+++++ स्वतंत्र भारत के प्रमुख भगोड़े +++++
( वी. सी. राय ‘नया’ )
बताइए पी.एच.डी. के लिए मेरा यह प्रोजेक्ट आपको कैसा लगता है? यह आज शाम की ही उपज है। रिमझिम पानी बरस रहा है तो गाना याद आया –
आई बरखा बहार,
जिया करत पुकार,
सुनो सुनो दिलदार,
पकोड़े खिला दे साथ चाय के।
तो साहब मुँहमाँगी मुराद पूरी हुई। चाय के साथ गरमा गरम पकोड़े मिल गए। साथ ही पकोड़े पर शेर की फ़रमाइश भी। अब पकोड़े का हमक़ाफ़िया ‘कोड़े’ के साथ खोजने पर सिर्फ़ ‘मकोड़े’ मिला जिसका कोई अर्थ या अस्तित्व ही नहीं है। बस ‘कीड़े’ के साथ ही इस्तेमाल होता है। मकोड़े और कोड़े के ‘क’ को छोड़ कर ‘ओड़े’ का हमक़ाफ़िया सोच ही रहा था कि टीवी समाचारों ने समाधान प्रदान किया “भगोड़े”। इन दिनों विजय माल्या जी सर्वप्रमुख भगोड़े हैं और काफ़ी चर्चा में हैं। यू.के. से उनको वापस लाने की मुहिम तेज़ी पर है।
विजय माल्या से उनकी दारू फ़ैक्टरी यूनाइटेड ब्रिवरीज़ के कारण देश के अधिकांश संभ्रांत व्यक्तियों, ख़ासकर बुद्धिजीवियों का अच्छा संबंध रहा है। उनके कैलेंडर का भी बहुत इंतज़ार रहता है। विजय माल्या से मेरा तो काफ़ी पुराना रिश्ता है। जन्म का या वैवाहिक रिश्ता नहीं। मालिक – नौकर का। अरे वह नहीं जो आप सोच रहे हैं। मैंने उनकी किसी कम्पनी में कभी भी काम नहीं किया। हुआ यों कि 1980 के दशक में यूनाइटेड ब्रिवरीज़ का IPO आया था जिसमें मुझे भी कुछ शेयर एलॉट हुए थे। तो बताइए मैं मालिक हुआ न उस कम्पनी का? और विजय माल्या उसके वैतनिक CMD होने के नाते नौकर।
इसके कुछ समय पहले तक प्रमुख भगोड़े का ताज श्री ललित मोदी के सर रहा। अब क्या बताऊँ, उनसे भी मेरे काफ़ी नज़दीकी रिश्ते हैं। अख़बारों से पता चला था कि वह मोदीनगर के राय बहादुर गूजर मल मोदी के पौत्र हैं। इस तरह वह जब चाहे मेरे रिश्तेदार होने का दावा कर सकते हैं, क्योंकि ‘राय’ मेरे भी नाम का अहम भाग है। फिर BHU के अभिलेख सिद्ध कर देंगे कि जो स्वर्ण पदक 1964 में केमिकल इंजीनियरिंग में टॉप करने के लिए मुझे प्रदान किया गया था वह ललित मोदी के पितामह राय बहादुर गूजर मल मोदी के नाम का था।
इधर अपने देश में नोटबंदी के बाद से कैशलेस व्यवस्था तेज़ी पकड़ रही है और काले धनाड्यों पर शिकंजा कस रहा है। मुझे डर सता रहा है कि क्या पता कोई अपना रिश्तेदार मान कर मेरे बैंक खाते में काला धन न ट्रांसफ़र कर दे। मुझे तो लेने के देने पड़ जाएँगे। इस “देने” के चक्कर से बचने के लिए विजय माल्या और ललित मोदी के भगोड़ेपन का महत्व कम करने के उद्देश्य से अन्य भगोड़ों के नाम उजागर करने का विचार आया। अतः प्रमुख भगोड़ों पर रिसर्च शुरू कर रहा हूँ।
इनसे पहले के भगोड़ों में बम्बई बम धमाकों के अपराधी दाऊद इब्राहीम व उसके भाई-बंधु प्रमुख हैं जो देश से भाग कर पाकिस्तान में बसे हैं और दुनिया भर में ग़ैर कानूनी धंधे फैलाए हुए हैं। उनको वापस लाने के सारे प्रयास विफल ही हैं। पाकिस्तान सरकार के अनुसार वह कोई वहाँ हैं ही नहीं। कुछ साल पहले क्वात्रोची भारत से भाग कर मलयेशिया और फिर इटली की शरण में चला गया जहाँ से प्रत्यार्पण के सभी प्रयास विफल होने ही थे। 1984 में भोपाल गैस कांड के बाद एंडरसन देश से भाग गया था या भगा दिया गया यह अपने आप में शोध का विषय है।
ये सब तो ऐसे भगोड़े हैं जिन्हें अभी तक वापस नहीं लाया जा सका। किन्तु देश में कम से कम एक भगोड़े को वापस लाने में हमारी सरकार सफल भी हुई। 1960 के दशक में डॉ. धरम तेजा ने जयंती शिपिंग कम्पनी खोली थी। जहाजों से काफ़ी कमाई की और नए जहाज ख़रीदने के लिए एक-एक पुराने जहाज पर ग़ैर कानूनी तरीके से एक से अधिक बैंकों से कर्ज़ ले लेकर कम्पनी बढ़ाता रहा, और एक दिन काफ़ी माल-मत्ता लेकर इंगलैंड भाग गया। 1966 में उसे भगोड़ा घोषित कर प्रत्यार्पण के प्यास शुरू किए गए। तब वह USA और दक्शिणी अमरीकी देशों में जा बसा। बड़ी कठिनाइयों से 1972 में उसे वापस लाकर कानून के हवाले किया जा सका। ग़ौर तलब है कि इस बीच वह लंदन में तत्कालीन प्रधान मंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी से मिला भी था और उन्हें तोहफ़ा भी दिया था।
हमारे प्रिय नेताजी सुभाष चंद्र बोस को भी अंग्रेजी हुकूमत ने भगोड़ा घोषित किया था। परंतु वह स्वतंत्रता पूर्व होने के कारण इस शोध के दायरे से बाहर है।
देखिए मैंने तो अपने सारे पत्ते खोल दिए। अब आप ही बताइए कि मैं जीता या आप हारे? यानी मुझे पी.एच.डी. मिल रही है या मैं कोई और दरवाज़ा खटखटाऊँ, मेरा मतलब प्रोजेक्ट ढूँढूँ।
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— वी. सी. राय ‘नया’