Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

कार का अभिमान


कार का अभिमान

कलाप्रस्तर नामक एक मूर्तिकार बेहद सुंदर मूर्तियां बनाया करता था। उसने अपने बेटे अहं को भी मूर्तिकला का ज्ञान देना शुरू किया। कुछ वर्षों में बेटा भी मूर्तियां बनाने में निपुण हो गया। अब पिता-पुत्र दोनों बाजार जाते और मूर्तियां बेचकर आ जाते। कुछ समय बाद प्रस्तर ने अहं की मूर्तियों को अलग से बेचना शुरू कर दिया।
अहं की मूर्तियां प्रस्तर की मूर्तियों से ज्यादा दामों पर बिकने लगीं। एक रात अहं जब मूर्ति बना रहा था तो प्रस्तर उसकी मूर्ति को देखते हुए उसमें कमी बताने लगा। पिता को मूर्ति में जगह-जगह कमी बताते देख अहं खीज गया। वह चिढ़कर बोला, ‘पिताजी, आपको तो मेरी मूर्ति में दोष ही नजर आता है। यदि मेरी मूर्ति में कमी होती तो आज मेरी मूर्ति आपसे ज्यादा कीमत में नहीं बिकती।’ बेटे की बातें सुनकर पिता दंग रह गया। वह चुपचाप अपने बिस्तर पर आकर लेट गया। कुछ देर बाद अहं को लगा कि उसे पिता से इस तरह बात नहीं करनी चाहिए थी। वह पिता के पैरों के पास आकर बैठ गया।
अहं के आने की आहट से प्रस्तर उठ बैठा और बोला, ‘बेटा, जब मैं तुम्हारी उम्र का था तो मुझे भी अभिमान हो गया था। उस समय मेरी एक मूर्ति पांच सौ रुपये में बिकी थी और मेरे पिता की पांच रुपये में। तब से लेकर आज तक मैं पांच सौ से आगे नहीं बढ़ पाया। मैं नहीं चाहता कि अभिमान करने से जो नुकसान मुझे हुआ, वह तुम्हें भी हो। इंसान तो हर पल सीखता रहता है।’ अहं ने पिता से कहा, ‘आगे से आप मेरी हर कमी बताइएगा, मैं उसे सुधारने की कोशिश करूंगा।’

दिनेश भाई सोनी

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खिलजी ने आखिर क्यों जलवा दी नालंदा यूनिवर्सिटी? जानिए पूरा सच =========================================== आप देशवासियों के लिये अपना पूरा जीवन लगा देने वाले भाई राजीव दीक्षित जी Nalanda University Real Story & History in Hindi : खिलजी ने आखिर क्यों जलवा दी नालंदा यूनिवर्सिटी? जानिए पूरा सच – नालंदा वो जगह है जो 6th Century B.C. […]

via खिलजी ने आखिर क्यों जलवा दी नालंदा यूनिवर्सिटी? जानिए पूरा — પ્રહલાદ પ્રજાપતિ

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बापू पाकिस्तान को देना चाहते थे हथियार, सरदार पटेल ने रुकवा दिया था काफिला..!


बापू पाकिस्तान को देना चाहते थे हथियार, सरदार पटेल ने रुकवा दिया था काफिला..!

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नई दिल्ली। यह वाकया ज्यादा चर्चा में तो नहीं आया, लेकिन इतिहास के पन्नों में यह घटना है बहुत महत्वपूर्ण। दरअसल, किस्सा सन् 1947 में पाकिस्तान के अलग होने के ठीक बाद का है। समझौते के मुताबिक गरीब देश पाकिस्तान को भारत द्वारा कई तरह की सहायता दी जानी थीं ताकि वो एक देश के रूप में अपना प्रशासनिक कामकाज शुरू कर सके। इसके तहत ट्रेनों के जरिए दिल्ली से लाहौर तक वे लाखों फाइलें पहुंचाई गईं जो पाकिस्तान के भूभाग, वहां की नदियों, खेतों, भवनों, मंदिरों, मस्जिदों व अन्य मामलों से जुड़ी हुई थीं। इसके बाद सिलसिला शुरू हुआ अन्य माल-असबाब पहुंचाने का। इसमें अनाज से लेकर अन्य तमाम जरूरी चीजें भी पहुंचाई गईं। अंतत: वह समय भी आ गया जब भारत की ओर से तोपें, गोला-बारूद, बंदूक सहित अन्य हथियार ट्रेनों में लादकर पाकिस्तान भेजे जाने का समय आ गया।

पाकिस्तान जाती हथियारों की खेप…
मगर इस सबसे सरदार वल्लभ भाई पटेल खुश नहीं थे। वे तो इस बात के पक्ष में ही नहीं थे कि पाकिस्तान को कुछ दिया जाना चाहिए, क्योंकि वहां की सरकार ने गठन के बाद से भारत पर आरोप लगाना शुरू कर दिए थे। मगर आखिरकार पाकिस्तान ने वो बड़ी गलती कर दी, जिसका पटेल को अंदेशा था। पाकिस्तान ने अपने सैनिकों को कबीलाई हमलावरों का रूप देकर कश्मीर पर छद्म हमला करवा दिया। इससे सरदार पटेल नाराज हो गए और उन्होंने पाकिस्तान जाती हथियारों की खेप तुरंत रुकवा दी। इससे पाकिस्तान और बौखला गया और भारत पर अनर्गल आरोप लगाने लगा। इधर से पटेल ने भी करारे जवाब दिए और पाकिस्तान को साफ कह दिया कि एक तरफ कश्मीर पर हमला और दूसरी तरफ भारत से ही हथियार की मांग, ये दोहरा रवैया नहीं चलेगा।

बापू को भी हथियार पाकिस्तान भेजने से मना…
ये लड़ाई अभी चल ही रही थी कि महात्मा गांधी ने भी इसमें हस्तक्षेप कर दिया।  वे इस पक्ष में थे कि पाकिस्तान को हथियार दिए जाने चाहिए। अहिंसा के पुजारी को हथियार दिए जाने की पैरवी करते देख सरदार वल्लभ भाई पटेल भी हैरत में थे लेकिन वे जानते थे कि बापू ऐसा पहले भी करते रहे हैं। ऐसे में पटेल अड़ गए और उन्होंने बापू को भी हथियार पाकिस्तान भेजने से मना कर दिया। मगर बापू तो बापू ठहरे। वे अनशन पर बैठ गए और कहने लगे कि जब तक पाकिस्तान को हथियार नहीं भेजे जाएंगे, मैं अन्न्-जल ग्रहण नहीं करूंगा। इस जिद का नतीजा ये हुआ कि पाकिस्तान को कुछ हथियार भेजना पड़े। कहते हैं कि बाद में पाक ने उन्हीं हथियारों को भारत के खिलाफ कश्मीर की लड़ाई में इस्तेमाल किया।

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Kavi Pradeep


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http://hindi.webdunia.com/bollywood-article/poet-pradeep-jubilee-madhya-pradesh-film-116020600001_1.html

कवि प्रदीप की एक कविता देखिए:

कभी कभी खुद से बात करो, कभी खुद से बोलो ।
अपनी नज़र में तुम क्या हो? ये मन की तराजू पर तोलो ।
कभी कभी खुद से बात करो ।
कभी कभी खुद से बोलो ।

हरदम तुम बैठे ना रहो – शौहरत की इमारत में ।
कभी कभी खुद को पेश करो आत्मा की अदालत में ।
केवल अपनी कीर्ति न देखो- कमियों को भी टटोलो ।
कभी कभी खुद से बात करो ।
कभी कभी खुद से बोलो ।

दुनिया कहती कीर्ति कमा के, तुम हो बड़े सुखी ।
मगर तुम्हारे आडम्बर से, हम हैं बड़े दु:खी ।
कभी तो अपने श्रव्य-भवन की बंद खिड़कियाँ खोलो ।
कभी कभी खुद से बात करो ।
कभी कभी खुद से बोलो ।

ओ नभ में उड़ने वालो, जरा धरती पर आओ ।
अपनी पुरानी सरल-सादगी फिर से अपनाओ ।
तुम संतो की तपोभूमि पर मत अभिमान में डालो ।
अपनी नजर में तुम क्या हो? ये मन की तराजू में तोलो ।
कभी कभी खुद से बात करो ।
कभी कभी खुद से बोलो ।

– कवि प्रदीप

kavi_pradeep

It is Kavi Pradeep’s 102nd #BirthAnniversary today. He is best known for his patriotic song ‘Aye Mere Watan Ke Logo’, which Lata Mangeshkar immortalised in her voice. He pledged the royalties of the song to War Widows Fund. Did you know that after writing ‘Door Hato Ae Duniya Walo’ in Kismet in 1943, he was forced to go into hiding to avoid arrest since it invited the ire of the then British government. His other famous songs included ‘Chal Chal Re Naujawan’ in Bandhan and ‘Aao Bachcho Tumhein Dikhayen’ and ‘De Dee Hame Azaadi Bina Khadag Bina Dhaal’ in Jagriti. “Nobody can make you patriotic. It’s in your blood. It is how you bring it out to serve the country that makes you different.” – he said in an interview. How have his songs inspired you over the years?

कवि प्रदीप का जीवन-परिचय व कविताएं

कवि प्रदीप का जन्म 6 फरवरी 1915 को मध्यप्रदेश के छोटे से शहर में एक मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ। आपका वास्तविक नाम रामचंद्र नारायणजी द्विवेदी था। आपको बचपन से ही हिन्दी कविता लिखने में रूचि थी।

 

आपने 1939 में लखनऊ विश्वविद्यालय से स्नातक तक की पढ़ाई करने के पश्चात शिक्षक बनने का प्रयत्न किया लेकिन इसी समय उन्हें मुंबई में हो रहे एक कवि सम्मेलन का निमंत्रण मिला।

1943 में  ‘क़िस्मत’ फिल्म का गीत बहुत प्रसिद्ध हुआ था –

‘आज हिमालय की चोटी से फिर हमने ललकारा है।
दूर हटो… दूर हटो ऐ दुनियावालों हिंदोस्तान हमारा है॥’

प्रदीप का गीत के इस गीत से भला कौन भारतवासी परिचित न होगा –

‘ऐ मेरे वतन के लोगों, जरा आँख में भर लो पानी
जो शहीद हुए हैं उनकी जरा याद करो कुर्बानी।’

यह देशभक्ति-गीत कवि प्रदीप ने रचा था जो 1962 के चीनी आक्रमण के समय मारे गए भारतीय सैनिकों को समर्पित था। जब 26 जनवरी 1963 को यह गीत स्वर-सम्राज्ञी लता मंगेशकर ने गाया तो वहाँ उपस्थित सभी लोगों की आँखें नम हो गईं। भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व० पं० जवाहरलाल नेहरू भी स्वयं को रोक न पाए और उनकी आँखे भी भर आई थीं।

कवि प्रदीप ने अनेक गीत लिखे जो बच्चों में अत्यंत लोकप्रिय हुए जिनमें निम्नलिखित मुख्य हैं –
‘दे दी हमें आजादी बिना खड्ग बिना ढाल।
साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल॥’

‘आओ बच्चो! तुम्हें दिखाएं झांकी हिंदोस्तान की।
इस मिट्टी से तिलक करो यह धरती है बलिदान की॥’

‘हम लाए हैं तूफान से कश्ती निकाल के।
इस देश को रखना मेरे बच्चो! संभाल के॥’

कवि प्रदीप को 1998 में ‘दादा साहब फालके’ पुरस्कार से अलंकृत किया गया था।  अपने गीतों से देशवासियों के दिल पर राज करने वाले कवि प्रदीप का 11 दिसम्बर 1998 को निधन हो गया।

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लोग ताना देते हैं की भाजपा कट्टर हिन्दुत्व क्यों नहीं अपनाती ?


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Sanjay Dwivedy

लोग ताना देते हैं की भाजपा कट्टर हिन्दुत्व क्यों नहीं अपनाती ?

आखिर कोई पार्टी क्यों साथ दे हिंदुओं का जब हिन्दू ही दोगले हैं और उसी पार्टी के पीठ में छुरा घोपते हैं जो हिन्दुत्व को बढ़ावा देती है

बीजेपी के नेता कल्याण सिंह के ये बोल याद है या नहीं ?
लात मारता हूँ मुख्यमंत्री की कुर्सी को, भगवान राम के लिए ऐसी सौ कुर्सिया कुर्बान है

अब आप बताइये , इससे बड़ी हिंदुत्व की सेवा क्या होगी कि एक आदमी ने आपके माथे पे लगा 500 साल का कलंक धो दिया और बदले में 5 -5 राज्यों की सरकारें कुर्बान कर दीं ।

बदले में हिंदुओं ने उनको क्या दिया । सिर्फ ढाई साल के अंदर हिन्दू शेरों का हिंदुत्व उनकी *** में घुस गया और जातिवाद मुह से बाहर आ गया और UP में इन्ही दोगले हिन्दू ने मुलायम सिंह की सरकार बनवा दी ।

कहाँ गया हिंदुत्व ?
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चलो इतनी पुरानी बात नहीं करते । अभी हाल की बात कर लेते हैं ।
हरियाणा में क्या हुआ ? हिंदुत्व के झाड़ पे चढ़ के जाटों ने भाजपा को वोट दिया और जैसे ही एक गैर जाट CM बन गया , हिंदुत्व तुरंत *** में घुस गया और मुह से जाटत्व बाहर आ गया …….. हिंदुत्व गया तेल लेने पंजाबी खट्टर को CM क्यों बनाया ……. आरक्षण दो …….
तेल लेने गया हिंदुत्व , आरक्षण दो नहीं तो फिर कांग्रेस को भोट दे दूंगा …….
हिन्दू छोड़ फिर जाट बन गया ……. भूल गया अपनी हिन्दू identity ?

अभी राजस्थान में भी गुर्जर भडक रहे हैं और वहाँ भी हिंदुत्व गुदा में प्रविष्ट हुआ चाहता है और जातीय identity भारी है ।
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दिल्ली में तुगलक की औलाद खुजली क्यों साशन कर रहा है? सोचा है किसी ने ?

बिहार में क्या हुआ ? कहाँ गया हिंदुत्व ? घुस गया न ? वहाँ सब हिन्दू अहीर बन गए न ?

अब UP में क्या होगा ? अहीर अहीर ही रहेगा या हिन्दू बनेगा ????????
समझे मुन्ना ?????

अटल जी की सरकार इनही दोगले हिंदुओं ने गिरा कर इटालियन रंडी को भारत सौप दिया 10 साल तक और भारत को लुटवा कर भारत का बेड़ा गर्क कर दिया।

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हिन्दू कब अपनी हिन्दू अस्मिता भूल के अपनी जाति ओढ़ लेगा कोई नहीं जानता ।
तुनक मिजाज औरतों के घर कभी नहीं बसते ……
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जो औरतें हर छोटी छोटी बात पे अपने पति और ससुराल से नाराज हो के लहंगा उठा के चल पड़ती हैं न , वो कभी आबाद नहीं होती ।

दोगला हिन्दू मैं उसको बोलता हूँ जो हर ज़रा सी बात पे ” अगले चुनाव में देख लूँगा “की धमकी देते हैं ।

वो जिनका कि ये favourite dialogue होता है ………. मोदी को ये नहीं भूलना चाहिए कि उनकी सरकार मेरे वोट से बनी है ……

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दोगला हारामी हिन्दू वो जो हर तीसरे दिन मोदी से नाराज हो के अगली बार वोट न देने की धमकी देता है ……
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अब आप अपना मूल्यांकन स्वयं कीजिये कि आप हिन्दू शेर हैं या दोगले हारामी हिन्दू ……..

अगली बार मोदी+योगी नही आए तो ये सारे सेक्युलर की खाल मे बेठे जेहादी मिल के तुम्हारा ऐसा हश्र करेगे की आने वाले कई सालो तक किसी दूसरे मोदी के दिल्ली तक पहुचने का सपना देखने मे भी डर लगेगा ।।।।

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मौत से पूर्व के लक्षण


मनु कुमार

मौत से पूर्व के लक्षण
(शिव पुराण से)

मृत्यु कैसी भी हो काल या अकाल, उसकी प्रक्रिया छह माह पूर्व ही शुरू हो जाती है। छह माह पहले ही मृत्यु को टाला जा सकता है, अंतिम तीन दिन पूर्व सिर्फ देवता या मनुष्य के पुण्य ही मृत्यु को टाल सकते हैं।

मौत का अहसास व्यक्ति को छह माह पूर्व ही हो जाता है। विकसित होने में 9 माह, लेकिन मिटने में 6 माह यानि 3 माह कम। भारतीय योग तो हजारों साल से कहता आया है कि मनुष्‍य के स्थूल शरीर में कोई भी बीमारी आने से पहले आपके सूक्ष्‍म शरीर में छ: माह पहले आ जाती है यानी छ: माह पहले अगर सूक्ष्म शरीर पर ही उसका इलाज कर दिया जाए तो बहुत-सी बीमारियों पर विजय पाई जा सकती है।

कहते हैं कि हिन्दू शास्त्रों के अनुसार जन्म-मृत्यु एक ऐसा चक्र है, जो अनवरत चलता रहता है। कहते हैं जिसने जन्म लिया है उसकी मृत्यु होना भी एक अटल सच्चाई है, लेकिन कई ऋषि- मुनियों ने इस सच्चाई को झूठला दिया है। वे मरना सीखकर हमेशा जिंदा रहने का राज जान गए और वे सैकड़ों वर्ष और कुछ तो हजारों वर्ष जीकर चले गए और कुछ तो आज तक जिंदा हैं। कहते हैं कि ऋषि वशिष्ठ सशरीर अंतरिक्ष में चले गए थे और उसके बाद आज तक नहीं लौटे। परशुराम, हनुमानजी, कृपाचार्य और अश्वत्थामा के आज भी जीवित होने की बात कही जाती है।

जरा-मृत्यु के विनाश के लिए ब्रह्मा आदि देवताओं ने सोम नामक अमृत का आविष्कार किया था। सोम या सुरा एक ऐसा रस था जिसके माध्यम से हर तरह की मृत्यु से बचा जा सकता था। इस पर अभी शोध होना बाकी है कि कौन से भोजन से किस तरह का भविष्य निकलता है।

👉 मृत्यु 18 प्रकार की
धन्वंतरि आदि आयुर्वेदाचार्यों ने अपने ग्रंथों में 100 प्रकार की मृत्यु का वर्णन किया है जिसमें 18 प्रमुख प्रकार हैं। उक्त सभी में एक ही काल मृत्यु है और शेष अकाल मृत्यु मानी गई है। काल मृत्यु का अर्थ कि जब शरीर अपनी आयु पूर्ण कर लेता है और अकाल मृत्यु का अर्थ कि किसी बीमारी, दुर्घटना, हत्या, आत्महत्या आदि से मर जाना। अकाल मृत्यु को रोकने के प्रयास ही आयुर्वेद निदान और चिकित्सा हैं। आयु के न्यूनाधिक्य की एक-एक माप धन्वंतरि ने बताई है।

👉 तंत्र ज्योतिष द्वारा मृत्यु पर विजय
आयुर्वेदानुसार इसके भी 3 भेद हैं- 1.: आदिदैविक, 2. आदिभौतिक और 3. आध्यात्मिक। आदिदैविक और आदिभौतिक मृत्यु योगों को तंत्र और ज्योतिष उपयोग द्वारा टाला जा सकता है, परंतु आध्यात्मिक मृत्यु के साथ किसी भी प्रकार की छेड़छाड़ नहीं की जा सकती। अत: मृत्यु के लक्षण चिन्हों के प्रकट होने पर ज्योतिषीय आकलन के पश्चात उचित निदान करना चाहिए। जब व्यक्ति की समयपूर्व मौत होने वाली होती है तो उसके क्या लक्षण हो सकते हैं। लक्षण जानकर मौत से बचने के उपाय खोजे जा सकते हैं। आयुर्वेद के अनुसार बहुत गंभीर से गंभीर बीमारी का इलाज बहुत ही छोटा, सरल और सुलभ होता है बशर्ते कि उसकी हमें जानकारी हो और समयपूर्व हम सतर्क हो जाएं।

👉 वेद पुराण व्याख्या
मृत्यु के बारे में वेद, योग, पुराण और आयुर्वेद में विस्तार से लिखा हुआ है। पुराणों में गरूड़ पुराण, शिव पुराण और ब्रह्म पुराण में मृत्यु के स्वभाव का उल्लेख मिलेगा। मृत्यु के बाद के जीवन का उल्लेख मिलेगा। परिवार के किसी भी सदस्य की मृत्यु के बाद घर में गीता और गरूड़ पुराण सुनने की प्रथा है, इससे मृतक आत्मा को शांति और सही ज्ञान मिलता है जिससे उसके आगे की गति में कोई रुकावट नहीं आती है। स्थूल शरीर को छोड़ने के बाद सच्चा ज्ञान ही लंबे सफर का रास्ता दिखाता है।

ध्यान रहे कि मृत्यु के पूर्वाभास से जुड़े लक्षणों को किसी भी लैब टेस्ट या क्लिनिकल परीक्षण से सिद्ध नहीं किया जा सकता बल्कि ये लक्षण केवल उस व्यक्ति को महसूस होते हैं जिसकी मृत्यु होने वाली होती है। मृत्यु के पूर्वाभास से जुड़े निम्नलिखित संकेत व्यक्ति को अपना अंत समय नजदीक होने का आभास करवाते हैं।

👉 मौत के लक्षण और पूर्वाभास
जब किसी नशा, रोग, अत्यधिक चिंता, अत्यधिक कार्य से भीतर के सभी स्नायु, नाड़ियां आदि कमजोर हो जाते हैं। यह उसी तरह है कि हम किसी इमारत के सबसे नीचे की मंजिल को खोद दें। ऐसे व्यक्ति की आंखों के सामने बार-बार अंधेरा छा जाता है। उठते समय, बैठते समय या सफर करते समय अचानक आंखों के सामने अंधेरा छा जाता है। यदि यह लक्षण दो-तीन सप्ताह तक बना रहे तो तुरंत ही योग, आयुर्वेद और ध्यान की शरण में जाना चाहिए या किसी अच्छे डॉक्टर से सलाह लें।

* माना यह भी जाता है कि इस अंधेरा छा जाने वाले रोग के कारण उस चांद में भी दरार जैसा नजर आता है। यह उस लगता है कि चांद दो टुकड़ों में है, जबकि ऐसा कुछ नहीं होता।

* आंखों की कमजोरी से संबंधित ही एक लक्षण यह भी है कि व्यक्ति को दर्पण में अपना चेहरा न दिखकर किसी और का चेहरा होने का भ्रम होने लगता है।

* जब कोई व्यक्ति चंद्र, सूर्य या आग से उत्पन्न होने वाली रोशनी को भी नहीं देख पाता है तो ऐसा इंसान भी कुछ माह और जीवित रहेगा, ऐसी संभावनाएं रहती हैं।

* जब कोई व्यक्ति पानी में, तेल में, दर्पण में अपनी परछाई न देख पाए या परछाई विकृत दिखाई देने लगे तो ऐसा इंसान मात्र छह माह का जीवन और जीता है।

* जिन लोगों की मृत्यु एक माह शेष रहती है वे अपनी छाया को भी स्वयं से अलग देखने लगते हैं। कुछ लोगों को तो अपनी छाया का सिर भी दिखाई नहीं देता है।

* आयुर्वेदानुसार मृत्यु से पहले मानव शरीर से अजीब-सी गंध आने लगती है। इसे मृत्यु गंध कहा जाता है। यह किसी रोगादि, हृदयाघात, मस्तिष्काघात आदि के कारण उत्पन्न होती है। यह गंध किसी मुर्दे की गंध की तरह ही होती है। बहुत समय तक किसी अंदरुनी रोग को टालते रहने का परिणाम यह होता है कि भीतर से शरीर लगभग मर चुका होता है।

मरते वक्त मानव शरीर से एक खास किस्म की बू निकलती है। इसे मौत की बू कहा जा सकता है। मगर मौत की इस बू का अहसास दूसरे लोगों को नहीं होता। इसे सूंघने वाली खास किस्म की कृत्रिम नाक यानी उपकरण को विकसित करने के लिए इटली के वैज्ञानिक प्रयासरत हैं। शरीर विज्ञानी गियोबन्नी क्रिस्टली का कहना है कि मौत की गंध का अस्तित्व तो निश्चित रूप से है। जब कोई व्यक्ति मरता है, तो उसका भावनात्मक शरीर कुछ क्षणों तक जीवित रहता है, जो खास तरह की गंध को उत्सर्जित करता है।

👉 पालतू जानवर द्वारा चेतावनी
वैज्ञानिकों का मानना है कि कुछ जानवर, खासकर कुत्ते और बिल्लियां अपनी प्रबल घ्राण शक्ति के बल पर मौत की इस गंध को सूंघने में समर्थ होते हैं, लेकिन सामान्य मनुष्यों को इसका पता नहीं चल पाता। मृत्यु गंध का आभास होने पर ये जानवर अलग तरह की आवाज निकालते हैं। भारत यूं ही नहीं कुत्ते या बिल्ली का रोने को मौत से जोड़ता है।
श्वास लेने और छोड़ने की गति भी तय करती है मनुष्य का जीवन। प्राणायाम करते रहने से सभी तरह के रोगों से बचा जा सकता है।

*जिस व्यक्ति का श्वास अत्यंत लघु चल रहा हो तथा उसे कैसे भी शांति न मिल रही हो तो उसका बचना मुश्किल है। नासिका के स्वर अव्यवस्थित हो जाने का लक्षण अमूमन मृत्यु के 2-3 दिनों पूर्व प्रकट होता है।

*कहते हैं कि जो व्यक्ति की सिर्फ दाहिनी नासिका से ही एक दिन और रात निरंतर श्वास ले रहा है (सर्दी-जुकाम को छोड़कर) तो यह किसी गंभीर रोग के घर करने की सूचना है। यदि इस पर वह ध्यान नहीं देता है तो तीन वर्ष में उसकी मौत तय है।

*जिसकी दक्षिण श्वास लगातार दो-तीन दिन चलती रहे तो ऐसे व्यक्ति को संसार में एक वर्ष का मेहमान मानना चाहिए। यदि दोनों नासिका छिद्र 10 दिन तक निरंतर ऊर्ध्व श्‍वास के साथ चलते रहें तो मनुष्य तीन दिन तक ही जीवित रहता है। यदि श्‍वास वायु नासिका के दोनों छिद्रों को छोड़कर मुख से चलने लगे तो दो दिन के पहले ही उसकी मृत्यु जानना चाहिए।

*जिसके मल, मूत्र और वीर्य एवं छींक एकसाथ ही गिरते हैं उसकी आयु केवल एक वर्ष ही शेष है, ऐसा समझना चाहिए।

*जिसके वीर्य, नख और नेत्रों का कोना यह सब यदि नीले या काले रंग के हो जाएं तो मनुष्य का जीवन छह से एक वर्ष के बीच समाप्त हो जाता है।

*जब किसी व्यक्ति का शरीर अचानक पीला या सफेद पड़ जाए और ऊपर से कुछ लाल दिखाई देने लगे तो समझ लेना चाहिए कि उस इंसान की मृत्यु छह माह में होने वाली है।

*जो व्यक्ति अकस्मात ही नीले-पीले आदि रंगों को तथा कड़वे-खट्टे आदि रसों को विपरीत रूप में देखने-चखने का अनुभव करने लगता हैं वह छह माह में ही मौत के मुंह में समा जाएगा।

* जब किसी व्यक्ति का मुंह, जीभ, कान, आंखें, नाक स्तब्ध हो जाएं यानी पथरा जाए तो ऐसे माना जाता है कि ऐसे इंसान की मौत का समय भी लगभग छह माह बाद आने वाला है।

* जिस इंसान की जीभ अचानक से फूल जाए, दांतों से मवाद निकलने लगे और सेहत बहुत ज्यादा खराब होने लगे तो मान लीजिए कि उस व्यक्ति का जीवन मात्र छह माह शेष है।

* यदि रोगी के उदर पर सांवली, तांबे के रंग की, लाल, नीली, हल्दी के तरह की रेखाएं उभर जाएं तो रोगी का जीवन खतरे में है, ऐसा बताया गया है।

* यदि व्यक्ति अपने केश एवं रोम को पकड़कर खींचे और वे उखड़ जाएं तथा उसे वेदना न हो तो रोगी की आयु पूर्ण हो गई है, ऐसा मानना चाहिए।

* हाथ से कान बंद करने पर किसी भी प्रकार की आवाज सुनाई न दे और अचानक ही मोटा शरीर दुबला और दुबला शरीर मोटा हो जाए तो एक माह में मृत्यु हो जाती है। सामान्य तौर पर व्यक्ति जब आप अपने कान पर हाथ रखते हैं तो उन्हें कुछ आवाज सुनाई देती है लेकिन जिस व्यक्ति का अंत समय निकट होता है उसे किसी भी प्रकार की आवाजें सुनाई देनी बंद हो जाती हैं।

मौत के ठीक तीन-चार दिन पहले से ही व्यक्ति को हर समय ऐसा लगता है कि उसके आसपास कोई है। उसे अपने साथ किसी साए के रहने का आभास होता रहता है। यह भी हो सकता है कि व्यक्ति को अपने मृत पूर्वजों के साथ रहने का अहसास होता हो। यह अहसास ही मौत की सूचना है।

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पूजा-घर बनाते वक्त विशेष ध्यान रखे इन 11 बातों का |


पूजा-घर बनाते वक्त विशेष ध्यान रखे इन 11 बातों का |

Pooja Ghar Vastu Upay :

“वास्तु के अनुसार बनाया गया पूजा घर या घर में रखा मंदिर, पूरे दिन के तनाव और चिंता को कुछ ही समय में शांत कर सकता है क्योकि भागदौड़ से भरे इस तनावपूर्ण जीवन में पूजा-पाठ का अहम स्थान है जो हमारे अंदर नई ऊर्जा भी भर देता है। लिहाजा पूजा घर बनवाते वक्त वास्तु के अनुसार कुछ बातों का ध्यान रखना आवश्यक है”

 

  • नियम 1 :“पूजा घर के लिये ईशान (उत्तर-पूर्व) दिशा सबसे उपयुक्त मानी गयी है। यह दिशा उत्तर व पूर्व दोनों शुभ दिशाओं से युक्त है। घर में पूजा घर ईशान दिशा में बनाने से सुख-समृद्धि और शांति की वृद्धि होती है।”

 

  • नियम 2 :“पूजा घर के ऊपर या नीचे टॉयलेट नहीं होना चाहिए। और यदि संभव हो तो पूजा घर से सटा हुआ भी नहीं होना चाहिए।”

 

  • नियम 3 :“गणेश जी की प्रतिमा पूर्व या पश्चिम दिशा में न रखकर दक्षिण दिशा में रखें।”

 

  • नियम 4 :“हनुमान जी की तस्वीर या मूर्ति उत्तर दिशा में स्थापित करें ताकि उनका मुख दक्षिण दिशा की ओर रहे। अन्य देवी-देवताओं के साथ भगवान शिव की तस्वीर या मूर्ति रख सकते हैं।”

 

  • नियम 5 :“पूजा घर में अपने बुजुर्गो की फोटो कभी नहीं रखनी चाहिए और ऐसे संत जिनसे आपने दीक्षा धारण नहीं की है उनकी भी फोटो नहीं रखनी चाहिए |”

 

  • नियम 6 :“पूजाघर की दीवारों का रंग सफेद या हल्का पीला बेहतर रहता है। पूजाघर में सम्भव हो तो उत्तर या पूर्व की ओर खिड़की अवश्य रखें। दरवाजा भी इसी दिशा में हो तो और अच्छा है।”
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घर के मंदिर में ना करें ये 10 गलतियां, होता है अशुभ!


घर के मंदिर में ना करें ये 10 गलतियां, होता है अशुभ!

 

सभी घरों में देवी-देवताओं के लिए एक अलग स्थान होता है। कुछ घरों में छोटे-छोटे मंदिर बनवाए जाते हैं। लेकिन हम जानकारी के अभाव में मंदिर में कुछ ऐसी गलतियां कर देते हैं, जो कि अशुभ होती है। आज हम आपको कुछ ऐसी बातें बता रहे हैं, जो कि घर के मंदिरों में नहीं की जानी चाहिए।

 

घर के मंदिर में सभी श्री गणेश की मूर्तियां तो रखते हैं, लेकिन पूजा घर में कभी भी गणेश जी की 3 प्रतिमाएं नहीं होना चाहिए। कहा जाता है कि ऐसा होने सही नहीं होता है।

 

आप अपने घर के मंदिर में पूजा करने के लिए शंख तो रखते ही होंगे, लेकिन कभी आपके घर में दो शंख तो नहीं है। अगर मंदिर में दो शंख है तो आप उनमे से एक शंख हटा दें।

 

घर के मंदिर में ज्यादा बड़ी मूर्तियां नहीं रखनी चाहिए। बताया जाता है कि यदि हम मंदिर में शिवलिंग रखना चाहते हैं तो शिवलिंग हमारे अंगूठे के आकार से बड़ा नहीं होना चाहिए। शिवलिंग बहुत संवेदनशील होता है और इसी वजह से घर के मंदिर में छोटा-सा शिवलिंग रखना शुभ होता है।

 

शास्त्रों के अनुसार खंडित मूर्तियों की पूजा वर्जित है। जो भी मूर्ति खंडित हो जाती है, उसे पूजा के स्थल से हटा देना चाहिए और किसी पवित्र बहती नदी में प्रवाहित कर देना चाहिए। खंडित मूर्तियों की पूजा अशुभ मानी गई है।

 

पूजन करते वक्त ये भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि पूजा के बीच में दीपक बुझना नहीं चाहिए। ऐसा होने पर पूजा का पूर्ण फल प्राप्त नहीं हो पाता है।

 

घर में जिस स्थान पर मंदिर है, वहां चमड़े से बनी चीजें, जूते-चप्पल नहीं ले जाना चाहिए। मंदिर में मृतकों और पूर्वजों के चित्र भी नहीं लगाना चाहिए। पूर्वजों के चित्र लगाने के लिए दक्षिण दिशा क्षेत्र रहती है। घर में दक्षिण दिशा की दीवार पर मृतकों के चित्र लगाए जा सकते हैं, लेकिन मंदिर में नहीं रखना चाहिए।

 

पूजा के मंदिर देवी-देवताओं को हार-फूल, पत्तियां आदि कभी भी बिना धोएं अर्पित ना करें। ये चीजें अर्पित करने से पहले एक बार साफ पानी से अवश्य धो लेना चाहिए।

 

घर में पूजन स्थल के ऊपर कोई कबाड़ या भारी चीज न रखें। भगवान का मंदिर ऊपर से खाली होना चाहिए, साथ ही मंदिर पर गुंबद होना चाहिए।

 

पूजन में कभी भी खंडित दीपक नहीं जलाना चाहिए। धार्मिक कार्यों में खंडित सामग्री शुभ नहीं मानी जाती है। घी के दीपक के लिए सफेद रुई की बत्ती उपयोग किया जाना चाहिए। जबकि तेल के दीपक के लिए लाल धागे की बत्ती श्रेष्ठ बताई गई है।

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नेहरु-गाँधी परिवार के काले कारनामों की लिस्ट ज्यादा लम्बी है या उनके अवैध संबंधों की ?(देखे पूरा विडियो)


नेहरु-गाँधी परिवार के काले कारनामों की लिस्ट ज्यादा लम्बी है या उनके अवैध संबंधों की ?(देखे पूरा विडियो) BBC Bharat अगर अभी भी आपको यकीन नहीं हुआ है तो ये वीडियो आपकी आँख खोल देगा… वीडियो देखने के लिए क्लिक करें…

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श्रीरामरक्षास्तोत्रम् ।


श्रीरामरक्षास्तोत्रम् ।। अस्य श्रीरामरक्षास्तोत्रमंत्रस्य, बुधकौशिक ऋषिः श्रीसीतारामचंद्रो देवता, अनुष्टुप् छंदः सीता शक्तिः श्रीमद् हनुमान कीलकम् श्रीरामचंद्रप्रीत्यर्थे रामरक्षास्तोत्रजपे विनियोगः ।। अथ ध्यानम् ।। ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्धपद्मासनस्थम् ।। पीतं वासो वसानं नवकमलदलस्पर्धिनेत्रं प्रसन्नम् ।। वामांकारूढ सीतामुखकमलमिलल्लोचनं नीरदाभम् ।। नानालंकारदीप्तं दधतमुरुजटामंडनं रामचंद्रम् ।। अथ श्री रामरक्षा स्तोत्रम् ।। चरितं रघुनाथस्य शतकोटि प्रविस्तरम् ।। एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम् ।। १ […]

via श्रीरामरक्षास्तोत्रम् — शिव गोरख