Posted in संस्कृत साहित्य

वाणी की चतुरता सीखें हनुमान से


वाणी की चतुरता सीखें हनुमान से

आचार्य लल्लनप्रसाद व्यास
hanuman वाल्मीकि रामायण: सुंदरकांड: भाग-5

रामायण के विद्वान,कर्म की कुशलता ही व्यक्ति की उपलब्धियों की पहचान है और इस कुशलता का राज छिपा है पूर्ण चित्त और मनोयोग से अपनी जिम्मेदारियों के निर्वहन में। हनुमान दूत की भूमिका में कुशल वाणी प्रयोग के सिद्धांतों पर प्रकाश डालते हैं। वे रावण के सामने अपराधी के रूप में प्रस्तुत हुए हैं, अशोक वाटिका के ध्वंस के लिए।

वे रावण से बात कर रहे हैं श्रीराम-सुग्रीव के दूत के रूप में। दूत सिर्फ संदेशवाहक नहीं होता, उसे अपने स्वामी के विचारों से दूसरे पक्ष को सहमत करवाना होता है। दूत-कला विचार, भाव और तात्पर्य के सही संप्रेषण की कला है। रावण ज्ञानी, तपस्वी, विद्वान लेकिन अहंकारी है। इस तथ्य से परिचित हनुमान अपने ज्ञान का प्रयोग अपनी बात की बेहतर सुनवाई के लिए करते हैं। वे रावण के इन सद्गुणों का आदर कर उसे अपने अनुरूप व्यवहार करने को प्रेरित करते हैं। वे रावण से कहते हैं-

तद् भवान् दृष्टधर्मार्थस्तप:कृतपरिग्रह:।
परदारान् महाप्राज्ञ नोपरोद्धुं त्वमर्हसि॥
नहि धर्मविरुद्धेषु बह्वपायेषु कर्मसु।
मूलघातिषु सज्जन्ते बुद्धिमन्तो भवद्विधा:॥ – 5/51/17-18

अर्थात्- महा बुद्धिमान! तुम धर्म और अर्थ के तत्व को जानने वाले हो। तुमने बड़े भारी तप का संग्रह किया है। अत: दूसरे की स्त्री को अपने घर में रोक रखना तुम्हारे लिए उचित नहीं है। धर्म विरुद्ध कार्यो में बहुत से अनर्थ रहते हैं। वे कर्ता का समूल नाश कर देते हैं। तुम जैसे बुद्धिमान पुरुष ऐसे कार्य में प्रवृत्त नहीं होते।

रावण श्रीराम के संदेश को उनकी कमजोरी का लक्षण न समझ ले, इसलिए हनुमान रावण को श्रीराम के बल-पौरुष का वर्णन भी करते हैं। अगर यहां हनुमान धर्म, नीति और भय का उपयोग करते हैं तो वे अधर्म के परिणति का भावचित्र भी खींचते हैं। सीता को कालरात्रि और काल का पाश कहकर वे कहते हैं-

सीतायास्तेजसा दग्धां रामकोपप्रदीपिताम्।
दह्यमानामिमां पश्य पुरीं साट्टप्रतोलिकाम्॥-5/51/36

अर्थात्- देखो! ऊंचे भवन और गलियों सहित यह लंकापुरी सीताजी के तेज और श्रीराम की क्रोधाग्नि से जलकर भस्म होने जा रही है। रावण के सिर पर काल डोल रहा होता है। उसे हनुमान जैसे नीतिज्ञ की सलाह सहन नहीं होती और वह हनुमान के वध करने के लिए प्रेरित होता है। विभीषण रावण को उसके धर्म, नीति और कर्तव्य की दुहाई देकर कहते हैं कि इसका वध नहीं किया जा सकता। ‘आप जैसा नीतिज्ञ पुरुष क्रोध के अधीन कैसे हो सकता है? क्योंकि शक्तिशाली पुरुष क्रोध नहीं करते हैं। विभीषण के समयानुकूल मधुर वचनों से रावण हनुमान के वध करने का विचार छोड़ देता है और हनुमान की पूंछ जलाने की सजा देते हैं।’

हनुमान और विभीषण की वाणी के प्रयोग जीवन के लिए प्रेरणास्पद संदेश देते हैं कि ज्येष्ठ लोगों को किस प्रकार सलाह दे, जिससे कि वह स्वीकार्य हो। यह एक मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि वरिष्ठों को अपने से छोटे लोगों से सलाह लेने में हिचक होती है। सफलता की हर सीढ़ी अहंकार की एक बाधा निर्मित करती है। अपनी सलाह देते समय हनुमान और विभीषण स्वयं को छिपाकर धर्म और नीति के माध्यम से अपनी बात रखते हैं। जहां रावण का संदर्भ आता है, वे उसे प्रमुखता देते हैं। यही सही व्यवहार का ढंग है।

आज उम्र में, योग्यता में छोटे लोग भी अहंकार पालते हैं और खुलेपन के नाम पर सम्मान व भद्र आचरण छोड़ देते हैं। एक बनावटी मित्रता का वातावरण बनाना ही संस्कृति का पर्याय बन गया है। ये मित्रता उचित मान-सम्मान आधारित संबंधों का स्थान लेने में असमर्थ है और नई पीढ़ी पुरानी पीढ़ी से सीख लेने लज्जा महसूस करती है।

हनुमान भारतीय संस्कृति के आधार और व्यवहार पक्ष के प्रतीक हैं। संस्कृति जो शत्रु के गुणों का भी आदर करती हैं। हनुमान लंका दहन कर जब महेंद्र पर्वत पहुंचकर जाम्बवान्, अंगद आदि वानरों को लंका यात्रा का पूर्ण विवरण सुनाते हैं। उनकी विनम्रता यहां दृष्टिगोचर मिलती हैं। श्रीराम की कृपा और आप लोगों के प्रभाव से मैंने सुग्रीव के कार्य की सिद्धि के लिए सबकुछ किया है। वे आगे कहते हैं-

तत्र यन्न कृतं शेषं तत् र्सव क्रियतामिति। – ५/५८/१६९

अर्थात् यहां जो कार्य मैंने नहीं किया है अथवा शेष रह गया है, वह सब आप लोग पूर्ण करें।

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

ऋषि चरक ने बताया निरोगी रहने के ये तीन उपाय


चरक संहिता लिख तो दिया लेकिन लोग उसका मतलब समझ भी पाए या नहीं, यह जानने के लिए ऋषि चरक भेष बदल कर निकले. वे नगर के प्रसिद्ध वैद्यों से मिले और निरोगी रहने के उपाय पूछे. वैद्यों के जवाब सुनकर उन्‍होंने माथा पीट लिया और मन ही मन सोचा सब व्‍यर्थ हो गया. ये सब वैद्य बिजनेसमेन बन गए हैं और वैद्यशालाएं दुकानें. लास्‍ट में एक वैद्य ऐसे मिले जिन्‍होंने स्‍वस्‍थ रहने का सही मतलब बताया. आइए जानते हैं चरक संहिता के अनुसार स्‍वस्‍थ रहने के वे फ्री उपाय…

ऋषि चरक ने बताया निरोगी रहने के ये तीन उपाय

नकली भेष धर कर जानने निकले असली ज्ञान
चरक ने एक बूढ़े का वेष धरा और चरक संहिता के असली ज्ञान के बारे में जानने निकल गए. नगर के एक प्रसिद्ध वैद्यशाला पहुंचे तो वहां वैद्य रोगियों को देखने में बिजी थे. उनका सहयोगी रोगियों द्वारा लाए गए उपहार समेटने में व्‍यस्‍त था. उस समय लोग रुपये-पैसे की जगह अपने घर से लाकर उपहार दिया करते थे. जैसे दर्जी कोई कपड़ा, लोहार कोई घरेलू लोहे का औजार, पंसारी रोजमर्रा की चीजें, किसान अनाज उपहार के रूप में लेकर आता था. जो कुछ नहीं लाता था उसे भी लास्‍ट में देख लिया जाता था. सो चरक का भी लास्‍ट में ही नंबर आया. जाते ही उन्‍होंने वैद्य से पूछा निरोगी कौन? वैद्य ने कहा कि जो नियमित त्रिफला का सेवन करता है. वह बगल वाली दुकान से मिल जाएगा. वह यह बताना नहीं भूले कि वहां औषधियां उनकी देखरेख में ही बनती हैं. चरक ने अपना माथा पीटा और तुरंत वहां से निकल गए. उन्‍होंने मन में सोचा यहां अस्‍पताल नहीं दुकानें खुल गई हैं. और भी कई वैद्यशालाओं का यही हाल था. किसी वैद्य ने कहा स्‍वस्‍थ वही रह सकता है जो नियमित च्‍यवनप्राश खाता है तो किसी ने कहा जो स्‍वर्ण भस्‍म का सेवन करता है.

नदी किनारे मिला निरोगी रहने का सूत्र
दुखी होकर वे नगर के बाहर निकल गए. उन्‍होंने सोचा मनुष्‍य को स्‍वस्‍थ रहने के लिए इतना बड़ा ग्रंथ बेकार ही लिखा. लोगों ने शरीर को दवाखाना बना कर रख लिया है. अस्‍पताल दुकानें बन गई हैं और वैद्य बिजनेसमेन. सब इन किताबों से पढ़कर औषधियां बनाकर बेच रहे हैं. रोगियों की संख्‍या बढ़ती जा रही है. ऐसे तो पूरा हो चुका निरोगी संसार की कामना. दुखी होकर वे नदी किनारे बैठे गए. तभी देखा कि एक व्‍यक्ति नदी से नहा कर जा रहा था. उसकी वेशभूषा देखकर वे समझ गए कि यह भी कोई वैद्य ही है. मन नहीं माना तो उन्‍होंने उस वैद्य से भी वही सवाल पूछा, ‘कोरुक?’ (यानी कौन निरोगी?) पहले तो वह व्‍यक्ति उन्‍हें गौर से देखा फिर बोला, ‘हित भुक, मित भुक, ऋत भुक.’ यह सुनते ही चरक का चेहरा खुशी से खिल उठा. उन्‍होंने उस वैद्य को गले से लगा लिया. बोले आपने बिलकुल ठीक कहा जो व्‍यक्ति शरीर को लगने वाला आहार ले, भूख से थोड़ा कम खाए और मौसम के अनुसार भोजन या फलाहार करे वही स्‍वस्‍थ रह सकता है. अगर हम नियमित इसका पालन करें तो शरीर में रोक हो ही नहीं. और गलती से कुछ हो ही गया तो चरक संहिता में उपचार की विधियों का वर्णन किया ही गया है.

Posted in भारत का गुप्त इतिहास- Bharat Ka rahasyamay Itihaas

60 साल तक भारत में प्रतिबंधित रहा नाथूराम का अंतिम भाषण


*”कृपया एक बार जरूर पढ़ें।*
*यह किसी के पक्ष या विरोध की बात नहीं है।*
*Supreme Court से सार्वजनिक किए जाने की अनुमति मिलने पर ही इसे प्रकाशित किया गया है…।”*

60 साल तक भारत में प्रतिबंधित रहा नाथूराम का अंतिम भाषण –

*“मैंने गांधी को क्यों मारा”*
👉 30 जनवरी 1948 को नाथूराम गोड़से ने महात्मा गांधी की गोली मारकर हत्या कर दी थी लेकिन नाथूराम गोड़से घटना स्थल से फरार नहीं हुआ बल्कि उसने आत्मसमर्पण कर दिया।
नाथूराम गोड़से समेत 17 अभियुक्तों पर गांधीजी की हत्या का मुकदमा चलाया गया। इस मुकदमे की सुनवाई के दरम्यान न्यायमूर्ति खोसला से नाथूराम ने अपना वक्तव्य स्वयं पढ़कर जनता को सुनाने की अनुमति माँगी थी जिसे न्यायमूर्ति ने स्वीकार कर लिया था, मगर यह Court परिसर तक ही सीमित रह गयी क्योंकि सरकार ने नाथूराम के इस वक्तव्य पर प्रतिबन्ध लगा दिया था, लेकिन नाथूराम के छोटे भाई और गांधीजी की हत्या के सह-अभियोगी ‘गोपाल गोड़से’ ने 60 साल की लंबी कानूनी लड़ाई लड़ने के बाद सुप्रीम कोर्ट में विजय प्राप्त की और नाथूराम का वक्तव्य प्रकाशित किया गया।
*“मैंने गांधी को क्यों मारा”*

नाथूराम गोड़से ने ‘गांधी-हत्या’ के पक्ष में अपनी 150 दलीलें न्यायलय के समक्ष प्रस्तुत कीं।

“नाथूराम गोड़से के वक्तव्य के कुछ मुख्य अंश”

🔸1. नाथूराम का विचार था कि गांधीजी की अहिंसा हिन्दुओं को कायर बना देगी। कानपुर में गणेश शंकर विद्यार्थी को मुसलमानों ने निर्दयता से मार दिया था! महात्मा गांधी सभी हिन्दुओं से गणेश शंकर विद्यार्थी की तरह अहिंसा के मार्ग पर चलकर बलिदान करने की बात करते थे। नाथूराम गोड़से को भय था कि गांधीजी की ये अहिंसा वाली नीति हिन्दुओं को कमजोर बना देगी और वो अपना अधिकार कभी प्राप्त नहीं कर पायेंगे।

🔸2. 1919 में अमृतसर के जलियाँवाला बाग़ गोलीकांड के बाद से पूरे देश में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ आक्रोश उफ़ान पे था।
भारतीय जनता इस नरसंहार के खलनायक जनरल डायर पर अभियोग चलाने की मंशा लेकर गांधीजी के पास गयी लेकिन गांधीजी ने भारतवासियों के इस आग्रह को समर्थन देने से साफ़ मना कर दिया।

🔸3. महात्मा गांधी ने खिलाफ़त आन्दोलन का समर्थन करके भारतीय राजनीति में साम्प्रदायिकता का जहर घोल दिया। महात्मा गांधी खुद को मुसलमानों का हितैषी की तरह पेश करते थे।
वो केरल के मोपला मुसलमानों द्वारा वहाँ के 1500 हिन्दूओं को मारने और 2000 से अधिक हिन्दुओं को मुसलमान बनाये जाने की घटना का विरोध तक नहीं कर सके।

🔸4. काँग्रेस के त्रिपुरा अधिवेशन में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को बहुमत से काँग्रेस अध्यक्ष चुन लिया गया किन्तु गांधीजी अपने प्रिय सीतारमय्या का समर्थन कर रहे थे। इसलिए उन्होंने सुभाष चन्द्र बोस को जोर जबरदस्ती करके इस्तीफ़ा देने के लिए मजबूर कर दिया!

🔸5. 23 मार्च 1931 को भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरु को फाँसी दे दी गयी। पूरा देश इन वीर बालकों की फाँसी को टालने के लिए महात्मा गांधी से प्रार्थना कर रहा था लेकिन गांधीजी ने भगतसिंह की हिंसा को अनुचित ठहराते हुए देशवासियों की इस उचित माँग को अस्वीकार कर दिया।

🔸6. गांधीजी ने कश्मीर के हिन्दू राजा हरिसिंह से कहा कि कश्मीर मुस्लिम बहुल क्षेत्र है अत: वहाँ का शासक कोई मुसलमान होना चाहिए। अतएव राजा हरिसिंह को शासन छोड़, काशी जाकर प्रायश्चित करने को कहा! जबकि हैदराबाद के निज़ाम के शासन का गांधीजी ने समर्थन किया था जबकि हैदराबाद उस समय हिन्दू बहुल क्षेत्र था।
गांधीजी की नीतियाँ धर्म के साथ, बदलती रहती थी। उनकी मृत्यु के पश्चात सरदार पटेल ने सशक्त बलों के सहयोग से हैदराबाद को भारत में मिलाने का अद्वित्तीय कार्य किया। गांधीजी के रहते ऐसा करना संभव नहीं होता।

🔸7. पाकिस्तान में हो रहे भीषण रक्तपात से किसी तरह अपनी जान बचाकर भारत आने वाले विस्थापित हिन्दुओं ने दिल्ली की खाली मस्जिदों में जब अस्थाई शरण ली तो मुसलमानों ने मस्जिद में आए उन हिन्दू शरणार्थियों का विरोध किया, जिसके आगे गांधीजी नतमस्तक हो गये और इस प्रकार उन विस्थापित हिन्दुओं को, जिनमें वृद्ध, स्त्रियाँ व बालक अधिक थे, मस्जिदों से खदेड़कर, उन्हें बाहर ठिठुरते शीत में रात बिताने पर मजबूर किया गया!

🔸8. महात्मा गांधी ने दिल्ली स्थित मंदिर में अपनी प्रार्थना सभा के दौरान नमाज पढ़ी जिसका मंदिर के पुजारी से लेकर तमाम हिन्दुओं ने विरोध किया लेकिन गांधीजी ने इस विरोध को दरकिनार कर दिया! लेकिन महात्मा गांधी एक बार भी किसी मस्जिद में जाकर गीता का पाठ नहीं कर सके!

🔸9. लाहौर काँग्रेस में वल्लभभाई पटेल को बहुमत से विजय प्राप्त हुयी किन्तु गाँधीजी की जिद के कारण यह पद जवाहरलाल नेहरु को दिया गया!गांधीजी अपनी माँग को मनवाने के लिए अनशन-धरना-रूठना किसी से बात न करने जैसी युक्तियों को अपनाकर अपना काम निकलवाने में माहिर थे। इसके लिए वो नीति-अनीति का लेशमात्र विचार भी नहीं करते थे।

🔸10. 14 जून 1947 को दिल्ली में आयोजित अखिल भारतीय काँग्रेस समिति की बैठक में भारत विभाजन का प्रस्ताव अस्वीकृत होने वाला था, लेकिन गांधीजी ने वहाँ पहुँचकर प्रस्ताव का समर्थन करवाया। यह भी तब जबकि गांधीजी ने स्वयं ही यह कहा था कि देश का विभाजन उनकी लाश पर होगा।
परिणामतः न सिर्फ देश का विभाजन हुआ बल्कि लाखों निर्दोष लोगों का कत्लेआम भी हुआ लेकिन गांधीजी ने कुछ नहीं किया।

🔸11. धर्म-निरपेक्षता के नाम पर मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति के जन्मदाता महात्मा गाँधी ही थे। जब मुसलमानों ने हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाए जाने का विरोध किया तो महात्मा गांधी ने इसे सहर्ष स्वीकार कर लिया और हिंदी की जगह हिन्दुस्तानी (हिंदी + उर्दू की खिचड़ी) को बढ़ावा देने लगे परिणामस्वरूप’बादशाह राम’ और ‘बेगम सीता’ जैसे शब्दों का चलन शुरू हुआ!

🔸12. कुछ एक, मुट्ठीभर मुसलमानों द्वारा ‘वंदेमातरम् गान’ का विरोध करने पर ही महात्मा गांधी तुरंत झुक गए और इस पावन गीत को भारत का ‘राष्ट्र गान’ नहीं बनने दिया!

🔸13. गांधीजी ने अनेक अवसरों पर शिवाजी, महाराणा प्रताप व गुरु गोविन्द सिंह को ‘पथभ्रष्ट’ कहा। वहीं दूसरी ओर गांधीजी मोहम्मद अली जिन्ना को क़ायदे-आजम कहकर पुकारते थे।

🔸14. काँग्रेस ने 1931 में स्वतंत्र भारत के राष्ट्रध्वज बनाने के लिए एक समिति का गठन किया था इस समिति ने सर्वसम्मति से चरखा अंकित भगवा वस्त्र वाले भारत के राष्ट्र ध्वज के डिजाइन को मान्यता दी, किन्तु गांधीजी की जिद के कारण उसे बदलकर तिरंगा कर दिया गया।

🔸15. जब सरदार वल्लभ भाई पटेल के नेतृत्व में सोमनाथ मन्दिर का सरकारी व्यय पर पुनर्निर्माण का प्रस्ताव पारित किया गया तब गांधीजी (जोकि मन्त्रीमण्डल के सदस्य भी नहीं थे) ने सोमनाथ मन्दिर पर सरकारी व्यय के प्रस्ताव को निरस्त करवाया और 13 जनवरी 1948 को आमरण अनशन के माध्यम से सरकार पर दिल्ली की मस्जिदों का सरकारी खर्चे से पुनर्निर्माण कराने के लिए दबाव डाला।

🔸16. भारत को स्वतंत्रता के बाद पाकिस्तान को एक समझौते के तहत 75 करोड़ रूपए देने थे भारत ने 20 करोड़ रूपये दे भी दिए थे लेकिन इसी बीच 22 अक्टूबर 1947 को पाकिस्तान ने कश्मीर पर आक्रमण कर दिया! केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल ने आक्रमण से क्षुब्ध होकर 55 करोड़ की राशि न देने का निर्णय लिया। जिसका महात्मा गांधी ने जबरदस्त विरोध किया और आमरण अनशन शुरु कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप 55 करोड़ की राशि भारत ने पाकिस्तान को दे दी!
महात्मा गांधी भारत के नहीं अपितु पाकिस्तान के राष्ट्रपिता थे जो हर कदम पर पाकिस्तान के पक्ष में खड़े रहे, फिर चाहे पाकिस्तान की कोई भी छोटी-बड़ी ‘माँग’ जायज हो या नाजायज, गांधीजी ने कदाचित इसकी परवाह नहीं की!

👉 उपरोक्त घटनाओं को देशविरोधी मानते हुए नाथूराम गोड़से ने महात्मा गांधी की हत्या को न्यायोचित ठहराने का प्रयास किया।
नाथूराम ने न्यायालय में स्वीकार किया कि महात्मा गांधी बहुत बड़े देशभक्त थे उन्होंने निस्वार्थ भाव से देश सेवा की।
नाथूराम ने कहा- मैं उनका बहुत आदर करता हूँ लेकिन मैं किसी भी देशभक्त को देश के टुकड़े करने के व किसीएक संप्रदाय के साथ पक्षपात करने की अनुमति के खिलाफ़ हूँ अतः गांधीजी की हत्या के सिवाय मेरे पास कोई दूसरा उपाय नहीं था।

नाथूराम गोड़से द्वारा अदालत में दिए बयान के कुछ प्रमुख एवँ मुख्य अंश-

👊 मैंने गांधी को मारा नहीं…
मैंने गांधी का *वध* किया है
‘गांधी-वध’…।

👊 वो मेरे व्यक्तिगत दुश्मन नहीं थे परन्तु उनके निर्णय राष्ट्र के लिए घातक साबित हो रहे थे…!

👊 जब व्यक्ति के पास कोई रास्ता न बचे तब वह मज़बूरी में सही कार्य के लिए गलत रास्ता अपनाता है…!

👊 मुस्लिम लीग और पाकिस्तान निर्माण की गलत नीति के प्रति गांधीजी की सकारात्मक प्रतिक्रिया ने ही मुझे ‘गांधी-वध’ करने को मजबूर किया…!

👊 पाकिस्तान को 55 करोड़ का भुगतान करने की गैरवाजिब माँग को लेकर गांधीजी अनशन पर बैठे…!

👊 बँटवारे में पाकिस्तान से आ रहे हिन्दुओं की आपबीती और दुर्दशा ने मुझे हिलाकर रख दिया था…!

👊 गांधीजी के कारण ‘अखंड हिन्दू राष्ट्र’, मुस्लिम लीग के आगे घुटने टेक रहा था…!

👊 बेटों के सामने माँ का खंडित होकर टुकड़ों में बँटना… विभाजित होना… मेरे लिए असहनीय था…!

👊 अपनी ही धरती पर हम परदेशी बन गए थे…!

👊 मुस्लिम लीग की सारी गलत माँगो को गांधीजी मानते जा रहे थे…!

👊 मैंने ये निर्णय किया कि- अग़र भारत माँ को अब और विखंडित और दयनीय स्थिति में नहीं होने देना है तो मुझे गांधी को मारना ही होगा…।
और इसलिए मैंने गांधी को मारा…!!

👊 मुझे पता है इसके लिए मुझे फाँसी होगी।
मैं इसके लिए तैयार हूँ…।

👊 और हाँ यदि मातृभूमि की रक्षा करना अपराध है तो मैं यह अपराध बार-बार करूँगा… हर बार करूँगा…
और
जब तक सिन्ध नदी पुनः अखंड हिन्द में न बहने लगे तब तक मेरी अस्थियों का विसर्जन नहीं करना !!

👊 मुझे फाँसी देते वक्त मेरे एक हाथ में केसरिया ध्वज और दूसरे हाथ में अखंड भारत का नक्शा हो !!

👊 मैं फाँसी चढ़ते वक्त अखंड भारत की जय-जय बोलना चाहूँगा !!

🙏 हे भारत माँ ! मुझे दुःख है, मैं तेरी इतनी ही सेवा कर पाया…!

*- नाथूराम गोड़से*

कृपया शेयर जरूर करें ताकि जानकारी सब तक पहुँच सके।
इस धरा पर मौजूद हरएक भारतीय देशभक्त सचाई से वाकिफ़ हो सके।
वंदेमातरम।
🙏🔔🙏
*~रमेश चन्द्र भार्गव*

Posted in राजनीति भारत की - Rajniti Bharat ki

स्वतंत्र भारत के प्रमुख भगोड़े


+++++ स्वतंत्र भारत के प्रमुख भगोड़े +++++
( वी. सी. राय ‘नया’ )

बताइए पी.एच.डी. के लिए मेरा यह प्रोजेक्ट आपको कैसा लगता है? यह आज शाम की ही उपज है। रिमझिम पानी बरस रहा है तो गाना याद आया –

आई बरखा बहार,
जिया करत पुकार,
सुनो सुनो दिलदार,
पकोड़े खिला दे साथ चाय के।

तो साहब मुँहमाँगी मुराद पूरी हुई। चाय के साथ गरमा गरम पकोड़े मिल गए। साथ ही पकोड़े पर शेर की फ़रमाइश भी। अब पकोड़े का हमक़ाफ़िया ‘कोड़े’ के साथ खोजने पर सिर्फ़ ‘मकोड़े’ मिला जिसका कोई अर्थ या अस्तित्व ही नहीं है। बस ‘कीड़े’ के साथ ही इस्तेमाल होता है। मकोड़े और कोड़े के ‘क’ को छोड़ कर ‘ओड़े’ का हमक़ाफ़िया सोच ही रहा था कि टीवी समाचारों ने समाधान प्रदान किया “भगोड़े”। इन दिनों विजय माल्या जी सर्वप्रमुख भगोड़े हैं और काफ़ी चर्चा में हैं। यू.के. से उनको वापस लाने की मुहिम तेज़ी पर है।

विजय माल्या से उनकी दारू फ़ैक्टरी यूनाइटेड ब्रिवरीज़ के कारण देश के अधिकांश संभ्रांत व्यक्तियों, ख़ासकर बुद्धिजीवियों का अच्छा संबंध रहा है। उनके कैलेंडर का भी बहुत इंतज़ार रहता है। विजय माल्या से मेरा तो काफ़ी पुराना रिश्ता है। जन्म का या वैवाहिक रिश्ता नहीं। मालिक – नौकर का। अरे वह नहीं जो आप सोच रहे हैं। मैंने उनकी किसी कम्पनी में कभी भी काम नहीं किया। हुआ यों कि 1980 के दशक में यूनाइटेड ब्रिवरीज़ का IPO आया था जिसमें मुझे भी कुछ शेयर एलॉट हुए थे। तो बताइए मैं मालिक हुआ न उस कम्पनी का? और विजय माल्या उसके वैतनिक CMD होने के नाते नौकर।

इसके कुछ समय पहले तक प्रमुख भगोड़े का ताज श्री ललित मोदी के सर रहा। अब क्या बताऊँ, उनसे भी मेरे काफ़ी नज़दीकी रिश्ते हैं। अख़बारों से पता चला था कि वह मोदीनगर के राय बहादुर गूजर मल मोदी के पौत्र हैं। इस तरह वह जब चाहे मेरे रिश्तेदार होने का दावा कर सकते हैं, क्योंकि ‘राय’ मेरे भी नाम का अहम भाग है। फिर BHU के अभिलेख सिद्ध कर देंगे कि जो स्वर्ण पदक 1964 में केमिकल इंजीनियरिंग में टॉप करने के लिए मुझे प्रदान किया गया था वह ललित मोदी के पितामह राय बहादुर गूजर मल मोदी के नाम का था।

इधर अपने देश में नोटबंदी के बाद से कैशलेस व्यवस्था तेज़ी पकड़ रही है और काले धनाड्यों पर शिकंजा कस रहा है। मुझे डर सता रहा है कि क्या पता कोई अपना रिश्तेदार मान कर मेरे बैंक खाते में काला धन न ट्रांसफ़र कर दे। मुझे तो लेने के देने पड़ जाएँगे। इस “देने” के चक्कर से बचने के लिए विजय माल्या और ललित मोदी के भगोड़ेपन का महत्व कम करने के उद्देश्य से अन्य भगोड़ों के नाम उजागर करने का विचार आया। अतः प्रमुख भगोड़ों पर रिसर्च शुरू कर रहा हूँ।

इनसे पहले के भगोड़ों में बम्बई बम धमाकों के अपराधी दाऊद इब्राहीम व उसके भाई-बंधु प्रमुख हैं जो देश से भाग कर पाकिस्तान में बसे हैं और दुनिया भर में ग़ैर कानूनी धंधे फैलाए हुए हैं। उनको वापस लाने के सारे प्रयास विफल ही हैं। पाकिस्तान सरकार के अनुसार वह कोई वहाँ हैं ही नहीं। कुछ साल पहले क्वात्रोची भारत से भाग कर मलयेशिया और फिर इटली की शरण में चला गया जहाँ से प्रत्यार्पण के सभी प्रयास विफल होने ही थे। 1984 में भोपाल गैस कांड के बाद एंडरसन देश से भाग गया था या भगा दिया गया यह अपने आप में शोध का विषय है।

ये सब तो ऐसे भगोड़े हैं जिन्हें अभी तक वापस नहीं लाया जा सका। किन्तु देश में कम से कम एक भगोड़े को वापस लाने में हमारी सरकार सफल भी हुई। 1960 के दशक में डॉ. धरम तेजा ने जयंती शिपिंग कम्पनी खोली थी। जहाजों से काफ़ी कमाई की और नए जहाज ख़रीदने के लिए एक-एक पुराने जहाज पर ग़ैर कानूनी तरीके से एक से अधिक बैंकों से कर्ज़ ले लेकर कम्पनी बढ़ाता रहा, और एक दिन काफ़ी माल-मत्ता लेकर इंगलैंड भाग गया। 1966 में उसे भगोड़ा घोषित कर प्रत्यार्पण के प्यास शुरू किए गए। तब वह USA और दक्शिणी अमरीकी देशों में जा बसा। बड़ी कठिनाइयों से 1972 में उसे वापस लाकर कानून के हवाले किया जा सका। ग़ौर तलब है कि इस बीच वह लंदन में तत्कालीन प्रधान मंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी से मिला भी था और उन्हें तोहफ़ा भी दिया था।

हमारे प्रिय नेताजी सुभाष चंद्र बोस को भी अंग्रेजी हुकूमत ने भगोड़ा घोषित किया था। परंतु वह स्वतंत्रता पूर्व होने के कारण इस शोध के दायरे से बाहर है।

देखिए मैंने तो अपने सारे पत्ते खोल दिए। अब आप ही बताइए कि मैं जीता या आप हारे? यानी मुझे पी.एच.डी. मिल रही है या मैं कोई और दरवाज़ा खटखटाऊँ, मेरा मतलब प्रोजेक्ट ढूँढूँ।
**********

— वी. सी. राय ‘नया’

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

रामायण कथा का एक अंश


*रामायण कथा का एक अंश*
जिससे हमे *सीख* मिलती है *”एहसास”* की… जो मुझे बहुत भाता है-

*श्री राम, लक्ष्मण एवम सीता’ मैया* चित्रकूट पर्वत की ओर जा रहे थे,
राह बहुत *पथरीली और कंटीली* थी !
कि यकायक *श्री राम* के चरणों में *कांटा* चुभ गया !

श्रीराम *रुष्ट या क्रोधित* नहीं हुए, बल्कि हाथ जोड़कर धरती माता से *अनुरोध* करने लगे !
बोले- “माँ, मेरी एक *विनम्र प्रार्थना* है आपसे, क्या आप *स्वीकार* करेंगी?”

*धरती* बोली- “प्रभु प्रार्थना नहीं, आज्ञा दीजिए!”

प्रभु बोले, “माँ, मेरी बस यही विनती है कि जब भरत मेरी खोज में इस पथ से गुज़रे, तो आप *नरम* हो जाना!
कुछ पल के लिए अपने आँचल के ये पत्थर और काँटे छुपा लेना!
मुझे कांटा चुभा सो चुभा, पर मेरे भरत के पाँव में *आघात* मत होने देना!”

श्रीराम को यूँ व्यग्र देखकर धरा दंग रह गई!
पूछा- “भगवन, धृष्टता क्षमा हो! पर क्या भरत आपसे अधिक सुकुमार हैं?
जब आप इतनी सहजता से सब सहन कर गए, तो क्या कुमार भरत सहन नहीं कर पाँएगें?
फिर उनको लेकर आपके चित्त में ऐसी *व्याकुलता* क्यों?”

*श्री राम* बोले- “नहीं… नहीं… माते,
आप मेरे कहने का अभिप्राय नहीं समझीं!
भरत को यदि कांटा चुभा, तो वह उसके पाँव को नहीं बल्कि उसके *हृदय* को विदीर्ण कर देगा!”

*”हृदय-विदीर्ण*!! ऐसा क्यों प्रभु?”,
*धरती माँ* ने जिज्ञासा भरे स्वर में पूछा!

श्रीराम ने पृथ्वी माँ की जिज्ञासा को शाँत करने हेतु बताया-
“अपनी पीड़ा से नहीं माँ, बल्कि यह सोचकर कि… इसी *कंटीली राह* से मेरे भैया राम गुज़रे होंगे और ये *शूल* उनके पगों मे भी चुभे होंगे!
मैया, मेरा भरत कल्पना में भी मेरी *पीड़ा* सहन नहीं कर सकता, इसलिए उसकी उपस्थिति में आप *कमल पँखुड़ियों सी कोमल* बन जाना..!!”

अर्थात
*रिश्ते* अंदरूनी एहसास व आत्मीय अनुभूति के दम पर ही टिकते हैं।
जहाँ *गहरी आत्मीयता* नहीं, वो रिश्ता *’रिश्ता’* नहीं *’दिखावा’* हो सकता है!

इसीलिए कहा गया है कि…
*’रिश्ते’…*
*खून* से नहीं…
*परिवार* से नहीं…
*मित्रता* से नहीं…
*व्यवहार* से नहीं…
बल्कि…
सिर्फ और सिर्फ
*आत्मीय “एहसास”* से ही…
*बनते और निर्वहन* किए जाते हैं।
जहाँ *एहसास* नहीं…
*आत्मीयता* नहीं…
वहाँ *अपनापन* कहाँ से आएगा…!

*हम सबके लिए प्रेरणास्पद लघुकथा।*

Posted in भारत का गुप्त इतिहास- Bharat Ka rahasyamay Itihaas

सरदार वल्लभ भाई पटेल :- ‘‘नेहरू जी आइये रिक्शा में बैठ लीजिए !’’


सरदार वल्लभ भाई पटेल :- ‘‘नेहरू जी आइये रिक्शा में बैठ लीजिए !’’
.
जवाहर लाल नेहरू :- ‘‘नहीं पटेल जी हम खान साहब से जरूरी बातें कर रहे हैं |’’
.
सरदार वल्लभ भाई पटेल :- ‘‘ऐसी क्या जरूरी बाते हैं?
.
जवाहर लाल नेहरू :- ‘‘यह पाकिस्तान जाने की जिद किए हुए हैं, हम चाहते हैं कि भारत में ही रहें |’’
.
सरदार वल्लभ भाई पटेल :- ‘‘तो जाने क्यों नहीं देते, फिर पाकिस्तान बनवाया ही किसलिए |’’
.
जवाहर लाल नेहरू :- ‘‘वह तो ठीक है, लेकिन इनके साथ पांच लाख मुस्लिम और पाकिस्तान चले जाएंगे |’’
.
सरदार वल्लभ भाई पटेल :- ‘‘तो जाने दीजिए |’’
.
जवाहर लाल नेहरू :- ‘‘लेकिन दिल्ली तो खाली हो जाएगी।
.
सरदार वल्लभ भाई पटेल :- ‘‘जो लाहौर से हिन्दू आएंगे उनसे भर जाएगी |’’
.
जवाहर लाल नेहरू :- ‘‘नहीं उन्हें मुस्लिमों के घर हम नहीं देंगे, वक्फ बोर्ड को सौंप देंगे |’’
.
सरदार वल्लभ भाई पटेल :- ‘‘और लाहौर में जो अभी से मंदिर और डीएवी स्कूल पर कब्जा कर उनके नाम इस्लामिक रख दिए हैं।
.
जवाहर लाल नेहरू :- ‘’पाकिस्तान से हमे क्या लेना-देना, हम तो भारत को धर्मनिरपेक्ष देश बनाएंगे |’’
.
सरदार वल्लभ भाई पटेल :- ‘‘लेकिन देश का बंटवारा तो धर्म के आधार पर हुआ है| अब यह हिन्दुस्तान हिन्दुओं का है |’’
.
जवाहर लाल नेहरू :- ‘‘नहीं यह देश कांग्रेस का है. . कांग्रेस जैसा चाहेगी वैसा होगा |’’
.
सरदार वल्लभ भाई पटेल :- ‘‘इतिहास बदलता रहता है, अंग्रेज भी जा रहे हैं फिर कांग्रेस की हस्ती ही क्या है ? मुस्लिम साढे सात सौ साल में गए, अंग्रेज 200 साल में गए और कांग्रेस 60-70 साल में चली जाएगी और लोग भूल जाएंगे |’’
.
जवाहर लाल नेहरू :- ‘‘ऐसा कभी नहीं होगा |’’
.
सरदार वल्लभ भाई पटेल :- ‘‘जरूर होगा, आप मुगल सोच त्याग दें |’’ कहकर पटेल ने रिक्शा चालक से कहा, ‘आप तेज चलिए, हम भी किस मूर्ख से जबान लडा बैठे !’
.
“इतिहास की अनकही सत्य कहानियां” का एक अंश

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

एक घर के पास काफी दिन से एक बड़ी इमारत का काम चल रहा था। – योगीअंश रमेशचंद्र भार्गव


एक घर के पास काफी दिन से एक बड़ी इमारत का काम चल रहा था।
वहाँ रोज मजदूरों के छोटे-छोटे बच्चे एक दूसरे की शर्ट पकड़कर रेल-रेल का खेल खेलते थे।

रोज कोई बच्चा इंजिन बनता और बाकी बच्चे डिब्बे बनते थे…

इंजिन और डिब्बे वाले बच्चे रोज बदल जाते,
पर…

केवल चड्डी पहना एक छोटा बच्चा हाथ में रखा कपड़ा घुमाते हुए रोज गार्ड बनता था।

एक दिन मैंने देखा कि …

उन बच्चों को खेलते हुए रोज़ देखने वाले एक व्यक्ति ने कौतुहल से गार्ड बनने वाले बच्चे को पास बुलाकर पूछा-

“बच्चे, तुम रोज़ गार्ड बनते हो। तुम्हें कभी इंजिन, कभी डिब्बा बनने की इच्छा नहीं होती?”

इस पर वो बच्चा बोला-

“बाबूजी, मेरे पास पहनने के लिए कोई शर्ट नहीं है। तो मेरे पीछे वाले बच्चे मुझे कैसे पकड़ेंगे…! और मेरे पीछे कौन खड़ा रहेगा…?
इसीलिए मैं रोज गार्ड बनकर ही खेल में हिस्सा लेता हूँ।
ये बोलते समय मुझे उसकी आँखों में पानी दिखाई दिया।

आज वो बच्चा मुझे जीवन का एक बड़ा पाठ पढ़ा गया…!

अपना जीवन कभी भी परिपूर्ण नहीं होता। उसमें कोई न कोई कमी जरूर रहेगी…

वो बच्चा माँ-बाप से ग़ुस्सा होकर रोते हुए बैठ सकता था। परन्तु ऐसा न करते हुए उसने परिस्थितियों का समाधान ढूँढा।

हम कितना रोते हैं?
कभी अपने साँवले रंग के लिए, कभी छोटे क़द के लिए,
कभी पड़ौसी की बडी कार, कभी पड़ोसन के गले का हार,
कभी अपने कम मार्क्स, कभी अंग्रेज़ी, कभी पर्सनालिटी, कभी नौकरी की मार तो कभी धन्धे में मार…
हमें इससे बाहर आने की आवश्यकता है…।

ये जीवन है… इसे ऐसे ही जीना पड़ता है।
चील की ऊँची उड़ान देखकर चिड़िया कभी डिप्रेशन में नहीं आती।
वो अपने आस्तित्व में मस्त रहती है।
मगर इंसान, इंसान की ऊँची उड़ान देखकर बहुत जल्दी चिंता में आ जाते हैं।
तुलना से बचें और खुश रहें।
ना किसी से ईर्ष्या, ना किसी से कोई होड़..!!!
मेरी अपनी मंजिलें, मेरी अपनी दौड़..!!!
🐚☀🐚
🐾स्नेह वंदन 🐾
“परिस्थितियाँ कभी समस्या नहीं बनतीं।
समस्या इसलिए बनती है, क्योंकि हमें उन परिस्थितियों से लड़ना नहीं आता।”
योगीअंश रमेशचंद्र भार्गव