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हस्त-मुद्रा चिकित्सा : हाथों की मुद्रामयी भाषा से जानिए मानव शरीर के रहस्य


हस्त-मुद्रा चिकित्सा : हाथों की मुद्रामयी भाषा से जानिए मानव शरीर के रहस्य

मानव-शरीर अनन्त रहस्यों से भरा हुआ है. शरीर की अपनी एक मुद्रामयी भाषा है. जिसे करने से शारीरिक स्वास्थ्य-लाभ में सहयोग होता है. यह शरीर पंच तत्वों के योग से बना है. पाँच तत्व ये हैं-

(1)पृथ्वी,(2)जल,(3)अग्नि,(4)वायु,एवं (5)आकाश.

हस्त-मुद्रा-चिकित्साके अनुसार हाथ तथा हाथों की अँगुलियों और अँगुलियों से बननेवाली मुद्राओं में आरोग्य का रहस्य छिपा हुआ है. हाथकी अँगुलियों में पंचतत्व प्रतिष्ठित हैं.
ऋषि-मुनियोंने हजारों साल पहले इसकी खोज कर ली थी एवं इसे उपयोग में बराबर प्रतिदिन लाते रहे, इसीलिये वे लोग स्वस्थ रहते थे.

ये शरीर में चैतन्य को अभिव्यक्ति देनेवाली कुंजियाँ हैं.

अँगुली में पंच तत्व :
हाथों की 10 अँगुलियों से विशेष प्रकार की आकृतियाँ बनाना ही हस्त मुद्रा कही गई है.

हाथों की सारी अँगुलियों में पाँचों तत्व मौजूद होते हैं जैसे अँगूठे में अग्नि तत्व, तर्जनी अँगुली में वायु तत्व, मध्यमा अँगुली में आकाश तत्व, अनामिका अँगुली में पृथ्वी तत्व और कनिष्का अँगुली में जल तत्व.

अँगुलियों के पाँचों वर्ग से अलग-अलग विद्युत धारा प्रवाहित होती है. इसलिए मुद्रा विज्ञान में जब अँगुलियों का रोगानुसार आपसी स्पर्श करते हैं, तब रुकी हुई या असंतुलित विद्युत बहकर शरीर की शक्ति को पुन: जगा देती है और हमारा शरीर निरोग होने लगता है.

ये अद्भुत मुद्राएँ करते ही यह अपना असर दिखाना शुरू कर देती हैं. किसी भी मुद्रा को करते समय जिन अँगुलियों का कोई काम न हो उन्हें सीधी रखे. वैसे तो मुद्राएँ बहुत हैं पर कुछ मुख्य मुद्राओं का वर्णन यहाँ किया जा रहा है, जैसे-

👉🏻१/. ज्ञान मुद्रा (चिन्मय मुद्रा) GYANA MUDRA:

अंगूठे एवं तर्जनी अंगुली के स्पर्श से जो मुद्रा बनती है उसे ज्ञान मुद्रा कहते हैं |

विधि :

पदमासन या सुखासन में बैठ जाएँ |
अपने दोनों हाथों को घुटनों पर रख लें तथा अंगूठे के पास वाली अंगुली (तर्जनी) के उपर के पोर को अंगूठे के ऊपर वाले पोर से स्पर्श कराएँ |
हाँथ की बाकि अंगुलिया सीधी व एक साथ मिलाकर रखें |

सावधानियाँ :

• ज्ञान मुद्रा से सम्पूर्ण लाभ पाने के लिए साधक को चाहिए कि वह सादा प्राकृतिक भोजन करे |
• मांस मछली, अंडा,शराब,धुम्रपान,तम्बाकू,चाय,काफ़ी कोल्ड ड्रिंक आदि का सेवन न करें |
• उर्जा का अपव्यय जैसे- अनर्गल वार्तालाप,बात करते हुए या सामान्य स्थिति में भी अपने पैरों या अन्य अंगों को हिलाना, ईर्ष्या, अहंकार आदि उर्जा के अपव्यय का कारण होते हैं, इनसे बचें |
मुद्रा करने का समय व अवधि :

• प्रतिदिन प्रातः, दोपहर एवं सांयकाल इस मुद्रा को किया जा सकता है |
• प्रतिदिन 48 मिनट या अपनी सुविधानुसार इससे अधिक समय तक ज्ञान मुद्रा को किया जा सकता है | यदि एक बार में 48 मिनट करना संभव न हो तो तीनों समय 16-16 मिनट तक कर सकते हैं |
• पूर्ण लाभ के लिए प्रतिदिन कम से कम 48 मिनट ज्ञान मुद्रा को करना चाहिए |
चिकित्सकीय लाभ :

• ज्ञान मुद्रा विद्यार्थियों के लिए अत्यंत लाभकारी मुद्रा है, इसके अभ्यास से बुद्धि का विकास होता है,स्मृति शक्ति व एकाग्रता बढती है एवं पढ़ाई में मन लगने लगता है |
• ज्ञान मुद्रा के अभ्यास से अनिद्रा,सिरदर्द, क्रोध, चिड़चिड़ापन, तनाव,बेसब्री, एवं चिंता नष्ट हो जाती है |
• ज्ञान मुद्रा करने से हिस्टीरिया रोग समाप्त हो जाता है |
• नियमित रूप से ज्ञान मुद्रा करने से मानसिक विकारों एवं नशा करने की लत से छुटकारा मिल जाता है |
• इस मुद्रा के अभ्यास से आमाशयिक शक्ति बढ़ती है जिससे पाचन सम्बन्धी रोगों में लाभ मिलता है |
• ज्ञान मुद्रा के अभ्यास से स्नायु मंडल मजबूत होता है

आध्यात्मिक लाभ :

• ज्ञान मुद्रा में ध्यान का अभ्यास करने से एकाग्रता बढ़ती है जिससे ध्यान परिपक्व होकर व्यक्ति की आध्यात्मिक प्रगति करता है |
• ज्ञान मुद्रा के अभ्यास से साधक में दया,निडरता,मैत्री,शान्ति जैसे भाव जाग्रत होते हैं |
• इस मुद्रा को करने से संकल्प शक्ति में आश्चर्यजनक रूप से वृद्धि होती है |
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👉🏻२/. नमस्कार मुद्रा:

दोनों हाथों की हथेलियों से कोहनी तक मिलाने से बनने वाली नमस्कार मुद्रा का नियमित अभ्यास भी मधुमेह के रोगी को करना चाहिये। नमस्कार मुद्रा से डायाफ्राम के ऊपर का भाग संतुलित होता है।

नमस्कार मुद्रा से पांचों महाभूत तत्त्वों का शरीर में संतुलन होने लगता है तथा हृदय, फेंफड़े और पेरिकार्डियन मेरेडियन में प्राण ऊर्जा का प्रवाह संतुलित होने से, इन अंगों से संबंधित रोग दूर होने लगते हैं।

गोदुहासन के साथ नमस्कार मुद्रा का अभ्यास करने से पूरा शरीर संतुलित हो जाता है।

👉🏻३/. पृथ्वी मुद्रा : PRITHAVI MUDRA:

विधि :

वज्रासन की स्थिति में दोनों पैरों के घुटनों को मोड़कर बैठ जाएं,रीढ़ की हड्डी सीधी रहे एवं दोनों पैर अंगूठे के आगे से मिले रहने चाहिए। एड़िया सटी रहें। नितम्ब का भाग एड़ियों पर टिकाना लाभकारी होता है। यदि वज्रासन में न बैठ सकें तो पदमासन या सुखासन में बैठ सकते हैं |
दोनों हांथों को घुटनों पर रखें , हथेलियाँ ऊपर की तरफ रहें |
अपने हाथ की अनामिका अंगुली (सबसे छोटी अंगुली के पास वाली अंगुली) के अगले पोर को अंगूठे के ऊपर के पोर से स्पर्श कराएँ |
हाथ की बाकी सारी अंगुलिया बिल्कुल सीधी रहें ।
सावधानियाँ :
• वैसे तो पृथ्वी मुद्रा को किसी भी आसन में किया जा सकता है, परन्तु इसे वज्रासन में करना अधिक लाभकारी है, अतः यथासंभव इस मुद्रा को वज्रासन में बैठकर करना चाहिए |
मुद्रा करने का समय व अवधि :

• पृथ्वी मुद्रा को प्रातः – सायं 24-24 मिनट करना चाहिए | वैसे किसी भी समय एवं कहीं भी इस मुद्रा को कर सकते हैं।

चिकित्सकीय लाभ :

• जिन लोगों को भोजन न पचने का या गैस का रोग हो उनको भोजन करने के बाद 5 मिनट तकवज्रासन में बैठकर पृथ्वी मुद्रा करने से अत्यधिक लाभ होता है ।
• पृथ्वी मुद्रा के अभ्यास से आंख, कान, नाक और गले के समस्त रोग दूर हो जाते हैं।
• पृथ्वी मुद्रा करने से कंठ सुरीला हो जाता है |
• इस मुद्रा को करने से गले में बार-बार खराश होना, गले में दर्द रहना जैसे रोगों में बहुत लाभ होता है।
• पृथ्वी मुद्रा से मन में हल्कापन महसूस होता है एवं शरीर ताकतवर और मजबूत बनता है।
• पृथ्वी मुद्रा को प्रतिदिन करने से महिलाओं की खूबसूरती बढ़ती है, चेहरा सुंदर हो जाता है एवं पूरे शरीर में चमक पैदा हो जाती है।
• पृथ्वी मुद्रा के अभ्यास से स्मृति शक्ति बढ़ती है एवं मस्तिष्क में ऊर्जा बढ़ती है।
• पृथ्वी मुद्रा करने से दुबले-पतले लोगों का वजन बढ़ता है। शरीर में ठोस तत्व और तेल की मात्रा बढ़ाने के लिए पृथ्वी मुद्रा सर्वोत्तम है।

आध्यात्मिक लाभ :

• हस्त मुद्राओं में पृथ्वी मुद्रा का बहुत महत्व है,यह हमारे भीतर के पृथ्वी तत्व को जागृत करती है।
• पृथ्वी मुद्रा के अभ्यास से मन में वैराग्य भाव उत्पन्न होता है |
• जिस प्रकार से पृथ्वी माँ प्रत्येक स्थिति जैसे-सर्दी,गर्मी,वर्षा आदि को सहन करती है एवं प्राणियों द्वारा मल-मूत्र आदि से स्वयं गन्दा होने के वाबजूद उन्हें क्षमा कर देती है | पृथ्वी माँ आकार में ही नही वरन ह्रदय से भी विशाल है | पृथ्वी मुद्रा के अभ्यास से इसी प्रकार के गुण साधक में भी विकसित होने लगते हैं | यह मुद्रा विचार शक्ति को उनन्त बनाने में मदद करती है।

👉🏻३/. वरुण मुद्रा VARUN MUDRA:

विधि :

पदमासन या सुखासन में बैठ जाएँ | रीढ़ की हड्डी सीधी रहे एवं दोनों हाथ घुटनों पर रखें |
सबसे छोटी अँगुली (कनिष्ठा)के उपर वाले पोर को अँगूठे के उपरी पोर से स्पर्श करते हुए हल्का सा दबाएँ। बाकी की तीनों अँगुलियों को सीधा करके रखें।

सावधानियाँ :

• जिन व्यक्तियों की कफ प्रवृत्ति है एवं हमेशा सर्दी,जुकाम बना रहता हो उन्हें वरुण मुद्रा का अभ्यास अधिक समय तक नहीं करना चाहिए।
• सामान्य व्यक्तियों को भी सर्दी के मौसम में वरुण मुद्रा का अभ्यास अधिक समय तक नही करना चाहिए | गर्मी व अन्य मौसम में इस मुद्रा को प्रातः – सायं 24-24 मिनट तक किया जा सकता है।
मुद्रा करने का समय व अवधि :

• वरुण मुद्रा का अभ्यास प्रातः-सायं अधिकतम 24-24 मिनट तक करना उत्तम है, वैसे इस मुद्रा को किसी भी समय किया जा सकता हैं।

चिकित्सकीय लाभ :

• वरुण मुद्रा शरीर के जल तत्व सन्तुलित कर जल की कमी से होने वाले समस्त रोगों को नष्ट करती है।
• वरुण मुद्रा स्नायुओं के दर्द, आंतों की सूजन में लाभकारी है |
• इस मुद्रा के अभ्यास से शरीर से अत्यधिक पसीना आना समाप्त हो जाता है |
• वरुण मुद्रा के नियमित अभ्यास से रक्त शुद्ध होता है एवं त्वचा रोग व शरीर का रूखापन नष्ट होता है।
• यह मुद्रा शरीर के यौवन को बनाये रखती है | शरीर को लचीला बनाने में भी यह लाभप्रद है ।
• वरुण मुद्रा करने से अत्यधिक प्यास शांत होती है।

आध्यात्मिक लाभ :

• जल तत्व (कनिष्ठा) और अग्नि तत्व (अंगूठे) को एकसाथ मिलाने से शरीर में आश्चर्यजनक परिवर्तन होता है । इससे साधक के कार्यों में निरंतरता का संचार होता है |

👉🏻४/. वायु मुद्रा : (VAYU MUDRA):

विधि :

वज्रासन या सुखासन में बैठ जाएँ,रीढ़ की हड्डी सीधी एवं दोनों हाथ घुटनों पर रखें | हथेलियाँ उपर की ओर रखें |
अंगूठे के बगल वाली (तर्जनी) अंगुली को हथेली की तरफ मोडकर अंगूठे की जड़ में लगा दें |

सावधानियाँ :

• वायु मुद्रा करने से शरीर का दर्द तुरंत बंद हो जाता है,अतः इसे अधिक लाभ की लालसा में अनावश्यक रूप से अधिक समय तक नही करना चाहिए अन्यथा लाभ के स्थान पर हानि हो सकती है |
• वायु मुद्रा करने के बाद कुछ देर तक अनुलोम-विलोम व दूसरे प्राणायाम करने से अधिक लाभ होता है |
• इस मुद्रा को यथासंभव वज्रासन में बैठकर करें, वज्रासन में न बैठ पाने की स्थिति में अन्य आसन या कुर्सी पर बैठकर भी कर सकते हैं |

मुद्रा करने का समय व अवधि :

• वायु मुद्रा का अभ्यास प्रातः,दोपहर एवं सायंकाल 8-8 मिनट के लिए किया जा सकता है |

चिकित्सकीय लाभ :

• अपच व गैस होने पर भोजन के तुरंत वाद वज्रासन में बैठकर 5 मिनट तक वायु मुद्रा करने से यह रोग नष्ट हो जाता है |
• वायु मुद्रा के नियमित अभ्यास से लकवा,गठिया, साइटिका,गैस का दर्द,जोड़ों का दर्द,कमर व गर्दन तथा रीढ़ के अन्य भागों में होने वाला दर्द में चमत्कारिक लाभ होता है |
• वायु मुद्रा के अभ्यास से शरीर में वायु के असंतुलन से होने वाले समस्त रोग नष्ट हो जाते है।
• इस मुद्रा को करने से कम्पवात,रेंगने वाला दर्द, दस्त ,कब्ज,एसिडिटी एवं पेट सम्बन्धी अन्य विकार समाप्त हो जाते हैं |

आध्यात्मिक लाभ :

• वायु मुद्रा के अभ्यास से ध्यान की अवस्था में मन की चंचलता समाप्त होकर मन एकाग्र होता है एवं सुषुम्ना नाड़ी में प्राण वायु का संचार होने लगता है जिससे चक्रों का जागरण होता है |

👉🏻५/. शून्य मुद्रा (SHUNYA MUDRA):

विधि :
1. मध्यमा अँगुली (बीच की अंगुली) को हथेलियों की ओर मोड़ते हुए अँगूठे से उसके प्रथम पोर को दबाते हुए बाकी की अँगुलियों को सीधा रखने से शून्य मुद्रा बनती हैं।

सावधानियाँ :

• भोजन करने के तुरंत पहले या बाद में शून्य मुद्रा न करें |
• किसी आसन में बैठकर एकाग्रचित्त होकर शून्य मुद्रा करने से अधिक लाभ होता है |

मुद्रा करने का समय व अवधि :

• शून्य मुद्रा को प्रतिदिन तीन बार प्रातः,दोपहर,सायं 15-15 मिनट के लिए करना चाहिए | एक बार में भी 45 मिनट तक कर सकते हैं |

चिकित्सकीय लाभ :

• शून्य मुद्रा के निरंतर अभ्यास से कान के रोग जैसे कान में दर्द, बहरापन, कान का बहना, कानों में अजीब-अजीब सी आवाजें आना आदि समाप्त हो जाते हैं। कान दर्द होने पर शून्य मुद्रा को मात्र 5 मिनट तक करने से दर्द में चमत्कारिक प्रभाव होता है।
• शून्य मुद्रा गले के लगभग सभी रोगों में लाभकारी है |
• यह मुद्रा थायराइड ग्रंथि के रोग दूर करती है।
• शून्य मुद्रा शरीर के आलस्य को कम कर स्फूर्ति जगाती है।
• इस मुद्रा को करने से मानसिक तनाव भी समाप्त हो जाता है |

आध्यात्मिक लाभ :

• शून्य मुद्रा के निरंतर अभ्यास से स्वाभाव में उन्मुक्तता आती है |
• इस मुद्रा से एकाग्रचित्तता बढती है |
• शून्य मुद्रा इच्छा शक्ति मजबूत बनाती है |

👉🏻६/. सूर्य मुद्रा (SURYA MUDRA):

विधि :
1. सिद्धासन,पदमासन या सुखासन में बैठ जाएँ |
2. दोनों हाँथ घुटनों पर रख लें हथेलियाँ उपर की तरफ रहें |
3. अनामिका अंगुली (रिंग फिंगर) को मोडकर अंगूठे की जड़ में लगा लें एवं उपर से अंगूठे से दबा लें |
4. बाकि की तीनों अंगुली सीधी रखें |

सावधानियाँ :

• अधिक कमजोरी की अवस्था में सूर्य मुद्रा नही करनी चाहिए |
• सूर्य मुद्रा करने से शरीर में गर्मी बढ़ती है अतः गर्मियों में मुद्रा करने से पहले एक गिलास पानी पी लेना चाहिए |

मुद्रा करने का समय व अवधि :

• प्रातः सूर्योदय के समय स्नान आदि से निवृत्त होकर इस मुद्रा को करना अधिक लाभदायक होता है | सांयकाल सूर्यास्त से पूर्व कर सकते हैं |
• सूर्य मुद्रा को प्रारंभ में 8 मिनट से प्रारंभ करके 24 मिनट तक किया जा सकता है |

चिकित्सकीय लाभ :

• सूर्य मुद्रा को दिन में दो बार 16-16 मिनट करने से कोलेस्ट्राल घटता है |
• अनामिका अंगुली पृथ्वी एवं अंगूठा अग्नि तत्व का प्रतिनिधित्व करता है , इन तत्वों के मिलन से शरीर में तुरंत उर्जा उत्पन्न हो जाती है |
• सूर्य मुद्रा के अभ्यास से मोटापा दूर होता है | शरीर की सूजन दूर करने में भी यह मुद्रा लाभकारी है |
• सूर्य मुद्रा करने से पेट के रोग नष्ट हो जाते हैं |
• इस मुद्रा के अभ्यास से मानसिक तनाव दूर हो जाता है |
• प्रसव के बाद जिन स्त्रियों का मोटापा बढ़ जाता है उनके लिए सूर्य मुद्रा अत्यंत उपयोगी है | इसके अभ्यास से प्रसव उपरांत का मोटापा नष्ट होकर शरीर पहले जैसा बन जाता है |

आध्यात्मिक लाभ :

• सूर्य मुद्रा के अभ्यास से व्यक्ति में अंतर्ज्ञान जाग्रत होता है |

👉७/. 🏻 प्राण मुद्रा (PRANA MUDRA):

विधि :

पद्मासन या सिद्धासन में बैठ जाएँ | रीढ़ की हड्डी सीधी रखें |
अपने दोनों हाथों को घुटनों पर रख लें,हथेलियाँ ऊपर की तरफ रहें |
हाथ की सबसे छोटी अंगुली (कनिष्ठा) एवं इसके बगल वाली अंगुली (अनामिका) के पोर को अंगूठे के पोर से लगा दें |

सावधानियाँ:

• प्राणमुद्रा से प्राणशक्ति बढती है यह शक्ति इन्द्रिय, मन और भावों के उचित उपयोग से धार्मिक बनती है। परन्तु यदि इसका सही उपयोग न किया जाए तो यही शक्ति इन्द्रियों को आसक्ति, मन को अशांति और भावों को बुरी तरफ भी ले जा सकती है। इसलिए प्राणमुद्रा से बढ़ने वाली प्राणशक्ति का संतुलन बनाकर रखना चाहिए।

मुद्रा करने का समय व अवधि :
• प्राणमुद्रा को एक दिन में अधिकतम 48 मिनट तक किया जा सकता है। यदि एक बार में 48 मिनट तक करना संभव न हो तो प्रातः,दोपहर एवं सायं 16-16 मिनट कर सकते है।

चिकित्सकीय लाभ :

• प्राणमुद्रा ह्रदय रोग में रामबाण है एवं नेत्रज्योति बढाने में यह मुद्रा बहुत सहायक है।
• इस मुद्रा के निरंतर अभ्यास से प्राण शक्ति की कमी दूर होकर व्यक्ति तेजस्वी बनता है।
• प्राणमुद्रा से लकवा रोग के कारण आई कमजोरी दूर होकर शरीर शक्तिशाली बनता है |
• इस मुद्रा के निरंतर अभ्यास से मन की बैचेनी और कठोरता को दूर होती है एवं एकाग्रता बढ़ती है।

आध्यात्मिक लाभ :

• प्राणमुद्रा को पद्मासन या सिद्धासन में बैठकर करने से शक्ति जागृत होकर ऊर्ध्वमुखी हो जाती है, जिससे चक्र जाग्रत होते हैं एवं साधक अलौकिक शक्तियों से युक्त हो जाता है ।
• प्राणमुद्रा में जल,पृथ्वी एवं अग्नि तत्व एक साथ मिलने से शरीर में रासायनिक परिवर्तन होता है जिससे व्यक्तित्व का विकास होता है।

👉🏻८/. लिंग मुद्रा : (LINGA MUDRA):

विधि :

किसी भी ध्यानात्मक आसन में बैठ जाएँ |
दोनों हाथों की अँगुलियों को परस्पर एक-दूसरे में फसायें (ग्रिप बनायें)
किसी भी एक अंगूठे को सीधा रखें तथा दूसरे अंगूठे से सीधे अंगूठे के पीछे से लाकर घेरा बना दें |
सावधानियाँ :

• लिंग मुद्रा से शरीर मे गर्मी उत्पन्न होती है,इसलिए इस मुद्रा को करने के पश्चात् यदि गर्मी महसूस हो तो तुरंत पानी पी लेना चाहिए |
• लिंग मुद्रा को नियत समय से अधिक नही करना चाहिए अन्यथा लाभ के स्थान पर हानि संभव है |
• गर्मी के मौसम में इस मुद्रा को अधिक समय तक नहीं करना चाहिए |
• पित्त प्रकृति वाले व्यक्तियों को लिंग मुद्रा नही करनी चाहिए |

मुद्रा करने का समय व अवधि :

• लिंग मुद्रा को प्रातः-सायं 16-16 मिनट तक करना चाहिए |

चिकित्सकीय लाभ :

• सर्दी से ठिठुरता व्यक्ति यदि कुछ समय तक लिंग मुद्रा कर ले तो आश्चर्यजनक रूप से उसकी ठिठुरन दूर हो जाती है |
• लिंग मुद्रा के अभ्यास से जीर्ण नजला,जुकाम, साइनुसाइटिस,अस्थमा व निमन् रक्तचाप का रोग नष्ट हो जाता है | इस मुद्रा के नियमित अभ्यास से कफयुक्त खांसी एवं छाती की जलन नष्ट हो जाती है |
• यदि सर्दी लगकर बुखार आ रहा हो तो लिंग मुद्रा तुरंत असरकारक सिद्ध होती है |
• लिंग मुद्रा के नियमित अभ्यास से अतिरिक्त कैलोरी बर्न होती हैं परिणाम स्वरुप मोटापा रोग समाप्त हो जाता है |
• लिंग मुद्रा पुरूषों के समस्त यौन रोगों में अचूक है । इस मुद्रा के प्रयोग से स्त्रियों के मासिक स्त्राव सम्बंधित अनियमितता ठीक होती हैं |
• लिंग मुद्रा के अभ्यास से टली हुई नाभि पुनः अपने स्थान पर आ जाती हैं |

आध्यात्मिक लाभ :

• यह मुद्रा पुरुषत्व का प्रतीक है इसीलिए इसे लिंग मुद्रा कहा जाता है। लिंग मुद्रा के अभ्यास से साधक में स्फूर्ति एवं उत्साह का संचार होता है | यह मुद्रा ब्रह्मचर्य की रक्षा करती है , व्यक्तित्व को शांत व आकर्षक बनाती है जिससे व्यक्ति आन्तरिक स्तर पर प्रसन्न रहता है ।

👉🏻९/. अपान मुद्रा : (APANA MUDRA):

विधि :

सुखासन या अन्य किसी आसान में बैठ जाएँ, दोनों हाथ घुटनों पर, हथेलियाँ उपर की तरफ एवं रीढ़ की हड्डी सीधी रखें |
मध्यमा (बीच की अंगुली)एवं अनामिका (RING FINGER) अंगुली के उपरी पोर को अंगूठे के उपरी पोर से स्पर्श कराके हल्का सा दबाएं | तर्जनी अंगुली एवं कनिष्ठा (सबसे छोटी) अंगुली सीधी रहे |
सावधानियाँ :

• अपान मुद्रा के अभ्यास काल में मूत्र अधिक मात्रा में आता है, क्योंकि इस मुद्रा के प्रभाव से शरीर के अधिकाधिक मात्रा में विष बाहर निकालने के प्रयास स्वरुप मूत्र ज्यादा आता है,इससे घबड़ाए नहीं |
• अपान मुद्रा को दोनों हाथों से करना अधिक लाभदायक है,अतः यथासंभव इस मुद्रा को दोनों हाथों से करना चाहिए ।

मुद्रा करने का समय व अवधि :

• अपान मुद्रा को प्रातः,दोपहर,सायं 16-16 मिनट करना सर्वोत्तम है |

चिकित्सकीय लाभ :

• अपान मुद्रा के नियमित अभ्यास से कब्ज,गैस,गुर्दे तथा आंतों से सम्बंधित समस्त रोग नष्ट हो जाते हैं |
• अपान मुद्रा बबासीर रोग के लिए अत्यंत लाभकारी है | इसके प्रयोग से बबासीर समूल नष्ट हो जाती है |
• यह मुद्रा मधुमेह के लिए लाभकारी है , इसके निरंतर प्रयोग से रक्त में शर्करा का स्तर सन्तुलित होता है |
• अपान मुद्रा शरीर के मल निष्कासक अंगों – त्वचा,गुर्दे एवं आंतों को सक्रिय करती है जिससे शरीर का बहुत सारा विष पसीना,मूत्र व मल के रूप में बाहर निकल जाता है फलस्वरूप शरीर शुद्ध एवं निरोग हो जाता है |

आध्यात्मिक लाभ :

• अपान मुद्रा से प्राण एवं अपान वायु सन्तुलित होती है | इस मुद्रा में इन दोनों वायु के संयोग के फलस्वरूप साधक का मन एकाग्र होता है एवं वह समाधि को प्राप्त हो जाता है |
• अपान मुद्रा के अभ्यास से स्वाधिष्ठान चक्र और मूलाधार चक्र जाग्रत होते है |

👉🏻१०/. अपान वायु मुद्रा (ह्रदय मुद्रा) : APAN VAYU MUDRA:

विधि :
1. सुखासन या अन्य किसी ध्यानात्मक आसन में बैठ जाएँ | दोनों हाथ घुटनों पर रखें, हथेलियाँ उपर की तरफ रहें एवं रीढ़ की हड्डी सीधी रहे |
2. हाथ की तर्जनी (प्रथम) अंगुली को मोड़कर अंगूठे की जड़ में लगा दें तथा मध्यमा (बीच वाली अंगुली) व अनामिका (तीसरी अंगुली) अंगुली के प्रथम पोर को अंगूठे के प्रथम पोर से स्पर्श कर हल्का दबाएँ |
3. कनिष्ठिका (सबसे छोटी अंगुली) अंगुली सीधी रहे ।

सावधानी :

• अपान वायु मुद्रा एक शक्तिशाली मुद्रा है इसमें एक साथ तीन तत्वों का मिलन अग्नि तत्व से होता है,इसलिए इसे निश्चित समय से अधिक नही करना चाहिए |

मुद्रा करने का समय व अवधि :

• अपान वायु मुद्रा करने का सर्वोत्तम समय प्रातः,दोपहर एवं सायंकाल है | इस मुद्रा को दिन में कुल 48 मिनट तक कर सकते हैं | दिन में तीन बार 16-16 मिनट भी कर सकते हैं |

चिकित्सकीय लाभ :

• अपान वायु मुद्रा ह्रदय रोग के लिए रामवाण है इसी लिए इसे ह्रदय मुद्रा भी कहा जाता है |
• दिल का दौरा पड़ने पर यदि रोगी यह मुद्रा करने की स्थिति में हो तो तुरंत अपान वायु मुद्रा कर लेनी चाहिए | इससे तुरंत लाभ होता है एवं हार्ट अटैक का खतरा टल जाता है |
• इस मुद्रा के नियमित अभ्यास से रक्तचाप एवं अन्य ह्रदय सम्बन्धी रोग नष्ट हो जाते हैं |
• अपान वायु मुद्रा करने से आधे सिर का दर्द तत्काल रूप से कम हो जाता है एवं इसके नियमित अभ्यास से यह रोग समूल नष्ट हो जाता है |
• यह मुद्रा उदर विकार को समाप्त करती है अपच,गैस,एसिडिटी,कब्ज जैसे रोगों में अत्यंत लाभकारी है |
• अपान वायु मुद्रा करने से गठिया एवं आर्थराइटिस रोग में लाभ होता है |

आध्यात्मिक लाभ :

• अपान वायु मुद्रा अग्नि,वायु,आकाश एवं पृथ्वी तत्व के मिलन से बनती है | इस मुद्रा के प्रभाव से साधक में सहनशीलता,स्थिरता,व्यापकता और तेज का संचार होता है |

👉११/. अदिति मुद्रा:

जुकाम में छींकें (Sneezing) आ रही हों तो करे – अदिति मुद्रा

लाभ :
इस मुद्रा को करने से हर समय
उबासी आना, ज्यादा छींक आना जैसे रोगों को दूर किया जा सकता है।

विधि –
अंगूठे के आगे के भाग
को अनामिका (छोटी उंगली के साथ
वाली उंगली) उंगली की जड़ में
टेढ़ा लगाने से अदिती मुद्रा बन
जाती है।

कितने समय तक करें :

अदिति मुद्रा को दिन में 3-4 बार
15-15 मिनटों के लिए कर सकते
हैं।

👉🏻 चेहरे की सुंदरता के लिये रक्तशोधिनी हरिमुद्रा

लाभ:

रक्तशोधिनी हरिमुद्रा शरीर और चेहरे को सुंदर बनाती है।
इस मुद्रा को करने से चेहरे की लाली बढ़ती है।
इस मुद्रा को करने से रक्त शुद्ध होता है एवं शरीर में लाल रक्त के कणों की वृद्धि होती है।
रक्तशोधिनी हरिमुद्रा के अभ्यास से दिमागी शक्ति भी तेज होती है।
रक्त विकार जैसे – खाज, खुजली, छाजन, फोड़े-फुंसी आदि सारे त्वचा के रोगों को यह मुद्रा समाप्त कर देती है।
विशेष :

रक्तशोधिनी हरिमुद्रा स्त्रियों के लिए विशेष रूप से लाभकारी है , इसके नियमित अभ्यास से खूबसूरती में आश्चर्यजनक रूप से वृद्धि होती है ।

विधि :

जमीन पर आसन बिछाकर बैठ जाएँ
दोनों हाथों की अंगुलियों एवं अंगूठे के अग्रभाग को जमीन पर टिका दें |
इसे रक्तशोधिनी हरिमुद्रा कहते है, इस स्थिति में अंगुलिया एवं अंगूठा सीधा रहना चाहिए एवं इनके अग्रभाग जमीन पर अच्छे से टिके रहने चाहिए |

कितने समय तक और कब करें
प्रातः सूर्योदय के समय तथा सांयकाल सूर्यास्त से पहले इस मुद्रा को किया जा सकता है |
प्रारंभ में पांच मिनट से शुरू करके 15 मिनट तक कर सकते हैं |

१२/. प्राणमुद्रा👉🏻:

नेत्र एवं ह्रदय रोग के लिए उपयोगी प्राणमुद्रा

लाभ :
ह्रदय रोग में रामबाण तथा नेत्रज्योति बढाने में यह मुद्रा बहुत सहायक है।
प्राणमुद्रा के निरंतर अभ्यास से व्यक्ति तेजस्वी बनता है।
प्राणमुद्रा करने से पूरे शरीर में ताकत पैदा हो जाती है तथा लकवे
के रोग के कारण आई हुई कमजोरी भी दूर होती है।
यह मुद्रा शरीर की कमजोरी, मन की बैचेनी और कठोरता को दूर
करती है।
प्राण शक्ति की कमी को प्राण मुद्रा द्वारा बढ़ाया जा सकता है
इससे सांस की नली ठीक रहती है।
विधि :
सबसे छोटी उंगली (जल तत्व) एवं अनामिका उंगली (पृथ्वी तत्व) के पोरों को अंगूठें के पोर (अग्नि तत्व) से मिलाकर जो मुद्रा बनती है उसे प्राण मुद्रा कहते हैं। प्राणमुद्रा अत्यंत प्रभावकारी मुद्रा है।
कितने समय तक करें
प्राणमुद्रा का अभ्यास अधिकतम 48 मिनट तक कर सकते हैं | यदि एकसाथ इस मुद्रा को नहीं कर सकते तो इसका अभ्यास 2-3 बार मे 16-16 मिनट में करके पूरा कर सकते है।

👉१३/. आकाश-मुद्रा:

विधि:- मध्यमा अँगुली को अँगूठे के अग्र भाग से मिलाये. शेष तीनों अँगुलियाँ सीधी रहें.
लाभ:- कान के सब प्रकारके रोग जैसे बहरापन आदि, हड्डियोंकी कमजोरी तथा हृदय-रोग ठीक होता है.
सावधानी:- भोजन करते समय एवं चलते-फिरते यह मुद्रा न करें. हाथों को सीधा रखें.
लाभ हो जाने तक ही करें.

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दादी की दोहावली


*”दादी की दोहावली”*

पानी में गुड़ डालिए,
बीत जाए जब रात!
सुबह छानकर पीजिए,
अच्छे हों हालात!!

धनिया की पत्ती मसल,
बूँद नैन में डार!
दुःखती अँखियाँ ठीक हों,
पल लागें दो-चार!!

ऊर्जा मिलती है बहुत,
पिएँ गुनगुना नीर!
कब्ज खतम हो पेट की,
मिट जाएँ सब पीर!!

दूषित पानी जो पिए,
बिगडे उसका पेट!
ऐसे जल को समझिए,
सौ रोगों का गेट!!

रोज मुलहठी चूसिए,
कफ बाहर आ जाए!
बने सुरीला कंठ भी,
सबको लगत सुहाए!!

भोजन करके खाईए,
सौंफ, गुड़, अजवान!
पत्थर भी पच जाएगा,
जानै सकल जहान!!

लौकी का रस पीजिए,
चोकर युक्त पिसान!
तुलसी, गुड़, सैंधा नमक,
हृदय-रोग निदान!!

हृदय-रोग, खाँसी और
आँव करें परेशान!
दो अनार खाएँ सदा,
बनवैं बिगड़े काम!!

चैत्र माह में नीम की,
पत्ती हर दिन खाएँ!
ज्वर, डेंगू या मलेरिया,
बारह मील भगाएँ!!

सौ वर्षों तक वह जिए,
जो लेत नाक से श्वास!
अल्पकाल जीवें, करें,
मुँह से श्वासोच्छ्वास!!

सितम, गर्म जल से कभी,
करिये मत स्नान!
घट जाता है आत्मबल,
नैनन को नुकसान!!

हृदय रोग से आपको,
बचना है श्रीमान!
सुरा, चाय या कोल्ड्रिंक,
का मत करिए पान!!

अगर नहावें गरम जल,
तन-मन हो कमजोर!
नयन-ज्योति कमजोर हो,
शक्ति घटे चहुँ ओर!!

तुलसी का पत्ता करें,
यदि हरदम उपयोग!
मिट जाते हर उम्र में,
तन के सारे रोग!!

प्रातः काल पानी पिएँ,
घूँट-घूँट कर आप!
एक-दो-तीन गिलास ही,
हर औषधि का बाप!!

ठँडा पानी पियो मत,
करता क्रूर प्रहार!
करे हाजमे का सदा,
ये तो बँटाढार!!

भोजन करें धरती पर,
अल्थी पल्थी मार!
चबा-चबा कर खाईए,
वैद्य न झाँकें द्वार!!

प्रातः काल फल रस लो,
दुपहर लस्सी-छांस!
दूध पिएँ तो रात में,
हो सभी रोगों का नाश!!

दही उड़द की दाल सँग,
पपीता दूध के संग!
जो खाएँ इक साथ में,
जीवन हो बदरंग!!

प्रातः-दोपहर लीजिए,
नित नियमित आहार!
तीस मिनट की नींद लें,
रोग न आवें द्वार!!

भोजन करके रात में,
घूमें कदम हजार!
डाक्टर, ओझा, वैद्य का ,
लुट जाए व्यापार !!

देश, भेष, मौसम यथा,
हो जैसा परिवेश!
वैसा भोजन कीजिए,
कहते सखा रमेश!!

इन बातों को मान कर,
जो करता उत्कर्ष!
जीवन में पग-पग मिले,
उस प्राणी को हर्ष!!

घूँट-घूँट पानी पियो,
रहो तनाव से दूर!
एसिडिटी, या मोटापा,
होवें चकनाचूर!!

जोड़दर्द या हार्निया,
अपेंडिक्स के त्रास!
पानी पीजै बैठकर,
कभी न आवें पास!!

रक्तचाप बढने लगे,
तब मत सोचो भाय!
सौगंध राम की खाई के,
तुरत छोड़ दो चाय!!

सुबह खाईए कुँअर-सा,
दुपहर यथा नरेश!
भोजन लीजै रात में,
जैसे रंक रमेश!!

देर रात तक जागना,
रोगों का जँजाल!
अपच, आँख के रोग सँग,
तन भी रहे निढाल!!

टूथपेस्ट-ब्रश छोडकर,
हर दिन दोनो जून!
दाँत करें मजबूत यदि,
करिएगा दातून!!

हल्दी तुरत लगाईए,
अगर काट ले श्वान!
खतम करे ये जहर को,
कह गए कवि महान!!

मिश्री, गुड़, खांड,
ये हैं गुण की खान!
पर सफेद शक्कर सखा,
समझो जहर समान!!

चुंबक का उपयोग कर,
ये है दवा सटीक!
हड्डी टूटी हो अगर,
अल्प समय में ठीक!!

दर्द, घाव, फोड़ा, चुभन,
सूजन, चोट पिराई!
बीस मिनट चुंबक धरौ,
पिरवा जाई हेराई!!

हँसना, रोना, छींकना,
भूख, प्यास या प्यार!
क्रोध, जम्हाई रोकना,
समझो बंटाढार!!

सत्तर रोगों कोे करे,
चूना तन से दूर!
दूर करे ये बाँझपन,
सुस्ती अपच हुजूर!!

यदि सरसों के तेल में,
पग नाखून डुबाय!
खुजली, लाली, जलन सब,
नैनों से गुमि जाय!!

भोजन करके जोहिए,
केवल घंटा डेढ!
पानी इसके बाद पिएँ,
ये औषधि का पेड़!!

जो भोजन के साथ ही,
पीता रहता नीर!
रोग एक सौ तीन हों,
फ़ूट जाए तकदीर!!

पानी करके गुनगुना,
मैथी देय भिगाय!
सुबह चबाकर नीर पी,
रक्तचाप सुधराय!!

घी देशी हो या वनस्पति,
या हो वनस्पति तेल!
इन्हें खाईएगा अगर,
हार्ट समझिए फेल!!

पहला स्थान सैंधा नमक,
पहाड़ी नमक सु जान!
श्वेत नमक है सागरी,
ये है जहर समान!!

तेल वनस्पति खाईके,
चर्बी लियो बढाई!
घेरा कोलेस्टरॉल तो,
अब रहई चिल्लाई!!

अल्यूमिनियम के पात्र का,
करता जो उपयोग!
आमंत्रित करता सदा ,
वह अड़तालीस रोग!!

फल या मीठा खाईके,
तुरत न पीजै नीर!
ये सब छोटी आँत में,
बनते विषधर तीर!!

चोकर खाने से सदा,
बढती तन की शक्ति!
गेहूँ मोटा पीसिए,
दिल में बढे विरक्ति!!

नींबू पानी का सदा,
करता जो उपयोग!
पास नहीं आते कभी,
यकृत-आँत के रोग!!

दूषित पानी जो पिए,
बिगड़े उसका पेट!
ऐसे जल को समझिए,
सौ रोगों का गेट!!

रोज मुलहठी चूसिए,
कफ बाहर आ जाय!
बने सुरीला कंठ भी,
सबको लगत सुहाय!!

भोजन करके खाईए,
सौंफ, गुड़, अजवान!
पत्थर भी पच जायगा,
जानै सकल जहान!!

लौकी का रस पीजिए,
चोकर युक्त पिसान!
तुलसी, गुड, सैंधा नमक,
हृदय रोग निदान!!

हृदय रोग, ख़ाँसी और
आंव करें परेशान!
दो अनार खाएँ सदा,
बन जाएँ बिगड़े काम!!

चैत्र माह में नीम की,
पत्ती हर दिन खावे !
ज्वर, डेंगू या मलेरिया,
बारह मील भगावे !!

सौ वर्षों तक वे जिएँ,
लेत नाक से सांस!
अल्पकाल जीवें, करें,
मुँह से श्वासोच्छ्वास!!

सितम, गर्म जल से कभी,
करिये मत स्नान!
घट जाता है आत्मबल,
नैनन को नुकसान!!

हृदय रोग से आपको,
बचना है श्रीमान!
सुरा, चाय या कोल्ड्रिंक,
का मत करिए पान!!

अगर नहावें गरम जल,
तन-मन हो कमजोर!
नयन ज्योति कमजोर हो,
शक्ति घटे चहुँ ओर!!

तुलसी का पत्ता करें,
यदि हरदम उपयोग!
मिट जाते हर उम्र में,
तन के सारे रोग!!
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सैंधा नमक


“सैंधा नमक” :
सैंधा नमक भारत से कैसे गायब कर दिया गया…!!!???
सैंधा नमक रोगजन्य वात, पित्त और कफ को दूर करता है।
एक होता है समुद्री नमक (sea salt) और दूसरा होता है सैंधा नमक (rock slat) !!
सैंधा नमक बनाया नहीं जाता बल्कि पहले से ही बना बनाया होता है !! पूरे उत्तर भारतीय उपमहाद्वीप में खनिज पत्थर के नमक को ‘सैंधा नमक’ ‘सैन्धव नमक’, लाहोरी नमक आदि-आदि नाम से जाना जाता है, जिसका मतलब है ‘सिंध या सिन्धु के इलाक़े से आया हुआ’। सिंध और लाहौर में सैंधा नमक के बड़े-बड़े प्राकृतिक पहाड़ एवं सुरंगे हैं !! वहाँ से ये नमक मोटे मोटे टुकड़ो में आता है। आजकल पिसा हुआ भी आने लगा है।
यह ह्रदय के लिये उत्तम, पाचक, त्रिदोष शामक, ठंडी तासीर वाला व पचने मे हल्का होता है। इससे पाचक रस बढ़ते हैं।बेहतरी इसी में है कि समुद्री नमक के चक्कर से बाहर निकलकर सैंधा नमक का प्रयोग ही आरँभ किया जाए।

आयोडीन के नाम पर हम जो नमक खाते हैं उसमें आयोडीन और फ्रीफ्लो नमक बनाते समय नमक से सारे तत्व निकाल लिए जाते हैं और बाज़ार में जो नमक उपलब्ध होता है उसमें अन्य पोषक तत्व नहीं होते, सिर्फ सोडियम ही होता है। आयोडीन की कमी के नाम पर यह नमक पूरे देश में बेचा जाता है, जबकि आयोडीन की कमी सिर्फ पर्वतीय क्षेत्रों में ही पार्इ जाती है इसलिए सही मायनों में देखा जाए तो आयोडीन युक्त नमक की ज़रूरत केवल पहाड़ी क्षेत्रों के लिए होती है, ना कि सारे देश के लिए।

भारत मे 1930 से पहले कोई भी समुद्री नमक नहीं खाता था।
विदेशी कंपनियाँ भारत में नमक के व्यापार में आज़ादी के पहले से ही उतरी हुई हैं। उनके कहने पर ही भारत के अँग्रेजी शासन द्वारा सँपूर्ण भारत की भोली-भाली जनता को आयोडीन मिलाकर समुद्री नमक खिलाना आरँभ कर दिया गया।

हमारे देश में यह सिलसिला इस प्रकार आरँभ हुआ- ग्लोबलाईसेशन के बाद बहुत सी विदेशी कंपनियों (अन्नपूर्णा, कैपटन कुक) ने नमक बेचना शुरू किया, यहीं से ये सारा खेल शुरू हुआ!
अब समझिए खेल क्या था ??
खेल यह था कि विदेशी कंपनियों को नमक बेचना है और बहुत मोटा लाभ कमाना है और लूट मचानी है तो पूरे भारत मे एक नई बात फैलाई गई कि आयोडीन युक्त नामक खाओ… आयोडीन युक्त नमक खाओ!
सादा नमक सेहत के लिए बहुत नुक्सान दायक है और ये आयोडीन वाला नमक सेहत के लिए बहुत अच्छा है… आदि-आदि बातें पूरे देश में प्रायोजित ढंग से फैलाई गईं !! इस प्रकार जो सादा नमक किसी जमाने में 25 से 50 पैसे प्रति किलो बिकता था, उसकी जगह आयोडीन नमक के नाम पर सीधा भाव पहुँच गया 8 रूपये प्रति किलो ! और आज तो इसकी कीमत 20-25 रूपये प्रति कलो को भी पार कर गई है !

दुनिया के 56 देशों ने अतिरिक्त आयोडीन से युक्त नमक को 40-50 साल पहले ही ban कर दिया। अमेरिका में नहीं है जर्मनी में नहीं है फ़्राँस में नहीं है, डेन्मार्क मे नहीं है, बस भारत में यह धड़ल्ले से बेचा जा रहा है!!!डेन्मार्क की सरकार ने 1956 में आयोडीन युक्त नमक प्रतिबंधित कर दिया, उनकी सरकार ने कहा- “आयोडीन युक्त नमक खाने से (1940 से 1956 तक ) हमारे यहाँ अधिकांश लोग नपुंसक हो गए और जनसंख्या इतनी कम हो गई कि देश के खत्म होने का खतरा हो गया! तब वैज्ञानिको ने आयोडीन युक्त नमक बंद करवाया!”
लेकिन शुरू के दिनों में हमारे देश में जब ये आयोडीन युक्त नमक का खेल शुरू हुआ इस देश के बेशर्म नेताओ ने कानून बना दिया कि बिना आयोडीन वाला सादा नमक देश के अंदर बिक ही नहीं सकता!!!
अभी-अभी कुछ समय पूर्व किसी ने कोर्ट में मुकदमा दाखिल किया और ये बैन हटाया गया।

जैसा कि सर्वविदित है, हमारे दर्श में कुछ दशक पहले कोई भी समुद्री नमक नहीं खाता था सब सैंधा नमक ही खाते थे !

सैंधा नमक के उपयोग से रक्तचाप और बहुत ही गंभीर बीमारियों पर नियन्त्रण रहता है, क्योंकि यह अम्लीय नहीं अपितु क्षारीय (alkaline) प्रकृति का होता है। इस प्रकार क्षारीय चीज पेट एवं रक्त के अम्ल में मिलकर न्यूटल हो जाती है और इस प्रकार रक्त-अम्लता खत्म होते ही शरीर के पचासों रोग ठीक हो जाते हैं।
सैंधा नामक शरीर मे पूरी तरह से घुलनशील है। शुद्धता के कारण ही उपवास, व्रत में सब सैंधा नमक ही खाते हैं ! ज़रा सोचिए… जो समुंद्री नमक उपवास को अपवित्र कर सकता है वो मानव शरीर के लिए कैसे लाभकारी हो सकता है ??
सैंधा नमक शरीर में 97 पोषक तत्वों की कमी को पूरा करता है। इन पोषक तत्वों की कमी के कारण ही लकवे (paralysis ) के अटैक आने का सबसे बढ़ा जोखिम होता है।
सैंधा नमक के बारे में आयुर्वेद में बताया गया है कि सैंधा नमक वात, पित्त और कफ को दूर करता है। यह पाचन में सहायक होता है और साथ ही इसमें पोटैशियम और मैग्नीशियम पाया जाता है जो हृदय के लिए लाभकारी होता है। यही नहीं आयुर्वेदिक औषधियों में… जैसे लवण भाष्कर, पाचन चूर्ण आदि में भी प्रयोग किया जाता है।

समुद्री नमक :-
आयुर्वेद के अनुसार ये नमक अपने आप में ही बहुत खतरनाक है ! कंपनियाँ इसमें अतिरिक्त आयोडीन डालती हैं!! आयोडीन दो तरह का होता है एक प्राकृतिक जो पहले से नमक में होता है यानि सैंधा नमक तथा दूसरा industrial iodine जोकि बहुत ही खतरनाक होता है।
समुद्री नमक जो पहले से ही खतरनाक है उसमें अतिरिक्त industrial iodine डालकर ये कंपनियाँ को पूरे देश को बेच रही है ! जिससे बहुत सी गँभीर बीमरियाँ हम लोगों को आ रही हैं! ये नमक मानव द्वारा फ़ैक्टरियों में निर्मित है !

आमतौर से उपयोग में लाए जाने वाले समुद्री नमक से उच्च-रक्तचाप (high BP), डाईबिटीज़, आदि गंभीर बीमारियों का भी कारण बनता है। इसका मुख्य कारण ये है कि यह नमक अम्लीय (acidic) होता है ! जिससे रक्त-अम्लता बढ़ती है और ये नमक पानी में भी कभी पूरी तरह तेजी से नहीं घुलता बल्कि हीरे (diamond) की तरह चमकता रहता है। इसी प्रकार शरीर के अंदर जाकर ना तो घुलता है और ना ही अंत में यह शरीर से बाहर ही निकल पाता है बल्कि किडनी आदि अन्य स्थानों में deposit हो हो कर पथरी, उच्च रक्तचाप, हृदय रोग आदि अनेकानेक रोगों का कारण बनता है ! ये नमक नपुंसकता और लकवा (paralysis) का बहुत बड़ा कारण होता है।

रिफाइण्ड नमक में 98% सोडियम क्लोराइड ही है शरीर इसे विजातीय पदार्थ के रुप में रखता है। यह शरीर में घुलता नहीं है। इस नमक में आयोडीन को बनाये रखने के लिए Tricalcium Phosphate, Magnesium Carbonate, Sodium Alumino Silicate जैसे रसायन मिलाये जाते हैं जो सीमेंट बनाने में इस्तेमाल होते हैं।
विज्ञान के अनुसार ये रसायन शरीर में रक्त वाहिनियों को कड़ा बनाते हैं जिससे blockage की संभावना बढ़ती है व आक्सीजन के प्रवहन में परेशानी होती है, जोड़-दर्द,गठिया, प्रोस्टेट आदि की संभावनाएँ बढ़ जाती हैं।
आयोडीन नमक से पानी की जरुरत ज्यादा होती है। आयोडीन नमक अपने से 23 गुना अधिक पानी खींचता है। यह पानी कोशिकाओं के पानी को कम करता है। इसी कारण हमें प्यास ज्यादा लगती है।

निवेदन :-
05 हजार साल पुरानी आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति में भी भोजन में सैंधा नमक के ही इस्तेमाल की सलाह दी गई है। भोजन में नमक व मसाले का प्रयोग भारत, नेपाल, चीन, बंगलादेश और पाकिस्तान में अधिक होता है। आजकल बाजार में ज्यादातर समुद्री जल से तैयार नमक ही मिलता है। जबकि 1960 के दशक में देश में लाहौरी नमक मिलता था। यहाँ तक कि राशन की दुकानों पर भी इसी नमक का वितरण किया जाता था। सैंधा नमक स्वाद के साथ-साथ स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी होता था। समुद्री नमक के बजाय सैंधा नमक का प्रयोग ही होना चाहिए। आयोडीन के चक्कर में समुद्री नमक खाना समझदारी नहीं है, सैंधा नमक में काफी आयोडीन होता है और वह भी प्रकृति द्वारा बनाया आयोडीन होता है।इसके अलावा आयोडीन हमें सिंघाड़ा, कमल ककड़ी, आलू, अरबी के साथ-साथ हरी सब्जियों से भी मिल जाता है।