Posted in संस्कृत साहित्य

सूर्योपासना


भारत में सूर्योपासना ऋग वैदिक काल से होती आ रही है। सूर्य और इसकी उपासना की चर्चा विष्णु पुराण, भगवत पुराण, ब्रह्मा वैवर्त पुराण आदि में विस्तार से की गई है। मध्य काल तक छठ सूर्योपासना के व्यवस्थित पर्व के रूप में प्रतिष्ठित हो गया, जो अभी तक चला आ रहा है। तालाब में पूजा करते हैं।
देवता के रूप में सृष्टि और पालन शक्ति के कारण सूर्य की उपासना सभ्यता के विकास के साथ विभिन्न स्थानों पर अलग-अलग रूप में प्रारंभ हो गई, लेकिन देवता के रूप में सूर्य की वंदना का उल्लेख पहली बार ऋगवेद में मिलता है। इसके बाद अन्य सभी वेदों के साथ ही उपनिषद आदि वैदिक ग्रंथों में इसकी चर्चा प्रमुखता से हुई है। निरुक्त के रचियता यास्क ने द्युस्थानीय देवताओं में सूर्य को पहले स्थान पर रखा है।
सूर्य के मानवीय रूप की कल्पना उत्तर वैदिक काल के अंतिम कालखंड में होने लगी। इसने कालांतर में सूर्य की मूर्ति पूजा का रूप ले लिया। पौराणिक काल आते-आते सूर्य पूजा का प्रचलन और अधिक हो गया। अनेक स्थानों पर सूर्य देव के मंदिर भी बनाए गए। पौराणिक काल में सूर्य को आरोग्य देवता भी माना जाने लगा था। सूर्य की किरणों में कई रोगों को नष्ट करने की क्षमता पाई गई। ऋषि-मुनियों ने अपने अनुसंधान के क्रम में किसी खास दिन इसका प्रभाव विशेष पाया। संभवत: यही छठ पर्व के उद्भव की बेला रही हो। भगवान कृष्ण के पौत्र शाम्ब को कुष्ठ हो गया था। इस रोग से मुक्ति के लिए विशेष सूर्योपासना की गई, जिसके लिए शाक्य द्वीप से ब्राह्मणों को बुलाया गया था।
सूर्योपासना का यह अनुपम लोकपर्व मुख्य रूप से मध्य काल से वर्तमान काल तक भारत के साथ साथ विश्वभर मे प्रचलित व प्रसिद्ध हो गया है। कार्तिक मास की अमावस्या को दीपावली के तुरंत बाद मनाए जाने वाले इस चार दिवसीय व्रत की सबसे कठिन और महत्वपूर्ण रात्रि कार्तिक शुक्ल षष्टी की होती है। इसी कारण इस व्रत का नामकरण छठ व्रत हो गया। वैसे तो कार्तिक मास में भगवान सूर्य की पूजा करने का विधान है ही पर कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष में षष्ठी तिथि पर स्वास्थ्य से संबंधित समस्याएं न हों इसलिए सूर्य देव की विशिष्ट अराधना करने का विधान है क्योंकि इस समय सूर्य नीच राशि में होता है तथा विज्ञान की मानें तो कार्तिक मास में ऊर्जा और स्वास्थ्य को उच्च रखने के लिए सूर्य पूजन अवश्य करना चाहिए। वैसे तो प्रतिदिन दिन का आरंभ सूर्य उपासना से करना चाहिए, संभव न हो तो उनके प्रिय दिन रविवार को अवश्य ये काम करना चाहिए।सूर्य की शक्तियों का मुख्य श्रोत उनकी पत्नी ऊषा और प्रत्यूषा हैं। छठ में सूर्य के साथ-साथ दोनों शक्तियों की संयुक्त आराधना होती है। प्रात:काल में सूर्य की पहली किरण (ऊषा) और सायंकाल में सूर्य की अंतिम किरण (प्रत्यूषा) को अघ्र्य देकर दोनों का नमन किया जाता है।

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