Posted in संस्कृत साहित्य

हमारा ऋग्वेद हमे बांटकर खाने को कहता है…!


हमारी संस्कृति
हमारा ऋग्वेद हमे बांटकर खाने को कहता है…!
हम जो अनाज खेतों मे पैदा करते है, उसका बंटवारा तो देखिए…!
1, जमीन से चार अंगुल भूमि का,
2, गेहूं के बाली के नीचे का पशुओं का,
3, पहले पेड़ की पहली बाली अग्नि की
4, बाली से गेहूं अलग करने पर मूठ्ठी भर दाना पंछियो का,
5, गेहूं का आटा बनाने पर मुट्ठी भर आटा चीटियो का फिर आटा गूथने के बाद
6, चुटकी भर गुथा आटा मछलियो का,
7, फिर उस आटे की पहली रोटी गौमाता की ———-और,
8, पहली थाली घर के बुज़ुर्ग़ो की और फिर हमारी और,
9, आखरी रोटी कुत्ते की,
ये हमे सिखाती है हमारी भारतीय संस्कृति और मुझे गर्व है कि मै इस संस्कृति का हिस्सा हूं |और मुझे इससे ज्यादा इस बात पर गर्व है की मेरे माता पिता ने मुझे अपने संस्कृति सभ्यता और धरती गौ माता से जोड़कर रखा है।लाखो कमाकर मौज करने में वो मजा नहीं जो अपने भारतीय संस्कृति को समझ कर उसका अमल करने में है।मेरा आप सभी माँ बाप से नम्र निवेदन है की आप भी अपने बच्चों को पश्चमी संस्कृति के बदले भारत की संस्कृति के बारे में सिखाये और इस संस्कृति पर गर्व करना सीखे।भारतीय संस्कृति ने विश्व को बहोत कुछ दिया है और लिया कुछ भी नहीं सनातन संस्कृति ही मात्र ऐसी संस्कृति है जो विश्व की धरोहर है और हम वो अनुयायी है जो इस धरोहर के रक्षक है ।इसलिए हिंदुओ अपनी एकता से भारत देश की रक्षा करे गद्दारो और अन्य विधर्मियो से।
आप की जागरूकता मात्र से ही धरती पर भारत देश को फिर से विश्व गुरु बनाया जा सकता है।

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मांस का मूल्य


(मांस का मूल्य )
मगध के सम्राट् श्रेणिक ने एक बार अपनी राज्य-सभा में पूछा कि- “देश की खाद्य समस्या को सुलझाने के लिए सबसे सस्ती वस्तु क्या है? ”
मंत्रि-परिषद् तथा अन्य सदस्य सोचमें पड़ गये। चावल, गेहूं, आदि पदार्थ तो बहुत श्रम बाद मिलते हैं और वह भी तब, जबकि प्रकृति का प्रकोप न हो। ऐसी हालत में अन्न तो सस्ता हो नहीं सकता। शिकार का शौक पालने वाले एक अधिकारी ने सोचा कि मांस ही ऐसी चीज है, जिसे बिना कुछ खर्च किये प्राप्त किया जा सकता है।
उसने मुस्कराते हुए कहा-
“राजन्! सबसे सस्ता खाद्य पदार्थ तो मांस है। इसे पाने में पैसा नहीं लगता और पौष्टिक वस्तु खाने को मिल जाती है।”
सबने इसका समर्थन किया, लेकिन मगध का प्रधान मंत्री अभय कुमार चुप रहा।
श्रेणिक ने उससे कहा, “तुम चुप क्यों हो? बोलो, तुम्हारा इस बारेमें क्या मत है?”
प्रधान मंत्री ने कहा, “यह कथन कि मांस सबसे सस्ता है, एकदम गलत है। मैं अपने विचार आपके समक्ष कल रखूंगा।”
रात होने पर प्रधानमंत्री सीधे उस सामन्त के महल पर पहुंचे, जिसने सबसे पहले अपना प्रस्ताव रखा था।
अभय ने द्वार खटखटाया।
सामन्त ने द्वार खोला। इतनी रात गये प्रधान मंत्री को देखकर वह घबरा गया। उनका स्वागत करते हुए उसने आने का कारण पूछा।
प्रधान मंत्री ने कहा –
“संध्या को महाराज श्रेणिक बीमार हो गए हैं। उनकी हालत खराब है। राजवैद्य ने उपाय बताया है कि किसी बड़े आदमी के हृदय का दो तोला मांस मिल जाय तो राजा के प्राण बच सकते हैं। आप महाराज के विश्ववास-पात्र सामन्त हैं। इसलिए मैं आपके पास आपके हृदय का दो तोला मांस लेने आया हूं। इसके लिए आप जो भी मूल्य लेना चाहें, ले सकते हैं। कहें तो लाख स्वर्ण मुद्राएं दे सकता हूं।”
यह सुनते ही सामान्त के चेहरे का रंग फीका पड़ गया। वह सोचने लगा कि जब जीवन ही नहीं रहेगा, तब लाख स्वर्ण मुद्राएं भी किस काम आएगी!
उसने प्रधान मंत्री के पैर पकड़ कर माफी चाही और अपनी तिजौरी से एक लाख स्वर्ण मुद्राएं देकर कहा कि इस धन से वह किसी और सामन्त के हृदय का मांस खरीद लें।
मुद्राएं लेकर प्रधानमंत्री बारी-बारी से सभी सामन्तों के द्वार पर पहुंचे और सबसे राजा के लिए हृदय का दो तोला मांस मांगा, लेकिन कोई भी राजी न हुआ। सबने अपने बचाव के लिए प्रधानमंत्री को एक लाख, दो लाख और किसी ने पांच लाख स्वर्ण मुद्राएं दे दी। इस प्रकार एक करोड़ से ऊपर स्वर्ण मुद्राओं का संग्रह कर प्रधान मंत्री सवेरा होने से पहले अपने महल पहुंच गए और समय पर राजसभा में प्रधान मंत्री ने राजा के समक्ष एक करोड़ स्वर्ण मुद्राएं रख दीं।
श्रेणिक ने पूछा, “ये मुद्राएं किसलिए हैं?”
प्रधानमंत्री ने सारा हाल कह सुनाया और बोले –
” दो तोला मांस खरीदने के लिए इतनी धनराशी इक्कट्ठी हो गई किन्तु फिर भी दो तोला मांस नहीं मिला। अपनी जान बचाने के लिए सामन्तों ने ये मुद्राएं दी हैं। अब आप सोच सकते हैं कि मांस कितना सस्ता है?”
जीवन का मूल्य अनन्त है। हम यह न भूलें कि जिस तरह हमें अपनी जान प्यारी होती है, उसी तरह सभी जीवों को अपनी जान प्यारी होती है ।
जियो और जीने दो
प्राणी मात्र की रक्षा हमारा धर्म है..!! .
शाकाहार अपनाओ…

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एक कहानी जो आपके जीवन से जुडी है ।


।।जय श्री कृष्णा।।

एक कहानी जो आपके जीवन से जुडी है । ध्यान से अवश्य पढ़ें–

एक अतिश्रेष्ठ व्यक्ति थे
एक दिन उनके पास एक निर्धन आदमी आया और बोला की मुझे अपना खेत कुछ साल के लिये उधार दे दीजिये ,मैं उसमे खेती करूँगा और खेती करके कमाई करूँगा,
वह अतिश्रेष्ठ व्यक्ति बहुत दयालु थे
उन्होंने उस निर्धन व्यक्ति को अपना खेत दे दिया और साथ में पांच किसान भी सहायता के रूप में खेती करने को दिये और कहा की इन पांच किसानों को साथ में लेकर खेती करो, खेती करने में आसानी होगी,
इस से तुम और अच्छी फसल की खेती करके कमाई कर पाओगे।
वो निर्धन आदमी ये देख के बहुत खुश हुआ की उसको उधार में खेत भी मिल गया और साथ में पांच सहायक किसान भी मिल गये।
लेकिन वो आदमी अपनी इस ख़ुशी में बहुत खो गया,
और वह पांच किसान अपनी मर्ज़ी से खेती करने लगे और वह निर्धन आदमी अपनी ख़ुशी में डूबा रहा,
और जब फसल काटने का समय आया तो देखा की फसल बहुत ही ख़राब हुई थी , उन पांच किसानो ने खेत का उपयोग अच्छे से नहीं किया था न ही अच्छे बीज डाले ,जिससे फसल अच्छी हो सके |
जब वह अतिश्रेष्ठ दयालु व्यक्ति ने अपना खेत वापस माँगा तो वह निर्धन व्यक्ति रोता हुआ बोला की मैं बर्बाद हो गया , मैं अपनी ख़ुशी में डूबा रहा और इन पांच किसानो को नियंत्रण में न रख सका न ही इनसे अच्छी खेती करवा सका।

अब यहाँ ध्यान दीजियेगा-

वह अतिश्रेष्ठ दयालु व्यक्ति हैं -”श्री कृष्णा भगवान”

निर्धन व्यक्ति हैं -“हम”

खेत है -“हमारा शरीर”

पांच किसान हैं हमारी इन्द्रियां–आँख,कान,नाक,जीभ और मन |

प्रभु ने हमें यह शरीर रुपी खेत अच्छी फसल(कर्म) करने को दिया है और हमें इन पांच किसानो को अर्थात इन्द्रियों को अपने नियंत्रण में रख कर कर्म करने चाहियें ,जिससे जब वो दयालु प्रभु जब ये शरीर वापस मांग कर हिसाब करें तो हमें रोना न पड़े।

इसलिये गीता पढ़े और पढ़ाये ,इस ज्ञान को अपने जीवन में लगायें।।

।।जय श्री कृष्णा।।

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क्यों चढ़ाते है हनुमान को सिंदूर ?


क्यों चढ़ाते है हनुमान को सिंदूर ?

हिन्दू धर्म में सिंदूर को सुहाग का प्रतीक माना जाता है । प्रत्येक सुहागन स्त्री इसे अपनी मांग में लगाती है । सिंदूर का हिन्दू धर्म में पूजा पाठ में भी महत्तव है । कई देवी देवताओं को सिंदूर चढ़ाया जाता है । हनुमान जी को भी ऊपर से नीचे तक सिंदूर चढ़ाया जाता है, जिसका वर्णन तुलसीदास जी ने भी रामचरित मानस में इस तरह से किया है –

रामचरित मानस के अनुसार जब श्रीराम लक्ष्मण और सीता सहित अयोध्या लौट आए तो एक दिन हनुमान जी माता सीता के कक्ष में पहुंचे । उन्होंने देखा कि माता सीता लाल रंग की कोई चीज मांग में सजा रही हैं । हनुमान जी ने उत्सुक हो माता सीता से पूछा यह क्या है जो आप मांग में सजा रही हैं ? माता सीता ने कहा यह सौभाग्य का प्रतीक सिंदूर है । इसे मांग में सजाने से मुझे भगवान राम का स्नेह प्राप्त होता है और उनकी आयु लंबी होती है । यह सुन कर हनुमान जी से रहा न गया ओर उन्होंने अपने पूरे शरीर को सिंदूर से रंग लिया तथा मन ही मन विचार करने लगे इससे तो मेरे प्रभु श्रीराम की आयु ओर लम्बी हो जाएगी और वह मुझे अति स्नेह भी करेंगे । सिंदूर लगे हनुमान जी प्रभु राम की सभा में चले गए ।
भगवान राम ने जब हनुमान को इस रुप में देखा तो हैरान रह गए । भगवान राम ने हनुमान से पूरे शरीर में सिंदूर लेपन करने का कारण पूछा तो हनुमान जी ने साफ-साफ कह दिया कि इससे आप अमर हो जाएंगे और मुझे भी माता सीता की तरह आपका स्नेह मिलेगा । हनुमान जी की इस बात को सुनकर श्रीराम भाव विभोर हो गए और हनुमान जी को गले से लगा लिया । उस समय से ही हनुमान जी को सिंदूर अति प्रिय है और सिंदूर अर्पित करने वाले पर हनुमान जी प्रसन्न रहते हैं ।

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लक्ष्मी पूजन में कभी न भूलें ये 4 बातें


लक्ष्मी पूजन में कभी न भूलें ये 4 बातें

दीपावली लंका पर भगवान श्रीराम की विजय तथा अयोध्या आगमन पर मनाया जाने वाला पर्व है। इस दिन मां लक्ष्मी का पूजन कर घर में सुख, समृद्धि और परिजनों के लिए सफलता की कामना की जाती है। श्रद्धा तथा विधिपूर्वक किए गए पूजन से मां लक्ष्मी शीघ्र प्रसन्न होती हैं। जानिए लक्ष्मी पूजन में कौनसे काम करने से शुभ फल प्राप्त होता है।
लक्ष्मी पूजन में मां लक्ष्मी का ही पूजन न करें बल्कि साथ में गणपति की भी वंदना करें। मां लक्ष्मी धन और सफलता देती हैं तो गणपति सिद्धि और सद्बुद्धि। किसी एक के बिना जीवन में सफलता की प्राप्ति और उसकी रक्षा संभव नहीं है। अतः दीपावली के पूजन में दोनों का पूजन अवश्य करें। इस पूजन में देवी सरस्वती की भी वंदना की जाती है।
दीपावली पर लक्ष्मी पूजन का श्रेष्ठ समय शाम 5.43 से 7.38 बजे तक रहेगा
पूजन में तिलक विजय और लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है। लाल रंग ऊर्जा का भी प्रतीक होता है। तिलक लगाना शुभ है और यह धार्मिक संस्कारों का अभिन्न अंग है। शास्त्रों के अनुसार इससे आज्ञा चक्र जाग्रत होता है। पूजन में बिना तिलक लगाए रहना पूर्ण फल नहीं देता। अतः लक्ष्मी पूजन में तिलक जरूर लगाना चाहिए।
पूजन में धूप-दीप प्रज्वलित करने से वातावरण पवित्र होता है और वहां की नकारात्मक ऊर्जा का निष्कासन हो जाता है। दीपावली के पूजन में अन्य सामग्री प्रज्वलित करने के साथ कपूर भी प्रज्वलित करें। यह देवी लक्ष्मी को अतिप्रिय माना जाता है। इससे घर का वातावरण शुद्ध होता है।
दीपावली पर लक्ष्मी पूजन के दौरान कलावा जरूर बंधवाना चाहिए। कलावा रक्षा और सफलता का प्रतीक होता है। शास्त्रों के अनुसार कलावा बांधने के बाद कुछ चावल पीछे फेंकने चाहिए। माना जाता है कि इससे जीवन में आने वाले दुख, अभाव, कष्ट आदि से मुक्ति मिलती है।

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महाबली की पूंछ तक न हिला सके भीम!


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शनि शत्रु नहीं मित्र हैं (Shree Shanidham)

महाबली की पूंछ तक न हिला सके भीम!

महाभारत काल में जब पांडव पुत्र अपना बारह वर्ष का वनवास पूर्ण कर चुके थे और अज्ञातवास का एक वर्ष पूर्ण करने के लिए छुपे-छुपे फिर रहे थे तभी वे राजस्थान के अलवर के समीप इस स्थान पर पहुंचे।उस समय उन्हें राह में दो पहाड़ियां आपस में जुडी नजर आईं जिससे उनका आगे का मार्ग अवरुद्ध हो रहा था तब माता कुंती ने अपने पुत्रों से पहाड़ी को तोड़ रास्ता बनाने को कहा।
माता का आदेश सुनते ही महावली भीम ने अपनी गदा से एक भरपूर प्रहार किया जिससे पहाड़ियों को चकनाचूर कर रास्ता बना दिया। भीम के इस पौरुष भरे कार्य को देश उनकी माता और भाई प्रशंसा करने लगे जिससे भीम के मन में अहंकार पैदा हो गया।
भीम का यह अहंकार तोड़ने के लिए हनुमानजी ने योजना बनाई और आगे बढ़ रहे पांडवों के रास्ते में बूढ़े वानर का रूप रखकर लेट गए। जब पांडवों ने देखा कि जिस राह से उन्हें गुजरना है वहां एक बूढा वानर आराम कर रहा है तो उन्होंने उससे रास्ता छोड़ने का आग्रह करते हुए कहा कि वह उनका रास्ता छोड़ कहीं और जाकर विश्राम करे।
पांडवों का आग्रह सुन हनुमानजी ने कहा कि वे बूढ़े होने के कारण हिलडुल नहीं सकते अतः पांडव किसी दूसरे रास्ते से निकल जाएं। अपने अहंकार में चूर भीम को हनुमानजी की यह बात अच्छी नहीं लगी और हनुमानजी को ललकारने लगे।
भीम की ललकार सुन हनुमानजी ने बड़े ही नम्र भाव से कहा कि वे उनकी पूंछ को हटाकर निकल जाएं लेकिन भीम उनकी पूंछ को हटाना तो दूर हिला भी न सके और अपने अहंकार पर पछताने लगे साथ ही हनुमानजी से क्षमा याचना करने लगे।
भीम के द्वारा क्षमा याचना करने पर हनुमानजी अपने असली रूप में आए और बोले- तुम वीर ही नहीं महाबली हो लेकिन वीरों को इस तरह अहंकार शोभा नहीं देता। इसके बाद हनुमानजी भीम को महाबली होने का वरदान देकर वहां से विदा हो गए लेकिन वह स्थान जहां वे लेटे थे आज भी उनके प्रसिद्ध धाम के रूप में पूज्य है।

हनुमान मंदिर का निर्माण जंगल में ही रहने वाले एक संत निर्भायादास ने कराया है। प्रत्ति मंगलवार और शनिवार को इस मंदिर में हनुमानजी के इस अद्भुत रूप के दर्शन करने भक्तों का मेल सा लगता है। यहीं से कुछ दूरी पर वह पहाड़ी भी मौजूद है जिसे भीम ने गदा से चकनाचूर रास्ता बनाया था। इस पहाड़ी को भीम पहाड़ी के नाम से जाना जाता है।

Posted in गौ माता - Gau maata

गाय के शरीर में देवताओं का वास व पैरों में तीर्थ स्थल होता है


गाय के शरीर में देवताओं का वास व पैरों में तीर्थ स्थल होता है। महंत जी ने कहा कि जब कोई भी मनुष्य गऊ माता की धुली को अपने माथे पर लगाता है तो उसे तत्काल किसी तीर्थ स्थल के जल में स्नान करने जितना पुण्य प्राप्त होता है और सफलता उसके कदम चूमती है। जहां पर गाय रहती है वह स्थान पवित्र होकर तीर्थ स्थल के समान हो जाता है। ऐसी भूमि पर प्राण त्यागने वाला इंसान तुरन्त मुक्ति प्राप्त करता है। गाय ही भूत और भविष्य है। ये सदा रहने वाली पुष्टि का कारण व लक्ष्मी की जड है। गौ माता को जो कुछदिया जाता है उसका पुण्य कभी नष्ट नहीं होता जो लोग गो दान करते हैं वे समस्त संकटों से मुक्त होकर दुष्कर्मो के पाप समूह से भी तर जाते हैं।
गाय के सींगो के अग्र भाग में देवराज इंद्र, हृदय में कार्तिकेय, सिर में ब्रह्मा और ललाट में शंकर, दोनों नेत्रों में चंद्रमा और सूर्य, जीभ में सरस्वती, दांतो में मरुद्गण, स्तनों में चारों पवित्र समुद्र, गोमूत्र में गंगा, गोबर में लक्ष्मी व खुरों के अग्र भाग में अप्सराए निवास करती है। उन्होंने कहा कि गाय के सींगो में चर व अचर सभी तीर्थ विद्यमान है। ललाट में देवी पार्वती व हुंकार में भगवती सरस्वती का वास है। गालों में यम व यक्ष निवास करते हैं

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Posted in रामायण - Ramayan

The world of plants is central to the Ramayana


Ancient Indian Scientific Knowledge Forum's photo.
Ancient Indian Scientific Knowledge Forum

The world of plants is central to the Ramayana, and this Indian pre-historical book written in long poem describes several trees and plants that are geographically accurate, and even today, the plants that are described are found growing in the exact locations all over India where Valmiki, author of the Ramayana, has placed them. It is both geographically and botanically correct.

Mr. M. Amerthalingam, botanist with the C.P.R. Environmental Education Centre, Chennai, presented the paper, “Plant Diversity in the Valmiki Ramayana” at the February 2013 Conference on The Ramayana in Literature, Society, and the Arts. The proceedings have recently been published. Dr. P. Sudhakar, the co-author*, was invaluable in tracing the botanical and modern names for several of the plant species, which are named in Sanskrit. Valmiki Ramayana is replete with superb descriptions of nature’s glory. It hinges on two major events, namely Rama’s fourteen year exile in the forests and the rescue of Sita from captivity in Lanka. The stage of the epic includes a wide swathe of territory that stretches from present day Uttar Pradesh through Madhya Pradesh, Maharashtra and Karnataka up to Lanka (Srilanka) beyond the sea. It is obvious that such a large chunk of territory would cover a wide range of biological and non-biological phenomena. The three years of analysis* is an attempt made to highlight the four major ecosystems, namely, the tropical deciduous forests, the dry and moist deciduous forests, the evergreen tropical forests of Sri Lanka and the Alpine region semi- forests (Himalayan), with details of geographical distribution, principal flora and fauna, water elements and their environmental importance. An amazing fact about the Ramayana is that it is geographically accurate in spite of the passage of thousands of years.

The research also says it is worth examining who were the Vanaras, popularly called monkeys in current generation. According to the epic, they were the inhabitants of the ‘vana’, the cultivated forests. The word for monkey in Sanskrit is ‘kapi’, not vanara. We are told that that the armies of Vali and Sugriva marched with the Vanara emblem on the flags. Even Jambavan, the so-called bear, is called a vanara, or forest dweller. An author who knew his flora and fauna so well could not mistake a bear for a monkey. Much later, they were designated as monkeys with less understanding between Monkeys and Vanaras. Vanaras were indeed a different species, superior to monkey.

The research* has documented a total of #182 plant species in Valmiki’s Ramayana. Out of the 182 plant species, 105 species are trees, 5 are small trees, 8 are shrubs, 22 are herbs, 1 is a species of creeper, 15 species are climbers, 6 are grasses and 20 are aquatic herbs.
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*Sources: Plant and Animal Diversity in Valmiki’s Ramayana by M. Amirthalingam And P. Sudhakar. Published by C.P. Environmental Education Centre

Posted in बॉलीवुड - Bollywood

शाहरुख़ खान द्वारा करोङो भारतवासियों को असहिष्णु कहने पर इस फ़िल्मी वतन परस्त को फ़िल्मी अंदाज़ में जवाब देती कविता


(शाहरुख़ खान द्वारा करोङो भारतवासियों को असहिष्णु कहने पर इस फ़िल्मी वतन परस्त को फ़िल्मी अंदाज़ में जवाब देती कविता)

हमने तुमको “दिल से” चाहा, “चाहत” का उपहार दिया,
“दीवाना”पूरा भारत था,शोहरत का संसार दिया,

“दिल तो पागल है”जनता का “बादशाह” तुमको माना,
“मोहब्बते”इतनी की हमने,धर्म तुम्हारा ना जाना,

जब “चक दे इंडिया”कहा तो भीड़ तुम्हारे साथ रही,
“हैप्पी न्यू ईयर”जब आया,जगमग सारी रात रही,

“चैन्नई एक्सप्रेस” तलक में तुमने खुल कर सफ़र किया,
उत्तर से दक्षिण तक सबने,प्यार तुम्हारी नज़र किया,

“दिलवाले दुलहनियां ले जायेंगे” तुमने जब बोला,
तुमको मुम्बई ने पनाह दी,सबने अपना दिल खोला,

“डॉन”बनाकर रक्खा तुमको, “बाज़ीगर” का ताज दिया,
राजा तुम्हे “अशोका” समझा सबने तुम पर नाज किया,

लेकिन ये क्या? तुम “स्वदेस” को आज पराया कह बैठे,
खुद को पूरे भारत का लाचार सताया कह बैठे,

जिस जनता ने दौलत देकर तुमको भाव विभोर किया,
साथ उसी जनता के तुमने,क्यों “वन टू का फोर” किया?

“डर” किसका, किसलिये झूठ का ढोल बजाकर बैठे हो,
दिल के अंदर तुम कितना, “कोयला” सजाकर बैठे हो,

आज तुम्हारी आँखों में नफरत का सावन देखा है,
“रॉ-वन” के अंदर हमने फिर से इक रावन देखा है,

उजड़ा जब केदारनाथ,फूटी कौड़ी ना दे पाये,
और कराची में करोड़ रुपये क्यों तुमने भिजवाये?

भारत को धिक्कार,पाक को तुम “यस बॉस”बोलते हो,
और हमारी चाहत को मज़हब से आज तौलते हो,

खूब दिया”अंजाम” प्यार का,आज वतन आभारी है,
हमें बता दो कब भारत से जाने की तैयारी है?

जल्दी जाओ,अमन चैन की धरती केवल पाकिस्तान,
कसम तुम्हे है लौट न आना शाहरुख़ जी,”जब तक है जान”.

Posted in राजनीति भारत की - Rajniti Bharat ki

पुरस्कार तो लौटेंगे ही


पुरस्कार तो लौटेंगे ही
अब गीता पढ़ने वाला पीएम जो मिला है।
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पुरस्कार तो लौटेंगे ही
पाकिस्तान में मोदी हाय हाय जो मचा हुआ है।
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पुरस्कार तो लौटेंगे ही
क्योंकि
अब राष्ट्रपति भवन में रोज़ा इफ़्तार के साथ नवरात्री का कन्या पूजन भी जो हो रहा है।

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पुरस्कार तो लौटेंगे ही
जो इस देश का पीएम जाकर अरब में मंदिर बनवा रहा है।
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पुरस्कार तो लौटेंगे ही
जो इस देश का पीएम विदेशों में भी भगवा धारण कर रहा है।
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पुरस्कार तो लौटेंगे ही
जो आज मोदी की वजह से विश्व योगा दिवस मना रहा है।
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पुरस्कार तो लौटेंगे ही
जो अब फिर से दूरदर्शन के लोगों में “सत्यम शिवम् सुन्दरम्” अंकित हो गया है।
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पुरस्कार तो लौटेंगे ही
जो आज पूरे देश में गौहत्या रोकने की बात जो हो रही है।
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इंतज़ार करिये।
अभी बहुत पुरस्कार लौटने हैं।
देश जाग जो रहा हैं

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🚩जय हिंद 🚩
⛳जय भारत ⛳

ॐ👇👇👇👇👇ॐ
📯📯आओ मित्रो जरा साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने के नाम पर हो रही राजनीती से अवगत हुआ जाए।

👉👉पहले कुछ तथ्य ।

👉1) आज तक 1004 लेखको को साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला है ।

👉2) जिसमे से 25 लेखको ने ही प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से पुरस्कार लौटाने की बात की है ।जबकि कुछ न्यूज़ चैनल इसे दिखा ऐसे रहे है।जैसे कितनी बड़ी त्रासदी आ गयी हो ।

👉3) 25 लेखको में से भी केवल 8 ने ही पुरस्कार लौटाने के लिए अकादमी को चिठ्ठी लिखी है ।बाकि ने तो सिर्फ चैनलों के माध्यम से बात ही कही है लौटाने की ।जैसे धमका रहें हो।

👉4) 8 में से भी केवल 3 ने ही 1 लाख रुपये का चेक लौटाया है जो पुरस्कार के साथ मिलता है ।

👉अब जरा ये जानने का प्रयास किया जाये के इस पुरस्कार को लौटाने का कारण क्या है ।
लेखको के अनुसार जबसे केंद्र में ये सरकार बनी है ।तब से देश में सांप्रदायिक सौहार्द बिगड़ा है । क्या ये सच है । देखते हैं ।

👉साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने वाले लेखक तथा उनका सत्य ।

👉1) नयनतारा सहगल

   जवाहर लाल नेहरू की भांजी
पुरस्कार मिला 1986 में
👉सवाल – क्या पुरस्कार पाने के 29 वर्षों में भारत में राम राज्य था ।
1984 के दंगों में 2800 सिख मरे और केवल 2 साल बाद ही पुरस्कार मिला पर लौटाने के बजाय चुपचाप रख लिया ।

👉2) उदय प्रकाश
वर्ष 2010 में साहित्य पुरस्कार मिला

👉सवाल – वर्ष 2013 में डाभोलकर की हत्या के बाद पुरस्कार क्यों नहीं लौटाया ।

👉3) अशोक वाजपेयी
👉 वर्ष 1994 में पुरस्कार मिला ।

👉सवाल – क्या वर्ष 1994 से वर्ष 2015 तक देश में राम राज्य था ।

👉4) कृष्णा सोबती
वर्ष 1980 में पुरस्कार मिला ।

👉सवाल – वर्ष 1984 के सिख दंगो के वक़्त भावनाएँ आहत क्यों नहीं हुईं ।

👉5) राजेश जोशी
वर्ष 2002 में पुरस्कार मिला

👉सवाल – क्या इतने वर्षों में सांप्रदायिक हिंसा की घटनाये नहीं हुईं ।

आइये अब कुछ और तथ्य जानें ।

👉 वर्ष 2009 से लेकर वर्ष 2015 तक सांप्रदायिक हिंसा की 4346 घटनायें हुईं।

मतलब वर्ष 2009 से लेकर प्रति दिन औसतन सांप्रदायिक हिंसा की 2 घटनाये हुईं।

👉वर्ष 2013 के मुज्जफरनगर दंगो में 63 लोगो की जान गयी।

👉 वर्ष 2012 के असम दंगो में 77 लोग मारे गए ।

👉वर्ष 1984 के सिख दंगो में 2800 लोग मारे गए थे ।

👉वर्ष 1990 से कश्मीरी पंडितों की 95 प्रतिशत आबादी को कश्मीर छोड़ना पड़ा था ।करीब 4 लाख कश्मीरी पंडितों को उनके घरों से निकाल दिया गया और उन्हें देश के अन्य शहरो में रहने को मजबूर होना पड़ा ।

👉अगस्त 2007 हैदराबाद में लेखिका तस्लीमा नसरीन के साथ बदसलूकी की गयी । और उसके खिलाफ फतवा जारी किया गया । और कोलकाता आने से भी रोका गया ।

👉 वर्ष 2012 सलमान रुश्दी को जयपुर आने नहीं दिया गया ।रुश्दी को वीडियो लिंक के जरिये भी बोलने नहीं दिया गया ।

चलिये अब महत्वपूर्ण प्रश्न

क्या ये लेखक दंगो में अंतर करते हैं ।आखिर इन्हें अचानक दंगो से इतनी परेशानी कैसे हो गयी ।या इसकी वजह कुछ और है।

👉दाभोलकर की जब हत्या हुई तब केंद्र और राज्य दोनों में कांग्रेस की सरकार थी,
तब कोई साहित्यकार पुरस्कार लौटाने नही आया ।।
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👉 कलबुर्गी की भी हत्या कांग्रेस शाषित राज्य में हुई है ।।

.👉 नयनतारा को साहित्य का पुरस्कार 1986 में मिला,
उससे दो साल पहले सिख दंगा हुआ था पर उन्होंने पुरस्कार लिया ।।

.👉इसके बाद भागलपुर दंगे हुए ,

👉कश्मीर में पंडितो का कत्लेआम हुआ ,

👉93 दंगे और बम विस्फोट हुए ।।

👉2002 में साबरमती एक्सप्रेस में 65 आदमी औरते बच्चों को जिन्दा जला दिया गया ।।
……..
उसके बाद से देश भर में कई कत्ले आम और आतंकी घटनाए जैसे…
👉मुम्बई लोकल में बम विस्फोट ,

👉संकट मोचन मन्दिर पर हमला ,

👉अक्षरधाम हमला ,

👉जम्मू के रघुनाथ मन्दिर पर हमला ,

👉अमरनाथ मे हमला

👉 मुम्बई में आतंकी हमला हो चूका है

तब किसी ने पुरस्कार नही लौटाया…
क्या तब माहौल खराब नही हुआ था ??
……..

📯📯असली बात ये है की ये सब साहित्यकार के भेष में छुपे कांग्रेस के चाटुकार है जिनको कांग्रेस सालो से इसीदिन के लिए पाल कर रखे हुए थे ।। आज ये लोग बस अपने नमक का फर्ज अदा कर रहे है ।[truncated by WhatsApp]