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क्या है धूर्त साई बाबा का सच??


शंकर सन्देश (समाचार पत्र)
9602109997शंकर सन्देश (समाचार पत्र)
9602109997

क्या है धूर्त साई बाबा का सच??

शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने साई बाबा को मुसलमान फकीर कहा है। विवादित पोस्टर से कई लोगों की भावनाएं आहत हुई तो कई सवाल भी खड़ी हुए हैं। साई बाबा के बारे में बहुत भ्रम फैला है। वे हिन्दू थे या मुसलमान? क्या वे कबीर, नामदेव, पांडुरंग आदि के अवतार थे??

आचार्य चतुरसेन का उपन्यास ‘सोमनाथ’ में उन्होंने लिखा है कि मुगल और अंग्रेजों के शासनकाल में ऐसा अकसर होता था कि जासूसी या हिन्दू क्षेत्र की रेकी करने के लिए सूफी संतों के वेश में फकीरों की टोली को भेजा जाता था।जो गांव या शहर के बाहर डेरा डाल देती थी। इनका काम था सीमा पर डेरा डाल कर वहां के लोगों और राजाओं की ताकत का अंदाजा लगाना और प्रजा में विद्रोह भड़काना।

किसने कहा सबसे पहले साई
शंकर सन्देश (समाचार पत्र)
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‘साई शब्द फारसी का है जिसका अर्थ होता है “भिखारी”(संत)। उस काल में आमतौर पर भारत के पाकिस्तानी हिस्से में मुस्लिम संन्यासियों के लिए इस शब्द का प्रयोग होता था। शिर्डी में साई सबसे पहले जिस मंदिर के बाहर आकर रुके थे उसके पुजारी ने उन्हें साई कहकर ही संबोधित किया था। मंदिर के पुजारी को वे मुस्लिम फकीर ही नजर आए।तभी तो उन्होंने उन्हें साई कहकर पुकारा।
शंकर सन्देश (समाचार पत्र)
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साई ने यह कभी नहीं कहा कि ‘सबका मालिक एक’। साई सच्चरित्र के अध्याय 4, 5, 7 में इस बात का उल्लेख है कि वे जीवन भर सिर्फ अल्लाह मालिक है’यही बोलता रहा । कुछ लोगों ने उनको हिन्दू संत बनाने के लिए यह झूठ प्रचारित किया कि वे ‘सबका मालिक एक है’ भी बोलता था।यदि वे एकता की बात करते थे, तो कभी यह क्यों नहीं कहा कि ‘राम मालिक है’ या ‘भगवान मालिक है।’

कोई हिन्दू संत सिर पर कफन जैसा नहीं बांधता।ऐसा सिर्फ मुस्लिम फकीर व भिखारी ही बांधता है। जो पहनावा साई का था, वह एक मुस्लिम फकीर (भिखारी) का ही हो सकता है। हिन्दू धर्म में सिर पर सफेद कफन जैसा बांधना वर्जित है या तो जटा रखी जाती है या किसी भी प्रकार से सिर पर बाल नहीं होते।

साई बाबा मस्जिद में क्यों रहे
शंकर सन्देश (समाचार पत्र)
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साई बाबा ने रहने के लिए मस्जिद का ही चयन क्यों किया? वहां और भी स्थान थे, लेकिन वे जिंदगीभर मस्जिद में ही रहे। मस्जिद के अलावा भी तो शिर्डी में कई और स्थान थे, जहां वे रह सकते थे। मस्जिद ही क्यों? भले ही मंदिर में न रहते, तो नीम के वृक्ष के नीचे एक कुटिया ही बना लेते। उनके भक्त तो इसमें उनकी मदद कर ही देते।

साईं सच्चरित्र के अनुसार, साईं बाबा पूजा-पाठ, ध्यान, प्राणायाम और योग के बारे में लोगों से कहते थे कि इसे करने की कोई जरूरत नहीं है। उनके इस प्रवचन से पता चलता है कि वह हिन्दू धर्म विरोधी था।धूर्त साई का मिशन था- लोगों में एकेश्वरवाद के प्रति विश्वास पैदा करना। उन्हें कर्मकांड, ज्योतिष आदि से दूर रखना।

मस्जिद से बर्तन मंगवाकर वे मौलवी से फातिहा पढ़ने के लिए कहते थे। इसके बाद ही भोजन की शुरुआत होती थी। उन्होंने कभी भी मस्जिद में गीता पाठ नहीं करवाया या भोजन कराने के पूर्व ‘श्रीगणेश करो’ ऐसा भी नहीं कहा। यदि वह हिन्दू-मुस्लिम एकता की बात करते था तो फिर दोनों ही धर्मों का सम्मान करना चाहिए था।

क्या अफगानिस्तान के था साई

साई को सभी यवन मानते थे। वह हिन्दुस्तान का नहीं, अफगानिस्तान का था ।इसीलिए लोग उन्हें यवन का मुसलमान कहते थे। उनकी कद-काठी और डील-डौल यवनी ही था। साई सच्चरित्र के अनुसार, एक बार साई ने इसका जिक्र भी किया था। जो भी लोग उनसे मिलने जाते थे उन्हें मुस्लिम फकीर ही मानते थे। लेकिन उनके सिर पर लगे चंदन को देखकर लोग भ्रमित हो जाते थे।
शंकर सन्देश (समाचार पत्र)
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बाबा कोई धूनी नहीं रमाते थे जैसा कि नाथ पंथ के लोग करते हैं। ठंड से बचने के लिए बाबा एक स्थान पर लड़की इकट्ठी करके आग जलाते थे। उनके इस आग जलाने को लोगों ने धूनी रमाना समझा। चूंकि बाबा के पास जाने वाले लोग चाहते थे कि बाबा हमें कुछ न कुछ दे तो वे धूनी की राख को ही लोगों को प्रसाद के रूप में दे देते थे। यदि प्रसाद देना ही होता था तो वे अपने भक्तों को मांस मिला हुआ नमकीन चावल देते थे।

🖊 आजकल साई बाबा को पुस्तकों और लेखों के माध्यम से ब्राह्मण कुल में जन्म लेने की कहानी को प्रचारित किया जा रहा है। क्या कोई ब्राह्मण मस्जिद में रहना पसंद करेगा ???

क्यों डराया था गांव वालों को
शंकर सन्देश (समाचार पत्र)
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साई के समय दो बार अकाल पड़ा। लेकिन साई उस वक्त अपने भक्तों के लिए कुछ नहीं कर पाया। एक बार प्लेग फैला तो उन्होंने गांव के सभी लोगों को गांव से बाहर जाने के लिए मना किया।क्योंकि कोई जाकर वापस आएगा तो वह भी इस गांव में प्लेग फैला देता।तब उसने लोगों में डर भर दिया कि जो भी मेरे द्वारा खींची गई लकीर के बाहर जाएगा, वह मर जाएगा। इस डर के कारण भोली-भाली जनता गांव से बाहर नहीं गई और लोगों ने इसे चमत्कार के रूप में प्रचारित किया कि साई ने गांव की प्लेग से रक्षा की। प्लेग उनके गांव में नहीं आ सका। साई के पास कई ऐसे लोग आते जाते थे, जो उन्हें बाहर की दुनिया का हालचाल बता देते थे।

साई का जन्म 1830 में हुआ।परन्तु इसने आजादी की लड़ाई में भारतीयों की मदद करना जरूरी नहीं समझा।क्योंकि वह भारतीय नहीं था।वह अंग्रेजों के जासूस था । *अफगानिस्तानी पंडारियों के समाज से थाऔर उन्हीं के साथ उनके पिता भारत आए थे। उनके पिता का नाम बहरुद्दीन था और उनका नाम चांद मियां।

साई के विरोधी साई चरित में उल्लेखित घटना का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि 1936 में हरि विनायक साठे (एक साई भक्त) ने अपने साक्षात्कार में नरसिम्हा स्वामी को बोला था कि बाबा किसी भी हिन्दू देवी-देवता या स्वयं की पूजा मस्जिद में नहीं करने देते थे, न ही मस्जिद में किसी देवता के चित्र वगैरह लगाने देते।

क्यों बोलता था अल्लाह मालिक
शंकर सन्देश (समाचार पत्र)
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साई सच्चरित्र साईं भक्तों और शिर्डी साई संस्थान द्वारा बताई गई साई के बारे में सबसे उचित पुस्तक है। पुस्तक के पेज नंबर 17, 28, 29, 40, 58, 78, 120, 150, 174 और 183 पर साईं ने ‘अल्लाह मालिक’ बोला’ऐसा लिखा है। पूरी पुस्तक में साई ने एक बार भी किसी हिन्दू देवी-देवता का नाम नहीं बोला और न ही कहीं ‘सबका मालिक एक’ बोला। साई भक्त बताएं कि जो बात साई ने अपने मुंह से कभी कही ही नहीं, उसे साई के नाम पर क्यों प्रचारित किया जा रहा है?

साई को राम से जोड़ने की साजिश 12 अगस्त 1997 को गुलशन कुमार की हत्या के ठीक 6 महीने बाद 1998 में साईं नाम के एक नए भगवान का अवतरण हुआ। इसके कुछ समय बाद 28 मई 1999 में ‘बीवी नंबर 1’ फिल्म आई जिसमें साईं के साथ पहली बार राम को जोड़कर ‘ॐ साईं राम’ गाना बनाया था।

बाबा बाजार से खाद्य सामग्री में आटा, दाल, चावल, मिर्च, मसाला, मटन आदि सब मंगाते थे और इसके लिए वे किसी पर निर्भर नहीं रहे थे। भिक्षा मांगना तो उनका ढोंग था। बाबा के पास घोड़ा भी था। शिर्डी के अमीर हिन्दुओं ने उनके लिए सभी तरह की सुविधाएं जुटा दी थीं। उनके कहने पर ही कृष्णा माई गरीबों को भोजन करवाती थीं। मस्जिद में साफ-सफाई करती थीं और सभी तरह की देख-रेख का कार्य करती थीं।

मेघा से क्या कहा साईं ने

साई मेघा की ओर देखकर कहने लगे, ‘तुम तो एक उच्च कुलीन ब्राह्मण हो और मैं बस निम्न जाति का यवन (मुसलमान)।इसलिए तुम्हारी जाति भ्रष्ट हो जाएगी। इसलिए तुम यहां से बाहर निकलो। -साई सच्चरित्र।-(अध्याय 28)
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एक एकादशी को उन्होंने पैसे देकर केलकर को मांस खरीदने लाने को कहा। -साईं सच्चरित्र (अध्याय 38)

बाबा ने एक ब्राह्मण को बलपूर्वक बिरयानी चखने को कहा। -साईं सच्चरित्र (अध्याय 38)

साई सच्चरित्र अनुसार साई बाबा गुस्से में आता था और गालियां भी बकता था।ज्यादा क्रोधित होने पर वह अपने भक्तों को पीट भी देता था । बाबा कभी पत्‍थर मारता और कभी गालियां देता। -पढ़ें 6, 10, 23 और 41 साईं सच्चरित्र अध्याय।

बाबा ने स्वयं कभी उपवास नहीं किया और न ही उन्होंने किसी को करने दिया। साई सच्चरित्र (अध्याय 32)

‘मुझे इस झंझट से दूर ही रहने दो। मैं तो एक फकीर हूं, मुझे गंगाजल से क्या प्रयोजन?- साई सच्चरित्र (अध्याय 28)
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और क्या कह रहे हैं साई विरोधी

साई विरोधी कहते हैं कि साई अफगानिस्तान का एक पिंडारी लुटेरा था। इसके लिए वे एक कहानी बताते हैं कि औरंगजेब की मौत के बाद मुगल साम्राज्य खत्म-सा हो गया था। केवल दिल्ली उनके अधीन थी। मराठों के वीर सपूतों ने एक तरह से हिन्दू साम्राज्य की नींव रख ही दी थी।ऐसे समय में मराठाओं को बदनाम करके उनके इलाकों में लूटपाट करने का काम यह पिंडारी करते थे। जब अंग्रेज आए तो उन्होंने पिंडारियों को मार-मारकर खत्म करना शुरू किया। इस खात्मे के अभियान के चलते कई पिंडारी अंग्रेजों के जासूस बन गए थे।

क्या है झांसी की रानी का संबंध
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साई के विरोधी कहते हैं कि झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की सेना में 500 पिंडारी अफगान पठान सैनिक थे। उनमें से कुछ सैनिकों को अंग्रेजों ने रिश्वत देकर मिला लिया था। उन्होंने ही झांसी की रानी के किले के राज अंग्रेजों को बताए थे। युद्ध के मैदान से रानी जिस रास्ते पर घोड़े के साथ निकल पड़ीं, उसका रास्ता इन्हीं पिंडारी पठानों ने अंग्रेजों को बताया। अंत में पीछा करने वाले अंग्रेजों के साथ 5 पिंडारी पठान भी थे। उसमें से एक शिर्डी के कथित धूर्त साई बाबा का पिता था ।जिसे बाद में झांसी छोड़कर महाराष्ट्र में छिपना पड़ा था। उसका नाम था *बहरुद्दीन। उसी पिंडारी पठान भगोड़े सैनिक का बेटा यह शिर्डी का साई है, जो वेश्या से पैदा हुआ और और जिसका नाम चांद मियां था।

क्या हुआ था 1857 में
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1857 के दौरान हिन्दुस्तान में हिन्दू और मुसलमानों के बीच अंग्रेजों ने फूट डालने की नीति के तहत कार्य करना शुरू कर दिया था। इस क्रांति के असफल होने का कारण यही था कि कुछ हिन्दू और मुसलमान अंग्रेजों की चाल में आकर उनके लिए काम करते थे। बंगाल में भी हिन्दू-मुस्लिम संतों के बीच फूट डालने के कार्य को अंजाम दिया गया। इस दौर में कट्टर मुसलमान और पाकिस्तान का सपना देखने वाले मुसलमान अंग्रेजों के साथ थे।

क्या कह रह हैं साईं के पिता के बारे में

साईं का पिता जो एक पिंडारी ही था।उनका मुख्य काम था अफगानिस्तान से भारत के राज्यों में लूटपाट करना। एक बार लूटपाट करते-करते वे महाराष्ट्र के अहमदनगर पहुंचा।जहां वह एक वेश्या के घर में रुक गया। फिर वह उसी के पास रहने लगा । कुछ समय बाद उस वेश्या से उन्हें एक लड़का और एक लड़की पैदा हुए । लड़के का नाम उन्होंने चांद मियां रखा। लड़के को लेकर वह अफगानिस्तान चले गए। लड़की को वेश्या के पास ही छोड़ गया। अफगानिस्तान उस काल में इस्लामिक ट्रेनिंग सेंटर था। जहां लूटपाट, जिहाद और धर्मांतरण करने के तरीके सिखाए जाते थे।

कौन था चांद मियाँ

उस समय अंग्रेज पिंडारियों की जबरदस्त धरपकड़ कर रहे थे। इसलिए बहरुद्दीन भेस बदलकर लूटपाट करता और उसने अपने संदेशवाहक के लिए अपने बेटे चांद मियां ( साई ) को भी ट्रेंड कर दिया था। चांद मियाँ चादर फैलाकर भीख मांगता था। चांद मियाँ चादर पर यहां के हाल लिख देता था और उसे नीचे से सिलकर अफगानिस्तान भेज देता था। इससे जिहादियों को मराठाओं और अंग्रेजों की गतिविधि के बारे में पता चल जाता था।

किसे कहते थे यवनी

यह साई अफगानिस्तान का एक पिंडारी था।जिसे लोग यवनी कहकर पुकारते थे। यह पहले हिन्दुओं के गांव में फकीरों के भेष में रहकर चोरी-चकारी करने के लिए कुख्यात था। यह हरे रंग की चादर फैलाकर भीख मांगता था और उसे काबुल भेज देता था। किसी पीर की मजार पर चढ़ाने के लिए उसी चादर के भीतर वह मराठा फौज और हिन्दू धनवानों के बारे में सूचनाएं अन्य पिंडारियों को भेजता था।ताकि वे सेंधमारी कर सकें। इसकी चादर एक बार एक अंग्रेज ने पकड़ ली थी और उस पर लिखी गुप्त सुचनाओं को जान लिया था।

क्या चांद मियाँ उर्फ साई जेल से छूटा था

1857 की क्रांति का समय अंग्रेजों के लिए विकट समय था। ऐसे में चांद मियां अंग्रेजों के हत्थे चढ़ गया। अहमदनगर में पहली बार साई की फोटो ली गई थी। अपराधियों की पहले भी फोटो ली जाती थी। यही चांद मियां 8 साल बाद जेल से छुटकर कुछ दिन बाद एक बारात के माध्यम से शिर्डी पंहुचा और वहां के सुलेमानी लोगों से मिला। जिनका असली काम था गैर-मुसलमानों के बीच रहकर चुपचाप इस्लाम को बढ़ाना। इस मुलाकात के बाद साई पुन: बारातियों के साथ चले गए। कुछ दिन बाद चांद मियां शिर्डी पधारा और यही उसने अल-तकिया का ज्ञान लिया। मस्जिद को जान-बूझकर एक हिन्दू नाम दिया गया और उसके वहां ठहराने का पूरा प्रबंध सुलेमानी मुसलमानों ने किया।

किसने किया प्रचारित
शंकर सन्देश (समाचार पत्र)
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एक षड्यंत्र के तहत चांद मियां को चमत्कारिक फकीर के रूप में प्रचारित किया गया और गांव की भोली-भाली हिन्दू जनता उसके झांसे में आने लगी। चांद मियां कई तरह के जादू-टोने और जड़ी-बूटियों का जानकार था।इसलिए धीरे-धीरे गांव में लोग उसको मानने लगे। बाद में मंडलियों द्वारा उसके चमत्कारों का मुंबई में भी प्रचार-प्रसार किया गया।जिसके चलते धनवान लोग भी उसके संपर्क में आने लगे।

क्या पाठ पढ़ाया

चांद मियाँ उर्फ साई ने हिन्दू-मुस्लिम एकता की बातें करके मराठाओं को उनके ही असली दुश्मनों से एकता निभाने का पाठ पढ़ाया। यह मराठाओं की शक्ति को कमजोर करने का षड्यंत्र था। सिर्फ साई ही नहीं, ऐसे कई ढोंगी संत उस काल में यही कार्य पूरे महाराष्ट्र में कर रहे थे। मराठाओं की शक्ति से सभी भयभीत हो गए थे।तब उन्होंने ‘छल’ का उपयोग शुरू कर दिया था।
🖊 धन्य हो धूर्त साई उर्फ चाँद मियाँ के अंधे भक्तो।

शंकर सन्देश (समाचार पत्र)
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जावेद अख्तर – Dharmendra Pratap Singh


पढ़े लिखे जावेद अख्तर की DNA एनालिसिस में शर्मनाक खुलासे, इनके जैसा तो कोई नहीं बनना चाहेगा

http://www.besthindinews.com/2017/03/javed-akhtar-dna-analysis-cheated-honey-irani-affair-with-shabana.html?m=1

दिल्ली: मशहूर लेखक जावेद अख्तर बड़ी मुसीबत में फंस गए हैं, उन्होने हरियाणा के खिलाडियों वीरेंद्र सेहवाग, योगेश्वर दत्त, गीता फोगाट, बबीता फोगाट को अनपढ़ बताते हुए कहा था कि ये लोग अनपढ़ होने की वजह से गुरमेहर कौर को ट्रोल करते हैं तो समझ में आता है लेकिन केंद्रीय राज्य मंत्री किरेन रिजीजू ऐसा करें यह समझ के बाहर है।

जैसे ही जावेद अख्तर ने हरियाणा के टॉप खिलाडियों को अनपढ़ बताया, पूरे देश में बवाल मच गया, लोग इन्टरनेट पर ढूँढने लगे कि आखिर जावेद अख्तर ने कितना पढ़ा लिखा है कि दूसरों को अनपढ़ता का प्रमाण पत्र बाँट रहे हैं।

जब उनकी DNA एनालिसिस की गयी तो पता चला कि उन्होने भोपाल के सैफिया कॉलेज से महज ग्रेजुएशन किया है। उन्होंने ना तो कहीं से PhD की है और ना ही कोई वैज्ञानिक रहे हैं इसके बावजूद भी उन्होंने बड़े खिलाडियों को अनपढ़ बता दिया।

जब उनकी लाइफ की गहराई से डीएनए एनालिसिस की गयी तो और भी चौंकाने वाले खुलासे हुए, ये खुलासे पढ़कर देश का कोई भी इंसान जावेद अख्तर जैसा नहीं बनना चाहेगा और सभी को उनपर शर्म आएगी। लोग कहेंगे कि अगर पढ़े लिखे लोग ऐसे होते हैं तो हमें नहीं पढना लिखना।

17 वर्ष की लडकी हनी इरानी से किया प्रेम विवाह

जावेद अख्तर मशहूर फिल्म लेखक हैं, एक दिन इनकी फिल्म सीता और गीता के सेट पर इनकी हनी इरानी से मुलाकात हुई और दोनों में प्यार हो गया, हनी इरानी केवल 17 वर्ष की थी, दोनों ने 21 मार्च 1972 को शादी कर ली। कानूनी रूप से हनी इरानी नाबालिग थी उसके बाद भी 27 वर्ष के पढ़े लिखे जावेद अख्तर ने उसके साथ शादी की। शादी के बाद दोनों के दो बच्चे हुए, बेटे का नाम है फरहान अख्तर और बेटी का नाम है जोया अख्तर। जोया अख्तर का जन्म 1972 में ही हो गया यानी शादी एक कुछ दिनों के बाद और फरहान अख्तर का जन्म 1974 में हुआ, दोनों ही फ़िल्मी करियर में सफल हो चुके हैं।

जावेद अख्तर और हनी इरानी की शादी केवल 6 साल चली क्योंकि हनी ईरानी ने घर पर रहकर बच्चों की देखभाल शुरू कर दी, इधर हनी इरानी ने घर पर रहकर बच्चों की देखभाल शुरू कर दी और उधर जावेद अख्तर को फिल्म एक्ट्रेस शबाना आजमी से दोबारा प्यार हो गया। उसके बाद जावेद अख्तर को अपने पत्नी और दो छोटे छोटे बच्चों का ख्याल नहीं रहा। अब ये शबाना अजमी के चक्कर में रहने लगे। दोनों के बीच अफेयर शुरू हो गया। जैसे ही हनी इरानी को पता चला उन्होंने ऐतराज किया।

शबाना आजमी से किया दूसरा विवाह, पहली पत्नी को छोड़ा

जब जावेद अख्तर नहीं माने तो दोनों 1978 में यानी शादी के 6 साल बाद अलग हो गए और अलग होने के चार साल बाद 1985 में दोनों का तलाक हो गया। जावेद अख्तर की बेशर्मी देखिये, इन्होने तलाक से पहले ही 1984 में शबाना आजमी से शादी कर ली। इन्हें एक साल और इन्तजार नहीं हो सका।

अब आप खुद सोचिये ये कितने पढ़े लिखे हैं, इतने पढ़े लिखे होने के बाद भी इन्होने पहली पत्नी हनी इरानी को छोड़कर शबाना आजमी के साथ अफेयर कर लिया। जब जावेद अख्तर शबाना आजमी के साथ रंगरेलियां मनाने लगे तो इनकी पत्नी हनी इरानी से सहन नहीं हुआ, इसके बाद जावेद अख्तर और हनी इरानी में तलाक हो गया और जावेद अख्तर ने अपनी प्रेमिका शबाना आजमी के साथ सादी कर ली।
Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

एक 6 वर्ष का लडका अपनी 4 वर्ष की छोटी बहन के साथ बाजार से जा रहा था।


एक 6 वर्ष का लडका अपनी 4 वर्ष की छोटी बहन के साथ बाजार से जा रहा था।
अचानक से उसे लगा कि, उसकी बहन पीछे रह गयी है।
वह रुका, पीछे मुड़कर देखा तो जाना कि, उसकी बहन एक खिलौने के दुकान के सामने खडी कोई चीज निहार रही है।
लडका पीछे आता है और बहन से पूछता है, “कुछ चाहिये तुम्हें?” लडकी एक गुड़िया की तरफ उंगली उठाकर दिखाती है।
बच्चा उसका हाथ पकडता है, एक जिम्मेदार बडे भाई की तरह अपनी बहन को वह गुड़िया देता है। बहन बहुत खुश हो गयी ।
दुकानदार यह सब देख रहा था, बच्चे का व्यवहार देखकर आश्चर्यचकित भी हुआ ….
अब वह बच्चा बहन के साथ काउंटर पर आया और दुकानदार से पूछा, “कितनी कीमत है इस गुड़िया की ?”
दुकानदार एक शांत और गहरा व्यक्ति था, उसने जीवन के कई उतार देखे थे, उन्होने बड़े प्यार और अपनत्व से बच्चे से पूछा,
“बताओ बेटे, आप क्या दे सकते हो ??”
बच्चा अपनी जेब से वो सारी सीपें बाहर निकालकर दुकानदार को देता है जो उसने थोड़ी देर पहले बहन के साथ समुंदर किनारे से चुन चुन कर बीनी थी !!!
दुकानदार वो सब लेकर यूँ गिनता है जैसे कोई पैसे गिन रहा हो।
सीपें गिनकर वो बच्चे की तरफ देखने लगा तो बच्चा बोला,”सर कुछ कम हैं क्या ??”
दुकानदार :-” नहीं – नहीं, ये तो इस गुड़िया की कीमत से भी ज्यादा है, ज्यादा मैं वापस देता हूँ ” यह कहकर उसने 4 सीपें रख ली और बाकी की बच्चे को वापिस दे दी।
बच्चा बड़ी खुशी से वो सीपें जेब मे रखकर बहन को साथ लेकर चला गया।
यह सब उस दुकान का कामगार देख रहा था, उसने आश्चर्य से मालिक से पूछा, ” मालिक ! इतनी महंगी गुड़िया आपने केवल 4 सीपों के बदले मे दे दी ?”
दुकानदार एक स्मित संतुष्टि वाला हास्य करते हुये बोला,
“हमारे लिये ये केवल सीप है पर उस 6 साल के बच्चे के लिये अतिशय मूल्यवान है और अब इस उम्र में वो नहीं जानता, कि पैसे क्या होते हैं ?
पर जब वह बडा होगा ना…
और जब उसे याद आयेगा कि उसने सीपों के बदले बहन को गुड़िया खरीदकर दी थी, तब उसे मेरी याद जरुर आयेगी, और फिर वह सोचेगा कि,,,,,,
*”यह विश्व अच्छे मनुष्यों से भी भरा हुआ है।”*
यही बात उसके अंदर सकारात्मक दृष्टिकोण बढानेे में मदद करेगी और वो भी एक अच्छा इंन्सान बनने के लिये प्रेरित होगा…

Posted in लक्ष्मी प्राप्ति - Laxmi prapti

ये गुप्त संकेत कराते हैं शीघ्र धन प्राप्ति


ये गुप्त संकेत कराते हैं शीघ्र धन प्राप्ति — मित्रों कई बार धन हमें मिलने ही वाला होता है और प्रकृति इसके गुप्त संकेत भी देती है, पर हम इन्हें समझ नहीं पाते। आज के समय में धन किसे नहीं चाहिए।

 

इसलिए जब कभी आपके साथ ऐसा हो तो समझ ल़ें कि धन आने वाला है और चौकस हो जाएं-

 

1. यदि किसी काम से आप घर से बाहर जा रहे हैं और तैयार होते हुए कपड़े पहन रहे हों और अचानक आपकी जेब से पेसे गिर जाएं तो यह भी धन प्राप्ति का अच्छा संकेत माना जाता है।

 

2. यदि आप पैसे जमा करवाने के लिए बैंक जा रहे हैं और यदि रास्ते में गाय आ जाए तो समझ लीजिए कि अब आपके धन से संबंधित काम पूरे हो ही जाएगें।
3. दीपावली वाले दिन यदि आपको अचानक कोई किन्नर सजीं-संवरी दिखाई दे, तो धन लाभ अचानक से होता है।
4. इसी प्रकार सुबह सुबह आपके घर कोई भिखारी मांगने के लिए आ जाए तो इसका अर्थ यह है कि आपने किसी को जो पैसा उधार दिया है वह बिन मांगे आपको मिलने वाला है इसलिए भिखारी को अपने घर से खाली हाथ बिल्कुल मत लौटाएं, कुछ न कुछ अवश्य ही दे दें।
5. यदि गुरुवार के दिन आपको कोई कुंवारी कन्या पीले कपड़ो में दिखाई देती है तो यह शुभ माना जाता है और यह धन लाभ का भी संकेत है।
6. यदि शरीर के दाहिने हाथ यानि की Right Hand में आपको लगातार खुजली हो रही है तो समझ लीजिए कि आपको धन मिलने वाला है।
7. यदि आप कुछ खरीद रहे हैं या बेच रहे हैं और आपके हाथ से पैसे छूट जाए तो समझ जाइए कि आपको धन लाभ होने वाला है।
8. एक और संकेत है कि यदि यात्रा करते समय कुत्ता अपने मुख में रोटी को खाते हुए दिख जाए तो समझें कि आपको अपार धन की प्राप्ती होने वाली है।
Posted in संस्कृत साहित्य

चमत्कारी फलप्रदाता रुद्राक्ष – Prasad Davrani


चमत्कारी फलप्रदाता रुद्राक्ष
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एक मुखी रुद्राक्ष
इसके मुख्य ग्रह सूर्य होते हैं। इसे धारण करने से हृदय रोग, नेत्र रोग, सिर दर्द का कष्ट दूर होता है। चेतना का द्वार खुलता है, मन विकार रहित होता है और भय मुक्त रहता है। लक्ष्मी की कृपा होती है।
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दो मुखी रुद्राक्ष
मुख्य ग्रह चन्द्र हैं यह शिव और शक्ति का प्रतीक है मनुष्य इसे धारण कर फेफड़े, गुर्दे, वायु और आंख के रोग को बचाता है। यह माता-पिता के लिए भी शुभ होता है।
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तीन मुखी रुद्राक्ष
मुख्य ग्रह मंगल, भगवान शिव त्रिनेत्र हैं। भगवती महाकाली भी त्रिनेत्रा है। यह तीन मुखी रुद्राक्ष धारण करना साक्षात भगवान शिव और शक्ति को धारण करना है। यह अग्रि स्वरूप है इसका धारण करना रक्तविकार, रक्तचाप, कमजोरी, मासिक धर्म, अल्सर में लाभप्रद है। आज्ञा चक्र जागरण (थर्ड आई) में इसका विशेष महत्व है।
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चार मुखी रुद्राक्ष
चार मुखी रुद्राक्ष के मुख्य देवता ब्रह्मा हैं और यह बुधग्रह का प्रतिनिधित्व करता है इसे वैज्ञानिक, शोधकर्त्ता और चिकित्सक यदि पहनें तो उन्हें विशेष प्रगति का फल देता है। यह मानसिक रोग, बुखार, पक्षाघात, नाक की बीमारी में भी लाभप्रद है।
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पांच मुखी रुद्राक्ष
यह साक्षात भगवान शिव का प्रसाद एवं सुलभ भी है। यह सर्व रोग हरण करता है। मधुमेह, ब्लडप्रैशर, नाक, कान, गुर्दा की बीमारी में धारण करना लाभप्रद है। यह बृहस्पति ग्रह का प्रतिनिधित्व करता है।
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छ: मुखी रुद्राक्ष
शिवजी के पुत्र कार्तिकेय का प्रतिनिधित्व करता है। इस पर शुक्रग्रह सत्तारूढ़ है। शरीर के समस्त विकारों को दूर करता है, उत्तम सोच-विचार को जन्म देता है, राजदरबार में सम्मान विजय प्राप्त कराता है।
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सात मुखी रुद्राक्ष
इस पर शनिग्रह की सत्तारूढ़ता है। यह भगवती महालक्ष्मी, सप्त ऋषियों का प्रतिनिधित्व करता है। लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है, हड्डी के रोग दूर करता है, यह मस्तिष्क से संबंधित रोगों को भी रोकता है।
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आठ मुखी रुद्राक्ष
भैरव का स्वरूप माना जाता है, इसे धारण करने वाला व्यक्ति विजय प्राप्त करता है। गणेश जी की कृपा रहती है। त्वचा रोग, नेत्र रोग से छुटकारा मिलता है, प्रेत बाधा का भय नहीं रहता। इस पर राहू ग्रह सत्तारूढ़ है।
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नौ मुखी रुद्राक्ष
नवग्रहों के उत्पात से रक्षा करता है। नौ देवियों का प्रतीक है। दरिद्रता नाशक होता है। लगभग सभी रोगों से मुक्ति का मार्ग देता है।
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दस मुखी रुद्राक्ष
भगवान विष्णु का प्रतीक स्वरूप है। इसे धारण करने से परम पवित्र विचार बनता है। अन्याय करने का मन नहीं होता। सन्मार्ग पर चलने का ही योग बनता है। कोई अन्याय नहीं कर सकता, उदर और नेत्र का रोग दूर करता है।
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ग्यारह मुखी रुद्राक्ष
रुद्र के ग्यारहवें स्वरूप के प्रतीक, इस रुद्राक्ष को धारण करना परम शुभकारी है। इसके प्रभाव से धर्म का मार्ग मिलता है। धार्मिक लोगों का संग मिलता है। तीर्थयात्रा कराता है। ईश्वर की कृपा का मार्ग बनता है।
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बारह मुखी रुद्राक्ष
बारह ज्योतिर्लिंगों का प्रतिनिधित्व करता है। शिव की कृपा से ज्ञानचक्षु खुलता है, नेत्र रोग दूर करता है। ब्रेन से संबंधित कष्ट का निवारण होता है।
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तेरह मुखी रुद्राक्ष
इन्द्र का प्रतिनिधित्व करते हुए मानव को सांसारिक सुख देता है, दरिद्रता का विनाश करता है, हड्डी, जोड़ दर्द, दांत के रोग से बचाता है।
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चौदह मुखी रुद्राक्ष
भगवान शंकर का प्रतीक है। शनि के प्रकोप को दूर करता है, त्वचा रोग, बाल के रोग, उदर कष्ट को दूर करता है। शिव भक्त बनने का मार्ग प्रशस्त करता है।
रुद्राक्ष को विधान से अभिमंत्रित किया जाता है, फिर उसका उपयोग किया जाता है। रुद्राक्ष को अभिमंत्रित करने से वह अपार गुणशाली होता है।
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अभिमंत्रित रुद्राक्ष से मानव शरीर का प्राण तत्व अथवा विद्युत शक्ति नियमित होती है। भूतबाधा, प्रेतबाधा, ग्रहबाधा, मानसिक रोग के अतिरिक्त हर प्रकार के शारीरिक कष्ट का निवारण होता है। केंद्रीय तंत्रिका तंत्र को सशक्त करता है, जिससे रक्त चाप का नियंत्रण होता है।
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रोगनाशक उपाय रुद्राक्ष से किए जाते हैं, तनावपूर्ण जीवन शैली में ब्लडप्रैशर के साथ ब्रेन हैमरेज, लकवा, मधुमेह जैसे भयानक रोगों की भीड़ लगी है। यदि इस आध्यात्मिक उपचार की ओर ध्यान दें तो शरीर को रोगमुक्त कर सकते हैं।

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संत तुकाराम


संत तुकाराम

 

K.L. Lakkad

हमारे यहाँ तीर्थ यात्रा का बहुत ही महत्त्व है। पहले के समय यात्रा में जाना बहुत कठिन था। पैदल या तो बैल गाड़ी में यात्रा की जाती थी। थोड़े थोड़े अंतर पे रुकना होता था। विविध प्रकार के लोगो से मिलना होता था, समाज का दर्शन होता था। विविध बोली और विविध रीति-रीवाज से परिचय होता था। कंई कठिनाईओ से गुजरना पड़ता, कंई अनुभव भी प्राप्त होते थे।

एकबार तीर्थ यात्रा पे जानेवाले लोगो का संघ संत तुकाराम जी के पास जाकर उनके साथ चलनेकी प्रार्थना की। तुकारामजी ने अपनी असमर्थता बताई। उन्होंने तीर्थयात्रियो को एक कड़वा कद्दू देते हुए कहा : “मै तो आप लोगो के साथ आ नहीं सकता लेकिन आप इस कद्दू को साथ ले जाईए और जहाँ – जहाँ भी स्नान करे, इसे भी पवित्र जल में स्नान करा लाये।”

लोगो ने उनके गूढार्थ पे गौर किये बिना ही वह कद्दू ले लिया और जहाँ – जहाँ गए, स्नान किया वहाँ – वहाँ स्नान करवाया; मंदिर में जाकर दर्शन किया तो उसे भी दर्शन करवाया। ऐसे यात्रा पूरी होते सब वापस आए और उन लोगो ने वह कद्दू संतजी को दिया। तुकारामजी ने सभी यात्रिओ को प्रीतिभोज पर आमंत्रित किया। तीर्थयात्रियो को विविध पकवान परोसे गए। तीर्थ में घूमकर आये हुए कद्दूकी सब्जी विशेष रूपसे बनवायी गयी थी। सभी यात्रिओ ने खाना शुरू किया और सबने कहा कि “यह सब्जी कड़वी है।” तुकारामजी ने आश्चर्य बताते कहा कि “यह तो उसी कद्दू से बनी है, जो तीर्थ स्नान कर आया है। बेशक यह तीर्थाटन के पूर्व कड़वा था, मगर तीर्थ दर्शन तथा स्नान के बाद भी इसी में कड़वाहट है !”

यह सुन सभी यात्रिओ को बोध हो गया कि ‘हमने तीर्थाटन किया है लेकिन अपने मन को एवं स्वभाव को सुधारा नहीं तो तीर्थयात्रा का अधिक मूल्य नहीं है। हम भी एक कड़वे कद्दू जैसे कड़वे रहकर वापस आये है।’

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नोवाखाली दंगा


#काला_पन्ना
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वैसे तो भारत ने एक से एक नाम और तारीखे अपने अंदर समेट रखी है लेकिन एक तारीख और नाम है, जिसको किसी भी भारतीय को न भूलना है और न ही भूलने देना चाहिए।

10 अक्टूबर 1946 में हुए #नोवाखाली_दंगा वो घटना है जिसने भविष्य में पाकिस्तान और बांग्लादेश में होने वाली घटनाओ को बता दिया था और यह भी समझा दिया था की गांधी जी का गांधीवाद एक ऐसी नपुंसक सोंच है जो भारत और हिंदुओं को गर्त में ले जायगी।

मैं ज्यादा नोवाखाली पर नही लिखूंगा क्योंकि मेरी लेखनी रक्तमय हो जायेगी। आप गूगल करले और विस्तार से पढ़ लीजिये।

10 अक्टूबर 46 को नोवाखाली में मुस्लिमो के हजूम द्वारा हफ़्तों तक हिंदुओं को काटा और लूटा गया था। हिन्दू स्त्रियों का बलात्कार किया गया और जबरन धर्मान्तरण कराया गया था। हिंदुओं पर जजिया टैक्स लगाया गया था और मुस्लिम लीग को रुपये देने पड़े थे।

इस दंगे में कितने हिन्दू मारे गए उसकी असली संख्या तो कभी भी सामने नही आयी लेकिन विभिन्न श्रोतो से मिली सूचना के आधार पर यह संख्या 10000 तक बताई जाती है।

इस एकतरफा हिंदुओ के संहार से ब्रिटिश सरकार हिल गयी थी और उसने उस वक्त के बंगाल के मुख्यमंत्री सुहरावर्दी की मदद से इस दंगे की रिपोर्ट दबा दी थी। हिंदुओं की कतार सुनकर, गांधी जी भी अपनी गांधी वादिता को अजमाने वहां गये थे और लगभग 4 महीने वो नोवाखाली में रहे थे।

इन 4 महीने में गांधी जी जैसे गये थे वैसे ही लौट आये थे। इन पुरे 4 महीनो में एक भी हिन्दू परिवार को वापस नोवाखाली में पुनर्स्थापित नही कर पाये थे। जबरन बनाये गए मुस्लिमो में से एक को भी शरण नही दे पाये और न ही फिर से हिन्दू बनवा पाये थे। परिस्थिति से समझौता कर लेने की बस गाँधीवादी ज्ञान दे आये थे।

नोवाखाली का सच अंग्रेजो ने छुपाया था और मुस्लिम लीग ने छुपाया था। स्वतंत्रता के बाद कांग्रेस ने और वामपंथियो ने और सेकुलरो ने छुपाया। चन्द पन्नों में यह बात दबा दी गयी कि जब दंगे नोवाखाली में शांत हुए तो 100% हिन्दू मुस्लिम बना दिया गया था।

यह बड़ा हास्यपद है कि लोग अभी भी पूछते है की पाकिस्तान और बांग्लादेश के हिन्दू कहा गये?

जिन्नहा के भरोसे पर रुक गये हिन्दुओ का वहीं होना था जो नोवाखाली में हुआ था। गांधीवाद के समझौते वाली सीख ने उन्हें नपुंसक बना दिया था।

हर घटना जो बुरी होती है उससे भागना नही चाहिये। वो हमे भविष्य के लिये सीख देती है और वास्तिविकता से हमारा मुँह चुराना बन्द करती है।

#नोवाखाली_दंगा हमारी गांधीवाद की लाश है।

गांधी मेरे लिये सड़ी लाश है।

अंतिम सत्य यही है की कृष्ण का निर्मोही होना ही हमे शांति देगा। #cp पुस्कर जी

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जैसी सोच वैसा जवाब – Dinesh Kadel


जैसी सोच वैसा जवाब

एक गांव के नजदीक एक साधु ने झोपड़ी बना रखी थी। धूप और थकान से व्याकुल राहगीर जब दो क्षण के लिए वहां आराम करने के लिए रुकते तो वह उनको पानी पिलाते, छाया में बैठाते और उनका हालचाल पूछते। बातों-बातों में चर्चा छिड़ती कि आगे के गांव के लोग कैसे हैं, उनका स्वभाव कैसा है तो साधु उनके सवाल के जवाब में उनसे ही पूछते कि वे जिस गांव से आ रहे हैं, वहां के लोग अच्छे हैं या बुरे?
कुछ लोग कहते कि वे जिस गांव से आ रहे हैं वहां के लोग बहुत भले हैं। यह सुनकर साधु उनसे कहते कि आगे वाले गांव के लोग भी उतने ही अच्छे हैं। वे उनका आदर सत्कार करेंगे, लेकिन कुछ लोग पिछले गांव के बारे में कहते कि वहां के लोग बहुत दुष्ट हैं और वे कभी लौटकर नहीं जाएंगे। ऐसे लोगों को साधु कहते कि आगे वाले गांव में भी बहुत दुष्ट लोग रहते हैं, वे वहां न जाएं। एक दिन पास के गांव का आदमी किसी काम से दो दिन उस झोपड़ी में रहा। जब उसने साधु के दो तरह के जवाबों को सुना तो उसे आश्चर्य हुआ।
उसने उनसे पूछा – बाबा, गांव के बारे में आप दो तरह के जवाब क्यों दे रहे हैं? आप तो उन्हें अच्छा-बुरा दोनों बता रहे हैं। साधु ने कहा- मैं जवाब देता नहीं हूं, जवाब लेता हूं। राहगीर असल में अपने पिछले गांव के लोगों की प्रकृति के बारे में न बताकर स्वयं अपनी प्रकृति को ही बता रहे होते हैं। लोगों की सोच जैसी होती है, उन्हें दूसरे लोग भी वैसे ही दिखते हैं।

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बता मेरे यार सुदामा रे,


बता मेरे यार सुदामा रे,
भाई घणे दीना में आया।।

बालक था रे जब आया करता,
रोज खेल के जाया करता,
हुई के तकरार सुदामा रे,
भाई घणे दीना में आया,
बता मेरे यार सुदामा रे,
भाई घणे दीना में आया।।

म्हणे सुणा कुटुंब कहाणी,
क्यों कर पड़ गई ठोकर खाणी,
रे म्हणे सुणा कुटुंब कहाणी,
क्यों कर पड़ गई ठोकर खाणी,
टोटे की मार सुदामा रे,
भाई घणे दीना में आया,
बता मेरे यार सूदामा रे,
भाई घणे दीना में आया।।

सब बच्चो का हाल सुणा दे,
मिश्राणी की बात बता दे,
सब बच्चो का हाल सुणा दे,
मिश्राणी की बात बता दे,
रे क्यों गया हार सुदामा रे,
भाई घणे दीना में आया,
बता मेरे यार सूदामा रे,
भाई घणे दीना में आया।।

चहिये थारे तने पहलेम आणा,
इतना दुःख नही पड़ता उठाणा,
चहिये थारे तने पहलेम आणा,
इतना दुःख नही पड़ता ठाणा,
क्यों भुला प्यार सुदामा रे,
भाई घणे दीना में आया,
बता मेरे यार सूदामा रे,
भाई घणे दीना में आया।।

इब भी आगया ठीक बखत पे,
आजा बेठ जा मेरे तखत पे,
ओ जिगरी यार सुदामा रे,
भाई घणे दीना में आया,
बता मेरे यार सुदामा रे,
भाई घणे दीना में आया।।

आजा भगत छाती के ल्यालु,
इब बता तने कड़े बिठालु,
करूँ साहूकार सुदामा रे,
भाई घणे दीना में आया,
बता मेरे यार सुदामा रे,
भाई घणे दीना में आया।।

Singer : Vidhi
Chorus : Muskan, Isha, Rinku, Manisha,
Music : Somesh Jangda