Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

A young girl and her father were walking along a forest path.


What a beautiful message…!

A young girl and her father were walking along a forest path.
At some point, they came across a large tree branch on the ground in front of them.

The girl asked her father, “If I try, do you think I could move that branch?”
Her father replied, “I am sure you can, if you use all your strength.”

The girl tried her best to lift or push the branch, but she was not strong enough and she couldn’t move it.

She said, with disappointment, “You were wrong, dad. I can’t move it.”

“Try again with all your strength,” replied her father.

Again, the girl tried hard to push the branch. She struggled but it did not move.

“Dad, I cannot do it,” said the girl.

Finally her father said, “Young lady, I advised you to use ‘all your strength’. You didn’t ask for my help.

~
Moral :
Our real strength lies not in independence, but in interdependence.
*No individual person has all the strengths, all the resources and all the stamina required for the complete blossoming of their vision.*hi

To ask for help and support when we need it is not a sign of weakness, it is a sign of wisdom.

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मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड मुसलमानों द्वारा नहीं बल्कि इंदिरा गांधी द्वारा स्थापित किया गया था


मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड मुसलमानों द्वारा नहीं बल्कि इंदिरा गांधी द्वारा स्थापित किया गया था
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड मुसलमानों द्वारा नहीं बल्कि इंदिरा गांधी द्वारा स्थापित किया गया था
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आपने मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का नाम तो सुना होगा, ट्रिपल तलाक इत्यादि के मौके पार इसका नाम कई बार टीवी पर आया, मीडिया में आया
असल में मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड एक NGO है जिसका मुख्य दफ्तर दिल्ली में है
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड आज हमारी संसद और यहाँ तक की सुप्रीम कोर्ट को भी कई मौकों पर धमकी देता है
भारत के खिलाफ जंग की धमकी, जिहाद की धमकी, हिंसा की धमकी इत्यादि
[Image: Image result for muslim personal law board]
और अब जो हम आपको इस संस्था के बारे में बताने जा रहे है, कदाचित आपको ये जानकारियां कहीं मिले ही न, ये संगठन कब बना किसने बनाया
वैसे आपके मन में आता होगा की चूँकि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड है तो इसे मुसलमानो ने ही बनाया होगा
पर अब जानिए इसकी सच्चाई
* 1971 आते आते इंदिरा गाँधी की लोकप्रियता बहुत घटने लगी थी, 1975 में इंदिरा गाँधी ने आपातकाल भी लगाया था, इंदिरा गाँधी को ये देश जैसे विरासत में जवाहर लाल नेहरू से मिला था
इंदिरा इसे अपनी जागीर समझती थी, घटती लोकप्रियता, और विपक्ष की बढ़ती लोकप्रियता से परेशान होकर, इंदिरा गाँधी ने सेक्युलर भारत में मुसलमानो के तुष्टिकरण के लिए
स्वयं मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की 1971 में स्थापना की
* मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के लिए इंदिरा गाँधी के विशेष नियम भी बनाया, इस संस्था का आज तक कभी ऑडिट नहीं हुआ है, जबकि अन्य NGO का होता है पर इसे विशेष छूट मिली हुई है
ये अरब के देशों से कितना पैसा पाती है, उस पैसे का क्या करती है, किसी को कुछ नहीं पता
* 91% मुस्लिम महिलाएं ट्रिपल तलाक के खिलाफ है फिर भी मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड सुप्रीम कोर्ट को हिंसा तक की धमकी देता  है,आपको जानकर आश्चर्य होगा की 95% मुसलमान महिलाओ को तो ये भी नहीं पता की मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड असल में है क्या
* इस NGO में केवल कट्टरपंथी मुस्लिम ही है,  नरेंद्र मोदी के सर पर फतवा देने वाला इमाम बरकाती भी इस NGO का  सदस्य है,  जिहादी किस्म के ही लोग इस संस्था में हैं, इस संस्था में 1 भी महिला नहीं है
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड मुसलमानो का नहीं बल्कि इंदिरा गाँधी का बनाया हुआ है
वैसे आपको एक जानकारी दे दें, की 1930 में मुस्लिम लीग को पाकिस्तान बनाने का आईडिया मुसलमानो ने नहीं बल्कि मोतीलाल नेहरू ने दिया था
इस परिवार ने भारत का इतना नाश किया है की, आज भारत की 99% समस्या इनके कारण ही है
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जल्लीकट्टू बैन, दही हाँडी बैन


जल्लीकट्टू बैन, दही हाँडी बैन
डांडिया १० बजे के बाद बंद, काँवड में डी जे बंद
होली में पानी की बर्बादी, दिवाली पर ध्वनि और वायु प्रदूषण और पटाखे रात १० बजे के बाद बैन
हम हिंदुस्तान में हैं या पाकिस्तान में ?
मी लाड बतायें??
बकरीद की कुर्बानी क्रूरता नहीं ?
मुहरर्म में नाबालिगों का खून खराबा हिंसा नहीं ?
गौ हत्या हिंसा नहीं ?
मस्जिद में लाऊड स्पीकर ध्वनि प्रदूषण नहीं ?
हम हिंदुस्तान में हैं या पाकिस्तान में ?
मी लाड बतायें??
हमारे देश में सेकुलरिज्म का क्या हाल है, ये आपको अभी 2 मिनट में समझ में आ जायेगा
अक्सर आपने सुना होगा की, “भारत में कानून सबके लिए बराबर है, कानून किसी से पक्षपात नहीं करता”
सुना है न आपने ये डायलॉग ?
अब आप देखिये की किस तरह ये डायलॉग सिर्फ एक झूठ है, और एक घिनोना झूठ है
जलीकट्टू एक 5000 साल पुराना खेल है, इस खेल में सांढ़ की प्रजाति को बचाया जाता है, ये खेल मानव नंगे हाथो से खेलता है, जानवर को कोई नुक्सान नहीं पहुँचाया जाता
न ही किसी जानवर की हत्या की जाती है, या किसी भी हथियार से जानवर को नुक्सान पहुँचाया जाता है
एक विदेशी NGO है जिसका नाम है PETA
मनमोहन सिंह की सरकार के दौरान PETA ने सुप्रीम कोर्ट में जलीकट्टू को बंद करने की याचिका डाली, और याचिका में जलीकट्टू को जीव के प्रति पअत्याचार बताया
तुरंत सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर सुनवाई की, और देखते ही देखते जलीकट्टू पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी
दही हांड़ी हो, कांवड़ यात्रा हो, डांडिया हो, दीपावली हो, होली हो, किसी पर भी सुप्रीम कोर्ट में कोई याचिका आती है, तुरंत कारवाही होती है, बैन और नियम बना दिए जाते है
अभी पिछले साल आपने बकरीद भी देखि, और हर साल आप बकरीद देखते है
बकरीद अधिक से अधिक 1400 साल ही पुराना है, क्योंकि इस्लाम खुद केवल 1400 साल ही पुराना है
हर साल बकरीद पर जानवरों के साथ, 100 नहीं 200 नहीं, बल्कि करोडो जानवरो के साथ इस बकरीद पर क्या किया जाता है, वो आप सब जानते है, पिछले साल तो ऐसा तांडव मचाया गया की
बांग्लादेश मे तो सड़कें ही खून से लाल हो गयी
बकरीद पर जानवरो के कत्लेआम को रोकने के लिए भारत की सुप्रीम कोर्ट में कई लोग, कई वकील याचिका लगा चुके है, पिछले साल भी बकरीद पर जानवरो के क़त्ल को रोकने के लिए दिल्ली के एक वकील ने याचिका लगाई, पर आज तक इन याचिकाओं पर सुनवाई तक नहीं
जलीकट्टू पर याचिका आती है, तो तुरंत सुनवाई हो जाती है, और हिन्दुओ के इस अहिंसात्मक त्यौहार को तुरंत रोक दिया जाता है, बकरीद पर जो सुप्रीम कोर्ट में याचिका पहुँचती है, उसकी सुनवाई तक नहीं होती
मि लार्ड, जलीकट्टू जीव के प्रति अत्याचार है, तो बकरीद क्या है
क्या वो भाईचारे और शांति का त्यौहार है, अब कैसे कहा जाये की इस देश में कानून सबके लिए एक है, और किसी से भेदभाव नहीं किया जाता, ये झूठ कबतक चलेगा

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हल्दीघाटी का युद्ध


21 जून, 1576 ई. “हल्दीघाटी का युद्ध” में एक ऐसी वीरांगना लड़ी थी जिनकी प्रशंसा स्वयं भारत सम्राट महाराणा प्रताप ने किया था जिनके प्रहार से अकबर की सेना में उथलपुथल मच गयी थी रणचंडी बन मलेच्छों का संघार कर रही थी वैसे तो इतिहास रचनेवाली २२,००० वीरपुत्री जन्म ली थी जिन्होंने मलेच्छों को खदेर था और विश्व पर राज करनेवाली ६ सम्रागी जन्म ली थी और कई हजारो रानिय ऐसी थी जिन्होंने अपने पति के साथ रणभूमि में क्षत्राणी धर्म की पालन की थी पर आज यह सब इतिहास से विलुप्त कर दिए गये हैं ।

ऐसी एक महारानी थी कोशीथल जिन्हें इतिहास में कोई स्थान नहीं मिला ।

“रक्त तलाई”
हल्दीघाटी युद्ध में महाराणा प्रताप की तरफ से 150 प्रमुख योद्धाओं सहित बहुत से वीर सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए इस युद्ध में 150 खास मुगल सिपहसालार और 350 कछवाहा सिपहसालार हजारों सैनिकों सहित मारे गए हल्दीघाटी युद्ध के तुरन्त बाद बारिश हुई, जिससे दोनों तरफ के हजारों सैनिकों के रक्त ने खमनौर गांव में एक छोटी तलाई का रुप ले लिया, जिसे आज रक्त तलाई के नाम से जाना जाता है । वर्तमान में रक्त तलाई को एक गार्डन के रुप में विकसित किया हुआ है, जहां झाला मान, रामशाह तोमर, शालिवाहन तोमर की छतरियां, सती माता का स्थान व हाकिम खां सूर की मजार है ।

“कोशीथल महारानी की बहादुरी”-:
हल्दीघाटी युद्ध से कुछ समय पहले मेवाड़ के कोशीथल ठिकाने के सामन्त का देहान्त हुआ । हल्दीघाटी युद्ध के समय कोशीथल के स्वर्गीय सामन्त के पुत्र छोटे थे, इसलिए युद्ध में भाग नहीं ले सकते थे । ऐसी परिस्थिति में कोशीथल की महारानी ने युद्ध के लिए ज़िरहबख्तर पहने और इस तरह बहादुरी दिखाई कि खुद मेवाड़ के योद्धा भी उनको पहचान नहीं पाए |

युद्ध के बाद जब महाराणा प्रताप घायल अवस्था में उपचार करवाने गाँव कालोड़ा में पहुंचे, तो वहां उन्होंने घायल सैनिकों की मदद करती हुई सैनिक वेश में एक स्त्री देखी | महाराणा प्रताप को जब कोशीथल महारानी के युद्ध में भाग लेने की बात पता चली तो उन्होंने महारानी की वीरता की काफी प्रशंसा की | कोशीथल महारानी ने एक छोटी टुकड़ी के साथ अकबर के सेनापति मुल्तान खान के सेना की टुकड़ी पर हमला किया था मुल्तान खान पराजय हुआ यान नही इसमें कई इतिहासकारों के भिन्न मत हैं “मुल्तान खान अपनी सेना को ख़तम होते हुए देख शाही सैन्य शिविर में भाग आये थे परन्तु दो दिन बाद फिर हल्दीघाटी के युद्ध में वापसी किये थे ।

महाराणा प्रताप ने कोशीथल महारानी से कहा कि “आप क्या पारितोषिक प्राप्त करना चाहेंगी” महारानी की इच्छानुसार महाराणा प्रताप ने उनको एक कलंगी प्रदान की, जो ‘हूंकार की कलंगी’ के नाम से जानी जाती है | इस घटना के कई वर्षों बाद तक कोशीथल ठिकाने के ठाकुर इस कलंगी को अपनी पगड़ी पर लगाकर दरबार में आते रहे |

(हूंकार नाम का एक पक्षी होता है, जिसके पंखों की कलंगी अपना महत्व रखती है)

“हल्दीघाटी युद्ध के परिणाम”

हल्दीघाटी के युद्ध में अनिर्णायक युद्ध हैं , खुद मुगल लेखकों ने भी लिखा है कि बादशाही फौज की विजय नाम मात्र की थी

जब मुगल फौज कोई युद्ध जीत जाती थी, तो उस हारे हुए प्रदेश को लूट लिया करती, परन्तु हल्दीघाटी विजय से मुगलों को सिवाय रामप्रसाद हाथी के कुछ हाथ न लगा

यहां तक की हल्दीघाटी युद्ध के तुरन्त बाद मुगलों को महाराणा का इतना खौफ था कि उन्होंने महाराणा प्रताप का पीछा तक नहीं किया

अबुल फजल ने हल्दीघाटी युद्ध के वर्णन में शुरुआत में ही लिखा था कि ‘इस जंग का मकसद राणा और उसके मुल्क को जड़ समेत उखाड़ना था’

मुगल ना तो मेवाड़ प्रदेश में लूटमार कर पाए और ना ही महाराणा प्रताप को मार पाए

यकिनन इस युद्ध में महाराणा प्रताप की तरफ से बहुत से नामी योद्धाओं ने अपने बलिदान दिए, परन्तु मेवाड़ इस वक्त सदी के सबसे महान योद्धा के नेतृत्व में था

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रूपये का इतिहास


रूपये का इतिहास
जरूर पढे
प्राचीन भारतीय मुद्रा प्रणाली*
फूटी कौड़ी (Phootie Cowrie) से कौड़ी,
कौड़ी से दमड़ी (Damri),
दमड़ी से धेला (Dhela),
धेला से पाई (Pie),
पाई से पैसा (Paisa),
पैसा से आना (Aana),
आना से रुपया (Rupya) बना।
256 दमड़ी = 192 पाई = 128 धेला = 64 पैसा (old) = 16 आना = 1 रुपया

1) 3 फूटी कौड़ी – 1 कौड़ी
2) 10 कौड़ी – 1 दमड़ी
3) 2 दमड़ी – 1 धेला
4) 1.5 पाई – 1 धेला
5) 3 पाई – 1 पैसा ( पुराना)
6) 4 पैसा – 1 आना
7) 16 आना – 1 रुपया

प्राचीन मुद्रा की इन्हीं इकाइयों ने हमारी बोल-चाल की भाषा को कई कहावतें दी हैं, जो पहले की तरह अब भी प्रचलित हैं। देखिए :
●एक ‘फूटी कौड़ी’ भी नहीं दूंगा।
●’धेले’ का काम नहीं करती हमारी बहू !
●चमड़ी जाये पर ‘दमड़ी’ न जाये।
●’पाई-पाई’ का हिसाब रखना।
●सोलह ‘आने’ सच

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એકભાઇ નિયમિત રીતે સત્સંગમાં જતા.


એકભાઇ નિયમિત રીતે સત્સંગમાં જતા.
રોજ 30 મિનિટ સત્સંગ માટે કાઢે. સત્સંગમાં થતી જુદી-જુદી વાતો એકાગ્ર ચિતે સાંભળે.
એમના મિત્રને આ પસંદ નહોતું. મિત્ર એવુ માનતો હતો કે આ બધુ સમયની બરબાદી છે. ઘણીવખત એ આ બાબતે પોતાની નારાજગી પણ દર્શાવતો.
એકદિવસ બંને મિત્રો ફરવા માટે નીકળ્યા. રસ્તામાં આ સત્સંગની વાત નીકળી.
જે મિત્રને આ બધુ બકવાસ લાગતુ હતું એમણે પોતાના મિત્રને પુછ્યુ, ” જ્યાં સુધી હું જાણું છું ત્યાં સુધી તું છેલ્લા 10 વર્ષથી નિયમિત સત્સંગ સભાઓમાં જાય છે અને 3000થી વધુ સત્સંગ સભાઓ ભરી છે
આ બધી સત્સંગ સભાઓમાં જે વાતો થતી તેમાંથી તને કેટલી યાદ છે ?
” મિત્રએ તો તુંરત જવાબ આપ્યો, ” મને એમાનું કંઇ જ યાદ નથી.
” જવાબ સાંભળીને પ્રશ્ન પુછનાર મિત્ર ખુબ હસ્યો અને કહ્યુ , ” તને કંઇ જ યાદ નથી તો પછી આ સત્સંગમાં જઇને તે કર્યુ શું? ”
સત્સંગી મિત્રએ પોતાના મિત્રને કહ્યુ, ” ભાઇ હું તને તારા પ્રશ્નનો જવાબ આપુ એ પહેલા મને એક પ્રશ્નનો જવાબ આપ જેથી તેના આધારે હું તને જવાબ આપી શકુ.
” મિત્રએ સંમતિ આપતા જ પ્રશ્ન પુછ્યો , ” તારા લગ્નને કેટલો સમય થયો ? ”
પેલાએ કહ્યુ, ” મારા લગ્નને પણ 10 વર્ષ જ થયા છે.”
સત્સંગી મિત્રએ વાતને આગળ વધારતા કહ્યુ , ” હવે મને એ કહે કે આ 10 વર્ષમાં ભાભીએ તને ભાત-ભાતની અને જાત-જાતની રસોઇ કરીને જમાડી છે એમાથી કેટલી યાદ છે ?
” પેલાએ જવાબ આપ્યો , ” તું પણ ગાંડા જેવો છે એલા રસોઇ થોડી યાદ રહે એ તો ખાઇએ એટલે શરિરને પોષણ મળે. શારિરિક તંદુરસ્તી માટે જમવાનું હોય એ યાદ રહે કે ન રહે તેનાથી શું ફેર પડે?”
સત્સંગી મિત્રએ કહ્યુ , ” દોસ્ત તારા લગ્ન પછી ભાભીએ બનાવેલી રસોઇ અને તારા લગ્ન પહેલા તારી મમ્મીએ બનાવેલી રસોઇથી જેમ તારા શરિરને પોષણ મળે છે
તેમ સત્સંગમાં થતી વાતો મારા આત્મા ને પોષણ આપે છે અને એ વિચારોથી મારુ મન મજબુત બને છે. વાતો યાદ રહી કે ન રહી તે મહત્વનું નથી.”
મિત્રો, શરિરના પોષણ માટે નિયમિત ખોરાક લેવો જરૂરી છે તેવી જ રીતે આત્માના પોષણ માટે નિયમિત સારી વ્યક્તિ કે વિચારોનો સંગ પણ જરૂરી છે. આપણને ભલે એ વિચારો યાદ ન રહે પણ એ વિચારો મનને કેળવવાનું કામ ચોક્કસ કરે છે.

Posted in भारतीय उत्सव - Bhartiya Utsav

जल्लीकट्टू


जल्लीकट्टू, तमिलनाडु के ग्रामीण इलाक़ों का एक परंपरागत खेल है जो फसलों की कटाई के अवसर पर पोंगल के त्यौहार पर आयोजित कराया जाता है और जिसमे बैलों से इंसानों की लड़ाई कराई जाती है. इसे तमिलनाडु के गौरव तथा संस्कृति का प्रतीक कहा जाता है, जो उनकी संस्कृति से जुड़ा है।

जल्लीकट्टू का इतिहास करीब 400 साल पुराना बताया जाता है। जो  पोंगल के समय आयोजित किया जाता है। तमिलनाडु में यह सिर्फ एक खेल नहीं बल्कि बहुत पुरानी परंपरा है। मदुरै में जल्लीकट्टू खेल का सबसे बड़ा मेला लगता है। इससे पुरुषों और बैलों दोनों के दम-ख़म की परीक्षा होती थी।लड़कियों के लिए सही वर ढ़ूंढने के लिए स्वयंबर के रूप में जल्लीकट्टू का सहारा लिया जाता था, जो युवक सांड़ पर काबू पा लेता था शादी उसी से होती थी। दूसरे गायों की अच्छी नस्ल के लिए उत्तम कोटि के सांड का भी चुनाव इसी के द्वारा किया जाता था।

यह खेल स्पेन की “बुल फाइट” से मिलता जुलता है। पर वहां की तरह इसमें बैलों को मारा नहीं जाता और ना ही बैल को काबू करने वाले युवक किसी तरह के हथियार का इस्तेमाल करते हैं। यहां पशु को घायल भी नहीं किया जाता। पिछले समय में बैल या सांड के सींगों में सोने के सिक्के बांधे जाते थे जिनका स्थान अब नोटों ने ले लिया है, खेल में भाग लेने वालों को पशु को काबू कर इन्हें ही निकालना  होता है। इसको पहले सल्लीकासू कहा जाता था, सल्ली याने सिक्का और कासू का मतलब सीगों से बन्ध हुआ, समय के साथ सल्लीकासू बदल कर जल्लीकट्टू हो गया।  यह खेल जितना इंसानों के लिए जानलेवा है उतना ही जानवरों के लिए खतरनाक भी है। खेल के शुरु होते ही पहले एक-एक करके तीन बैलों को छोड़ा जाता है। ये गांव के सबसे बूढ़े बैल होते हैं। इन बैलों को कोई नहीं पकड़ता, ये बैल गांव की शान होते हैं और उसके बाद शुरु होता है जलीकट्टू का असली खेल।खेल के दौरान भारी पुलिस फोर्स, एक मेडिकल टीम और मदुरै कलेक्टर खुद भी वहां मौजूद रहते हैं।

 

इस खेल के लिए सांड और बैलों के पालक अपने पालतू पशुओं की खूब देख-भाल करते हैं तथा उनको इस खेल के लिए प्रशिक्षित भी करते हैं। पर समय के साथ-साथ इस खेल में नई पीढ़ी के पदार्पण के साथ ही बढ़ती प्रतिस्पर्धा व जीत की लालसा ने कुछ गलत तरीकों को भी अपना लिया है।, तमिलनाडु के ग्रामीण इलाक़ों का एक परंपरागत खेल है जो फसलों की कटाई के अवसर पर पोंगल के त्यौहार पर आयोजित कराया जाता है और जिसमे बैलों से इंसानों की लड़ाई कराई जाती है. इसे तमिलनाडु के गौरव तथा संस्कृति का प्रतीक कहा जाता है, जो उनकी संस्कृति से जुड़ा है।

जल्लीकट्टू का इतिहास करीब 400 साल पुराना बताया जाता है। जो  पोंगल के समय आयोजित किया जाता है। तमिलनाडु में यह सिर्फ एक खेल नहीं बल्कि बहुत पुरानी परंपरा है। मदुरै में जल्लीकट्टू खेल का सबसे बड़ा मेला लगता है। इससे पुरुषों और बैलों दोनों के दम-ख़म की परीक्षा होती थी।लड़कियों के लिए सही वर ढ़ूंढने के लिए स्वयंबर के रूप में जल्लीकट्टू का सहारा लिया जाता था, जो युवक सांड़ पर काबू पा लेता था शादी उसी से होती थी। दूसरे गायों की अच्छी नस्ल के लिए उत्तम कोटि के सांड का भी चुनाव इसी के द्वारा किया जाता था।

यह खेल स्पेन की “बुल फाइट” से मिलता जुलता है। पर वहां की तरह इसमें बैलों को मारा नहीं जाता और ना ही बैल को काबू करने वाले युवक किसी तरह के हथियार का इस्तेमाल करते हैं। यहां पशु को घायल भी नहीं किया जाता। पिछले समय में बैल या सांड के सींगों में सोने के सिक्के बांधे जाते थे जिनका स्थान अब नोटों ने ले लिया है, खेल में भाग लेने वालों को पशु को काबू कर इन्हें ही निकालना  होता है। इसको पहले सल्लीकासू कहा जाता था, सल्ली याने सिक्का और कासू का मतलब सीगों से बन्ध हुआ, समय के साथ सल्लीकासू बदल कर जल्लीकट्टू हो गया।  यह खेल जितना इंसानों के लिए जानलेवा है उतना ही जानवरों के लिए खतरनाक भी है। खेल के शुरु होते ही पहले एक-एक करके तीन बैलों को छोड़ा जाता है। ये गांव के सबसे बूढ़े बैल होते हैं। इन बैलों को कोई नहीं पकड़ता, ये बैल गांव की शान होते हैं और उसके बाद शुरु होता है जलीकट्टू का असली खेल।खेल के दौरान भारी पुलिस फोर्स, एक मेडिकल टीम और मदुरै कलेक्टर खुद भी वहां मौजूद रहते हैं।

 

इस खेल के लिए सांड और बैलों के पालक अपने पालतू पशुओं की खूब देख-भाल करते हैं तथा उनको इस खेल के लिए प्रशिक्षित भी करते हैं। पर समय के साथ-साथ इस खेल में नई पीढ़ी के पदार्पण के साथ ही बढ़ती प्रतिस्पर्धा व जीत की लालसा ने कुछ गलत तरीकों को भी अपना लिया है।

जल्लीकट्टू (Jallikattu) तमिलनाडु का चार सौ वर्ष से भी पुराना पारंपरिक खेल है, जो फसलों की कटाई के अवसर पर पोंगल के समय आयोजित किया जाता है। इसमें 300-400 किलो के सांड़ों की सींगों में सिक्के या नोट फंसाकर रखे जाते हैं और फिर उन्हें भड़काकर भीड़ में छोड़ दिया जाता है, ताकि लोग सींगों से पकड़कर उन्हें काबू में करें। कथित तौर पर पराक्रम से जुड़े इस खेल में विजेताओं को नकद इनाम वगैरह भी देने की परंपरा है। सांड़ों को भड़काने के लिए उन्हें शराब पिलाने से लेकर उनकी आंखों में मिर्च डाला जाता है और उनकी पूंछों को मरोड़ा तक जाता है, ताकि वे तेज दौड़ सकें। यह जानलेवा खेल मेला तमिलनाडु के मदुरै में लगता है।
जलीकट्टू त्योहार से पहले गांव के लोग अपने-अपने बैलों की प्रैक्टिस तक करवाते हैं। जहां मिट्टी के ढेर पर बैल अपनी सींगो को रगड़ कर जलीकट्टू की तैयारी करता है। बैल को खूंटे से बांधकर उसे उकसाने की प्रैक्टिस करवाई जाती है ताकि उसे गुस्सा आए और वो अपनी सींगो से वार करे। साल 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने जानवरों के साथ हिंसक बर्ताव को देखते हुए इस खेल को बैन कर दिया था।

क्या हैं जलीकट्टू खेल के नियम?
खेल के शुरु होते ही पहले एक-एक करके तीन बैलों को छोड़ा जाता है। ये गांव के सबसे बूढ़े बैल होते हैं। इन बैलों को कोई नहीं पकड़ता, ये बैल गांव की शान होते हैं और उसके बाद शुरु होता है जलीकट्टू का असली खेल। मुदरै में होने वाला ये खेल तीन दिन तक चलता है।

कितनी पुरानी है जलीकट्टू परंपरा
तमिलनाडु में जलीकट्टू 400 साल पुरानी परंपरा है। जो योद्धाओं के बीच लोकप्रिय थी। प्राचीन काल में महिलाएं अपने वर को चुनने के लिए जलीकट्टू खेल का सहारा लेती थी। जलीकट्टू खेल का आयोजन स्वंयवर की तरह होता था जो कोई भी योद्धा बैल पर काबू पाने में कामयाब होता था महिलाएं उसे अपने वर के रूप में चुनती थी।
जलीकट्टू खेल का ये नाम सल्ली कासू से बना है। सल्ली का मतलब सिक्का और कासू का मतलब सींगों में बंधा हुआ। सींगों में बंधे सिक्कों को हासिल करना इस खेल का मकसद होता है। धीरे-धीरे सल्लीकासू का ये नाम जलीकट्टू हो गया।

जलीकट्टू और बुलफाइटिंग में अंतर
कई बार जलीकट्टू के इस खेल की तुलना स्पेन की बुलफाइटिंग से भी की जाती है लेकिन ये खेल स्पेन के खेल से काफी अलग है इसमें बैलों को मारा नहीं जाता और ना ही बैल को काबू करने वाले युवक किसी तरह के हथियार का इस्तेमाल करते हैं।

MD AsLam

★तमिलनाडु में पोंगल त्योहार के  दौरान खेला जाना वाला लोकप्रिय खेल जलीकट्टू पर प्रतिबंध हटाने को लेकर राज्य में बवाल मचा हुआ है। राज्य में कई जगहों पर इसको लेकर विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं।
★ तमिलनाडु सरकार ने केंद्र सरकार से अध्यादेश लाने की मांग की है। अध्यादेश के जरिए कानून बनाकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटा जा सकता है।

=>जलीकट्टू पर प्रतिबंध कब और क्यों ?

★साल 2011 में यूपीए सरकार ने जलीकट्टू पर प्रतिबंध लगा दिया था लेकिन सत्ता में आने के बाद एनडीए सरकार ने 8 जनवरी 2016 में इसको हरी झंडी दे दी।
★बीते साल सुप्रीम कोर्ट ने इस पर पाबंदी लगाते हुए राज्य सरकार की याचिका भी खारिज कर दी थी जिसमें 2014 के आदेश पर पुनर्विचार करने की मांग की गई थी।
★ सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ तमिलनाडु विधानसभा एक प्रस्ताव भी पास कर चुकी है। प्रस्ताव के तहत जल्लीकट्टू पर लगे प्रतिबंध को हटाने की मांग की गई है।

=>>क्या है जलीकट्टू ?

★जलीकट्टू तमिलनाडु का चार सौ वर्ष से भी पुराना पारंपरिक खेल है, जो फसलों की कटाई के अवसर पर पोंगल के समय आयोजित किया जाता है।
★ इसमें 300-400 किलो के सांड़ों की सींगों में सिक्के या नोट फंसाकर रखे जाते हैं और फिर उन्हें भड़काकर भीड़ में छोड़ दिया जाता है, ताकि लोग सींगों से पकड़कर उन्हें काबू में करें।
★सांड़ों को भड़काने के लिए उन्हें शराब पिलाने से लेकर उनकी आंखों में मिर्च डाला जाता है और उनकी पूंछों को मरोड़ा तक जाता है, ताकि वे तेज दौड़ सकें।

=>>जलीकट्टू का मतलब

★कहा जाता है कि जल्ली/सल्ली का अर्थ ही होता है ‘सिक्का’ और कट्टू का ‘बांधा हुआ। सांडों के सींग में कपड़ा बंधा होता है जिसे खिलाड़ी को पुरस्कार राशि पाने के लिए निकालना होता है।

=>क्या हैं खेल के नियम ?

★खेल के शुरु होते ही पहले एक-एक करके तीन सांडों को छोड़ा जाता है। ये गांव के सबसे बूढ़े सांड होते हैं। इन सांडों को कोई नहीं पकड़ता, ये सांड गांव की शान होते हैं और उसके बाद शुरु होता है जलीकट्टू का असली खेल। मुदरै में होने वाला ये खेल तीन दिन तक चलता है।

★जलीकट्टू पर लगी रोक के खिलाफ सड़कों पर उतरे लोग, पुलिस ने किया गिरफ्तार

=>सालों पुरानी है जलीकट्टू परंपरा

★तमिलनाडु में जलीकट्टू 400 साल पुरानी परंपरा है। जो योद्धाओं के बीच लोकप्रिय थी।
★ प्राचीन काल में महिलाएं अपने वर को चुनने के लिए जलीकट्टू खेल का सहारा लेती थी। जलीकट्टू खेल का आयोजन स्वंयवर की तरह होता था जो कोई भी योद्धा बैल पर काबू पाने में कामयाब होता था महिलाएं उसे अपने वर के रूप में चुनती थी।

=>>जलीकट्टू और बुलफाइटिंग कितना में अंतर

★जलीकट्टू की तुलना स्पेन में खेले जाने वाली बुलफाइटिंग से भी की जाती है। हालांकि समर्थकों का कहना है कि जल्लीकट्टू यूरोपीय देश स्पेन में होनेवाली बुलफाइटिंग से अलग है और इसमें स्पैनिश स्पोर्ट्स की तरह हथियारों का इस्तेमाल नहीं होता और न ही खेल का मतलब है अंत में जानवर का खात्मा।


जल्लीकट्टू एक प्राचीन काल से खेला जाने वाला खेल मात्र है जिसमे किसी भी तरह की हिंसा नहीं होती है । इस खेल में बेल के सींग पर सिक्को से भरा थैला रखा जाता है जिसे हासिल करने के लिए लोग नंगे हाथो से बेल को रोक कर सिक्के लेने का प्रयास करते है अब आप बताये इसमें हिंसा कैसे दिखती है आपको । हाँ इतना जरूर है कि इसमें भाग लेने वाले प्रतिभागी को जरूर कुछ मामूली चोट लगती है पर किसी जिव की हत्या नहीं होती । में खुद भी किसी भी तरह की हिंसा का पक्षधर नहीं हूँ और जल्लीकट्टू पर प्रतिबन्ध लगाना पशु हत्या को बढ़ावा देने वाला फैसला साबित होगा क्यों की खेल पर प्रतिबन्ध से लोग बेलों को बेचने लगेंगे जो सीधे बूचड़खाने में कटने के लिए भेजे जाएंगे क्यों की आधुनिक खेती और परिवहन में अब इनका उपयोग ख़त्म हो चूका है ।