Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

सभी गलतफहमी रखने वालों को समर्पित


प्राइवेट काम करने वालों को लगता है कि सरकारी कर्मचारी को तो फोकट की तन्ख्वाह मिलती है।
एक वैल्डिन्ग मिस्त्री काफी दिनो से एक सरकारी कर्मचारी को तन्ख्वाह ज्यादा होने ,व काम कम होने के ताने दे रहा था |
एक दिन सरकारी कर्मचारी का दिमाग खराब हो गया वह घर से एक टूटी बाल्टी की कड़ी डलवाने व पुराना टूटा हुआ हत्था लेकर उस मिस्त्री के पास जा पहुँचा |
मिस्त्री ने 100 रू मरम्मत खर्च बताया …
कर्मचारी बोला – 150 रू दे दूँगा .. पर कुछ नियम ध्यान में रखना..
मिस्त्री राजी होकर बोला -बताओ बाबूजी जी..?
.
कर्मचारी ने एक रजिस्टर निकाला और मिस्त्री से
बोला – ये लो इस मे रिकार्ड भरना है…
1.बाल्टी किस सन में बनी व कब टूटी (RTI)
2.बाल्टी किस हाथ से बनी है BPL/OTHERS
3.बाल्टी की मरम्ममत में खर्च वैल्डर,बिजली,पानी व समय का ब्यौरा दर्ज करना होगा।
4.मरम्मत से पहले व बाद मे बाल्टी का वजन लिखना होगा।
5.हत्थे में कितनी जंग लग चुकी है …
उसका वजन दर्ज करना होगा
6. ये सारी जानकारी भरकर सरपंच, ग्राम सेवक व् पटवारी के मोहर सहित साईन और चार गवाहो के साईन जरूर होने चाहिए।
इतना सुनते ही मिस्त्री ने रजिस्टर फैक दिया और बोला =
“ये काम तो मैं 1500 में भी नही कर सकता…”
तो अब सुन भाई
सरकारी कर्मचारी बोला = जितना काम तुम करने से घबरा गए हो …
उतना तो हम एक घन्टे में करते हैं …!!
इसीलिये तनख़्वाह भी लेते हैं
😀😀😜
सभी गलतफहमी रखने वालों को समर्पित

Posted in कविता - Kavita - કવિતા

उड़ चले है हम आसमा को,


उड़ चले है हम आसमा को,
सर वतन का नही झुकने देंगे,

ओड़ लेंगे कफ़न की चादर पर
तिरंगे का सर नही फटने देंगें,

तुम लाख दफ़ा कोशिश कर लो,
तुम्हारे ख्वाब न हम पकने देंगे,

जला देंगे उसे लहू की ज्वाला से प्रभु,
कश्मीर की कतरा भी न सूंघने देंगे,

हैं दम तो लेकर देखो,
तुम्हारी दुम को भी तोड़ कर देंगे….

-प्रभु पाण्डेय

Posted in आरक्षण

“आओ मिलकर आग लगाएँ”


“आओ मिलकर आग लगाएँ”

आओ मिलकर आग लगाएँ,
नित-नित नूतन स्वांग करें!
पौरुष की नीलामी कर दें,
आरक्षण की माँग करें!!

पहले से हम बँटे हुए हैं,
और अधिक बँट जाएँ हम!
100 करोड़ हिन्दू हैं मिलकर,
इक दूजे को खाएँ हम!!

देश मरे भूखा चाहे पर,
अपना पेट भराओ जी!
शर्माओ मत…भारत माँ के,
बाल नोचने आओ जी!!

तेरा हिस्सा मेरा हिस्सा,
किस्सा बहुत पुराना है!
हिस्से की रस्साकसियों में
भूल नहीं ये जाना है!!

याद करो भूखण्डों पर हम,
आपस में टकराते थे!
गज़नी कासिम बाबर मौका,
पाते ही घुस आते थे!!

अब हम लड़ने आए हैं,
आरक्षण की रोटी पर,
जैसे कुत्ते झगड़ रहे हों,
कटी गाय की बोटी पर!!

हमने कलम किताब लगन को,
दूर बहुत ही फेंका है!
नाकारों को खीर खिलाना,
संविधान का ठेका है!!

मैं भी पिछड़ा…मैं भी पिछड़ा,
कहकर बनो भिखारी जी!
ठाकुर पंडित बनिया सब के
सब कर लो तैयारी जी!!

जब पटेल के कुनबों की,
थाली खाली हो सकती है!
कई राजपूतों के घर भी,
कंगाली हो सकती है!!

बनिए का बेटा रिक्शे की,
मज़दूरी कर सकता है!
और किसी वामन का बेटा,
भूखा भी मर सकता है!!

आओ इन्हीं बहानों को,
लेकर सड़कों पर टूट पड़ो!
अपनी अपनी बिरादरी का,
झंडा लेकर छूट पड़ो!!

शर्म करो, हिन्दू बनते हो,
नस्लें तुम पर थूकेंगी!
बँटे हुए हो जाति पंथ में,
ये ज्वालाएँ फूकेंगी!

मैं पटेल हूँ मैं गुर्जर हूँ,
लड़ते रहिए शानों से!
फिर से तुम जूते खाओगे,
गजनी की संतानो से!!

ऐसे ही हिन्दू समाज के
कतरे-कतरे कर डालो!
संविधान को छलनी कर के,
गोबर इसमें भर डालो!!

“राम-राम” करते इक दिन तुम,
“अस्सलाम” हो जाओगे!
बँटने पर ही अड़े रहे तो,
फिर गुलाम हो जाओगे…।।

Posted in सुभाषित - Subhasit

जो अपने लिए याचना करता है वह शोक का पात्र है


आत्मार्थ यस्तु याचित स शोच्यो हि सुरेश्वरौ।
जीवितं सफलं तस्य यः परार्थोद्यतः सदा।।
अग्निरापो रविः पृथ्वी धान्यानि विविधानि च।
परार्थं वर्तनं तेषां सतां चापि विशेषतः।।
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जो अपने लिए याचना करता है वह शोक का पात्र है ,जो सदा परोपकार हेतु उद्यत रहता है उसी का जीवन सफल है।अग्नि,जल,सूर्य,पृथ्वी और नाना प्रकार के धान्यों तथा विशेषतः संत महात्माओं का उपयोग सदा दूसरों के भले के लिए होता है।

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दो बच्चे रात को एक दुकान से संतरों की टोकरी चुराकर


दो बच्चे रात को एक दुकान से संतरों की टोकरी चुराकर लाए और सोचा कि इनका बंटवारा कर लेते हैं । एक ने कहा कि चलो कब्रिस्तान में चलकर बंटवारा कर लेते हैं । तब वो दोनों कब्रिस्तान के दरवाजे को फांदकर अंदर जाते हैं , उसी समय दो संतरे टोकरी में से गिर जाते हैं । वो उन्हे अनदेखा कर आगे बढकर एक कब्र के पास बैठकर संतरों का बंटवारा करते हैं । एक तेरा एक मेरा, एक तेरा एक मेरा ।
उसी समय एक शराबी वँहा से गुजरता है । जैसे ही वो “एक तेरा एक मेरा ” की आवाज सुनता है उसका नशा हिरन हो जाता है और भागता हुआ पादरी के पास जाता है और कहता है कि कब्रिस्तान में भगवान और शैतान आपस में मुर्दों को बांट रहे हैं । मैंने उन्हें एक तेरा एक मेरा कहते सुना है ।
इतना सुनकर पादरी उस शराबी के साथ जाता है और जैसे ही दोनों कब्रिस्तान के गेट तक पहुँचते है वैसे ही उल्टे पाँव वापस भाग जाते है क्योंकि अंदर से आवाज आती है इनका तो बंटवारा हो गया लेकिन जो दो कब्रिस्तान के दरवाजे के पास है उनका क्या करें

Posted in भारतीय मंदिर - Bharatiya Mandir

माता मनसा देवी मन्दिर


*माता मनसा देवी मन्दिर*

माता मनसा देवी मंदिर पंचकुला ज़िले में शिवालिक पहाड़ी की तलहटी पर स्थित है। यह मन्दिर चंडीगढ़ से तक़रीबन 10 किमी और पंचकुला से 4 किमी दूर है। माँ शक्ति का स्वरुप माने जाने वाली ‘माता मनसा देवी’ इस मन्दिर की अधिष्ठात्री देवी हैं। इस मन्दिर में मनसा देवी के साथ माँ सरस्वती और लक्ष्मी जी की पिंडी स्वरुप में पूजा की जाती है।

लगभग 200 साल पुराना मनसा देवी मंदिर 110 एकड़ में बना हुआ है। इस मंदिर के निर्माण में गुम्बद और मीनारों के साथ ही दीवारों पर भी मुग़ल स्थापत्य की झलक मिलती है। इस मंदिर का निर्माण पंचायतन शैली में हुआ है। मनसा देवी मंदिर के प्रांगण में दो मंदिर हैं। मुख्य मन्दिर मनसा देवी को समर्पित है और इसका निर्माण मनीमाजरा के महाराज गोपाल सिंह द्वारा 1811-1815 में कराया गया। इससे 200 मी की दूरी पर ही दूसरा मंदिर स्थित है जिसे पटियाला मंदिर के नाम से जाना जाता है। इसका निर्माण श्री करम सिंह ने सन 1840 में कराया।

पंचकुला स्थित मनसा देवी मंदिर उत्तर भारत के मुख़्य शक्ति स्थलों में से एक है। हर साल नवरात्रि के दौरान यहाँ लाखों श्रद्धालू माता मनसा देवी के दर्शन करने आते हैं।

Posted in कविता - Kavita - કવિતા

उठ जाता हूं..भोर से पहले..सपने सुहाने नही आते


*उठ जाता हूं..भोर से पहले..सपने सुहाने नही आते..*_
_*अब मुझे स्कूल न जाने वाले..बहाने बनाने नही आते..*_

_*कभी पा लेते थे..घर से निकलते ही..मंजिल को..*_
_*अब मीलों सफर करके भी…ठिकाने नही आते..*_

_*मुंह चिढाती है..खाली जेब..महीने के आखिर में..*_
_*अब बचपन की तरह..गुल्लक में पैसे बचाने नही आते..*_

_*यूं तो रखते हैं..बहुत से लोग..पलको पर मुझे..*_
_*मगर बेमतलब बचपन की तरह गोदी उठाने नही आते..*_

_*माना कि..जिम्मेदारियों की..बेड़ियों में जकड़ा हूं..*_
_*क्यूं बचपन की तरह छुड़वाने..वो दोस्त पुराने नही आते..*_

_*बहला रहा हूं बस दिल को बच्चों की तरह..*_
_*मैं जानता हूं..फिर वापस बीते हुए जमाने नही आते..*

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एक गिद्ध का बच्चा अपने माता-पिता के साथ रहता था।


 

 

🌿🌾 एक गिद्ध का बच्चा अपने माता-पिता के साथ रहता था।

🌿🌾 एक दिन गिद्ध का बच्चा अपने पिता से बोला-
“पिताजी, मुझे भूख लगी है।”

🌿🌾 “ठीक है, थोड़ी देर प्रतीक्षा कर। मैं अभी भोजन लेकर आता हूँ।” कहते हुए गिद्ध उड़ने को उद्धत होने लगा।

🌿🌾 तभी उसके बच्चे ने उसे टोक दिया, “रुकिए पिताजी,
आज मेरा मन इन्सान का गोश्त खाने का कर रहा है।”

🌿🌾 “ठीक है, मैं देखता हूँ।” कहते हुए गिद्ध ने चोंच से अपने पुत्र का सिर सहलाया और बस्ती की ओर उड़ गया।

🌿🌾 बस्ती के पास पहुँच कर गिद्ध काफी देर तक इधर-उधर मँडराता रहा, पर उसे कामयाबी नहीं मिली। थक-हार कर वह सुअर का गोश्त लेकर अपने घोंसले में पहुँचा।
उसे देख कर गिद्ध का बच्चा बोला- “पिताजी, मैंने आपसे इन्सान का गोश्त लाने को कहा था, और आप तो सुअर का गोश्त ले आए?”

🌿🌾 पुत्र की बात सुनकर गिद्ध झेंप गया और बोला-
“ठीक है, तू थोड़ी देर प्रतीक्षा कर।” कहते हुए गिद्ध पुन: उड़ गया।
उसने इधर-उधर बहुत खोजा, पर उसे कामयाबी नहीं मिली। अपने घोंसले की ओर लौटते समय उसकी नजर एक मरी हुई गाय पर पड़ी। उसने अपनी पैनी चोंच से गाय के मांस का एक टुकड़ा तोड़ा और उसे लेकर घोंसले पर जा पहुँचा। यह देखकर गिद्ध का बच्चा एकदम से बिगड़ उठा-“पिताजी, ये तो गाय का गोश्त है। मुझे तो इन्सान का गोश्त खाना है। क्या आप मेरी इतनी सी इच्छा पूरी नहीं कर सकते?”

🌿🌾 यह सुनकर गिद्ध बहुत शर्मिंदा हुआ। उसने मन ही मन एक
योजना बनाई और अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए निकल पड़ा। गिद्ध ने सुअर के गोश्त एक बड़ा सा टुकड़ा उठाया और उसे मस्जिद की बाउंड्री वाल के अंदर डाल दिया। उसके बाद उसने गाय का गोश्त उठाया और उसे मंदिर के पास फेंक दिया।

🌿👤 माँस के छोटे-छोटे टुकड़ों ने अपना काम किया और देखते ही पूरे शहर में आग लग गयी। रात होते-होते चारों ओर इंसानों की लाशें बिछ गईं।

🌿👤 यह देखकर गिद्ध बहुत प्रसन्न हुआ। उसने एक इन्सान के
शरीर से गोश्त का बड़ा का टुकड़ा काटा और उसे लेकर अपने
घोंसले में जा पहुँचा। यह देखकर गिद्ध का पुत्र बहुत प्रसन्न हुआ।
वह बोला- “पापा ये कैसे हुआ? इन्सानों का इतना ढेर सारा गोश्त आपको कहाँ से मिला?”
गिद्ध बोला- “बेटा कहने को तो इंसान खुद को बुद्धि के मामले में सबसे श्रेष्ठ समझता है, पर जरा-जरा सी बात पर ‘जानवर’ से भी बदतर बन जाता है और बिना सोचे-समझे मरने-मारने पर उतारू हो जाता है।
इन्सानों के वेश में बैठे हुए अनेक गिद्ध ये काम सदियों से कर रहे हैं।
मैंने मनुष्य की इसी वृत्ति का लाभ उठाया और इन्सान को जानवर के गोश्त से जानवर से भी बद्तर बना दिया।”

🌿👥 साथियों, थोड़ा गँभीरता से सोचने की बात है।
हमारे बीच बैठे हुए गिद्ध हमें कब तक अपनी ऊँगली पर नचाते रहेंगे?
और कबतक हम जरा-जरा सी बात पर अपनी इन्सानियत भूलकर मानवता का खून बहाते रहेंगे?

🌿👥 अगर आपको यह कहानी सोचने के लिए विवश कर दे, तो प्लीज़ इसे समय-समय से दूसरों तक भी पहुँचाते रहें।
हो सकता है आपका यह छोटा सा प्रयास इंसानों के बीच छिपे हुए किसी गिद्ध को इन्सान बनाने का कारण बन जाए।

👥 धन्यवाद। प्रणाम।। 👥

Posted in सुभाषित - Subhasit

भगवान के गुणों


सर्वारिष्टहरं सुखैकरमणं शान्त्यास्पदं भक्तिदं स्मृत्या ब्रह्मपदप्रदं स्वरसदं प्रेमास्पदं शाश्वतम्।
मेघश्यामशरीरमच्युतपदं पीताम्बरं सुन्दरं श्रीकृष्णं सततं ब्रजामि शरणं कायेन वाचा धिया।।
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ॐ श्री कृष्णाय नमः
ॐ श्री माधवाय नमः
सर्वेषां स्वस्तिर्भवतु
सर्वं मङ्गलं अस्तु
सादर अभिनंदनम्
प्रभात मङ्गलम्
वन्देमातरम्
ॐ शांतिः
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मनुष्यों में जो गुण है वे परिमित,प्राकृत,लौकिक,अल्प और जड़ हैं किंतु भगवान् के गुण अपरिमित,अनन्त, अप्राकृत,अलौकिक,दिव्य और चिन्मय हैं ब्रह्माण्ड के समस्त गुण मिलकर भी उस गुणागार भगवान के गुणों की एक बूंद के बराबर भी नहीं हैं।

Posted in भारत का गुप्त इतिहास- Bharat Ka rahasyamay Itihaas

चंद्रशेखर ” आजाद “


चंद्रशेखर ” आजाद ” की शहादत के बाद उनके परिवार का क्या हश्र हुआ उसे सुनकर आपकी आँखे नम हो जाऐंगी…..

भारत माता के अमर बलिदानी सपूत चंद्रशेखर आज़ाद और उनकी माता की पुण्य स्मृतियों के साथ इस कहानी का जन्म हुआ ! यह कहानी आजाद की शहादत के बाद जन्मी ! यह कहानी हम भारतीयों की कहानी कहती है ! सच की पृष्ठभूमि से भी परिचित हो लीजिये ! इस कहानी का जिक्र करना बेहद आवश्यक इसलिए है क्यूंकि आप इसे समझ सकें कि तब कैसे कैसे लोग थे और आज कैसे कैसे लोग है !
चंद्रशेखर आजाद का क्रांतिकारी जीवन का केंद्र बिंदु झांसी रहा था ! जहाँ क्रांतिकारियों में उनके २-3 करीबियों में से एक सदाशिव राव मलकापुरकर रहते थे ! चंद्रशेखर आजाद अपने जीवन में बहुत अधिक गोपनीयता रखते थे इस कारण वह आजीवन कभी भी पुलिस द्वारा पकडे नहीं गए थे ! उन्हें इसका अहसास था कि उनके साथियों में कुछ कमजोर कड़ी है जो पुलिस की प्रताड़ना पर विश्वसनीय नहीं रह जायेंगे ! लेकिन सदाशिव जी उन विश्वसनीय लोगों में से थे जिन्हें आजाद अपने साथ मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले के भाबरा गाँव ले गए थे और अपने पिता सीताराम तिवारी एवं माता जगरानी देवी से मिलवाया था !

सदाशिव राव आजाद की मृत्यु के पश्चात भी ब्रिटिश शासन के विरुद्ध संघर्ष करते रहे एवं कई बार जेल भी गए ! आजादी के बाद जब वह स्वतंत्र हुए तो वह आजाद के माता पिता का हालचाल पूछने उनके गाँव पहुंचे ! वहां उन्हें पता चला कि चंद्रशेखर आज़ाद की शहादत के कुछ वर्षों बाद उनके पिता जी की भी मृत्यु हो गयी थी ! आज़ाद के भाई की मृत्यु भी इससे पहले ही हो चुकी थी ! अत्यंत निर्धनावस्था में हुई उनके पिता की मृत्यु के पश्चात आज़ाद की निर्धन निराश्रित वृद्ध माताश्री उस वृद्धावस्था में भी किसी के आगे हाथ फ़ैलाने के बजाय जंगलों में जाकर लकड़ी और गोबर बीनकर लाती थी तथा कंडे और लकड़ी बेचकर अपना पेट पालती रहीं ! लेकिन वृद्ध होने के कारण इतना काम नहीं कर पाती थीं कि भरपेट भोजन का प्रबंध कर सकें ! अतः कभी ज्वार कभी बाज़रा खरीद कर उसका घोल बनाकर पीती थीं क्योंकि दाल चावल गेंहू और उसे पकाने का ईंधन खरीदने लायक धन कमाने की शारीरिक सामर्थ्य उनमे शेष ही नहीं रह गयी थी !
सबसे शर्मनाक बात तो यह कि उनकी यह स्थिति देश को आज़ादी मिलने के 2 वर्ष बाद (1949 ) तक जारी रही ! (यहां आज की पीढ़ी के लिए उल्लेख करना आवश्यक है कि उस दौर में ज्वार और बाज़रा को ”मोटा अनाज” कहकर बहुत उपेक्षित और हेय दृष्टि से देखा जाता था और इनका मूल्य गेंहू से बहुत कम होता था)
सदाशिव राव ने जब यह देखा तो उनका मन काफी व्यथित हो गया ! एक महान राष्ट्र भक्त की माँ दिन के एक वक़्त के भोजन के लिए तरस रही थी ! जब उन्होंने गाँव से कोई मदद न मिलने का कारण पता किया तो पता चला कि चंद्रशेखर आजाद की माँ को एक डकैत की माँ कहकर उलाहना दिया जाता थी और समाज ने उनका बहिष्कार सा किया हुआ था !

आजाद जी की माँ की इस दुर्दशा को देख सदाशिव जी ने उनसे अपने साथ झांसी चलने को कहा परन्तु उस स्वाभिमानी माँ ने अपनी उस दीनहीन दशा के बावजूद उनके साथ चलने से इनकार कर दिया था ! तब चंद्रशेखर आज़ाद जी को दिए गए अपने एक वचन का वास्ता देकर सदाशिव जी उन्हें अपने साथ अपने घर झाँसी लेकर आये थे, क्योंकि उनकी स्वयं की स्थिति अत्यंत जर्जर होने के कारण उनका घर बहुत छोटा था अतः उन्होंने आज़ाद के ही एक अन्य मित्र भगवान दास माहौर के घर पर आज़ाद की माताश्री के रहने का प्रबंध किया था और उनके अंतिम क्षणों तक उनकी सेवा की ! मार्च १९५१ में जब आजाद की माँ जगरानी देवी का झांसी में निधन हुआ तब सदाशिव जी ने उनका सम्मान अपनी माँ के समान करते हुए उनका अंतिम संस्कार स्वयं अपने हाथों से ही किया था ! अपनी अत्याधिक जर्जर आर्थिक स्थिति के बावजूद सदाशिव जी ने चंद्रशेखर आज़ाद को दिए गए अपने वचन के अनुरूप आज़ाद की माताश्री को अनेक तीर्थस्थानों की तीर्थ यात्रायें अपने साथ ले जाकर करवायी थीं !
अब यहाँ से प्रारम्भ होता है वो खूनी अध्याय जो राक्षसी राजनीति के उस भयावह चेहरे और चरित्र को उजागर करता है जिसके रोम-रोम में चंद्रशेखर आज़ाद सरीखे क्रांतिकारियों के प्रति केवल और केवल जहर ही भरा हुआ था !
चंद्रशेखर आज़ाद की माताश्री के देहांत के पश्चात झाँसी की जनता ने उनकी स्मृति में उनके नाम से एक सार्वजनिक स्थान पर पीठ का निर्माण किया ! प्रदेश की तत्कालीन सरकार ने इस निर्माण को झाँसी की जनता द्वारा किया हुआ अवैध और गैरकानूनी कार्य घोषित कर दिया था ! किन्तु झाँसी के राष्ट्रभक्त नागरिकों ने तत्कालीन सरकार के उस शासनादेश को महत्व न देते हुए उस पीठ के पास ही चंद्रशेखर आज़ाद की माताश्री की मूर्ति स्थापित करने का फैसला कर लिया था !
मूर्ती बनाने का कार्य चंद्रशेखर आजाद के ख़ास सहयोगी कुशल शिल्पकार रूद्र नारायण सिंह जी को सौपा गया ! उन्होंने फोटो को देखकर आज़ाद की माताश्री के चेहरे की प्रतिमा तैयार कर दी थी ! झाँसी के नागरिकों के इन राष्ट्रवादी तेवरों से तिलमिलाई बिलबिलाई तत्कालीन सरकार अब तक अपने वास्तविक राक्षसी रूप में आ चुकी थी ! जब सरकार को यह पता चला कि आजाद की माँ की मूर्ती तैयार की जा चुकी है और सदाशिव राव, रूपनारायण, भगवान् दास माहौर समेत कई क्रांतिकारी झांसी की जनता के सहयोग से मूर्ती को स्थापित करने जा रहे है तो उसने अमर बलिदानी चंद्रशेखर आज़ाद की माताश्री की मूर्ति स्थापना को देश, समाज और झाँसी की कानून व्यवस्था के लिए खतरा घोषित कर उनकी मूर्ति स्थापना के कार्यक्रम को प्रतिबंधित कर पूरे झाँसी शहर में कर्फ्यू लगा दिया ! चप्पे चप्पे पर पुलिस तैनात कर दी गई ताकि अमर बलिदानी चंद्रशेखर आज़ाद की माताश्री की मूर्ति की स्थापना ना की जा सके !
तत्कालीन सरकार के इस राक्षसी स्वरूप के खिलाफ आज़ाद के अभिन्न सहयोगी सदाशिव जी ने ही कमान संभाली थी और चंद्रशेखर आज़ाद की माताश्री की मूर्ति अपने सिर पर रखकर इस ऐलान के साथ कर्फ्यू तोड़कर अपने घर से निकल पड़े थे कि यदि चंद्रशेखर आज़ाद ने मातृभूमि के लिए अपने प्राण बलिदान कर दिए थे तो आज मुझे अवसर मिला है कि उनकी माताश्री के सम्मान के लिए मैं अपने प्राणों का बलिदान कर दूं !

Indian Revolutionaries: A comprehensive study 1757-1961, Volume 3
अपने इस ऐलान के साथ आज़ाद की माताश्री की मूर्ति अपने सिर पर रखकर पीठ की तरफ चल दिए सदाशिव जी के साथ झाँसी के राष्ट्रभक्त नागरिक भी चलना प्रारम्भ हो गए थे ! अपने आदेश की झाँसी की सडकों पर बुरी तरह उड़ती धज्जियों से तिलमिलाई तत्कालीन राक्षसी सरकार ने अपनी पुलिस को सदाशिव जी को गोली मार देने का आदेश दे डाला था किन्तु आज़ाद की माताश्री की प्रतिमा को अपने सिर पर रखकर पीठ की तरफ बढ़ रहे सदाशिव जी को जनता ने चारों तरफ से अपने घेरे में ले लिया था अतः सरकार ने उस भीड़ पर भी गोली चलाने का आदेश दे डाला था ! परिणामस्वरूप झाँसी की उस निहत्थी निरीह राष्ट्रभक्त जनता पर तत्कालीन नृशंस सरकार की पुलिस की बंदूकों के बारूदी अंगारे मौत बनकर बरसने लगे थे सैकड़ों लोग घायल हुए, दर्जनों लोग जीवन भर के लिए अपंग हुए और तीन लोग मौत के घाट उतर गए थे !
तत्कालीन राक्षसी सरकार के इस खूनी तांडव का परिणाम यह हुआ था कि चंद्रशेखर आज़ाद की माताश्री की मूर्ति स्थापित नहीं हो सकी थी और आते जाते अनजान नागरिकों की प्यास बुझाने के लिए उनकी स्मृति में बने प्याऊ को भी पुलिस ने ध्वस्त कर दिया था !
अमर बलिदानी चंद्रशेखर आज़ाद की माताश्री की 2-3 फुट की मूर्ति के लिए उस देश में 5 फुट जमीन भी देने से तत्कालीन यमराजी सरकार ने इनकार कर दिया था जिस देश के लिए चंद्रशेखर आज़ाद ने अपने प्राण न्योछावर कर दिए थे !
एक और कहाँ चन्द्र शेखर आजाद, उनकी माँ जगरानी देवी, सदाशिव मलकापुरकर, मास्टर रूपनारायण, भगवान् दास माहौर एवं झांसी की जनता वहीँ दूसरी और भावरा गाँव, वहाँ का समाज और तत्कालीन सरकार ! आज भी हमारा समाज दो भागों में बंटा दिखाई देता है, लोग दो तरफ खड़े हुए है !

इस कहानी से देश के सभी लोगों को विशेषकर आज की नौजवान पीढ़ी के हर सदस्य को परिचित होना चाहिए ! क्योंकि वर्षों से कुटिलता और कपट के साथ सत्ताधीशों ने अपने राक्षसी कारनामों को हमसे आपसे छुपाकर रखा है और इतने वर्षों से हमे सिर्फ यह समझाने की कोशिश की गई है कि देश की आज़ादी का इकलौता ठेकेदार परिवार विशेष ही है !🚩