Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

त्याग और प्रेम


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एक दिन नारद जी भगवान के लोक को जा रहे थे। रास्ते में एक संतानहीन दुखी मनुष्य मिला। उसने कहा- नाराज मुझे आशीर्वाद दे दो तो मेरे सन्तान हो जाय। नारद जी ने कहा- भगवान के पास जा रहा हूँ। उनकी जैसी इच्छा होगी लौटते हुए बताऊँगा।
नारद ने भगवान से उस संतानहीन व्यक्ति की बात पूछी तो उनने उत्तर दिया कि उसके पूर्व कर्म ऐसे हैं कि अभी सात जन्म उसके सन्तान और भी नहीं होगी। नारद जी चुप हो गये।
इतने में एक दूसरे महात्मा उधर से निकले, उस व्यक्ति ने उनसे भी प्रार्थना की। उनने आशीर्वाद दिया और दसवें महीने उसके पुत्र उत्पन्न हो गया।
एक दो साल बाद जब नारद जी उधर से लौटे तो उनने कहा- भगवान ने कहा है- तुम्हारे अभी सात जन्म संतान होने का योग नहीं है।
इस पर वह व्यक्ति हँस पड़ा। उसने अपने पुत्र को बुलाकर नारद जी के चरणों में डाला और कहा- एक महात्मा के आशीर्वाद से यह पुत्र उत्पन्न हुआ है।
नारद को भगवान पर बड़ा क्रोध आया कि व्यर्थ ही वे झूठ बोले। मुझे आशीर्वाद देने की आज्ञा कर देते तो मेरी प्रशंसा हो जाती सो तो किया नहीं, उलटे मुझे झूठा और उस दूसरे महात्मा से भी तुच्छ सिद्ध कराया। नारद कुपित होते हुए विष्णु लोक में पहुँचे और कटु शब्दों में भगवान की भर्त्सना की।
भगवान ने नारद को सान्त्वना दी और इसका उत्तर कुछ दिन में देने का वायदा किया। नारद वहीं ठहर गये। एक दिन भगवान ने कहा- नारद लक्ष्मी बीमार हैं- उसकी दवा के लिए किसी भक्त का कलेजा चाहिए। तुम जाकर माँग लाओ। नारद कटोरा लिये जगह- जगह घूमते फिरे पर किसी ने न दिया। अन्त में उस महात्मा के पास पहुँचे जिसके आशीर्वाद से पुत्र उत्पन्न हुआ था। उसने भगवान की आवश्यकता सुनते ही तुरन्त अपना कलेजा निकालकर दे किया। नारद ने उसे ले जाकर भगवान के सामने रख दिया।
भगवान ने उत्तर दिया- नारद ! यही तुम्हारे प्रश्न का उत्तर है। जो भक्त मेरे लिए कलेजा दे सकता है उसके लिए मैं भी अपना विधान बदल सकता हूँ। तुम्हारी अपेक्षा उसे श्रेय देने का भी क्या कारण है सो तुम समझो।
जब कलेजे की जरूरत पड़ी तब तुमसे यह न बन पड़ा कि अपना ही कलेजा निकाल कर दे देते। तुम भी तो भक्त थे। तुम दूसरों से माँगते फिरे और उसने बिना आगा पीछे सोचे तुरन्त अपना कलेजा दे दिया। त्याग और प्रेम के आधार पर ही मैं अपने भक्तों पर कृपा करता हूँ और उसी अनुपात से उन्हें श्रेय देता हूँ। नारद चुपचाप सुनते रहे। उनका क्रोध शान्त हो गया और लज्जा से सिर झुका लिया।

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” साथ ” छोङना मना है ..!


“हर् स्कूल में लिखा होता है, ”
“असूल ” तोडना मना है …..!!

हर बाग में लिखा होता है ,
“फूल ” तोडना मना है ..!!

हर खेल मैं लिखा होता है ,
“रूल ” तोडना मना है ..!!

काश ..!!

रिश्ते,परिवार ,दोस्ती मैं
भी लिखा होता की ..,
किसी का

” साथ ” छोङना मना है ..!

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श्री राम लक्ष्मण व सीता सहित चित्रकूट पर्वत की ओर जा रहे थे !


श्री राम लक्ष्मण व सीता सहित चित्रकूट पर्वत की ओर जा रहे थे !
राह बहुत पथरीली और कंटीली थी !
सहसा श्री राम के चरणों में एक कांटा चुभ गया !
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फलस्वरूप वह रूष्ट या क्रोधित नहीं हुए,
बल्कि हाथ जोड़कर धरती से एक अनुरोध करने लगे !
बोले – ” माँ , मेरी एक विनम्र प्रार्थना है तुमसे !
क्या स्वीकार करोगी ?”
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धरती बोली – ” प्रभु प्रार्थना नही ,
दासी को आज्ञा दीजिए !”
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‘माँ, मेरी बस यही विनती है कि जब भरत मेरी खोज में
इस पथ से गुज़रे, तो तुम नरम हो जाना !
कुछ पल के लिए अपने आँचल के ये पत्थर और कांटे छुपा लेना !
मुझे कांटा चुभा सो चुभा ! पर मेरे भरत के पाँव में अघात मत करना’,
श्री राम विनत भाव से बोले !
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श्री राम को यूँ व्यग्र देखकर धरा दंग रह गई !
पूछा – ” भगवन, धृष्टता क्षमा हो ! पर क्या भरत आपसे अधिक सुकुमार है ?
जब आप इतनी सहजता से सब सहन कर गए,
तो क्या कुमार भरत नहीं कर पाँएगें ?
फिर उनको लेकर आपके चित में ऐसी व्याकुलता क्यों ?
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श्री राम बोले – ‘ नहीं …..नहीं माता !
आप मेरे कहने का अभिप्राय नहीं समझीं !
भरत को यदि कांटा चुभा, तो वह उसके पाँव को नहीं,
उसके हृदय को विदीर्ण कर देगा ! ‘
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‘हृदय विदीर्ण !! ऐसा क्यों प्रभु ?’,
धरती माँ जिज्ञासा घुले स्वर में बोलीं !
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‘अपनी पीड़ा से नहीं माँ, बल्कि यह सोचकर
कि इसी कंटीली राह से मेरे प्रभु राम गुज़रे होंगे
और ये शूल उनके पगों में भी चुभे होंगे !
मैया , मेरा भरत कल्पना में भी मेरी पीड़ा सहन नहीं कर सकता !
इसलिए उसकी उपस्थिति में आप कमल पंखुड़ियों सी कोमल बन जाना …!!”
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अर्थात रिश्ते अंदरूनी एहसास, आत्मीय अनुभूति के दम पर ही टिकते हैं।
जहाँ गहरी स्वानुभूति नहीं, वो रिश्ता नहीं
बल्कि उसे एक
व्यावसायिक संबंध का नामकरण दिया जा सकता हैl
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इसीलिए कहा गया है कि रिश्ते खून से नहीं,
परिवार से नहीं, समाज से नहीँ, मित्रता से नहीं,
व्यवहार से नहीं बनते, बल्कि सिर्फ और सिर्फ
“एहसास ” से ही बनते और निर्वहन किए जाते हैं।
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जहाँ एहसास ही नही,
आत्मीयता ही नही …
वहाँ अपनापन कहाँ से आएगा।
आप स्वयं भी इस पर विचार जरूर करें।
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Must read


पुरस्कार तो लौटेंगे ही
अब गीता पढ़ने वाला पीएम जो मिला है।
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पुरस्कार तो लौटेंगे ही
पाकिस्तान में मोदी हाय हाय जो मचा हुआ है।
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पुरस्कार तो लौटेंगे ही
क्योंकि
अब राष्ट्रपति भवन में रोज़ा इफ़्तार के साथ नवरात्री का कन्या पूजन भी जो हो रहा है।

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पुरस्कार तो लौटेंगे ही
जो इस देश का पीएम जाकर अरब में मंदिर बनवा रहा है।
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पुरस्कार तो लौटेंगे ही
जो इस देश का पीएम विदेशों में भी भगवा धारण कर रहा है।
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पुरस्कार तो लौटेंगे ही
जो आज मोदी की वजह से विश्व योगा दिवस मना रहा है।
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पुरस्कार तो लौटेंगे ही
जो अब फिर से दूरदर्शन के लोगों में “सत्यम शिवम् सुन्दरम्” अंकित हो गया है।
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पुरस्कार तो लौटेंगे ही
जो आज पूरे देश में गौहत्या रोकने की बात जो हो रही है।
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इंतज़ार करिये।
अभी बहुत पुरस्कार लौटने हैं।
देश जाग जो रहा हैं

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🚩जय हिंद 🚩
⛳जय भारत ⛳

ॐ👇🏽👇🏽👇🏽👇🏽👇🏽ॐ
📯📯आओ मित्रो जरा साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने के नाम पर हो रही राजनीती से अवगत हुआ जाए।

👉🏽👉🏽पहले कुछ तथ्य ।

👉🏻1) आज तक 1004 लेखको को साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला है ।

👉🏻2) जिसमे से 25 लेखको ने ही प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से पुरस्कार लौटाने की बात की है ।जबकि कुछ न्यूज़ चैनल इसे दिखा ऐसे रहे है।जैसे कितनी बड़ी त्रासदी आ गयी हो ।

👉🏻3) 25 लेखको में से भी केवल 8 ने ही पुरस्कार लौटाने के लिए अकादमी को चिठ्ठी लिखी है ।बाकि ने तो सिर्फ चैनलों के माध्यम से बात ही कही है लौटाने की ।जैसे धमका रहें हो।

👉🏻4) 8 में से भी केवल 3 ने ही 1 लाख रुपये का चेक लौटाया है जो पुरस्कार के साथ मिलता है ।

👉🏻अब जरा ये जानने का प्रयास किया जाये के इस पुरस्कार को लौटाने का कारण क्या है ।
लेखको के अनुसार जबसे केंद्र में ये सरकार बनी है ।तब से देश में सांप्रदायिक सौहार्द बिगड़ा है । क्या ये सच है । देखते हैं ।

👉🏻साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने वाले लेखक तथा उनका सत्य ।

👉🏻1) नयनतारा सहगल

   जवाहर लाल नेहरू की भांजी
पुरस्कार मिला 1986 में
👉🏻सवाल – क्या पुरस्कार पाने के 29 वर्षों में भारत में राम राज्य था ।
1984 के दंगों में 2800 सिख मरे और केवल 2 साल बाद ही पुरस्कार मिला पर लौटाने के बजाय चुपचाप रख लिया ।

👉🏻2) उदय प्रकाश
वर्ष 2010 में साहित्य पुरस्कार मिला

👉🏻सवाल – वर्ष 2013 में डाभोलकर की हत्या के बाद पुरस्कार क्यों नहीं लौटाया ।

👉🏻3) अशोक वाजपेयी
👉🏻 वर्ष 1994 में पुरस्कार मिला ।

👉🏻सवाल – क्या वर्ष 1994 से वर्ष 2015 तक देश में राम राज्य था ।

👉🏻4) कृष्णा सोबती
वर्ष 1980 में पुरस्कार मिला ।

👉🏻सवाल – वर्ष 1984 के सिख दंगो के वक़्त भावनाएँ आहत क्यों नहीं हुईं ।

👉🏻5) राजेश जोशी
वर्ष 2002 में पुरस्कार मिला

👉🏻सवाल – क्या इतने वर्षों में सांप्रदायिक हिंसा की घटनाये नहीं हुईं ।

आइये अब कुछ और तथ्य जानें ।

👉🏻 वर्ष 2009 से लेकर वर्ष 2015 तक सांप्रदायिक हिंसा की 4346 घटनायें हुईं।

मतलब वर्ष 2009 से लेकर प्रति दिन औसतन सांप्रदायिक हिंसा की 2 घटनाये हुईं।

👉🏻वर्ष 2013 के मुज्जफरनगर दंगो में 63 लोगो की जान गयी।

👉🏻 वर्ष 2012 के असम दंगो में 77 लोग मारे गए ।

👉🏻वर्ष 1984 के सिख दंगो में 2800 लोग मारे गए थे ।

👉🏻वर्ष 1990 से कश्मीरी पंडितों की 95 प्रतिशत आबादी को कश्मीर छोड़ना पड़ा था ।करीब 4 लाख कश्मीरी पंडितों को उनके घरों से निकाल दिया गया और उन्हें देश के अन्य शहरो में रहने को मजबूर होना पड़ा ।

👉🏻अगस्त 2007 हैदराबाद में लेखिका तस्लीमा नसरीन के साथ बदसलूकी की गयी । और उसके खिलाफ फतवा जारी किया गया । और कोलकाता आने से भी रोका गया ।

👉🏻 वर्ष 2012 सलमान रुश्दी को जयपुर आने नहीं दिया गया ।रुश्दी को वीडियो लिंक के जरिये भी बोलने नहीं दिया गया ।

चलिये अब महत्वपूर्ण प्रश्न

क्या ये लेखक दंगो में अंतर करते हैं ।आखिर इन्हें अचानक दंगो से इतनी परेशानी कैसे हो गयी ।या इसकी वजह कुछ और है।

👉🏻दाभोलकर की जब हत्या हुई तब केंद्र और राज्य दोनों में कांग्रेस की सरकार थी,
तब कोई साहित्यकार पुरस्कार लौटाने नही आया ।।
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👉🏻 कलबुर्गी की भी हत्या कांग्रेस शाषित राज्य में हुई है ।।

.👉🏻 नयनतारा को साहित्य का पुरस्कार 1986 में मिला,
उससे दो साल पहले सिख दंगा हुआ था पर उन्होंने पुरस्कार लिया ।।

.👉🏻इसके बाद भागलपुर दंगे हुए ,

👉🏻कश्मीर में पंडितो का कत्लेआम हुआ ,

👉🏻93 दंगे और बम विस्फोट हुए ।।

👉🏻2002 में साबरमती एक्सप्रेस में 65 आदमी औरते बच्चों को जिन्दा जला दिया गया ।।
……..
उसके बाद से देश भर में कई कत्ले आम और आतंकी घटनाए जैसे…
👉🏻मुम्बई लोकल में बम विस्फोट ,

👉🏻संकट मोचन मन्दिर पर हमला ,

👉🏻अक्षरधाम हमला ,

👉🏻जम्मू के रघुनाथ मन्दिर पर हमला ,

👉🏻अमरनाथ मे हमला

👉🏻 मुम्बई में आतंकी हमला हो चूका है

तब किसी ने पुरस्कार नही लौटाया…
क्या तब माहौल खराब नही हुआ था ??
……..

📯📯असली बात ये है की ये सब साहित्यकार के भेष में छुपे कांग्रेस के चाटुकार है जिनको कांग्रेस सालो से इसीदिन के लिए पाल कर रखे हुए थे ।। आज ये लोग बस अपने नमक का फर्ज अदा कर रहे है ।।.
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