काफी समय पहले की बात है कि एक मन्दिर के बाहर बैठ कर एक भिखारी भीख माँगा करता था । ( वह एक बहुत बड़े महात्मा जी काशिष्य था जो कि इक पूर्ण संत थे ।) उसकी उम्र कोई साठ को पार कर चुकी थी । आने जाने वाले लोग उसके आगे रक्खे हुए पात्र में कुछ न कुछ डाल जाते थे । लोग कुछ भी डाल दें , उसने कभी आँख खोल कर भी न देखा था कि किसने क्या डाला । उसकी इसी आदत का फायदा उसके आस पास बैठे अन्य भिखारी तथा उनके बच्चे उठा लेते थे । वे उसके पात्र में से थोड़ी थोड़ी देर बाद हाथ साफ़ कर जाते थे । कई उसे कहते भी थे कि , ” सोया रहेगा तो तेरा सब कुछ चोरी जाता रहेगा ” । वह भी इस कान से सुन कर उधर से निकाल देता था । किसी को क्या पता था कि वह प्रभु के प्यार में रंगा हुआ था । हर वक्त गुरु की याद उसे अपने में डुबाये रखती थी ।
एक दिन ध्यान की अवस्था में ही उसे पता लगा कि उसकी अपनी उम्र नब्बे तक पहुंच जायेगी । यह जानकर वह बहुत उदास हो गया । जीवन इतनी कठिनाइयों से गुज़र रहा था पहले ही और ऊपर से इतनी लम्बी अपनी उम्र की जानकारी – वह सोच सोच कर परेशान रहने लग गया । एक दिन उसे अपने गुरु की उम्र का ख्याल आया । उसे मालूम था कि गुरुदेव की उम्र पचास के आसपास थी । पर ध्यान में उसकी जानकारी में आया कि गुरुदेव तो बस दो बरस ही और रहेंगे । गुरुदेव की पूरी उम्र की जानकारी के बाद वह और भी उदास हो गया । बार बार आँखों से बूंदे टपकने लग जाती थीं । पर उसके अपने बस में तो नही था न कुछ भी । कर भी क्या सकता था , सिवाए आंसू बहाने के ।
एक दिन सुबह कोई पति पत्नी मन्दिर में आये । वे दोनों भी उसी गुरु के शिष्य थे जिसका शिष्य वह भिखारी था ।वे तो नही जानते थे भिखारी को , पर भिखारी को मालूम था कि दोनों पति पत्नी भी उन्ही गुरु जी के शिष्य थे । दोनों पति पत्नी लाइन में बैठे भिखारियों के पात्रों में कुछ न कुछ डालते हुए पास पहुंच गये । भिखारी ने दोनों हाथ जोड़ कर उन्हें ऐसे ही प्रणाम किया जैसे कोई घर में आये हुए अपने गुरु भाईओं को करता है ।भिखारी के प्रेम पूर्वक किये गये प्रणाम से वे दोनों प्रभावित हुए बिना न रह सके । भिखारी ने उन दोनों के भीतर बैठे हुए अपने गुरुदेव को प्रणाम किया था इस बात को वे जान न पाए । उन्होंने यही समझा कि भिखारी ने उनसे कुछ अधिक की आस लगाई होगी जो इतने प्यार से नमस्कार किया है । पति ने भिखारी की तरफ देखा और बहुत प्यार से पुछा ,” कुछ कहना है या कुछ और अधिक चाहिए ?” भिखारी ने अपने पात्र में से एक सिक्का निकाला और उनकी तरफ बढ़ाते हुए बोला ,” जब गुरुदेव के दर्शन को जायो तो मेरी तरफ से ये सिक्का उनके चरणों में भेंट स्वरूप रख देना ।” पति पत्नी ने एक दुसरे की तरफ देखा , उसकी श्रद्धा को देखा , पर एक सिक्का , वो भी गुरु के चरणों में ! पति सोचने लगा ” क्या कहूँगा , कि एक सिक्का ! ” कभी एक सिक्का गुरु को भेंट में तो शायद किसी ने नही दिया होगा , कभी नही देखा । पति भिखारी की श्रद्धा को देखे तो कभी सिक्के को देखे । कुछ सोचते हुए पति बोला ,” आप इस सिक्के को अपने पास रक्खो , हम वैसे ही आपकी तरफ से उनके चरणों में रख देंगे ।” ” नही आप इसी को रखना उनके चरणों में ।” भिखारी ने बहुत ही नम्रता पूर्वक और दोनों हाथ जोड़ते हुए कहा । उसकी आँखों से झर झर आंसू भी निकलने लग गये । भिखारी ने वहीं से एक कागज़ के टुकड़े को उठा कर सिक्का उसी में लपेट कर दे दिया । जब पति पत्नी चलने को तैयार हो गये तो भिखारी ने पुछा ,” वहाँ अब भंडारा कब होगा ?” ” भंडारा तो कल है , कल गुरुदेव का जन्म दिवस है न ।” भिखारी की आँखे चमक उठीं । लग रहा था कि वह भी पहुंचेगा , गुरुदेव के जन्म दिवस के अवसर पर ।
दोनों पति पत्नी उसके दिए हुए सिक्के को लेकर चले गये । अगले दिन जन्म दिवस ( गुरुदेव का ) के उपलक्ष में आश्रम में भंडारा था । वह भिखारी भी सुबह सवेरे ही आश्रम पहुंच गया । भंडारे के उपलक्ष में बहुत शिष्य आ रहे थे । पर भिखारी की हिम्मत न हो रही थी कि वह भी भीतर चला जाए । वह वहीं एक तरफ खड़ा हो गया कि शायद गेट पर खड़ा सेवादार उसे भी मौका दे भीतर जाने के लिए । पर सेवादार उसे बार बार वहाँ से चले जाने को कह रहा था । दोपहर भी निकल गयी , पर उसे भीतर न जाने दिया गया । भिखारी वहाँ गेट से हट कर थोड़ी दूर जाकर एक पेड़ की छावं में खड़ा हो गया । वहीं गेट पर एक कार में से उतर कर दोनों पति पत्नी भीतर चले गये । एक तो भिखारी की हिम्मत न हुई कि उन्हें जा कर अपने सिक्के की याद दिलाते हुए कह दे कि मेरी भेंट भूल न जाना । और दूसरा वे दोनों शायद जल्दी में भी थे इस लिए जल्दी से भीतर चले गये । और भिखारी बेचारा , एक गरीबी , एक तंग हाली और फटे हुए कपड़े उसे बेबस किये हुए थे कि वह अंदर न जा सके । दूसरी तरफ दोनों पति पत्नी गुरुदेव के सम्मुख हुए , बहुत भेंटे और उपहार थे उनके पास , गुरुदेव के चरणों में रखे । पत्नी ने कान में कुछ कहा तो पति को याद आ गया उस भिखारी की दी हुई भेंट । उसने कागज़ के टुकड़े में लिपटे हुए सिक्के को जेब में से बाहर लिकाला , और अपना हाथ गुरु के चरणों की तरफ बढ़ाया ही था तो गुरुदेव आसन से उठ खड़े हुए , गुरुदेव ने अपने दोनों हाथ आगे बढ़ाकर सिक्का अपने हाथ में ले लिया , उस भेंट को गुरुदेव ने अपने मस्तक से लगाया और पुछा , ” ये भेंट देने वाला कहाँ है , वो खुद क्यों नही आया ? “। गुरुदेव ने अपनी आँखों को बंद कर लिया , थोड़ी ही देर में आँख खोली और कहा ,” वो बाहर ही बैठा है , जायो उसे भीतर ले आयो ।” पति बाहर गया , उसने इधर उधर देखा । उसे वहीं पेड़ की छांव में बैठा हुआ वह भिखारी नज़र आ गया ।
पति भिखारी के पास गया और उसे बताया कि गुरुदेव ने उसकी भेंट को स्वीकार किया है और भीतर भी बुलाया है । भिखारी की आँखे चमक उठीं । वह उसी के साथ भीतर गया , गुरुदेव को प्रणाम किया और उसने गुरुदेव को अपनी भेंट स्वीकार करने के लिए धन्यवाद दिया । गुरुदेव ने भी उसका हाल जाना और कहा प्रभु के घर से कुछ चाहिए तो कह दो आज मिल जायेगा । भिखारी ने दोनों हाथ जोड़े और बोला ” एक भेंट और लाया हूँ आपके लिए , प्रभु के घर से यही चाहता हूँ कि वह भेंट भी स्वीकार हो जाये ” । ” हाँ होगी , लायो कहाँ है ?” वह तो खाली हाथ था , उसके पास तो कुछ भी नजर न आ रहा था भेंट देने को , सभी हैरान होकर देखने लग गये कि क्या भेंट होगी ! ” हे गुरुदेव , मैंने तो भीख मांग कर ही गुज़ारा करना है , मैं तो इस समाज पर बोझ हूँ । इस समाज को मेरी तो कोई जरूरत ही नही है । पर हे मेरे गुरुदेव , समाज को आपकी सख्त जरूरत है , आप रहोगे , अनेकों को अपने घर वापिस ले जायोगे । इसी लिए मेरे गुरुदेव , मैं अपनी बची हुई उम्र आपको भेंट स्वरूप दे रहा हूँ ।कृपया इसे कबूल करें ।” इतना कहते ही वह भिखारी गुरुदेव के चरणों पर झुका और फिर वापिस न उठा । कभी नही उठा । वहाँ कोहराम मच गया कि ये क्या हो गया , कैसे हो गया ? सभी प्रश्न वाचक नजरों से गुरुदेव की तरफ देखने लग गये । एक ने कहा , ” हमने भी कई बार कईओं से कहा होगा कि भाई मेरी उम्र आपको लग जाए , पर हमारी तो कभी नही लगी । पर ये क्या , ये कैसे हो गया ?” गुरुदेव ने कहा ,” इसकी बात सिर्फ इस लिए सुन ली गयी क्योंकि इसके माथे का टीका चमक रहा था । आपकी इस लिए नही सुनी गयी क्योंकि माथे पर लगे टीके में चमक न थी ” । सभी ने उसके माथे की तरफ देखा , वहाँ तो कोई टीका न लगा था । गुरुदेव सबके मन की उलझन को समझ गये और बोले ” टीका ऊपर नही , भीतर के माथे पर लगा होता है….!
Laxmikant Varshney