Posted in रामायण - Ramayan

राघवं रामचन्द्रं च रावणारि रमापतिम्। राजीवलोचनं रामं वं वन्दे रघुनन्दम्।।


राघवं रामचन्द्रं च रावणारि रमापतिम्।
राजीवलोचनं रामं वं वन्दे रघुनन्दम्।।

भगवान राम मर्यादा पुरुषोत्तम
(पुरुषों में उत्तम) हैं !

आजकल लगता है कि सचमुच
में घोर कलयुग आ गया है,,,
तभी राम नाम जपने की उम्र में भी….
बूढ़े लोग भगवान राम के पुरुषोत्तम
होने पर संदेह उत्पन्न करते हैं…!

सम्भवतः उन्होंने रामायण को ठीक
तरीके से पढ़ा नहीं है….. या फिर,
कुछ लोगों पर सत्ता पाने की लालसा
इस कदर हावी हो गयी है कि…. उन्हें
आस्था से ज्यादा व्यक्तिगत स्वार्थ
महत्वपूर्ण लगने लगी है….!

अंग्रेजी स्कूलों में पढ़े व्यक्तियों से
आस्था की आस करना भी व्यर्थ है…
उनकी आस्था सिर्फ पैसे,व्यक्तिगत
स्वार्थ.. तथा मुस्लिमों और ईसाईयों
के आराध्यों तक ही सीमित रहती है।

आज मैं बताना चाहता हूँ कि…..
भगवान राम सिर्फ हम हिन्दुओं के
आस्था के कारण ही भगवान नहीं हैं,
बल्कि वे अपने कर्मों के कारण ही
पूजे जाते हैं तथा पुरुषोत्तम
कहलाते हैं।

भगवान राम के जन्म के समय से ही
कुछ महत्वपूर्ण बिन्दुओं और घटनाओं को….. उस समय तथा आधुनिक
परिदृश्य में प्रस्तुत करता जाऊँगा…..
ताकि आप सभी को समझने में
सुगमता हो।

प्रभु श्री राम —आदर्श राजा !

राम प्रजा को हर तरह से सुखी
रखना राजा का परम कर्तव्य
मानते थे।

उनकी धारणा थी कि जिस राजा
के शासन में प्रजा दु:खी रहती है,
वह नृप अवश्य ही नरक का
अधिकारी होता है।

जनकल्याण की भावना से ही उन्होंने
राज्य का संचालन किया,जिससे प्रजा
धनधान्य से पूर्ण,सुखी,धर्मशील एवं
निरामय हो गई-

‘प्रहृष्ट मुदितो लोकस्तुष्ट: पुष्ट:सुधार्मिक:।
निरामयो ह्यरोगश्च दुर्भिक्षभयवर्जित:।’

तुलसीदास ने भी रामचरितमानस
में रामराज्य की विशद चर्चा की है।

लोकानुरंजन के लिए वे अपने सर्वस्व
का त्याग करने को तत्पर रहते थे।

इसी से भवभूति ने उनके के मुँह
से कहलाया है,
‘स्नेहं दयां च सौख्यं च,
यदि वा जानकीमपि।
आराधनाय लोकस्य
मुंचतोनास्ति मे व्यथा’।

अर्थात् ‘यदि आवश्यकता हुई तो
जानकी तक का परित्याग मैं कर
सकता हूँ।’

1 . प्रारंभ में भगवान राम …
ऋषि वशिष्ठ के साथ विद्या अध्धयन
को गए…… और… ऋषि विश्वामित्र
के साथ जाते हुए उन्होंने उन्होंने
ताड़का नमक राक्षसी का वध
किया……

उनका यह व्यवहार बताता है कि…..
गुरु पूजनीय होते हैं…. और,अगर गुरु
मुसीबत में हो तो….. शिष्य को हमेशा उनके साथ होना चाहिए।

2. स्वयंवर में उन्होंने भगवान शिव का धनुष अपने गुरु के कहने उपरान्त ही
तोडा जो उनके गुरु के प्रति आदर
और निष्ठा को दर्शाता है।

3. भगवान राम द्वारा सीता को यह
वचन दिया जाना कि मैं अपने जीवन
में सिर्फ एक ही विवाह करूँगा,और
तुम मेरी एकमात्र पत्नी रहोगी।

यह दर्शाता है कि वे बहुविवाह के
विरोधी थे जो कि उस समय बहुत
ही आम बात थी।
(आज भी हिन्दुओं में भगवान्
राम की तरह एक विवाह की ही
मान्यता है)

4. अपने पिता को कहने पर भगवान
राम बिना किसी हिचक के अपने भाई भरत को गद्दी सौंप कर 14 साल के
लिए वन को चले गए।

उनका यह कर्म हमें बताता है कि
पिता के बातों और वचनों का लाज
रखना हर पुत्र का धर्म है।
आप इसे माता-पिता की आज्ञा
पालन भी कह सकते है।

कैकई ने भले ही अपने और सौतेले
का भेद किया परन्तु भगवान राम ने
अपनी माता-और सौतेली माता में
कोई भेद नहीं किया।

5. जंगल में निषादराज से गले
मिलकर भगवान राम ने उंच-नीच
की भावना पर कुठाराघात किया।

हमें यह सन्देश दिया कि जाति
अथवा धन आधारित विभेद नहीं
होना चाहिए।

6. शबरी जो कि एक अछूत जाति
से थी,उसके हाथों के जूठे बेर खा
कर उन्होंने जाति या वर्ण व्यवस्था
को बेमानी कर दिया।
हमें यह सन्देश दिया कि मोल
व्यक्तियों और उसकी भावनाओं
का होता है,ना कि उसके कुल या
जाति का।

7. जंगल में ही अहिल्या को शाप
मुक्त कर उन्होंने यह सन्देश दिया
कि अनजाने में हुए गलती,गलती
नहीं कहलाती है और,
बेहतर भविष्य के लिए उसे माफ़
कर देना ही उचित है।

8. बाली वध के बारे में बहुत सारी
बातें कही जाती है परन्तु बाली वध
का सार यह है कि अगर आप का
मित्र सही है तो किसी भी हालत
में आप को आप के मित्र की
सहायता करनी चाहिए।

येन-केन-प्रकारेण पृथ्वी पर से दुष्टों
का संहार जरुरी है ताकि सज्जन चैन से जी सकें।

9. माता सीता के अपहरण के
पश्चात् पहले समुद्र से विनय पूर्वक
रास्ता मांगना,फिर उस पर ब्रह्मास्त्र
से प्रहार को उत्तेजित होना …. यह
दर्शाता है कि शक्तिसंपन्न होने के
बाद भी लोगों को अपनी मर्यादा
नहीं भुलानी चाहिए।

10. समुद्र को मात्र एक वाण से
सुखा देने कि क्षमता होने के वाबजूद
भी समुद्र पर राम सेतु का बनाना,
हमें यह सिखाता है कि अगर काम
बन जाए तो अकारण शक्ति प्रदर्शन अनुचित है।
अपने से कमजोर को ताकत के बल
पर अपना पसंदीदा काम करवाना
सर्वथा अनुचित है।

11. रावण वध के पश्चात् लक्ष्मण
को उसके पास शिक्षा ग्रहण करने
को भेजना,हमें यह सिखाता है कि
ज्ञान जिस से भी मिले,जरुर ग्रहण
करना चाहिए।

मनुष्य ये कभी भी नहीं समझना
चाहिए कि वो सम्पूर्ण है।

12. सीता कि अग्नि परीक्षा पर भी
बहुत सवाल उठाये जाते हैं कि यह
गलत हुआ था,परन्तु,अगर किसी ने
रामायण ध्यान से पढ़ा होगा तो….
उसमे भगवन राम कहते हैं कि…..
“”आज ये सीता की अग्नि परीक्षा ..
अंतिम अग्नि परीक्षा है।
दुनिया में फिर किसी नारी को ऐसी प्रताड़ना नहीं दी जाएगी।

तात्पर्य यह कि मनुष्य को अपनी
अर्धागिनी पर विश्वास करना चाहिए।

माता सीता उतने वर्ष रावण जैसे
नीच और नराधम व्यक्ति के पास
रह कर भी.. पवित्र ही थी।

ठीक उसी प्रकार आधुनिक नारी को
भी घर में अथवा बाहर अकेला छोड़
देने के बाद उसकी बातों और उसकी
पवित्रता पर विश्वास करना चाहिए।

नारी वो शक्ति है जो रावण जैसे
नराधम के पास अकेली रह कर
भी अपनी लाज की रक्षा करने
में सक्षम है।

यदि अग्नि परीक्षा नहीं हुई होती
तो नारी की सच्चाई संदिग्ध हो
जाती चरित्रता संदिग्ध हो जाती,
वो विश्वासघात होत परन्तु अग्नि
परीक्षा ने यह सिद्ध कर दिया
कि नारी पर संदेह करने का
कोई कारण नहीं है,खास कर
जब वो आपकी अर्धांगिनी है।

13. एक धोबी के कहने पर…..
भगवान् राम द्वारा माता सीता
के परित्याग पर भी बहुत उँगलियाँ
उठाई जाती है कि ये गलत हुआ था।

एक धोबी के कहने पर भगवान्
राम द्वारा माता सीता का परित्याग,
भगवान राम का राजधर्म था,
जहाँ उन्होंने माता सीता का परित्याग
कर यह सन्देश दिया कि राजा की अपनी
कोई ख़ुशी अथवा गम नहीं होना चाहिए।

राज्य का एक भी व्यक्ति भले ही
वो एक धोबी जैसा निर्धन,निर्बल
अथवा तुच्छ ही क्यों ना हो,
उसका मत भी महत्वपूर्ण है,
उसके राय भी महत्वपूर्ण हैं।

उन्होंने हमें यह सिखाया कि कोई
भी कार्य सर्वसम्मति से करना चाहिए और,सर्वसम्मति बनाने के लिए….
अगर राज को,अपनी निजी ख़ुशी
को यदि बलिदान भी करना पड़े तो…. राजा को कर देना चाहिए।

राजा बनने से व्यक्ति खुद का
या परिवार का नहीं रह जाता है ….
बल्कि… वो राज्य का हो जाता है।

प्रजा की ख़ुशी में ही राजा की ख़ुशी
होनी चाहिये,प्रजा के दुःख में ही राजा
का भी दुःख निहित है।

वस्तुतः यह आज की परिकल्पना
के बिलकुल ही विपरीत की कल्पना है,
क्योंकि आज के परिदृश्य में यहाँ जनता भूखों मर रही है,वहां हजारों रुपये के प्लेट उडाए जा रहे हैं।

लोग पैसे -पैसे के लिए मुहताज हैं,
वहां राजनेताओं के पैसे स्विस बैंक
में भरे पड़े हैं।

यहाँ लोगों के पेट में अनाज नहीं है….
वहां नीतिनिर्धारकों के लिए 35 लाख
के संडास हैं।

और तो और….
यहाँ सरकारी अस्पतालों में बुखार
तक की दवा उपलब्ध नहीं है…..
और,वहां लोग अमेरिका जा कर
बाबासीर के ऑपरेशन में हजारों
करोड़ रूपये उड़ा रहे हैं।

यही कारण है कि आज के परिदृश्य भगवान राम के चरित्र को समझ पाना
कम अक्लों के लिए दिक्कतें खड़ी कर
देता है।

उन्हें सहसा ये विश्वास ही नहीं हो
पाता है कि ऐसा भी हो सकता है।

परन्तु हकीकत यह है कि वास्तव
में ऐसा हो सकता है,और हुआ है।

भगवान राम के हर कार्य में हमारे
लिए अहम् सन्देश है।

एक अच्छे शिष्य,आज्ञाकारी पुत्र,
वफादार पति,आपसी भाई चारा,
जात-पात का विरोधी,तथा एक
बेहद ही संवेदनशील राजा थे।

यही कारण है कि राम हमारे अराध्य
एवं आदर्श होने के साथ-साथ ….
मर्यादा पुरुषोत्तम (पुरुषों में उत्तम)
भी कहे जाते हैं।

जयति पुण्य सनातन संस्कृति,,
जयति पुण्य भूमि भारत,,

सदा सर्वदा सुमंगल,
हर हर महादेव,
जय भवानी,
जय श्री राम…!

Author:

Buy, sell, exchange old books

Leave a Reply

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s