Posted in हिन्दू पतन

​एक ऐसा सच जो आपको आज तक नहीं बताया गया ?


एक ऐसा सच जो आपको आज तक नहीं बताया गया ???? 
भारत में 3 लाख मस्जिदें हैं।
जो अन्य किसी देश में भी नहीं है ।
 वाशिंगटन में 24 चर्च हैं 
लन्दन में 71 चर्च
 और इटली के मिलान शहर में 68 चर्च हैं।
 जबकि अकेले दिल्ली में 271 चर्च हैं।
लेकिन हिन्दू फिर भी सांप्रदायिक है ? 
किसी सेकुलर के पास इसका जवाब ??? 

 मैंने ISIS का विरोध करते किसी मुस्लिम को नहीं देखा है।
पर RSS का विरोध करते हुए लाखो हिन्दू देखे है।
मैंने किसी मुस्लिम को होली दीवाली की पार्टी देते नहीं देखा है पर हिन्दुओ को इफ्तार पार्टी देते देखा है।
मैंने कश्मीर में भारत के झंडे जलते देखे है। 
पर कभी पाकिस्तान का झंडा जलाते हुए मुसलमान नहीं देखा है। 
मैंने हिन्दुओ को टोपी पहने मजारो पर जाते देखा है।
पर किसी मुस्लिम को टिका लगाते मंदिर जाते नहीं देखा है।
मैंने मिडिया को विदेशो के गुण गाते देखा है। 
पर भारत के संस्कार के प्रचार करते नहीं देखा है। 

कुछ तो इसे शेयर भी नहीं करेंगे।

करबद्ध निवेदन करता हूँ की कृपया अधिक से अधिक शेयर करे।

मैनें आज तक 
राम बूट हाउस
लक्षमण लेदर स्टोर्स
माँ वैष्णो लस्सी भंडार
शंकर छाप तंबाकू, 
बजरंग पान भंडार
गणेश छाप बीडी, 
लक्ष्मी छाप पटाखे 
कृष्णा  बार  ऐंड  रेस्टारेंट 
जय माँ अम्बे होटल ( चाय नाश्ता )
इस तरह के प्रोडक्ट और दुकाने आपको हर जगह पर दिखाई देंगी

 

लेकिन, 

आज तक मेनें
 अल्लाह छाप गुटका, 
खुदा छाप बीडी 
ईसा मसीह  छाप तंबाकू बिकते नहीं देखा। 
मुसलमान  और  ईसाई  से 
हम हिन्दू 
यह सीखे की अपने धर्म का
 सम्मान कैसे किया जाता है।

अपने भगवान् और उनके प्रतिक चिन्हों को
 कचरे में
और रास्तो पर ना फेंके।
अपने धर्म का सन्मान करे।
संभव हो तो ऐसी चिन्हों वाली वस्तुए कतई ख़रीदे ही नहीं।
कंपनिया अपने आप सुधार में आ जायेगी।

👏कम से कम 1 लोगों को जरूर भेजे👏 ।

जनहित में जारी   ✊  🇮🇳
 वन्देमातरम…………जय हिन्द  जय भारत

Posted in संस्कृत साहित्य

वर्ण व्यवस्था


#वर्ण व्यवस्था”
कोई मुझे बताये अगर सनातन वर्णव्यवस्था गलत है तो आज के तथाकथित अति बुद्धिजीवियों द्वारा बनाई गई आधुनिक व्यवस्था में प्रथम श्रेणी से लेकर चतुर्थ श्रेणी तक कर्मचारियों को क्यों विभक्त किया गया है???

अगर आप सनातनधार्मियों को शूद्रों के शोषण का जिम्मेदार मानते हैं तो आप अपने कार्यालय के एक चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के शोषक हैं..,

क्योंकि आप उसके साथ प्रथम श्रेणी कर्मचारी अथवा बॉस के जैसा व्यवहार नहीं करते..,,

उससे टॉयलेट साफ़ करवाते हैं /खाने की मेज साफ़ करवाते हैं /झाड़ू पोंछा लगवाते हैं/ गेट खुलवाते हैं /जी हुजूरी /सलामी करवाते हैं../

ड्राइविंग करवाते हैं

खुद अपने बराबर खड़ा होने लायक भी नहीं समझते..

“क्या तब आपको वो उसी परमपिता की संतान और एक जैसे खून वाला मनुष्य नहीं लगता,..तब तुम्हारी मानव मानव की बराबरी वाली थ्योरी कहाँ चली जाती है

आपके अनुसार केवल मनुस्मृति और ब्राह्मणों ने ही शूद्रों को पददलित और शोषित किया है उनपे जुल्म किये हैं.??

या फिर ये सोच तुम्हारे दोगलेपन को प्रदर्शित करती है..?

आज जो हर जगह किसी भी चीज जीव जंतु पेड़ पौधे मानव आदि को कई श्रेणियों में विभक्त कर के उनका वर्गीकरण किया जाता है वो क्या है..??

दीमकों में चार वर्ण..

चींटियों में चार वर्ण ..

मधुमक्खियों में चार वर्ण..

(रानी,सैनिक,श्रमिक,नर,)

क्या ये भी ब्राह्मणों ने बनाये हैं…??

या ये मानते हो की प्रकृति स्वयं गुण धर्मों के आधार पर वर्गीकरण कर देती है ,..

जैसे आज किसी भी सरकार /ससंस्थान /कार्यालय के कामकाज को सुचारू रूप से चलाने हेतु कम से कम चार श्रेणी के कर्मचारियों की आवश्यकता होती है

ठीक उसी प्रकार हमारे सनातन धर्म और समाज को सुचारू रूप से चलाने के लिये चार वर्णों की रचना की गयी ..

ध्यान रहे वर्णों। की न क़ी जातियों की,..

इसलिए जाति वर्ण आदि के मूल में हमारा हित ही छुपा था

विकृति तो अब आई है

याद रखें आज हम जो भी व्यवसाय रोजगार करते हैं उसके लिए हमे अपनी जिंदगी का एक चौथाई भाग उसकी पढ़ाई या डिग्री लेने में ही निकल जाता है..

पहले आपको बचपन से ही अन्य कार्यों के साथ पैतृक व्यवसाय जैसे ..बर्तन बनाना /जूते बनाना/ कपडे सिलना / दवाएं बनाना (वैद्यकीय)इत्यादि ज्ञान और कौशल घर पे ही एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को मुफ़्त में प्रदान किया जाता था ,..जिससे धन और समय व्यर्थ नहीं जाता था ,और बड़े होकर रोजगार के लिए दर दर की ठोकरें नहीं खानी पड़ती थी.. सब के हाथ में अपना पैतृक व्यवसाय था कोई भूखों नहीं मरता था.. सब सुखी और संपन्न थे

इसका उदाहरण आपको आजसे लगभग 25 वर्ष पहले भी देखने को मिल सकता था

मेरे गाँव के नाई / लुहार / कुंभार / या धोबी खेती बिलकुल नहीं करते थे ..

ये केवल अपना पैतृक व्यवसाय करते थे और वर्ष में केवल दो बार अपना मेहनताना जिसे हमारे अवध में

“खरिहक” अथवा खलिहान कहा जाता था लेते थे

अगर 500 घरों का गाँव है और एक एक घर से इन्हें

साल में 2 बार लगभग दो दो “मन” अर्थात 32 किलो अनाज मिलता था

जो लगभग 32 ×500= 16000 kg(160 कुंतल) अनाज

प्रति 6 महीनों में प्राप्त होता था,..

जो उस समय की एक बड़े किसान की उपज के समकक्ष था ,..

लोगों को लगभग एक क्विंटल अनाज में सालभर सारी सुविधाएँ मिलती थी और प्रजा को भरपूर अन्न वस्त्र

अब बताइये इस व्यवस्था में गड़बड़ी कहाँ थी..??

हमे वर्णव्यवस्था को सुधारने का प्रयत्न करना चाहिए न की उसे पूरी तरह समाप्त…

हमे गंगा की सफाई ही करनी चाहिए न की उसे ख़त्म करना,..
#copied
वर्णव्यवस्था के ऊपर इस बेहतरीन पोस्ट में यह और जोड़ना ज़रूरी है कि जातिप्रथा का विरोध करने वाले कहते हैं कि इस की वजह से किसी व्यक्ति की सामाजिक स्थिति उसके जन्म के आधार पर तय होती है । अर्थात अगर वह ब्राह्मण के घर पैदा हुआ है तो सर्वोच्च सम्मान का अधिकारी होगा मगर यदि वह शूद्र के घर पैदा हुआ तो सामाजिक उपेक्षा का ।
असल में सामाजिक वर्गीकरण कर्म के आधार पर हुआ परन्तु उस वर्ण व्यवस्था का जन्माधारित प्रणाली में बदलने की वजह परिवार का समाज की इकाई होना था । क्योंकि जिस जाति के परिवार में बच्चा पैदा होता है वह उसी के परिवेश में ढल जाता है । जैसे सुनार के घर में पैदा होने वाला बालक आभूषण गढ़ने की कला पारवारिक परिस्थितियों के कारण सीख जाएगा और उसी व्यवसाय को अपना लेगा । पीढ़ी दर पीढ़ी इसी तरह सुनारों के परिवार बनते गए और एक जाति का जन्म हो गया जो जन्म के मुख्य कारण के साथ साथ पारवारिक परिस्थित के सहायक कारण से सुदृढ़ होती गईं । इसी बात को सोनाक्षी सिन्हा ने बहुत अच्छे तरीके से समझाया है (देखें फोटो) ।
दूसरी महत्वपूर्ण बात है कि भारतीय जातिप्रथा में लाख बुराइयाँ हों पर समाज में इसके कारण  कभी बेरोज़गारी की समस्या नहीं रही । विभिन्न जातियों के जो काम नियत थे वे एक तरह के कुटीर उद्योग ही तो थे ।
यहाँ आपको यह बताना ज़रूरी है कि अंग्रेज़ों के प्रभाव में आकर कुछ लोग बहक गए और हिन्दू समाज में श्रम के आधार पर आधारित सामाजिक संरचना की मनमानी एवं ऊलजुलूल व्याख्या करने लगे । अंग्रेज़ों के पिठ्ठू एक व्यक्ति ने सम्मान के नाम पर इन कामों को हीन घोषित कर दिया और कालान्तर में उसके समाज के लोगों ने इन कुटीर उद्योगों का सर्वनाश कर दिया ।

इसका नतीजा यह निकला कि बढ़ई, चर्मकार, लुहार, तेली, कुम्हार इत्यादि अनेक जाति आधारित उद्योगों में काम करने वाला व्यक्ति अपने काम को निकृष्ट समझने लगा । आज सभी बाबू या अफ़सर बनने के चक्कर में हैं । भूखों मर जाऐंगे पर छोटा मोटा धंधा नहीं करेंगे । बस सरकारी नौकरी लग जाए चाहे आरक्षण से या पैसे दे कर । सब ब्राह्मण बनना चाहते हैं ।  अरे जरा इन से पूछो कि रिज़र्वेशन के वावजूद क्या इनकी जाति के सभी बच्चे इंजीनियर, डॉक्टर, अफ़सर बन जाएंगे ?
हमें ध्यान रखना चाहिए कि समाज में नाई, धोबी, मोची, बढ़ई सभी की जरूरत रहेगी और हमेशा रहेगी । हिन्दू बाबू बनने के चक्कर में ये काम नहीं करेंगे तो कोई और करेगा । ये बाबूगिरी के चक्कर में अपने कुटीर उद्योगों को छोड़ कर जो गेप पैदा कर रहे हैं उसको मुस्लिम लोग बख़ूबी भर रहे हैं । इन्हें पता नहीं कि जिन कामों को जाति के नाम पर ये हेय समझते हैं उनका टर्नओवर अरबों रुपए है जैसे मरी उठाने का धंधा । अब यह धंधा मुसलमानों के हाथों में है । यही क्या नाई, कारपेन्टरी, राज-मिस्त्री, पेन्टर, वेल्डर, मोटर मेकेनिक वग़ैरह अरबों के कारोबार मुस्लिम कारीगरों के हाथ में हैं । वे लोग बाबू बनने की दौड़ में नहीं हैं और उनमें बेरोज़गारी भी नहीं है।
सोचिए, अगले तीस साल में बेरोज़गारी की समस्या से मुक्त और अपनी दूनी आबादी के साथ साथ आपस में एकता रखने वाले समृद्ध मुस्लिम समाज के मुक़ाबले आरक्षण के पीछे भाग कर बाबूगिरी करने को लालायित बेरोज़गार, गरीब और बिखरे हुए हिन्दू समाज की राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक स्थित कितनी दयनीय होगी ।
अभी भी वक़्त है, हिन्दुओ । चेत जाओ । छोटे कामधंधों को और ऐसे कामगारों को इज़्ज़त देना सीखो । सब बाबू नहीं बन सकते, सब पढ़ लिख नहीं सकते, रिज़र्वेशन के वावजूद भी ।  यदि ऐसा होता तो सारी सुविधा होते हुए भी लालू की औलाद क्यों पढ़ नहीं सकी ।
हिन्दुओ, अपनी जाति और अपने पैतृक कला-कौशल्य पर गर्व करो । बच्चों की क़ाबलियत पहचानो, यदि पढ़ने में ढीले हैं तो पैतृक कामधंधों में निपुण करो । बेरोज़गारी से बचो । ध्यान रखो, कोई काम नीचा नहीं होता ।
चलते चलते एक बात और, अगर अगर पुरानी व्यवस्था इसलिए खराब थी क्योंकि वह जन्म आधारित थी तो जो नई जन्म आधारित आरक्षण व्यवस्था ठीक कैसे है ?
इसलिए आज जरूरत है कि जाति आधारित आरक्षण व्यवस्था को समाप्त किया जाय और सभी का संरक्षण किया जाए । सभी बच्चों को मुफ्त गुणवत्ता वाली शिक्षा दी जाए और जो बच्चे पढ़ने में रुचि नहीं रखते हों उन्हें कुटीर उद्योग-धंधों को स्थापित करने की ट्रेनिंग दी जाए और आर्थिक मदद से इन्हें जीवन में सफलतापूर्वक स्थापित किया जाए ।

Posted in खान्ग्रेस

मोदी ने अपनी पत्नी को छोड़ दिया


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टीवी चैनेलो पर सबसे ज्यादा कांग्रेसी कहते है की 

मोदी ने अपनी पत्नी को छोड़ दिया … 
अब इन कांग्रेसियो की 

भयावह सच्चाई जानिये … 
नेहरु की पत्नी कमला नेहरु को टीबी हो गया था .. 
उस जमाने में टीबी का दहशत ठीक ऐसा ही था 

जैसा आज एड्स का है .. 

क्योकि तब टीबी का इलाज नही था और 

इन्सान तिल तिल तडप तडपकर पूरी तरह 

गलकर हड्डी का ढांचा बनकर मरता था … और 

कोई भी टीबी मरीज में पास भी नही जाता था 

क्योकि टीबी सांस से फैलती थी … लोग पहाड़ी इलाके में बने टीबी सेनिटोरियम में 

भर्ती कर देते थे … 
नेहरु में अपनी पत्नी को युगोस्लाविया 

[आज चेक रिपब्लिक] के प्राग शहर में दुसरे इन्सान के साथ सेनिटोरियम में भर्ती कर दिया .. 
कमला नेहरु पुरे दस सालो तक अकेले 

टीबी सेनिटोरियम में पल पल मौत का इंतजार करती रही .. लेकिन नेहरु दिल्ली में एडविना बेंटन के साथ इश्क करता था .. 

मजे की बात ये की इस दौरान नेहरु कई बार ब्रिटेन गया लेकिन एक बार भी वो प्राग जाकर अपनी धर्मपत्नी का हालचाल नही लिया .. 
नेताजी सुभाषचन्द्र बोस को जब पता चला 

तब वो प्राग गये .. और डाक्टरों से और अच्छे इलाज के बारे में बातचीत की .. 

प्राग के डाक्टरों ने बोला की स्विट्जरलैंड के 

बुसान शहर में एक आधुनिक टीबी होस्पिटल है …..

जहाँ इनका अच्छा इलाज हो सकता है .. तुरंत ही नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने  उस जमाने में 70 हजार रूपये इकट्ठे किये और उन्हें विमान से स्विटजरलैंड के बुसान शहर में होस्पिटल में भर्ती किये … 
लेकिन कमला नेहरु असल में मन से बेहद टूट चुकी थी .. 
उन्हें इस बात का दुःख था की उनका पति उनके पास  पिछले दस सालो से हालचाल लेने तक नही आया और गैर लोग उनकी देखभाल कर रहे है …..
दो महीनों तक बुसान में भर्ती रहने के बाद  

28 February 1936 को बुसान में ही कमला नेहरु की मौत हो गयी … 

उनके मौत के दस दिन पहले ही नेताजी सुभाषचन्द्र ने नेहरु को तार भेजकर तुरंत बुसान आने को कहा था .. 

लेकिन नेहरु नही आया … फिर नेहरु को उसकी पत्नी के मौत का तार भेजा गया .. 

फिर भी नेहरु अपनी पत्नी के अंतिम संस्कार में भी नही आया .
अंत में स्विटजरलैंड के बुसान शहर में ही 

नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने नेहरु की पत्नी 

कमला नेहरु का अंतिम संस्कार करवाया …
कांग्रेसियों … 

असल में वामपंथी इतिहासकारों ने 

इस खानदान की गंदी सच्चाई ही 

इतिहास की किताबो से गायब कर दी …….😡😡😡

Posted in भारतीय उत्सव - Bhartiya Utsav

मां की कृपा पाने के लिए ऐसे करें कन्या-पूजन : Prasad Davrani


मां की कृपा पाने के लिए ऐसे करें कन्या-पूजन :
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नवरात्रि यानी सौंदर्य के मुखरित होने का उत्सव। नवरात्रि यानी उमंग से खिल-खिल जाने का पर्व। कहते हैं, कि नौ दिनों तक दैवीय शक्ति मनुष्य लोक के भ्रमण के लिए आती है। इन दिनों की गई उपासना-आराधना से देवी मां भक्तों पर प्रसन्न होती है। लेकिन पुराणों में वर्णित है कि मात्र श्लोक-मंत्र-उपवास और हवनसे देवी मां को प्रसन्न नहीं किया जा सकता।
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इन दिनों 2 से लेकर 5 वर्ष तक की नन्ही कन्याओं के पूजन का विशेष महत्व है। नौ दिनों तक इन नन्ही कन्याओं को सुंदर उपहार देकर इनका दिल जीता जा सकता है। इनके माध्यम से नवदुर्गा को भी प्रसन्न किया जा सकता है। पुराणों की दृष्टि से नौ दिनों तक कन्याओं को एक विशेष प्रकार की भेंट देना शुभ होता है।
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1. प्रथम दिन इन्हें फूल की भेंट देना शुभ होता है। साथ में कोई एक श्रृंगार सामग्री अवश्य दें। अगर आप मां सरस्वती को प्रसन्न करना चाहते है तो श्वेत फूल अर्पित करें। अगर आपके दिल में कोई भौतिक कामना है तो लाल पुष्प देकर इन्हें खुश करें। (उदाहरण के लिए : गुलाब, चंपा, मोगरा, गेंदा, गुड़हल)
2. दूसरे दिन फल देकर इनका श्रद्धा के साथ पूजन करें। इसके बाद कन्या को फल भेंट करें। यह फल भी सांसारिक कामना के लिए लाल अथवा पीला और वैराग्य की प्राप्ति के लिए केला या श्रीफल हो सकता है।
यह भेंट कन्या को कुमकुम का तिलक लगाने के बाद दें और याद रखें कि देवी कन्याओं को मीठे फल ही दें, फल खट्टे ना हो।
3. तीसरे दिन मिठाई का महत्व होता है। इस दिन अगर कन्या को हाथ की बनी खीर, हलवा या केशरिया चावल बना कर खिलाए जाएं तो देवी प्रसन्न होती है।
4. चौथे दिन इन्हें वस्त्र देने का महत्व है लेकिन सामर्थ्य अनुसार रूमाल या रंगबिरंगे रीबन भी दिए जा सकते हैं।
5. पांचवे दिन देवी से सौभाग्य और संतान प्राप्ति की मनोकामना की जाती है। अत: कन्याओं को पांच प्रकार की श्रृंगार सामग्री देना अत्यंत शुभ होता है।
इनमें बिंदिया, चूड़ी, मेहंदी, बालों के लिए क्लिप्स, सुगंधित साबुन, काजल, नेलपॉलिश, टैल्कम पावडर इत्यादि हो सकते हैं।
6. छठे दिन बच्चियों को खेल-सामग्री देना चाहिए। आजकल बाजार में खेल सामग्री की अनेक वैरायटी उपलब्ध है। पहले यह रिवाज पांचे, रस्सी और छोटे-मोटे खिलौनों तक सीमित था। अब तो ढेर सारे विकल्प मौजूद है।
7. सातवां दिन मां सरस्वती के आह्वान का होता है। अत: इस दिन कन्याओं को शिक्षण सामग्री दी जानी चाहिए। आजकल स्टेशनरी बाजार में विभिन्न प्रकार के पेन, स्केच पेन, पेंसिल, कॉपी, ड्रॉईंग बुक्स, कंपास, वाटर बॉटल, कलर बॉक्स, लंच बॉक्स उपलब्ध है।
8. आठवां दिन नवरात्रि का सबसे पवित्र दिन माना जाता है। इस दिन अगर कन्या का अपने हाथों से श्रृंगार किया जाए तो देवी विशेष आशीर्वाद देती है। इस दिन कन्या के दूध से पैर पूजने चाहिए। पैरों पर अक्षत, फूल और कुंकुम लगाना चाहिए। इस दिन कन्या को भोजन कराना चाहिए और यथासामर्थ्य कोई भी भेंट देनी चाहिए। हर दिन कन्या-पूजन में दक्षिणा अवश्य दें।
9. नौवें दिन खीर, ग्वारफली और दूध में गूंथी पूरियां कन्या को खिलानी चाहिए। उसके पैरों में महावर और हाथों में मेहंदी लगाने से देवी पूजा संपूर्ण होती है।
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अगर आपने घर पर हवन का अयोजन किया है तो उसके नन्हे हाथों से उसमें समिधा अवश्य डलवाएं। उसे इलायची और पान का सेवन कराएं।
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इस परंपरा के पीछे मान्यता है कि देवी जब अपने लोक जाती है तो उसे घर की कन्या की तरह ही बिदा किया जाना चाहिए। अगर सामर्थ्य हो तो नौवें दिन लाल चुनर कन्याओं को भेंट में दें। उन्हें दुर्गा चालीसा की छोटी पुस्तकें भेंट करें। गरबा के डांडिए और चणिया-चोली दिए जा सकते हैं।
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इन सारी रीतियों के अनुसार पूजन करने से देवी प्रसन्न होकर वर्ष भर के लिए सुख, समृद्धि, यश, वैभव, कीर्ति और सौभाग्य का वरदान देती है।

Posted in ज्योतिष - Astrology

आदत बदलने से ही ग्रह भी आपकी कुंडली के ठीक होते है…।


1–आदत बदलने से ही ग्रह भी आपकी कुंडली के ठीक होते है…।
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2–मंदिर को साफ़ करते है तो बृहस्पति बहुत अच्छे फल देता है. ..!!
3–अपनी झूठी थाली या बर्तन उसी जगह पर छोड़ना -सफलता मे कमी..
झूठे बर्तन को उठाकर जगह पर रखते है या साफ़ कर लेते है तो चन्द्रमा , शनि ग्रह ठीक होते है.. ।
4–देर रात जागने से चन्द्रमा अच्छे फल नहीं देता है…!!
5– कोई भी बाहर से आये उसे स्वच्छ पानी जरुर पिलाए राहू ग्रह ठीक होता है ,राहू का बुरा प्रभाव नही पङता है…!!
6–रसोई को गन्दा रखते हैं तो आपको मंगल ग्रह से दिक्क्तें आएँगी। रसोई हमेशा साफ़ सुथरी रखेंगै तो मंगल ग्रह ठीक होता ।
7–घर में सुबह उठकर पौधों को पानी दिया जाता है तो हम बुध,सूर्य,शुक्र और चन्द्रमा मजबूत करते हैं ।।
8–जो लोग पैर घसीट कर चलते है उन का राहु खराब होता है…!!
9–बाथरूम में कपडे इधर उधर फेंकते है , बाथरूम में पानी बिखराकर आ जाते है तो चन्द्रमा अच्छे फल नहीं देता है।
10–बाहर से आकर अपने चप्पल , जूते , मोज़े इधर उधर फेंक देते है ,उन्हें शत्रु परेशान करते है …!!
11–राहू और शनि ठीक फल नही देते है जब बिस्तर हमेशा फैला हुआ होगा , सलवटे होंगी ,चादर कही , तकिया कंही होता है. ..,,
12–चीख कर बोलेंने से शनि खराब खराब होता है…,,
13–बुजूर्गों के आशीर्वाद से घर में सुख समृद्धि बढती है तथा गुरू ग्रह अच्छा होता है।।
14–घर में बच्चे और वृद्ध खुश रहते है उस घर में लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है।
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आप ने जाना की खराब आदतों के कारण से आप अपने ग्रहों को खराब कर रहे है…।
अपने आप को बदलकर देखिए…,
और ग्रहों के खराब प्रभाव ठीक कीजिये

Posted in हास्यमेव जयते

कहानी थोड़ी लम्बी है…यात्रीगण ध्यान दे ।।।


कहानी थोड़ी लम्बी है…यात्रीगण ध्यान दे ।।।

लाइफ में २ बातें हमेशा याद रखना…..
१. हवा चलती है तो पत्ते हिलते हैं…
२.नहीं चलती तो नहीं हिलते…
बस यार थैंक्स मत बोलना…
जब तक नॉलेज है,देते रहेंगे……
साइंस कहती है,
पानी उबालने से कीटाणु मर जाते हैं….
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पर साइंस को ये नहीं पता कि कीटाणु के मरने के बाद उनकी डेड बॉडीज़ तो पानी में ही रह जाती हैं।
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स्टुपिड साइंस
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कसम से,बचपन से जीनियस हूं….
लेकिन कभी घमंड नहीं किया….
………
Cow & Cat both are sisters..
अब आप सोचेंगे कि कैसे…?
ज्यादा मत सोचो…..
मैं बताता हूं आपको,गाय माता होती है और बिल्ली मौसी….
बोला था न,बचपन से ही INTELLIGENT हूं लेकिन कभी घमंड नहीं किया…..
No claps Please….I don’t like publicity..
बस अब THANKS मत बोलना,
जब तक KNOWLEDGE है,देते रहेंगे….
४ सरदारों ने मिल के पेट्रोल पम्प खोला
१ भी ग्राहक नहीं आया…..क्यों….?
पेट्रोल पम्प पहली मंजिल पर था……
चल एक और…..
फिर चारों ने उसी मंजिल पर रेस्टोरेंट खोला
१भी ग्राहक नहीं…..क्यों…?
पेट्रोल पम्प का बोर्ड नहीं हटाया….
चल एक और
फिर चारों ने एक टैक्सी ली
१ भी सवारी नहीं….क्यों…?
२ सरदार आगे और २ पीछे बैठ के
सवारी ढूंढ रहे थे…..
चल एक और…..
टैक्सी खराब हो गयी…..
चारों ने खूब धक्का लगाया
टैक्सी वहीं की वहीं…क्यों….?
२आगे से और २ पीछे से धक्का दे रहे थे…..
चल एक और….
फिर चारों ने एक बच्चे को किडनैप किया
बच्चे को कहा,घर जा अपने बाप से ५ लाख ₹ लेके आ,वरना तुझे मार देंगे
बच्चा घर गया और उसके पापा ने पैसे दे भी दिये….क्यों….?
बच्चे का बाप भी सरदार था…..!
अब फोन मत फेंक देना…

Posted in भारत का गुप्त इतिहास- Bharat Ka rahasyamay Itihaas

वामपंथ का सच…


वामपंथ का सच…

“सत्ता बन्दूक की नली से निकलती है…” का घोषवाक्य मानने वाले वामपंथी भारत में अक्सर मानवाधिकार और बराबरी वगैरह के नारे देते हैं!

लेकिन पश्चिम बंगाल में इनका तीस वर्ष का शासनकाल गुंडागर्दी, हत्याओं और अपहरण के कारोबार का जीता-जागता सबूत है…!

वामपंथ का यही जमीनी कैडर अब तृणमूल काँग्रेस में शिफ्ट हो गया है…

दुनिया को भ्रम हो गया था कि वामपंथ की खदान से स्टालिन, माओ और पॉलपॉट जैसे नरपिशाचों का निकलना बंद हो गया है!
लेकिन फिर एक ऐसी घटना हुई जिससे यह साबित हो गया है कि जब तक यह वीभत्स विचारधारा जीवित है!

तब तक इसके गर्भ से दानव पैदा होते रहेंगे. वामपंथी भी विचित्र किस्म के प्राणी होते हैं!

विरोधियों का सर्वनाश और नेताओं को परलोक भेजने के अमानवीय कुकृत्य को वामपंथी अपनी विशिष्ट शब्दावली में “पार्टी की सफाई” कहते हैं!

अंग्रेजी में इसे पर्ज भी कहा जाता है जिसका मतलब होता है सफाई करना

अब जरा कार्ल मार्क्स के दत्तकपुत्रों द्वारा की जाने वाली “पार्टी की सफाई” की असलियत समझते हैं!

कम्युनिस्ट नार्थ कोरिया से खबर आई कि देश के रक्षा मंत्री योन योंग चोल को तोप के सामने खड़ा कर उड़ा दिया गया!

सरकार ने इस हत्या को प्योंगयोंग शहर स्थित एक मिलिट्री स्कूल के प्रांगण में सैकड़ों लोगों के सामने अंजाम दिया!

जिस तोप से उन्हें उड़ाया गया वह तोप एक एंटी-एयरक्राफ्ट गन थी!रक्षा मंत्री का कसूर बस इतना था कि नार्थ कोरिया के सुप्रीम लीडर किम जोंग युन के भाषण के दौरान उनकी आंख लग गई!

वो उंघते हुए पकड़े गए. सुप्रीम लीडर ने इसे देशद्रोह बताया और उन्हें मौत की सजा सुना दी. भारत का यह सौभाग्य है कि देश में कभी भी कम्युनिस्टों का राज नहीं रहा वर्ना संसद में उंघने वाले कई सासंद जीवित नहीं बचते!

नार्थ कोरिया में जब से किम जोंग युन गद्दी पर बैठा तब से लगातार सफाई कार्यक्रम चल रहा है!

अब तक 70 से ज्यादा वरिष्ठ अधिकारियों और सैकड़ों आम लोगों का सफाया किया जा चुका है. नार्थ कोरिया में सरकार के खिलाफ बोलने वाला कोई नहीं बचा है क्योंकि सरकार के खिलाफ सोचने वालों को ही साफ कर दिया जाता है!

वहां बाइबिल, कुरान या किसी अन्य धर्मग्रंथ के साथ पकड़े जाने पर भी मौत.. चोरी करने पर भी मौत.. यहां तक कि साउथ कोरिया की फिल्म या टीवी सीरियल की डीवीडी के साथ पकड़े जाने पर भी मौत की सजा मिलती है!

राजनीतिक विपक्ष तो नार्थ कोरिया में है ही नहीं, लेकिन पार्टी के अंदर चुनौती देने वालों को भी मोर्टार और तोप के सामने खड़ा कर मौत के घाट उतार दिया जाता है!

नार्थ कोरिया के सुप्रीम लीडर किम जोंग युन कुछ नया नहीं कर रहे हैं!
युन के पिता और दादा ने भी यही काम बड़ी निर्ममता के साथ किया था. नार्थ कोरिया के संविधान के मुताबिक यह एक सोशलिस्ट राज्य है!
संविधान में नार्थ कोरिया की विचारधारा “creative application of Marxism–Leninism” है!

मतलब यह कि यहां मार्क्सवाद-लेनिनवाद का सृजकात्मक प्रयोग हो रहा है!
नार्थ कोरिया की विचारधारा मूलरूप से कम्यूनिज्म थी लेकिन बदलते अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य में 1972 में कम्युनिज्म को बदलकर समाजवाद कर दिया गया!

1972 के बाद से यहां वर्कर्स पार्टी का शासन है… मजदूरों के नाम का ऐसा दुरुपयोग सिर्फ और सिर्फ मार्क्सवादी ही कर सकते हैं!

दरअसल, मार्क्सवाद-लेनिनवाद वैचारिक फर्जीवाड़े का एक ऐसा बेहुदा कॉकटेल है जिसमें सिर्फ और सिर्फ हिंसा होती है!

भारत में इस विचारधारा के सबसे बड़े अनुयायी नक्सली हैं और कुछ राजनीतिक दल हैं!

इनके अलावा हिंदुस्तान में ऐसे कई लोग हैं जो अज्ञानतावश इस कॉकटेल के नशे में झूमते रहते हैं!
पेंडुलम की तरह झूलते रहते हैं. ये वैचारिक कंगाल लोग कभी सामाजिक न्याय और संप्रदायिकता से लड़ने वाले लड़ाकू बन जाते हैं तो कभी प्रजातंत्र और नागरिक अधिकारों के लिए आंदोलन में शामिल हो जाते हैं तो कभी पर्यावरण को बचाने के लिए पदयात्रा शुरु कर देते हैं!
तो कभी मानवाधिकार के लिए आंदोलन करते नजर आते हैं!

दरअसल, इस विचारधारा की मौलिक समझ के बगैर, आधी अधूरी जानकारी और प्रोपागंडा के शिकार लोग साधारण सी बात को नहीं समझ पाते हैं कि 20वीं सदी में मार्क्सवाद-लेनिनवाद की विचारधारा पर चलने वाले सोशलिस्ट स्टेट ने जितना जनसंहार किया है उतने लोग तो किसी विश्वयुद्ध में भी नहीं मारे गए!

20वीं सदी में मार्क्सवादी-लेनिनवादी सोशलिस्ट स्टेट ने कुल 90 से 100 मिलियन लोगों की हत्या की!

सबसे ज्यादा 65 मिलियन चीन में, रूस में 20 मिलियन, कम्बोडिया में 2 मिलियन, नार्थ कोरिया में भी 2 मिलियन, इथोपिया में 1.7 मिलियन, अफगानिस्तान में 1.5 मिलियन, इस्टर्न यूरोप में 1 मिलियन, वियतनाम में 1 मिलियन, क्यूबा और लैटिन अमेरिका में करीब डेढ़ लाख लोगों का कम्युनिस्ट-सरकारों ने जनसंहार किया!

इसके अलावा, जहां कम्युनिस्टों की सरकारें नहीं थीं वहां दस हजार से ज्यादा लोग पार्टी की सफाई के नाम पर मार दिए गए!

वामपंथियों की सबसे बड़ी खासियत यह है कि उन्होंने न सिर्फ जनसंहार किया बल्कि उसका औचित्य बताकर खुद को दोषमुक्त भी साबित कर दिया!

यह बात भारत में नहीं बताई जाती है कि लेनिन दुनिया के पहले नेता थे जिन्होंने अपने ही नागरिकों पर सैन्य कार्रवाई की!

लेनिन के आदेश पर ही सेंट्रल एशिया के मुसलमानों का जनसंहार हुआ और हजारों मस्जिदों और इस्लामी संस्थानों को तबाह कर दिया गया!(यहां पर ठीक ही किया था)

वैसे सोवियत संघ, चीन और कम्बोडिया की कई कहानियां ऐसी हैं जिन्हें सुनकर दिल दहल जाता है. इनकी कहानियां ऐसी है कि जिसे सुनकर हिटलर को भी शर्म आ जाए!

वामपंथी विचारधारा के सृजकात्मक प्रयोग की वजह से कम्बोडिया में तो एक चौथाई जनसंख्या मौत के मुंह में समा गई!

दुख इस बात का है कि हिंदुस्तान में ये बातें स्कूलों और कॉलेजों में नहीं पढ़ाई जाती हैं!
वामपंथियों द्वारा दी गई दलीलों को किताब में पेश कर यह बता दिया जाता है कि वहां क्रांति हो रही थी!
वहां “क्लास-एनेमी”, “क्रांति के दुश्मनों” व “सर्वहारा के दुश्मनों” को मारा गया था!

यदि किसी को सच पर पर्दा डालना सीखना हो तो उसे भारत के वामपंथी लेखकों से सीखना चाहिए!

भगवान भला करे कि क्रांति का यह वीभत्स रोग भारत के जनमानस को नहीं लगा!

हाँ कुछ पथभ्रष्ट हो गए हैं लेकिन वे अपवाद ही है!

सच्चाई यह है कि जहां जहां राज्य की सत्ता वामपंथियों के हाथ आई वहां सिर्फ और सिर्फ खून की नदियां बही हैं!

चाहे जिस वामपंथी नेता का इतिहास पढो!

वामपंथियों के बारे में समझने वाली बात बस इतनी सी है कि ये विपक्ष में रहते हुए अधिकार, प्रजातंत्र और आजादी जैसी बड़ी बड़ी बातें करते हैं और आंदोलन करतें है वही सत्ता में आने के बाद सबसे बड़े दमनकारी साबित होते हैं. यही उनकी चाल, चरित्र और चेहरे की हकीकत है!

जय श्री राम

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जोधपुर में हुई थी धनुर्धारी अर्जुन और कृष्ण की बहन सुभद्रा की शादी


जोधपुर में हुई थी धनुर्धारी अर्जुन और कृष्ण की बहन सुभद्रा की शादी

जोधपुर ।

सूर्यनगरी का संबंध रामायण काल के रावण ओर मंदोदरी से तो है ही, इसका पौराणिक इतिहास महाभारत काल से भी जुड़ा हुआ है। जोधपुर जिले के लूणी तहसील के सर गांव में स्थित सुभद्रा माता मंदिर से कई कहानियां जुड़ी हुई हैं।

इस मंदिर के बारे में एेसा कहा जाता है कि यहां पर भगवान श्रीकृष्ण की बहन और पाण्डु पुत्र धनुर्धारी अर्जुन की पत्नी सुभद्रा ने कुछ समय बिताया था। यहीं पर दोनों की शादी हुई थी। कालांतर में इस स्थान पर सुभद्रा माता ने भाखर (पहाड़ी) में साक्षात दर्शन दिए थे, तब से अब तक सुभद्रा माता की पूजा अर्चना की जा रही है।

कलबी कुल के सुरो बापू भुंगर को दिए थे दर्शन

वर्तमान पुजारी भोपाजी भलाराम भुंगर व गांव के बुजुर्गो के अनुसार सर गांव में करीब 107 वर्ष पहले सन 1910 में कलबी कुल के सुरो बापू भुंगर को सुभद्रा माता ने दर्शन देकर वचनसिद्धि का वरदान दिया था। उसके बाद सुरो बापू भुंगर ने 12 साल तक अपने खेत में सुभद्रा माता की पूजा-अर्चना की।

बाद में तत्कालीन ठाकुर विजयसिंह के शासन में मुख्य गांव से करीब तीन किलोमीटर दूर स्थित पहाड़ी में बनी प्राकृतिक गुफा में पुजा-अर्चना की शुरुआत की। बाद में उन्होंने वहां मंदिर कमरा, टांका, चौक व मंदिर पर चढऩे के लिए सीढि़यों का निर्माण करवाया था। वर्तमान पुजारी भोपाजी भलाराम भुंगर सुरो बापू भुंगर के पौत्र हैं।

नवरात्र में भव्य आयोजन

पुजारी भलाराम ने बताया कि नवरात्रि में मंदिर में भव्य आयोजन होता है, यहां हर वर्ष 36 कौम के लोग बड़ी संख्या में दर्शन करने आते हैं। साथ ही, यह पर्यटन के आकर्षण केन्द्र के रूप में भी प्रसिद्ध हो चुका है। सच्चे मन से पूजा करने वाले भक्तों की हर मनोकामना यहां पूरी होती है। मंदिर में दिन में दो बार आरती होती है और विशेष अवसरों पर भजन-कीर्तन व रात्रि जागरण भी होते है। वर्तमान में मंदिर की गतिविधयों, व्यवस्थाओं आदि की देखभाल एक ट्रस्ट द्वारा की जा रही है।

दिवान्दी से भी सुभद्रा-अर्जुन का नाता

सुभद्रा-अर्जुन का नाता सर गांव से ही नहीं, बल्कि पाली जिले के दिवान्दी गांव से भी है। जिसका पौराणिक नाम ताबावंती था, बाद में इसे देवनगरी कहा जाने लगा। वर्तमान में यह दिवान्दी नाम से जाना जाता है। क्षेत्र के बुजुर्गो के अनुसार इस स्थान पर सुभद्रा-अर्जुन का पाणिग्रहण संस्कार हुआ था। इनका विवाह महर्षि वेद व्यास ने करवाया था। जहां तोरण बांधने की रस्म हुई थी, वहां अर्जुन-सुभद्रा ने भगवान शिव का लिंग स्थापित किया, जिसे तोरणेश्वर महादेव मंदिर कहा जाने लगा।

सुभद्रा-अर्जुन ने बसाया था भाद्राजून!

दिवान्दी से आगे जाकर सुभद्रा-अर्जुन ने एक नगर बसाया, जिसे वर्तमान में भाद्राजून कहा जाता है। एेसा कहा जाता है कि महाभारत काल में पाण्डवों ने इस स्थान पर 12 सालों तक तपस्या की थी। इन बारह सालों में एक बार भी सोमवती अमावस्या नहीं आई। इस पर पाण्डवों ने श्राप दिया कि कलयुग में हर साल सोमवती अमावस्या आएगी, तभी से सोमवती अमावस्या हर वर्ष आने लगी। मंदिर के पीछे के एक भाग में एक प्राचीन गुफा है, जो सर गांव स्थित सुभद्रा माता मंदिर तक जाता है।

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सुभद्रा से मिलने यहां आए थे श्री कृष्ण, इसलिए नाम पड़ा ‘भाद्राजून’


भरत मेघवाल -!- जालोर

http://www.bhaskar.com/news/MAT-RAJ-OTH-c-97-76438-NOR.html
भगवान श्री कृष्ण को लेकर जालोर के इतिहास में कई कथाएं प्रचलित है। बताया जाता है भगवान श्री कृष्ण जिले के कई गांवों से होकर गुजरे थे।
महाभारत तथा पौराणिक कथानुसार आर्यों की यादव शाखा के नेता बलराम और श्री कृष्ण मरूकांतर ((रेगिस्तानी क्षेत्र))होकर गुजरे। पौराणिक कथाओं में ऐसा उल्लेख है कि कृष्ण भगवान भाद्राजून में अपनी बहिन सुभद्रा से मिलने आए थे। ऐसा माना जाता है कि भगवान कृष्ण की सहमति से जब अर्जुन यादव कुमारी सुभद्रा का हरण कर सुभद्रा-अर्जुन गांव में दोनों ने विवाह किया था। इसी कारण इस स्थान का नाम सुभद्रा-अर्जुन पड़ा जो कालांतर में भाद्राजून हो गया। सुभद्रा का हरण करने की बात को लेकर भगवान श्री कृष्ण के बड़े भाई बलभद्र कृष्ण से नाराज हुए। तब भगवान कृष्ण सुभद्रा के पास गए। माना जाता है कि भगवान श्री कृष्ण अपनी बहिन से मिलने इसी मार्ग से होते हुए गए थे।
हल्देश्वर मठ के महंत शीतलाईनाथ के अनुसार भागवत कथा में वर्णित है कि भगवान श्री कृष्ण अपनी बहन के पास जाने से पहले हल्देश्वर मठ में कुछ देर विश्राम किया था। उन्होंने अपने रथ व घोड़े को हल्देश्वर मठ जालोर के पास छोड़ा था। यहां से वे जालोर स्थित जलंधरनाथजी के धुने पर दर्शन करने गए, जहां उन्होंने जलंधरनाथजी से आशीर्वाद लिया। इसके बाद वे रायथल होते हुए भाद्राजून गए और अपनी बहन तथा अर्जुन को आशीर्वाद दिया।
नाथ बताते है कि ऐसा कहा जाता है उस समय हल्देश्वर मठ के आस पास जंगल ही था, जालोर किले की दूसरी तरफ था। मोहनलाल गुप्ता लिखित पुस्तक जालोर जिले का सांस्कृतिक इतिहास में सुभद्रा अर्जुन के भाद्राजून में विवाह करने तथा अपनी बहन सुभद्रा को आशीर्वाद देने से पूर्व कृष्ण का जालोर के वर्तमान हल्देश्वर मठ में विश्राम करने का वर्णन लिखा है।

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बालक ध्रुव


बालक ध्रुव

राजा उत्तानपाद की सुनीति और सुरुचि नामक दो भार्याएं थीं । राजा उत्तानपाद के सुनीतिसे ध्रुव तथा सुरुचिसे उत्तम नामक पुत्र हुए । यद्यपि सुनीति बडी रानी थी किंतु राजा उत्तानपादका प्रेम सुरुचिके प्रति अधिक था । एक बार राजा उत्तानपाद ध्रुवको गोद में लिए बैठे थे कि तभी छोटी रानी सुरुचि वहां आई । अपने सौतके पुत्र ध्रुवको राजाकी गोदमें बैठे देख कर वह ईष्र्या से जल उठी । झपटकर उसने ध्रुवको राजाकी गोदसे खींच लिया और अपने पुत्र उत्तम को उनकी गोदमें बिठाते हुए कहा, ‘रे मूर्ख! राजाकी गोदमें वही बालक बैठ सकता है जो मेरी कोखसे उत्पन्न हुआ है । तू मेरी कोखसे उत्पन्न नहीं हुआ है इस कारणसे तुझे इनकी गोदमें तथा राजसिंहासनपर बैठनेका अधिकार नहीं है । यदि तेरी इच्छा राज सिंहासन प्राप्त करनेकी है तो भगवान नारायणका भजन कर । उनकी कृपासे जब तू मेरे गर्भसे उत्पन्न होगा तभी राजपद को प्राप्त कर सकेगा ।

पांचवर्षके बालक ध्रुवको अपनी सौतेली माताके इस व्यवहारपर बहुत क्रोध आया पर वह कर ही क्या सकता था? इसलिए वह अपनी मां सुनीतिके पास जाकर रोने लगा । सारी बातें जाननेके पश्चात् सुनीति ने कहा, ‘संपूर्ण लौकिक तथा अलौकिक सुखोंको देनेवाले भगवान नारायणके अतिरिक्त तुम्हारे दुःख को दूर करनेवाला और कोई नहीं है । तू केवल उनकी भक्ति कर ।’

माताके इन वचनोंको सुनकर वह भगवानकी भक्ति करनेके लिए निकल पडा । मार्गमें उसकी भेंट देवर्षि नारदसे हुई । नारद मुनिने उसे वापस जानेके लिए समझाया किंतु वह नहीं माना । तब उसके दृढ संकल्प को देख कर नारद मुनि ने उसे ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्रकी दीक्षा देकर उसे सिद्ध करने की विधि समझा दी । बालक ध्रुवने यमुनाजी के तटपर मधुवनमें जाकर ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्रके जाप के साथ भगवान नारायण की कठोर तपस्या की । अल्पकालमें ही उसकी तपस्यासे भगवान नारायण उनसे प्रसन्न होकर उसे दर्शन देकर कहा, ‘हे राजकुमार! मैं तेरे अन्तःकरण की बात को जानता हूं । तेरी सभी इच्छाएं पूर्ण होंगी । समस्त प्रकार के सर्वोत्तम ऐश्वर्य भोग कर अंत समयमें तू मेरे लोक को प्राप्त करेगा ।’

इस कथासे हमें यह सीख मिलती है कि नामजप एवं दृढ संकल्पसे ईश्वर शीघ्र प्रसन्न होकर हमारा कल्याण करते हैं ।

श्री दिनेश कडेल