…. श्रीकृष्ण यूनान से आए या वहां गए…
भारत में धर्म और आस्था के मूलाधार श्रीकृष्ण को माना गया है। उनके गीता में कहे गए वचनों पर कौन विश्वास नहीं करता। भारत में छपने ज्यादा छपने और बिकने वाला ग्रंथ ही श्रीमद़भगवदगीता है। किंतु, यूनान की माइथोलॉजी बताती है कि श्रीकृष्ण का यूनान के साथ गहरा संबंध रहा है। सबसे पहले प्रो. भांडारकर और जेकोबी ने इस संबंध में अपने मत दिए थे। हाल ही मेरे परम सहयोगी इंडोलॉजी के विद्वान प्रो. भंवर शर्मा, उदयपुर ने यूनानी माइथोलॉजी का अनुवाद किया तो पाया कि भारतीय कृष्णकथा का अद़भुत संबंध यूनान से रहा है। एक-एक कथा प्रसंग में यूनान पैठा हुआ है। फिर, श्रीकृष्ण के साथ
जिस मुद्रा का संबंध हरिवंश में बताया गया है, वह ‘दीनार’ है। यह कहां की मुद्रा है, हरिवंश में आया है –
माथुराणां च सर्वेषां भागा दीनारका दश।।
सूतमागध बंदीनामेकैकस्य सहस्रकम़। (हरिवंश, विष्णुपर्व 55, 51-52)
पढने वालों को गुस्सा भी हो सकता है, फिर यह भी कहा जा सकता है कि भारत से ही यह कथा यूनान गई….
उनके अनुवाद-अध्ययन के कुछ प्रसंग :
क्रीट के राजा देवक्लीयन का सबसे बडा पुत्र हेलेन सभी ग्रीकों का पिता कहा गया है। इससे इओनियन, एकियन, एओलियन और डोरियन– चार वंश चले। हेलेन, हेली, हेलीली आदि श्रीकृष्ण के ही नाम हैं – गोपालसहस्रनाम स्तोत्र में आया है – कोलाहलो हली हाली हेली हल धरो प्रियो। (श्लोक 20)
कथा आई है कि स्वर्ग के राजा यूरेनस ( तुलनीय -उग्रसेन) को क्रोनस (कंस) राज्य छीनकर अपनी बहन ह्रिया को (पत्नी बनाकर, महाभारत काल में ऐसी परंपरा के प्रसंग महाकाव्य में आए हैं) अपने अधिकार में कर लेता है। दिवंगत होते हुए उसकी माता पृथवी और पिता यह भविष्य करते हैं- क्रोनस को उसके बहन के पुत्रों में से एक राजसिंहासन से हटाएगा। वह पांच बच्चों को जिंदा खा गया। बहन ह्रिया घबरा गई। उसने अगले पुत्र जयस (श्रीकृष्ण का पर्याय जय : पांचजन्यकरो रामी त्रिरामी वनजो जय, गोपालसहस्रनाम 47) को जब पैदा किया तो नील नदी ( तु. यमुना) में स्नान कराकर भूमि को सौंप दिया जो कि पर्वतीय प्रदेश में ( तु. गोवर्धन पार के गांव में) छिपा आई। वनदेवी इयो (गायों) और अजदेवी (वृष्णि, बकरी) ने उसका लालन पालन किया। कोनस जब ये जान गया तो ह्रिया ने उसे कपडे में पत्थर बांधकर दे दिया। वह उसे भी खा गया। जब उसे धोखे का पता चला तो जेयस नाग (कालिय) बन गया।
यह जेयस इडा के पहाडों में बसे ग्वालों के बीच बडा हुआ और तरकीब से क्रोनस का पानेरी बना। एक बार उसने क्रोनस को कुछ ऐसा पिला दिया कि उसके पेट से जयस के पूर्व भाई-बहन बाहर आ गए जिन्होंने जयस को अपना मुखिया चुना। जेयस ने क्रोनस को अपने वज्र से मार गिराया।
यूनानी माइथोलॉजी के मुताबिक जेयस की पहली विजय, पहली सदी ई. पूर्व के लेखक थालस के अनुसार टाय के घेरे में 322 साल पहले हुई, अर्थात् 1505 ईसा पूर्व। अधिकांश विद्वानों ने कृष्ण व कंस का इतिहास में यही काल तय किया है।
इस कथा में एराधिन के साथ जयस के संबंध राधा-कृष्ण के प्रसंगों के परिचायक है। जेयस ने बैल का रूप धरकर लीबिया की राजकन्या यूरोपी (तु. रुकमिणी) का हरण किया। उससे तीन पुत्र हुए मीनो, राधामंथिस और सर्पदन। मीनों क्रीट के शासक हुए और राधामंथिस स्मृतिकार। मीनों की पत्नी पेसिफी हुई जो सबके लिए चमक लिए थी, अर्थात् कीर्ति। पुराणों में वृषभानु की पत्नी का नाम भी कीर्ति ही आया है।
अगली एक कथा में एद्रोस्टस ( तु. द्रुपद) की पुत्री देयदामिथा (द्रोपदी) चचेरे भाइयों के रूप में शतम् (कोरव) और नेस्टर (घोंसले वाला, शकुनी) आदि के आख्यान है…। है न भारतीय पुराणों की कथा की साम्यता रखने वाला प्रसंग…। यवनों ने विदिशा में हेरक्लीज का स्तंभ बनाया। यह हेरक्लीज ही हरिकृष्ण है जो ग्रीक साहित्य में बहुत महत्व रखता है। (न्याय, अजमेर के दीपावली अंक, 1962 में प्रकाशित प्रो. शर्मा का लेख और साक्षात्कार पर आधारित)