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हनुमान पुत्र मकरध्वज की कथा


Satyendra Kumar Yadav

हनुमान पुत्र मकरध्वज की कथा

पवनपुत्र हनुमान बाल-ब्रह्मचारी थे। लेकिन मकरध्वज को उनका पुत्र कहा जाता है।

वाल्मीकि रामायण के अनुसार, लंका जलाते समय आग की तपिश के कारण हनुमानजी को बहुत पसीना आ रहा था। इसलिए लंका दहन के बाद जब उन्होंने अपनी पूँछ में लगी आग को बुझाने के लिए समुद्र में छलाँग लगाई तो उनके शरीर से पसीने के एक बड़ी-सी बूँद समुद्र में गिर पड़ी। उस समय एक बड़ी मछली ने भोजन समझ वह बूँद निगल ली। उसके उदर में जाकर वह बूँद एक शरीर में बदल गई।

एक दिन पाताल के असुरराज अहिरावण के सेवकों ने उस मछली को पकड़ लिया। जब वे उसका पेट चीर रहे थे तो उसमें से वानर की आकृति का एक मनुष्य निकला। वे उसे अहिरावण के पास ले गए। अहिरावण ने उसे पाताल पुरी का रक्षक नियुक्त कर दिया। यही वानर हनुमान पुत्र ‘मकरध्वज’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

जब राम-रावण युद्ध हो रहा था, तब रावण की आज्ञानुसार अहिरावण राम-लक्ष्मण का अपहरण कर उन्हें पाताल पुरी ले गया। उनके अपहरण से वानर सेना भयभीत व शोकाकुल हो गयी। लेकिन विभीषण ने यह भेद हनुमान के समक्ष प्रकट कर दिया। तब राम-लक्ष्मण की सहायता के लिए हनुमानजी पाताल पुरी पहुँचे।

जब उन्होंने पाताल के द्वार पर एक वानर को देखा तो वे आश्चर्यचकित हो गए। उन्होंने मकरध्वज से उसका परिचय पूछा। मकरध्वज अपना परिचय देते हुआ बोला-

“मैं हनुमान पुत्र मकरध्वज हूं और पातालपुरी का द्वारपाल हूँ।”

मकरध्वज की बात सुनकर हनुमान क्रोधित होकर बोले-

“यह तुम क्या कह रहे हो? दुष्ट! मैं बाल ब्रह्मचारी हूँ। फिर भला तुम मेरे पुत्र कैसे हो सकते हो?”

हनुमान का परिचय पाते ही मकरध्वज उनके चरणों में गिर गया और उन्हें प्रणाम कर अपनी उत्पत्ति की कथा सुनाई। हनुमानजी ने भी मान लिया कि वह उनका ही पुत्र है।

लेकिन यह कहकर कि वे अभी अपने श्रीराम और लक्ष्मण को लेने आए हैं, जैसे ही द्वार की ओर बढ़े वैसे ही मकरध्वज उनका मार्ग रोकते हुए बोला-

“पिताश्री! यह सत्य है कि मैं आपका पुत्र हूँ लेकिन अभी मैं अपने स्वामी की सेवा में हूँ। इसलिए आप अन्दर नहीं जा सकते।”

हनुमान ने मकरध्वज को अनेक प्रकार से समझाने का प्रयास किया, किंतु वह द्वार से नहीं हटा।
तब दोनों में घोर य़ुद्ध शुरु हो गया। देखते-ही-देखते हनुमानजी उसे अपनी पूँछ में बाँधकर पाताल में प्रवेश कर गए। हनुमान सीधे देवी मंदिर में पहुँचे जहाँ अहिरावण राम-लक्ष्मण की बलि देने वाला था।
हनुमानजी को देखकर चामुंडा देवी पाताल लोक से प्रस्थान कर गईं। तब हनुमानजी देवी-रूप धारण करके वहाँ स्थापित हो गए।

कुछ देर के बाद अहिरावण वहाँ आया और पूजा अर्चना करके जैसे ही उसने राम-लक्ष्मण की बलि देने के लिए तलवार उठाई, वैसे ही भयंकर गर्जन करते हुए हनुमानजी प्रकट हो गए और उसी तलवार से अहिरावण का वध कर दिया।

उन्होंने राम-लक्ष्मण को बंधन मुक्त किया। तब श्रीराम ने पूछा-

“हनुमान! तुम्हारी पूँछ में यह कौन बँधा है?
बिल्कुल तुम्हारे समान ही लग रहा है।
इसे खोल दो।”

हनुमान ने मकरध्वज का परिचय देकर उसे बंधन मुक्त कर दिया। मकरध्वज ने श्रीराम के समक्ष सिर झुका लिया। तब श्रीराम ने मकरध्वज का राज्याभिषेक कर उसे पाताल का राजा घोषित कर दिया और कहा कि भविष्य में वह अपने पिता के समान दूसरों की सेवा करे।

यह सुनकर मकरध्वज ने तीनों को प्रणाम किया। तीनों उसे आशीर्वाद देकर वहाँ से प्रस्थान कर गए। इस प्रकार मकरध्वज हनुमान पुत्र कहलाए।

जय बजरंगबली

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Lord Krishna fled Dwaraka


There is the fact that Lord Krishna fled Dwaraka because of the repeated attacks by Jarasandha and built a fortress amid the sea to escape him. I do not subscribe to the view that there were seven Dwarakas and what is found off Gujarat coast was the latest of Krishna because if you want to escape from an enemy you do not settle very near to where you had been attacked. And the construction of the Por-Bazhyn is of of an Indian fortress and temple. And it is surrounded by water.

via Krishna’s Palace In Siberia Sanskrit Inscription Por-Bazhyn — Ramani’s blog

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एक बार अकबर बीरबल


एक बार अकबर बीरबल हमेशा की तरह टहलने जा रहे थे!

रास्ते में एक तुलसी का पौधा दिखा .. मंत्री बीरबल ने झुक कर प्रणाम किया !

अकबर ने पूछा कौन हे ये ?
बीरबल — मेरी माता हे !

अकबर ने तुलसी के झाड़ को उखाड़ कर फेक दिया और बोला .. कितनी माता हैं तुम हिन्दू लोगो की …!

बीरबल ने उसका जबाब देने की एक तरकीब सूझी! .. आगे एक बिच्छुपत्ती (खुजली वाला ) झाड़ मिला .. बीरबल उसे दंडवत प्रणाम कर कहा: जय हो बाप मेरे ! !
अकबरको गुस्सा आया .. दोनों हाथो से झाड़ को उखाड़ने लगा .. इतने में अकबर को भयंकर खुजली होने लगी तो बोला: .. बीरबल ये क्या हो गया !

बीरबल ने कहा आप ने मेरी माँ को मारा इस लिए ये गुस्सा हो गए!

अकबर जहाँ भी हाथ लगता खुजली होने लगती .. बोला: बीरबल जल्दी कोई उपाय बतायो!

बीरबल बोला: उपाय तो है लेकिन वो भी हमारी माँ है .. उससे विनती करी पड़ेगी !

अकबर बोला: जल्दी करो !

आगे गाय खड़ी थी बीरबल ने कहा गाय से विनती करो कि … हे माता दवाई दो..

गाय ने गोबर कर दिया ..
फिर बीरबल ने अकबर से शरीर पर उसका लेप करने को कहा, लेप से फौरन खुजली से राहत मिल गई!
अकबर बोला .. बीरबल अब क्या राजमहल में ऐसे ही जायेंगे?

बीरबलने कहा: .. नहीं बादशाह हमारी एक और माँ है! सामने गंगा बह रही थी .. आप बोलिए हर -हर गंगे .. जय गंगा मईया की .. और कूद जाइए !

नहा कर अपनेआप को तरोताजा महसूस करते हुए अकबर ने बीरबल से कहा: .. कि ये तुलसी माता, गौ माता, गंगा माता तो जगत माता हैं! इनको मानने वालों को ही हिन्दू कहते हैं ..!

*हिन्दू एक संस्कृति है , सभ्यता है .. सम्प्रदाय नहीं…..!

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मुल्ला नसरुद्दीन


मुल्ला नसरुद्दीन कहीं जा रहा था रास्ते से बिलकुल घिसटता, गालियाँ देता हुआ।

रास्ते में एक डाक्टर मिल गया। उसने कहा कि क्यों और किसे इतनी गालियाँ दे रहे हो, बात क्या है?

उसने कहा: मेरे पैर में बड़ी तकलीफ है। डाक्टर ने कहा, तुम मेरे साथ आओ, गालियाँ देने से क्या होगा! डाक्टर ने कहा कि तुम्हारे अपेंडिक्स को निकालना पड़ेगा। डाक्टर ने बहुत जाँच की।

जब डाक्टर बहुत जाँच करे और कुछ न मिले, तो अपेंडिक्स निकालता है। पक्का समझ लेना, जब भी डाक्टर कहे अपेंडिक्स, समझ लेना कि उसको कुछ मिल नहीं रहा है।

अपेंडिक्स बिलकुल निर्दोष चीज है। उसको निकाल बाहर कर दिया। मगर दर्द था सो जारी ही रहा।

दूसरे डाक्टर के पास नसरुद्दीन गया कि भई, होगा क्या मामला? अपेंडिक्स भी निकल गई! उसने कहा कि तुम्हारे टान्सिल निकाल पड़ेंगे। जब अपेंडिक्स निकल जाए, तो बचता है टान्सिल। बेचारा टान्सिल भी निकल गया, मगर दर्द था कि जारी रहा।

तीसर डॉक्टर के पास गया, उसने कहा कि तुम्हारे दाँत निकालने पड़ेंगे। दाँत भी निकल गए, मगर दर्द था सो जारी का जारी रहा।

हालत भी खराब हो गई दाँत निकल गए, अपेंडिक्स निकल गई, टान्सिल निकल गए … अब कुछ निकलने को बचा भी नहीं बस ये तीन ही चीजें निकाल सकते हो।

हालत बिलकुल उसकी खस्ता हो गई, बिलकुल मुर्दा जैसी हालत हो गई। बिलकुल झुक कर चलने लगा, लकड़ी टेक—टेक कर चलने लगा। और फिर एक दिन लोगों ने देखा, उसने लकड़ी फेंक दी है, सीधा खड़ा हो गया है और मुस्कुराता हुआ, फिल्मी धुन गुनगुनाता हुआ चला जा रहा है। लोगों ने पूछा, अरे भाई, कोई चिकित्सक मिल गया जिसने बीमारी ठीक कर दी? उसने कहा, ऐसी की तैसी चिकित्सकों की! मेरे जूते में खीली थी, वह गड़ती थी, उसकी वजह से परेशानी हो रही थी।

नालायकों की समझ में आया नहीं। बड़ी बड़ी जाँच की, कार्डियोग्राम इत्यादि। अब कार्डियोग्राम में कहीं जूते में लगी खीली आए!

तुम्हारी जिन्दगी में भी कोई सवाल बड़े नहीं हैं। मगर पण्डित (पाखण्डी) बड़े बड़े समाधान लिए बैठे हैं। और तुम्हारी जिन्दगी के सवाल बहुत छोटे हैं। समझ हो तो जूते की खीली निकालने जैसे हैं।

Posted in हिन्दू पतन

भारत की सच्चाई


सैनिको पर पत्थर – अहिंसक आंदोलन

भारत तेरे टुकडे – अभिव्यक्ति आजादी

भंसाली को थप्पड़ – हिन्दू आतंकवाद

गौमांस भक्षण – भोजन का अधिकार

ईद पर बकरा काटना – धार्मिक स्वतंत्रता

तीन तलाक हलाला – धार्मिक अंदरूनी मामला

दीवाली पटाखे – पर्यावरण प्रदूषण

न्यू इयर पटाखे – आक्सीजन निकलता है

मटकी फोड छोटे बच्चे नही- गलत बात है

खतना मे बच्चे – धार्मिक अंदरूनी मामला

प्लेटफार्म पर नमाज – धार्मिक अधिकार

सड़क पर पंडाल – सड़क जाम का केस

मस्जिद लाउडस्पीकर। – धार्मिक स्वतंत्रता

मंदिर मे लाउडस्पीकर – ध्वनि प्रदूषण

करवाचौथ ढकोसला

वैलेंटाइनडे प्यार का पर्व

चार शादियां धार्मिक स्वतन्त्रता

हिन्दू दो शादी केस दर्ज

गणेश विसर्जन, होली जल प्रदूषण

ताजिया विसर्जन संविधान अधिकार

देवताओ देवी अपमान कला की अभिव्यक्ति

मोहम्मद पर बयान रासुका धारा, तोडफोड

ये है भारत की सच्चाई