भगवान श्रीराम, जानकी व लखनलाल जी सरजू मैया को पार करने के लिए केवट को बुलवाकर सरजू नदी पार करने की इच्छा प्रकट की तो भोले केवट ने भगवान से अपनी नौका में बिठाने लाने से साफ इंकार कर दिया। केवट कहने लगा कि प्रभु में गरीब मल्लाह इस नौका से मेरा परिवार का भरण पोषण करता हुंं। मेनें सूना है कि आपके चरण कमल की रज मात्र से एक पत्थर की शीता एक नारी में बदल गयी यदि नौका नारी बन गयी तो मेरे परिवार का क्या होगा। इसलिए आपके चरण प्राक्षलन करने के बाद ही आपको सरजू नदी पार करवा सकता हुं। केवट की इस शर्त को रघुकुलशिरोमणी भगवान राम ने सहर्ष स्वीकार कर लिया। इसके पश्चात केवट ने काठ के कठौते में भगवान श्रीराम, जानकी व लखन लालजी के चरण कमल को सरजू के पवित्र जल से प्रेम भाव से धोकर उसका चरणामृत का अपने पूरे परिवार को प्रसाद दिया। इसके बाद जब सरजू पार करवायी तो भगवान केवट को उतरायी देने लगे तो केवट ने बड़ी मार्मिक बात की तो भगवान में सोचने पर विवश हो गये कि जिस वेâवट को जितना भोला समझ रहे थे वह कितना चतुर है। केवट बोला प्रभु एक ही काम करने वाले एक ही जाति के दो लोग आपस में लेन देन नहीं किया करते। मैं आपस से उतराई नर्र्ही लेकर कहां रखुंगा। इस बार आप आए हो हमरे घाट जब हम आवेंगे तोरे घाट तो नाथ तुम हमको पार उतार देना। इतना सुनते ही भगवान राम ने उनके सिर पर हाथ धर कर आशीर्वाद दे दिया। केवट की आंखों में अश्रुधार बहने लगी। इसके बाद भरत लाल जी अपने बड़े भैया श्रीराम से गले मिले और राम को महाराज दशरथ के देवलोक गमन का पता चला तो भगवान राम भरत से गले लगकर अश्रुधारा बहाने लगे। भरतलाल ने राम को अयोध्या चलने की लाख कोशिश की लेकिन पिता की आन के आगे भरत लालजी को चरण पाटुका लेकर अयोध्या लौटना पड़ा।
केवट रामायण का एक पात्र है जिसने वनगमन के समय राम, सीता और लक्ष्मण को अपने नाव में बिठा कर गंगा पार करवाया था। इस कथा का वर्णन रामायण के अयोध्याकाण्ड में किया गया है। केवट भोईवंश का था। केवट श्री रामचन्द्र का अनन्य भक्त था। कहा जाता है कि श्रृष्टि के आरम्भ में जब सम्पूर्ण जगत जलमग्न था केवट का जन्म कछुवे की योनि में हुआ। उस योनि में भी उसका भगवान के प्रति अत्यधिक प्रेम था। अपने मोक्ष के लिये उसने शेष शैया पर शयन करते हुये भगवान विष्णु के अँगूठे का स्पर्श करने का असफल प्रयास किया था। उसके बाद एक युग से भी अधिक काल तक अनेक जन्म लेकर उसने भगवान की तपस्या की और अन्त में त्रेता युग में केवट के रूप में जन्म लेकर भगवान विष्णु, जो कि राम के रूप में अवतरित हुये थे।
मांगी नाव न केवटु आना।
कहइ तुम्हार मरमु मैं जाना ।।
चरन कमल रज कहुं सबु कहई।
मानुष करनि मूरी कछु अहई ।।
छुअत सिला भइ नारि सुहाई ।
पाहन तें न काठ कठिनाई ।।
तरनिउ मुनि घरिनी होइ जाई ।
बाट परइ मोरि नाव उड़ाई ।।
एहिं प्रतिपालऊँ सबु परिवारु ।
नहिं जानऊँ कछु अउर कबारू ।।
जौं प्रभु पार अवसि गा चहहू ।
मोहि पद पदुम पखारन कहहू ।।