपति_विमर्श
और
#दूषित्त_कांग्रेस
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हर युवा को हर तथ्य और हर सत्य जानने
का अधिकार है।
दादा Sumant Bhattacharya जी की वाल से साभार