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[14/04, 9:11 p.m.] ‪+91 78560 69769‬: 🚩🔱
☀ जवाहरलाल नेहरू की गलतियां जो हम आज तक भुगत रहे हैं ☀
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1) कोको आइसलैंड – 1950 में नेहरू ने भारत का ‘ कोको द्वीप समूह’ ( Google Map location -14.100000, 93.365000 ) बर्मा को गिफ्ट दे दिया। यह द्वीप समूह कोलकाता से 900 KM दूर समंदर में है।

बाद में बर्मा ने कोको द्वीप समूह चीन को दे दिया, जहाँ से आज चीन भारत पर नजर रखता है।
2) काबू व्हेली मनिपुर – नेहरू ने 13 Jan 1954 को भारत के मणिपुर प्रांत की काबू व्हेली दोस्ती के तौर पर बर्मा को दे दिया। काबू व्हेली कलगभगा क्षेत्रफल 11000 वर्ग किमी है और कहते हैं कि यह कश्मीर से भी अधिक खूबसरत है।

आज बर्मा ने काबू व्हेली का कुछ हिस्सा चीन को दे रखा है। चीन यहां से भी भारत पर नजर रखता है।
3) भारत – नेपाल विलय – 1952 में नेपाल के तत्कालीन राजा त्रिभुवन विक्रम शाह ने नेपाल को भारत में विलय कर लेने की बात नेहरू से कही थी, लेकिन नेहरू ने ये कहकर उनकी बात टाल दी की भारत में नेपाल के विलय से दोनों देशों को फायदे की बजाय नुकसान ज्यादा होगा। यही नहीं, इससे नेपाल का टूरिज्म भी खत्म हो जाएगा।
4) UN Permanent Seat- नेहरू ने 1953 में अमेरिका की उस पेशकश को ठुकरा दिया था, जिसमें भारत से सुरक्षा परिषद ( United Nations ) में स्थायी सदस्य के तौर पर शामिल होने को कहा गया था। इसकी जगह नेहरू ने चीन को सुरक्षा परिषद में शामिल करने की सलाह दे डाली।

यही चीन आज पाकिस्तान का हम दर्द बना हुआ है। वह पाक को बचाने के लिए भारत के कई प्रस्तावों को UN में नामंजूर कर चुका है। हाल ही उसने दहशतगर्द मसूद अजहर को अंतरराष्ट्रीय आतंकी घोषित करने के भारतीत प्रस्ताव को वीटो कर उसे बचाया है।
5) जवाहरलाल नेहरू और लेडी मांउटबेटन – लेडी माउंटबेटन की बेटी पामेला ने अपनी किताब में लिखा है कि दोनों के बीच अंतरंग संबंध थे। लॉर्ड माउंटबेटन भी दोनों को अकेला छोड़ देते थे। लॉर्ड माउंटबेटन अपनी पत्नी को गैरमर्द के साथ खुला क्यूं छोड़ते थे, यह अभी तक राज है। लोग मानते हैं कि ऐसा कर लॉर्ड माउंटबेटन ने जवाहरलाल नेहरू से भारतीय सेना के और देश के कई राज हथियाए थे।
6) पंचशील समझौता – नेहरू चीन से दोस्ती के लिए बहुत ज्यादा उत्सुक थे। नेहरू ने 1954 को चीन के साथ पंचशील समझौता किया। इस समझौते के साथ ही भारत ने तिब्बत को चीन का हिस्सा मान लिया।

नेहरू ने चीन से दोस्ती की खातिर तिब्बत को भरोसे में लिए बिना ही उस पर चीनी ‘कब्जे’ को मंजूरी दे दी। बाद में 1962 में इसी चीन ने भारत पर हमला किया। चीन की सेना इसी तिब्बत से ही भारत की सीमा में प्रवेश किया था।
7) 1962 भारत चीन युद्ध -चीनी सेना ने 1962 में भारत को हराया था। हार के कारणों को जानने के लिए भारत सरकार ने ले.जनरल हेंडरसन और कमान्डेंट ब्रिगेडियर भगत के नेतृत्व में एक समिति बनाई थी। दोनों अधिकारियों ने अपनी रिपोर्ट में हार के लिए प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को जिम्मेदार ठहराया था।

चीनी सेना जब अरुणाचल प्रदेश, असम, सिक्किम तक अंदर घुस आई थी, तब भी नेहरू ने हिंदी-चीनी भाई-भाई का नारा लगाते हुए भारतीय सेना को चीन के खिलाफ एक्शन लेने से रोके रखा। परिणाम स्वरूप हमारे कश्मीर का लगभग 14000 वर्ग किमी भाग पर चीन ने कब्जा कर लिया। इसमें कैलाश पर्वत, मानसरोवर और अन्य तीर्थ स्थान आते हैं।
ऐसे थे जवाहर लाल नेहरू।

भारत का सही इतिहास जानना आपका हक़ है ।
         🚩🔱 जय श्रीराम 🔱🚩
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[14/04, 9:11 p.m.] ‪+91 78560 69769‬: मुस्लिमो के हाथों मरकर हिन्दुओ को मुक्ति प्राप्त करनी चाहिए, नफरत नहीं : मोहनदास गांधी
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मोहनदास गाँधी उच्च किस्म के  सेक्युलर थे, और उनके सेकुलरिज्म के बारे में तो इस देश की 90% जनता अभी भी नहीं जानती
ये वही मोहनदास गाँधी है, जो दिल्ली में वाल्मीकि हिन्दुओ के मंदिर में कुरान का पाठ कर रहे थे, जब वाल्मीकि दलित हिन्दुओ ने आपत्ति जताई तो गाँधी ने अंग्रेजी पुलिस बुलवाकर दलित महिलाओ को पिटवाया
और आखिरकार मंदिर में कुरआन का पाठ करके ही दम लिया
आज जहाँ बांग्लादेश है, उस इलाके में हिन्दू महिलाओ का बड़े पैमाने पर 1946-47 में बलात्कार हुए, नौखली और आज के कोलकाता तक में हज़ारों बलात्कार हुए, जब कुछ हिन्दू महिलाएं गाँधी के पास मदद के लिए पहुंची तो, गाँधी ने उन्हें बलात्कार को सहन करने की नसीहत दे दी, और वो महिलाएं रोती हुई चली गयी
बात है 6 अप्रैल 1947 की, जब भारत आज़ाद नहीं हुआ था और  पुरे देश में मुस्लिम लीग इस्लामिक देशों की मांग को लेकर दंगे कर रही थी
ऐसे में कहीं कही हिन्दू भी उग्र हो रहे थे, अब आत्मरक्षा का हक तो सबका ही है
6 अप्रैल 1947 को मोहनदास गाँधी दिल्ली में अपने सुरक्षित अड्डे पर एक प्रार्थना सभा कर रहे थे,
वहां मौजूद कांग्रेस के नेताओं और अनेकों लोगों को मोहनदास गाँधी सहिष्णुता की सीख दे रहे थे
मोहनदास गाँधी ने इस प्रार्थना सभा में कहा था की, “भले मुसलमान हिन्दुओ को मार देना भी चाहे, तो भी हिन्दुओ को अपने ह्रदय में उनके प्रति नफरत नहीं रखनी चाहिए
अगर किसी हिन्दू की हत्या भी की जाती है, तो हिन्दुओ को इसे हर्ष से स्वीकार कर लेना चाहिए, अगर मुसलमान अपना देश बना लेते है, और अपना नियम लागू करते है, तो हिन्दू मर जाये तो भी उसे मुक्ति मिल जाएगी
वरना दुनिया में और भी बहुत जगह है रहने के लिए”
मोहनदास गाँधी के यही महान सेक्युलर विचार आज भी कांग्रेस और उसके शाखाओं यानि अन्य सेक्युलर दलों के मन मस्तिष्क में दौड़ता है, और वो मोहनदास गाँधी के ही सेकुलरिज्म को लेकर चलते है

[14/04, 9:11 p.m.] ‪+91 78560 69769‬: 🚩🔱

☀ अम्बेडकर को नया जीवन देने वाले राजा के बारे में हिन्दू विरोधी दलित नेता कभी दलितों को नहीं बताते अम्बेडकर का सच

जिसे आप सभी को जानना जरूरी है।
☀दलित नेता जब  अम्बेडकर पर भाषण देते हैं तब बड़ी धूर्तता से उस व्यक्ति का नाम ही नही लेते जिसने उन्हें”बाबा साहब भीमराव रामजी अम्बेडकर” बनाया ।बड़ोदरा रियासत के महाराजा सयाजी गायकवाड को एक चिठ्ठी मिली । जिसमे एक युवक ने लिखा था की वो दलित है पढाई करने के लिए ब्रिटेन और अमेरिका जाना चाहता है लेकिन उसके पास पैसे नही हैं और कोई भी उसकी मदद नही कर रहा है ।चिठ्ठी के साथ अंक तालिकाएं (Mark Sheets) भी संलग्न (Attach) थी । 
☀चिठ्ठी पढ़ते ही महाराजा सयाजी गायकवाड़ ने उन्हें मिलने के लिए बुलाया और उन्हें ब्रिटेन और अमेरिका पढने के लिए पूरा खर्चा दिया । यहाँ तक भी रहने का इंतजाम भी महाराजा ने किया था और तो और जब अम्बेडकर PHD करके वापस आये तो कोई भी उन्हें नौकरी नही दे रहा था, तब एक बार फिर महाराजा सयाजीराव गायकवाड़ ने उनका साथ दिया और उन्हें अपनी रियासत का महामंत्री नियुक्त किया और उस जमाने में उन्हें दस हजार रुपये महीने वेतन दिया जो आज दस करोड़ के बराबर है ।
☀लेकिन गाँव गाँव जो तथाकथित अम्बेडकरवादी घूमते हैं वो दलितों को ये बात नही बताते । वो तो छोड़िए उनका पूरा नाम तक नहीं बताते ।

___ जिस समय चन्द्रशेखर आज़ाद साईकिल ले कर चलते थे उस समय

भीमराव अम्बेडकर भारत और इंग्लैण्ड

फ्लाइट से आते जाते थे,,

जब राम प्रसाद बिस्मिल जी भुने चने खा

कर क्रान्ति की ज्वाला में खुद जल रहे थे

तब भीमराव अंबेडकर ब्रिटेन के गवर्नर के

शाही भोज में शामिल होते थे,,

जब सारा भारत स्वदेशी के नाम पर

विदेशी कपड़ों की होली जला रहा था तब

भीमराव अम्बेडकर कोट पैंट और टाई पहन

कर चलते थे,,

जब भगत सिंह एक वकील को मोहताज़ थे।

तब बैरिस्टर वकील भीमराव अंबेडकर

अंग्रेज अफसरों के मुकदमे लड़ रहे थे ….

और अंत में वही बन गया भारत भाग्य

विधाता ……..

उसी को मिली भारत की नींव भरने की

जिम्मेदारी ….

अंजाम सब देख रहे हैं,,

कड़वा है पर शतप्रतिशत सत्य है

शायद किसी को हजम ना हो___
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राम से बड़ा राम का नाम क्यों?


राम से बड़ा राम का नाम क्यों? 🚩
🙏रामदरबार में हनुमानजी महाराज रामजी की सेवा में इतने तन्मय हो गये कि गुरू वशिष्ठ के आने का उनको ध्यान ही नहीं रहा।
सबने उठ कर उनका अभिवादन किया पर, हनुमानजी नहिं कर पाये।
वशिष्ठ जी ने रामजी से कहा कि राम गुरु का भरे दरबार में अभिवादन नहीं कर अपमान करने पर क्या सजा होनी चाहिए ।
राम ने कहा गुरुवर आप ही बतायें ।
वशिष्ठजी ने कहा मृत्यु दण्ड ।
राम ने कहा स्वीकार हॆं।
तब राम जी ने कहा कि गुरुदेव आप बतायें कि यह अपराध किसने किया हॆं?
बता दूंगा पर राम वो तुम्हारा इतना प्रिय हॆं कि, तुम अपने आप को सजा दे दोगे पर उसको नहीं दे पाओगे ।
राम ने कहा, गुरुदेव, राम के लिये सब समान हॆं। मॆने सीता जेसी पत्नी का सहर्ष त्याग धर्म के लिये कर दिया तो, भी आप संशय कर रहे हॆं?
नहीं, राम! मुझे तुम्हारे पर संशय नहीं हॆं पर, मुझे दण्ड के परिपूर्ण होने पर संशय हॆं।
अत:यदि तुम यह विश्वास दिलाते हो कि, तुम स्वयं उसे मृत्यु दण्ड अपने अमोघ बाण से दोगे तो ही में अपराधी का नाम और अपराध बताऊँगा ।
राम ने पुन: अपना ससंकल्प व्यक्त कर दिया।
तब वशिष्ठ जी ने बताया कि, यह अपराध हनुमान जी ने किया हॆं।
हनुमानजी ने स्वीकार कर लिया।
तब दरबार में रामजी ने घोषणा की कि, कल सांयकाल सरयु के तट पर, हनुमानजी को मैँ स्वयं अपने अमोघ बाण से मृत्यु दण्ड दूंगा।
हनुमानजी के घर जाने पर उदासी की अवस्था में माता अंजनी ने देखा तो चकित रह गयी. कि मेरा लाल महावीर, अतुलित बल का स्वामी, ज्ञान का भण्डार, आज इस अवस्था में?
माता ने बार -बार पुछा, पर जब हनुमान चुप रहे तो माता ने अपने दूध का वास्ता देकर पूछा।
तब हनुमानजी ने बताया कि, यह प्रकरण हुआ हॆं अनजाने में।
माता! आप जानती हें कि, हनुमान को संपूर्ण ब्रह्माण्ड में कोई नहीं मार सकता, पर भगवान राम के अमोघ बाण से भी कोई नहीं बच सकता l
तब माता ने कहा कि,
हनुमान, मैंने भगवान शंकर से, “राम” मंत्र (नाम) प्राप्त किया था ,और तुम्हे भी जन्म के साथ ही यह नाम घुटी में पिलाया।
जिसके प्रताप से तुमने बचपन में ही सूर्य को फल समझ मुख में ले लिया, उस राम नाम के होते हुये हनुमान कोई भी तुम्हारा बाल भी बांका नहीं कर सकता ।
चाहे वो राम स्वयं भी हो l
राम नाम की शक्ति के सामने राम की शक्ति और राम के अमोघ शक्तिबाण की शक्तियां महत्वहीन हो जायेगी।
जाओ मेरे लाल, अभी से सरयु के तट पर जाकर राम नाम का उच्चारण करना आरंभ करदो।
माता के चरण छूकर हनुमानजी, सरयु किनारे राम राम राम राम रटने लगे।
सांयकाल, राम अपने सम्पूर्ण दरबार सहित सरयुतट आये।
सबको कोतुहल था कि, क्या राम हनुमान को सजा देगें?
पर जब राम ने बार- बार रामबाण ,अपने महान शक्तिधारी ,अमोघशक्ति बाण चलाये पर हनुमानजी के उपर उनका कोई असर नहीं हुआ तो, गुरु वशिष्ठ जी ने शंका बतायी कि, राम तुम अपनी पुर्ण निष्ठा से बाणो का प्रयोग कर रहे हो?
तो राम ने कहा हां गुरूदेव मैँ गुरु के प्रति अपराध की सजा देने को अपने बाण चला रहा हूं, उसमें किसी भी प्रकार की चतुराई करके मैँ कॆसे वही अपराध कर सकता हूं?
तो तुम्हारे बाण अपना कार्य क्यों नहीं कर रहे हॆ?
तब राम ने कहा, गुरु देव हनुमान राम राम राम की अंखण्ड रट लगाये हुये हॆं।
मेरी शक्तिंयो का अस्तित्व राम नाम के प्रताप के समक्ष महत्वहीन हो रहा है।
इसमें मेरा कोई भी प्रयास सफल नहीं हो रहा है।
आप ही बतायें , गुरु देव ! मैँ क्या करुं।
गुरु देव ने कहा, हे राम ! आज से मैँ तुम्हारा साथ तुम्हारा दरबार, त्याग कर अपने आश्रम जाकर राम नाम जप हेतु जा रहा हूं।
जाते -जाते, गुरुदेव वशिष्ठ जी ने घोषणा की कि हे राम ! मैं जानकर, मानकर यह घौषणा कर रहा हूं कि स्वयं राम से राम का नाम बडा़ हॆं, महा अमोघशक्ति का सागर है।
जो कोई जपेगा, लिखेगा, मनन.करेगा, उसकी लोक कामनापूर्ति होते हुये भी,वो मोक्ष का भागी होगा।
मैंने सारे मंत्रों की शक्तियों को राम नाम के समक्ष न्युनतर माना है।
तभी से राम से बडा राम का नाम माना जाता है ।
वो पत्थर भी तिर जाते है जिन पर लिखा रहता है राम नाम।
।।श्री राम दया के सागर है।।
[14/04, 5:44 a.m.] ‪+91 90453 43299‬: 🙏🏻🌹🌹🌹🌹🙏🏻

*एक बार भगवान राम और लक्ष्मण एक सरोवर में स्नान के लिए उतरे उतरते समय
उन्होंने अपने-अपने धनुष बाहर तट पर गाड़ दिए जब वे स्नान करके बाहर निकले

तो लक्ष्मण ने देखा की उनकी धनुष की नोक पर
रक्त लगा हुआ था

उन्होंने भगवान राम से कहा -” भ्राता ! लगता है कि अनजाने में कोई हिंसा हो गई ।”

दोनों ने मिटटी हटाकर देखा तो पता चला कि वहां एक मेढ़क मरणासन्न पड़ा
है ।

भगवान् राम ने करुणावश मेंढक से कहा- ” तुमने आवाज क्यों नहीं दी ?

कुछ हलचल,छटपटाहट तो करनी थी।

हम लोग तुम्हे बचा लेते जब सांप पकड़ता है तब तुम खूब आवाज लगाते हो ।

धनुष लगा तो क्यों नहीं बोले ?

मेंढक बोला – प्रभु ! जब सांप पकड़ता है तब मैं ‘ राम- राम ‘ चिल्लाता हूँ

एक आशा और विश्वास रहता है प्रभु अवश्य पुकार सुनेंगे।

पर आज देखा की साक्षात् भगवान्
श्री राम स्वयं धनुष लगा रहे है तो किसे पुकारता ?

आपके सिवा किसी का नाम याद नहीँ आया बस इसे अपना सौभाग्य मानकर चुपचाप सहता रहा ।”

सच्चे भक्त जीवन के हर क्षण को भगवान् का आशीर्वाद
मानकर उसे स्वीकार करते हैं

सुख और दुःख प्रभु की ही कृपा और दया का परिणाम
ही तो हैं ।
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एक बार प्रेम से कह दो ..
जय श्री राम…
*मुझमे राम, तुझमे राम
सबमे राम समाया,
सबसे कर लो प्रेम जगत में,
कोई नही पराया।
राम राम राम राम राम राम
🙏🏻🙏🏻🌹🌹🙏🏻🙏🏻
[14/04, 6:02 a.m.] ‪+91 90453 43299‬: पंचमुखी क्यो हुए हनुमान?
कथा इस प्रकार है 👇🏼
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लंका में महा बलशाली मेघनाद के साथ बड़ा ही भीषण युद्ध चला. अंतत: मेघनाद मारा गया. रावण जो अब तक मद में चूर था राम सेना, खास तौर पर लक्ष्मण का पराक्रम सुनकर थोड़ा तनाव में आया.
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रावण को कुछ दुःखी देखकर रावण की मां कैकसी ने उसके पाताल में बसे दो भाइयों अहिरावण और महिरावण की याद दिलाई. रावण को याद आया कि यह दोनों तो उसके बचपन के मित्र रहे हैं.
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लंका का राजा बनने के बाद उनकी सुध ही नहीं रही थी. रावण यह भली प्रकार जानता था कि अहिरावण व महिरावण तंत्र-मंत्र के महा पंडित, जादू टोने के धनी और मां कामाक्षी के परम भक्त हैं.
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रावण ने उन्हें बुला भेजा और कहा कि वह अपने छल बल, कौशल से श्री राम व लक्ष्मण का सफाया कर दे. यह बात दूतों के जरिए विभीषण को पता लग गयी. युद्ध में अहिरावण व महिरावण जैसे परम मायावी के शामिल होने से विभीषण चिंता में पड़ गए.
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विभीषण को लगा कि भगवान श्री राम और लक्ष्मण की सुरक्षा व्यवस्था और कड़ी करनी पड़ेगी. इसके लिए उन्हें सबसे बेहतर लगा कि इसका जिम्मा परम वीर हनुमान जी को राम-लक्ष्मण को सौंप दिया जाए. साथ ही वे अपने भी निगरानी में लगे थे.
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राम-लक्ष्मण की कुटिया लंका में सुवेल पर्वत पर बनी थी. हनुमान जी ने भगवान श्री राम की कुटिया के चारों ओर एक सुरक्षा घेरा खींच दिया. कोई जादू टोना तंत्र-मंत्र का असर या मायावी राक्षस इसके भीतर नहीं घुस सकता था.
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अहिरावण और महिरावण श्री राम और लक्ष्मण को मारने उनकी कुटिया तक पहुंचे पर इस सुरक्षा घेरे के आगे उनकी एक न चली, असफल रहे. ऐसे में उन्होंने एक चाल चली. महिरावण विभीषण का रूप धर के कुटिया में घुस गया.
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राम व लक्ष्मण पत्थर की सपाट शिलाओं पर गहरी नींद सो रहे थे. दोनों राक्षसों ने बिना आहट के शिला समेत दोनो भाइयों को उठा लिया और अपने निवास पाताल की और लेकर चल दिए.
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विभीषण लगातार सतर्क थे. उन्हें कुछ देर में ही पता चल गया कि कोई अनहोनी घट चुकी है. विभीषण को महिरावण पर शक था, उन्हें राम-लक्ष्मण की जान की चिंता सताने लगी.
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विभीषण ने हनुमान जी को महिरावण के बारे में बताते हुए कहा कि वे उसका पीछा करें. लंका में अपने रूप में घूमना राम भक्त हनुमान के लिए ठीक न था सो उन्होंने पक्षी का रूप धारण कर लिया और पक्षी का रूप में ही निकुंभला नगर पहुंच गये.
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निकुंभला नगरी में पक्षी रूप धरे हनुमान जी ने कबूतर और कबूतरी को आपस में बतियाते सुना. कबूतर, कबूतरी से कह रहा था कि अब रावण की जीत पक्की है. अहिरावण व महिरावण राम-लक्ष्मण को बलि चढा देंगे. बस सारा युद्ध समाप्त.
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कबूतर की बातों से ही बजरंग बली को पता चला कि दोनों राक्षस राम लक्ष्मण को सोते में ही उठाकर कामाक्षी देवी को बलि चढाने पाताल लोक ले गये हैं. हनुमान जी वायु वेग से रसातल की और बढे और तुरंत वहां पहुंचे.
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हनुमान जी को रसातल के प्रवेश द्वार पर एक अद्भुत पहरेदार मिला. इसका आधा शरीर वानर का और आधा मछली का था. उसने हनुमान जी को पाताल में प्रवेश से रोक दिया.
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द्वारपाल हनुमान जी से बोला कि मुझ को परास्त किए बिना तुम्हारा भीतर जाना असंभव है. दोनों में लड़ाई ठन गयी. हनुमान जी की आशा के विपरीत यह बड़ा ही बलशाली और कुशल योद्धा निकला.
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दोनों ही बड़े बलशाली थे. दोनों में बहुत भयंकर युद्ध हुआ परंतु वह बजरंग बली के आगे न टिक सका. आखिर कार हनुमान जी ने उसे हरा तो दिया पर उस द्वारपाल की प्रशंसा करने से नहीं रह सके.
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हनुमान जी ने उस वीर से पूछा कि हे वीर तुम अपना परिचय दो. तुम्हारा स्वरूप भी कुछ ऐसा है कि उससे कौतुहल हो रहा है. उस वीर ने उत्तर दिया- मैं हनुमान का पुत्र हूं और एक मछली से पैदा हुआ हूं. मेरा नाम है मकरध्वज.
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हनुमान जी ने यह सुना तो आश्चर्य में पड़ गए. वह वीर की बात सुनने लगे. मकरध्वज ने कहा- लंका दहन के बाद हनुमान जी समुद्र में अपनी अग्नि शांत करने पहुंचे. उनके शरीर से पसीने के रूप में तेज गिरा.
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उस समय मेरी मां ने आहार के लिए मुख खोला था. वह तेज मेरी माता ने अपने मुख में ले लिया और गर्भवती हो गई. उसी से मेरा जन्म हुआ है. हनुमान जी ने जब यह सुना तो मकरध्वज को बताया कि वह ही हनुमान हैं.
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मकरध्वज ने हनुमान जी के चरण स्पर्श किए और हनुमान जी ने भी अपने बेटे को गले लगा लिया और वहां आने का पूरा कारण बताया. उन्होंने अपने पुत्र से कहा कि अपने पिता के स्वामी की रक्षा में सहायता करो.
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मकरध्वज ने हनुमान जी को बताया कि कुछ ही देर में राक्षस बलि के लिए आने वाले हैं. बेहतर होगा कि आप रूप बदल कर कामाक्षी कें मंदिर में जा कर बैठ जाएं. उनको सारी पूजा झरोखे से करने को कहें.
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हनुमान जी ने पहले तो मधु मक्खी का वेश धरा और मां कामाक्षी के मंदिर में घुस गये. हनुमान जी ने मां कामाक्षी को नमस्कार कर सफलता की कामना की और फिर पूछा- हे मां क्या आप वास्तव में श्री राम जी और लक्ष्मण जी की बलि चाहती हैं ?
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हनुमान जी के इस प्रश्न पर मां कामाक्षी ने उत्तर दिया कि नहीं. मैं तो दुष्ट अहिरावण व महिरावण की बलि चाहती हूं.यह दोनों मेरे भक्त तो हैं पर अधर्मी और अत्याचारी भी हैं. आप अपने प्रयत्न करो. सफल रहोगे.
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मंदिर में पांच दीप जल रहे थे. अलग-अलग दिशाओं और स्थान पर मां ने कहा यह दीप अहिरावण ने मेरी प्रसन्नता के लिए जलाये हैं जिस दिन ये एक साथ बुझा दिए जा सकेंगे, उसका अंत सुनिश्चित हो सकेगा.
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इस बीच गाजे-बाजे का शोर सुनाई पड़ने लगा. अहिरावण, महिरावण बलि चढाने के लिए आ रहे थे. हनुमान जी ने अब मां कामाक्षी का रूप धरा. जब अहिरावण और महिरावण मंदिर में प्रवेश करने ही वाले थे कि हनुमान जी का महिला स्वर गूंजा.
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हनुमान जी बोले- मैं कामाक्षी देवी हूं और आज मेरी पूजा झरोखे से करो. झरोखे से पूजा आरंभ हुई ढेर सारा चढावा मां कामाक्षी को झरोखे से चढाया जाने लगा. अंत में बंधक बलि के रूप में राम लक्ष्मण को भी उसी से डाला गया. दोनों बंधन में बेहोश थे.
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हनुमान जी ने तुरंत उन्हें बंधन मुक्त किया. अब पाताल लोक से निकलने की बारी थी पर उससे पहले मां कामाक्षी के सामने अहिरावण महिरावण की बलि देकर उनकी इच्छा पूरी करना और दोनों राक्षसों को उनके किए की सज़ा देना शेष था.
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अब हनुमान जी ने मकरध्वज को कहा कि वह अचेत अवस्था में लेटे हुए भगवान राम और लक्ष्मण का खास ख्याल रखे और उसके साथ मिलकर दोनों राक्षसों के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया.
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पर यह युद्ध आसान न था. अहिरावण और महिरावण बडी मुश्किल से मरते तो फिर पाँच पाँच के रूप में जिदां हो जाते. इस विकट स्थिति में मकरध्वज ने बताया कि अहिरावण की एक पत्नी नागकन्या है.
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अहिरावण उसे बलात हर लाया है. वह उसे पसंद नहीं करती पर मन मार के उसके साथ है, वह अहिरावण के राज जानती होगी. उससे उसकी मौत का उपाय पूछा जाये. आप उसके पास जाएं और सहायता मांगे.
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मकरध्वज ने राक्षसों को युद्ध में उलझाये रखा और उधर हनुमान अहिरावण की पत्नी के पास पहुंचे. नागकन्या से उन्होंने कहा कि यदि तुम अहिरावण के मृत्यु का भेद बता दो तो हम उसे मारकर तुम्हें उसके चंगुल से मुक्ति दिला देंगे.
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अहिरावण की पत्नी ने कहा- मेरा नाम चित्रसेना है. मैं भगवान विष्णु की भक्त हूं. मेरे रूप पर अहिरावण मर मिटा और मेरा अपहरण कर यहां कैद किये हुए है, पर मैं उसे नहीं चाहती. लेकिन मैं अहिरावण का भेद तभी बताउंगी जब मेरी इच्छा पूरी की जायेगी.
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हनुमान जी ने अहिरावण की पत्नी नागकन्या चित्रसेना से पूछा कि आप अहिरावण की मृत्यु का रहस्य बताने के बदले में क्या चाहती हैं ? आप मुझसे अपनी शर्त बताएं, मैं उसे जरूर मानूंगा.
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चित्रसेना ने कहा- दुर्भाग्य से अहिरावण जैसा असुर मुझे हर लाया. इससे मेरा जीवन खराब हो गया. मैं अपने दुर्भाग्य को सौभाग्य में बदलना चाहती हूं. आप अगर मेरा विवाह श्री राम से कराने का वचन दें तो मैं अहिरावण के वध का रहस्य बताऊंगी.
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हनुमान जी सोच में पड़ गए. भगवान श्री राम तो एक पत्नी निष्ठ हैं. अपनी धर्म पत्नी देवी सीता को मुक्त कराने के लिए असुरों से युद्ध कर रहे हैं. वह किसी और से विवाह की बात तो कभी न स्वीकारेंगे. मैं कैसे वचन दे सकता हूं ?
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फिर सोचने लगे कि यदि समय पर उचित निर्णय न लिया तो स्वामी के प्राण ही संकट में हैं. असमंजस की स्थिति में बेचैन हनुमानजी ने ऐसी राह निकाली कि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे.
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हनुमान जी बोले- तुम्हारी शर्त स्वीकार है पर हमारी भी एक शर्त है. यह विवाह तभी होगा जब तुम्हारे साथ भगवान राम जिस पलंग पर आसीन होंगे वह सही सलामत रहना चाहिए. यदि वह टूटा तो इसे अपशकुन मांगकर वचन से पीछे हट जाऊंगा.
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जब महाकाय अहिरावण के बैठने से पलंग नहीं टूटता तो भला श्रीराम के बैठने से कैसे टूटेगा ! यह सोच कर चित्रसेना तैयार हो गयी. उसने अहिरावण समेत सभी राक्षसों के अंत का सारा भेद बता दिया.
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चित्रसेना ने कहा- दोनों राक्षसों के बचपन की बात है. इन दोनों के कुछ शरारती राक्षस मित्रों ने कहीं से एक भ्रामरी को पकड़ लिया. मनोरंजन के लिए वे उसे भ्रामरी को बार-बार काटों से छेड रहे थे.
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भ्रामरी साधारण भ्रामरी न थी. वह भी बहुत मायावी थी किंतु किसी कारण वश वह पकड़ में आ गई थी. भ्रामरी की पीड़ा सुनकर अहिरावण और महिरावण को दया आ गई और अपने मित्रों से लड़ कर उसे छुड़ा दिया.
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मायावी भ्रामरी का पति भी अपनी पत्नी की पीड़ा सुनकर आया था. अपनी पत्नी की मुक्ति से प्रसन्न होकर उस भौंरे ने वचन दिया थ कि तुम्हारे उपकार का बदला हम सभी भ्रमर जाति मिलकर चुकाएंगे.
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ये भौंरे अधिकतर उसके शयन कक्ष के पास रहते हैं. ये सब बड़ी भारी संख्या में हैं. दोनों राक्षसों को जब भी मारने का प्रयास हुआ है और ये मरने को हो जाते हैं तब भ्रमर उनके मुख में एक बूंद अमृत का डाल देते हैं.
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उस अमृत के कारण ये दोनों राक्षस मरकर भी जिंदा हो जाते हैं. इनके कई-कई रूप उसी अमृत के कारण हैं. इन्हें जितनी बार फिर से जीवन दिया गया उनके उतने नए रूप बन गए हैं. इस लिए आपको पहले इन भंवरों को मारना होगा.
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हनुमान जी रहस्य जानकर लौटे. मकरध्वज ने अहिरावण को युद्ध में उलझा रखा था. तो हनुमान जी ने भंवरों का खात्मा शुरू किया. वे आखिर हनुमान जी के सामने कहां तक टिकते.
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जब सारे भ्रमर खत्म हो गए और केवल एक बचा तो वह हनुमान जी के चरणों में लोट गया. उसने हनुमान जी से प्राण रक्षा की याचना की. हनुमान जी पसीज गए. उन्होंने उसे क्षमा करते हुए एक काम सौंपा.
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हनुमान जी बोले- मैं तुम्हें प्राण दान देता हूं पर इस शर्त पर कि तुम यहां से तुरंत चले जाओगे और अहिरावण की पत्नी के पलंग की पाटी में घुसकर जल्दी से जल्दी उसे पूरी तरह खोखला बना दोगे.
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भंवरा तत्काल चित्रसेना के पलंग की पाटी में घुसने के लिए प्रस्थान कर गया. इधर अहिरावण और महिरावण को अपने चमत्कार के लुप्त होने से बहुत अचरज हुआ पर उन्होंने मायावी युद्ध जारी रखा.
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भ्रमरों को हनुमान जी ने समाप्त कर दिया फिर भी हनुमान जी और मकरध्वज के हाथों अहिरावण और महिरावण का अंत नहीं हो पा रहा था. यह देखकर हनुमान जी कुछ चिंतित हुए.
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फिर उन्हें कामाक्षी देवी का वचन याद आया. देवी ने बताया था कि अहिरावण की सिद्धि है कि जब पांचो दीपकों एक साथ बुझेंगे तभी वे नए-नए रूप धारण करने में असमर्थ होंगे और उनका वध हो सकेगा.
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हनुमान जी ने तत्काल पंचमुखी रूप धारण कर लिया. उत्तर दिशा में वराह मुख, दक्षिण दिशा में नरसिंह मुख, पश्चिम में गरुड़ मुख, आकाश की ओर हयग्रीव मुख एवं पूर्व दिशा में हनुमान मुख.
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उसके बाद हनुमान जी ने अपने पांचों मुख द्वारा एक साथ पांचों दीपक बुझा दिए. अब उनके बार बार पैदा होने और लंबे समय तक जिंदा रहने की सारी आशंकायें समाप्त हो गयीं थी. हनुमान जी और मकरध्वज के हाथों शीघ्र ही दोनों राक्षस मारे गये.
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इसके बाद उन्होंने श्री राम और लक्ष्मण जी की मूर्च्छा दूर करने के उपाय किए. दोनो भाई होश में आ गए. चित्रसेना भी वहां आ गई थी. हनुमान जी ने कहा- प्रभो ! अब आप अहिरावण और महिरावण के छल और बंधन से मुक्त हुए.
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पर इसके लिए हमें इस नागकन्या की सहायता लेनी पड़ी थी. अहिरावण इसे बल पूर्वक उठा लाया था. वह आपसे विवाह करना चाहती है. कृपया उससे विवाह कर अपने साथ ले चलें. इससे उसे भी मुक्ति मिलेगी.
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श्री राम हनुमान जी की बात सुनकर चकराए. इससे पहले कि वह कुछ कह पाते हनुमान जी ने ही कह दिया- भगवन आप तो मुक्तिदाता हैं. अहिरावण को मारने का भेद इसी ने बताया है. इसके बिना हम उसे मारकर आपको बचाने में सफल न हो पाते.
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कृपा निधान इसे भी मुक्ति मिलनी चाहिए. परंतु आप चिंता न करें. हम सबका जीवन बचाने वाले के प्रति बस इतना कीजिए कि आप बस इस पलंग पर बैठिए बाकी का काम मैं संपन्न करवाता हूं.
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हनुमान जी इतनी तेजी से सारे कार्य करते जा रहे थे कि इससे श्री राम जी और लक्ष्मण जी दोनों चिंता में पड़ गये. वह कोई कदम उठाते कि तब तक हनुमान जी ने भगवान राम की बांह पकड़ ली.
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हनुमान जी ने भावा वेश में प्रभु श्री राम की बांह पकड़कर चित्रसेना के उस सजे-धजे विशाल पलंग पर बिठा दिया. श्री राम कुछ समझ पाते कि तभी पलंग की खोखली पाटी चरमरा कर टूट गयी.
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पलंग धराशायी हो गया. चित्रसेना भी जमीन पर आ गिरी. हनुमान जी हंस पड़े और फिर चित्रसेना से बोले- अब तुम्हारी शर्त तो पूरी हुई नहीं, इसलिए यह विवाह नहीं हो सकता. तुम मुक्त हो और हम तुम्हें तुम्हारे लोक भेजने का प्रबंध करते हैं.
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चित्रसेना समझ गयी कि उसके साथ छल हुआ है. उसने कहा कि उसके साथ छल हुआ है. मर्यादा पुरुषोत्तम के सेवक उनके सामने किसी के साथ छल करें यह तो बहुत अनुचित है. मैं हनुमान को श्राप दूंगी.
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चित्रसेना हनुमान जी को श्राप देने ही जा हे रही थी कि श्री राम का सम्मोहन भंग हुआ. वह इस पूरे नाटक को समझ गये. उन्होंने चित्रसेना को समझाया- मैंने एक पत्नी धर्म से बंधे होने का संकल्प लिया है. इस लिए हनुमान जी को यह करना पड़ा. उन्हें क्षमा कर दो.
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क्रुद्ध चित्रसेना तो उनसे विवाह की जिद पकड़े बैठी थी. श्री राम ने कहा- मैं जब द्वापर में श्री कृष्ण अवतार लूंगा तब तुम्हें सत्यभामा के रूप में अपनी पटरानी बनाउंगा. इससे वह मान गयी.
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हनुमान जी ने चित्रसेना को उसके पिता के पास पहुंचा दिया. चित्रसेना को प्रभु ने अगले जन्म में पत्नी बनाने का वरदान दिया था. भगवान विष्णु की पत्नी बनने की चाह में उसने स्वयं को अग्नि में भस्म कर लिया.
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श्री राम और लक्ष्मण, मकरध्वज और हनुमान जी सहित वापस लंका में सुवेल पर्वत पर लौट आये. (स्कंद
पुराण और आनंद रामायण के सारकांड की कथा)
🙏

🚩🚩 *जय श्री राम* 🚩🚩

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संस्कृत का विरोध करने वाले एक एक कर पढे कि संस्कृत किस तरह भारत की नीव है …


संस्कृत का विरोध करने वाले एक एक कर पढे कि संस्कृत किस तरह
भारत की नीव है …
इसे हटाने का मतलब पूरा भारत एक झटके मे समाप्त ——
विभिन्न संस्थाओं के संस्कृत ध्येय वाक्य—

भारत सरकार👉 सत्यमेव जयते
लोक सभा👉 धर्मचक्र प्रवर्तनाय
उच्चतम न्यायालय👉 यतो धर्मस्ततो जयः
आल इंडिया रेडियो👉 सर्वजन हिताय सर्वजनसुखाय

दूरदर्शन👉 सत्यं शिवम् सुन्दरम
गोवा राज्य👉 सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःखभाग्भवेत्।
भारतीय जीवन बीमा निगम👉 योगक्षेमं वहाम्यहम्
डाक तार विभाग👉 अहर्निशं सेवामहे
श्रम मंत्रालय👉 श्रम एव जयते
भारतीय सांख्यिकी संस्थान👉 भिन्नेष्वेकस्य दर्शनम्
थल सेना👉 सेवा अस्माकं धर्मः
वायु सेना👉 नभःस्पृशं दीप्तम्
जल सेना👉 शं नो वरुणः
मुंबई पुलिस👉 सद्रक्षणाय खलनिग्रहणाय
हिंदी अकादमी👉 अहम् राष्ट्री संगमनी वसूनाम
भारतीय राष्ट्रीय विज्ञानं अकादमी👉 हव्याभिर्भगः सवितुर्वरेण्यं
भारतीय प्रशासनिक सेवा अकादमी👉 योगः कर्मसु कौशलं
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग👉 ज्ञान-विज्ञानं विमुक्तये
नेशनल कौंसिल फॉर टीचर एजुकेशन👉 गुरुः गुरुतामो धामः
गुरुकुल काङ्गडी विश्वविद्यालय👉 ब्रह्मचर्येण तपसा देवा मृत्युमपाघ्नत
इन्द्रप्रस्थ विश्वविद्यालय👉 ज्योतिर्व्रणीततमसो विजानन
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय:👉 विद्ययाऽमृतमश्नुते
आन्ध्र विश्वविद्यालय👉 तेजस्विनावधीतमस्तु
बंगाल अभियांत्रिकी एवं विज्ञान विश्वविद्यालय,
शिवपुर👉 उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान् निबोधत
गुजरात राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय👉 आनो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतः
संपूणानंद संस्कृत विश्वविद्यालय👉 श्रुतं मे गोपय
श्री वैंकटेश्वर विश्वविद्यालय👉 ज्ञानं सम्यग् वेक्षणम्
कालीकट विश्वविद्यालय👉 निर्मय कर्मणा श्री
दिल्ली विश्वविद्यालय👉 निष्ठा धृति: सत्यम्
केरल विश्वविद्यालय👉 कर्मणि व्यज्यते प्रज्ञा
राजस्थान विश्वविद्यालय👉 धर्मो विश्वस्यजगतः प्रतिष्ठा
पश्चिम बंगाल राष्ट्रीय न्यायिक विज्ञान विश्वविद्यालय👉 युक्तिहीने विचारे तु धर्महानि: प्रजायते
वनस्थली विद्यापीठ👉 सा विद्या या विमुक्तये।
राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद्👉
विद्याsमृतमश्नुते।
केन्द्रीय विद्यालय👉 तत् त्वं पूषन् अपावृणु
केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड👉 असतो मा सद् गमय
प्रौद्योगिकी महाविद्यालय, त्रिवेन्द्रम👉 कर्मज्यायो हि अकर्मण:
देवी अहिल्या विश्वविद्यालय, इन्दौर👉 धियो यो नः प्रचोदयात्
गोविंद बल्लभ पंत अभियांत्रिकी महाविद्यालय, पौड़ी👉 तमसो मा ज्योतिर्गमय
मदनमोहन मालवीय अभियांत्रिकी महाविद्यालय गोरखपुर👉 योगः कर्मसु कौशलम्
भारतीय प्रशासनिक कर्मचारी महाविद्यालय, हैदराबाद👉 संगच्छध्वं संवदध्वम्
इंडिया विश्वविद्यालय का राष्ट्रीय विधि विद्यालय👉 धर्मो रक्षति रक्षितः
संत स्टीफन महाविद्यालय, दिल्ली👉 सत्यमेव विजयते नानृतम्
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान👉 शरीरमाद्यं खलुधर्मसाधनम्
विश्वेश्वरैया राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, नागपुर👉 योग: कर्मसु कौशलम्
मोतीलाल नेहरू राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान,इलाहाबाद👉 सिद्धिर्भवति कर्मजा
बिरला प्रौद्योगिकी एवं विज्ञान संस्थान, पिलानी👉 ज्ञानं परमं बलम्
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान खड़गपुर👉 योगः कर्मसुकौशलम्
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई👉 ज्ञानं परमं ध्येयम्
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर👉 तमसो मा ज्योतिर्गमय
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान चेन्नई👉 सिद्धिर्भवति कर्मजा
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान रुड़की👉 श्रमं विना नकिमपि साध्यम्
भारतीय प्रबंधन संस्थान अहमदाबाद👉 विद्या विनियोगाद्विकास:
भारतीय उद्यमिता विकास संस्थान अहमदाबाद 👉उद्योगिनम् पुरुषसिंहमुपैति लछ्मीः
भारतीय प्रबंधन संस्थान बंगलौर👉 तेजस्वि नावधीतमस्तु
भारतीय प्रबंधन संस्थान कोझीकोड👉 योगः कर्मसु कौशलम्
सेना ई एम ई कोर👉 कर्मह हि धर्मह
सेना राजपूताना राजफल👉 वीर भोग्या वसुन्धरा
सेना मेडिकल कोर👉 सर्वे संतु निरामया ..
सेना शिक्षा कोर👉 विदैव बलम
सेना एयर डिफेन्स👉 आकाशेय शत्रुन जहि
सेना ग्रेनेडियर रेजिमेन्ट.👉 सर्वदा शक्तिशालिं
सेना राजपूत बटालियन👉 सर्वत्र विजये
सेना डोगरा रेजिमेन्ट👉 कर्तव्यम अन्वात्मा
सेना गढवाल रायफल👉 युद्धया कृत निश्चया
सेना कुमायू रेजिमेन्ट👉 पराक्रमो विजयते
सेना महार रेजिमेन्ट👉 यश सिद्धि
सेना जम्मू काश्मीर रायफल👉 प्रस्थ रणवीरता
सेना कश्मीर लाइट इंफैन्ट्री👉 बलिदानं वीर लक्षयं
सेना इंजीनियर रेजिमेन्ट👉 सर्वत्र
भारतीय तट रक्षक-वयम् रक्षामः
सैन्य विद्यालय👉 युद्धं प्र्गायय
सैन्य अनुसंधान केंद्र👉 बालस्य मूलं विज्ञानम
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सिलसिला यहिं खतम नही होता,
विदेशी भी हमारे कायल हैं देखो जरा
नेपाल सरकार👉 जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी
इंडोनेशिया-जलसेना 👉 जलेष्वेव जयामहेअसेह राज्य (इंडोनेशिया) –
पञ्चचित
कोलंबो विश्वविद्यालय- (श्रीलंका)👉 बुद्धि: सर्वत्र भ्राजते
मोराटुवा विश्वविद्यालय (श्रीलंका)👉 विद्यैव सर्वधनम्
पेरादेनिया विश्वविद्यालय👉 सर्वस्य लोचनशास्त्रम्
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संस्कृत और संस्कृति ही भारतीयता का मूल है .. भारत का विकास इसी से संभव
है- तो कीजिये अपने गौरव को याद और सिर उठाकर कहिये “हम भारतीय हैं और संस्कृत हमारी पहचान है ,हमें अपने गौरव का अभिमान है।”

भारत माता की जय..