*जिस घर के ऊपर कबूतर अधिक बैठते है उस घर मे धन की वर्षा होतीं है और स्वर्ण लाभ भी होता है परन्तु बच्चो की पढाई मे वाधा आती है ।
Day: September 9, 2016
प्रणाम का महत्व
*प्रणाम का महत्व*
महाभारत का युद्ध चल रहा था-
एक दिन दुर्योधन के व्यंग्य से आहत होकर…
“भीष्म पितामह” घोषणा कर देते हैं कि-
“मैं कल पांडवों का वध कर दूँगा”
उनकी घोषणा का पता चलते ही पांडवों के शिविर में बेचैनी बढ़ गई-
भीष्म की क्षमताओं के बारे में सभी को पता था इसलिए सभी किसी अनिष्ट की आशंका से परेशान हो गए।
तब-
श्रीकृष्ण ने द्रौपदी से कहा अभी मेरे साथ चलो-
श्रीकृष्ण द्रौपदी को लेकर सीधे भीष्म पितामह के शिविर में पहुँच गए-
शिविर के बाहर खड़े होकर उन्होंने द्रोपदी से कहा कि- अन्दर जाकर पितामह को प्रणाम करो-
द्रौपदी ने अन्दर जाकर पितामह भीष्म को प्रणाम किया तो उन्होंने-
“अखंड सौभाग्यवती भव” का आशीर्वाद दे दिया, फिर उन्होंने द्रोपदी से पूछा कि !!
“वत्स, तुम इतनी रात में अकेली यहाँ कैसे आई हो, क्या तुमको श्रीकृष्ण यहाँ लेकर आए हैं” ?
तब द्रोपदी ने कहा कि-
“हाँ और वे कक्ष के बाहर खड़े हैं” तब भीष्म भी कक्ष के बाहर आ गए और दोनों ने एक दूसरे से प्रणाम किया-
भीष्म ने कहा-
“मेरे एक वचन को मेरे ही दूसरे वचन से काट देने का काम श्रीकृष्ण ही कर सकते हैं”
शिविर से वापस लौटते समय श्रीकृष्ण ने द्रौपदी से कहा कि-
“तुम्हारे एक बार जाकर पितामह को प्रणाम करने से तुम्हारे पतियों को जीवनदान मिल गया है”-
” अगर तुम प्रतिदिन भीष्म, धृतराष्ट्र, द्रोणाचार्य, आदि को प्रणाम करती होतीं और दुर्योधन, दुःशासन, आदि की पत्नियाँ भी पांडवों को प्रणाम करती होतीं, तो शायद इस युद्ध की नौबत ही न आती”-
……तात्पर्य्……
वर्तमान में हमारे घरों में जो इतनी समस्याए हैं उनका भी मूल कारण यही है कि –
“जाने अनजाने अक्सर घर के बड़ों की उपेक्षा हो जाती है।”
” यदि घर के बच्चे और बहुएँ प्रतिदिन घर के सभी बड़ों को प्रणाम कर उनका आशीर्वाद लें तो, शायद किसी भी घर में कभी कोई क्लेश न हो ”
बड़ों के दिए “आशीर्वाद” कवच की तरह काम करते हैं उनको कोई “अस्त्र-शस्त्र” नहीं भेद सकता –
“निवेदन:-
कई बच्चों का पढ़ाई में मन नहीं लगता। पढ़ाई के लिए उन्हें कितना ही समझाया जाए लेकिन कोई फायदा नहीं होता। कई बार स्टूडेंट के बहुत मेहनत करने पर भी उसे सफलता नहीं मिलती। ऐसे में बच्चे की असफलता का कारण उसका स्टडी रूम और उससे जुड़े वास्तु दोष भी हो सकते हैं। अगर बच्चे के स्टडी रूम से जुड़ी इन बातों का ध्यान रखा जाए तो पढ़ाई में अच्छी सफलता मिल सकती है।

गंगा जल खराब क्यों नहीं होता?
👉गंगा जल खराब क्यों नहीं होता?
👉अमेरिका में एक लीटर गंगाजल 250 डालर में क्यों मिलता है।
प्रस्तुति: फरहाना ताज
💐
मौसम में कई बार छोटी बेटी को खांसी की शिकायत हुई और कई प्रकार के सिरप से ठीक ही नहीं हुई।
इसी दौरान एक दिन घर ज्येष्ठ जी का आना हुआ और वे गोमुख से गंगाजल की एक कैन भरकर लाए।
थोड़े पोंगे पंडित टाइप हैं, तो बोले जब डाक्टर से खांसी ठीक नहीं होती हो तो, गंगाजल पिलाना चाहिए।
मैंने बेटी से कहलवाया, ताउ जी को कहो कि गंगाजल तो मरते हुए व्यक्ति के मुंह में डाला जाता है, हमने तो ऐसा सुना है .
तो बोले, नहीं कई रोगों का भी इलाज है। बेटी को पता नहीं क्या पढाया वह जिद करने लगी कि गंगा जल ही पिउंगी, सो दिन में उसे तीन बार दो-दो चम्मच गंगाजल पिला दिया और तीन दिन में उसकी खांसी ठीक हो गई। यह हमारा अनुभव है, हम इसे गंगाजल का चमत्कार नहीं मानते, उसके औषधीय गुणों का प्रमाण मानते हैं।
कई इतिहासकार बताते हैं कि सम्राट अकबर स्वयं तो गंगा जल का सेवन करते ही थे, मेहमानों को भी गंगा जल पिलाते थे।
इतिहासकार लिखते हैं कि अंग्रेज जब कलकत्ता से वापस इंग्लैंड जाते थे, तो पीने के लिए जहाज में गंगा का पानी ले जाते थे, क्योंकि वह सड़ता नहीं था। इसके विपरीत अंग्रेज जो पानी अपने देश से लाते थे ,वह रास्ते में ही सड़ जाता था।
करीब सवा सौ साल पहले आगरा में तैनात ब्रिटिश डाक्टर एमई हॉकिन ने वैज्ञानिक परीक्षण से सिद्ध किया था कि हैजे का बैक्टीरिया गंगा के पानी में डालने पर कुछ ही देर में मर गया।
दिलचस्प ये है कि इस समय भी वैज्ञानिक पाते हैं कि गंगा में बैक्टीरिया को मारने की क्षमता है।
लखनऊ के नेशनल बोटैनिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट एनबीआरआई के निदेशक डॉक्टर चंद्र शेखर नौटियाल ने एक अनुसंधान में प्रमाणित किया है कि गंगा के पानी में बीमारी पैदा करने वाले ईकोलाई बैक्टीरिया को मारने की क्षमता बरकरार है।
डॉ नौटियाल का इस विषय में कहना है कि गंगा जल में यह शक्ति गंगोत्री और हिमालय से आती है। गंगा जब हिमालय से आती है तो कई तरह की मिट्टी, कई तरह के खनिज, कई तरह की जड़ी बूटियों से मिलती मिलाती है।
कुल मिलाकर कुछ ऐसा मिश्रण बनता जिसे हम अभी नहीं समझ पाए हैं।
डॉक्टर नौटियाल ने परीक्षण के लिए तीन तरह का गंगा जल लिया था। उन्होंने तीनों तरह के गंगा जल में ई-कोलाई बैक्टीरिया डाला। नौटियाल ने पाया कि ताजे गंगा पानी में बैक्टीरिया तीन दिन जीवित रहा, आठ दिन पुराने पानी में एक एक हफ्ते और सोलह साल पुराने पानी में 15 दिन। यानी तीनों तरह के गंगा जल में ई कोलाई बैक्टीरिया जीवित नहीं रह पाया।
वैज्ञानिक कहते हैं कि गंगा के पानी में बैक्टीरिया को खाने वाले बैक्टीरियोफाज वायरस होते हैं। ये वायरस बैक्टीरिया की तादाद बढ़ते ही सक्रिय होते हैं और बैक्टीरिया को मारने के बाद फिर छिप जाते हैं।
मगर सबसे महत्वपूर्ण सवाल इस बात की पहचान करना है कि गंगा के पानी में रोगाणुओं को मारने की यह अद्भुत क्षमता कहाँ से आती है?
दूसरी ओर एक लंबे अरसे से गंगा पर शोध करने वाले आईआईटी रुड़की में पर्यावरण विज्ञान के रिटायर्ड प्रोफेसर देवेंद्र स्वरुप भार्गव का कहना है कि गंगा को साफ रखने वाला यह तत्व गंगा की तलहटी में ही सब जगह मौजूद है। डाक्टर भार्गव कहते हैं कि गंगा के पानी में वातावरण से आक्सीजन सोखने की अद्भुत क्षमता है। भार्गव का कहना है कि दूसरी नदियों के मुकाबले गंगा में सड़ने वाली गंदगी को हजम करने की क्षमता 15 से 20 गुना ज्यादा है।
गंगा माता इसलिए है कि गंगाजल अमृत है, इसलिए उसमें मुर्दे, या शव की राख और अस्थियां विसर्जित नहीं करनी चाहिए, क्योंकि मोक्ष कर्मो के आधार पर मिलता है।
भगवान इतना अन्यायकारी नहीं हो सकता कि किसी लालच या कर्मकांड से कोई गुनाह माफ कर देगा। जैसी करनी वैसी भरनी!
जब तक अंग्रेज किसी बात को नहीं कहते भारतीय सत्य नहीं मानते, इसलिए इस आलेख के वैज्ञानिकों के वक्तव्य BBC बीबीसी हिन्दी सेवा से साभार लिया गया है 🚩🙏🚩
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सुबह के स्नान

(1)मुनि स्नान:-जो सुबह 4 से 5 के बिच किया जाता है ।
(2 )देव स्नान:-जो सुबह 5 से 6 के बिच किया जाता है ।
(3 ) मानव स्नान:-जो सुबह 6 से 8 के बिच किया जाता है ।
(4) राक्षसी स्नान :-जो सुबह 8 के बाद किया जाता है ।
*मुनि स्नान सर्वोत्तम है*
*देव स्नान उत्तम है*
*मानव स्नान समान्य है*
*राक्षसी स्नान धर्म में निषेध है*
👉किसी भी मानवी को 8 बजे के बाद स्नान नही करना चाहिए।
*मुनि स्नान*
👉घर में सुख ,शांति ,समृद्धि, विध्या , बल , आरोग्य , चेतना , प्रदान करता है ।
*देव स्नान*
👉 आप के जीवन में यश , किर्ती , धन वैभव,सुख ,शान्ति, संतोष , प्रदान करता है ।
*मानव स्नान*
👉काम में सफलता ,भाग्य ,अच्छे कर्मो की सूझ ,परिवार में एकता , मंगल मय , प्रदान करता है ।
*राक्षसी स्नान*
👉 दरिद्रता , हानि , कलेश ,धन हानि , परेशानी, प्रदान करता है ।
👉किसी भी मनुष्य को 8 के बाद स्नान नही करना चाहिए।
पुराने जमाने में इसी लिए सभी सूरज निकलने से पहले स्नान करते थे ।
खास कर जो घर की स्त्री होती थी ।
🙏चाहे वो स्त्री
👉माँ के रूप में हो,पत्नी के रूप में हो,बेहन के रूप में हो ।
🙏घर के बडे बुजुर्ग यही समझाते सूरज के निकलने से पहले ही स्नान हो जाना चाहिए ।
🙏ऐसा करने से धन , वैभव लक्ष्मी , आप के घर में सदैव वास करती है ।
🙏उस समय…… एक मात्र व्यक्ति की कमाई से पूरा हरा भरा पारिवार पल जाता था , और आज पारिवार में चार सदस्य भी कमाते है तो भी पूरा नही होता ।
🙏 उस की वजह हम खुद ही है पुराने नियमो को तोड़ कर अपनी सुख सुविधा के लिए नए नियम बनाए है
🙏प्रकृति ……का नियम है, जो भी उस के नियमो का पालन नही करता ,उस का दुष्टपरिणाम सब को मिलता है ।
🙏अपने जीवन में कुछ नियमो को अपनाये । ओर उनका पालन भी करे ।
🙏आप का भला हो ,आपके अपनों का भला हो ।
🙏 मनुष्य अवतार बार बार नही मिलता ।
🙏 अपने जीवन को सुखमय बनाये ।
*हर हर महादेव*
मर्म को समझे
मर्म को समझे –
एक बार एक प्रसिद्द वास्तु के गुरुकुल में पद्म्वल्लभ नामक शिष्य ने अपनी दीक्षा पूर्ण की तथा वह अपने गुरु शिवाचार्य से जाने की आज्ञा लेने पहुंचा | तब गुरुदेव ने कहा, ” पुत्र मात्र पुस्तकों और उदाहरणों से ज्ञान श्रेष्ठ नहीं होता, ज्ञान को जीवन में उतारने व प्रयोग करने से ही पूर्ण होता है, वैसे तो तुम इस गुरुकुल के क्ष्रेष्ठ शिष्य हो फिर भी जीवन में कभी किसी विपत्ति यदि फंस जाओ तो नि:संकोच मेरे पास आ जाना” | गुरु से आशीर्वाद लेकर शिष्य पद्मवल्लभ अपने ग्राम की ओर चल पढ़ा |
पद्मवल्लभ जब श्रृंगारपुर नामक नगर में पहुंचा तब वह विश्राम के लिये कावेरी नदी के किनारे लगे एक वृक्ष के नीचे बैठ गया | बैठे बैठे वह कावेरी नदी पर बने पुल का वास्तु विश्लेषण करने लगा तभी वह असमंजस में आ गया और तुरन्त योग द्वारा मानसिक तरंगो से गुरु शिवाचार्य से संपर्क साधा और अपने गुरु से प्रश्न किया,” हे गुरुदेव, आपने जो मुझे वास्तु ज्ञान दिया आज मुझे वह ज्ञान निष्फल होता प्रतीत हो रहा है क्योंकि मैं आज श्रृंगारपुर नगर में कावेरी तट पर एक जल संधि मार्ग ( सेतु यानि पुल ) का विश्लेषण कर रहा हूँ परन्तु आश्चर्य की बात यह है कि वास्तु के अनुसार जो सेतु की स्थिति है वह अत्यंत विचित्र है क्योंकि वास्तु नियम के अनुसार इस सेतु से जो भी व्यक्ति निकलेगा वह गधा बन जायेगा परन्तु यहाँ तो सहस्त्र मनुष्य मेरे सामने ही निकले परन्तु कोई भी गधा नहीं बना, ऐसा क्यों” ? तब गुरु गुरु शिवाचार्य ने उत्तर दिया,” हे पुत्र, जो निकल रहे है उन्हें निकलने दो परन्तु तुम वहां से नहीं निकलना | पद्मवल्लभ ने कहा, “जैसी आपकी आज्ञा गुरुदेव” |
अब पद्मवल्लभ यह विचारने लगा कि गुरुदेव ने मना क्यों किया, मुझे तो अपने ग्राम जाने हेतु इसी मार्ग से जाना होगा, अब मैं क्या करू ! अतः उसने निर्णय लिया वह इसी मार्ग से जायेगा और यह निर्णय लेकर वह उस सेतु से गुजरा परन्तु यह क्या सेतु से निकलते ही वह गधा बन गया | अब पद्मवल्लभ परेशान हो वापस गुरु के आश्रम पहुंचा तो गुरु शिवाचार्य ने देखते ही पहचान लिया और बोले, “पद्मवल्लभ तूने मेरी बात नहीं मानी, देखा गुरु आज्ञा की अवज्ञा का परिणाम अब गधा बन गया न” | फिरशिवाचार्य ने जल हाथ में लेकर मंत्र पढ़ा और पद्मवल्लभ पर छिड़का तथा उसे ठीक किया |
पुनः मनुष्य बनाते ही पद्मवल्लभ ने प्रश्न किया, “गुरुदेव उस सेतु सहस्त्रो मनुष्य निकलते है परन्तु उनमे से कोई गधा नहीं बना मैं स्वंम इस गुरुकुल में आने से पहले कई बार उस सेतु से निकला परन्तु गधा नहीं बना फिर आज ऐसा क्यों हुआ ?
तब गुरु शिवाचार्य ने कहा, ” पुत्र पद्मवल्लभ, नियम ज्ञानी के लिये होते है अज्ञानी के लिये नहीं, जब तक तुम्हे ज्ञान नहीं था तब तक उस सेतु का प्रभाव तुम पर नहीं हुआ परन्तु जब तुम्हे वास्तु का ज्ञान हो गया तथा ज्ञात होते हुए भी तुमने अविश्वास जताते हुए नियम तोडा तो वास्तु परिणाम तुम पर प्रभावी हो गया | ऐसे ही पूजा आदि में भी यदि जजमान को पूजा पद्दति का ज्ञान का ज्ञान न हो तो पूजा में हो रही त्रुटी के लिये लिये आचार्य ( पूजा कराने वाला ) ही दोषी माना जाता है | …………. विकास खुराना ( ज्योतिष विशेषज्ञ )

स्थिर लक्ष्मी
घर बनाते समय प्लॉट की आठों दिशाओं के साथ साथ ब्रह्म स्थान मे चाँदी का और ताम्बे का एक एक सिक्का अमृत सिद्धि योग मे स्थिर लग्न मे रखना चाहिये । इससे घर मे कभी धन की कमी नही होतीं तथा घर मे स्थिर लक्ष्मी का निवास होता हैं ।