*”कृपया एक बार जरूर पढ़ें।*
*यह किसी के पक्ष या विरोध की बात नहीं है।*
*Supreme Court से सार्वजनिक किए जाने की अनुमति मिलने पर ही इसे प्रकाशित किया गया है…।”*
60 साल तक भारत में प्रतिबंधित रहा नाथूराम का अंतिम भाषण –
*“मैंने गांधी को क्यों मारा”*
👉 30 जनवरी 1948 को नाथूराम गोड़से ने महात्मा गांधी की गोली मारकर हत्या कर दी थी लेकिन नाथूराम गोड़से घटना स्थल से फरार नहीं हुआ बल्कि उसने आत्मसमर्पण कर दिया।
नाथूराम गोड़से समेत 17 अभियुक्तों पर गांधीजी की हत्या का मुकदमा चलाया गया। इस मुकदमे की सुनवाई के दरम्यान न्यायमूर्ति खोसला से नाथूराम ने अपना वक्तव्य स्वयं पढ़कर जनता को सुनाने की अनुमति माँगी थी जिसे न्यायमूर्ति ने स्वीकार कर लिया था, मगर यह Court परिसर तक ही सीमित रह गयी क्योंकि सरकार ने नाथूराम के इस वक्तव्य पर प्रतिबन्ध लगा दिया था, लेकिन नाथूराम के छोटे भाई और गांधीजी की हत्या के सह-अभियोगी ‘गोपाल गोड़से’ ने 60 साल की लंबी कानूनी लड़ाई लड़ने के बाद सुप्रीम कोर्ट में विजय प्राप्त की और नाथूराम का वक्तव्य प्रकाशित किया गया।
*“मैंने गांधी को क्यों मारा”*
नाथूराम गोड़से ने ‘गांधी-हत्या’ के पक्ष में अपनी 150 दलीलें न्यायलय के समक्ष प्रस्तुत कीं।
“नाथूराम गोड़से के वक्तव्य के कुछ मुख्य अंश”
🔸1. नाथूराम का विचार था कि गांधीजी की अहिंसा हिन्दुओं को कायर बना देगी। कानपुर में गणेश शंकर विद्यार्थी को मुसलमानों ने निर्दयता से मार दिया था! महात्मा गांधी सभी हिन्दुओं से गणेश शंकर विद्यार्थी की तरह अहिंसा के मार्ग पर चलकर बलिदान करने की बात करते थे। नाथूराम गोड़से को भय था कि गांधीजी की ये अहिंसा वाली नीति हिन्दुओं को कमजोर बना देगी और वो अपना अधिकार कभी प्राप्त नहीं कर पायेंगे।
🔸2. 1919 में अमृतसर के जलियाँवाला बाग़ गोलीकांड के बाद से पूरे देश में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ आक्रोश उफ़ान पे था।
भारतीय जनता इस नरसंहार के खलनायक जनरल डायर पर अभियोग चलाने की मंशा लेकर गांधीजी के पास गयी लेकिन गांधीजी ने भारतवासियों के इस आग्रह को समर्थन देने से साफ़ मना कर दिया।
🔸3. महात्मा गांधी ने खिलाफ़त आन्दोलन का समर्थन करके भारतीय राजनीति में साम्प्रदायिकता का जहर घोल दिया। महात्मा गांधी खुद को मुसलमानों का हितैषी की तरह पेश करते थे।
वो केरल के मोपला मुसलमानों द्वारा वहाँ के 1500 हिन्दूओं को मारने और 2000 से अधिक हिन्दुओं को मुसलमान बनाये जाने की घटना का विरोध तक नहीं कर सके।
🔸4. काँग्रेस के त्रिपुरा अधिवेशन में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को बहुमत से काँग्रेस अध्यक्ष चुन लिया गया किन्तु गांधीजी अपने प्रिय सीतारमय्या का समर्थन कर रहे थे। इसलिए उन्होंने सुभाष चन्द्र बोस को जोर जबरदस्ती करके इस्तीफ़ा देने के लिए मजबूर कर दिया!
🔸5. 23 मार्च 1931 को भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरु को फाँसी दे दी गयी। पूरा देश इन वीर बालकों की फाँसी को टालने के लिए महात्मा गांधी से प्रार्थना कर रहा था लेकिन गांधीजी ने भगतसिंह की हिंसा को अनुचित ठहराते हुए देशवासियों की इस उचित माँग को अस्वीकार कर दिया।
🔸6. गांधीजी ने कश्मीर के हिन्दू राजा हरिसिंह से कहा कि कश्मीर मुस्लिम बहुल क्षेत्र है अत: वहाँ का शासक कोई मुसलमान होना चाहिए। अतएव राजा हरिसिंह को शासन छोड़, काशी जाकर प्रायश्चित करने को कहा! जबकि हैदराबाद के निज़ाम के शासन का गांधीजी ने समर्थन किया था जबकि हैदराबाद उस समय हिन्दू बहुल क्षेत्र था।
गांधीजी की नीतियाँ धर्म के साथ, बदलती रहती थी। उनकी मृत्यु के पश्चात सरदार पटेल ने सशक्त बलों के सहयोग से हैदराबाद को भारत में मिलाने का अद्वित्तीय कार्य किया। गांधीजी के रहते ऐसा करना संभव नहीं होता।
🔸7. पाकिस्तान में हो रहे भीषण रक्तपात से किसी तरह अपनी जान बचाकर भारत आने वाले विस्थापित हिन्दुओं ने दिल्ली की खाली मस्जिदों में जब अस्थाई शरण ली तो मुसलमानों ने मस्जिद में आए उन हिन्दू शरणार्थियों का विरोध किया, जिसके आगे गांधीजी नतमस्तक हो गये और इस प्रकार उन विस्थापित हिन्दुओं को, जिनमें वृद्ध, स्त्रियाँ व बालक अधिक थे, मस्जिदों से खदेड़कर, उन्हें बाहर ठिठुरते शीत में रात बिताने पर मजबूर किया गया!
🔸8. महात्मा गांधी ने दिल्ली स्थित मंदिर में अपनी प्रार्थना सभा के दौरान नमाज पढ़ी जिसका मंदिर के पुजारी से लेकर तमाम हिन्दुओं ने विरोध किया लेकिन गांधीजी ने इस विरोध को दरकिनार कर दिया! लेकिन महात्मा गांधी एक बार भी किसी मस्जिद में जाकर गीता का पाठ नहीं कर सके!
🔸9. लाहौर काँग्रेस में वल्लभभाई पटेल को बहुमत से विजय प्राप्त हुयी किन्तु गाँधीजी की जिद के कारण यह पद जवाहरलाल नेहरु को दिया गया!गांधीजी अपनी माँग को मनवाने के लिए अनशन-धरना-रूठना किसी से बात न करने जैसी युक्तियों को अपनाकर अपना काम निकलवाने में माहिर थे। इसके लिए वो नीति-अनीति का लेशमात्र विचार भी नहीं करते थे।
🔸10. 14 जून 1947 को दिल्ली में आयोजित अखिल भारतीय काँग्रेस समिति की बैठक में भारत विभाजन का प्रस्ताव अस्वीकृत होने वाला था, लेकिन गांधीजी ने वहाँ पहुँचकर प्रस्ताव का समर्थन करवाया। यह भी तब जबकि गांधीजी ने स्वयं ही यह कहा था कि देश का विभाजन उनकी लाश पर होगा।
परिणामतः न सिर्फ देश का विभाजन हुआ बल्कि लाखों निर्दोष लोगों का कत्लेआम भी हुआ लेकिन गांधीजी ने कुछ नहीं किया।
🔸11. धर्म-निरपेक्षता के नाम पर मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति के जन्मदाता महात्मा गाँधी ही थे। जब मुसलमानों ने हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाए जाने का विरोध किया तो महात्मा गांधी ने इसे सहर्ष स्वीकार कर लिया और हिंदी की जगह हिन्दुस्तानी (हिंदी + उर्दू की खिचड़ी) को बढ़ावा देने लगे परिणामस्वरूप’बादशाह राम’ और ‘बेगम सीता’ जैसे शब्दों का चलन शुरू हुआ!
🔸12. कुछ एक, मुट्ठीभर मुसलमानों द्वारा ‘वंदेमातरम् गान’ का विरोध करने पर ही महात्मा गांधी तुरंत झुक गए और इस पावन गीत को भारत का ‘राष्ट्र गान’ नहीं बनने दिया!
🔸13. गांधीजी ने अनेक अवसरों पर शिवाजी, महाराणा प्रताप व गुरु गोविन्द सिंह को ‘पथभ्रष्ट’ कहा। वहीं दूसरी ओर गांधीजी मोहम्मद अली जिन्ना को क़ायदे-आजम कहकर पुकारते थे।
🔸14. काँग्रेस ने 1931 में स्वतंत्र भारत के राष्ट्रध्वज बनाने के लिए एक समिति का गठन किया था इस समिति ने सर्वसम्मति से चरखा अंकित भगवा वस्त्र वाले भारत के राष्ट्र ध्वज के डिजाइन को मान्यता दी, किन्तु गांधीजी की जिद के कारण उसे बदलकर तिरंगा कर दिया गया।
🔸15. जब सरदार वल्लभ भाई पटेल के नेतृत्व में सोमनाथ मन्दिर का सरकारी व्यय पर पुनर्निर्माण का प्रस्ताव पारित किया गया तब गांधीजी (जोकि मन्त्रीमण्डल के सदस्य भी नहीं थे) ने सोमनाथ मन्दिर पर सरकारी व्यय के प्रस्ताव को निरस्त करवाया और 13 जनवरी 1948 को आमरण अनशन के माध्यम से सरकार पर दिल्ली की मस्जिदों का सरकारी खर्चे से पुनर्निर्माण कराने के लिए दबाव डाला।
🔸16. भारत को स्वतंत्रता के बाद पाकिस्तान को एक समझौते के तहत 75 करोड़ रूपए देने थे भारत ने 20 करोड़ रूपये दे भी दिए थे लेकिन इसी बीच 22 अक्टूबर 1947 को पाकिस्तान ने कश्मीर पर आक्रमण कर दिया! केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल ने आक्रमण से क्षुब्ध होकर 55 करोड़ की राशि न देने का निर्णय लिया। जिसका महात्मा गांधी ने जबरदस्त विरोध किया और आमरण अनशन शुरु कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप 55 करोड़ की राशि भारत ने पाकिस्तान को दे दी!
महात्मा गांधी भारत के नहीं अपितु पाकिस्तान के राष्ट्रपिता थे जो हर कदम पर पाकिस्तान के पक्ष में खड़े रहे, फिर चाहे पाकिस्तान की कोई भी छोटी-बड़ी ‘माँग’ जायज हो या नाजायज, गांधीजी ने कदाचित इसकी परवाह नहीं की!
👉 उपरोक्त घटनाओं को देशविरोधी मानते हुए नाथूराम गोड़से ने महात्मा गांधी की हत्या को न्यायोचित ठहराने का प्रयास किया।
नाथूराम ने न्यायालय में स्वीकार किया कि महात्मा गांधी बहुत बड़े देशभक्त थे उन्होंने निस्वार्थ भाव से देश सेवा की।
नाथूराम ने कहा- मैं उनका बहुत आदर करता हूँ लेकिन मैं किसी भी देशभक्त को देश के टुकड़े करने के व किसीएक संप्रदाय के साथ पक्षपात करने की अनुमति के खिलाफ़ हूँ अतः गांधीजी की हत्या के सिवाय मेरे पास कोई दूसरा उपाय नहीं था।
नाथूराम गोड़से द्वारा अदालत में दिए बयान के कुछ प्रमुख एवँ मुख्य अंश-
👊 मैंने गांधी को मारा नहीं…
मैंने गांधी का *वध* किया है
‘गांधी-वध’…।
👊 वो मेरे व्यक्तिगत दुश्मन नहीं थे परन्तु उनके निर्णय राष्ट्र के लिए घातक साबित हो रहे थे…!
👊 जब व्यक्ति के पास कोई रास्ता न बचे तब वह मज़बूरी में सही कार्य के लिए गलत रास्ता अपनाता है…!
👊 मुस्लिम लीग और पाकिस्तान निर्माण की गलत नीति के प्रति गांधीजी की सकारात्मक प्रतिक्रिया ने ही मुझे ‘गांधी-वध’ करने को मजबूर किया…!
👊 पाकिस्तान को 55 करोड़ का भुगतान करने की गैरवाजिब माँग को लेकर गांधीजी अनशन पर बैठे…!
👊 बँटवारे में पाकिस्तान से आ रहे हिन्दुओं की आपबीती और दुर्दशा ने मुझे हिलाकर रख दिया था…!
👊 गांधीजी के कारण ‘अखंड हिन्दू राष्ट्र’, मुस्लिम लीग के आगे घुटने टेक रहा था…!
👊 बेटों के सामने माँ का खंडित होकर टुकड़ों में बँटना… विभाजित होना… मेरे लिए असहनीय था…!
👊 अपनी ही धरती पर हम परदेशी बन गए थे…!
👊 मुस्लिम लीग की सारी गलत माँगो को गांधीजी मानते जा रहे थे…!
👊 मैंने ये निर्णय किया कि- अग़र भारत माँ को अब और विखंडित और दयनीय स्थिति में नहीं होने देना है तो मुझे गांधी को मारना ही होगा…।
और इसलिए मैंने गांधी को मारा…!!
👊 मुझे पता है इसके लिए मुझे फाँसी होगी।
मैं इसके लिए तैयार हूँ…।
👊 और हाँ यदि मातृभूमि की रक्षा करना अपराध है तो मैं यह अपराध बार-बार करूँगा… हर बार करूँगा…
और
जब तक सिन्ध नदी पुनः अखंड हिन्द में न बहने लगे तब तक मेरी अस्थियों का विसर्जन नहीं करना !!
👊 मुझे फाँसी देते वक्त मेरे एक हाथ में केसरिया ध्वज और दूसरे हाथ में अखंड भारत का नक्शा हो !!
👊 मैं फाँसी चढ़ते वक्त अखंड भारत की जय-जय बोलना चाहूँगा !!
🙏 हे भारत माँ ! मुझे दुःख है, मैं तेरी इतनी ही सेवा कर पाया…!
*- नाथूराम गोड़से*
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इस धरा पर मौजूद हरएक भारतीय देशभक्त सचाई से वाकिफ़ हो सके।
वंदेमातरम।
🙏
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*~रमेश चन्द्र भार्गव*