एक पंडित जी कई वर्षों तक काशी में शास्त्रों का अध्ययन करने के बाद गांव लौटे. पूरे गांव में शोहरत हुई कि काशी से शिक्षित होकर आए हैं और धर्म से जुड़े किसी भी पहेली को सुलझा सकते हैं.
.
शोहरत सुनकर एक किसान उनके पास आया और उसने पूछ लिया-, पंडित जी आप हमें यह बताइए कि पाप का गुरु कौन है ?
.
प्रश्न सुन कर पंडित जी चकरा गए. उन्होंने धर्म व आध्यात्मिक गुरु तो सुने थे, लेकिन पाप का भी गुरु होता है, यह उनकी समझ और ज्ञान के बाहर था.
.
पंडित जी को लगा कि उनका अध्ययन अभी अधूरा रह गया है. वह फिर काशी लौटे. अनेक गुरुओं से मिले लेकिन उन्हें किसान के सवाल का जवाब नहीं मिला.
.
अचानक एक दिन उनकी मुलाकात एक गणिका (वेश्या) से हो गई. उसने पंडित जी से परेशानी का कारण पूछा, तो उन्होंने अपनी समस्या बता दी.
.
गणिका बोली- पंडित जी ! इसका उत्तर है तो बहुत सरल है, लेकिन उत्तर पाने के लिए आपको कुछ दिन मेरे पड़ोस में रहना होगा.
.
पंडित जी इस ज्ञान के लिए ही तो भटक रहे थे. वह तुरंत तैयार हो गए. गणिका ने अपने पास ही उनके रहने की अलग से व्यवस्था कर दी.
.
पंडित जी किसी के हाथ का बना खाना नहीं खाते थे. अपने नियम-आचार और धर्म परंपरा के कट्टर अनुयायी थे.
.
गणिका के घर में रहकर अपने हाथ से खाना बनाते खाते कुछ दिन तो बड़े आराम से बीते, लेकिन सवाल का जवाब अभी नहीं मिला. वह उत्तर की प्रतीक्षा में रहे.
.
एक दिन गणिका बोली- पंडित जी ! आपको भोजन पकाने में बड़ी तकलीफ होती है. यहां देखने वाला तो और कोई है नहीं. आप कहें तो नहा-धोकर मैं आपके लिए भोजन तैयार कर दिया करूं.
.
पंडित जी को राजी करने के लिए उसने लालच दिया- यदि आप मुझे इस सेवा का मौका दें, तो मैं दक्षिणा में पांच स्वर्ण मुद्राएं भी प्रतिदिन आपको दूंगी.
.
स्वर्ण मुद्रा का नाम सुनकर पंडित जी विचारने लगे. पका-पकाया भोजन और साथ में सोने के सिक्के भी ! अर्थात दोनों हाथों में लड्डू हैं.
.
पंडित जी ने अपना नियम-व्रत, आचार-विचार धर्म सब कुछ भूल गए. उन्होंने कहा- तुम्हारी जैसी इच्छा. बस विशेष ध्यान रखना कि मेरे कमरे में आते-जाते तुम्हें कोई नहीं देखे.
.
पहले ही दिन कई प्रकार के पकवान बनाकर उसने पंडित जी के सामने परोस दिया. पर ज्यों ही पंडित जी ने खाना चाहा, उसने सामने से परोसी हुई थाली खींच ली.
.
इस पर पंडित जी क्रुद्ध हो गए और बोले, यह क्या मजाक है ? गणिका ने कहा, यह मजाक नहीं है पंडित जी, यह तो आपके प्रश्न का उत्तर है.
.
यहां आने से पहले आप भोजन तो दूर, किसी के हाथ का पानी भी नहीं पीते थे, मगर स्वर्ण मुद्राओं के लोभ में आपने मेरे हाथ का बना खाना भी स्वीकार कर लिया. यह लोभ ही पाप का गुरु है.
क्यूँ ना घमँड करूँ अपने वीर पूर्वजों पर ??🚩 🚩1.बप्पा रावल,- अरबो को हराया ओर हिन्दुऔ को बचाए रखा..
02.अनगपाल तोमर द्वितीय (1051-1081)-लालकोट का निर्माण करवाया और लोह स्तंभ की स्थापना की, अनंगपाल तोमर द्वितीय ने 27 महल और मन्दिर बनवाये थे।दिल्ली सम्राट अनगपाल तोमर द्वितीय ने तुर्क इबराहीम को पराजित किया ( Only Hindu ruler who killed Muslim ruler in direct fight with his sword ) 🚩2 . भीम देव दवितय -, मोहम्मद गौरी को 1178 मे हराया और 2 साल तक जेल मे रखा.. 🚩3.पृथ्वीराज चौहान – गौरी को 17 बार हराया और हिन्दुओ की साख बचाई.. 🚩4.हमीरदेव – खिलजी को 1296 में काटा और हिन्दुओं की ताकत का लोहा मनवाया .. 🚩5.मानसिहं तोमर- 1516 तक इबराहीम लोदी को कई बार हराया.. 🚩6. वीर शिवाजी- ओरंगजेब को हराया ओर मुल्लों को बुरी तरह काटा.. 🚩7. राणा सांगा – बाबर को भीख दी और धोका मिला ओर युद्ध मे 80 घाव के बाद भी लड़े लोधी को हराया.. 🚩8. राणा कुम्भा- अपनी जिदगीँ मे 17 युद्ध लडे,एक भी नही हारे.. 🚩9. रानी दुर्गावती-एक औरत नें अकबर को 3 बार हराया.. 🚩10.कान्हड देव -1300 मे अलाउद्दीन खिलजी को हराया और सोमनाथ का शिवलिगं को वापिस लिया.. 🚩11. विरम देव- जिसकी वीरता पे खिलजी की बेटी फिरोजा फिदा हो गई थी.. 🚩12 . चन्द्रगुप्त मौर्य- क्षत्रिय कुल का सबसे पहला राजा जिसने सिकंदर को हराया.. 🚩13 . महाराणा प्रताप- इनके बारे में तो मुसलमानो से पुछ लेना -जय महाराणा.. 🚩🚩सभी हिन्दू भाई-बहन अपने पूर्वजों का इतिहास और सच्चाई अपने अपने बच्चों व परिवार वालो को बताएं,,🚩🚩 🚩जय भवानी🚩 🚩हिन्दू यूवा शक्ति🚩 🚩जय वीर शिवा जी
हिन्दू नववर्ष, चैत्र शुक्ल प्रतिपदा विक्रमी संवत् २०७४ (२८ मार्च, २०१७)” की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ।
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा का ऐतिहासिक महत्व:
1. इसी दिन के सूर्योदय से ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना प्रारंभ की
2. सम्राट विक्रमादित्य ने इसी दिन राज्य स्थापित किया। इन्हीं के नाम पर विक्रमी संवत् का पहला दिन प्रारंभ होता है
3. प्रभु श्री राम के राज्याभिषेक का दिन यही है।
4. शक्ति और भक्ति के नौ दिन अर्थात् नवरात्र का पहला दिन यही है।
5. सिख परंपरा के द्वितीय गुरू श्री अंगद देव जी के जन्म दिवस का यही दिन है।
6. स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने इसी दिन को आर्य समाज की स्थापना दिवस के रूप में चुना
7. सिंध प्रान्त के प्रसिद्ध समाज रक्षक वरूणावतार संत झूलेलाल इसी दिन प्रगट हुए
8. विक्रमादित्य की भांति शालिवाहन ने हूणों को परास्त कर दक्षिण भारत में श्रेष्ठतम राज्य स्थापित करने हेतु यही दिन चुना
9. युधिष्ठिर का राज्यभिषेक भी इसी दिन हुआ।
10. न्याय शास्त्र के रचियता महर्षि गौत्तम का जन्मदिन दिन
हिन्दू नववर्ष का प्राकृतिक महत्व
1. वसंत ऋतु का आरंभ वर्ष प्रतिपदा से ही होता है जो उल्लास, उमंग, खुशी तथा चारों तरफ पुष्पों की सुगंधि से भरी होती है।
2. फसल पकने का प्रारंभ यानि किसान की मेहनत का फल मिलने का भी यही समय होता है।
3. नक्षत्र शुभ स्थिति में होते हैं अर्थात् किसी भी कार्य को प्रारंभ करने के लिये यह शुभ मुहूर्त होता है
हिन्दू नववर्ष कैसे मनाएँ :
1. हम परस्पर एक दुसरे को नववर्ष की शुभकामनाएँ दें
2. आपने परिचित मित्रों, रिश्तेदारों को नववर्ष के शुभ संदेश भेजें।
3 . इस मांगलिक अवसर पर अपने-अपने घरों पर भगवा पताका फेहराएँ।
4. आपने घरों के द्वार, आम के पत्तों की वंदनवार से सजाएँ
5. घरों एवं धार्मिक स्थलों की सफाई कर रंगोली तथा फूलों से सजाएँ।
6. इस अवसर पर होने वाले धार्मिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लें अथवा कार्यक्रमों का आयोजन करें
आप सभी से विनम्र निवेदन है कि “हिन्दू नववर्ष” हर्षोउल्लास के साथ मनाने के लिए “समाज को अवश्य प्रेरित” करें।
हिन्दू नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ एवं अनंत मंगलकामनाएँ
हम परस्पर उसी दिन एक दुसरे को शुभकामनाये दे
🚩जय~जय~भारत🚩
🚩भारतीय नववर्ष का ऐतिहासिक महत्व :
1. यह दिन सृष्टि रचना का पहला दिन है। इस दिन से एक अरब 97 करोड़ 39 लाख 49 हजार 110 वर्ष पूर्व इसी दिन के सूर्योदय से ब्रह्माजी ने जगत की रचना प्रारंभ की।
2. विक्रमी संवत का पहला दिन: उसी राजा के नाम पर संवत् प्रारंभ होता था जिसके राज्य में न कोई चोर हो, न अपराधी हो, और न ही कोई भिखारी हो। साथ ही राजा चक्रवर्ती सम्राट भी हो।
सम्राट विक्रमादित्य ने 2068 वर्ष पहले इसी दिन राज्य स्थापित किया था।
3. प्रभु श्री राम का राज्याभिषेक दिवस : प्रभु राम ने भी इसी दिन को लंका विजय के बाद अयोध्या में राज्याभिषेक के लिये चुना।
4. नवरात्र स्थापना : शक्ति और भक्ति के नौ दिन अर्थात् नवरात्र स्थापना का पहला दिन यही है। प्रभु राम के जन्मदिन रामनवमी से पूर्व नौ दिन उत्सव मनाने का प्रथम दिन।
5. गुरू अंगददेव प्रगटोत्सव: सिख परंपरा के द्वितीय गुरू का जन्म दिवस।
6. समाज को श्रेष्ठ (आर्य) मार्ग पर ले जाने हेतु स्वामी दयानंद सरस्वती ने
इसी दिन को आर्य समाज स्थापना दिवस के रूप में चुना।
7. संत झूलेलाल जन्म दिवस : सिंध प्रान्त के प्रसिद्ध समाज रक्षक वरूणावतार संत झूलेलाल इसी दिन प्रगट हुए।
8. शालिवाहन संवत्सर का प्रारंभ दिवस : विक्रमादित्य की भांति शालिनवाहन ने हूणों को परास्त कर दक्षिण भारत में श्रेष्ठतम राज्य स्थापित करने हेतु यही दिन चुना।
9. युगाब्द संवत्सर का प्रथम दिन : 5112 वर्ष पूर्व युधिष्ठिर का राज्यभिषेक
भी इसी दिन हुआ।
🚩भारतीय नववर्ष का प्राकृतिक महत्व :🚩
1. वसंत ऋतु का आरंभ वर्ष प्रतिपदा से ही होता है जो उल्लास, उमंग,
खुशी तथा चारों तरफ पुष्पों की सुगंधि से भरी होती है।
2. फसल पकने का प्रारंभ यानि किसान की मेहनत का फल मिलने का भी यही समय होता है।
3. नक्षत्र शुभ स्थिति में होते हैं अर्थात् किसी भी कार्य को प्रारंभ करने के लिये यह शुभ मुहूर्त होता है।
अत: हमारा नव वर्ष कई कारणों को समेटे हुए है , अंग्रेजी नववर्ष न मना कर भारतीय नववर्ष हर्षोउल्लास के साथ नववर्ष मनाये और दुसरो को भी मनाने के लिए प्रेरित करे |
सभी हिन्दू भाइयों, बहिनों और मित्रों से अनुरोध है, आप भी नवसंवत्सर, नवरात्रि और रामनवमी के इन मांगलिक अवसरों पर अपने अपने घरों को भगवा पताकाओं और आम के पत्तों की वंदनवार से ज़रूर सजाएँ
🚩जय~जय~भारत🚩
🚩नव संवत्सर🚩
विक्रम संवत 2071 का शुभारम्भ चैत्र मास के शुक्ल पक्ष, उत्तराभाद्रपद नक्षत्र से है। पुराणों के अनुसार इसी तिथि से ब्रह्मा जी ने सृष्टि निर्माण किया था, इसलिए इस पावन तिथि को नव संवत्सर पर्व के रूप में भी मनाया जाता है। संवत्सर-चक्र के अनुसार सूर्य इस ऋतु में अपने राशि-चक्र की प्रथम राशि मेष में प्रवेश करता है। भारतवर्ष में वसंत ऋतु के अवसर पर नूतन वर्ष का आरम्भ मानना इसलिए भी हर्षोल्लासपूर्ण है क्योंकि इस ऋतु में चारों ओर हरियाली रहती है तथा नवीन पत्र-पुष्पों द्वारा प्रकृति का नव श्रृंगार किया जाता है। लोग नववर्ष का स्वागत करने के लिए अपने घर-द्वार सजाते हैं तथा नवीन वस्त्र आभूषण धारण करके ज्योतिषाचार्य द्वारा नूतन वर्ष का संवत्सर फल सुनते हैं। शास्त्रीय मान्यता के अनुसार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा की तिथि के दिन प्रात: काल स्नान आदि के द्वारा शुद्ध होकर हाथ में गंध, अक्षत, पुष्प और जल लेकर ओम भूर्भुव: स्व: संवत्सर- अधिपति आवाहयामि पूजयामि च इस मंत्र से नव संवत्सर की पूजा करनी चाहिए तथा नववर्ष के अशुभ फलों के निवारण हेतु ब्रह्मा जी से प्रार्थना करनी चाहिए कि ‘हे भगवन! आपकी कृपा से मेरा यह वर्ष कल्याणकारी हो और इस संवत्सर के मध्य में आने वाले सभी अनिष्ट और विघ्न शांत हो जाएं।’ नव संवत्सर के दिन नीम के कोमल पत्तों और ऋतुकाल के पुष्पों का चूर्ण बनाकर उसमें काली मिर्च, नमक, हींग, जीरा, मिश्री, इमली और अजवायन मिलाकर खाने से रक्त विकार आदि शारीरिक रोग शांत रहते हैं और पूरे वर्ष स्वास्थ्य ठीक रहता है।
🚩राष्ट्रीय संवत🚩
भारतवर्ष में इस समय देशी विदेशी मूल के अनेक संवतों का प्रचलन है किंतु भारत के सांस्कृतिक इतिहास की द्दष्टि से सर्वाधिक लोकप्रिय राष्ट्रीय संवत यदि कोई है तो वह विक्रम संवत ही है। आज से लगभग 2,068 वर्ष यानी 57 ईसा पूर्व में भारतवर्ष के प्रतापी राजा विक्रमादित्य ने देशवासियों को शकों के अत्याचारी शासन से मुक्त किया था। उसी विजय की स्मृति में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा की तिथि से विक्रम संवत का भी आरम्भ हुआ था। प्राचीनकाल में नया संवत चलाने से पहले विजयी राजा को अपने राज्य में रहने वाले सभी लोगों को ऋण-मुक्त करना आवश्यक होता था। राजा विक्रमादित्य ने भी इसी परम्परा का पालन करते हुए अपने राज्य में रहने वाले सभी नागरिकों का राज्यकोष से कर्ज़ चुकाया और उसके बाद चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से मालवगण के नाम से नया संवत चलाया। भारतीय कालगणना के अनुसार वसंत ऋतु और चैत्र शुक्ल प्रतिपदा की तिथि अति प्राचीनकाल से सृष्टि प्रक्रिया की भी पुण्य तिथि रही है। वसंत ऋतु में आने वाले वासंतिक नवरात्र का प्रारम्भ भी सदा इसी पुण्यतिथि से होता है। विक्रमादित्य ने भारत राष्ट्र की इन तमाम कालगणनापरक सांस्कृतिक परम्पराओं को ध्यान में रखते हुए ही चैत्र शुक्ल प्रतिपदा की तिथि से ही अपने नवसंवत्सर संवत को चलाने की परम्परा शुरू की थी और तभी से समूचा भारत राष्ट्र इस पुण्य तिथि का प्रतिवर्ष अभिवंदन करता है। दरअसल, भारतीय परम्परा में चक्रवर्ती राजा विक्रमादित्य शौर्य, पराक्रम तथा प्रजाहितैषी कार्यों के लिए प्रसिद्ध माने जाते हैं। उन्होंने 95 शक राजाओं को पराजित करके भारत को विदेशी राजाओं की दासता से मुक्त किया था। राजा विक्रमादित्य के पास एक ऐसी शक्तिशाली विशाल सेना थी जिससे विदेशी आक्रमणकारी सदा भयभीत रहते थे। ज्ञान-विज्ञान, साहित्य, कला संस्कृति को विक्रमादित्य ने विशेष प्रोत्साहन दिया था। धंवंतरि जैसे महान वैद्य, वराहमिहिर जैसे महान ज्योतिषी और कालिदास जैसे महान साहित्यकार विक्रमादित्य की राज्यसभा के नवरत्नों में शोभा पाते थे। प्रजावत्सल नीतियों के फलस्वरूप ही विक्रमादित्य ने अपने राज्यकोष से धन देकर दीन दु:खियों को साहूकारों के कर्ज़ से मुक्त किया था। एक चक्रवर्ती सम्राट होने के बाद भी विक्रमादित्य राजसी ऐश्वर्य भोग को त्यागकर भूमि पर शयन करते थे। वे अपने सुख के लिए राज्यकोष से धन नहीं लेते थे।
राष्ट्र की सांस्कृतिक पहचान
पिछले दो हज़ार वर्षों में अनेक देशी और विदेशी राजाओं ने अपनी साम्राज्यवादी आकांक्षाओं की तुष्टि करने तथा इस देश को राजनीतिक द्दष्टि से पराधीन बनाने के प्रयोजन से अनेक संवतों को चलाया किंतु भारत राष्ट्र की सांस्कृतिक पहचान केवल विक्रमी संवत के साथ ही जुड़ी रही। अंग्रेज़ी शिक्षा-दीक्षा और पश्चिमी संस्कृति के प्रभाव के कारण आज भले ही सर्वत्र ईस्वी संवत का बोलबाला हो और भारतीय तिथि-मासों की काल गणना से लोग अनभिज्ञ होते जा रहे हों परंतु वास्तविकता यह भी है कि देश के सांस्कृतिक पर्व-उत्सव तथा राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर, गुरु नानक आदि महापुरुषों की जयंतियाँ आज भी भारतीय काल गणना के हिसाब से ही मनाई जाती हैं, ईस्वी संवत के अनुसार नहीं। विवाह-मुण्डन का शुभ मुहूर्त हो या श्राद्ध-तर्पण आदि सामाजिक कार्यों का अनुष्ठान, ये सब भारतीय पंचांग पद्धति के अनुसार ही किया जाता है, ईस्वी सन् की तिथियों के अनुसार नहीं।
🚩🚩🚩ॐ🚩🚩🚩
आप सभी को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं,आने वाले नववर्ष की नई किरण आप के जीवन में स्वर्णिम संदेश लाये ।
🚩 #चैत्र मास की #शुक्ल #प्रतिपदा को गुड़ी पड़वा या वर्ष प्रतिपदा या उगादि (युगादि) कहा जाता है। इस दिन #हिन्दू #नववर्ष का आरम्भ होता है। ‘गुड़ी’ का अर्थ ‘#विजय #पताका’ होता है।
🚩 #इतिहास में इस प्रकार वर्णित है #चैत्री #वर्ष #प्रतिपदा…
1- #ब्रह्मा द्वारा सृष्टि की सृजन…
2- मर्यादा #पुरुषोत्तम #श्रीराम का राज्याभिषेक…
3- #माँ दुर्गा के #नवरात्र व्रत का शुभारम्भ…
4 प्रारम्भयुगाब्द (युधिष्ठिर संवत्) का आरम्भ..
5 उज्जैनी सम्राट #विक्रमादित्य द्वारा #विक्रमी संवत्प्रारम्भ..
6 शालिवाहन शक संवत् (भारत सरकार का राष्ट्रीय पंचांग)महर्षि #दयानन्द जी द्वारा आर्य समाज का स्थापना दिवस..
7 भगवान #झूलेलाल का अवतरण दिन..
8 #मत्स्यावतार दिवस..
9 – गुरु अंगद देव अवतरण दिवस..
10 – डॉ॰केशवराव बलिरामराव हेडगेवार जन्मदिन ।
🚩#नूतन वर्ष का प्रारम्भ आनंद-उल्लासमय हो इस हेतु प्रकृति माता भी सुंदर भूमिका बना देती है…!!!
🚩इसी दिन #ब्रह्माजी ने सृष्टि का निर्माण किया था। इसी दिन से नया संवत्सर शुरू होता है।
🚩चैत्र ही एक ऐसा महीना है, जिसमें वृक्ष तथा लताएँ पल्लवित व पुष्पित होती हैं।
🚩शुक्ल प्रतिपदा का दिन #चंद्रमा की कला का प्रथम दिवस माना जाता है। ‘उगादि‘ के दिन ही पंचांग तैयार होता है।
🚩महान गणितज्ञ भास्कराचार्य ने इसी दिन से सूर्योदय से #सूर्यास्त तक…दिन, महीना और वर्ष की गणना करते हुए ‘#पंचांग ‘ की रचना की थी ।
🚩वर्ष के साढ़े तीन मुहूर्तों में #गुड़ीपड़वा की गिनती होती है। इसी दिन भगवान #राम ने बाली के अत्याचारी शासन से प्रजा को मुक्ति दिलाई थी।
🚩#नव वर्ष का प्रारंभ प्रतिपदा से ही क्यों…???
🚩#भारतीय #नववर्ष का प्रारंभ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से ही माना जाता है और इसी दिन से #ग्रहों, #वारों, #मासों और संवत्सरों का प्रारंभ गणितीय और खगोल शास्त्रीय संगणना के अनुसार माना जाता है।
🚩आज भी जनमानस से जुड़ी हुई यही शास्त्रसम्मत कालगणना व्यावहारिकता की कसौटी पर खरी उतरी है। इसे राष्ट्रीय गौरवशाली परंपरा का प्रतीक माना जाता है।
🚩#विक्रमी संवत किसी संकुचित विचारधारा या पंथाश्रित नहीं है। हम इसको पंथ निरपेक्ष रूप में देखते हैं। यह संवत्सर किसी #देवी, #देवता या महान पुरुष के जन्म पर आधारित नहीं, ईस्वी या हिजरी सन की तरह किसी जाति अथवा संप्रदाय विशेष का नहीं है।
🚩हमारी गौरवशाली परंपरा विशुद्ध अर्थो में प्रकृति के शास्त्रीय सिद्धातों पर आधारित है और भारतीय कालगणना का आधार पूर्णतया पंथ निरपेक्ष है।
🚩प्रतिपदा का यह शुभ दिन भारत राष्ट्र की गौरवशाली परंपरा का प्रतीक है। ब्रह्म पुराण के अनुसार चैत्रमास के प्रथम दिन ही ब्रह्मा ने सृष्टि संरचना प्रारंभ की। यह भारतीयों की मान्यता है, इसीलिए हम #चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से नववर्षारंभ मानते हैं।
🚩आज भी हमारे देश में प्रकृति, शिक्षा तथा राजकीय कोष आदि के चालन-संचालन में मार्च, अप्रैल के रूप में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ही देखते हैं। यह समय दो ऋतुओं का संधिकाल है। प्रतीत होता है कि प्रकृति नवपल्लव धारण कर नव संरचना के लिए ऊर्जस्वित होती है। मानव, पशु-पक्षी यहां तक कि जड़-चेतन प्रकृति भी प्रमाद और आलस्य को त्याग सचेतन हो जाती है।
🚩इसी प्रतिपदा के दिन आज से #उज्जैनी #नरेश महाराज विक्रमादित्य ने विदेशी आक्रांत शकों से भारत-भू का रक्षण किया और इसी दिन से काल गणना प्रारंभ की। उपकृत राष्ट्र ने भी उन्हीं महाराज के नाम से विक्रमी संवत कह कर पुकारा।
🚩महाराज विक्रमादित्य ने आज से राष्ट्र को सुसंगठित कर शकों की शक्ति का उन्मूलन कर देश से भगा दिया और उनके ही मूल स्थान अरब में विजयश्री प्राप्त की। साथ ही यवन, हूण, तुषार, पारसिक तथा कंबोज देशों पर अपनी विजय ध्वजा फहराई। उसी के स्मृति स्वरूप यह प्रतिपदा संवत्सर के रूप में मनाई जाती थी ।
🚩महाराजा विक्रमादित्य ने भारत की ही नहीं, अपितु समस्त विश्व की सृष्टि की। सबसे प्राचीन कालगणना के आधार पर ही प्रतिपदा के दिन को विक्रमी संवत के रूप में अभिषिक्त किया। इसी दिन को मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान रामचंद्र के राज्याभिषेक अथवा रोहण के रूप में मनाया गया।
🚩यह दिन ही वास्तव में असत्य पर सत्य की विजय दिलाने वाला है। इसी दिन महाराज युधिष्ठर का भी राज्याभिषेक हुआ और महाराजा विक्रमादित्य ने भी शकों पर विजय के उत्सव के रूप में मनाया।
🚩आज भी यह दिन हमारे सामाजिक और धर्मिक कार्यों के अनुष्ठान की धुरी के रूप में तिथि बनाकर मान्यता प्राप्त कर चुका है। यह राष्ट्रीय स्वाभिमान और सांस्कृतिक धरोहर को बचाने वाला पुण्य दिवस है। हम प्रतिपदा से प्रारंभ कर नौ दिन में शक्ति संचय करते हैं।
🚩कैसे मनाये नूतन वर्ष…???
🚩1- मस्तक पर तिलक, भगवान सूर्यनारायण को अर्घ्य , शंखध्वनि, धार्मिक स्थलों पर, घर, गाँव, स्कूल, कालेज आदि सभी मुख्य प्रवेश द्वारों पर बंदनवार या तोरण (अशोक, आम, पीपल, नीम आदि का) बाँध के भगवा ध्वजा फेराकर सामूहिक भजन-संकीर्तन व प्रभातफेरी का आयोजन करके भारतीय नववर्ष का स्वागत करें ।
🚩तो देखा आपने कितनी महान है हमारी भारतीय संस्कृति…!!!
🚩तो अब से सभी भारतीय संकल्प ले कि अंग्रेजो द्वारा चलाया गया एक जनवरी को नववर्ष न मनाकर अपना महान हिन्दू धर्म वाला नववर्ष मनायेंगें।
जाति वाद का फल ★मुहम्मद अली जिन्नाह के दादा का नाम मेघजी प्रेम जी ठक्कर था। वे लोहाना राजपूत थे। मुहम्मद अली जिन्नाह के पिता का असली नाम पूंजा लाल ठक्कर था। उनका गांव तत्कालीन Gondal State का Moti Paneli गांव था। आज यह गांव गुजरात के राजकोट जिले में पड़ता है। लोहाना एक सिद्धांतवादी, शाकाहारी Caste होती है। लेकिन पूंजा लाल ठक्कर ने अपने जात के नीति नियमो के विरुद्ध जाकर जूनागढ़ के वेरावल में मछली के व्यापार को अपनाया था। इससे लोहाना पंडितो ने जिन्नाह के पिता पूंजा लाल को धर्म से बाहर निकाल दिया था। बाद में पूंजा लाल ने अपने पंडितो और बड़े बुजुर्गों को काफी मनाया की वे उन्हें वापिस धर्म में शामिल कर ले लेकिन उन लोगो ने जिन्नाह के पिताजी को वापिस धर्म में नही लिया। इससे गुस्साए पूंजा लाल ठक्कर ने इस्लाम अपना लिया।
★ जिन्नाह के पिता पूंजा लाल को लोग ज़िणो कहते थे। काठियावाड़ी भाषा में #ज़िणो शब्द का अर्थ दुबला पतला होता है। क्योंकि जिन्नाह के पिता काफी दुबले पतले थे , खुद मुहम्मद अली जिन्नाह भी काफी दुबले पतले थे। बाद में अपने पिता के Nickname को ही मुहम्मद अली जिन्नाह ने अपनी Surname बनाया। मुहम्मद अली जिन्नाह Second Generation Converted Muslim थे इस कारण से न वे ढंग से उर्दू तक बोल नही पाते थे क्योंकि उनकी मातृभाषा #गुजराती थी और न ही उनको इस्लामिक रीति रिवाजों का कोई ज्ञान था। वे खुद को शिया बताते थे लेकिन सुन्नी नमाज़ पढ़ते थे। वे दारू पीते थे,
मोहम्मद बिन कासिम के आक्रमण से एक चौथाई सदी बीत चुकी थी। तोड़े गए मन्दिरों, मठों और चैत्यों के ध्वंसावशेष अब टीले का रूप ले चुके थे, और उनमे उपजे वन में विषैले जीवोँ का आवास था। कासिम ने अपने अभियान में युवा आयु वाले एक भी व्यक्ति को जीवित नही छोड़ा था, अस्तु अब इस क्षेत्र में हिन्दू प्रजा अत्यल्प ही थी। एक बालक जो कासिम के अभियान के समय मात्र “आठ वर्ष” का था, वह इस कथा का मुख्य पात्र है। उसका नाम था “तक्षक”।
तक्षक के पिता सिंधु पुन दाहिर के सैनिक थे जो इसी कासिम की सेना के साथ हुए युद्ध में वीरगति पा चुके थे। लूटती अरब सेना जब तक्षक के गांव में पहुची तो हाहाकार मच गया। स्त्रियों को घरों से “खींच खींच” कर उनकी देह लूटी जाने लगी। भय से आक्रांत तक्षक के घर में भी सब चिल्ला उठे। तक्षक और उसकी दो बहनें “भय” से कांप उठी थीं। तक्षक की माँ पूरी परिस्थिति समझ चुकी थी, उसने कुछ देर तक अपने बच्चों को देखा और जैसे एक निर्णय पर पहुच गयी। माँ ने अपने तीनों बच्चों को खींच कर छाती में चिपका लिया और रो पड़ी। फिर देखते देखते उस क्षत्राणी ने म्यान से तलवार खीचा और अपनी दोनों बेटियों का “सर” काट डाला। उसके बाद बेटे की ओर अंतिम दृष्टि डाली और तलवार को अपनी “छाती” में उतार लिया।
आठ वर्ष का बालक एकाएक समय को पढ़ना सीख गया था, उसने भूमि पर पड़ी मृत माँ के आँचल से अंतिम बार अपनी आँखे पोंछी, और घर के पिछले द्वार से निकल कर खेतों से होकर जंगल में भागा। पचीस वर्ष बीत गए, तब का अष्टवर्षीय तक्षक अब बत्तीस वर्ष का पुरुष हो कर कन्नौज के प्रतापी शासक नागभट्ट द्वितीय का मुख्य अंगरक्षक था। वर्षों से किसी ने उसके चेहरे पर भावना का कोई चिन्ह नही देखा था। वह न कभी खुश होता था न कभी दुखी, उसकी आँखे सदैव अंगारे की तरह लाल रहती थीं।
उसके पराक्रम के किस्से पूरी सेना में सुने सुनाये जाते थे। अपनी तलवार के एक वार से हाथी को मार डालने वाला तक्षक सैनिकों के लिए आदर्श था। कन्नौज नरेश नागभट्ट अपने अतुल्य पराक्रम, विशाल सैन्यशक्ति और अरबों के सफल प्रतिरोध के लिए ख्यात थे। सिंध पर शासन कर रहे “अरब” कई बार कन्नौज पर आक्रमण कर चुके थे, पर हर बार योद्धा राजपूत उन्हें खदेड़ देते।
युद्ध के “सनातन नियमों” का पालन करते नागभट्ट कभी उनका “पीछा” नहीं करते, जिसके कारण बार बार वे मजबूत हो कर पुनः आक्रमण करते थे, ऐसा पंद्रह वर्षों से हो रहा था।
आज महाराज की सभा लगी थी, कुछ ही समय पुर्व गुप्तचर ने सुचना दी थी, कि अरब के खलीफा से सहयोग ले कर सिंध की विशाल सेना कन्नौज पर आक्रमण के लिए प्रस्थान कर चुकी है और संभवत: दो से तीन दिन के अंदर यह सेना कन्नौज की “सीमा” पर होगी। इसी सम्बंध में रणनीति बनाने के लिए महाराज नागभट्ट ने यह सभा बैठाई थी।
नागभट्ट का सबसे बड़ा गुण यह था, कि वे अपने सभी “सेनानायकों” का विचार लेकर ही कोई निर्णय करते थे। आज भी इस सभा में सभी सेनानायक अपना विचार रख रहे थे। अंत में तक्षक उठ खड़ा हुआ और बोला “महाराज, हमे इस बार वैरी को उसी की शैली में उत्तर देना होगा” महाराज ने ध्यान से देखा अपने इस अंगरक्षक की ओर, बोले अपनी बात खुल कर कहो तक्षक, हम कुछ समझ नही पा रहे।
तक्षक: महाराज, अरब सैनिक महा बर्बर हैं, उनके सतक्षकाथ सनातन नियमों के अनुरूप युद्ध कर के हम अपनी प्रजा के साथ “घात” ही करेंगे। उनको उन्ही की शैली में हराना होगा।
महाराज के माथे पर लकीरें उभर आयीं, बोले- “किन्तु हम धर्म और मर्यादा नही छोड़ सकते सैनिक”।
तक्षक ने कहा “मर्यादा का निर्वाह उसके साथ किया जाता है जो मर्यादा का अर्थ समझते हों, ये बर्बर धर्मोन्मत्त राक्षस हैं महाराज, इनके लिए हत्या और बलात्कार ही धर्म है। पर यह हमारा धर्म नही हैं, राजा का केवल एक ही धर्म होता है महाराज, और वह है प्रजा की रक्षा।
देवल और मुल्तान का युद्ध याद करें महाराज, जब कासिम की सेना ने दाहिर को पराजित करने के पश्चात प्रजा पर कितना “अत्याचार” किया था।
ईश्वर न करे, यदि हम पराजित हुए तो बर्बर अत्याचारी अरब हमारी स्त्रियों, बच्चों और निरीह प्रजा के साथ कैसा व्यवहार करेंगे, यह महाराज जानते हैं।”
महाराज ने एक बार पूरी सभा की ओर निहारा, सबका मौन तक्षक के तर्कों से सहमत दिख रहा था। महाराज अपने मुख्य सेनापतियों मंत्रियों और तक्षक के साथ गुप्त सभाकक्ष की ओर बढ़ गए। अगले दिवस की संध्या तक कन्नौज की पश्चिम सीमा पर दोनों सेनाओं का पड़ाव हो चूका था, और आशा थी कि अगला प्रभात एक भीषण युद्ध का साक्षी होगा।
आधी रात्रि बीत चुकी थी। अरब सेना अपने शिविर में निश्चिन्त सो रही थी। अचानक तक्षक के संचालन में कन्नौज की एक चौथाई सेना अरब शिविर पर टूट पड़ी।
अरबों को किसी हिन्दू शासक से रात्रि युद्ध की आशा न थी। वे उठते,सावधान होते और हथियार सँभालते इसके पुर्व ही आधे अरब गाजर मूली की तरह काट डाले गए। इस भयावह निशा में तक्षक का शौर्य अपनी पराकाष्ठा पर था। वह अपनी तलवार चलाते जिधर निकल पड़ता उधर की भूमि शवों से पट जाती थी। उषा की प्रथम किरण से पुर्व अरबों की दो तिहाई सेना मारी जा चुकी थी। सुबह होते ही बची सेना पीछे भागी, किन्तु आश्चर्य! महाराज नागभट्ट अपनी शेष सेना के साथ उधर तैयार खड़े थे। दोपहर होते होते समूची अरब सेना काट डाली गयी। अपनी बर्बरता के बल पर विश्वविजय का स्वप्न देखने वाले आतंकियों को पहली बार किसी ने ऐसा उत्तर दिया था।
विजय के बाद महाराज ने अपने सभी सेनानायकों की ओर देखा, उनमे तक्षक का कहीं पता नही था। सैनिकों ने युद्धभूमि में तक्षक की खोज प्रारंभ की तो देखा- लगभग हजार अरब सैनिकों के शव के बीच तक्षक की मृत देह दमक रही थी। उसे शीघ्र उठा कर महाराज के पास लाया गया। कुछ क्षण तक इस अद्भुत योद्धा की ओर चुपचाप देखने के पश्चात महाराज नागभट्ट आगे बढ़े और तक्षक के चरणों में अपनी तलवार रख कर उसकी मृत देह को प्रणाम किया।
युद्ध के पश्चात युद्धभूमि में पसरी नीरवता में भारत का वह महान सम्राट गरज उठा-
“आप आर्यावर्त की वीरता के शिखर थे तक्षक…. भारत ने अब तक मातृभूमि की रक्षा में प्राण न्योछावर करना सीखा था, आप ने मातृभूमि के लिए प्राण लेना सिखा दिया। भारत युगों युगों तक आपका आभारी रहेगा।”
इतिहास साक्षी है, इस युद्ध के बाद अगले तीन शताब्दियों तक अरबों में भारत की तरफ आँख उठा कर देखने की हिम्मत नही हुई।
इसिलिये है
मेरा भारत महान
मित्रों वंदेमातरम
दोस्तो, मुहम्मद गजनवी नेँ भारत पर कई हमले किये थे। और गुजरात के सोमनाथ मन्दिर पर उसके हमले काफी कुख्यात है। परन्तु शहर ‘गजनी’ एक हिन्दू राजा “गज सिँह” का बसाया हुआ है। तवारीख-ए-जैसलमेर के पृष्ठ संख्या 9,10 का
एक दोहा बड़ा प्रसिद्ध है-
तीन सत्त अतसक धरम, वैशाखे सित तीन।
रवि रोहिणि गजबाहु नै गजनी रची नवीन।।
यानि गजबाहु नेँ युधिष्ठिर संवत् 308 मेँ गजनी शहर को बसाया था।
प्रसिद्ध अरबी इतिहासकार याकूबी के अनुसार नवीँ शती मेँ भारत की सीमायेँ ईरान तक थी। 712-13 ई॰ मेँ सिँध पर मुसलमानो का अधिकार हो गया पर हिन्दुओँ ने उन्हे चैन से बैठने दिया और ये अधिकार अधूरा ही रहा। लेकिन सिँध की विजय से उत्साहित होकर बुखारा बगदाद के खलीफा बलदीन नेँ अपने गुलाम सेनापति यदीद खाँ को मेवाड़ राजस्थान पर बड़ी विजय के लिए भेजा। उस समय चित्तौड़गढ़ का शासक वीरमान सिँह था और उनके सेनानायक थे ‘बप्पा रावल’ जो खुद उनके भांजे थे। उन्होनेँ आगे बढ़कर यदीद खाँ की सेना का सामना किया, चित्तौड़गढ़ की सहायता मेँ अजमेर, गुजरात, सौराष्ट्र की राजपूत सेनायेँ भी आ गयी।
बड़ा भयानक युद्ध हुआ, हाथी धोड़ो की लाशो के ढेर लग गये, राजपूतोँ की तलवारेँ उन विधर्मियोँ को ऐसे काट रही थी जैसे किसान अपनी फसल बचाने को खर-पतवार काटता है। एक तरफ यदि इस्लामी जेहादी जुनून था तो दूसरी तरफ राष्ट्रधर्म रक्षा की भावना, एक तरफ हवस और लूटपाट थी तो दूसरी तरफ मातृभूमि का रक्षा का संकल्प। अतः युद्ध बप्पा को विजय मिली। बप्पा रावल केवल एक अजेय योद्धा ही नही दूरदर्शी राजनैतिज्ञ भी था। उसने भाग रहे दुश्मनोँ का पीछा किया और उन्हेँ गजनी मेँ जा घेरा। गजनी को वो अपने पूर्वजो की विरासत मानता था। उस समय गजनी का शासक शाह सलीम था, उसने बड़ी सेना के बप्पा से मुकाबला किया लेकिन बप्पा के सामने टिक न सका। जान बचाने के वास्ते अपनी बेटी की शादी बप्पा से करदी। गजनी के सिँहासन पर बैठकर बप्पा ने ईराक, ईरान तक भगवा फहराया, जिसकी पुष्टि अबुल फजल ने भी की है। प्रसिद्ध अग्रेँज इतिहासकार कर्नल.टाड के अनुसार बप्पा ने कई अरबी युवतियोँ से विवाह करके 32 सन्तानेँ पैदा जो आज अरब मेँ नौशेरा पठान के नाम से जाने जाते हैँ।
अफसोस की बात है दोस्तो कि आजादी के बाद सेक्युलरिज्म के नाम हमारे
सच्चे इतिहास को दबा दिया गया।
दोस्तो, मुहम्मद गजनवी नेँ भारत पर कई हमले किये थे। और गुजरात के सोमनाथ मन्दिर पर उसके हमले काफी कुख्यात है। परन्तु शहर ‘गजनी’ एक हिन्दू राजा “गज सिँह” का बसाया हुआ है। तवारीख-ए-जैसलमेर के पृष्ठ संख्या 9,10 का
एक दोहा बड़ा प्रसिद्ध है-
तीन सत्त अतसक धरम, वैशाखे सित तीन।
रवि रोहिणि गजबाहु नै गजनी रची नवीन।।
यानि गजबाहु नेँ युधिष्ठिर संवत् 308 मेँ गजनी शहर को बसाया था।
प्रसिद्ध अरबी इतिहासकार याकूबी के अनुसार नवीँ शती मेँ भारत की सीमायेँ ईरान तक थी। 712-13 ई॰ मेँ सिँध पर मुसलमानो का अधिकार हो गया पर हिन्दुओँ ने उन्हे चैन से बैठने दिया और ये अधिकार अधूरा ही रहा। लेकिन सिँध की विजय से उत्साहित होकर बुखारा बगदाद के खलीफा बलदीन नेँ अपने गुलाम सेनापति यदीद खाँ को मेवाड़ राजस्थान पर बड़ी विजय के लिए भेजा। उस समय चित्तौड़गढ़ का शासक वीरमान सिँह था और उनके सेनानायक थे ‘बप्पा रावल’ जो खुद उनके भांजे थे। उन्होनेँ आगे बढ़कर यदीद खाँ की सेना का सामना किया, चित्तौड़गढ़ की सहायता मेँ अजमेर, गुजरात, सौराष्ट्र की राजपूत सेनायेँ भी आ गयी।
बड़ा भयानक युद्ध हुआ, हाथी धोड़ो की लाशो के ढेर लग गये, राजपूतोँ की तलवारेँ उन विधर्मियोँ को ऐसे काट रही थी जैसे किसान अपनी फसल बचाने को खर-पतवार काटता है। एक तरफ यदि इस्लामी जेहादी जुनून था तो दूसरी तरफ राष्ट्रधर्म रक्षा की भावना, एक तरफ हवस और लूटपाट थी तो दूसरी तरफ मातृभूमि का रक्षा का संकल्प। अतः युद्ध बप्पा को विजय मिली। बप्पा रावल केवल एक अजेय योद्धा ही नही दूरदर्शी राजनैतिज्ञ भी था। उसने भाग रहे दुश्मनोँ का पीछा किया और उन्हेँ गजनी मेँ जा घेरा। गजनी को वो अपने पूर्वजो की विरासत मानता था। उस समय गजनी का शासक शाह सलीम था, उसने बड़ी सेना के बप्पा से मुकाबला किया लेकिन बप्पा के सामने टिक न सका। जान बचाने के वास्ते अपनी बेटी की शादी बप्पा से करदी। गजनी के सिँहासन पर बैठकर बप्पा ने ईराक, ईरान तक भगवा फहराया, जिसकी पुष्टि अबुल फजल ने भी की है। प्रसिद्ध अग्रेँज इतिहासकार कर्नल.टाड के अनुसार बप्पा ने कई अरबी युवतियोँ से विवाह करके 32 सन्तानेँ पैदा जो आज अरब मेँ नौशेरा पठान के नाम से जाने जाते हैँ।
अफसोस की बात है दोस्तो कि आजादी के बाद सेक्युलरिज्म के नाम हमारे
सच्चे इतिहास को दबा दिया गया।
🚩कत्लखाने बन्द होने पर करोड़ो का होगा नुकसान, बोलने वाली मीडिया पढ़े #सुप्रीम कोर्ट का ऑर्डर…
देखिये वीडियो
🚩योगी #आदित्यनाथ ने यूपी के मुख्यममंत्री बनने के बाद कई कत्लखाने बन्द करवा दिए पर इस कार्य की सराहना करने की बजाय मीडिया की सुर्खियों में कुछ नया विवाद ही देखने को मिल रहा है। जैसे कि कत्लखाने बंद होने से करोड़ों का नुकसान होगा, कई लोग #बेरोजगार हो जाएंगे आदि ।
🚩लेकिन ऐसा ही मामला #स्वर्गीय श्री राजीव दीक्षित सुप्रीम कोर्ट में लेकर गए थे ।
आइये जानते है क्या कहा था राजीव दीक्षित ने और क्या था सुप्रीम कोर्ट का आर्डर !!
🚩राजीव दीक्षित ने सुप्रीम कोर्ट के मुकदमें मे कसाईयों द्वारा गाय काटने के लिए वही सारे कुतर्क रखे जो कभी शरद पवार द्वारा बोले गए या इस देश के ज्यादा पढ़ें लिखे लोगों द्वारा बोले जाते हैं या देश के पहले प्रधानमंत्री नेहरू द्वारा कहे गए थे और आज जो मीडिया द्वारा कहे जा रहे हैं ।
#कसाईयो के कुतर्क
🚩1) गाय जब बूढ़ी हो जाती है तो बचाने मे कोई लाभ नहीं उसे कत्ल करके बेचना ही बढ़िया है
और हम भारत की अर्थ व्यवस्था को मजबूत बना रहे हैं क्योंकि गाय का मांस एक्सपोर्ट कर रहे हैं ।
🚩2) भारत में गाय के चारे की कमी है । वह भूखी मरे इससे अच्छा ये है कि हम उसका कत्ल करके बेचें ।
🚩3) भारत में लोगो को रहने के लिए जमीन नहीं है गाय को कहाँ रखें ?
🚩4 ) इससे विदेशी मुद्रा मिलती है और सबसे खतरनाक कुतर्क जो कसाइयों की तरफ से दिया गया है कि गाय की हत्या करना हमारे इस्लाम धर्म में लिखा हुआ है कि हम गायों की हत्या करें (this is our religious right )
🚩श्री राजीव दीक्षित की तरफ से बिना क्रोध प्रकट किए बहुत ही धैर्य से इन सब कुतर्को का तर्कपूर्वक जवाब दिया गया।
🚩उनका पहला कुतर्क गाय का मांस बेचते हैं तो आमदनी होती है देश को ।
🚩 राजीव भाई ने सारे आंकड़े सुप्रीम कोर्ट में रखे कि एक गाय को जब काट देते हैं तो उसके शरीर में से कितना मांस निकलता है?
कितना खून निकलता है??
कितनी हड्डियाँ निकलती हैं ??
🚩एक स्वस्थ्य गाय का वजन कमसे कम 3 से साढ़े तीन कवींटल होता है उसे जब काटे तो उसमे से मात्र 70 किलो मांस निकलता है एक किलो गाय का मांस जब भारत से एक्सपोर्ट (Export )होता है तो उसकी कीमत है लगभग 50 रुपए ! तो 70 किलो का 50 से गुना को ! 70 x 50 = 3500 रुपए !
🚩खून जो निकलता है वो लगभग 25 लीटर होता है ! जिससे कुल कमाई 1500 से 2000 रुपए होती है !
🚩फिर #हड्डियाँ निकलती है वो भी 30-35 किलो हैं ! जो 1000 -1200 के लगभग बिक जाती है !!
🚩तो कुल मिलकर एक गाय का जब कत्ल करें और मांस ,हड्डियाँ खून समेत बेचें तो सरकार को या कत्ल करने वाले कसाई को 7000 रुपए से ज्यादा नहीं मिलता !!
🚩फिर राजीव भाई द्वारा कोर्ट के सामने उल्टी बात रखी गई कि यदि गाय को कत्ल न करें तो क्या मिलता है ? हमने कत्ल किया तो 7000 मिलेगा और अगर इसको जिंदा रखे तो कितना मिलेगा ?
🚩तो उसका कैलकुलेशन (Calculation) ये है !!
🚩एक गाय एक दिन मे 10 किलो #गोबर देती है और ढाई से 3 लीटर #मूत्र देती है । गाय के एक किलो गोबर से 33 किलो Fertilizer (खाद ) बनती है ।जिसे organic खाद कहते हैं तो कोर्ट के जज ने कहा how it is possible ??
🚩राजीव भाई द्वारा कहा गया कि आप हमें समय और स्थान दीजिये हम आपको यही सिद्ध करके बताते हैं ।
कोर्ट ने आज्ञा दी तो राजीव भाई ने उनको पूरा करके दिखाया और कोर्ट से कहा कि आई. आर. सी. के वैज्ञानिक को बुला लो और टेस्ट करा लो । जब गाय का गोबर कोर्ट ने भेजा टेस्ट करने के लिए तो वैज्ञानिकों ने कहा कि इसमें 18 micronutrients (पोषक तत्व ) हैं। जो सभी खेत की मिट्टी को चाहिए जैसे मैगनीज है ! फोस्फोरस है ! पोटाशियम है, कैल्शियम,आयरन, #कोबाल्ट, सिलिकोन ,आदि आदि । रासायनिक खाद में मुश्किल से तीन होते हैं । तो गाय का खाद #रासायनिक खाद से 10 गुना ज्यादा ताकतवर है । ये बात कोर्ट को माननी पड़ी !
🚩#राजीव भाई ने कहा अगर आपके र्पोटोकोल के खिलाफ न जाता हो तो आप चलिये हमारे साथ और देखे कहाँ – कहाँ हम 1 किलो #गोबर से 33 किलो खाद बना रहे हैं राजीव भाई ने कहा मेरे अपने गाँव में मैं बनाता हूँ ! मेरे माता पिता दोनों किसान हैं पिछले 15 साल से हम गाय के गोबर से ही खेती करते हैं !
🚩1 किलो गोबर है तो 33 किलो खाद बनता है और 1 किलो खाद का जो #अंतर्राष्ट्रीय बाजार में भाव है वो 6 रुपए है ! तो रोज 10 किलो गोबर से 330 किलो #खाद बनेगी ! जिसे 6 रुपए किलो के हिसाब से बेचें तो 1800 से 2000 रुपए रोज का गाय के गोबर से मिलता है !
🚩और गाय के गोबर देने मे कोई सन्डे (Sunday) नहीं होता Weekly Off नहीं होता ! हर दिन मिलता है ।
साल में कितना?
1800 x 365 = 657000 रुपए साल का !
और गाय की सामान्य उम्र 20 साल है और वो जीवन के अंतिम दिन तक #गोबर देती है ।
तो 1800 गुना 365 गुना 20 कर लो आप !! 1 करोड़ से ऊपर तो मिल जाएगा केवल गोबर से !
🚩अब बात करते हैं #गौ मूत्र की । रोज का 2 – सवा दो लीटर देती है । इसमें सुवर्ण क्षार होता है जो वैज्ञानिकों ने भी सिद्ध करके दिखाया है और इससे औषधियां बनती है
Diabetes Arthritis
Bronkitis, Bronchial Asthma, Tuberculosis, Osteomyelitis ऐसे करके 48 रोगो की #औषधियां बनती हैं और गाय के एक लीटर मूत्र का बाजार में दवा के रूप मे कीमत 500 रुपए है । वो भी भारत के बाजार में, अंतर्राष्ट्रीय बाजार में तो इससे भी ज्यादा है ।
🚩अमेरिका में गौ मूत्र #Patent हैं और अमरीकी सरकार हर साल भारत से गाय का मूत्र Import करती है और उससे कैंसर की Medicine बनाते हैं।diabetes की दवा बनाते हैं और अमेरिका मे गौ मूत्र पर एक दो नहीं तीन patent है । #अमेरिकन market के हिसाब से calculate करें तो 1200 से 1300 रुपए लीटर बैठता है एक लीटर मूत्र, तो गाय के मूत्र से लगभग रोज की 3000 की आमदनी
और एक साल का 3000 x 365 =1095000
और 20 साल का 300 x 365 x 20 = 21900000
इतना तो गाय के #गोबर और #मूत्र से हो गया एक साल का ।
🚩और इसी #गाय के गोबर से एक गैस निकलती है जिसे मैथेन कहते हैं और मैथेन वही गैस है जिससे आप अपने रसोई घर का सिलंडर चला सकते हैं और जरूरत पड़ने पर गाड़ी भी चला सकते हैं ।
जैसे #LPG गैस से गाड़ी चलती है वैसे मैथेन गैस से भी गाड़ी चलती है तो न्यायधीश को विश्वास नहीं हुआ तो #राजीव भाई ने कहा आप अगर आज्ञा दो तो आपकी कार में मेथेन गैस का सिलंडर लगवा देते हैं ।आप चला के देख लो उन्होने आज्ञा दी और राजीव भाई ने लगवा दिया और जज साहब ने 3 महीने गाड़ी चलाई और उन्होने कहा Its #Excellent
🚩क्यूंकि इसका खर्चा आता है मात्र 50 से 60 पैसे किलोमीटर और डीजल से आता है 4 रुपए किलो मीटर ।
मेथेन गैस से गाड़ी चले तो #धुआँ बिलकुल नहीं निकलता । डीजल गैस से चले तो धुआँ ही धुआँ । मेथेन से चलने वाली गाड़ी में शोर बिलकुल नहीं होता और डीजल से चले तो इतना शोर होता है कि कान के पर्दे फट जाएँ तो ये सब जज साहब की समझ में आया ।
🚩तो फिर हम (राजीव भाई ने कहा ) अगर रोज का 10 किलो गोबर इकट्ठा करें तो एक साल में कितनी मेथेन #गैस मिलती है? 20 साल में कितनी मिलेगी और भारत मे 17 करोड़ गाय हैं सबका गोबर एक साथ इकठ्ठा करें और उसका ही इस्तेमाल करे तो 1 #लाख 32 हजार करोड़ की बचत इस देश को होती है ।बिना डीजल ,बिना पट्रोल के हम पूरा ट्रांसपोटेशन इससे चला सकते हैं । अरब देशो से भीख मांगने की जरूरत नहीं और पट्रोल डीजल के लिए #अमेरिका से डालर खरीदने की जरूरत नहीं । अपना रुपया भी मजबूत ।
🚩तो इतने सारे #Calculation जब राजीव भाई ने दिए सुप्रीम कोर्ट में तो जज ने मान लिया कि गाय की हत्या करने से ज्यादा उसको बचाना आर्थिक रूप से लाभकारी है ।
🚩जब कोर्ट की #Opinion आई तो ये मुस्लिम कसाई लोग भड़क गए उनको लगा कि अब केस उनके हाथ से गया क्योंकि उन्होने कहा था कि गाय का कत्ल करो तो 7000 हजार की इन्कम और इधर #राजीव भाई ने सिद्ध कर दिया कत्ल ना करो तो लाखो करोड़ो की इन्कम । और फिर उन्होने ने अपना Trump Card खेला । उन्होंने कहा कि गाय का कत्ल करना हमारा धार्मिक अधिकार है (this is our religious right )
🚩तो राजीव भाई ने कोर्ट में कहा कि अगर ये इनका धार्मिक अधिकार है तो #इतिहास में पता करो कि किस – किस मुस्लिम राजा ने अपने इस धार्मिक अधिकार का प्रयोग किया? तो कोर्ट ने कहा ठीक है एक कमीशन बैठाओ हिस्टोरीयन को बुलाओ और जितने मुस्लिम राजा भारत में हुए, सबकी #History निकालो दस्तावेज़ निकालो और किस किस राजा ने अपने इस धार्मिक अधिकार का पालन किया ?
🚩कोर्ट के आदेश अनुसार पुराने दस्तावेज जब निकाले गए तो उससे पता चला कि भारत में जितने भी मुस्लिम राजा हुए एक ने भी गाय का कत्ल नहीं किया । इसके उल्टा कुछ राजाओ ने गायों के कत्ल के खिलाफ कानून बनाए । उनमे से एक का नाम था बाबर । बाबर ने अपनी पुस्तक बाबर नामा में लिखवाया है कि मेरे मरने के बाद भी गाय के कत्ल का कानून जारी रहना चाहिए । तो उसके पुत्र #हुमायु ने भी उसका पालन किया और उसके बाद जितने मुगल राजा हुए सबने इस कानून का पालन किया Including औरंगजेब ।
🚩फिर दक्षिण भारत में एक राजा था हेदर आली टीपू सुल्तान का बाप । उसने एक कानून बनवाया था कि अगर कोई गाय की हत्या करेगा तो हैदर उसकी गर्दन काट देगा और हैदर अली ने ऐसे #सैकंडो कसाइयों की गर्दन काटी थी जिन्होंने गाय को काटा था फिर हैदर अली का बेटा आया टीपू सुलतान तो उसने इस कानून को थोड़ा हल्का कर दिया तो उसने कानून बना दिया की हाथ काट देना ।
तो टीपू सुलतान के समय में कोई भी अगर गाय काटता था तो उसका हाथ #काट दिया जाता था |
🚩तो ये जब दस्तावेज जब कोर्ट के सामने आए तो राजीव भाई ने जज #साहब से कहा कि आप जरा बताइये अगर इस्लाम में गाय को कत्ल करना धार्मिक अधिकार होता तो बाबर तो कट्टर इस्लामी था 5 वक्त की नमाज पढ़ता था हिमायु और #औरंगजेब तो सबसे ज्यादा कट्टर थे तो इन्होंने क्यों नहीं गाय का कत्ल करवाया ??
क्यों गाय का #कत्ल रोकने के लिए कानून बनवाए ?? क्यों हेदर अली ने कहा कि वो गाय का कत्ल करने वाले का गर्दन काट देगा ??
🚩तो #राजीव भाई ने कोर्ट से कहा कि आप हमे आज्ञा दें तो हम ये कुरान #शरीफ, #हदीस,आदि जितनी भी पुस्तकें हैं हम ये कोर्ट मे पेश करते हैं और कहाँ लिखा है गाय का कत्ल करो ये जानना चाहतें है ।
इस्लाम की कोई भी धार्मिक पुस्तक में नहीं लिखा है कि गाय का कत्ल करो ।
🚩हदीस में तो लिखा हुआ है कि गाय की #रक्षा करो क्यूंकि वो तुम्हारी रक्षा करती है । पैंगबर मुहमद साहब का #Statement है कि गाय अबोल जानवर है इसलिए उस पर दया करो और एक जगह लिखा है गाय का कत्ल करोगे तो नरक में भी जमीन नहीं मिलेगी।
🚩राजीव भाई ने कोर्ट से कहा अगर कुरान ये कहती है मुहम्मद साहब ये कहते हैं हदीस ये कहती है तो फिर ये #गाय का कत्ल करना धार्मिक अधिकार कब से हुआ??
पूछो इन कसाईयो से ??
तो कसाई बोखला गए और राजीव भाई ने कहा अगर मक्का मदीना में भी कोई किताब हो तो ले आओ उठा के ।
🚩अंत में कोर्ट ने उनको 1 महीने का पर्मिशन दिया कि जाओ और दस्तावेज ढूंढ के लाओ जिसमें लिखा हो गाय का कत्ल करना इस्लाम का मूल अधिकार है । हम मान लेंगे ।
और एक महीने तक भी कोई #दस्तावेज़ नहीं मिला । कोर्ट ने कहा अब हम ज्यादा समय नहीं दे सकते और अंत 26 अक्तूबर 2005 Judgement आ गया और आप चाहें तो Judgement की copy www. supremecourtcaselaw . com पर जाकर Download कर सकते हैं ।
🚩यह 66 पन्ने का #Judgement है सुप्रीम कोर्ट ने एक इतिहास बना दिया और उन्होंने कहा कि गाय को काटना संवैधानिक पाप है धार्मिक पाप है और सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गौ रक्षा करना,सर्वंधन करना देश के प्रत्येक नागरिक का संवैधानिक कर्त्तव्य है । सरकार का तो है ही नागरिकों का भी कर्तव्य है ।
🚩अब तक जो संवैधानिक कर्तव्य थे जैसे , संविधान का पालन करना, #राष्ट्रीय ध्वज ,का सम्मान करना, #क्रांतिकारियों का सम्मान करना, देश की एकता, अखंडता को बनाए रखना आदि आदि अब इसमें गौ की रक्षा करना भी जुड़ गया है ।
🚩#सुप्रीम_कोर्ट ने कहा कि भारत के सभी राज्यों की सरकार की जिम्मेदारी है कि वो गाय का कत्ल अपने अपने राज्य में बंद कराये और किसी राज्य में गाय का कत्ल होता है तो उस राज्य के #मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी है #राज्यपाल की जवाबदारी, चीफ सेकेट्री की जिम्मेदारी है, वो अपना काम पूरा नहीं कर रहे है तो ये राज्यों के लिए #संवैधानिक जवाबदारी है और नागरिको के लिए संवैधानिक कर्त्तव्य है ।
🚩ये तो केवल गाय के गोबर और गौ मूत्र की बात की गई । अगर उसके दूध की बात करे तो कितने करोड़ का आंकड़ा पहुँच जायेगा ।
🚩अब कई तथाकथित मीडिया वाले या सेकुलर बोलेंगे कि हम गाय की बात नही करते है हम भैंस आदि #पशु की बात करते हैं तो भैस के गोबर और मूत्र को खेत में डालने से अधिक धान, सब्जी आदि पैदा किये जाते हैं तो उससे गोबर और #मूत्र से भी पैसा कमा सकते हैं और उसके दूध आदि से भी करोड़ो रूपये कमा सकते हैं और एक #भैंस की कीमत 70,000 से 80,000 गिने तो भी उसके मीट, खून, हड्डियां, चमड़ा आदि बेचने से कई अधिक पैसा होता है ।
🚩मीट खाने से कई #बीमारियां भी होती है और उसका दूध पीने से व्यक्ति स्वस्थ रहता है अतः कत्लखाने बन्द करना ही उचित होगा ।
दरवाजे पे साँकल खड़खड़ाने लगी ..
खड़…खड़ खड़ंंडड
दरवाजे पे पड़ रही साँकल की चोट से सीलन भरी दीवारों से कच्चे हरे रंग की पपड़ी झड़ने लगी ..
और कील पर टँगा उर्दू का काबा बना कैलेंडर भी थरथराने लगा….
अब दरवाजे पर पान भरे मुँह से निकली आवाज ..
रेहाना….
ऐ रेहाना ..
अभी आई और सिलबट्टे पे मसाला पिसती रेहाना ..
हाथ दुपट्टे से पोंछ के दरवाजा खोलने भागी ..
और ..
इतने में बकरी से टकराते और मुर्गी को पैर से बचा कर ..
बकरी की लेंड़ियों पे पैर रख दौड़कर ..
अंदर से साँकल खोल कर बोली ..
“..कि आफत आ गयी है ..
क्या आसमान टूट पड़ा है ..?
जुम्मन फुर्ती से कोने में रखे सींक के मूढे पर बैठ कर धँसा हुआ ..
लंबी- लंबी साँसे ले रहा था …..
रेहाना ..पानी पिला …
रेहाना ,पानी लेकर आई ….
जुम्मन ने मुहँ से पान की पिसी हुई गिलोरी ..
पास में रखे तसले में थूकी और एक साँस में पानी गटक गया ..
फिर गले के हरे गमछे से पसीना पोंछ कर …बोला ..
“…रेहाना ..
अल्लाह का कहर टूट गया ..
पूरी की पूरी कौम ही काफिरी में तब्दील हो गयी ..
लगता है ..
साले खबीस ..
गद्दार ..हैं ..”
रेहाना ..को सब कुछ समझ आ गया था ..
वो अपनी खुशी को बनावटी चिंता में लपेट कर ..बोली
“….क्या हुआ ..
आज तो काउंटिंग थी ..
असलम भाई नहीं जीते क्या ?..”..
अरे तू जीत छोड़ ..
पूरे सूबे के लगभग सब ही हार गए हैं ..
कमल वाले जीत गए हैं ..
हमारी सीट पे हमारी कौम के वोट ज्यादा होने पर भी कमल वाले जीत गए हैं..
हाती वाली भेन जी कह रही थी के मुए अमेत साऐ ने मसीनों में ..
दखलन्दाजी करी हे ..
या अल्लाह यकीन नहीं होता …
इंतिखाब तो संजीदगी से हुए थे ..
अकलेस भाईजान ने ..सारे बंदोबस्त चाक-चोबन्द किए थे …
जुम्मन मियाँ के निकाह तो चार हुए थे पर ..
पेहले वालियों ने कोई बच्चा नहीं जना..
सो तलाकएसुन्ना से तुराह के बाद ..
पीछा छुड़ाया ..
बाद वालियों में तीसरी का इंतकाल हो गया था ..
चौथी रेहाना थी …
जिससे एक लड़के और एक लड़की शबनम थी ..
जिसका निकाह ..
..उसके मौसेरे भाई सईद से हुआ था ..
जो तुनक मिजाज था और आये दिन तलाक की धमकी दिये रहता था ..
इसलिए एतिहातन कुछ दिनों से शबनम मायके में ही थी ….
जुम्मन अब सामान्य होकर भी ..
पेशानी ..पे लकीरे ला के सबको समझा रहे थे ..
देखो अब कमल वाले जीत गए हैं ..
उनकी सरकारे बनेगी ….
तुम लोग सबर करना ..
बिलावजह मत उलझना….
अबी होली आ रही है ..
बर्दाश्त न हो तो घर में रहना ..
फ़सादी दोनों तरफ हे ..
इतने में शबनम आ गयी ..
चिकन बिरयानी ..का थाल लेकर ..
जुम्मन ने ..आँखे तरेर कर कहा ..
सूबे में हमारे तरफदार हार गए हैं ..
और …और
तुम ..दावती खाना ..बना बैठी ..
रेहाना ..ने पानी का टोंटी वाला जग ..रखते हुए जवाब दिया ..
सुबु- सुबु तुम नये कुर्ते पजामे में इतर लगा के चले थे..
तो हम ने सोचा कि जश्न होगा ही ..
कुछ खास बना ले ..
अब हमें भी कोन सा पता था ..
ये खबर आएगी ..
जुम्मन ..सहमत था …..
बाप बेटे थाल के चारों और बैठकर एक ही थाल से बिरयानी खाने में मशगूल हो गए …..
उधर.रसोई में रेहाना ने शबनम को बाहों में भरकर कहा ..
मेरी बच्ची अल्लाह तआला ने हमारी सुन ली अब ..
तुझे तलाक देने के पहले उसे 10 बार सोचना पड़ेगा ..
अब तलाक उल बिद्दत पे रोक लग ही जायेगी ..
उधर आड़ में जाकर शबनम ने बुर्के के अंदर जेब से #कमल_चुनाव_चिन्ह_का_बिल्ला निकाल कर चुम लिया ..
या अल्लाह ..तेरी मेहरबानी ……
गली में बीजेपी के उम्मीदवार के विजयी जुलुस के नगाड़े बज चुके थे …
और भारत माता की जय के नारे में
रेहाना और शबनम भी मन ही मन “#जय” के नारे दोहरा रही थी ..
भारत माता की जय
भारत माता की जय जय ..