Posted in संस्कृत साहित्य

श्री शिवसंकल्पसूक्त


श्री शिवसंकल्पसूक्त__/\__

https://plus.google.com/communities/101568018968042647370
श्लोक १
यज्जाग्रतो दूरमुदैति दैवं तदु सुप्तस्य तथैवैति ।
दूरंगं ज्योतिषां ज्योतिरेकं तन्मे मनः शिवसंकल्पमस्तु ।।

अन्वय
यत् जाग्रतः दूरं उदैति सुप्तस्य तथा एव एति तत् दूरं गमं ज्योतिषां ज्योतिः एकं दैवं तत् में मनः शिवसंकल्पं अस्तु ।

सरल भावार्थ
हे परमात्मा ! जागृत अवस्था में जो मन दूर दूर तक चला जाता है और सुप्तावस्था में भी दूर दूर तक चला जाता है, वही मन इन्द्रियों रुपी ज्योतियों की एक मात्र ज्योति है अर्थात् इन्द्रियों को प्रकाशित करने वाली एक ज्योति है अथवा जो मन इन्द्रियों का प्रकाशक है, ऐसा हमारा मन शुभ-कल्याणकारी संकल्पों से युक्त हो !

व्याख्या
शिवसंकल्पसूक्त के प्रथम मन्त्र में ऋषि कहते हैं कि जागृत अवस्था में मन दूर दूर तक गमन करता है । सदैव गतिशील रहना उसका स्वभाव है और उसकी गति की कोई सीमा भी नहीं है । मन इतनी प्रबल क्षमताओं से युक्त है कि एक स्थान पर स्थित हो कर भी सुदूर क्षितिज के परले पार पहुँच जाता है । वेगवान पदार्थों में वह सबसे अधिक वेगवान है ।

चन्द्रमाँ मनसो जातः-
यह श्रुतिवाक्य है । उपनिषदों में कहा गया है कि मन ही चन्द्रमा है। मन ही यज्ञ का ब्रह्मा है। मृक्ति भी वही है । यहाँ मन और मन मन में उठे विचारों की अत्यन्त तीव्र और अनन्त गति की ओर संकेत है । मन और मन के विचारों को घनीभूत करके कुछ भी प्राप्त किया जा सकता है। उसे किसी आधार की आवश्यकता नहीं होती। वस्तुतः मन स्थिर होता है जब उसमें विघटन न हो और वह विक्षेप से रहित हो । विषयों से विभ्रांत मन विघटन की स्थिति को प्राप्त होता है । अस्थिर व चंचल मन मनुष्य को मुक्त नहीं होने देता तथा नए नए बंधनों में बांधता चला जाता है । जागृत अवस्था में जीवन-यापन करने के लिए लोक-व्यवहार एवं सांसारिक प्रपंचों में उलझा रहता है, अतः दूर दूर तक निकल जाता है, क्योंकि यही मन तो व्यक्ति को कर्म करने की प्रेरणा देता है ।

गायत्र्युपनिषद् की तृतीय कण्डिका के प्रथम श्लोक में कहा गया है ‘मन एव सविता’ अर्थात् मन ही सविता या प्रेरक तत्व है । मन की ये गतिशीलता सुप्तावस्था में भी दिखाई देती है । सुप्तावस्था में मन के शांत होने के कारण मन को अद्भुत बल मिलता है । कहते हैं कि सोते समय वह अपने सृजनहार से संयुक्त होता है, जो वास्तव में शांति का स्रोत है । श्रद्धेय विनोबा भावे अपनी पुस्तक महागुहा में प्रवेश में कहते हैं कि “… नींद में अनंत के साथ समरसता होती है” । यहाँ से प्राप्त शांति मनुष्य के आने वाले दिन की यात्रा का पाथेय बनती है ।यही कारण है कि रात्रि में अनिद्रा की स्थिति में रहने वाला व्यक्ति अगले दिन सवेरे उठ कर क्लांत-श्रांत व उद्विग्न-सा अनुभव करता है । परमात्मा से प्राप्त सद्य शांति के अभाव को कोई भी भौतिक साधन पूरा नहीं कर सकता है । यह बात और है कि जाग जाने पर सुप्तावस्था की बातें याद नहीं रहतीं, अनुभूत होती है शांति केवल, क्योंकि वह आध्यात्मिक क्षेत्र से आती है ।

ऋषियों ने परमात्मा से प्रार्थना करते हुए मन को इन्द्रियों का प्रकाशक कहा है

ज्योतिषां ज्योतिरेकम्
मन के द्वारा सभी इन्द्रियां अपने अपने विषय का ज्ञान ग्रहण करती है । स्वाद रसना नहीं अपितु मन लेता है, नयनाभिराम दृश्य मन को मनोहर लगते हैं अन्यथा अमृतवर्षा करती चंद्रकिरणें अग्निवर्षा करती हुईं प्रतीत होती हैं । वाक् इन्द्रिय वही बोलती है व श्रवणेंद्रिय वही सुनती हैं जो मन अभिप्रेरित करता है । यही मन स्पर्शेंद्रिय से प्राप्त संवेदनों को सुखदुःखात्मक, मृदु-कठोर मनवाता है। सब इन्द्रियां निज निज कार्य करती हैं, किन्तु उनकी अनुभूतियों के ग्रहण में मन की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है, जिसे नकारा नहीं जा सकता । हिंदी साहित्यकार श्री बालकृष्ण भट्ट अपने निबंध ‘मन और नेत्र’ में मन को सभी इन्द्रियों का प्रभु बताते हैं तथा शास्त्रों से उदाहरण देते हैं:

मनः- कृतं कृतं लोके न शरीरं कृतं कृतं ।
इसका अर्थ यह है कि जग में मन द्वारा किया हुआ ही कृत कर्म है, न कि शरीर द्वारा किया हुआ । यह मन जीव का दिव्य माध्यम है, इन्द्रियों का प्रवर्तक है मन को दार्शनिक छठी इन्द्रिय बताते हैं और यह छठी इन्द्रिय अन्य सभी इन्द्रयों से कहीं अधिक प्रचंड है । तात्पर्य यह कि इन्द्रियां, जिन्हें ‘ज्योतियां’कह कर पुकारा गया है, उनका प्रकाशक मन ही है । यजुर्वेद के ऋषियों ने मानवमन के भीतर स्थित इस दिव्य-ज्योति को देखा व पहचाना है, अतः उसे‘ज्योतिषां ज्योतिरेकम्’ कहते हुए ऋषि प्रार्थना करते हैं कि हे परमात्मा ! ऐसा हमारा मन श्रेष्ठ और कल्याणकारी संकल्पों से युक्त हो !

श्लोक २
येन कर्मण्यपसो मनीषिणो यज्ञे कृण्वन्ति विदथेषु धीराः ।
यदपूर्वं यक्षमन्तः प्रजानां तन्मे मनः शिवसंकल्पमस्तु ।।

अन्वय
येन अपसः मनीषिणः यज्ञे धीराः विदथेषु कर्माणि कृण्वन्ति यत् अपूर्वं प्रजानां अंतः यक्षं तत् मे मनः शिवसंकल्पं अस्तु ।

सरल भावार्थ
जिस मन से कर्मनिष्ठ एवं स्थिरमना प्रज्ञावान जन यज्ञ आदि कर्म और गंभीर व साहसी लोग विज्ञान आदि से संबद्ध कर्म सम्पादित करते हैं, जो अपूर्व है व सब के अंतःकरण में मिश्रित है अर्थात् मिला हुआ है, विद्यमान है, ऐसा हमारा मन शुभ-कल्याणकारी संकल्पों से युक्त हो !

व्याख्या
शिवसंकल्पसूक्त के दूसरे मन्त्र में ऋषिगण सबसे पहले यह बात कहते हैं कि मन से ही यज्ञ आदि कर्मों का सम्पादन होता है । शुद्ध मन ही यज्ञ आदि सत्कार्यों का करने वाला है । यही कारण है कि वैदिक ऋषि ईश्वर का आवाह्न करके उन्हें अपने ह्रदय में प्रविष्ट होने की प्रार्थना करते हैं, जिससे उन्हें दिव्य ऊर्जा प्राप्त हो और वे निष्पाप, निष्कलुष रहें । तैत्तिरीयोपनिषद् के दशम अनुवाक् में कहा गया है कि त्रिशंकु नामक ऋषि ने परमात्मा को प्राप्त होकर अपना अनुभव व्यक्त किया था । त्रिशंकु के वचनानुसार अपने अंतःकरण में परमात्मा की भावना करना भी उसकी प्राप्ति का साधन है । दसवें अनुवाक् में यही बात बताई गई है ।

अहं वृक्षस्य रेरिवा । कीर्तिः पृष्ठं गिरेरिव । उर्ध्वपवित्रो वाजिनीव स्वमृतमस्मि । द्रविणं सवर्चसम् । सुमेधा अमृतोक्षितः। इति त्रिशङ्कोर्वेदनुवचनम् ।

इसका भावार्थ यह है कि मैं ही प्रवाहरूप से अनादिकाल से चलते हुए इस जन्म-मृत्यु रूप संसारवृक्ष का उच्छेद करने वाला हूँ । यह मेरा अंतिम जन्म है और इसके बाद मेरा पुनः जन्म नहीं होने वाला है । मेरी कीर्ति पर्वत-शिखर की भांति उन्नत और विशाल है । अन्नोत्पादक शक्ति से युक्त सूर्य में जैसे उत्तम अमृत का निवास है, उसी प्रकार मैं भी रोग-दोष आदि से पूर्णतया मुक्त हूं, अमृत-स्वरूप हूँ । मैं सुप्रकाशित धन का भंडार हूँ, परमानंद रूप अमृत में निमग्न एवं श्रेष्ठ धारणा युक्त बुद्धि से सम्पन्न हूं । इस प्रकार त्रिशंकु मुनि के यह वचन हैं । तात्पर्य यह कि मनुष्य के संकल्प में यह अपूर्व और अद्भुत शक्ति है कि वह जिस प्रकार की भावना करता है, वैसा ही बन जाता है ।

तैत्तिरीयोपनिषद् के चतुर्थ अनुवाक् में उन मन्त्रों का वर्णन किया गया है, जिनमें कहा गया है कि किस प्रकार अपने मन को अधिकाधिक शुद्ध बनाने के लिए आचार्य को हवन करना चाहिए । एक छोटा-सा उदाहरण प्रस्तुत है ।

स मा भग प्रविश स्वाहा । तस्मिन् सहस्रशाखे निभगाहं त्वयि मृजे स्वाहा ।

अर्थात् इस उद्देश्य से मंत्रोच्चारण कर के स्वाहा शब्द के साथ अग्नि में आहुति डालनी चाहिए कि हे भगवन् ! आपके उस दिव्य रूप में मैं प्रविष्ट हो जाऊं। इसके बाद मंत्रोच्चार कर के स्वाहा शब्द के साथ अग्नि में अगली आहुति डालनी चाहिए इस उद्देश्य के साथ कि आप का दिव्य स्वरूप मुझ में प्रविष्ट हो जाये, मेरे मन में आ जाये। हजार शाखाओं वाले आपके दिव्य रूप में ध्यान-मग्न हो कर मैं स्वयं को परिशुद्ध बना लूं । इस अनुवाक् के अनुसार आचार्य को अपना मन अधिक से अधिक शुद्ध बनाने के हेतु इस प्रकार अग्नि में आहुतियां देते हुए स्वाहा शब्द के उच्चारण के साथ याग-कर्म करना चाहिए । वस्तुतः धीर-गंभीर प्रतिभाशाली लोग विज्ञान आदि के कर्म, नवीन खोजें आदि स्वस्थ और सधे हुए मन से करते हैं । वैदिक विज्ञान एवं वैदिक गणित का ज्ञान आज के युग में भी प्रासंगिक है तथा प्रत्येक युग की चुनौती व कसौटी पर खरा उतरा है । हमारे तत्कालीन ऋषि-मुनियों की खोजों को ही आज नए नाम दे कर, अपने आविष्कार बता कर पुनः संसार के सामने लाया जा रहा है । वे खोजें चाहे चिकित्सा के क्षेत्र की हों या मनोविज्ञान के क्षेत्र की, यान बनाने की कला हो या वास्तु-कला हो, साहित्य, कला, दर्शन, ज्योतिष, गणित आदि सभी क्षेत्रों को हमारे मनीषियों ने समृद्ध किया है । इस मन्त्र के अनुसार ज्ञान-विज्ञानं के ऐसे सभी कर्मों के पीछे मन की दृढ संकल्प-शक्ति वर्तमान होती है, तब ही यह सब संभव होता है ।

शिवसंकल्पसूक्त के दूसरे सूक्त में कहा है कि मन सब के शरीर में विद्यमान है । पातंजलि योगसूत्र के अनुसार सभी को भौतिक अस्तित्व के रूप में शरीर तथा मानसिक अस्तित्व के रूप में मन मिला हुआ है । मन शरीर से सूक्ष्म है । कठोपनिषद् के अनुसार मन इन्द्रियों से परे है, उनसे उत्कृष्ट है:

इन्द्रियेभ्यः परं मनः- ।
इस मन्त्र में यह बात कही गई है कि सभी श्रेष्ठ कर्मों को इसी मन की स्वस्थ व शुद्ध अवस्था में किया जा सकता है । यही मन गृहस्थ को कर्मठ बनाता है एवं उसे नीति से जीविकोपार्जन की बुद्धि देता है । सन्यासी को भी यही मन विषयों से विमुख रखता है, जिससे वह सद्चिन्तन में रत रहे, विकारों की उत्पत्ति एवं उपद्रव से वह बचा रहे । तब ही सन्यासी तपस्या, संध्या, पूजा आदि सत्कर्मों का करने वाला बन सकता है । यजुर्वेद में मन के नियंत्रक देवता को `मनस्पत` कहा गया है । मन की शुद्ध व शांत स्थिति ही स्वस्थ चिंतन एवं नवोन्मेष के हेतु नवीन क्षितिजों का उद्घाटन करती है । समस्त समाज के लिए सबसे पहले मन का निर्विकार होना आवश्यक है । अतः ऋषि परमात्मा से प्रार्थना करते हुए कहते हैं कि हमारा मन शुभ-कल्याणकारी संकल्पों से युक्त हो !

शिवसंकल्पसूक्त
श्लोक ३
यत्प्रज्ञानमुत चेतो धृतिश्च यज्ज्योतिरन्तरमृतं प्रजासु ।
यस्मान्न ऋते किंचन कर्म क्रियते तन्मे मनः शिवसंकल्पमस्तु ।।

अन्वय
यत् प्रज्ञानं चेतः उत धृति च यत् प्रजासु अन्तः अमृतं ज्योतिः यस्मात् ऋते किंचन कर्म न क्रियते तत् में मनः शिवसंकल्पं अस्तु ।

सरल भावार्थ
जो मन प्रखर ज्ञान से संपन्न, चेतना से युक्त्त एवं धैर्यशील है, जो सभी प्राणियों के अंतःकरण में अमर प्रकाश-ज्योति के रूप में स्थित है, जिसके बिना किसी भी कर्म को करना संभव नहीं, ऐसा हमारा मन शुभ संकल्पों से युक्त हो !

व्याख्या
शिवसंकल्पसूक्त के तृतीय मन्त्र में ऋषियों का कथन है कि मन प्रखर ज्ञान से संपन्न है । वस्तुतः वह मन ही है जो लौकिक व अलौकिक बातों का ज्ञान रखता है, ग्राह्य व त्याज्य का निर्णय लेता है । स्वस्थ मन ही ईश्वर से `असदो मा सद्गमय मृत्योर्मा अमृतगमय` की प्रार्थना करता है । वैदिक ऋषि मन्त्रों के द्रष्टा होते थे । प.श्रीराम शर्मा आचार्य का कथन है कि “प्रत्येक पदार्थ और विधान के जड़ तथा चेतन दो विभाग होते हैं । आत्मज्ञानी पुरुष मुख्यतः प्रत्येक पदार्थ में चेतन शक्ति को ही देखता है, क्योंकि वास्तविक कार्य और प्रभाव उसीका होता है।” उनके अनुसार फलतः वैदिक ऋषि वेद के मन्त्रों एवं उनकी शक्ति को चेतना से अनुप्राणित मानते थे तथा प्रकृति की संचालक शक्तियों को देवता मान कर उनसे प्रार्थना करते थे, उनकी स्तुति करते थे । यह उनका अंधविश्वास नहीं उनका उत्कृष्ट कोटि का ज्ञान था, जो जड़ में अवस्थित चेतन के दर्शन कर लेता था । सूक्ष्म से सूक्ष्म पदार्थ की मूलभूत शक्ति व उनके कार्योंके वैज्ञानिक रहस्य इन ऋषियों के ज्ञानचक्षुओं के आगे प्रकट होते थे । उन्होंने स्तुति प्राकृत शक्तियों के स्थूल रूप की नहीं अपितु उनकी शासक अथवा अहिष्ठात्री चेतन शक्ति की है। वेदों में आध्यात्मिक विषयों का और अथर्ववेद में विविध प्रकार की व्याधियो के निवारण के उपाय, औषधियों और मन्त्र-तंत्र का विधान है और इन सबको इसमें देवता माना गया है । इनके मन्त्र गूढ़ार्थ लिए हुए होते हैं । बिना आत्मज्ञान के इन्हें हृदयंगम नहीं किया जा सकता ।

वस्तुतः- पदार्थ में निहित चेतन शक्ति उन्हीं के सम्मुख सक्रिय होती है जो निर्मल मन से पूरी तरह निजी स्वार्थ से या अन्य मनोविकार से अलिप्त रहते हैं तथा जो `आत्मवत् सर्वभूतेषु` के भाव से सब में एक ही चैतन्य शक्ति के दर्शन करते हैं । ऐसे महान ऋषियों के आश्रम के निकट रहने-बसने वाले, वहां घूमने वाले हिंस्र पशु भी अहिंसक हो जाते थे । वैदिक ऋषि जानते थे कि शरीर की शक्ति से मन की शक्ति अनेक गुनी अधिक है । यही कारण है कि इस मन्त्र में मन को प्रखर ज्ञान, चेतना व धृति से युक्त कहा गया है । धृति का अर्थ केवल धैर्य ही नहीं अपितु स्थैर्य भी है । इस शब्द में स्फूर्ति, दृढ संकल्प, साहस तथा सहारा देने के भाव भी समाहित हैं । अतएव इसका संकुंचित अर्थ न लेकर इसे विस्तृत परिप्रेक्ष्य में देखना अपेक्षणीय है । आगे इस मंत्र में कहा गया है कि यह मन सब में अमर-ज्योति के रूप में स्थित है । यह चेतना ऋषियों ने सभी में पायी है। यही कारण है कि जगत के सर्वप्रथम आदि कवि वाल्मीकि एक दुर्दांत डाकू से मुनि बन गए, महामूर्ख कालिदास महाकवि के रूप में उभर कर आये । यह चेतना मनुष्य के भीतर निहित वह अमर ज्योति है जिसके बिना कुछ भी कर पाना सम्भव नहीं है । ज्ञान जो सब के भीतर ढंका हुआ है, वह मन के द्वारा प्रकशित किये जाने के कारण मन को अमर-ज्योति कहा है । सब के अंतःकरण में जलती हुई भी यह ज्योति केवल वहीँ अपना आलोक बिखेर सकती है, जहाँ मन मल से रहित हो, अमल हो, निर्मल हो । रामचरितमानस में श्रीराम विभीषण से ये कहते हैं कि

निर्मल मन जान सो मोहि पावा । मोहि कपट छल छिद्र न भावा ।।
गोस्वामीजी मानस में जानकीजी से निर्मल मति प्रदान करने की प्रार्थना करते हैं ।

जनकसुता जगजननी जानकी । अतिसय प्रिय करुणानिधान की ।।
ताके जुग पदकमल मनावउं । जासु कृपा निर्मल मति पावउँ ।।
इस प्रकार मन की पावनता और निर्मलता पर बल दिया गया है भारतीय संस्कृति में सर्वत्र । क्योंकि यह प्रकृष्ट ज्ञान का साधन है । ऋषि कहते हैं की ऐसा हमारा मन श्रेष्ठ और कल्याणकारी संकल्पों से युक्त हो !

Posted in संस्कृत साहित्य

जीवेत शरद: शतम्‌ – डॉ. श्री बालाजी तांबे


 

जीवेत शरद: शतम्‌
– डॉ. श्री बालाजी तांबे

http://www.esakal.com/Tiny.aspx?K=DFQ7E

 

दीर्घायुष्यासाठी आयुर्वेदाशिवाय पर्याय नाही. आयुर्वेदातील स्वस्थवृत्त, पंचकर्माद्वारा कायाकल्प, रसायनसेवन, वयःस्थापन वगैरे अनेक संकल्पना दीर्घायुष्याच्या उद्देशाने सांगितलेल्या आहेत.

वेदवाङ्‌मय असो, प्राचीन भारतीय शास्त्रे असोत किंवा आयुर्वेद असो, दीर्घायुष्याची इच्छा प्रत्येक ठिकाणी केलेली आढळते. “दीर्घायुषी भव‘ हे आशीर्वचनही आपल्या सगळ्यांच्या परिचयाचे असेल.

आयुर्वेद स्वर्गातून पृथ्वीवर आला, तोच मुळी दीर्घायुष्याच्या कामनेमुळे. म्हणूनच चरकसंहिता या आयुर्वेदाच्या मुख्य ग्रंथामधल्या पहिल्या अध्यायाचे नाव आहे, “दीर्घज्जीवितीयम्‌‘।

ऋषयश्‍च भरद्वाजात्‌ जगृहुस्तं प्रजाहितम्‌।
दीर्घमायुश्‍चकिर्षतो वेदं वर्धनमायुषः।।
चरक सूत्रस्थान 

आयुष्य वाढविणारे व समस्त प्राणिमात्रांचे हित करणारे असे जे आयुर्वेदशास्त्र, ते दीर्घायुष्याची इच्छा करणाऱ्या ऋषींनी भारद्वाजाकडून स्वीकारले (व ग्रंथाच्या रूपाने सर्वांपर्यंत पोचवले) यावरून “दीर्घायुष्य‘ संकल्पना ही आयुर्वेदशास्त्राचे मूळ आहे हे लक्षात येते. दीर्घायुष्य म्हणजे नेमके काय, हेही आपल्या शास्त्रात सांगितले आहे,

पश्‍येम शरदं शतं, जीवेम शरदं शतं, श्रृणुयाम शरदं शतं, प्रब्रवाम शरदं शतं, अदीनाः स्याम शरदं शतं भूयश्‍च शरदः शतात्‌ । … यजुर्वेद 

100 वर्षांपर्यंत आम्ही (सूर्याचे) दर्शन करोत, 100 वर्षांपर्यंत आम्ही जिवंत राहोत, 100 वर्षांपर्यंत आम्ही (शब्द) ऐकते राहोत, 100 वर्षांपर्यंत आम्ही भाषण करोत, 100 वर्षांपर्यंत आम्ही अ-दीन (कोणत्याही प्रकारच्या परस्वाधीनतेशिवाय) राहोत, इतकेच कशाला; 100 वर्षांची मर्यादाही आम्ही ओलांडून पुढे जावोत.

100 वर्षे या प्रमाणे आरोग्यपूर्ण अवस्थेत जगण्याची फक्‍त इच्छा असणे पुरेसे नाही, तर त्यासाठी प्रत्येक स्त्री-पुरुषाने सुरवातीपासून प्रयत्न करायला हवेत. म्हणूनच वेदांमध्ये सांगितले आहे,

कुर्वन्‌ नेवेह कर्माणि जिजिविषेत्‌ शतं समाः।
एवं त्वयि नान्यथेतो।स्ति न कर्म लिप्यते नरे।। ….यजुर्वेद 

पुरुषाने (स्त्री-पुरुषाने) त्याच्या प्रकृतीला अनुरूप असा जो वर्ण व आश्रम असेल, त्यानुसार शास्त्रसंमत कर्म करता करता 100 वर्षे जगण्याची इच्छा ठेवावी, यापेक्षा वेगळी इच्छा करू नये. कारण, त्यामुळेच त्याला त्याच्या कर्माचे बंधन होत नाही.

थोडक्‍यात, जन्माला आलेल्या प्रत्येक स्त्री-पुरुषाला स्वतःचे कर्तव्य आदर्शपद्धतीने पूर्ण करायचे असेल, तर तिला किंवा त्याला दीर्घायुष्याची इच्छा ठेवणे व त्यासाठी प्रयत्न करणे अपरिहार्य आहे.

दीर्घायुष्याची पहिली पायरी म्हणजे आरोग्य. आरोग्य नसेल तर रोजचे काम करण्यातही ज्या अर्थी बाधा येते, त्या अर्थी रोग हा दीर्घायुष्यातील मोठा अडथळा होय. मात्र, केवळ रोग नाही म्हणजे आरोग्य आहे असे समजणे पुरेसे ठरत नाही. आयुर्वेदात आरोग्याची नेमकी लक्षणे पुढीलप्रमाणे सांगितली आहेत,

सृष्टविण्मूत्रवातत्वं, शरीरस्य लाघवं, सुप्रसन्नेन्द्रियत्वं, सुखस्वप्नं, प्रबोधने, बलवर्णायुषां लाभः, सौमनस्यं, समाग्निता चेति। …काश्‍यपसंहिता

अर्थात, वेळच्या वेळी भूक लागणे, खाल्लेले अन्न सहज पचणे, मल-मूत्र प्रवृत्ती सहज व वेळच्या वेळी होणे, शरिरास हलकेपणा जाणवणे, सर्व इंद्रिये आपापले कार्य कुशलतेने करत असणे, सहज झोप येणे व तितक्‍याच सहजतेने जाग येणे, जाग आल्यावर ताजेतवाने वाटणे, उत्तम बल, कांतियुक्त वर्ण व दीर्घायुष्याचा लाभ होणे, मन आनंदी असणे व जठराग्नी सम-संतुलित स्थितीत असणे ही लक्षणे उत्तम आरोग्याची निदर्शक आहेत.

अशा आरोग्यासाठी, पर्यायाने दीर्घायुष्यासाठी आयुर्वेदाशिवाय पर्याय नाही. आयुर्वेदातील स्वस्थवृत्त, पंचकर्माद्वारा कायाकल्प, रसायनसेवन, वयःस्थापन वगैरे अनेक संकल्पना दीर्घायुष्याच्या उद्देशाने सांगितलेल्या आहेत. शास्त्रोक्‍त पद्धतीने यांचा जीवनात अंतर्भाव करून घेतला तर जीवन सुखाने व्यतीत होऊ शकते. यातील काही महत्त्वाच्या, प्रत्येकाला स्वतः करता येण्याजोग्या गोष्टी थोडक्‍यात पुढीलप्रमाणे सांगता येतील.

1. लवकर निजे, लवकर उठे, त्यासी ऋद्धी-सिद्धी भेटे
2. नियमित व्यायाम, योग, आसने, प्राणायाम
3. वात-पित्त-कफ प्रकृतीनुसार आहार
4. आहार षड्रसयुक्‍त (मधुर, आंबट, खारट, कडू व तुरट) व चतुर्विध (भोज्य, भक्ष्य, पेय व लेह्य) असा चार प्रकारचा
5. नेहमी पोट साफ राहण्यासाठी अधूनमधून सौम्य विरेचन व कृमिनाशक उपचार
6. पिण्यासाठी उकळलेले व शक्‍यतो सुवर्णसिद्ध जल
7. नियमित अभ्यंग (मसाज)
8. डोळे, नाक, कान, जीभ, त्वचा या पंचेंद्रियांचे आरोग्य
9. व्यवसाय प्रकृतीनुरूप ताणतणावरहित
10. घरात नियमितपणे धूप जाळणे
11. आवश्‍यकतेनुसार पंचकर्म करून शरीरशुद्धी
12. नियमित “रसायन‘सेवन
13. अति वीर्यनाश होणार नाही याची काळजी व विवाहितांनी वेळ-काळ पाहून प्रकृतीला मानवेल एवढे मैथुन (आयुर्वेदिक ब्रह्मचर्य).
14. स्त्रीने पाळीच्या चार दिवसात विश्रांती; अंगावर पांढरे-लाल जात असल्यास लगेच योग्य उपचार
15. सुदृढ, बुद्धिमान अपत्य जन्माला यावे म्हणून दांपत्याने गर्भधारणेपूर्वी स्वतःची तब्येत उत्तम करून घेणे.
16. रोग झाल्यास तो फक्‍त नियंत्रित ठेवण्यासाठी नाही तर समूळ बरा करण्यासाठी प्रयत्न
17. रोगावर उपचार करत असताना तसेच रोग बरा झाल्यावरही रोग होण्याच्या कारणापासून दूर राहणे.
18. रोज थोडा वेळ स्वास्थ्यसंगीत, ध्यान, ॐकार गूंजन
19. कर्तव्य कर्म करताना भविष्यात फायदा होईल यावर अवलंबून राहण्यापेक्षा कार्य करतानाच आनंद घ्यावा.
20. सर्वांभूती प्रेम व सेवाभाव
21. सामाजिक व नैसर्गिक नीतिनियमांप्रमाणे आचरण.

या सर्व झाल्या आवर्जून कराव्यात अशा गोष्टी. याशिवाय, कोणकोणत्या गोष्टी करणे चांगले नाही, याचाही माहिती करून घ्यायला हवी. 
1. सकाळी उशिरा न उठणे (पहाटे वातकाळ संपण्यापूर्वी उठल्यास वातामुळे होणाऱ्या मलविसर्जनादी क्रिया सहज होऊ शकतात)
2. भूक लागली नसता जबरदस्तीने न जेवणे
3. दूध व फळे यांसारख्या विरुद्धान्नाचे सेवन न करणे
4. रात्री/सूर्यास्तानंतर दही, फळे न खाणे.
5. भेसळ किंवा विषारी औषधांचा वापर केलेले अन्नपदार्थ किंवा रासायनिक द्रव्यांपासून तयार केलेल्या उत्पादनांचा वापर न करणे.
6. शारीरिक वेग उदा. मल, मूत्र, भूक वगैरेंना न अडवणे.
7. नेहमी पोट साफ होते आहे किंवा नाही, याकडे दुर्लक्ष न करणे
8. व्यसनाधीन न होणे
9. ताकदीपेक्षा अधिक व्यायाम न करणे
10. पावसाळ्यात अतिश्रम न करणे.
12. अतिसाहस न करणे. मनुष्याचा वावर नाही अशा ठिकाणी जाणे, ज्याच्याविषयी माहिती नाही, असे कृत्य करणे, स्वतःच्या कुवतीपेक्षा अधिक परिश्रम करणे वगैरे गोष्टी “अतिसाहस‘ या संज्ञेत मोडतात.
13. प्रकृती समजून न घेता अति जाड वा अति बारीक होण्याचा प्रयत्न न करणे. वातप्रकृतीच्या व्यक्‍तीने बॉडी बिल्डर होण्याचा प्रयत्न करणे, कफप्रकृतीच्या व्यक्‍तीने अगदी सडपातळ होण्याचा प्रयत्न करणे
14. स्त्रीरोगांकडे दुर्लक्ष न करणे
15. अति किंवा अनैसर्गिक मैथुन न करणे
15. समान गोत्रातील स्त्री-पुरुषात गर्भधारणा व गर्भधारणा असताना डोहाळे पूर्ण न होणे किंवा चुकीचा आहार – विहार न करणे
16. रोगाकडे किंवा अस्वास्थ्याकडे दुर्लक्ष न करणे.
17. इच्छा पूर्ण करण्यासाठी इंद्रियांना अति प्रमाणात न दमवणे. सतत हेडफोन्स वापरणे, मोबाईल वा फोनवर सातत्याने बोलणे, डोळे थकले तरी टीव्ही, संगणकासमोर बसणे वगैरे टाळणे.
18. चुकीची व वाईट संगत न धरणे
19. सतत चिंता किंवा रागा-राग न करणे
20. सर्व गोष्टीत संशय व अश्रद्धा न ठेवणे
21. आई-वडील, गुरुजन, ज्ञानी यांचा आदर न करणे

थोडक्‍यात दीर्घायुष्य, तेही निरोगी दीर्घायुष्य हा जन्माला आलेल्या प्रत्येक स्त्री-पुरुषाचा अधिकार आहे, तो मिळविण्यासाठी प्रत्येकाने आपापल्या परीने तत्पर राहणे आवश्‍यक आहे आणि यासाठी आयुर्वेदशास्त्राचा रोजच्या जीवनात अंतर्भाव होणे गरजेचे आहे.

 

Posted in संस्कृत साहित्य

वैदिक रीति के अनुसार जन्मदिन मनाने की विधि


वैदिक रीति के अनुसार जन्मदिन मनाने की विधि

http://vedictruth.blogspot.com/2015_07_01_archive.html

जन्मदिवस मनाने का ध्येय

अपने पूर्व जीवन के सुकर्मों व दुष्कर्मों पर दृष्टि डालकर दुर्गुणों को त्यागने व सत्कर्मों को अपनाने के लिए प्रभु से प्रार्थना करना ही जन्मदिवस मनाने का उद्देश्य है|

जन्मदिन मनाने की विधि

प्रात: काल सूर्योदय से पहले उठकर ईश्वर का इतना सुन्दर जीवन प्रदान करने के लिये धन्यवाद देने से दिनचर्या का आरम्भ करना।

प्रसन्न होकर उल्लास के साथ अंदर व बाहर की शुद्धि करके ईश्वर स्तुति-प्रार्थना उपासना की यज्ञविधि करके यज्ञोपवित के महत्व पर विचार करना, उसे सदैव धारण करने के संकल्प के साथ स्वस्तिवाचन व शंतिकरण के मन्त्र स्वर सहित बोलें और दैनिक यज्ञ के साथ निम्न मन्त्रों की आहुतियाँ दें|

जीवेम शरदः शतम्
हम सौ सालों तक जीयें।
बुध्येम शरदः शतम्
हम सौ वर्षों तक बुद्धिमान बने रहें।
रोहेम शरदः शतम्
हम सौ वर्षों तक पुष्ट रहें।
भवेम शरदः शतम्
सौ वर्षों तक बने रहें।
भूयेम शरदः शतम्
सौ वर्षों तक पवित्र बने रहें।
भूयसीः शरदः शतात्
सौ वर्षों तक ऐसी कल्याणकारी बातें होती रहें।
ओ३म् उप प्रियं पनिन्पतं युवानमाहुतीवृधम्|
अगन्म बिभ्रतो नमो दीर्घमायुः कृणोतु मे|| 


~अथर्ववेद-7.32.1

भावार्थ- हे स्तुति करने योग्य प्रियतम प्रभु! जिस प्रकार मैं इस आहुति द्वारा इस यज्ञ की अग्नि को बढ़ा रहा/रही हूँ, वैसे ही मैं सात्विक अन्न का सेवन करके अपनी आयु को बढ़ाता हुआ / बढ़ाती हुई प्रतिवर्ष अपना जन्मदिन मनाता/मनाती रहूँ|

ओ३म् इंद्र जीव सूर्य जीव देवा जीवा जीव्यासमहम्|
सर्वमायुर्जीव्यासम्||
~अथर्ववेद-19.70.1

भावार्थ- हे परम ऐश्वर्यवान देव!! आप हमें श्रेष्ठ जीवन दो| हे सूर्य! हे देवगण! आपकी अनुकूलतापूर्वक मैं दीर्घजीवी होऊं|

ओ३म् आयुषायुः कृतां जीवायुष्मान जीव मा मृथाः|
प्राणेनात्मन्वतां जीव मा मृत्योरुदगा वशम् ||
~अथर्ववेद-19.27.8 

भावार्थ- मैं संकल्प लेता हूँ की मुझे मृत्यु के वशीभूत नहीं होना है| कर्मशील व आत्मबल युक्त होकर ईश्वरभक्त, महापुरुषों का अनुकरण करता हुआ मैं आयु को बढ़ाऊंगा| जीवन भर श्रेष्ठ कर्म कर्ता हुआ यश को प्राप्त करूंगा|

ओ३म् शतं जीव शरदो वर्धमानः शतं हेमन्तान्छतमु वसन्तान|
शतमिन्द्राग्नी सविता बृहस्पतिः शतायुषा हविषेमं पुनर्दुः||
~ऋग्वेद -10.161.4 

भावार्थ- मनुष्य श्रेष्ठ कर्म व संयम धारण करके सौ वर्षों तक जीने का प्रयास करे| विद्युत, अग्नि, सूर्य, बृहस्पति आदि से समुचित सहयोग लेकर मनुष्य सौ वर्ष तक जीवनधारण कर सकता है|

ओ३म् सत्यामाशिषं कृणुता वयोधै कीरिं चिद्ध्यवथ सवेभिरेवैः|
पश्चा मृधो अप भवन्तु विश्वास्तद रोदसी शृणुतं विश्वमिन्वे||
~अथर्ववेद-20.91.11 

भावार्थ- हे विद्वानों..!! आपका ‘आयुष्मान भवः’ का आशीर्वाद सत्य हो! आपके मार्ग का अनुसरण करने वाले की रक्षा आप ज्ञान देकर करते हो| आपके मार्गदर्शन में चलने वालों के सब दोष नष्ट हो जाते हैं| इसलिए हे श्रेष्ठ स्त्री-पुरुषों!! आप हमें वेदोक्त शिक्षा दो|

ओं जीवास्थ जीव्यासं सर्वमायुर्जीव्यासम ||1||
ओं उपजीवा स्थोप जीव्यासं सर्वमायुर्जीव्यासम ||2||
ओं सं जीवा स्थ सं जीव्यासं सर्वमायुर्जीव्यासम ||3||
ओं जीवला स्थ जीव्यासं सर्वमायुर्जीव्यासम ||4||
~अथर्ववेद-19.69.1-4 

भावार्थ- जल की भांति शांत स्वभाव सज्जनों!! आप मुझे दीर्घायु का शुभाशीष दो| सदाचरण व प्रभु पूजा को धारण कर मैं अपने जीवन को बढ़ा सकूं| आप एसा जीवन दे सकते हो, सो कृपा करके मुझे श्रेष्ठ जीवन तत्व प्रदान कीजिये| मैं आप लोगों की सहायता व प्रेरणा से दीर्घजीवन प्राप्त करूं|

इसके बाद जितने वर्ष के होओ उतनी बार गायत्री मन्त्र की आहुति देकर पूर्णाहुति करें|

इसके बाद यज्ञ-प्रार्थना व शांतिपाठ के बाद सभी वरिष्ठ जन पुष्प वर्षा के संग निम्न शब्दों से आशीर्वाद दें……
हे……….(नाम का उच्चारण करें)!! त्वं जीव शरदः शतं वर्धमानः| आयुष्मान तेजस्वी वर्चस्वी श्रीमान भूयाः ||


अर्थात- हे……..!! तुम आयुष्मान, विद्यावान, धार्मिक, यशस्वी, पुरुषार्थी, प्रतापी, परोपकारी, श्रीमान/श्रीमती बनो!!
आपके व आपके परिजनों के जन्मदिन को इस विधि से अवश्य ही मनाएं, यज्ञ करने की सुविधा न होने पर दीपक की ज्योति के समक्ष शुद्धभाव से करें।
सत्य सनातन वैदिक धर्म की जय🚩
मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचन्द्र की जय🚩
योगिराज श्री कृष्ण चन्द्र की जय🚩
गौमाता का पालन हो🚩
अधर्म का नाश हो🚩
भारत माता की जय🚩

आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएँ

Posted in संस्कृत साहित्य

जीवेम शरदः शतम् – योगेन्द्र जोशी


पश्येम शरदः शतम् … – अथर्ववेद की प्रार्थना

https://vichaarsankalan.wordpress.com/2010/03/02/

 

वेदों में जहां एक ओर कर्मकांडों से जुड़े मंत्रों और लौकिक उपयोग की बातों का उल्लेख मिलता है, वहीं दूसरी ओर आध्यात्मिक दर्शन से संबद्ध मंत्र एवं अदृश्य शक्तियों की प्रार्थनाएं भी उनमें देखने को मिलती हैं । मैंने अभी पूरा अथर्ववेद नहीं देखा है, किंतु जितना मुझे मालूम है वह २० कांडों में विभक्त है, और इन कांडों में अलग-अलग संख्या में कुछएक सूक्त सम्मिलित हैं । इन्हीं में एक सूक्त है जिसमें पूर्ण शारीरिक तथा मानसिक स्वास्थ्य एवं दीर्घायुष्य की कामना व्यक्त की गयी है । उक्त सूक्त वस्तुतः छोटे-छोटे आठ मंत्रों का समुच्चय है, जो यों शब्दवद्ध है:

पश्येम शरदः शतम् ।।१।।

जीवेम शरदः शतम् ।।२।।

बुध्येम शरदः शतम् ।।३।।

रोहेम शरदः शतम् ।।४।।

पूषेम शरदः शतम् ।।५।।

भवेम शरदः शतम् ।।६।।

भूयेम शरदः शतम् ।।७।।

भूयसीः शरदः शतात् ।।८।।

(अथर्ववेद, काण्ड १९, सूक्त ६७)

जिसके अर्थ समझना कदाचित् पर्याप्त सरल है – हम सौ शरदों तक देखें, यानी सौ वर्षों तक हमारे आंखों की ज्योति स्पष्ट बनी रहे (१)। सौ वर्षों तक हम जीवित रहें (२); सौ वर्षों तक हमारी बुद्धि सक्षम बनी रहे, हम ज्ञानवान् बने रहे (३); सौ वर्षों तक हम वृद्धि करते रहें, हमारी उन्नति होती रहे (४); सौ वर्षों तक हम पुष्टि प्राप्त करते रहें, हमें पोषण मिलता रहे (५); हम सौ वर्षों तक बने रहें (वस्तुतः दूसरे मंत्र की पुनरावृत्ति!) (६); सौ वर्षों तक हम पवित्र बने रहें, कुत्सित भावनाओं से मुक्त रहें (७); सौ वर्षों से भी आगे ये सब कल्याणमय बातें होती रहें (८)।

यहां यह ज्ञातव्य है कि शरद् शब्द सामान्यतः छः वार्षिक ऋतुओं में एक के लिए प्रयुक्त होता है । चूंकि प्रति वर्ष एक शरद ऋतु आनी है, अतः उक्त मंत्रों में एक शरद् का अर्थ एक वर्ष लिया गया है । भारतीय प्राचीन पद्धति में पूरे वर्ष को दो-दो मास की ऋतुओं में विभक्त किया गया हैः वसन्त (चैत्र या चैत एवं वैशाख), ग्रीष्म (ज्येष्ठ या जेठ तथा आषाढ या आषाढ़), प्रावृष् (श्रावण या सावन एवं भाद्रपद या भादों के मास से बनी पावस अथवा वर्षा ऋतु ), शरद् (आश्विन या क्वार तथा कार्तिक), हेमन्त (मार्गशीर्ष या अगहन एवं पौष या पूस), और शिशिर (माघ तथा फाल्गुन या फागुन)

उपर्युक्त मंत्रों से प्रतीत होता है कि वैदिक काल में सौ वर्ष की आयु को अच्छी आयु समझा जाता था । इसीलिए सौ वर्ष की आयु की कामना व्यक्त की गयी है, वह भी पूर्ण कायिक तथा मानसिक स्वास्थ्य के साथ । उल्लिखित सूक्त में यह इच्छा व्यक्त की गयी है कि हमें पूर्ण स्वास्थ्य के साथ सौ वर्ष का जीवन मिले, और यदि हो सके तो सक्षम एवं सक्रिय इंद्रियों के साथ जीवन उसके आगे भी चलता रहे । अवश्य ही सौ वर्षों की आयु सबको नहीं मिलती होगी । इसीलिए सौ वर्ष की आयु को एक मानक के रूप में देखते हुए उसे चार बराबर आश्रमों (ब्रह्मचर्य, गार्हस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास) में भी वैदिक चिंतकों ने बांटा होगा । किंतु ये बातों की पौराणिक कथाओं से संगति नहीं बैठती है । पुराणों में अनेकों कथाएं पढ़ने को मिलती हैं जिनमें मनुष्य को हजारों-सैकड़ों वर्षों तक जीवित दिखाया गया है । कई ऋषि-मुनियों की हजारों वर्षों तक की तपस्या का भी उल्लेख देखने को मिलता है । वेद-मंत्रों तथा प्राचीन आश्रम व्यवस्था के मद्देनजर यही माना जा सकता है कि पुराणों की बहुत-सी बातें वस्तुतः अतिरंजित रही हैं । उनमें वर्णित बातें को शब्दशः न लेकर उनके निहितार्थ पर ही ध्यान दिया जाना चाहिए । – योगेन्द्र जोशी

Posted in संस्कृत साहित्य

जनेऊ क्यों धारण करे ? – दुर्गेश दुबे


जनेऊ क्यों धारण करे ?

ब्राह्मणो ब्रह्मवर्चसी जायताम।। अर्थात ब्राह्मण ब्रह्म (ईश्वर) तेज से युक्‍त हो।
ॐ यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं, प्रजापतेयर्त्सहजं पुरस्तात्।
आयुष्यमग्र्यं प्रतिमुञ्च शुभ्रं, यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेजः॥ -पार. गृ.सू. 2.2.11।

जनेऊ को उपवीत, यज्ञसूत्र, व्रतबन्ध, बलबन्ध, मोनीबन्ध और ब्रह्मसूत्र भी कहते हैं। इसे उपनयन संस्कार भी कहते हैं। ‘उपनयन’ का अर्थ है, ‘पास या सन्निकट ले जाना।’ किसके पास? ब्रह्म (ईश्वर) और ज्ञान के पास ले जाना। हिन्दू समाज का हर वर्ग जनेऊ धारण कर सकता है। जनेऊ धारण करने के बाद ही द्विज बालक को यज्ञ तथा स्वाध्याय करने का अधिकार प्राप्त होता है। द्विज का अर्थ होता है दूसरा जन्म। कालांतर में इस संस्कार को दूसरे धर्मों में धर्मांतरित करने के लिए उपयोग किया जाने लगा। हिन्दू धर्म में प्रत्येक हिन्दू का कर्तव्य है जनेऊ पहनना और उसके नियमों का पालन करना। हर हिन्दू जनेऊ पहन सकता है बशर्ते कि वह उसके नियमों का पालन करे।
क्यों पहनते हैं जनेऊ : हिन्दू धर्म के संस्कारों में से एक ‘उपनयन संस्कार’ के अंतर्गत ही जनेऊ पहनी जाती है जिसे ‘यज्ञोपवीत संस्कार’ भी कहा जाता है। मुंडन और पवित्र जल में स्नान भी इस संस्कार के अंग होते हैं। प्राचीनकाल में पहले शिष्य, संत और ब्राह्मण बनाने के लिए दीक्षा दी जाती थी। इस दीक्षा देने के तरीके में से एक जनेऊ धारण करना भी होता था। प्राचीनकाल में गुरुकुल में दीक्षा लेने या संन्यस्त होने के पूर्व यह संकार होता था।

यज्ञोपवीत को व्रतबन्ध भी कहते हैं। व्रतों से बंधे बिना मनुष्य का उत्थान सम्भव नहीं। यज्ञोपवीत को व्रतशीलता का प्रतीक मानते हैं। इसीलिए इसे सूत्र (फार्मूला, सहारा) भी कहते हैं। धर्म शास्त्रों में यम-नियम को व्रत माना गया है। बालक की आयुवृद्धि हेतु गायत्री तथा वेदपाठ का अधिकारी बनने के लिए उपनयन (जनेऊ) संस्कार अत्यन्त आवश्यक है।

दीक्षा देना : दीक्षा देने का प्रचलन वैदिक ऋषियों ने प्रारंभ किया था। प्राचीनकाल में पहले शिष्य और ब्राह्मण बनाने के लिए दीक्षा दी जाती थी। माता-पिता अपने बच्चों को जब शिक्षा के लिए भेजते थे तब भी दीक्षा दी जाती थी। हिन्दू धर्मानुसार दिशाहीन जीवन को दिशा देना ही दीक्षा है। दीक्षा एक शपथ, एक अनुबंध और एक संकल्प है। दीक्षा के बाद व्यक्ति द्विज बन जाता है। द्विज का अर्थ दूसरा जन्म। दूसरा व्यक्तित्व।

अन्य धर्मों में यह संस्कार : हिन्दू धर्म से प्रेरित यह उपनयन संस्कार सभी धर्मों में मिल जाएगा। यह दीक्षा देने की परंपरा प्राचीनकाल से रही है, हालांकि कालांतर में दूसरे धर्मों में दीक्षा को अपने धर्म में धर्मांतरित करने के लिए प्रयुक्त किया जाने लगा। इस आर्य संस्कार को सभी धर्मों में किसी न किसी कारणवश भिन्न-भिन्न रूप में अपनाया जाता रहा है। मक्का में काबा की परिक्रमा से पूर्व यह संस्कार किया जाता है।

सारनाथ की अति प्राचीन बुद्ध की प्रतिमा का सूक्ष्म निरीक्षण करने से उसकी छाती पर यज्ञोपवीत की सूक्ष्म रेखा दिखाई देती है। जैन धर्म में भी इस संस्कार को किया जाता है। वित्र मेखला अधोवसन (लुंगी) का सम्बन्ध पारसियों से भी है। सिख धर्म में इसे अमृत संचार कहते हैं। बौद्ध धर्म से इस परंपरा को ईसाई धर्म ने अपनाया जिसे वे बपस्तिमा कहते हैं। यहूदी और इस्लाम धर्म में खतना करके दीक्षा दी जाती है।
यहां जनेऊ पहनने के आपको लाभ बता रहे हैं। जनेऊ के नियमों का पालन करके आप निरोगी जीवन जी सकते हैं।
1.जीवाणुओं-कीटाणुओं से बचाव : जो लोग जनेऊ पहनते हैं और इससे जुड़े नियमों का पालन करते हैं, वे मल-मूत्र त्याग करते वक्त अपना मुंह बंद रखते हैं। इसकी आदत पड़ जाने के बाद लोग बड़ी आसानी से गंदे स्थानों पर पाए जाने वाले जीवाणुओं और कीटाणुओं के प्रकोप से बच जाते हैं।

2.गुर्दे की सुरक्षा : यह नियम है कि बैठकर ही जलपान करना चाहिए अर्थात खड़े रहकर पानी नहीं पीना चाहिए। इसी नियम के तहत बैठकर ही मूत्र त्याग करना चाहिए। उक्त दोनों नियमों का पालन करने से किडनी पर प्रेशर नहीं पड़ता। जनेऊ धारण करने से यह दोनों ही नियम अनिवार्य हो जाते हैं।

3.हृदय रोग व ब्लडप्रेशर से बचाव : शोधानुसार मेडिकल साइंस ने भी यह पाया है कि जनेऊ पहनने वालों को हृदय रोग और ब्लडप्रेशर की आशंका अन्य लोगों के मुकाबले कम होती है। जनेऊ शरीर में खून के प्रवाह को भी कंट्रोल करने में मददगार होता है। ‍चिकित्सकों अनुसार यह जनेऊ के हृदय के पास से गुजरने से यह हृदय रोग की संभावना को कम करता है, क्योंकि इससे रक्त संचार सुचारू रूप से संचालित होने लगता है।

लकवे से बचाव : जनेऊ धारण करने वाला आदमी को लकवे मारने की संभावना कम हो जाती है क्योंकि आदमी को बताया गया है कि जनेऊ धारण करने वाले को लघुशंका करते समय दांत पर दांत बैठा कर रहना चाहिए। मल मूत्र त्याग करते समय दांत पर दांत बैठाकर रहने से आदमी को लकवा नहीं मारता।

5.कब्ज से बचाव : जनेऊ को कान के ऊपर कसकर लपेटने का नियम है। ऐसा करने से कान के पास से गुजरने वाली उन नसों पर भी दबाव पड़ता है, जिनका संबंध सीधे आंतों से है। इन नसों पर दबाव पड़ने से कब्ज की श‍िकायत नहीं होती है। पेट साफ होने पर शरीर और मन, दोनों ही सेहतमंद रहते हैं।

6.शुक्राणुओं की रक्षा : दाएं कान के पास से वे नसें भी गुजरती हैं, जिसका संबंध अंडकोष और गुप्तेंद्रियों से होता है। मूत्र त्याग के वक्त दाएं कान पर जनेऊ लपेटने से वे नसें दब जाती हैं, जिनसे वीर्य निकलता है। ऐसे में जाने-अनजाने शुक्राणुओं की रक्षा होती है। इससे इंसान के बल और तेज में वृद्ध‍ि होती है।

7.स्मरण शक्ति‍ की रक्षा : कान पर हर रोज जनेऊ रखने और कसने से स्मरण शक्त‍ि का क्षय नहीं होता है। इससे स्मृति कोष बढ़ता रहता है। कान पर दबाव पड़ने से दिमाग की वे नसें एक्ट‍िव हो जाती हैं, जिनका संबंध स्मरण शक्त‍ि से होता है। दरअसल, गलतियां करने पर बच्चों के कान पकड़ने या ऐंठने के पीछे भी मूल कारण यही होता था।

8.आचरण की शुद्धता से बढ़ता मानसिक बल : कंधे पर जनेऊ है, इसका मात्र अहसास होने से ही मनुष्य बुरे कार्यों से दूर रहने लगता है। पवित्रता का अहसास होने से आचरण शुद्ध होने लगते हैं। आचरण की शुद्धत से मानसिक बल बढ़ता है।

क्यों पहनते हैं जनेऊ और क्या है इसके लाभ, जानिए
कान में जनेऊ लपेटने से मनुष्य में सूर्य नाड़ी का जाग्रण होता है। कान पर जनेऊ लपेटने से पेट संबंधी रोग एवं रक्तचाप की समस्या से भी बचाव होता है। जनेऊ पहनने वाला व्यक्ति नियमों में बंधा होता है। वह मल विसर्जन के पश्चात अपनी जनेऊ उतार नहीं सकता। जब तक वह हाथ पैर धोकर कुल्ला न कर ले। अत: वह अच्छी तरह से अपनी सफाई करके ही जनेऊ कान से उतारता है। यह सफाई उसे दांत, मुंह, पेट, कृमि, जीवाणुओं के रोगों से बचाती है। इसी कारण जनेऊ का सबसे ज्यादा लाभ हृदय रोगियों को होता है।

* चिकित्सा विज्ञान के अनुसार दाएं कान की नस अंडकोष और गुप्तेन्द्रियों से जुड़ी होती है। मूत्र विसर्जन के समय दाएं कान पर जनेऊ लपेटने से शुक्राणुओं की रक्षा होती है। वैज्ञानिकों अनुसार बार-बार बुरे स्वप्न आने की स्थिति में जनेऊ धारण करने से इस समस्या से मुक्ति मिल जाती है।

* माना जाता है कि शरीर के पृष्ठभाग में पीठ पर जाने वाली एक प्राकृतिक रेखा है जो विद्युत प्रवाह की तरह काम करती है। यह रेखा दाएं कंधे से लेकर कमर तक स्थित है। जनेऊ धारण करने से विद्युत प्रवाह नियंत्रित रहता है जिससे काम-क्रोध पर नियंत्रण रखने में आसानी होती है।

* विद्यालयों में बच्चों के कान खींचने के मूल में एक यह भी तथ्य छिपा हुआ है कि उससे कान की वह नस दबती है, जिससे मस्तिष्क की कोई सोई हुई तंद्रा कार्य करती है। इसलिए भी यज्ञोपवीत को दायें कान पर धारण करने का उद्देश्य बताया गया है।

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

सुरथ को हरिदर्शन – Sadhana Sharma


सुरथ को हरिदर्शन

बात त्रेतायुग की है. कुंडलपुर के राजा सुरथ बहुत परोपकारी और धार्मिक प्रवृति के थे. यथा राजा तथा प्रजा. प्रजा भी उतनी ही सत्कर्मी, धार्मिक और परोपकारी थी

यमराज ने भूलोक वासियों के पाप-पुण्य हिसाब लगाया तो यह देखकर हैरान हुए कि कुंडलपुर के निवासियों को नरक नहीं भोगना पड़ा है. सभी स्वर्ग के अधिकारी बने हैं

यमराज को अचरज हुआ. वह स्वयं इसका पता लगाने के लिए एक महात्मा का वेश बनाकर कुंडलपुर नरेश सुरथ के दरबार में पहुंच गए

तेजस्वी महात्मा को देखकर सुरथ प्रसन्न हो गए और उनसे हरिकथा सुनाने का अऩुरोध किया

महात्मा ने कहा- कथा सुनने से क्या होगा. सबको अपने कर्मों का फल भोगना ही है. इस लिए हरिकथा सुनने के भ्रम में न पड़ें. सत्कर्म करें वही साथ जाएगा

सुरथ बोले- आप महात्मा होकर ऐसा मानते हैं. प्रभु नाम लेते रहें तो सत्कर्म होते रहेंगे. कर्मफल समाप्त होने पर देवराज इंद्र का भी पतन हो जाता है, लेकिन हरिभक्त ध्रुव अपने स्थान पर अटल हैं.

सुरथ की भक्ति देखकर यमराज प्रसन्न हुए. अपने वास्तविक रूप में आकर सुरथ से वरदान मांगने को कहा. राजा ने मांगा- जब तक हरि के दर्शन न हो जाएं तब तक मेरी मृत्यु न हो

यमराज ने बताया कि जल्द ही भगवान विष्णु का रामावतार होगा. प्रभु उस युग में मानव लीला करेंगे. उन्हीं के रूप में तुम्हें हरि के दर्शन होंगे

शीघ्र ही राजा सुरथ को सूचना मिली कि अयोध्या के राजा दशरथ के यहां श्रीराम का अवतार हो गया है श्रीराम के दर्शन की आस में वह उनकी हर सूचना लेते रहते थे

जब प्रभु ने राजसिंहासन संभालने के बाद अश्वमेध का घोड़ा छोड़ा तो सुरथ को अपना मनोरथ पूरा होता नजर आया

उन्होंने यज्ञ के घोड़े को रोकने का निश्चय किया. अश्व की रक्षा में चल रहे शत्रुघ्न से सुरथ का घोर संग्राम हुआ. सुरथ ने शत्रुध्न को सेना समेत बंदी बना लिया

शत्रुघ्न की रक्षा के लिए अंगद और हनुमान जी भी आए. राजा सुरथ ने सबको रामास्त्र के बल पर बांध लिया

सुरथ ने उनसे कहा- मैंने आप सबको रामास्त्र से बांधा है जिसे काटने का सामर्थ्य आपमें नहीं है. यदि आप मुक्ति चाहते हैं तो अपने स्वामी को युद्ध के लिए भेजें

हनुमान जी से राजा सुरथ का मर्म छिपा नहीं था. उन्हें श्रीराम का वरदान था उनका हर अस्त्र उन पर प्रभावहीन रहेगा लेकिन रामभक्त सुरथ का मनोरथ पूरा करने के लिए वह बंधे रहे

लक्ष्मण ने सुना तो तुरंत कुंडलपुर जाकर सुरथ को दंड देने को तैयार हो गए. श्रीराम ने लक्ष्मण को रोका और कहा- बिना मेरे गए यह विघ्न नहीं टलने वाला

प्रभु स्वयं अस्त्र-शस्त्र से सुसज्जित कुंडलपुर पहुंच गए. श्रीराम को देख सुरथ ने शस्त्र फेंके और प्रभु के चरणों में गिर गए. सुरथ ने कहा कि उनके दर्शनमात्र के लिए उन्होंने काल को रोक रखा है

श्रीराम ने उन्हें अपने दिव्य रूप के दर्शन दिए. प्रभु ने सुरथ से वर मांगने को कहा. प्रभु दर्शन पाकर सुरथ धन्य हो गए और कहा अब कोई और कामना नहीं है

फिर भी यदि आप कुछ देना चाहते हैं तो सेवा का अवसर दीजिए. अश्वमेध का यह कार्य पूरा करने में मुझे सेवा में ले लीजिए

श्रीराम ने हंसकर कहा-आपने मेरे अनुज और मित्रों को बांध रखा है. मैं तो ऐसे ही बंध गया हूं. आपकी इच्छा कैसे पूरी नहीं होगी

सुरथ प्रभु के चरणों में एक बार फिर नतमस्तक हो गए. शत्रुघ्न, हनुमान, अंगद आदि को मुक्त किया और अश्व के साथ रामसेना में शामिल होकर चलने लगे

भगत के वश में होते है भगवान.

Posted in भारतीय उत्सव - Bhartiya Utsav

होली पर्व


” होली पर्व ”

की सभी को शुभकामनाए [अग्रिम ]

होली पर्व खुशी हर्षो उल्लास का पर्व है किंतू कुछ मूर्ख -नसमझो ने भांग -दारु [ शराब ] मांस -मछली -अंडे खाकर व केमीकल रंगों का उपयोग करके [जो कि ‘शरीर ‘ के लिए जानलेवा होता है ] अपने व दूसरो के लिए मूसीबत पैदा करते हैं ।
कीचड़ उझालना आदि अपवित्र चीजो का उपयोग करके होली पर्व को दूषित न करें 🙏🏼

प्राकृतिक रंगों से होली खेले

🌷 *प्राकृतिक रंग बनाने की सरल विधियाँ* 🌷
🔶 *केसरिया रंगः पलाश के फूलों से यह रंग सरलता से तैयार किया जा सकता है। पलाश के फूलों को रात को पानी में भिगो दें। सुबह इस केसरिया रंग को ऐसे ही प्रयोग में लायें या उबालकर होली का आनंद उठायें। यह रंग होली खेलने के लिए सबसे बढ़िया है। शास्त्रों में भी पलाश के फूलों से होली खेलने का वर्णन आता है। इसमें औषधीय गुण होते हैं। आयुर्वेद के अनुसार यह कफ, पित्त, कुष्ठ, दाह, मूत्रकृच्छ, वायु तथा रक्तदोष का नाश करता है। रक्तसंचार को नियमित व मांसपेशियों को स्वस्थ रखने के साथ ही यह मानसिक शक्ति तथा इच्छाशक्ति में भी वृद्धि करता है।*
🔵 *सूखा हरा रंगः मेंहदी का पाउडर तथा गेहूँ या अन्य अनाज के आटे को समान मात्रा में मिलाकर सूखा हरा रंग बनायें। आँवला चूर्ण व मेंहदी को मिलाने से भूरा रंग बनता है, जो त्वचा व बालों के लिए लाभदायी है।*
🔆 *सूखा पीला रंगः हल्दी व बेसन मिला के अथवा अमलतास व गेंदे के फूलों को छाया में सुखाकर पीस के पीला रंग प्राप्त कर सकते हैं।*
🔆 *गीला पीला रंगः एक चम्मच हल्दी दो लीटर पानी में उबालें या मिठाइयों में पड़ने वाले रंग जो खाने के काम आते हैं, उनका भी उपयोग कर सकते हैं। अमलतास या गेंदे के फूलों को रात को पानी में भिगोकर रखें, सुबह उबालें।*
🔴 *लाल रंगः लाल चंदन (रक्त चंदन) पाउडर को सूखे लाल रंग के रूप में प्रयोग कर सकते हैं। यह त्वचा के लिए लाभदायक व सौंदर्यवर्धक है। दो चम्मच लाल चंदन एक लीटर पानी में डालकर उबालने से लाल रंग प्राप्त होता है, जिसमें आवश्यकतानुसार पानी मिलायें।*
🔆 *पीला गुलाल : (१) ४ चम्मच बेसन में २ चम्मच हल्दी चूर्ण मिलायें | (२) अमलतास या गेंदा के फूलों के चूर्ण के साथ कोई भी आटा या मुलतानी मिट्टी मिला लें |*
🔆 *पीला रंग : (१) २ चम्मच हल्दी चूर्ण २ लीटर पानी में उबालें | (२) अमलतास, गेंदा के फूलों को रातभर भिगोकर उबाल लें |*
🔶 *जामुनी रंग : चुकंदर* *उबालकर पीस के पानी में मिला लें* |
*काला रंग : आँवला चूर्ण लोहे के बर्तन में रातभर भिगोयें |*
🔴 *लाल रंग : (१) आधे कप पानी में दो चम्मच हल्दी चूर्ण व चुटकीभर चूना मिलाकर १० लीटर पानी में डाल दें | (२) २ चम्मच लाल चंदन चूर्ण १ लीटर पानी में उबालें |*
🚺 *लाल गुलाल : सूखे लाल गुडहल के फूलों का चूर्ण उपयोग करें |*
❇ *हरा रंग : (१) पालक, धनिया या पुदीने की पत्तियों के पेस्ट को पानी में भिगोकर उपयोग करें | (२) गेहूँ की हरी बालियों को पीस लें |*
🚺 *हरा गुलाल : गुलमोहर अथवा रातरानी की पत्तियों को सुखाकर पीस लें |*
🔵 *भूरा हरा गुलाल : मेहँदी चूर्ण के साथ आँवला चूर्ण मिला लें |*

Posted in राजनीति भारत की - Rajniti Bharat ki

kaur


अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने तो इस लड़की के पक्ष में पूरी भाजपा को ही बलात्कारी लिख दिया है!
लेफ्ट बिरादरी युवा मन को प्रदूषित करने के लिए क्या-क्या तरीके अपनाता है, कुछ तथ्यगत उदाहरण देखिए…

अभी एक फौजी की बेटी को जिस तरह से एनजीओ माफिया शबनम हाशमी-कविता कृष्णन गैंग, मार्क्सवादी पार्टियां और लेफ्ट छात्र गिरोह अपने इशारे पर नचा रहे हैं, वह इनकी कार्यप्रणाली का हिस्सा है।

पहले किसी को रेप की धमकी मिलती थी तो पुलिस स्टेशन जाते थे
अब NDTV जाते हैंऔर पुरे एक घण्टे का प्रोग्राम होता है बरखा दत्त के साथ

किसी अनपड़ ने गुस्से मैं बोल दिया तो आपने बवाल मचा दिया रेप इस नोट अ जोक करके
लेकिन आपकी पार्टी का संदीप कितने गरीबों का रेप कर गया उसके विरोध मैं आपने एक पोस्ट भी नही डाला आखिर क्यों

गुरमेहर जी आप का प्रोफाइल चेक किया पिछले 2 hour से मैंने समझ मैं आ गया किस मानसिकता से सम्बन्ध रखती हैं आप

पाकिस्तान मैं हुए हर ब्लास्ट मैं आपने सांत्वना जताई है
लेकिन पिछले दिनों इंडिया मैं हुए ट्रेन एक्सीडेंटों जिसमे 100 से ज्यादा लोग मारे गए आप ने एक पोस्ट भी नही डाला

सर्जिकल स्ट्राइक के विरोध मैं आपने 4 पोस्ट डाली हैं उरी हमले के बारे मैं पोस्ट ढूढ़ने से भी नही मिली
यानि वो हमारे सोते हुए जवानों को शहीद कर जाए वो सही और हम कार्यवाही करें ये आपके हिसाब से गलत है और अपने को शहीद की बेटी बोल के अच्छा इस्तेमाल किया है आपने उनका उनकी भी आत्मा आज बहुत रो रही होगी

आप कहती हैं मैं शहीद के बेटी हु और ऊपर से उमऱ खालिद जैसे लोगो के साथ खड़े होके नारे लगाते हैं जो आर्मी जवानो को बलात्कारी और निक्कमा बताते हैं और आतंकियों को फ्रीडम फाइटर ये डबल statndard नही चलेगा क्लियर बताओ चाहती क्या हो

एक तरफ आप कहती है की avbp ने पत्थर मारे उन पर हिंसा का केस दर्ज़ हो दूसरी तरफ आप कहती है आर्मी जवानो पे पत्थर बाज़ी करना हिंसा का हिस्सा नही है आक्रोश जताने का तरीका है मतलब तुम करो तो रास लीला कोई और करें तो कैरेक्टर ढीला वाह

आपके ज्यादातर मित्र पाकिस्तान से ही है और
कश्मीरी पथरबाज़ो की बड़ी पीड़ा है आपको
मोहतरमा कभी समय हो तो उस गिलानी से जरूर पूछिये की 500 500 रूपये मैं क्यों कश्मीर के युवाओं को तबाह कर रहा है जबकि अपने बच्चे देल्ही विदेशो मैं मोज मार रहे हैं

और एक बात कब से लिन्क निकालने की सोच रहा हु तुमने कहा तुमको संघ आरएसएस बीजेपी मोदी से दिक्कत है
चलो हम तुम्हारे साथ हैं
अब सिर्फ ये बतादो कश्मीर की आज़ादी तक जंग रहेगी भारत की बर्बादी तक जंग रहेगी इसका संघ मोदी से क्या तालुक
क्या भारत सिर्फ मोदी आरएसएस बीजेपी का है

कुल मिला के सार ये निकला की तुम सिर्फ लाइम लाईट मैं आने के लिए ये सब ड्रामे कर रही हो कोई पार्टी गोद ले ही लेगी तुमको भी गद्दार कन्हैय्या की तरह
लड़की के जरिए लेफ्ट गैंग देश, मोदी सरकार और भाजपा को बदनाम करने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है।

अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने तो इस लड़की के पक्ष में पूरी भाजपा को ही बलात्कारी लिख दिया है! लेफ्ट बिरादरी युवा मन को प्रदूषित करने के लिए क्या-क्या तरीके आजमाता है, इसके कुछ उदाहरण देता हूं….

हां, मैं जो नीचे लिखने जा रहा हूं, उस पर कुछ लोगों को आपत्ति हो सकती है, लेकिन ये दस्तावेजी सच है, और इनमें से कुछ का जिक्र मेरी पुस्तक ‘कहानी कम्युनिस्टों की’ के पहले खंड में आ चुका है और कुछ का दूसरे खंड में आने वाला है, इसलिए जिम्मेदारी के साथ लिख रहा हूं।

1) पंडित जवाहरलाल नेहरू को कम्युनिस्ट इंटरनेशनल में शामिल कराने के लिए एम.एन.राय की पत्नी एलेविना राय का उपयोग किया गया था।

2) एडविना माउंटबेटन एक कम्युनिस्ट थी, जिसका उपयोग उसके पति माउंटबेटन ने नेहरू को कंट्रोल करने के लिए किया। कश्मीर की जीती बाजी को संयुक्तराष्ट्र संघ में माउंटबेटन परिवार के कहने पर ही नेहरू ले गये थे। रूस स्वतंत्र कश्मीर को सोवियत संघ का हिस्सा बनाना चाहता था। फार्रुख अब्दुल्ला का बाप शेख अब्दुल्ला भी सोवियत ट्रोजन था।

3) रक्षा मंत्री कृष्ण मेनन जब ब्रिटेन में उच्चायुक्त थे तो कामिन्टर्न ने उनके लिए ड्रग्स और लड़कियों की व्यवस्था कर रखी थी। मेनन ड्रग ओवरडोज और सेक्स ओवरडोज की बीमारी के शिकार हो गये थे। उनके इन ‘ओवर बीमारी’ को कंट्रोल करने के लिए बिजली का शॉक दिया जाता था।

4) एक भारतीय राजदूत ने स्टालिन के हित में कार्य किया था, क्योंकि एक रूसी जासूस उनके बच्चे की मां बनने वाली थी और वो ब्लैकमेल हो रहे थे।

5) इंदिरा गांधी जब नेहरू के साथ 50 के दशक में मास्को गयी तो रूस ने नेहरू को भारत जाने दिया और इंदिरा को घुमाने के बहाने रोक लिया गया। इंदिरा गांधी की खिदमत में केजीबी ने 7 युवा मर्दों को बहाल किया था।

6) फिरोज गांधी को इंदिरा ने रूसी जासूस के साथ बिस्तर में पकड़ा था, जिसके बाद उनके रिश्ते में दरार आना शुरू हुआ था।

7) हां, इस लड़की की कामरेड गाइड कविता कृष्णन और उसकी मां के मुंह से आप कुछ समय पूर्व सुन चुके हैं कि वो फ्री सेक्स की समर्थक हैं!

तो समझ जाइए…युवाओं को ये कैसे बर्बाद करते हैं!

मुझे लगता है अब जनता द्वारा सर्जिकल स्ट्राइक करने का वक्त आ गया है | क्यों न जहाँ कहीं कांग्रेसी देशद्रोही!मादरचोत सुवर दिखे उसकी सरेआम धोबीपछाड़ धुलाई से शुरुआत करें?ये जनता को सोचना है कि इन देश विरोधी तत्वों को देश की बागडोर सौंपने लायक है या नही |
दुर्भाग्य से पिछले सत्तर साल से ये ही खेवनहार थे |

मैं क्षमा चाहता हूं, यह सब लिखने के लिए। लेकिन युवाओं को कैसे फांसना है, यह लेफ्ट अच्छे से जानता है। याद रखिए उग्रसेन जैसे धर्मात्मा का बेटा कंस जैसा आततायी हुआ। इसलिए जरूरी नहीं कि किसी फौजी का बच्चा देशभक्त ही होगा! आगे आप सब समझदार हैं….

Image may contain: 4 people

Posted in नहेरु परिवार - Nehru Family

नेहरु की पत्नी कमला नेहरु को टीबी हो गया था


टीवी चैनेलो पर सबसे ज्यादा कांग्रेसी कुत्ते भौकते है की मोदी ने अपनी पत्नी को छोड़ दिया …

अब इन दोगले हरामी कांग्रेसियो की भयावह सच्चाई जानिये …
नेहरु की पत्नी कमला नेहरु को टीबी हो गया था ..
उस जमाने में टीबी का दहशत ठीक ऐसा ही था जैसा आज एड्स का है ..
क्योकि तब टीबी का इलाज नही था और इन्सान तिल तिल तडप तडपकर पूरी तरह गलकर हड्डी का ढांचा बनकर मरता था …

और कोई भी टीबी मरीज के पास भी नही जाता था क्योकि टीबी सांस से फैलती थी … लोग पहाड़ी इलाके में बने टीबी सेनिटोरियम में भर्ती कर देते थे …

नेहरु में अपनी पत्नी को युगोस्लाविया [आज चेक रिपब्लिक] के प्राग शहर में दुसरे इन्सान के साथ सेनिटोरियम में भर्ती कर दिया ..
कमला नेहरु पुरे दस सालो तक अकेले टीबी से सेनिटोरियम में पल पल मौत का इंतजार करती रही ..

लेकिन नेहरु दिल्ली में एडविना बेंटन के साथ इश्क करते थे ..
मजे की बात ये की इस दौरान नेहरु कई बार ब्रिटेन गये लेकिन एक बार भी वो प्राग जाकर अपनी धर्मपत्नी का हालचाल नही लिये..

नेताजी सुभाषचन्द्र बोस को जब पता चला तब वो प्राग गये ..
और डाक्टरों से और अच्छे इलाज के बारे में बातचीत की ..
प्राग के डाक्टरों ने बोला की स्विट्जरलैंड के बुसान शहर में एक आधुनिक टीबी होस्पिटल है जहाँ इनका अच्छा इलाज हो सकता है ..

तुरंत ही नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने उस जमाने में 70 हजार रूपये इकट्ठे किये और उन्हें विमान से स्विटजरलैंड के बुसान शहर में होस्पिटल में भर्ती किया …
लेकिन कमला नेहरु असल में मन से बेहद टूट चुकी थी ..
उन्हें इस बात का दुःख था की उनका पति उनके पास पिछले दस सालो से हालचाल लेने तक नही आया और गैर लोग उनकी देखभाल कर रहे है ..

दो महीनों तक बुसान में भर्ती रहने के बाद 28 February 1936 को बुसान में ही कमला नेहरु की मौत हो गयी …
उनके मौत के दस दिन पहले ही नेताजी सुभाषचन्द्र ने नेहरु को तार भेजकर तुरंत बुसान आने को कहा था ..
लेकिन नेहरु नही आये …

फिर नेहरु को उसकी पत्नी के मौत का तार भेजा गया ..
फिर भी नेहरु अपनी पत्नी के अंतिम संस्कार में भी नही आया ..
अंत में स्विटजरलैंड के बुसान शहर में ही नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने नेहरु की पत्नी कमला नेहरु का अंतिम संस्कार करवाया …

कुत्ते कांग्रेसियों …
असल में वामपंथी इतिहासकारों ने इस नीच गद्दार खानदान की गंदी सच्चाई ही इतिहास की किताबो से गायब कर दी ..

Image may contain: 3 people, people standing
Posted in राजनीति भारत की - Rajniti Bharat ki

Narendra Modi


Sachin Patil

लालू को “वोट” दिया तो भी सरकार “कांग्रेस” की.
मुलायम को “वोट” दिया तो भी सरकार”कांग्रेस” की
मायावती को “वोट” दिया तो भी सरकार “कांग्रेस” की
ममता को “वोट” दिया तो भी सरकार “कांग्रेस” की
करूणानिधि को “वोट”दिया तो भी सरकार “कांग्रेस” की
पवार को “वोट” दिया तो भी सरकार “कांग्रेस” की
तभी “ये चोर” “वो चोर” “सब चोर” “फलाना चोर” “ढिकना चोर” चिल्लाते
चिल्लाते एक नयी पार्टी आयी. उसे वोट दिया फिर भी सरकार कांग्रेस की ?🚫
अब मैंने कसम खा ली है मेरा वोट सिर्फ और
सिर्फ Narendra Modi को ! !इसलिए अपना वोट सिर्फ “कमल” को
कमल ..👍
या
खतना ..😠
गज़वा ऐ हिन्द पिछले 30 सालो से चल रहै है पर जब तारिक फ़तेह ने गज़वा ऐ हिन्द पे मुस्लिमो के छुपे एजंडे को खुला करदिया तो हिन्दू ओ की आँख खुल गयी और मुस्लिम की पोल खुल गयी भारत के हर शहर के आऊटर पर शांतीदूत सुनयोजित ढंग से बसाये गये है।
अबकी बार अगर जनता की आँखे नही खुली तो खून के आंसू रोयँगे सब हिन्दू और आज भी रो रहे है.
मैं इस बहस में नहीं पड़ना चाहता कि भाजपा ऐसा या वैसा क्यों कर रही है!!
जब आपके बच्चे बीमार होते है ,
तो अपनी जाति के डॉक्टर नहीं देखते हो आप?
जब भूख लगती है तो अपनी जाति का होटल मे नहीं जाते है साहेब ?
जब व्यापार करना हो तब अपनी जाति वालों से लेनदेन नहीं करते हो जनाब?
जब अपने बच्चो को स्कूल भेजते हो तब अपनी जाति का मास्टर नहीं देखते हो जी?
जब बेंक से लोन लेना हो तब अपनी जाति का बेंक नहीं देखते हो क्या?
तो वोट देते समय क्यो जनाब अपनी जाति का नेता देखते हो ।
मेरा एक ही सवाल है –
“हिंदू यदि भाजपा को वोट न दे तो किसे दे?”
क्या कोई और है जो राष्ट्रीय स्तर पर विकल्प दे सके?
यदि नहीं
तो क्या हम आज भाजपा का विरोध करके मुस्लिमपरस्त पार्टियों का ही भला नहीं कर रहे?
एक ओर माया मुलायम ममता लालू को कोसते हैं और जब चुनाव आते हैं तो संगठित होने की जगह भ्रम फैलाकर उन्हीं की मदद करने का काम करते हैं!
ऐसा करके हम कौन सा और किसका हित साध रहे हैं?
मोदीजी के विरोधियों दिल पर हांथ रखकर एक बात बता दो क्या पुरे देश में मोदीजी के जैसा नेता है क्या? मोदीजी नहीं तो और किसको सत्ता दें ताकि हमारा भला होगा?दिल्ली की विकासपुरी के डॉक्टर नारंग को मुसलमानो ने घर में घुसकर मारा तो ग़ाज़ियाबाद के यादव चुप थे। नारंग ना तो यादव थे, ऊपर से UP में अखिलेश भैया को वोट देते है मुसलमान तो, और अखिलेश भैया यादवों को सरकारी चपरासी व पुलिस में सिपाही बनाते है, व सस्ती दाल देते है।
अब परिवार की महिलाओं की छेड़खानी का विरोध करने पर ग़ाज़ियाबाद के सिंहासन यादव को घर में घुसकर मार डाला मुसलमानो ने।
तो बाक़ी UP के यादव चुप रहेंगे।
आख़िर बोले तो मुसलमान नाराज़ हो जाएँगे और अखिलेश भैया हार जाएँगे।
ग़ाज़ियाबाद के बाक़ी हिंदू भी चुप रहेंगे। यादव मुसलमान का गठजोड़ है, झगड़ा भी उन्ही में है, नौकरी भी उन्ही को मिलती है, हम क्यूँ बोले। बाक़ी UP के हिंदू भी इसी कारण चुप रहेंगे।
20% है घर में घुसकर मार रहे है। थोड़ा और बढ़ेंगे तो घर में घुसकर बलात्कार करेंगे। फिर थोड़ा और बढ़ेंगे तो सड़क पर खींचकर बलात्कार करेंगे।
आप चुप रहिएगा। आप की जाति का गठजोड़ है मुसलमान से। नहीं तो आपकी प्रतिद्वंद्वी जाति का है और आप ख़ुश है कि उनको सबक़ सिखाया मुसलमानो ने ही।
लेकिन उसके लिए आप सब काफ़िर है और आप सबका नाम उसकी लिस्ट में है। https://www.facebook.com/sashkttabharat/posts/1669972283245158https://www.facebook.com/sashkttabharat/photos/a.1500830570159331.1073741827.1500581043517617/1828458257396559/?type=3
https://www.facebook.com/sashkttabharat/photos/a.1500830570159331.1073741827.1500581043517617/1830783537164031/?type=3

No automatic alt text available.
No automatic alt text available.
Image may contain: 1 person
No automatic alt text available.

अगर आज नही जागे तो एक दिन हमारे भारत की तसबिर भी एसी होगी

मुसलमानो के अंदर औरंगजेब जाग चुका है।
हिन्दू भी अपने अंदर के शिवाजी को जगा लो।
वर्ना कल पछताओगे

किस अवतार की प्रतीक्षा मे हैं हिन्दू ?
महाभारत काल मे धर्म की हानि हुई , पांडवों को अपमान , पीड़ा , वनवास , अज्ञातवास और अंत मे युद्ध की विभीषिका को क्यूँ झेलना पड़ा ?
क्यूंकी वो धर्म के मार्ग पर अडिग रहे और अंततः धर्म की स्थापना कर पाने मे सफल भी हुये।
अब बात आती है अवतार की –
उस समय कृष्ण ने अवतार लिया ,
क्या कृष्ण के अस्त्र – शस्त्र उठाए ?
नहीं …
यदि कृष्ण हथियार उठा लेते तो महाभारत का युद्ध केवल एक ही दिन मे समाप्त हो जाता।
कृष्ण ने सारथी बनकर पांडवों का साथ दिया …
समय समय पर उनको उचित मार्गदर्शन दिया ,
विजय प्राप्ति के अवसर खोने नहीं दिये ,
साथ ही पांडवों को उनकी शक्ति और सामर्थ्य को पहचानने और प्रयोग मे लाने के लिए पूर्ण समर्थन भी दिया ।
ये सत्य है कि कृष्ण ईश्वर के अवतार के रूप मे ही आए थे …
किन्तु क्या सब कुछ उन्होने ही किया … ?
नहीं …
उन्होने केवल उनका ही मार्ग प्रशस्त किया जो धर्म के मार्ग पर थे और समाज मे धर्म की स्थापना करना चाहते थे।
प्रभु के धरा पर आगमन के फलस्वरूप ही अधार्मिक शक्तियों का विनाश और धार्मिक शक्तियों की ’ पुनर्स्थापना ’ होती है।
किन्तु यह स्थिति सदा के लिए नहीं बनी रह सकती है।
” यह तभी तक संभव होता है, जब तक धार्मिक शक्तियाँ सबल बनी रहें तथा अधार्मिक शक्तियों को फिर से सिर न उठाने दें। ”
साहस – मन का आभूषण है ,
वीरता – तन का आभूषण है और
शौर्य आत्मा का आभूषण होता है ।
” जिसने भी मन से आत्मा तक की ये यात्रा कर ली … वही अजेय है !! ”
आज भी यदि हम ईश्वर के किसी अवतार की प्रतीक्षा मे हैं …
तो हमसे बड़ा कोई मूर्ख नहीं।
कर्म हमे ही करना है …
ईश्वर तो बस हमारा मार्ग प्रशस्त करेंगे ,
हमे स्वयं को किसी भी हाल मे जीवित और सुरक्षित करना है,
हम जीवित रहेंगे तो धर्म भी जीवित रहेगा …

लेबनान की कहानी….

70 के दशक में लेबनान अरब का एक ऐसा मुल्क था जिसे अरब का स्वर्ग कहा जाता था और इसकी राजधानी बेरुत को अरब का paris । अरब में व्याप्त इस्लामिक जहालत के बावजूद लेबनान एक Progressive, Tolerant और Multi cultural सोसाइटी थी ……..
ठीक वैसे ही जैसे भारत है । लेबनान में दुनिया की बेहतरीन Universities थीं जहां पूरे अरब से बच्चे पढने आते थे और फिर वहीं रह जाते थे । काम करते थे । मेहनत करते थे । लेबनान की banking दुनिया की श्रेष्ट banking व्यवस्थाओं में शुमार थी । Oil न होने के बावजूद लेबनान एक शानदार economy थी ।
60 के दशक में वहाँ इस्लामिक ताकतों ने सिर उठाना शुरू किया ………
70 में जब Jordan में अशांति हुई तो लेबनान ने फिलिस्तीनी शरणार्थियों के लिए
दरवाज़े खोल दिए ……..

आइये स्वागत है ।
1980 आते आते लेबनान की ठीक वही हालत थी जो आज सीरिया की है ।
लेबनान की christian आबादी को मुसलामानों ने ठीक उसी तरह मारा जैसे सीरिया के ISIS ने मारा । पूरे के पूरे शहर में पूरी christian आबादी को क़त्ल कर दिया गया । कोई बचाने नहीं आया ।
Brigette Gabriel उसी लेबनान की एक survivor हैं जिन्होंने वो कत्लेआम अपनी आखों से देखा है । Brigette किसी तरह भाग के पहले Israel पहुंची और फिर वहाँ से अमेरिका । आजकल वो पूरी दुनिया में इस्लामिक साम्राज्य वाद और इस्लामिक आतंकवाद से लोगों को सचेत करती हैं।
एक सभा में एक लड़की ने उनसे पूछ लिया ………
सभी मुसलमान तो जिहादी नहीं ? ज़्यादातर peace loving और law abiding citizens हैं। जिहाद तो एक मानसिकता है । आखिर एक मानसिकता का मुकाबला गोली बन्दूक से कैसे किया जा सकता है ?
Brigette ने उत्तर दिया ……..
40 के दशक में Germany की अधिकाँश प्रजा भी peace loving थी । इसके बावजूद मुट्ठी भर उन्मादियों नें 6 करोड़ लोग दुनिया भर में मारे ।
Russia की जनता भी अमन पसंद थी । इसके बावजूद वहाँ के चंद उन्मादियों ने 2 करोड़ लोग मारे ।
China की जनता भी अमन पसंद बोले तो peace loving law abiding थी । चीन के उन्मादियों ने 7 करोड़ लोगों को मारा ।
जापान तो बेहद सभ्य सुशिक्षित सुसंस्कृत मुल्क है न । वहाँ की peace loving जनता तो पूरी दुनिया में अपने संस्कारों के लिए जानी जाती है । वहाँ उन्मादियों के एक छोटे से समूह ने सवा करोड़ लोगों का क़त्ल किया ।
अमेरिका के 23 लाख मुस्लिम आबादी भी तो peace loving ही है पर सिर्फ 19 लोगों के एक उन्मादी जिहादी समूह ने अकेले 9 /11 में 3000 से ज्यादा अमेरिकियों का क़त्ल किया ।
किसी समाज का एक छोटा सा हिस्सा भी उन्मादी जिहादी हो जाए तो फिर शेष peace loving society का कोई महत्त्व नहीं रहता । वो irrelevent हो जाते हैं ।
आज दुनिया भर में peace loving मुस्लमान irrelevant हो चुके है
कमान उन्मादियों के हाथ में है ।
लेबनान की कहानी ज़्यादा पुरानी नहीं । सिर्फ 25 – 30 साल पुरानी है ।
लेबनान और सीरिया से बहुत कुछ सीखने की जरुरत है ।

क्या करोगे हिन्दुओं इतनी संपत्ति कमाकर…?

– एक दिन पूरे काबूल (अफगानिस्तान) का व्यापार सिक्खों
का था, आज उस पर तालिबानों का कब्ज़ा है |
– सत्तर साल पहले पूरा सिंध सिंधियों का था, आज उनकी पूरी
धन संपत्ति पर पाकिस्तानियों का कब्ज़ा है |
– एक दिन पूरा कश्मीर धन धान्य और एश्वर्य से पूर्ण पण्डितों
का था, तुम्हारे उन महलों और झीलों पर आतंक का कब्ज़ा हो
गया और तुम्हे मिला दिल्ली में दस बाय दस का टेंट..|
– एक दिन वो था जब ढाका का हिंदू बंगाली पूरी दुनियाँ में
जूट का सबसे बड़ा कारोबारी था | आज उसके पास सुतली बम
भी नहीं बचा |
– ननकाना साहब, लवकुश का लाहोर, दाहिर का सिंध,
चाणक्य का तक्षशिला, ढाकेश्वरी माता का मंदिर देखते ही
देखते सब पराये हो गए | पाँच नदियों से बने पंजाब में अब केवल दो
ही नदियाँ बची |
– यह सब किसलिए हुआ ? केवल और केवल असंगठित होने के कारण|
इस देश के मूल समाज की सारी समस्याओं की जड़ ही संगठन
का अभाव है |
– आज भी इतना आसन्न संकट देखकर भी बहुतेरा समाज गर्राया
हुआ है | कोई व्यापारी असम के चाय के बागान अपना समझ रहा
है, कोई आंध्र की खदानें अपनी मान रहा है | तो कोई सोच रहा
है ये हीरे का व्यापार सदा सर्वदा उसी का रहेगा |
कभी कश्मीर की केसर की क्यारियों के बारे में भी हिंदू यही
सोचा करता था |
– तू अपने घर भरता रहा और पूर्वांचल का लगभग पचहत्तर प्रतिशत
जनजाति समाज विधर्मी हो गया | बहुत कमाया तूने बस्तर के
जंगलों से…आज वहाँ घुस भी नहीं सकता |

आज भी आधे से ज्यादा समाज को तो ये भी समझ नहीं कि उस
पर संकट क्या आने वाला है | बचे हुए समाज में से बहुत सा अपने
आप को सेकुलर मानता है | कुछ समाज लाल गुलामों का
मानसिक गुलाम बनकर अपने ही समाज के खिलाफ कहीं बम
बंदूकें, कहीं तलवार तो कहीं कलम लेकर विधर्मियों से ज्यादा
हानि पहुंचाने में जुटा है |
ऐसे में पाँच से लेकर दस प्रतिशत समाज ही बचता है जो अपने धर्म
और राष्ट्र के प्रति संवेदनशील है | धूर्त सेकुलरों ने उसे असहिष्णु
और साम्प्रदायिक करार दे दिया |

भारत के पाँच महापुरुष और उनकी बातें –
इनका पालन करना हमारा कर्तव्य है…!!
महाराणा प्रताप :~ ” किसी की दासता से कहीं अच्छा है कि उससे लड़ो,मारो,जीतो,
या शहीद हो जाओ ! जीना है तो गर्व से,दासता में जीने से कहीं अच्छा है.1 पल गर्व से जीना ”

शिवाजी महाराज :~ ” हिन्दू है तो हिन्दू धर्म की रक्षा कर , देश पर धर्म का राज कर,हिंदवी राज्य ही ईश्वर की इच्छा , उठा तलवार , शांति के लिये युद्ध जरुरी है, घुस कर मार ”

गुरु गोविंद सिंह :~ ” हाथ को तेल के डिब्बे में कोहनी तक डालो , फिर उस हाथ को तिल की बोरी में डालो , जितने तिल हाथ से चिपके उतनी बार भी मुस्लिम कसम खाये तो
भरोसा मत करना ”

वीर सावरकर :~ ” हिन्दु राष्ट्र से ही भारत का विकास संभव ….
अगर किसी ने दूसरे गाल पर भी थप्पड मार दिया तो तीसरा गाल कहां से लाओगे ,
जुल्म सहोगे तो जुल्म एक दिन खा जायेगा ”

नाथूराम गोडसे :~ “जो तुम्हारे देश के खिलाफ बोलता है,उसे तोड़ने की बात करता है,तोड़ता है उसे मार दो …
धर्म से ही देश बनता है और देश के लिये प्राण लेना देना छोटी बात हैं ॥”

तो देश को बर्बाद करने वाले जेहादियों को गोली मारने के लिए सोच-विचार की क्या आवश्यकता है…?

इसलिए आजादी के बाद एक बार फिर हिंदू समाज दोराहे पर
खड़ा है | एक रास्ता है, शुतुरमुर्ग की तरह आसन्न संकट को
अनदेखा कर रेत में गर्दन गाड़ लेना तथा दूसरा तमाम संकटों को
भांपकर सारे मतभेद भुलाकर संगठित हो संघर्ष कर अपनी धरती
और संस्कृति बचाना |
और कोई सीखे न सीखे हिन्दूस्थान को तो सीख ही लेना चाहिए ।