Posted in हिन्दू पतन

नफरत सिर्फ ब्राह्मणों के खिलाफ क्यों फैली? नफरत यादव, सुनार, धोबी, कुम्हार या बाकी जातियों के खिलाफ क्यों नहीं फैली? ये एक वाजिब प्रश्न है।
सुनिए जरा…
अगर आप यादव से नफरत करेंगे तो उससे दूध लेना बंद कर देंगे; पर फिर भी हिन्दू रहेंगे।
अगर आप सुनार से नफरत करेंगे तो उससे आभूषण बनवाना बंद कर देंगे; पर फिर भी आप हिन्दू रहेंगे।
अगर आप धोबी, कुम्हार से नफरत करेंगे तो कपड़े धुलवाना और बर्तन खरीदना बंद कर देंगे; पर फिर भी आप हिन्दू रहेंगे।
पर, अगर आप ब्राह्मण से नफरत करेंगे तो तो आप सभी धार्मिक रस्मों जैसे कि जन्म, शादी, मृत्यु के लिए उसके पास जाना बंद कर देंगे और और ये सब रस्में आ कर चर्च का पादरी करेगा।
ब्राह्मणों से नफरत करना यानी 

anti-brahminism, 2000 साल पुराने “जोशुआ” प्रोजेक्ट का हिस्सा है जिसका एजेंडा पूरे हिंदुस्तान को ईसाई मुल्क बनाना है। हिंदुओं  का धर्मान्तरण तब तक नहीं हो सकता जब तक वे ब्राह्मणों के संपर्क में हैं। 

हिन्दू जातियों में ब्राह्मणों के लिए इतनी नफरत बढ़ाओ की वे ब्राह्मणों के पास किसी भी काम के लिए जाना बंद कर दें और धर्मान्तरण के दरवाजे खुल जाएं। 
सबसे पहले ईसाई मिशनरी Robert Caldwell ने आर्यन-द्रविड़ियन थ्योरी बनाई ताकि दक्षिण भारतीयों को अलग पहचान देखे धर्मान्तरण किया जाए, जिसमे उत्तर भारतीयों को ब्राह्मण आर्यन दिखाया गया। 
इनकी एजेंडा यहां खत्म नहीं हुआ। इसके बाद दूसरे मिशनरी और संस्कृत विद्वान John Muir ने मनुस्मृति को एडिट किया, इसमें वामपंथियों ने मदद की |
ब्राह्मण विरोध के चलते अम्बेडकर ने कई हिन्दू जातियों को दलित के नाम से टैग कर दिया जो ब्रिटिश सरकार में डिप्रेस्ड क्लासेज थीं। मंडल कमीशन के ब्राह्मण विरोधियों ने कई जातियों को पिछड़ा घोषित कर दिया जिनके राजघराने तक चलते थे।
ब्राह्मण विरोध, सनातन विरोध का ही छद्म नाम है। क्योंकि ब्राह्मणवाद, मनुवाद तो बहाना है;

असली मकसद हिन्दू धर्म को मिटाना है।
साभार- Sanjay Mishra

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