
मत्स्य जयन्ती की शुभ कामनाएं
जय श्री हरि:
मत्स्यावतार
प्राचीन काल में सत्यव्रत नाम के एक राजा थे | वे बड़े ही उदार और भगवान् के परम भक्त थे | एक दिन वे कृतमाला नदी में तर्पण कर रहे थे | उसी समय उनकी अञ्जलि में एक छोटी सी मछली आ गयी | उसने अपनी रक्षा की पुकार की | उस मछली की बात सुनकर राजा उसे कमण्डलु में अपने आश्रम पर ले आये | कमण्डलु में वह इतनी बढ़ गयी कि पुन: उसे एक बड़े मटके में रखना पडा | थोड़ी देर बाद वह उससे भी बड़ी हो गयी और मटका छोटा पड़ने लगा | अंत में राजा सत्यव्रत हार मानकर उस मछली को समुद्र में छोड़ने गए | समुद्र में डालते समय मत्स्य ने राजा से कहा -–‘राजन् ! समुद्र में बड़े बड़े मगर आदि रहते हैं | वे मुझे खा जायेंगे | इसलिए मुझे समुद्र में न छोड़ें |’ मछली की यह मधुर वाणी सुनकर राजा मोहित होगये | उन्हें मत्स्य-भगवान् की लीला समझते देर न लगी | वे हाथ जोड़कर प्रार्थना करने लगे |
मत्स्य-भगवान् ने अपने प्यारे भक्त सत्यव्रत से कहा—‘सत्यव्रत ! आज से सातवें दिन तीनों लोक प्रलयकाल की जलराशि में डूबने लगेंगे | उस समय मेरी प्रेरणा से तुम्हारे पास एक बहुत बड़ी नौका आयेगी | तुम सभी जीवों,पौधों और अन्नादि के बीजों को लेकर सप्तर्षियों के साथ उस पर बैठकर विचरण करना | जब तेज आंधी चलने के कारण नाव डगमगाने लगेगी तब मैं इसी रूप में आकर तुम लोगों की रक्षा करूंगा |’ भगवान् राजा से इतना कहकर अन्तर्धान हो गए |
अन्त में वह समय आ पहुंचा | राजा सत्यव्रत के देखते ही देखते सारी पृथ्वी पानी में डूबने लगी | राजा ने भगवान् की बात याद की | उन्होंने देखा कि नाव भी आ गयी है | वे बीजों को लेकर सप्तर्षियों के साथ तुरंत नाव पर सवार होगए |
सप्तर्षियों की आज्ञा से राजा ने भगवान् का ध्यान किया | उसी समय उस महान समुद्र में मत्स्य के रूप में भगवान् प्रकट हुए | तत्पश्चात् भगवान् ने प्रलय के समुद्र में विहार करते हुए सत्यव्रत को ज्ञान-भक्ति का उपदेश दिया |
हयग्रीव नाम का एक राक्षस था | वह ब्रह्मा के मुख से निकले हुए वेदों को चुराकर पाताल में छिपा हुआ था | भगवान् मत्स्य ने हयग्रीव को मारकर वेदों का भी उद्धार किया |
समस्त जगत् के परम कारण मत्स्यभगवान् को हम सब नमस्कार करते हैं !
–गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित पुस्तक ‘दशावतार’ (कोड-७७९) से