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What is Rest in Peace (RIP)


What is Rest in Peace (RIP)
ये “रिप-रिप-रिप-रिप” क्या है ?

आजकल देखा जा रहा है कि किसी मृतात्मा के प्रति RIP लिखने का “फैशन” चल पड़ा है, ऐसा इसलिए हुआ है, क्योंकि कान्वेंटी दुष्प्रचार तथा विदेशियों की नकल के कारण हमारे युवाओं को धर्म की मूल अवधारणाएँ या तो पता ही नहीं हैं, अथवा विकृत हो चुकी हैं…

RIP शब्द का अर्थ होता है “Rest in Peace” (शान्ति से आराम करो), यह शब्द उनके लिए उपयोग किया जाता है जिन्हें कब्र में दफनाया गया हो, क्योंकि ईसाई अथवा मुस्लिम मान्यताओं के अनुसार जब कभी “जजमेंट डे” अथवा “क़यामत का दिन” आएगा, उस दिन कब्र में पड़े ये सभी मुर्दे पुनर्जीवित हो जाएँगे…

अतः उनके लिए कहा गया है, कि उस क़यामत के दिन के इंतज़ार में “शान्ति से आराम करो” !

लेकिन हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार शरीर नश्वर है, आत्मा अमर है, हिन्दू शरीर को जला दिया जाता है, अतः उसके “Rest in Peace” का सवाल ही नहीं उठता !

हिन्दू धर्म के अनुसार मनुष्य की मृत्यु होते ही आत्मा निकलकर किसी दूसरे नए जीव/ काया/शरीर/नवजात में प्रवेश कर जाती है… उस आत्मा को अगली यात्रा हेतु गति प्रदान करने के लिए ही श्राद्धकर्म की परंपरा निर्वहन एवं शान्तिपाठ आयोजित किए जाते हैं !

अतःकिसी हिन्दू मृतात्मा हेतु “विनम्र श्रद्धांजलि”, “श्रद्धांजलि”, “आत्मा को सदगति प्रदान करें” जैसे वाक्य विन्यास लिखे जाने चाहिए, जबकि किसी मुस्लिम अथवा ईसाई मित्र के परिजनों की मृत्यु पर उनके लिए RIP लिखा जा सकता है…

होता यह है कि श्रद्धांजलि देते समय भी “शॉर्टकट अपनाने की आदत से हममें से कई मित्र हिन्दूमृत्यु पर भी “RIP” ठोंक आते हैं… यह विशुद्ध “अज्ञान और जल्दबाजी” है, इसके अलावा कुछ नहीं…

अतः कोशिश करें कि भविष्य में यह गलती ना हो, एवं हम लोग “दिवंगत आत्मा को श्रद्धांजलि” प्रदान करें… ना कि उसे RIP करें !
( Copied )

नोट – यह तस्वीर मणिकर्णिका घाट, मोक्ष नगरी बनारस की है जहाँ वर्ष भर चौबीसों घंटे शवों का दाह संस्कार अनवरत होता रहता है !!!

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लक्ष्मी की बरकत के लिए


लक्ष्मी की बरकत के लिए

  • ईशान कोण में तुलसी का पौधा लगाने से, गंगा जल रखने से या भगवान की मूर्ति रखने से घर में लक्ष्मी की बरकत होती है ।
  • घर के आँगन में बेल का पौधा लगाने से…..वो घर पाप नाशक व यशस्वी होता है । अगर उत्तर-पश्चिम में है तो यश बढेगा, उत्तर-दक्षिण में हो तो सुख-शांति बढेगा और बीच में है तो मधुर जीवन होगा l रविवार और द्वादश को बेल के पौधे की परिक्रमा करें तो बड़े-बड़े ब्रह्महत्या जैसे पाप ठीक हो जाते हैं।
  • घर में पीपल का पेड़ ठीक नहीं ….लेकिन खेत-खली में पश्चिम की तरफ पीपल का पेड़ बड़ा सम्पत्तिकारक है।
  • अमावस्या, शुक्रवार व रविवार छोड़कर आंवले का रस रगड़ के स्नान करने से भी लक्ष्मी स्थायी होती है ….ऐसा पद्म पुराण में आता है ।
  • गौझरण (गौ मूत्र) से शरीर को रगड़ के स्नान करने से पाप नाशक उर्जा पैदा होती है ।
  • गाय के दूध की दही …..वो रगड़ के थोड़ी देर “लक्ष्मी नारायण….लक्ष्मी नारायण” जप करें तो घर में लक्ष्मी स्थिर होती है ।
Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

पुनर्मूषिको भव- Phir se Chuha ho Jawo


पुनर्मूषिको भव- Phir se Chuha ho Jawo

 

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पुनर्मूषिको भव

पुनर्मूषिको भव ->यह कथा बहुत महत्वपूर्ण और शिक्षाप्रद है। यह कहानी एक कृतघ्न चूहे के प्रति है जो ऋषि के आशीर्वाद से बाघ बन गया और फिर ऋषि पर आक्रमण करने से ऋषि ने शाप देकर उसे फिर चूहा बना दिया।  इस कहानी से हमें कृतज्ञता की शिक्षा मिलती है।

एक बार जंगल में आश्रम बनाकर एक ऋषि रहते थे।  ऋषि की कुटिया के आस पास काफी पवित्र वातावरण था। ऋषि के प्रभाव से सारे जीव वहां  निर्भय होकर रहते थे। एक दिन ऋषि पूजा के आसान पर बैठे थे तभी एक चूहा उनकी गोद में आकर गिर पड़ा। चूहा भयभीत था उसे किसी बिल्ली ने मारकर खाने के लिए पीछा किया था।

ऋषि ने चूहा  को दुखी देखा तो सोचा अगर इसी बिल्ली से भय है तो ये भी बिल्ली हो जाए। ऋषि ने उस चूहे को भी बिल्ली बना दिया। अब उस बिल्ली बने चूहे को बिल्ली से भय नहीं रही. आश्रम के इर्द गिर्द सुखपूर्वक विचरण करता  .

एक दिन किसी कुत्ते ने उस बिल्ली का पीछा किया।  बिल्ली भागते भागते ऋषि के शरण में आयी। ऋषि ने उससे परेशानी का कारण पूछा।  बिल्ली ने कहा की  कुत्ते मुझे डराते हैं।

ऋषि ने कहा “स्वानः त्वाम विभेति! त्वमपि स्वानोभाव ” अर्थात कुत्ता तुम्हे डरा रहा है तुम भी कुत्ता हो जाओ। ऋषि के आशीर्वाद से बिल्ली बना चूहा अब कुत्ता हो गया। अब उसे कुत्ते बिल्लियों से कोई डर नहीं रहा।
एक दिन कुत्ते पर ब्याघ्र (बाघ ) की नजर पड़ी. बाघ ने कुत्ते को खाने के लिए उसका पीछा किया। बाघ की दर से कुत्ता भाग कर ऋषि की शरण में जा पहुँचा।
ऋषि ने कुत्ते को बाघ की दर से भयभीत देखा ->
ऋषि बोले “ब्याघ्रह त्वम् विभेति! त्वमपि ब्याघ्रों भव”
अर्थात बाघ तुम्हे डरातें हैं तुम भी बाघ हो जाओ। अब ऋषि के आशीर्वाद से वह बाघ बन गया।
ऋषि के आशीर्वाद से बने बाघ को अब किसी जानवर से डर नहीं था। वह जंगल में निर्भय हो घूमता था।
जंगल के दूसरे जानवर उसके बारे में बाते करते की ये बाघ पहले चूहा था। ऋषि ने इसे आशीर्वाद /वरदान देकर बाघ बना दिया  है। बाघ को अपने बारे में दूसरे जानवरों से ऐसा सुनकर बहुत बुरा लगता। जब भी कोई उसे कहता की ये तो पहले चूहा था ऋषि के वरदान से बाघ बना है।  तो बात बहुत लज्जित हो जाता।

बाघ अपने सारी परेशानी का जड़ ऋषि को मानाने लगा। बाघ ने समझा की जबतक ये  ऋषि जीवित है लोग मेरे बारे में ऐसे ही बोलते रहेंगे। इस ऋषि को खत्म कर देना चाहिए। ऐसा विचार कर वह कृतघ्न बाघ ऋषि पर आक्रमण कर दिया। ऋषि ने बाघ की कुटिलता को पहचान लिया। ऋषि ने कहा- “कृतघ्नोसि पुनर्मूषिको भव” अर्थात कृतघ्न हो फिर से चूहा हो जाओ-
इसतरह कृतघ्न बाघ ऋषि के शाप से फिर से चूहा बन गया। अतः हमें किसी के पार्टी कृतज्ञ होना चाहिए।

कृतज्ञ -जो किसी के किये गए उपकार को मानता हो ।

कृतघ्न -जो किसी के किये गए उपकार को नहीं मानता हो।

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1200 साल पुराना हिन्दू मंदिर जो एक ही पत्थर से बना है।


પ્રહલાદ પ્રજાપતિ

1200 साल पुराना हिन्दू मंदिर जो एक ही पत्थर से बना है।
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आप देशवासियों के लिये अपना पूरा जीवन लगा देने वाले भाई राजीव दीक्षित जी
भारत मंदिरों का देश है, यहां हर जगह मंदिर मिलते हैं। कुछ मंदिर बहुत प्राचीन हैं तो कुछ नये। भारत में रोज मंदिर बनते हैं। मंदिरों में भगवान को पूजा जाता है। भारत में शिल्पकारों की कोई कमी नहीं थी प्राचीन काल के शिल्पकार बहुत उच्च कोटि से कमा करते थे और मंदिरों का निर्माण करते थे। आज हमा आपको एक ऐसे ही मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जो 1200 साल पूराना है और जो सिर्फ एक ही पत्थर को काट कर बनाया गया है।
कैलाश मंदिर : कैलाश मन्दिर, एलोरा कैलाश मंदिर को हिमालय के कैलाश का रूप देने में एलोरा के वास्तुकारों ने कुछ कमी नहीं की। शिव का यह दोमंजिला मंदिर पर्वत की ठोस चट्टान को काटकर बनाया…

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