Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

स्वामी विवेकानंद के इस संवाद को ध्यान से पढ़ें और दूसरों को भी भेजें।


Vinay Upadhyay

स्वामी विवेकानंद के इस संवाद को ध्यान से पढ़ें और दूसरों को भी भेजें।

मुशीं फैज अली ने स्वामी विवेकानन्द से पूछा :
“स्वामी जी हमें बताया गया है कि अल्लहा एक ही है।
यदि वह एक ही है, तो फिर संसार उसी ने बनाया होगा ?

“स्वामी जी बोले, “सत्य है।”.

मुशी जी बोले ,”तो फिर इतने प्रकार के मनुष्य क्यों बनाये।
जैसे कि हिन्दु, मुसलमान, सिख्ख, ईसाइ और सभी को अलग-अलग धार्मिक ग्रंथ भी दिये।
एक ही जैसे इंसान बनाने में उसे यानि की अल्लाह को क्या एतराज था।
सब एक होते तो न कोई लङाई और न कोई झगङा होता।

“.स्वामी हँसते हुए बोले, “मुंशी जी वो सृष्टी कैसी होती जिसमें एक ही प्रकार के फूल होते।

केवल गुलाब होता, कमल या रंजनिगंधा या गेंदा जैसे फूल न होते!”.

फैज अली ने कहा सच कहा आपने
यदि
एक ही दाल होती
तो
खाने का स्वाद भी
एक ही होता।

दुनिया तो
बङी फीकी सी हो जाती!

स्वामी जी ने कहा, मुंशीजी! इसीलिये तो ऊपर वाले ने अनेक प्रकार के जीव-जंतु और इंसान बनाए
ताकि हम
पिंजरे का भेद भूलकर
जीव की एकता को पहचाने।

मुशी जी ने पूछा,
इतने मजहब क्यों ?

स्वामी जी ने कहा, ” मजहब तो मनुष्य ने बनाए हैं,
प्रभु ने तो केवल धर्म बनाया है।

“मुशी जी ने कहा कि, ” ऐसा क्यों है कि
एक मजहब में कहा गया है कि गाय और सुअर खाओ
और
दूसरे में कहा गया है कि
गाय मत खाओ, सुअर खाओ एवं तीसरे में कहा गया कि
गाय खाओ सुअर न खाओ;

इतना ही नही कुछ लोग तो ये भी कहते हैं कि मना करने पर जो इसे खाये उसे अपना दुश्मन समझो।”

स्वामी जी जोर से हँसते हुए मुंशी जी से पूछे कि ,”क्या ये सब प्रभु ने कहा है ?”

मुंशी जी बोले नही,”मजहबी लोग यही कहते हैं।”

स्वामी जी बोले,
“मित्र!
किसी भी देश या प्रदेश का भोजन
वहाँ की जलवायु की देन है।

सागरतट पर बसने वाला व्यक्ति वहाँ खेती नही कर सकता,
वह
सागर से पकङ कर
मछलियां ही खायेगा।

उपजाऊ भूमि के प्रदेश में
खेती हो सकती है।
वहाँ
अन्न फल एवं शाक-भाजी उगाई जा सकती है।

उन्हे अपनी खेती के लिए गाय और बैल बहुत उपयोगी लगे।

उन्होने
गाय को अपनी माता माना, धरती को अपनी माता माना और नदी को माता माना ।
क्योंकि
ये सब
उनका पालन पोषण
माता के समान ही करती हैं।”

“अब जहाँ मरुभूमि है वहाँ खेती कैसे होगी?

खेती नही होगी तो वे
गाय और बैल का क्या करेंगे?

अन्न है नही
तो खाद्य के रूप में
पशु को ही खायेंगे।

तिब्बत में कोई शाकाहारी कैसे हो सकता है?
वही स्थिति अरब देशों में है। जापान में भी इतनी भूमि नही है कि कृषि पर निर्भर रह सकें।

“स्वामी जी फैज अलि की तरफ मुखातिब होते हुए बोले,
” हिन्दु कहते हैं कि
मंदिर में जाने से पहले या
पूजा करने से पहले
स्नान करो।

मुसलमान नमाज पढने से पहले वाजु करते हैं।
क्या अल्लहा ने कहा है कि नहाओ मत,
केवल लोटे भर पानी से
हांथ-मुँह धो लो?

“फैज अलि बोला,
क्या पता कहा ही होगा!

स्वामी जी ने आगे कहा,
नहीं,
अल्लहा ने नही कहा!

अरब देश में इतना पानी कहाँ है कि वहाँ पाँच समय नहाया जाए।
जहाँ पीने के लिए पानी बङी मुश्किल से मिलता हो वहाँ कोई पाँच समय कैसे नहा सकता है।

यह तो
भारत में ही संभव है,
जहाँ नदियां बहती हैं,
झरने बहते हैं, कुएँ जल देते हैं।

तिब्बत में
यदि
पानी हो
तो वहाँ पाँच बार व्यक्ति यदि नहाता है तो ठंड के कारण ही मर जायेगा।
यह सब
प्रकृति ने
सबको समझाने के लिये किया है।

“स्वामी विवेका नंद जी ने आगे समझाते हुए कहा कि,” मनुष्य की मृत्यु होती है।

उसके शव का अंतिम संस्कार करना होता है।

अरब देशों में वृक्ष नही होते थे, केवल रेत थी।
अतः
वहाँ मृतिका समाधी का प्रचलन हुआ,
जिसे आप दफनाना कहते हैं।

भारत में वृक्ष बहुत बङी संख्या में थे,
लकडी.पर्याप्त उपलब्ध थी
अतः
भारत में
अग्नि संस्कार का प्रचलन हुआ।

जिस देश में जो सुविधा थी
वहाँ उसी का प्रचलन बढा।

वहाँ जो मजहब पनपा
उसने उसे अपने दर्शन से जोङ लिया।

“फैज अलि विस्मित होते हुए बोला!
“स्वामी जी इसका मतलब है कि हमें
शव का अंतिम संस्कार
प्रदेश और देश के अनुसार करना चाहिये।
मजहब के अनुसार नही।

“स्वामी जी बोले , “हाँ! यही उचित है।

” किन्तु अब लोगों ने उसके साथ धर्म को जोङ दिया।

मुसलमान ये मानता है कि उसका ये शरीर कयामत के दिन उठेगा इसलिए वह शरीर को जलाकर समाप्त नही करना चाहता।

हिन्दु मानता है कि उसकी आत्मा फिर से नया शरीर धारण करेगी
इसलिए
उसे मृत शरीर से
एक क्षंण भी मोह नही होता।

“फैज अलि ने पूछा
कि,
“एक मुसलमान के शव को जलाया जाए और एक हिन्दु के शव को दफनाया जाए
तो क्या
प्रभु नाराज नही होंगे?

“स्वामी जी ने कहा,” प्रकृति के नियम ही प्रभु का आदेश हैं।
वैसे
प्रभु कभी रुष्ट नही होते
वे प्रेमसागर हैं,
करुणा सागर है।

“फैज अलि ने पूछा
तो हमें
उनसे डरना नही चाहिए?

स्वामी जी बोले, “नही!
हमें तो
ईश्वर से प्रेम करना चाहिए
वो तो पिता समान है,
दया का सागर है
फिर उससे भय कैसा।

डरते तो उससे हैं हम
जिससे हम प्यार नही करते।

“फैज अलि ने हाँथ जोङकर स्वामी विवेकानंद जी से पूछा, “तो फिर
मजहबों के कठघरों से
मुक्त कैसे हुआ जा सकता है?

“स्वामी जी ने फैज अलि की तरफ देखते हुए
मुस्कराकर कहा,
“क्या तुम सचमुच
कठघरों से मुक्त होना चाहते हो?”

फैज अलि ने स्वीकार करने की स्थिति में
अपना सर हिला दिया।

स्वामी जी ने आगे समझाते हुए कहा,
“फल की दुकान पर जाओ,
तुम देखोगे
वहाँ
आम, नारियल, केले, संतरे,अंगूर आदि अनेक फल बिकते हैं; किंतु वो दुकान तो फल की दुकान ही कहलाती है।

वहाँ अलग-अलग नाम से फल ही रखे होते हैं।

” फैज अलि ने
हाँ में सर हिला दिया।

स्वामी विवेकानंद जी ने आगे कहा कि ,”अंश से अंशी की ओर चलो।
तुम पाओगे कि सब
उसी प्रभु के रूप हैं।

“फैज अलि
अविरल आश्चर्य से
स्वामी विवेकानंद जी को
देखते रहे और बोले
“स्वामी जी
मनुष्य
ये सब क्यों नही समझता?

“स्वामी विवेकानंद जी ने शांत स्वर में कहा, मित्र! प्रभु की माया को कोई नही समझता।
मेरा मानना तो यही है कि, “सभी धर्मों का गंतव्य स्थान एक है।
जिस प्रकार विभिन्न मार्गो से बहती हुई नदियां समुंद्र में जाकर गिरती हैं,
उसी प्रकार
सब मतमतान्तर परमात्मा की ओर ले जाते हैं।
मानव धर्म एक है, मानव जाति एक है।”…

🙏💐🙏💐🙏💐🙏💐🙏
इसे
डिलीट न करें
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– डाक्टर वैद्य पंडित विनय कुमार उपाध्याय

Posted in सुभाषित - Subhasit

तुलसीदास – रामचन्द्र आर्य


तुलसीदास जी कहते हैं –
सुत दारा अरु लक्ष्मी पापी घर भी होय |
संत समागम हरि कथा तुलसी दुर्लभ दोय ||
कहा है कि पुत्र, सुंदर पत्नी और धन सम्पति यह तो पापी मनुष्य के पास भी हो सकती है | परन्तु संत का समागम अर्थात संत का संग और प्रभु की कथा, हरि चर्चा यह दोनों ही इस भौतिक जगत में दुर्लभ है | जैसाकि सुन्दरदास जी ने कहा है –
तात मिले पुनि मात मिले, सूत भ्रात मिले युवती सुखदाई |
राज मिले गजबज मिले, सबसाज मिले मन बांछत फल पाई ||
लोक मिले सुर लोक मिले, बिधि लोक मिले बैकुण्ठहु जाई |
सुंदर कहत ओर मिले सबही सुख, संत समागम दुर्लभ पाई |
कहा है कि सुख देने के लिए भाई-बहन, माता-पिता एवं सुंदर पत्नी भी मिल गए | राज्य, हाथी, घोड़े इत्यादि भी मिल गए | मन इच्छित सभी वस्तुओं की प्राप्ति भी हो गई | यह लोक भी मिल गया | देवलोक के आनन्द को भी प्राप्त कर लिया | ब्रह्मलोक यहाँ तक कि बैकुण्ड भी मिल गया तब भी सुन्दरदास जी कहते है कि कितने भी सुख ऐश्वर्य आनंद क्यों न मिल जाए | परन्तु संत की संगत बहुत ही दुर्लभ है | संत की संगत ही हमें जीवन की वास्तविक दिशा दिखाती है | सत्संग के द्वारा ही हम यह जान पाते हैं कि क्या करना है और क्या नहीं करना है | बहुत से व्यक्ति अज्ञानता में गलत कार्य करते हैं परन्तु जब सत्संग के द्वारा उन्हें वास्तविकता का ज्ञान होता है | तब वह स्वयं ही सत्य के साथ जुड़ने का प्रयास प्रारम्भ कर देते हैं | उनसे गलत कार्य छूटने लग जाते हैं | संत का संग मनुष्य के जीवन में महान और आश्चर्यजनक परिवर्तन ला देता है | हमारे इतिहास में इसके बहुत से उदाहरण आते हैं | जैसे अंगुलिमाल डाकू, सज्जन ठग, कोड़ा राक्षस, गणिका वेश्या, अजामिल इत्यादि | इस लिए हमें भी चाहिए कि हम ऐसे पूर्ण संत की शरण को प्राप्त करें, उस के बाद आप भी जीवन में परम सुख और शांति अनुभव करेंगे | आज समाज को क्रांति ओर मानव को शांति की जरूरत है, वो केवल ब्रह्मज्ञान से ही आ सकती है | केवल अध्यात्म ही धू – धू कर जलते विश्व को बचा सकता है |जिस के बारे में संत कबीर जी कहते हैं –
आग लगी आकाश में, झर झर गिरे अंगार !
संत न होते जगत में ,तो जल मरता संसार !!

Posted in भारतीय उत्सव - Bhartiya Utsav

रंगपंचमी – Rangpanchami


यहां होली नहीं, रंगपंचमी होती है विशेष

http://avinashrawat.blogspot.com/2015/03/blog-post.html

देशभर में होली के अगले दिन जमकर रंग खेला जाता है, लेकिन मध्यप्रदेश के अशोकनगर जिला स्थित करीला और इंदौर में इससे उलट रंगपंचमी के दिन पूरा आसमान रंगों से सतरंगी हो जाता है। अशोक नगर में रंगों के साथ राई नृत्य किया जाता है तो इंदौर में गेर निकाली जाती है।  सालों से यह परंपरा यूं ही चल रही है।

अशोकनगर जिले से करीब 35 किलोमीटर दूरी पर करीला स्थित है। यहां माता सीता का भव्य मंदिर बना हुआ है। भगवान श्री राम ने लंका विजय के पश्चात सीता मैया को गर्भवती अवस्था में परित्याग कर दिया था तब वे यहां रहीं थी एवं उनके पुत्र लव-कुश ने यहीं जन्म लिया था। यह ऋषि वाल्मीकि जी का आश्रम था। भारत वर्ष में लव कुश का एक मात्र मंदिर यहाँ स्थापित है, जो हमें रामायण काल की अनुभूतियां का अहसास कराता है। भगवान राम ने जब अपना राज्य विस्तार करने के लिए अश्वमेघ यज्ञ करवाने के बाद घोड़ा छोडा तो उसे लव-कुश पकड़कर यहीं लाए थे। अश्वमेघ यज्ञ के इस घोड़े को छुडाने के लिए लक्ष्मण, भरत, हनुमान

सहित तमाम लोगों से लव-कुश ने यहीं पर युद्ध कर उन्हें हराया था। अन्त में जब श्रीराम स्वयं यहां आए तो माता सीता ने धरती से उन्हें अपनी गोद में समा लेने की प्रार्थना की। करीला ही वह स्थान है जहां माता सीता धरती की गोद में समा गयी। तब से करीला के इस मंदिर में सीता की पूजा होती आयी है। सम्भवत: यह देश का इकलौता मंदिर है जहां भगवान राम के बिना अकेले माता सीता स्थापित हैं। माता सीता के कथानक से जुड़े ऐतिहासिक प्रमाण तो नहीं हैं लेकिन जनश्रुतियां यही कहती हैं कि वह बाल्मीकि के आश्रम में रही थीं। यहां पर एक विशाल मेला हर साल रंगपंचमी पर आयोजित किया जाता है, जिसमें राई नृत्य बेडनी महिलाओं द्वारा किया जाता है। करीला मेला भारत का अद्भुत एवं अद्वितीय आयोजन है। इस आयोजन में 10 लाख से ज्यादा श्रृद्धालू पहुंचते हैं। देशभर से बेड़िया जाति की नृत्यांगनाएं यहां आतीं हैं और भगवान राम के पुत्र लव व कुश के जन्म का उत्सव मनाया जाता है। यहां मौजूद मंदिर में भगवान राम के दोनों पुत्र लव और कुश की प्रतिमाएं हैं। माता सीता भी विराजमान हैं परंतु भगवान राम नहीं हैं। होली से शुरू हो कर रंग पंचमी तक यह मेला बहुत धूम धाम एवं पूर्ण आस्था के साथ मनाया जाता है। यहां पर जानकी मैया का प्रसिद्ध मंदिर है जिसे लव कुश मंदिर भी कहते है। ऐसा माना जाता है कि इस मेले में आने से वि​वाहिता स्त्रियों की सूनी गोदें भर जाती हैं, जीवन में सुख समृद्धि आ जाती हैं और जिन लोगों की दुआएं यहाँ पूरी हो जाती हैं वे लोग राई नृत्य करवाते हैं।

 इंदौर में रंगपंचमी पर गेर का रिवाज होलकर शासन से चला आ रहा है। होलकर वंश के शासन और प्रजा मिलकर होली खेलते थे। पांच दिन तक चलने वाले इस त्यौहार का आखिरी दिन यानि रंगपंचमी राजवाड़ा पर मनाया जाता था। होली के अंतिम दिन राजावाड़ा पर लोग एकत्रित होते थे और होलकर वंश के महाराज ऊपर से उनपर रंग-गुलाल फेकते थे। रंगों के साथ-साथ राजवाडा पर नाच गाने का महौल भी हुआ करता था। 1947 में देश के आजादी मिलने के बाद राजशाही का अंत हुआ लेकिन होली खेलने की यह परंपरा जारी रही। टोरी कार्नर पर रहने वाली बाबूलाल और छोटेलाल गिरी राजवाड़ा पर आने-जाने वालों पर रंग फेकना शुरू कर दिया और सालभर बाद ही राजवाड़ पर जनता एकत्रित होना शुरू हो गई।    रंगपंचमी पर निकलने वाली गेर असल में घेर शब्द का अपभ्रंश है। मालवा के ग्रामीण इलाकों में बैलगाडी के पहियों को घेर कहा जाता था। यह पहिया चारों तरफ से लकड़ी से घिरा होता था और दूसरे पहिये से मिलकर चलता है। इसी तरह लोगों के एक साथ घेरा बनाकर अन्य लोगों को रंगने की परंपरा को घेर कहा गया। समय के साथ-साथ घेर शब्द गेर में तब्दील हो गया। इन गेरों में बैंड बाजे, घोड़े-बग्घियां, हाथी-ऊंट भी होते हैं। चार पांच मंजिलों तक रंगों और गुलाल की बौछारें और पानी की फुहारें उड़ती हैं। मल्हारगंज, टोरी कॉर्नर, खजूरी बाजार, गोरकुण्ड, राजबाड़ा इलाकों में कई मकान मालिक अपने घरों को रंगों से बचने के लिए पूरे मकान को ही घूंघट पहना देते हैं।
पारंपरिक साधनों के साथ शुरू हुई गेर में अब अत्याधुनिक साधनों से रंग-गुलाल उड़ाए जाने लगे हैं।  साथ ही इंदौर से शुरू हुई यह परंपरा पूरे मालवा में मनाई जाने लगी। होलकर शासनकाल में राजा और प्रजा दोनों मिल-जुलकर रंगों के इस पर्व को मनाते थे। धुलेंडी से लेकर रंगपंचमी तक पांच दिन लोग रंगों में डूबे नजर आते थे। आजादी के बाद 1948 टोरी कार्नर से बाबूलाल गिरी के प्रयासों से पहली गेर निकलनी शुरू। लेकिन समय के साथ इंदौर में कई गेर निकलना शुरू हुई। 1956 में कमलेश खंडेलवाल ने संगन कार्नर से राजवाड़ा तक संगम कार्नर नाम से गेर निकालना शुरू किया। 2001 में हिंदरक्षक महोत्सव समिति के माध्यम से एकलव्य सिंह गौड़ ने नर्सिंग बाजार से राजवाड़ा तक गेर निकालना शुर किया। इसके बाद 2003 में ईश्वर तिवारी ने मारल क्लब महोत्सव के बैनर तले झीपा बाखल से राजवाड़ा तक, 2008 में बाणेश्वरी समिति से गोलू शुक्ला ने मरीमाता से सांवेर रोड और दीपू यादव ने सांवेर रोड़ से मरीमाता तक, 2009 में राजपाल जोशी ने रसिया कार्नर समिति  के माध्यम से कैलाश मार्ग से राजवाडा तक गेर निकालना शुरू कर दिया। अब इंदौर के साथ देवास, उज्जैन, मंदसौर, सहित कई शहरों में गेर निकाली जा रही है।
Posted in गौ माता - Gau maata

उरुग्वे


*” उरुग्वे “* एक ऐसा देश है , जिसमे औसतन हर एक आदमी के पास 4 गायें हैं … और
पूरे विश्व में वो खेती के मामले में नम्बर वन की पोजीशन में है …
सिर्फ 33 लाख लोगों का देश है और 1 करोड़ 20 लाख 🐄 गायें है …
हर एक 🐄 गाय के कान पर इलेक्ट्रॉनिक 📼 चिप लगा रखी है …
जिससे कौन सी 🐄 गाय कहाँ पर है , वो देखते – रहते हैं …
एक किसान मशीन के अन्दर बैठा , फसल कटाई कर रहा है , तो दूसरा उसे स्क्रीन पर जोड़ता है , कि फसल का डाटा क्या है … ???
इकठ्ठा किये हुये डाटा के जरिए , किसान प्रति वर्ग मीटर की पैदावार का स्वयं विश्लेषण करता हैं …
2005 में 33 लाख लोगों का देश , 90 लाख लोगों के लिए अनाज पैदा करता था … और …
आज की तारीख में 2 करोड़ 80 लाख लोगों के लिये अनाज पैदा करता है …
*” उरुग्वे “* के सफल प्रदर्शन के पीछे देश , किसानों और पशुपालकों का दशकों का अध्ययन शामिल है …
पूरी खेती को देखने के लिए 500 कृषि इंजीनियर लगाए गए हैं और ये लोग ड्रोन और सैटेलाइट से किसानों पर नजर रखते हैं , कि खेती का वही तरीका अपनाएँ जो निर्धारित है …
यानि *” दूध , दही , घी , मक्खन “* के साथ आबादी से कई गुना ज्यादा अनाज उत्पादन …
*” सब अनाज , दूध , दही , घी , मक्खन , आराम से निर्यात होते हैं और हर किसान लाखों में कमाता है … “*
एक आदमी की कम से कम आय 1,25,000/= महीने की है , यानि 19,000 डॉलर सालाना …
*” इस देश का राष्ट्रीय चिन्ह सूर्य 🌞 व राष्ट्रीय प्रगति चिन्ह गाय 🐄 व घोड़ा 🐎 हैं … “*
*” उरूग्वे में गाय 🐄 की हत्या पर तत्काल फाँसी का कानून है … “*
🐄🐎🌞 🐄🐎🌞 🐄🐎🌞
*” धन्यवाद है , इस गौ – प्रेमी देश को … “*
मुख्य बात यह है , *” कि ये सभी गो – धन भारतीय हैं … “*
जिसे वहाँ *” इण्डियन काउ “* के तौर पर जानते हैं …
*” दु:ख इस बात का है , कि भारत में गो – हत्या होती है और वहाँ उरुग्वे में गो – हत्या पर मृत्युदण्ड का प्रावधान है … “*
*” क्या हम इस कृषक राष्ट्र उरुग्वे से कुछ सीख सकते हैं … ??? “*
– डाक्टर वैद्य पंडित विनय कुमार उपा‌ध्याय

Posted in Sai conspiracy

साई बाबा


Anju Chaudhary
१ : साई बाबा सारा जीवन मस्जिद मे रहे

एक भी रात उन्होने किसी हिंदू मंदिर मे नही गुज़ारी
२ : अल्लाह मालिक सदा उनके ज़ुबान पर था वो सदा अल्लाह मालिक पुकारते रहते
३ : रोहीला मुसलमान आठों प्रहार अपनी कर्कश आवाज़ मे क़ुरान शरीफ की कल्मे पढ़ता और अल्लाह ओ अकबर के नारे लगाता परेशान होकर जब गाँव वालो ने बाबा से उसकी शिकायत की तो बाबा ने गाँव वालों को भगा दिया .( अध्याय ३ पेज ५ )
४ : तरुण फ़क़ीर को उतरते देख म्हलसापति ने उन्हे सर्व प्रथम ” आओ साई ” कहकर पुकारा .(अध्याय५ पेज २ )
नोट : मौला साई मुस्लिम फ़क़ीर थे और फ़क़िरो को अरबी और उर्दू मे साई नाम से पुकारा जाता है .साई शब्द मूल रूप से हिन्दी नही है
५ : मौला साई हमेशा कफनी पहनते थे .(अध्याय ५ पेज ६ )
नोट : कफनी एक प्रकार का पहनावा है जो मुस्लिम फ़क़ीर पहनते हैं
६ : मौला साई सुन्नत(ख़तना) कराने के पक्ष मे थे . (अध्याय ७ पेज १ )
७ : फ़क़िरो के संग बाबा माँस और मछली का सेवन भी कर लेते थे .(अध्यया ७ पेज २)
८ : बाबा ने कहा “” मैं मस्जिद मे एक बकरा हलाल करने वाला हूँ हाज़ी सिधिक से पूछो की उसे क्या रुचिकर होगा बकरे का माँस ,नाध या अंडकोष ” (अध्याय ११ पेज ४ )
नोट : हिंदू संत कभी स्वपन मे भी बकरा हलाल नही कर सकता .न ही ऐसे वीभत्स भोजन खा सकता है
९ : एक बार मस्जिद मे एक बकरा बलि चढाने लाया गया तब साई बाबा ने काका साहेब से कहा “” मैं स्वयं ही बलि चढाने का कार्य करूँगा “(अध्याय २३ पेज ६)
नोट : हिंदू संत कभी ऐसा जघ्न्य कृत्य नही कर सकते .
१०: बाबा के पास जो भी दक्षिणा एकत्रित होती उसमे से रोज पचास रुपये वो पीर मोहम्म्द को देते. जब वो लौटते तो बाबा भी सौ कदम तक उनके साथ जाते .(अध्याय २३ पेज ५ )
नोट : मौला साई इतना सम्मान कभी किसी हिंदू संत को नही देते थे .रोज पचास रुपये वो उस समय देते थे जब बीस रुपया तोला सोना मिलता था .मौला साई के जीवन काल में उनके पास इतना दान आता था आयकर विभाग की जाँच भी हुई थी
११ : एक बार बाबा के भक्त मेघा ने उन्हे गंगा जल से स्नान कराने की सोचा तो बाबा ने कहा मुझे इस झंझट से दूर ही रहने दो .मैं तो एक फ़क़ीर हूँ मुझे गंगाजल से क्या प्रायोजन .(अध्याय २८ पेज ७ )
नोट : किसी हिंदू के लिए गंगा स्नान जीवन भर का सपना होता है .गंगा जल का दर्शन भी हिंदुओं मे अति पवित्र माना जाता है
१२ : कभी बाबा मीठे चावल बनाते और कभी माँस मिश्रित चावल (पुलाव )बनाते थे (अध्याय ३८ पेज २)
नोट : माँस मिश्रित चावल अर्थात मटन बिरयानी सिर्फ़ मुस्लिम फ़क़ीर ही खा सकता हैं कोई हिंदू संत उसे देखना भी पसंद नही करेगा .
१३ : एक एकादशी को बाबा ने दादा केलकर को कुछ रुपये देकर कुछ माँस खरीद कर लाने को कहा (अध्याय३८ पेज३ )
नोट : एकादशी हिंदुओं का सबसे पवित्र उपवास का दिन होता है कई घरो मे इस दिन चावल तक नही पकता .
१४ : जब भोजन तैयार हो जाता तो बाबा मस्जिद से बर्तन मंगाकर मौलवीसे फातिहा पढ़ने को कहते थे(अध्याय ३८ पेज ३)
नोट : फातिहा मुस्लिम धर्म का संस्कार है
१५ : एक बार बाबा ने दादा केलकर को माँस मिश्रित पुलाव चख कर देखने को कहा .केलकर ने मुँहदेखी कह दिया कि अच्छा है .तब बाबा ने केलकर की बाँह
पकड़ी और बलपूर्वक बर्तन मे डालकर बोले थोड़ा सा इसमे से निकालो अपना कट्टरपन छोड़कर चख कर देखो (अध्याय ३८ पेज४ )
नोट : मौला साई ने परीक्षा लेने के नाम पर जीव हत्या कर एक ब्राहमण का धर्म भ्रष्ट कर दिया किंतु कभी अपने किसी मुस्लिम भक्त की ऐसी कठोर परीक्षा नही ली।

Posted in नहेरु परिवार - Nehru Family

ब्राह्मणों के श्राप से आज भी शापित है गांधी -नेहरू खानदान जानिए कैसे…??


ब्राह्मणों के श्राप से आज भी शापित है गांधी -नेहरू खानदान
जानिए कैसे…??

बात सन् 1962 के विधान सभा चुनावों की है।

इंदिरा गांधी के लिये उस समय चुनाव जीतना बहुत मुश्किल था ,करपात्री जी महाराज के आशीर्वाद से इंदिरा गांधी चुनाव जीती ।
इंदिरा ग़ांधी ने उनसे वादा किया था चुनाव जीतने के बाद गाय के सारे कत्ल खाने बंद हो जायेगें . जो अंग्रेजो के समय से चल रहे हैं .लेकिन इंदिरा गांधी मुसलमानों और कम्यूनिस्टों के दवाब में आकर अपने वादे से मुकर गयी य .
-गौ हत्या निषेध आंदोलन
और जब तत्कालीन प्रधानमंत्री ने संतों इस मांग को ठुकरा दिया , जिसमे सविधान में संशोधन करके देश में गौ वंश की हत्या पर पाबन्दी लगाने की मांग की गयी थी ,तो संतों ने 7 नवम्बर 1966 को संसद भवन के सामने धरना शुरू कर दिया , हिन्दू पंचांग के अनुसार उस दिन विक्रमी संवत 2012 कार्तिक शुक्ल की अष्टमी थी , जिसे ” गोपाष्टमी ” भी कहा जाता है .
इस धरने में मुख्य संतों के नाम इस प्रकार हैं , शंकराचार्य निरंजन देव तीर्थ , स्वामी करपात्री महाराज और रामचन्द्र वीर है . राम चन्द्र वीर तो आमरण अनशन पर बैठ गए थे , लेकिन इंदिरा गांधी ने उन निहत्ते और शांत संतों पर पुलिस के द्वारा गोली चलवा दी , जिस से कई साधू मारे गए . इस ह्त्या कांड से क्षुब्ध होकर तत्कालीन गृहमंत्री ” गुलजारी लाल नंदा ” ने अपना त्याग पत्र दे दिया , और इस कांड के लिए खुद को सरकार को जिम्मेदार बताया था . लेकिन संत ” राम चन्द्र वीर ” अनशन पर डटे रहे जो 166 दिनों के बाद उनकी मौत के बाद ही समाप्त हुआ था . राम चन्द्र वीर के इस अद्वितीय और इतने लम्बे अनशन ने दुनिया के सभी रिकार्ड तोड़ दिए है . यह दुनिया की पहली ऎसी घटना थी जिसमे एक हिन्दू संत ने गौ माता की रक्षा के लिए 166 दिनों तक भूखे रह कर अपना बलिदान दिया था .
-इंदिरा के वंश पर श्राप
लेकिन खुद को निष्पक्ष बताने वाले किसी भी अखबार ने इंदिरा के डर से साधुओं पर गोली चलने और रामचंद्र वीर के बलिदान की खबर छापने की हिम्मत नहीं दिखायी , सिर्फ मासिक पत्रिका “आर्यावर्त ” और “केसरी ” ने इस खबर को छापा था . और कुछ दिन बाद गोरखपुर से छपने वाली मासिक पत्रिका “ कल्याण ” ने ” गौ अंक में एक विशेषांक ” प्रकाशित किया था , जिसमे विस्तार सहित यह घटना दी गयी थी . और जब मीडिया वालों ने अपने मुहों पर ताले लगा लिए थे तो करपात्री जी ने कल्याण के उसी अंक में इंदिरा को सम्बोधित करके कहा था “यद्यपि तूने निर्दोष साधुओं की हत्या करवाई है . फिर भी मुझे इसका दुःख नही है . लेकिन तूने गौ हत्यारों को गायों की हत्या करने की छूट देकर जो पाप किया है वह क्षमा के योग्य नहीं है , इसलिये मैं आज तुझे श्राप देता हूँ कि
” गोपाष्टमी ” के दिन ही तेरे वंश का नाश होगा ”

“आज मैं कहे देता हूँ कि गोपाष्टमी के दिन ही तेरे वंश का भी नाश होगा “
श्राप सच हो गया
जब करपात्री जी ने यह श्राप दिया था तो वहाँ “प्रभुदत्त ब्रह्मचारी “ भी मौजूद थे , करपात्री जी ने जो भी कहा था वह आगे चल कर अक्षरशः सत्य हो गया . इंदिरा का का वंश गोपाष्टमी के दिन ही नाश हो गया , सबुत के लिए इन मौतों की
तिथियों पर ध्यान दीजिये ,
1-संजय गांधी की मौत आकाश में हुई उस दिन हिन्दू पंचांग के अनुसार “ गोपाष्टमी ” थी .
2-इंदिरा की मौत घर में हुई उस दिन भी ” गोपाष्टमी थी
.
3-राजीव गांधी तमिलनाडू में मरे उस दिन भी “ गोपाष्टमी ” ही थी .
उस दिन करपात्री जी महाराज ने उपस्थित लोगों के सामने गरज कर कहा था .कि लोग भले इस घटना को भूल जाएँ लेकिन मैं इसे कभी नहीं भूल सकता . गौ हत्यारे के वंशज नहीं बचेंगे चाहे वह आकाश में हो या पाताल में हों , और चाहे घर में हो या बाहर हो यह श्राप इंदिरा के वंशजों का पीछा करता रहेगा

धर्मधुरन्दर स्वामी करपात्री जी महाराज की जय !!!
धर्म की जय हो !
अधर्म का नाश हो !
प्राणियों में सद्भावना हो !
विश्व का कल्याण हो !
गोहत्या बंद हो !
गोमाता की जय हो !
हर हर महादेव !

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रंग पंचमी


इस त्योहार के साथ जुड़े पौराणिक कथा का दावा है कि भगवान रामचंद्र फाल्गुन के महीने में अपने तेरह साल लंबे वनवास के दौरान चंदेरी को पार कर इस भूमि को पवित्र किया। इसी कारण, रंग पंचमी होली के पांच दिनों के बाद करीला की एक पहाड़ी के शीर्ष पर फाल्गुन के महीने में मनाया जाता है।

भोपाल। होली और रंगपंचमी से जुड़ी कई परम्पराएं और मान्यताएं है। ऐसी ही एक मान्यता है प्रदेश के अशोकनगर जिले के करीला में रंगपंचमी पर भरे जाने वाले मेले की। करीला स्थित मां सीता के दरबार में रंगपंचमी को होने वाला मेला आकर्षण और श्रद्धा का केंद्र है।
करीला में रंगपंचमी के दिन मां सीता के पुत्र लव-कुश का जन्मोत्सव मनाया जाता है। इसमें बेड़िया जाति की महिलाएं राई नृत्य कर उत्सव मनाती है।
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रामायण से जुड़ा है करीला के रंगपंचमी उत्सव का इतिहास
करीला में हर रंगपंचमी को भरे जाने वाले मेले के बारे में मान्यता है कि 14 साल के वनवास के बाद जब भगवान राम ने अयोध्या लौटकर सीता मां का परित्याग कर दिया तब मां सीता करीला में महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में आकर रही थीं। मां सीता गर्भवती थीं और महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में उन्होंने लव-कुश को जन्म दिया। कहा जाता है कि लवकुश के जन्म पर करीला में उत्सव मनाया गया था और अप्सराओं ने नृत्य किया था। जिस दिन खुशियां मनाई गई वह रंगपंचमी का दिन था। इसी मान्यता के चलते वर्तमान में बेड़िया जाति की महिलाएं जिनका पेशा राई नृत्य करना होता है वो दूर-दूर से करीला पहुंचकर मां सीता को याद कर राई नृत्य करती हैं।

मां सीता का इकलौता मंदिर
करीला में स्थित मां सीता के मंदिर के बारे में कहा जाता है कि ये देश का इकलौता मंदिर है जहां सीता भगवान राम के साथ नहीं है। मंदिर में लव-कुश के साथ मां सीता और महर्षि वाल्मीकि की मूर्ति है। मां सीता का मंदिर आस्था और श्रद्धा का केंद्र है। कहा जाता है कि यहां सच्चे मन से मनोकामना करने पर जरूर पूरी होती है। मनोकामना पूरी होने पर भक्त राई नृत्य कर मां का आभार व्यक्त करते हैं। रंगपंचमी के दिन यहां हजारों लोग दूर-दूर से पहुंचते हैं और राई नृत्य करवाते हैं।

राई नृत्य करने वाली महिलाओं की दुर्दशा
राई बुंदेलखण्ड का आकर्षक और मनमोहक लोकनृत्य है। इस नृत्य को सिर्फ बेड़िया जाति की महिलाएं ही करती है। आमतौर पर बुंदेलखंड अंचल में ग्रामीण इलाकों में शादी विवाह, जन्मोत्सव जैसे आयोजनों में राई नृत्य कराने की परम्परा है। लेकिन मां सीता को प्रसन्न करने के लिए राई नृत्य करने वाली बेड़िया जाति की महिलाओं को समाज में सम्मान से नहीं देखा जाता।

रंगपंचमी के दिन के अलावा राई नृत्य करने वाली इन महिलाओं को लोगों को खुश करने के लिए भी राई नृत्य करना पड़ता है। राई नृत्य के साथ ज्यादातर महिलाओं को कद्रदानों को खुश करने के लिए वो सब भी करना होता है जिसे समाज वेश्यावृत्ति के बराबर मानती है। बेड़िया जाति की कम उम्र की लड़कियां और युवतियां मानव तस्करी के जरिए डांस बार या बड़े रेडलाइट एरिया तक भेजी जा रही है। हालांकि इन महिलाओं के उत्थान के लिए समाज और सरकार ने प्रयास भी किए लेकिन इन प्रयासों का फायदा सभी को नहीं मिल पाया।

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महाराष्ट्र में होली के बाद पंचमी के दिन रंग खेलने की परंपरा है। यह रंग सामान्य रूप से सूखा गुलाल होता है। विशेष भोजन बनाया जाता है जिसमे पूरनपोली अवश्य होती है। मछुआरों की बस्ती मे इस त्योहार का मतलब नाच, गाना और मस्ती होता है। ये मौसम रिशते (शादी) तय करने के लिये मुआफिक होता है, क्योंकि सारे मछुआरे इस त्योहार पर एक दूसरे के घरों को मिलने जाते है और काफी समय मस्ती मे व्यतीत करते हैं।[1] राजस्थान में इस अवसर पर विशेष रूप से जैसलमेर के मंदिर महल में लोकनृत्यों में डूबा वातावरण देखते ही बनता है जब कि हवा में लाला नारंगी और फ़िरोज़ी रंग उड़ाए जाते हैं।[2] मध्यप्रदेश के नगर इंदौर में इस दिन सड़कों पर रंग मिश्रित सुगंधित जल छिड़का जाता है।[3] लगभग पूरे मालवा प्रदेश में होली पर जलूस निकालने की परंपरा है। जिसे गेर कहते हैं। जलूस में बैंड-बाजे-नाच-गाने सब शामिल होते हैं। नगर निगम के फ़ायर फ़ाइटरों में रंगीन पानी भर कर जुलूस के तमाम रास्ते भर लोगों पर रंग डाला जाता है। जुलूस में हर धर्म के, हर राजनीतिक पार्टी के लोग शामिल होते हैं, प्राय: महापौर (मेयर) ही जुलूस का नेतृत्व करता है। प्राचीनकाल में जब होली का पर्व कई दिनों तक मनाया जाता था तब रंगपंचमी होली का अंतिम दिन होता था और उसके बाद कोई रंग नहीं खेलता था।
विकिपेडिया
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स्वास्थ्य की सभी समस्याओ का हल है ये 12 मुद्राये


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પ્રહલાદ પ્રજાપતિ

स्वास्थ्य की सभी समस्याओ का हल है ये 12 मुद्राये

आप देशवासियों के लिये अपना पूरा जीवन लगा देने वाले भाई राजीव दीक्षित जी #

1. ब्रह्ममुद्रा

ब्रह्ममुद्रा योग की लुप्त हुई क्रियाओं में से एक महत्त्वपूर्ण मुद्रा है। ब्रह्मा के तीन मुख और दत्तात्रेय के स्वरूप को स्मरण करते हुए व्यक्ति तीन दिशा में सिर घुमायें ऐसी यह क्रिया है अतः इस क्रिया को ब्रह्ममुद्रा कहते हैं।

विधिः वज्रासन या पद्मासन में कमर सीधी रखते हुए बैठें। हाथों को घुटनों पर रखें। कन्धों को ढीला रखें। अब गर्दन को सिर के साथ ऊपर-नीचे दस बार धीरे-धीरे करें। सिर को अधिक पीछे न जाने दें। गर्दन ऊपर-नीचे चलाते वक्त आँखें खुली रखें। श्वास चलने दें। गर्दन को ऊपर-नीचे करते वक्त झटका न दें। फिर गर्दन को चलाते वक्त ठोड़ी और कन्धा एक ही दिशा में लाने तक गर्दन को घुमायें। इस प्रकार गर्दन को 10 बार दाँये-बायें चलायें और…

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आज़ादी के बाद भी भारत का नाम INDIA कैसे पड़ा ?


आज़ादी के बाद भी भारत का नाम INDIA कैसे पड़ा ? जाने नेहरु का एक और कुकर्म ! ================== आप देशवासियों के लिये अपना पूरा जीवन लगा देने वाले भाई राजीव दीक्षित जी #Youtube Channel से जुड़े ! Subscribe Now 1947 जब देश आज़ाद हुआ उस समय, नेहरू और बाकि देश के नए शासकों की […]

via आज़ादी के बाद भी भारत का नाम INDIA कैसे पड़ा ? जाने नेहरु का एक और कुकर्म ! — પ્રહલાદ પ્રજાપતિ