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भगवान के नाम का आश्रय लेते ही गोपी यमुना से पार हो गई


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श्री राधा विजयते नमः

2 hrs ·

भगवान के नाम का आश्रय लेते ही गोपी यमुना से पार हो गई
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वृंदावन की एक गोपी रोज दूध दही बेचने मथुरा जाती थी,एक दिन व्रज में एक संत आये,गोपी भी कथा सुनने गई,संत कथा में कह रहे थे,भगवान के नाम की बड़ी महिमा है,नाम से बड़े बड़े संकट भी टल जाते है.नाम तो भव सागर से तारने वाला है,यदि भव सागर से पार होना है तो भगवान का नाम कभी मत छोडना.

कथा समाप्त हुई गोपी अगले दिन फिर दूध दही बेचने चली, बीच में यमुना जी थी. गोपी को संत की बात याद आई,संत ने कहा था भगवान का नाम तो भवसागर से पार लगाने वाला है,जिस भगवान का नाम भवसागर से पार लगा सकता है तो क्या उन्ही भगवान का नाम मुझे इस साधारण सी नदी से पार नहीं लगा सकता? ऐसा सोचकर गोपी ने मन में भगवान के नाम का आश्रय लिया भोली भाली गोपी यमुना जी की ओर आगे बढ़ गई.

अब जैसे ही यमुना जी में पैर रखा तो लगा मानो जमीन पर चल रही है और ऐसे ही सारी नदी पार कर गई,पार पहुँचकर बड़ी प्रसन्न हुई,और मन में सोचने लगी कि संत ने तो ये तो बड़ा अच्छा तरीका बताया पार जाने का,रोज-रोज नाविक को भी पैसे नहीं देने पड़ेगे.

एक दिन गोपी ने सोचा कि संत ने मेरा इतना भला किया मुझे उन्हें खाने पर बुलाना चाहिये,अगले दिन गोपी जब दही बेचने गई,तब संत से घर में भोजन करने को कहा संत तैयार हो गए,अब बीच में फिर यमुना नदी आई.संत नाविक को बुलाने लगा तो गोपी बोली बाबा नाविक को क्यों बुला रहे है.हम ऐसे ही यमुना जी में चलेगे.

संत बोले – गोपी! कैसी बात करती हो,यमुना जी को ऐसे ही कैसे पार करेगे ?

गोपी बोली – बाबा! आप ने ही तो रास्ता बताया था,आपने कथा में कहा था कि भगवान के नाम का आश्रय लेकर भवसागर से पार हो सकते है. तो मैंने सोचा जब भव सागर से पार हो सकते है तो यमुना जी से पार क्यों नहीं हो सकते? और मै ऐसा ही करने लगी,इसलिए मुझे अब नाव की जरुरत नहीं पड़ती.

संत को विश्वास नहीं हुआ बोले – गोपी तू ही पहले चल! मै तुम्हारे पीछे पीछे आता हूँ,गोपी ने भगवान के नाम का आश्रय लिया और जिस प्रकार रोज जाती थी वैसे ही यमुना जी को पार कर गई.

अब जैसे ही संत ने यमुना जी में पैर रखा तो झपाक से पानी में गिर गए,संत को बड़ा आश्चर्य,अब गोपी ने जब देखा तो कि संत तो पानी में गिर गए है तब गोपी वापस आई है और संत का हाथ पकड़कर जब चलि है तो संत भी गोपी की भांति ही ऐसे चले जैसे जमीन पर चल रहे हो.

संत तो गोपी के चरणों में गिर पड़े,और बोले – कि गोपी तू धन्य है! वास्तव में तो सही अर्थो में नाम का आश्रय तो तुमने लिया है और मै जिसने नाम की महिमा बताई तो सही पर स्वयं नाम का आश्रय नहीं लिया.

!! जय जय श्री राधे !!

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हिंदुत्व पर ऊँगली उठाने बालो हिंदुत्व का बजूद क्या है बोलने बालो देखो एक और सबूत हिंदुत्व ही सबसे प्राचीन धर्म है।


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Rohit Sardana and Sudhir Chaudhary Fan Club

हिंदुत्व पर ऊँगली उठाने बालो हिंदुत्व का बजूद क्या है बोलने बालो देखो एक और सबूत हिंदुत्व ही सबसे प्राचीन धर्म है।

कुमाऊं के बागेश्वर जिले में 15 हजार साल पुरानी गुफा मिली है। इस गुफा के मिलने के बाद से ही वैज्ञानिकों में खासा उत्साह देखा गया। शुरुआती अध्ययन मेेें पता चला है कि गुफा करीब 15 हजार साल पुरानी हो सकती है।

गुफा के अन्दर शिवलिंग और कुंड भी मौजूद है। जिससे यह अंदाजा लगाया जा रहा है कि इस गुफा में मानवीय गतिविधियां भी की जाती थी।

उत्तराखंड की प्राचीन गुफाओं पर अध्ययन कर रहे कुमाऊं विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और भूगर्भ वैज्ञानिक बहादुर सिंह कोटलिया ने बताया कि दस माह में बागेश्वर में यह दूसरी गुफा मिली है। पहले कांडा गांव में मिली गुफा भी करीब दस हजार साल पुरानी है।

उन्होंने बताया कि शोध कार्य जारी है, लेकिन अब तक मिले संकेतों से प्रतीत हो रहा है कि इस पहाड़ी अंचल में मानवीय मौजूदगी काफी पहले से थी। डॉ. कोटलिया के अनुसार नए शोध से उत्तराखंड के इतिहास को बेहतर ढंग से समझा जा सकेगा।

Posted in भारत का गुप्त इतिहास- Bharat Ka rahasyamay Itihaas

ये है गाँधी का असली चेहरा……


संजय कुमार's photo.
संजय कुमार with Chandrahans Dagur.

ये है गाँधी का असली चेहरा………..
23 मार्च 1931 को शहीद-ए-आजम भगतसिंह को फांसी के तख्ते पर ले जाने
वाला पहला जिम्मेवार सोहनलाल वोहरा हिन्दू की गवाही थी ।
यही गवाह बाद में इंग्लैण्ड भाग गया और वहीं पर मरा । शहीदे आजम भगतसिंह को फांसी दिए जाने पर अहिंसा के महान पुजारी गांधी ने कहा था, ‘‘हमें ब्रिटेन के विनाश के बदले अपनी आजादी नहीं चाहिए ।’’ और आगे कहा, ‘‘भगतसिंह की पूजा से देश को बहुत हानि हुई और हो रही है । वहीं इसका परिणाम गुंडागर्दी का पतन है । फांसी शीघ्र दे दी जाए ताकि 30 मार्च से करांची में होने वाले कांग्रेस अधिवेशन में कोई बाधा न आवे ।” अर्थात् गांधी की परिभाषा में किसी को फांसी देना हिंसा नहीं थी ।
इसी प्रकार एक ओर महान् क्रान्तिकारी जतिनदास को जो आगरा में अंग्रेजों ने शहीद किया तो गांधी आगरा में ही थे और जब गांधी को उनके पार्थिक शरीर पर माला चढ़ाने को कहा गया तो उन्होंने साफ इनकार कर दिया अर्थात् उस नौजवान द्वारा खुद को देश के लिए कुर्बान करने पर भी गांधी के दिल में किसी प्रकार की दया और सहानुभूति नहीं उपजी, ऐसे थे हमारे अहिंसावादी गांधी । जब सन् 1937 में कांग्रेस अध्यक्ष के लिए नेताजी सुभाष और गांधी द्वारा मनोनीत सीताभिरमैया के मध्य मुकाबला हुआ तो गांधी ने कहा यदि रमैया चुनाव हार गया तो वे राजनीति छोड़ देंगे लेकिन उन्होंने अपने मरने तक
राजनीति नहीं छोड़ी जबकि रमैया चुनाव हार गए थे। इसी प्रकार गांधी ने कहा था, “पाकिस्तान उनकी लाश पर बनेगा” लेकिन पाकिस्तान उनके समर्थन से ही बना । ऐसे थे हमारे सत्यवादी गांधी । इससे भी बढ़कर गांधी और कांग्रेस ने दूसरे विश्वयुद्ध में अंग्रेजों का समर्थन किया तो फिर क्या लड़ाई में हिंसा थी या लड्डू बंट रहे थे ? पाठक स्वयं बतलाएं ? गांधी ने अपने जीवन में तीन आन्दोलन (सत्याग्रहद्) चलाए और तीनों को ही बीच में वापिस ले लिया गया फिर भी लोग कहते हैं कि आजादी गांधी ने दिलवाई ।इससे भी बढ़कर जब देश के महान सपूत उधमसिंह ने इंग्लैण्ड में माईकल डायर को मारा तो गांधी ने उन्हें पागल कहा इसलिए नीरद चौ० ने गांधी को दुनियां का सबसे बड़ा सफल
पाखण्डी लिखा है । इस आजादी के बारे में इतिहासकार सी. आर. मजूमदार लिखते हैं – “भारत की आजादी का सेहरा गांधी के सिर बांधना सच्चाई से मजाक होगा । यह कहना उसने सत्याग्रह व चरखे से आजादी दिलाई बहुत बड़ी मूर्खता होगी । इसलिए गांधी को आजादी का ‘हीरो’ कहना उन सभी क्रान्तिकारियों का अपमान है जिन्होंने देश की आजादी के लिए अपना खून
धन्यवाद ।
जय हिन्द ।

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इंदिरा गाँधी


jai hind…

इंदिरा गाँधी का असली नाम मेमुना बेगम है अब ईस कहानी पे थोड़ी सी रोशनी डालता हूँ आप लोगो ईसे शेर करना ना भूले ………… इंदिरा गाँधी कुछ कडवी हकीकत से मैं भी आज आपको रूबरू करवाता हूँ !!! इंदिरा प्रियदर्शिनी नेहरू राजवंश में अनैतिकता को नयी ऊँचाई पर पहुचाया. बौद्धिक इंदिरा को ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में भर्ती कराया गया था लेकिन वहाँ से जल्दी ही पढाई में खराब प्रदर्शन के कारण बाहर निकाल दी गयी. उसके बाद उनको शांतिनिकेतन विश्वविद्यालय में भर्ती कराया गया था, लेकिन गुरु देव रवीन्द्रनाथ टैगोर ने उन्हें उसके दुराचरण के लिए बाहर कर दिया. शान्तिनिकेतन से बहार निकाल जाने के बाद इंदिरा अकेली हो गयी. राजनीतिज्ञ के रूप में पिता राजनीति के साथ व्यस्त था और मां तपेदिक के स्विट्जरलैंड में मर रही थी. उनके इस अकेलेपन का फायदा फ़िरोज़ खान नाम के व्यापारी ने उठाया. फ़िरोज़ खान मोतीलाल नेहरु के घर पे मेहेंगी विदेशी शराब की आपूर्ति किया करता था. फ़िरोज़ खान और इंदिरा के बीच प्रेम सम्बन्ध स्थापित हो गए. महाराष्ट्र के तत्कालीन राज्यपाल डा. श्री प्रकाश नेहरू ने चेतावनी दी, कि फिरोज खान के साथ अवैध संबंध बना रहा था.

फिरोज खान इंग्लैंड में तो था और इंदिरा के प्रति उसकी बहुत सहानुभूति थी. जल्द ही वह अपने धर्म का त्याग कर,एक मुस्लिम महिला बनीं और लंदन केएक मस्जिद में फिरोज खान से उसकी शादी हो गयी. इंदिरा प्रियदर्शिनी नेहरू ने नया नाम मैमुना बेगम रख लिया. उनकी मां कमला नेहरू इस शादी से काफी नाराज़ थी जिसके कारण उनकी तबियत और ज्यादा बिगड़ गयी. नेहरू भी इस धर्म रूपांतरण से खुश नहीं थे क्युकी इससे इंदिरा के प्रधानमंत्री बन्ने की सम्भावना खतरे में आ गयी. तो, नेहरू ने युवा फिरोज खान से कहा कि अपना उपनाम खान से गांधी कर लो. परन्तु इसका इस्लाम से हिंदू धर्म में परिवर्तन के साथ कोई लेना – देना नहीं था. यह सिर्फ एक शपथ पत्र द्वारा नाम परिवर्तन का एक मामला था. और फिरोज खान फिरोज गांधी बन गया है, हालांकि यह बिस्मिल्लाह शर्मा की तरह एक असंगत नाम है. दोनों ने ही भारत की जनता को मूर्ख बनाने के लिए नाम बदला था. जब वे भारत लौटे, एक नकली वैदिक विवाह जनता के उपभोग के लिए स्थापित किया गया था.

इस प्रकार, इंदिरा और उसके वंश को काल्पनिक नाम गांधी मिला. नेहरू और गांधी दोनों फैंसी नाम हैं. जैसे एक गिरगिट अपना रंग बदलती है, वैसे ही इन लोगो ने अपनीअसली पहचान छुपाने के लिए नाम बदले. . के.एन. राव की पुस्तक “नेहरू राजवंश” (10: 8186092005 ISBN) में यह स्पष्ट रूप से लिखा गया है संजय गांधी फ़िरोज़ गांधी का पुत्र नहीं था, जिसकी पुष्टि के लिए उस पुस्तक में अनेक तथ्यों कोसामने रखा गया है. उसमे यह साफ़ तौर पे लिखा हुआ है की संजय गाँधी एक और मुस्लिम मोहम्मद यूनुस नामक सज्जन का बेटा था. दिलचस्प बात यह है की एक सिख लड़की मेनका का विवाह भी संजय गाँधी के साथ मोहम्मद यूनुस के घरमें ही हुआ था. मोहम्मद यूनुस ही वह व्यक्ति था जो संजय गाँधी की विमान दुर्घटना के बाद सबसे ज्यादा रोया था. ‘यूनुस की पुस्तक “व्यक्ति जुनून और राजनीति” (persons passions and politics )(ISBN-10: 0706910176) में साफ़ लिखा हुआ है की संजय गाँधी के जन्म के बाद उनका खतना पूरे मुस्लिम रीति रिवाज़ के साथ किया गया था. कैथरीन फ्रैंक की पुस्तक “the life of Indira Nehru Gandhi (ISBN: 9780007259304) में इंदिरा गांधी के अन्य प्रेम संबंधों के कुछ पर प्रकाश डाला है. यह लिखा है कि इंदिरा का पहला प्यार शान्तिनिकेतन में जर्मन शिक्षक के साथ था. बाद में वह एमओ मथाई, (पिता के सचिव) धीरेंद्र ब्रह्मचारी (उनके योग शिक्षक) के साथ और दिनेश सिंह (विदेश मंत्री) के साथ भी अपने प्रेम संबंधो के लिए प्रसिद्द हुई.पूर्व विदेश मंत्री नटवर सिंह ने इंदिरा गांधी के मुगलों के लिए संबंध के बारे में एक दिलचस्परहस्योद्घाटन किया अपनी पुस्तक “profiles and letters ” (ISBN: 8129102358 ) में किया. यह कहा गया है कि 1968 में इंदिरा गांधी भारत की प्रधानमंत्री के रूप में अफगानिस्तान की सरकारी यात्रा पर गयी थी .

नटवरसिंह एक आईएफएस अधिकारी के रूप में इस दौरे पे गए थे. दिन भर के कार्यक्रमों के होने के बाद इंदिरा गांधी को शाम में सैर के लिए बाहर जाना था . कार में एक लंबी दूरी जाने के बाद,इंदिरा गांधी बाबर की कब्रगाह के दर्शन करना चाहती थी, हालांकि यह इस यात्रा कार्यक्रम में शामिल नहींकिया गया. अफगान सुरक्षा अधिकारियों ने उनकी इस इच्छा पर आपत्ति जताई पर इंदिरा अपनी जिद पर अड़ी रही . अंत में वह उस कब्रगाह पर गयी . यह एक सुनसान जगहथी. वह बाबर की कब्र पर सर झुका कर आँखें बंद करके कड़ी रही और नटवर सिंह उसके पीछे खड़े थे . जब इंदिरा ने उसकी प्रार्थना समाप्तकर ली तब वह मुड़कर नटवर से बोली “आज मैंने अपने इतिहास को ताज़ा कर लिया (Today we have had our brush with history “. यहाँ आपको यह बता दे की बाबर मुग़ल साम्राज्य का संस्थापक था, और नेहरु खानदान इसी मुग़ल साम्राज्य से उत्पन्न हुआ. इतने सालो से भारतीय जनता इसी धोखे मेंहै की नेहरु एक कश्मीरी पंडित था….जो की सरासर गलत तथ्य है….. इस तरह इन नीचो ने भारत में अपनी जड़े जमाई जो आज एक बहुत बड़े वृक्ष में तब्दील हो गया हैं , जिसकी महत्वाकांक्षी शाखाओ ने माँ भारती को आज बहुत जख्मी कर दिया हैं ,,यह मेरा एक प्रयास हैं आज ,,कि आज इस सोशल मीडिया के माध्यम से ही सही मगर हकीकत से रूबरू करवा सकू !!! ,,,बाकी देश के प्रति यदि आपकी भी कुछ जिम्मेदारी बनती हो..

Rss Kailash Sharma's photo.
Posted in संस्कृत साहित्य

राजपूत



Historical Research on the use of word
“Rajput”for Kshatriyas .क्षत्रियों के लिए
राजपूत शब्द के प्रयोग का ऐतिहासिक शोध ।
राजपूत शब्द का उच्चारण करते ही “राजपुताना
“स्म्रति पटल पर तुरंत ही आ जाता है ।
राजपुताना राजपूत जाति का मुख्य केंद्र था ।
भारतवर्ष के इतिहास में राजपूत जाति और
राजपुताना का एक विशेष स्थान है ।इस समय
भी राजपूत हिन्दुस्तान की वीर जातियों में
माने जाते है ।ईसा की शताब्दी से पूर्व
राजपूतों को “क्षत्रिय “नाम से पुकारते थे और
हिन्दुओं में साहसी व् पराक्रमी जाति भी यही
थी जिसके हाथ में हिंदुस्तान भर की सत्ता थी
और जिससे अरब ,अफगान ,और तुर्क आदि विदेशी
जातियों को उत्तर -पश्चिम भाग से आकर टक्कर
लेनी पडी थी ।
7वीं शताब्दी से लगाकर 18 वीं शताबदी तक
हिंदुस्तान में बड़ा संघर्ष का समय था ।अरब के
आक्रमणकारी मुसलमान योद्धाओं ने प्रथम तो
सिंध में राजूतों से लोहा लिया बाद में महमूद
गजनी ,गौरी ,ख़िलजी वंशों आदि से इनको
दवाने की चेष्टा की ,फिर तुर्क व् मुगलों ने भी ।
उस आपत्ति काल में भी राजपूत अपने देश व्
मातृभूमि की रक्षा के लिए ,आन और स्त्रियों
के मान के लिए ,जीवन न्योछावर करते रहे और
अपना सुवतंत्र जीवन किसी न किसी रूप में
कायम रखा ।दुःख से कहना पड़ता है कि जिस
प्रकार से ब्रिटिशकालमें वीर राजपूतों का
पराभव व् पतन हुआ है वैसा कभी भी नहीं हुआ ।
राजपूतों का आदर्श सिर्फ यही रहा है कि
जीवन संग्राम में विजय पाकर ख्याति के साथ
मारना हमारा धर्म है न कि घर में खटिया पर
जराजीर्ण होकर प्राण छोड़ना ।
मुगलों के अंतिम काल तक हमने राजस्थान की
हवा में उच्चकोटि का वीरत्व देखा था पर वह
यकायक आंगल कला से ऐसा छूमंतर हो गया कि
लिखते दुःख होता है ,इसका मुख्य कारण है
प्राचीन रीति रिवाजों ,आचार विचारों
को छोड़ना।अपनी राज्य पद्धति तथा शिक्षा
की कमी ने भी इसका साथ दिया ।आपस में
जाति भेद आरम्भ होने के कारण एकता का अभाव
हो गया और पारस्परिक युद्ध होने लगे ।इसी
कारण वह कभी विदेशी शक्तिओं से पूर्णतया
लोहा न लेसके और अपनी सुवतंत्रता धीरे धीरे
खो बैठे ।बहु विवाह तथा मद्यपान का रिवाज
इनका पूर्णतया संहार कर बैठा ।इसी कारण बड़े –
बड़े राज्य नस्ट हो गये और होते भी जारहे है ।
प्राचीन ग्रंथों में न तो राजपूत जाति का ही
उल्लेख है और न राजपूताने का ।
रामायण और महाभारत के समय से लेकर चीनी
यात्री हुएनसांग के भारत -भ्रंमन (ई0सन्
629-645 ) तक राजपूत शब्द जाति के अर्थ में
प्रयुक्त नहीं होता था ।प्राचीन इतिहास और
पुराण ग्रंथों में इस जाति के लिए “क्षत्रिय
“शब्द का प्रयुक्त मिलता है तथा वेद और
उपनिषद् काल में “राजन्य”शब्द का प्रयोग देखने
में आता है। सूत्रकाल में कहीं -कहीं क्षत्रियों के
लिए “उग्र”शब्द लिखा गया है ।जैन -ग्रंथों व्
मध्यकालीन (ई0स0600 से 1200 तक )ग्रंथों में भी
राजपूत शब्द नहीं पाया जाता है।
पृथ्वीराजरासो ग्रन्थ में भी -जो विक्रम की
सोलहवीं शताब्दी के आस पास रचा माना
जाता है ,उसमें भी “राजपूत “शब्द जाति वाचक
नहीं ,किन्तु योद्धा के अर्थ में आया है।जैसे
“रजपूत टूट पचासरन जीत समर सेना धनिय ”
“लग्यो सूजाय रजपूत सीस ” “बुड गई सारी
रजपूती “।उस समय राजपूत जाति कोई विशेष
जाति नहीं गिनी जाती थी ।मुसलमानों के
आक्रमणों तक यहां के राजा “क्षत्रिय “ही
कहलाते थे ।जिस प्रकार राजस्थान या
राजपुताना प्रदेश ब्रिटिशकाल की रचना है
(विलियम फ्रेंकलिन ,मिलिट्री मेमआर्स आफ
मिस्टर जार्ज टामस पृष्ठ 347 सन् 1805 ई0 लन्दन
संस्करण ।इसी प्रकार राजपूत का राजपुत्र शब्द
मुगलकालीन शासनकाल के पूर्व के इतिहास
ग्रंथों में नही मिलता है ।हाँ!इनके स्थान पर
क्षत्रिय जाति का उल्लेख पाया जाता है ।
हमारे प्राचीन इतिहास और साहित्य में
क्षत्रिय जाति का वही स्थान है जो इस समय
राजपूत जाति का माना जाता है ।जब
हिंदुस्तान में मुगलों का आक्रमण हुआ और उनकी
अरबी सभ्यता और उनके मत का नया तूफ़ान
आया ,तब उस वक्त के क्षत्रिय राजाओं नेबड़े
साहस और पराक्रम से अपने प्राणों की बाजी
लगाकर मुकाबला करने का भरसक प्रयत्न किया
,परंतु आपसी फुट के कारण इस तूफान को रोकने में
असमर्थ रहे ।परिणाम यह हुआ कि मुगलों का
सिक्का भारत पर बैठ गया जिन्होंने इस देश के
पूर्व राजाओं का नाम “सामंत या राजपुत्र
“रक्खा।
राजपुत्र शब्द का अर्थ “राजकीय वंश में पैदा हुआ
“है ।इसी का अपभ्रंश “राजपूत “शब्द है जो बाद
में धीरे धीरे मुग़ल बादशाहों के अहद से या कुछ
पहले 14 वीं शताब्दी से ,बोल चाल में क्षत्रिय
शब्द के स्थान पर व्यवहार में आने लगा ।इससे पहले
राजपूत शब्द का प्रयोग जाति के अर्थ में कहीं
नही पाया जाता है ।अतः राजपूत कोई
जाति नही थी ।मुसलामानों के समय में धीरे
धीरे यह शब्द जाति वाचक बन गया ।
राजपुताना प्रान्त इन क्षत्रिय वीरों का
प्रधान राज्य गिना जाने लगा ।इसके बाद
जितनी शासन करने वाली शाखाएं फैलीं
,उनका सम्बन्ध राजस्थान की मूलशाखा से
किसी न किसी रूप में अवश्य है ।
“राजपूत “या रजपूत”शब्द संस्कृत के “राजपुत्र”का
अपभ्रंश अर्थात लौकिक रूप है। ।प्राचीनकाल में
“राजपुत्र”शब्द जाति वाचक नहीं ,किन्तु
क्षत्रिय राजकुमारों या राजवंशियों का सूचक
था ,क्यों क़ि बहुत प्राचीन काल से प्रायः
सारा भारतवर्ष क्षत्रिय वर्ण के अधीन था ।
कौटिल्य के अर्थशास्त्र ,कालिदास के काव्य
और नाटकों ,अश्वघोष के ग्रंथों ,बाणभट्ट के
हर्षचरित तथा कादंबरी आदि पुस्तकों एवं
प्राचीन शिलालेखों तथा दानपात्रों में
राजकुमारों और राजवंशियों के लिए “राजपुत्र
“शब्द का प्रयोग होना पाया जाता है ।देश
का शासन क्षत्रिय जाति के ही हाथों में
रहता था ।अतः इसी जाति के लोगों का
नाम मुगलकाल में जाकर लगभग 14 वीं शताब्दी में
“राजपूत”हो गया ।पुराणों में केवल राजपुत्र शब्द
आता है।
क्षत्रिय वर्ण वैदिक काल से इस देश पर शासन
करता रहा और आर्यों की वर्णव्यवस्था के
अनुसार प्रजा का रक्षण करना ,दान देना ,यज्ञ
करना ,वेदादि शास्त्रों का अध्ययन करना और
विषयासक्ति में न पड़ना आदि क्षत्रियों के
धर्म या कर्म माने जाते थे।मुगलों के समय से वही
क्षत्रिय जाति “राजपूत “कहलाने लगी
lप्राचीन ग्रंथों में राजपूतों के लिए राजपुत्र
,राजन्य ,बाहुज आदि शब्द मिलते है। यजुर्वेद जो
स्वयं ईश्वरकृत है ,में भी राजपूतों की खूब चर्चा हुई
है।
ब्रध्यतां राजपुत्राश्च बाहू राजन्य कृत :।
बध्यतां राजपुत्राणां क्रन्दता मित्तेरम्।।
इसके बाद पुराणों में सूर्य और चन्द्रवंश जो
राजपूतों के वंश है की उत्तपति भी क्षत्रियों से
मानी गयी है ।
चंद्रादित्य मनुनांच् प्रवराः क्षत्रियाः
स्मतः ।
बाण के हर्षचरित में भी राजपुत्र शब्द का प्रयोग
हुआ है।बाण लिखता है —
अभिजात राजपुत्र प्रेष्यमान कुप्यमुक्ता कुल
कुलीन
कुलपुत्र वाहने ।
अर्थात सेना के साथ अभिजात राजपूतों
द्वारा भेजे गए पीतल के पत्रों से मढे वाहनों में
कुलीन राजपुत्रों की स्त्रियां जा रहीं है ।
अतः राजपूत प्राचीन आर्य क्षत्रियों की
संतान है ।यदि प्राचीन इतिहास के पन्नें पलटे
जायं तो स्थान -स्थान पर यह वर्णन मिलेगा
कि राजपूतों ने शकों ,हूणों से अनेक बार युद्ध
किये और उनसे देश ,धर्म तथा संस्कृति की रक्षा
की ,किन्तु आधुनिक इतिहासकारों ने अपनी
कल्पना और अनुमान के आधार पर उन्हें उन्हीं की
संतान बना दिया ।
सोलह संस्कारों को धारण करना राजपूतों के
लिए अनिवार्य था ।राजपूत अपने गुणों ,वीरता
,साहस ,त्याग ,अतिथि सेवा तथा शरणागत
वत्सलता ,प्रजावत्सलता ,अनुशासनप्रियता
,युद्धप्रियता आदि गुणों के साथ -साथ
ब्राह्मणों के क्षमा ,दया ,उदारता
,सहनशीलता ,विद्वता आदि गुणों को भी
धारण करना होता था ।इसी से भ्रांत होकर
कई इतिहासकारों ने राजपूतों को ब्राह्मणों
की संतान मान लिया है ,किन्तु जैसा कि
इस्पस्ट हो चूका है कि ये ऋषी बाह्मण नही थे
,बल्कि वैदिक ऋषी थे और क्षत्रिय तथा
ब्राह्मणों दोनों के पूर्वज थे ,क्यों कि वर्ण –
व्यवस्था तो उस युग के बहुत बाद वैवस्वत मनु ने
आरम्भ की थी ।
यूरोपियन विद्धवान जैसे नेसफील्ड ,इबटसन
राजपूतों को प्राचीन आर्यों की संतान मानते
हुए कहते है ,”राजपूत लोग आर्य है और वे उन
क्षत्रियों की संतान है जो वैदिक काल से भारत
में शासन कर रहे है ।” मि0 टेलवीय हीव्लर ,
‘भारत के इतिहास ‘में लिखते है “राजपूत जाति
भारतवर्ष में सबसे कुलीनब और स्वाभिमानी है
“।कई इतिहासकारों ने ये सिद्ध किया है कि
राजपूत विशुद्ध आर्यों की संतान है और उनकी
शारीरिक बनावट ,गुण ,और स्वभाव प्राचीन
क्षत्रियों के समान है ।कालिदास रघुवंश में
लिखते है :
क्षत्रतिक ल त्रायत इत्युद्ग्र क्षत्रस्य शब्दों
भुवणेषु रूढ़:।
राज्मेंन किं कादिवप्रीत वरतेः प्राणैरुप
कोशमलीन सर्वा :।।
अर्थात विश्व को आंतरिक और बाह्य
अत्याचारों जैसे शोषण ,भूख ,अज्ञान ,अनाचार
,तथा शत्रु द्वारा पहुंचाई गयी जन -धन की
हानि से बचाने बाला क्षत्रिय है ।इसके
विपरीत कार्य करने वाला न तो क्षत्रिय
कहलाने का अधिकारी है और न ही वह शासन
करने का अधिकारी हो सकता है ।क्षत्रियों के
गुण -कर्म तथा स्वभावों का मनुसमृति में वर्णन
करते हुए स्वयं मनु जी कहते है :
प्रजानों रक्षा दान मिज्याध्ययन मेथ च ।
विषयेतवन सकितश्च क्षत्रियस्य समास्त :।।
अर्थात न्याय से प्रजा की रक्षा करना ,सबसे
प्रजा का पालन करना ,विद्या ,धर्म की
प्रवर्ति और सुपात्रों की सेवा में धन का व्यय
करना ,अग्निहोत्री यज्ञ करना व् कराना
,शास्त्रों का पठन ,और पढ़ाना ,जितेन्द्रिय
रहकर शरीर और आत्मा को बलवान बनाना ,ये
क्षत्रियों के स्वाभाविक कर्म है ।
श्रीमद् भगवदगीता में क्षत्रियों के गुणों और
कर्मों का वर्णन करते हुये श्री कृष्ण अर्जुन को
कहते है :
शौर्य तेजो धृति दक्षिर्य युद्धे चाप्याप्लायनम

दानमीश्वर भावस्य क्षात्रं कर्म स्वभावजम् ।।
अर्थात शौर्य ,तेज ,धैर्य ,दक्षता ,और युद्ध में न
भागने का स्वभाव और दान तथा ईश्वर का भाव
ये क्षत्रियों के स्वाभाविक गुण तथा कर्म है ।
देश -धर्म तथा संस्कृति की रक्षा में सर्वस्व
त्याग की भावना ही राजपूतों का सबसे बड़ा
गुण एवं कर्म रहा है ।इसी लिए इस जाति ने
मध्यकाल में सैकड़ों साके और जौहर किये ।
विश्वामित्र जैसे महामुनि .राजा हरिश्चंद्र
जैसे सत्यवादी ,राजा रघु जैसे पराक्रमी ,राजा
जनक जैसे राजषि ,श्री राम जैसे पितृभक्त ,श्री
कृष्ण जैसे कर्मयोगी ,कर्ण जैसे दानी ,मोरध्वज
जैसे त्यागी ,अशोक जैसे प्रजा -वत्सल
,विक्रमादित्य जैसे न्यायकारी ,राजा भोज
जैसे विद्धान ,जयमल जैसे वीर ,प्रताप जैसे देशभक्त
,पृथ्वीराज जैसा साहसी योद्धा ,दुर्गादास
जैसे स्वामीभक्त अनेक वीर इसी जाति की देंन है
।यहाँ तो पालने में जन्मघुटी के साथ ही देश
भक्ति तथा त्याग का पाठ शुरू हो जाता था

अपने इन गुण -कर्मों ,स्वभावों तथा पवित्र
परम्पराओं के कारण ही राजपूत सफल मानव ,सच्चे
सेनानी ,तथा कुशल शासक बनते थे ।ये राजपूत
राजा कमल के समान निर्लेप ,सूर्य जैसे तेजस्वी
,चंद्र जैसे शीतल ,तथा पृथ्वी जैसे सहनशील होते
थे ,क्यों कि उनका शासन आत्मत्याग और जौहर
जैसी पावन परम्पराओं पर आधारित होता था
।वे हँसते -हँसते मृत्यु का आलिंगन करना श्रेयस्कर
समझते थे और युद्ध में पीठ दिखाकर भाग जाना
मृत्यु से भी बदतर समझते थे । इस जाति ने समय
समय पर देश ,धर्म और आर्य सभ्यता की रक्षा की
है तथा अपनी मर्यादा व् आन -वान् के लिए
सदा हथेली पर जान भी रखी है ।।इतिहास
बतलाता है कि इस पराक्रमी क्षत्रिय जाति ने
अपने बच्चों सहित शत्रु के साथ लड़कर। अमर यश
प्राप्त किया है ।अल्लाउदीन ख़िलजी के हमले
और चित्तोड़ और रणथंभोर के शाके आज भी
बच्चों की जवान पर है ।इस जाति के प्रत्येक वंश ने
न जाने कितने वीरोचित काम किये है जिनका
वर्णन सुन कर देशी ही नही किन्तु विदेशी
विद्दान भी मुग्ध है जिन्होंने अपने विचार कुछ
इस प्रकार व्यक्त किये ।
राजपूतों की ख्याति का बखान करते हुए
इतिहासवेत्ता कर्नल टॉड नही अघाते ।
“राजस्थान (राजपुताना)में कोई छोटा से
छोटा राज्य भी ऐसा नही है जिसमें
थर्मोपॉलि (ग्रीस स्थित )जैसी रणभूमि न हो
और शायद ही कोई ऐसा नगर मिले जहाँ
लियोनिदास सा वीर पुरुष उत्पन्न न हुआ हो ।”
टॉड अपने राजस्थान के इतिहास की भूमिका में
लिखते है —-
“एक वीर जाति का लगातार कई पीढ़ियों तक
स्वाधीनता के लिए युद्ध आदि करते रहना ,अपने
पूर्वजों के धर्म की रक्षा के लिए अपनी प्रिय
वस्तु की भी हानि सहना और सर्वस्व देकर भी
शौर्य पूर्वक अपने स्वतत्वों और जातीय
स्वतंत्रता को किसी भी प्रकार के लोभ
,लालच में न आकर बचाना ,यह सब मिल कर एक
ऐसा चित्र बनाते है कि जिसका ध्यान करने से
हमारा शरीर रोमांचित हो जाता है ।”
आगेचल कर टॉड राजपूत जाति का चरित्र –
चित्रण इस प्रकार करते है —-
“महान शूरता ,देश भक्ति ,स्वाभिमान
,प्रतिष्ठा ,अथिति सत्कार और सरलता यह गुण
सर्वांश में राजपूतों में पाये जाते है ।”
मुग़ल सम्राट अकबर का मंत्री अबुलफजल (यह
जोधपुर राज्य के नागौर शहर में एक शेख कुल में
जन्मा था ) राजपूतों की वीरता की प्रशंसा
इन शब्दों में करता है —-
“विपत्तिकाल में राजपूतों का असली चरित्र
जाज्वल्यमान होता है ।राजपूत -सैनिक रणक्षेत्र
से भागना जानते ही नहीं है बल्कि जब लड़ाई
का रुख संदेहजनक हो जाता है तो वे लोग
अपनेघोड़ों से उत्तर जाते है और वीरता के साथ
अपने प्राण न्योछावर कर देते है ।”
बर्नियर अपनी भारत यात्रा की पुस्तक में
लिखता है कि —–
“राजपूत लोग जब युद्ध क्षेत्र में जाते है ,तब आपस
में इस प्रकार गले मिलते है जैसे कि उन्होंने मरने का
पूरा निश्चय कर लिया हो ।ऐसी वीरता के
उदाहरण संसार की अन्य जातियों में कहाँ पाये
जाते है ?किस देश और किस जाति में इस प्रकार
की सभ्यता और साहस है और किसने अपने पूर्वजों
के रिवाजों को इतनी शताब्दीयों तक अनेक
संकट सहते हुए भी कायम रखा है ?
मिस्टर टेलबोय व्हीलर ने अपने “भारत के
इतिहास “में राजपूत जाति के विषय में यह
लिखा है —-
“राजपूत जाति भारतवर्ष में सबसे कुलीन और
स्वाभिमानी है ।यहूदी जाति को छोड़ कर
संसार में शायद ही अन्य कोई जाति हो
जिसकी उत्पति इतनी पुरानी और शुद्ध हो ।वे
क्षत्रिय जाति के उच्च वंशज और जागीरदार है ।
ये वीर और दींन अनाथों के रक्षक होते है और
अपमान को कभी सहन नहीं करते है और अपनी
स्त्रियों के सम्मान का पूर्ण ध्यान रखने बाले
होते है ।”
कर्नल वाल्टर (भूतपूर्व एजेंट गवर्नर जनरल
,राजपुताना )बहुत समय तक राजपूताने में रहे थे ।
वह भी इस प्रकार लिखते है कि ——
“राजपूतों को अपने महत्वशाली पूर्वजों के
इतिहास का गर्व हो सकता है क्यों कि संसार
के किसी भी देश के इतिहास में ऐसी वीरता
और अभिमान के योग्य चरित्र नहीं मिलते जैसे इन
वीरों के कार्यों में पाये जाते है जो कि उन्होंने
अपने देश ,प्रतिष्ठा और धार्मिक स्वतंत्रता के
लिए किये ।”
डॉ शिफार्ड जो कई वर्षों तक राजपूतों के
संसर्ग में रहे थे इस प्रकार लिखते है कि —-
“ऐसे इतिहासों के पढ़ने से जिनमें राजपूतों के
उत्तम स्वाभाविक गुण और चरित्र यथावत रूप से
दर्शाये गए है ,सम्भव नहीं कि इतिहास के प्रेमी
नवयुवक पर उत्तम और उत्तेजक प्रभाव उत्पन्न न हो
।”
यद्धपि इस वीर राजपूत जाति के अनेक साहसी
वीर योद्धाओं जिनमे अंतिम हिन्दू सम्राट
पृथ्वीराज चौहान ,विश्व प्रसिद्ध योद्धा
राणा सांगा ,प्रातः स्मरणीय वीर
शिरोमणि महाराणा प्रताप ,महान
बलिदानी राजा रामशाह तोमर ,वीरवर
छात्र साल बुंदेला ,स्वाभिमानी वीर
दुर्गादास राठौड़ ,वीरवर अमर सिंह राठौड़
,जयमल राठौड़ ,रावत पत्ता ,शरणागत रक्षक
रणथम्भोर के राजा हमीर देव चौहान ,गोरा –
बादल ,वीर योद्धा मेदिनिराय खंगार ,प्रमुख
थे ने मुगलों से जम कर युद्ध किया और अपनी जन्म
भूमि की स्वतंत्रता के लिए प्राणों की बाजी
लगा दी ।इसी कालमें क्षत्राणियो ने भी युद्ध
तक किये और देश की रक्षा में जौहर तक किये
जिनमे रानी दुर्गावती ,रानी कर्मवती ,रानी
पद्यमिनी तथा हाडी रानी प्रमुख
वीरांगनाएं रही ।यही ही नही सन् 1857में
ब्रिटिशकाल में भी अनेक राजपूत वीर और
वीरांगनाओं ने अपने देश की स्वतंत्रता के लिए
प्राण न्योछावर कर दिया।जिनमें झांसी की
रानी लक्ष्मीबाई के अलावा और वीरों को
इतिहास में वो स्थान हमारे इतिहासकारों ने
नही दिया जो दिया जाना चाहिए था ।
जिनमें प्रथम स्वतंत्रता संग्रामसेनानी हिमाचल
प्रदेश के नूरपुर एस्टेट के वजीर राम सिंह
पठानिया ,1857 की क्रान्ति के नायक विहार
की शान बाबू बीर कुंवर सिंह पंवार ,गोण्डा के
राजा देवीबक्ष सिंह बिसेन ,अवध का शेर राणा
बेणी माधोसिंह बैस , राजपूत जाति को पहला
परमवीर चक्र दिलाने वाले पश्चिमी उत्तरप्रदेश के
गौरव परमवीर यदुनाथ सिंह राठौड़ ,पीरु सिंह
शेखावत ,शैतान सिंह भाटी एवं उस समय की एक
और वीरांगना उत्तरप्रदेश की तुलसीपुर एस्टेट की
चौहान रानी ईष्वरी कुमारी देवी थी
जिन्होंने अपनी वीरता और शौर्यता ,आन
,वान् एवं स्वाभिमान ,त्याग एवंबलिदान पूर्ण
कार्यों से इतिहास के पन्नें रंग कर चले गये ।परन्तु
अब उनकी ये ख्याति केवल इतिहास के पन्नों में
ही रह गई है और दिन प्रतिदिन राजपूत लोग अपने
गौरव को भूलते जारहे है ,क्यों न भूले जब कि
पश्चिमी सभ्यता और शिक्षा का प्रभाव
चारों तरफ पड़ रहा है और समय भी बदल चुका है ।
लार्ड मैकाले का यह कथन भी उल्लेख करने योग्य
है कि —–
“जो जाति अपने पूर्वजों के श्रेष्ठ कार्यों का
अभिमान नहीं करती वह कोई ऐसी बात ग्रहण न
करेगी जो कि बहुत पीढ़ी पीछे उनकी संतानों
से सगर्व स्मरण करने योग्य हो ।”
वर्तमान पीढ़ी एवं इसके बाद आने वाली पीढ़ी
भी चली जायगी किन्तु राजपूत जाति जिन्दा
रहेगी ,राजपूत संस्कृति जिन्दा रहेगी ,किन्तु
जिस तेजी से हम संभी क्षेत्रों में पीछे खिसक रहे
है यदि यही रफ़्तार जारी रही तो आगामी
कुछ वर्षों बाद राजपूत कहाँ होगा यह सोचकर
ही दिल में एक हड़कंप पैदा होता है ।
यदि अब भी राजपूत जाति अपने पूर्व गौरव व्
इतिहास की ओर ध्यान देवे तो यह जाति
संसार में अदिवतीय चमत्कार दिखला सकती है ।
लेकिन आज के समय में एकता और शिक्षा के क्षेत्र
में अदिवतीय होना होगा तभी ये संभव है ।
क्या ये शब्द हमारे बहरे कानों में पड़ेंगे ?
जय हिन्द ।जय राजपूताना ।
लेखक -डा0 धीरेन्द्र सिंह जादौन ,गांव –
लढोता ,सासनी ,जिला -हाथरस ,उत्तरप्रदेश
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ऑफिस के लिए वास्तु टिप्स


ऑफिस के लिए वास्तु टिप्स – Vastu Tips for Office in Hindi

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आप का ऑफिस यानी कार्यालय आपके पेशे या व्यापार के लिए सोचने, काम के क्रियान्वन, व्यापार में वृध्दि और धन सृजन की जगह है | इस स्थान पर आप और ऑफिस में कम करने वाले आपके अन्य सहयोगी अपनी आजीविका कमाने, अपनी महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने और पेशे या व्यवसाय में सफलता प्राप्त करने के लिए अपने उत्पादक समय का एक बड़ा हिस्सा व्यतीत करते हैं| आपके कार्यालय का आकार और डिजाइन कर्मचारियों को सकारात्मक ऊर्जा देने वाला और कार्य में समृद्धि देने वाला होना चाहिए |

आपके कार्यालय के लिए बुनियादी वास्तु सुझाव (Office Vastu Tips) :

  • कार्यालय की इमारत के लिए प्लॉट चौकोर या आयताकार होना चाहिए. अनियमित आकार के भूखंडों से बचा जाना चाहिए|
  • ऑफिस के मुखिया या मालिक के बैठने का स्थान (The corner seat for the boss ),  दक्षिण पश्चिम कोने में होना चाहिए और बैठते समय उत्तर की तरफ का सामना करना चाहिए|
  • अन्य वरिष्ठ सदस्यों को दक्षिण या पश्चिम में बैठना वास्तु सम्मत हें जब वे दक्षिण में बैठे हो तो उत्तर का सामना करना चाहिए और पश्चिम में बैठते समय पूर्व का सामना करना चाहिए|
  • पूर्व और उत्तरी पक्षों की जगह जूनियर स्तर के कर्मचारियों के लिए हैं |

 

office vastu hindi

 

विभागों के लिए उपयुक्त जगह

  • स्वागत कक्ष उत्तर पूर्व में उपयुक्त होगा और आगंतुकों से मिलने के लिए कक्ष उत्तर पूर्व या उत्तर पश्चिम दिशा में बनाया जा सकता है|
  • कार्यालय में जल निकायों के लिए उपयुक्त स्थान उत्तर पूर्व या पूर्व की ओर है, लेकिन छत पर रखी  पानी की टंकीया पश्चिम या दक्षिण पश्चिम में होनी चाहिए|
  • वित्त विभाग के लिए दक्षिण पूर्व दिशा और बिक्री एवं मार्केटिंग की टीम के लिए कार्यालय में उत्तर पश्चिमी दिशा उत्तम हैं|
  • कैफेटेरिया / कैंटीन दक्षिण पूर्व या उत्तर पश्चिम की ओर में होना चाहिए|
  • शौचालय के लिए पश्चिम और उत्तर पश्चिम दिशा उपयुक्त हैं|
  • छत की बीम के नीचे किसी भी बैठने की व्यवस्था नहीं करनी चाहिए|
  • कार्यालय के केंद्रीय क्षेत्र को खाली रखा जाना चाहिए|

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बेड रूम के लिए वास्तु टिप्स


बेड रूम के लिए वास्तु टिप्स (Vastu Tips for Bedroom in Hindi)

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– बेड रूम (शयन कक्ष) के स्थान और सामान के लिए वास्तु टिप्स|

बेडरूम आपका वह स्थान जहां आप  अपना सबसे ज्यादा समय बिताते हें| पुरे दिन काम करने के बाद यह स्थान आपके शरीर और दिमाग को आराम और शांति प्रदान करता है| यहाँ वास्तु शास्त्र के अनुसार शयन कक्ष के स्थान और चीजों के रखरखाव  के लिए कुछ सुझाव दिए गए हैं |

बेड रूम के लिए उपयुक्त दिशाये:

  • मुख्य  शयन कक्ष, जिसे मास्टर बेडरूम भी कहा जाता हें, घर के दक्षिण पश्चिम या उत्तर पश्चिम की ओर होना चाहिए | अगर घर में एक मकान की ऊपरी मंजिल है तो मास्टर ऊपरी मंजिल मंजिल के दक्षिण पश्चिम कोने में होना चाहिए |
  • बच्चों का कमरा उत्तर – पश्चिम या पश्चिम में होना चाहिए और मेहमानों के लिए कमरा (गेस्ट बेड रूम) उत्तर पश्चिम या उत्तर – पूर्व की ओर होना चाहिए | पूर्व दिशा में बने कमरा  का अविवाहित बच्चों या मेहमानों के सोने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है |
  • उत्तर – पूर्व दिशा में देवी – देवताओं का स्थान है  इसलिए इस दिशा में कोई बेडरूम नहीं  होना चाहिए | उत्तर – पूर्व में  बेडरूम होने से  धन की हानि , काम में रुकावट और बच्चों की शादी में देरी हो सकती  है |
  • दक्षिण – पश्चिम का बेडरूम  स्थिरता और महत्वपूर्ण मुद्दों को हिम्मत से हल करने में सहायता प्रदान करता है |
  • दक्षिण – पूर्व में शयन कक्ष अनिद्रा , चिंता , और वैवाहिक समस्याओं को जन्म देता है | दक्षिण पूर्व दिशा अग्नि कोण हें जो मुखरता और आक्रामक रवैये  से संबंधित  है | शर्मीले  और डरपोक बच्चे इस कमरे का उपयोग करें और विश्वास प्राप्त कर सकते हैं | आक्रामक और क्रोधी स्वभाव के  जो लोग है इस कमरे में ना रहे  |
  • उत्तर – पश्चिम दिशा वायु द्वारा शासित है और आवागमन से  संबंधित  है | इसे विवाह योग्य लड़किया के शयन कक्ष के लिए एक अच्छा माना गया है | यह मेहमानों के शयन कक्ष लिए भी एक अच्छा स्थान है |
  • शयन कक्ष घर के मध्य भाग में नहीं होना चाहिए, घर के मध्य भाग को वास्तु में बर्हमस्थान  कहा जाता है | यह बहुत  सारी ऊर्जा को आकर्षित करता  है जोकि  आराम और नींद के लिए लिए बने शयन कक्ष के लिए उपयुक्त नहीं है |
bedroom_vastu-हिंदी

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बेड रूम में रखे सामान के लिए उपयुक स्थान:

  •  सोते समय एक अच्छी नींद के  नंद के लिए सिर पूर्व या दक्षिण की ओर होना  चाहिए |
  • वास्तु के सिद्धांतों के अनुसार, पढ़ने और लिखने की  जगह पूर्व या शयन कक्ष के पश्चिम की ओर होनी चाहिए  | जबकि पढाई करते समय मुख पूर्व दिशा में होना चाहिए |
  • ड्रेसिंग टेबल के साथ दर्पण पूर्व या उत्तर की दीवारों पर तय की जानी चाहिए |
  • अलमारी शयन कक्ष के उत्तर पश्चिमी या दक्षिण की ओर होना चाहिए | टीवी, हीटर और एयर कंडीशनर को दक्षिण पूर्वी के कोने में स्थित होना चाहिए |
  • बेड रूम के साथ लगता बाथरूम, कमरे के पश्चिम या उत्तर में होना चाहिए |
  • दक्षिण – पश्चिम , पश्चिम कोना  कभी खाली नहीं रखा जाना चाहिए|
  • यदि आप कोई सेफ या तिजोरी, बेड रूम में रखना चाहे तो उसे दक्षिण कि दिवार के साथ रख सकते हें, खुलते समय उसका मुंह धन की दिशा, उत्तर की तरफ खुलना चाहिए|

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Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

एक बड़े जिले के डीएम साहब के बैडरूम की खिड़की सड़क की ओर खुलती थी।


एक बड़े जिले के डीएम साहब के बैडरूम की खिड़की सड़क की ओर खुलती थी।

रोज़ाना हज़ारों आदमी और वाहन उस सड़क से गुज़रते थे।

डीएम साहब इस बहाने जनता की परेशानी और दुःख-दर्द को निकट से जान लेते।

एक सुबह डीएम साहब ने खिड़की का परदा हटाया।

भयंकर सर्दी, आसमान से गिरती ओस, और भयंकर शीतलहर।

अचानक उन्हें दिखा कि बेंच पर एक आदमी बैठा है। ठंड से सिकुड़ कर गठरी सा होता।

डीएम साहब ने पीए को कहा- उस आदमी के बारे में जानकारी लो और उसकी ज़रूरत पूछो !!!

दो घंटे बाद। पीए ने डीएम साहब को बताया- सर, वो एक भिखारी है। उसे ठंड से बचने के लिए एक अदद कंबल की ज़रूरत है।

डीएम साहब ने कहा- ठीक है, उसे कंबल दे दो।

अगली सुबह डीएम साहब ने खिड़की से पर्दा हटाया।

उन्हें घोर हैरानी हुई। वो भिखारी अभी भी वहां जमा है। उसके पास ओढ़ने का कंबल अभी तक नहीं है।

डीएम साहब गुस्सा हुए और पीए पूछा- यह क्या है???

उस भिखारी को अभी तक कंबल क्यों नहीं दिया गया???

पीए ने कहा- मैंने आपका आदेश तहसीलदार महोदय को बढ़ा दिया था।

मैं अभी देखता हूं कि आदेश का पालन क्यों नहीं हुआ।।।

थोड़ी देर बाद तहसीलदार साहब डीएम साहब के सामने पेश हुए और सफाई देते हुए बोले- सर, हमारे शहर में हज़ारों भिखारी हैं। अगर एक भिखारी को कंबल दिया तो शहर के बाकी भिखारियों को भी देना पड़ेगा। और शायद पूरे जिले में भी। अगर न दिया तो आम आदमी और मीडिया हम पर भेदभाव का इल्ज़ाम लगायेगा।।।

डीएम साहब को गुस्सा आया- तो फिर ऐसा क्या होना चाहिए कि उस ज़रूरतमंद भिखारी को कंबल मिल जाए???

तहसीलदार साहब ने सुझाव दिया- सर, ज़रूरतमंद तो हर भिखारी है।।।

प्रशासन की तरफ से एक ‘कंबल ओढ़ाओ, भिखारी बचाओ’ योजना शुरू की जाये।
उसके अंतर्गत जिले के सारे भिखारियों को कंबल बांट दिया जाए।।।

डीएम साहब खुश😊 हुए।।।

अगली सुबह डीएम साहब ने खिड़की से परदा हटाया तो देखा कि वो भिखारी अभी तक बेंच पर बैठा है।

डीएम साहब आग-बबूला😡 हुए।

तहसीलदार साहब तलब हुए।

उन्होंने स्पष्टीकरण दिया- सर, भिखारियों की गिनती की जा रही है ताकि उतने ही कंबल की खरीद हो सके।

डीएम साहब दांत पीस😁 कर रह गए।

अगली सुबह डीएम साहब को फिर वही भिखारी दिखा वहां।।।
डीएम साहब खून का घूंट पीकर😠 रहे गए।।।

तहसीलदार साहब की फ़ौरन पेशी हुई।

विनम्र तहसीलदार साहब ने बताया- सर, बाद में ऑडिट ऑब्जेक्शन ना हो इसके लिए कंबल ख़रीद का शार्ट-टर्म कोटेशन डाला गया है।
आज शाम तक कंबल ख़रीद हो जायेगी और रात में बांट भी दिए जाएंगे।।।

डीएम साहब ने कहा- यह आख़िरी चेतावनी👉🏾 है।।।

अगली सुबह डीएम साहब ने खिड़की पर से परदा हटाया तो देखा बेंच के इर्द-गिर्द भीड़ जमा है।।।

डीएम साहब ने पीए को भेज कर पता लगाया।।।।

पीए ने लौट कर बताया- सर कंबल नहीं होने के कारण उस भिखारी की ठंड से मौत हो गयी है।।।😤

गुस्से से लाल-पीले😡😠 डीएम साहब ने फौरन से पेश्तर तहसीलदार साहब को तलब किया।

तहसीलदार साहब ने बड़े अदब से सफाई दी- सर, खरीद की कार्यवाही पूरी हो गई थी। आनन-फानन हमने सारे कंबल बांट भी दिए, मगर अफ़सोस कंबल कम पड़ गये।।।

डीएम साहब ने पैर पटके- आख़िर क्यों???
मुझे अभी जवाब चाहिये।।।

तहसीलदार साहब ने नज़रें झुका कर कहा- सर, भेदभाव के इल्ज़ाम से बचने के लिए हमने अल्फाबेटिकल आर्डर(वर्णमाला) से कंबल बांटे।
बीच में कुछ फ़र्ज़ी भिखारी आ गए।
आख़िर में जब उस भिखारी नंबर आया तो कंबल ख़त्म हो गए।।।।

डीएम साहब चिंघाड़े- आखिर में ही क्यों???

तहसीलदार साहब ने बड़े भोलेपन से कहा- क्योंकि सर, उस भिखारी का नाम ‘ज्ञ’ से शुरू होता था।।।

ऐसे हो गए हैं हम और ये है आज का सरकारी सिस्टम