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Day: April 4, 2017
गंगा की महिमा
गंगा की महिमा
Adawya Society & Foundation : अदव्य
(गंगा दशहरा : ५ से १४ जून)
कपिल_मुनि के कोप से सगर राजा के पुत्रों की मृत्यु हो गयी । राजा सगर को पता चला कि उनके पुत्रों के उद्धार के लिए माँ गंगा ही समर्थ हैं ।
अतः गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए सगर के पौत्र अंशुमान, अंशुमान के पुत्र दिलीप और दिलीप के पुत्र भगीरथ घोर तपस्या में लगे रहे ।
आखिरकार भगीरथ सफल हुए गंगा को स्वर्ग से पृथ्वी पर लाने में । इसलिए गंगा का एक नाम ‘भागीरथी भी है । जिस दिन गंगा पृथ्वी पर अवतरित हुर्इं वह दिन ‘गंगा दशहरा के नाम से जाना जाता है ।
जगद्गुरु आद्य शंकराचार्यजी, जिन्होंने कहा है :-
एको ब्रह्म द्वितियोनास्ति । द्वितियाद्वैत भयं भवति ।।
उन्होंने भी ‘गंगाष्टक लिखा है,
गंगा की महिमा गायी है ।
रामानुजाचार्य, रामानंद स्वामी, चैतन्य महाप्रभु और स्वामी रामतीर्थ ने भी गंगाजी की बडी महिमा गायी है ।
कई साधु-संतों, अवधूत-मंडलेश्वरों और जती-जोगियों ने गंगा माता की कृपा का अनुभव किया है, कर रहे हैं तथा बाद में भी करते रहेंगे ।
अब तो विश्व के वैज्ञानिक भी गंगाजल का परीक्षण कर दाँतों तले उँगली दबा रहे हैं ! उन्होंने दुनिया की तमाम नदियों के जल का परीक्षण किया परंतु गंगाजल में रोगाणुओं को नष्ट करने तथा आनंद और सात्त्विकता देने का जो अद्भुत गुण है, उसे देखकर वे भी आश्चर्यचकित हो उठे ।
हृषिकेश में स्वास्थ्य-अधिकारियों ने पुछवाया कि यहाँ से हैजे की कोई खबर नहीं आती, क्या कारण है ? उनको बताया गया कि यहाँ यदि किसी को हैजा हो जाता है तो उसको गंगाजल पिलाते हैं । इससे उसे दस्त होने लगते हैं तथा हैजे के कीटाणु नष्ट हो जाते हैं और वह स्वस्थ हो जाता है । वैसे तो हैजे के समय घोषणा कर दी जाती है कि पानी उबालकर ही पियें किंतु गंगाजल के पान से तो यह रोग मिट जाता है और केवल हैजे का रोग ही मिटता है ऐसी बात नहीं है, अन्य कई रोग भी मिट जाते हैं ।
तीव्र व दृढ श्रद्धा-भक्ति हो तो गंगास्नान व गंगाजल के पान से जन्म-मरण का रोग भी मिट सकता है ।
सन् 1947 में जलतत्त्व विशेषज्ञ कोहीमान भारत आया था । उसने वाराणसी से गंगाजल लिया । उस पर अनेक परीक्षण करके उसने विस्तृत लेख लिखा, जिसका सार है –
‘इस जल में कीटाणु-रोगाणुनाशक विलक्षण शक्ति है।’
दुनिया की तमाम नदियों के जल का विश्लेषण करनेवाले बर्लिन के डॉ. जे. ओ. लीवर ने सन् 1924 में ही गंगाजल को विश्व का सर्वाधिक स्वच्छ और कीटाणु-रोगाणुनाशक जल घोषित कर दिया था ।
‘आइने अकबरी में लिखा है कि ‘अकबर गंगाजल मँगवाकर आदर सहित उसका पान करते थे । वे गंगाजल को अमृत मानते थे ।
औरंगजेब और मुहम्मद तुगलक भी गंगाजल का पान करते थे । शाहनवर के नवाब केवल गंगाजल ही पिया करते थे ।
कलकत्ता के हुगली जिले में पहुँचते-पहुँचते तो बहुत सारी नदियाँ, झरने और नाले गंगाजी में मिल चुके होते हैं ।
अंग्रेज यह देखकर हैरान रह गये कि हुगली जिले से भरा हुआ गंगाजल दरियाई मार्ग से यूरोप ले जाया जाता है तो भी कई-कई दिनों तक वह बिगड़ता नहीं है । जबकि यूरोप की कई बर्फीली नदियों का पानी हिन्दुस्तान लेकर आने तक
खराब हो जाता है ।
अभी रुड़की विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक कहते हैं कि ‘गंगाजल में जीवाणुनाशक और हैजे के कीटाणुनाशक तत्त्व विद्यमान हैं ।
फ्रांसीसी चिकित्सक हेरल ने देखा कि गंगाजल से कई रोगाणु नष्ट हो जाते हैं । फिर उसने गंगाजल को कीटाणुनाशक औषधि मानकर उसके इंजेक्शन बनाये और जिस रोग में उसे समझ न आता था कि इस रोग का कारण कौन-से कीटाणु हैं, उसमें गंगाजल के वे इंजेक्शन रोगियों को दिये तो उन्हें लाभ होने लगा !
संत तुलसीदासजी कहते हैं :-
गंग सकल मुद मंगल मूला ।
सब सुख करनि हरनि सब सूला ।।
(श्रीरामचरित. अयो. कां. 86.2)
सभी सुखों को देनेवाली और सभी शोक व दुःखों को हरने वाली माँ गंगा के तट पर स्थित तीर्थों में पाँच तीर्थ विशेष आनंद-उल्लास का अनुभव कराते हैं :-
गंगोत्री, हर की पौडी (हरिद्वार), प्रयागराज त्रिवेणी, काशी और गंगासागर
गंगा दशहरे के दिन गंगा में गोता मारने से सात्त्विकता, प्रसन्नता और विशेष पुण्यलाभ होता है ।
।। जय गंगा माई ।।
रामनवमी का महत्व
**रामनवमी का महत्व **
त्रेता युग में अत्याचारी रावन के अत्याचारो से हर तरफ हाहाकार मचा हुआ था । साधू संतो का जीना मुश्किल हो गया था । अत्याचारी रावण ने अपने प्रताप से नव ग्रहों और काल को भी बंदी बना लिया था । कोई भी देव या मानव रावण का अंत नहीं कर पा रहा था । तब पालनकर्त्ता भगवान विष्णु ने राम के रूप में अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र के रूप में जन्म लिया । यानि भगवान श्री राम भगवान विष्णु के ही अवतार थे।
मंगल भवन अमंगल हारी,
दॄवहुसु दशरथ अजिर बिहारि ॥
अगस्त्यसंहिताके अनुसार चैत्र शुक्ल नवमीके दिन पुनर्वसु नक्षत्र,कर्कलग्नमें जब सूर्य अन्यान्य पाँच ग्रहोंकी शुभ दृष्टिके साथ मेषराशिपर विराजमान थे, तभी साक्षात् भगवान् श्रीरामका माता कौसल्याके गर्भसे जन्म हुआ।चैत्र शुक्ल नवमी का धार्मिक दृष्टि से विशेष महत्व है। आज ही के दिन तेत्रा युग में रघुकुल शिरोमणि महाराज दशरथ एवं महारानी कौशल्या के यहाँ अखिल ब्रम्हांड नायक अखिलेश ने पुत्र के रूप में जन्म लिया था।
दिन के बारह बजे जैसे ही सौंदर्य निकेतन, शंख, चक्र,गदा, पद्म धारण किए हुए चतुर्भुजधारी श्रीराम प्रकट हुए तो मानो माता कौशल्या उन्हें देखकर विस्मित हो गईं। उनके सौंदर्य व तेज को देखकर उनके नेत्र तृप्त नहीं हो रहे थे।
श्रीराम के जन्मोत्सव को देखकर देवलोक भी अवध के सामने फीका लग रहा था। देवता, ऋषि,किन्नार, चारण सभी जन्मोत्सव में शामिल होकर आनंद उठा रहे थे। आज भी हम प्रतिवर्ष चैत्र शुक्ल नवमी को राम जन्मोत्सव मनाते हैं और राममय होकर कीर्तन, भजन, कथा आदि में रम जाते हैं।
रामजन्म के कारण ही चैत्र शुक्ल नवमी को रामनवमी कहा जाता है। रामनवमी के दिन ही गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस की रचना का श्रीगणेश किया था।भगवान श्रीराम जी ने अपने जीवन का उद्देश्य अधर्म का नाश कर धर्म की स्थापना करना बताया पर उससे उनका आशय यह था कि आम इंसान शांति के साथ जीवन व्यतीत कर सके और भगवान की भक्ति कर सके। उन्होंने न तो किसी प्रकार के धर्म का नामकरण किया और न ही किसी विशेष प्रकार की भक्ति का प्रचार किया।
रामनवमी,भगवान राम की स्मृति को समर्पित है। राम सदाचार के प्रतीक हैं, और इन्हें”मर्यादा पुरुषोतम” कहा जाता है। रामनवमी को राम के जन्मदिन की स्मृति में मनाया जाता है। राम को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है, जो पृथ्वी पर अजेय रावण (मनुष्य रूप में असुर राजा) से युद्ध लड़ने के लिए आए। राम राज्य (राम का शासन)शांति व समृद्धि की अवधि का पर्यायवाची बन गया है। रामनवमी के दिन, श्रद्धालु बड़ी संख्या में उनके जन्मोत्सव को मनाने के लिए राम जी की मूर्तियों को पालने में झुलाते हैं। इस महान राजा की काव्य तुलसी रामायण में राम की कहानी का वर्णन है।
उस दिन जो कोई व्यक्ति दिनभर उपवास और रातभर जागरणका व्रत रखकर भगवान् श्रीरामकी पूजा करता है,तथा अपनी आर्थिक स्थितिके अनुसार दान-पुण्य करता है,वह अनेक जन्मोंके पापोंको भस्म करनेमें समर्थ होता है।
रामनवमी के मौके पर भारत ही क्या विदेशों के मंदिरों में भी शोभा देखते ही बनती है। ऐसा लगता है पूरी दुनिया श्री राम की भक्ति में डूबी हुई है। हिन्दू धर्म में राम का नाम बहुत महत्त्व रखता है। हिन्दू होने के कारण मैंने भी बचपन से यही देखा है कि किस तरह मेरे घर में कोई भी पूजा राम नाम और ॐ जय जगदीश की आरती के बिना पूरी नहीं होती है। अरे! एक राम का नाम पत्थर पर लिख कर पूरी सेना ने इतना बड़ा समुन्दर पार कर लिया था तो हमारी नैया तो पार लग ही जाएगी। भगवान राम को मर्यादा पुरुषोत्तम भी कहा जाता है, जिन्होंने पृथ्वी से पाप और असूरों का नाश करने के लिए जन्म लिया था। भगवान राम कोई और नहीं बल्कि विष्णु भगवान के ही अवतार हैं। और जब बात स्वयं श्री राम के जन्म की हो तो उत्साह और जोश और भी बढ़ जाता है।
भगवान श्री राम की जन्मकुंडली का विवेचन /फलादेश—-
भगवान राम का जन्म कर्क लगन में हुआ था। उनके लगन में उच्च का गुरु एवं स्वराशी का चंद्रमा था । भगवान श्री राम का जन्म दोपहर के 12 बजे हुआ था, इसी कारण भगवान राम विशाल व्यक्तित्व के थे और उनका रूप अति मनहोर था ।
लग्न में उच्च का गुरु होने से वह मर्यादा पुरुषोतम बने । चौथे घर में उच्च का शनि तथा सप्तम भाव में उच्च का मंगल था, अतः भगवान श्री राम मांगलिक थे । इसके कारण उनका वैवाहिक जीवन कष्टों से भरा रहा । उनकी कुंडली के दशम भाव में उच्च का सूर्य था, जिससे वे महा प्रतापी थे ।
कुल मिलकर भगवान राम के जन्म के समय चार केन्द्रो में चार उच्च के ग्रह विराजमान थे।आश्चर्य की बात यह है कि जैसी कुंडली भगवान राम की थी वैसी ही रावण की भी थी। राम की कुंडली कर्क लगन थी और रावन की मेष।