तीन आलसी कामचोर एक साथ
खाना खा रहे थे।
खाने में नमक कम था तो सवाल
यह उठा कि नमक
कौन लाएगा..??
एक आलसी बोला –
जो पहले
बोलेगा वह नमक
लाएगा।
सब बैठे रहे।
न कोई बोला और न ही किसी ने
खाना खाया।
तीन दिन गुजर गए और
तीनों बेहोश हो गए।
लोगों ने सोचा तीनों मर चुके हैं।
अंतिम संस्कार की तैयारी हुई
और पहले
को जलाया जाने लगा तो वह
बोल पड़ा –
अरे मैं जिंदा हूं।
तभी बाकी दो आलसी चिल्लाए –
चल बेटा अब नमक
ला..!!
Day: October 23, 2015
एक बेटी ने जिद पकड़ ली – पापा मुझे साइकिल चाहिये.
एक बेटी ने जिद पकड़ ली – पापा मुझे साइकिल चाहिये..!
पापा ने कहा – अगले महीने
दिवाली पर जरुर साईकल लाउंगा..!
प्रॉमिस..!!
एक महीने बाद – पापा..!
मुझे
साइकिल चाहिये आपने प्रॉमिस
किया था..!
वह चुप रहा..!
शाम को दफ्तर से
लौटा बेटी तितली की तरह खुश
हुई..!
वेटी – थॅंक्स पापा ,
मेरी साइकिल के लिये..!
अगले दिन –
पापा..! आपकी उंगली की सोने
की अंगूठी कहाँ गई..?
बेटा..! सच बोलूँगा कल ही बेच
दी तुम्हारी साइकिल के लिये..!
बेटी रोते हुए – पापा..!
पैसों की इतनी दिक्कत
थी तो मत लाते..!
नहीं खरीदता तो मेरी प्रॉमिस
टूटती तुम्हे फिर मेरे किसी वादे
पे विश्वास नहीं होता..!
तुम
यही समझती कि प्रॉमिस तोड़ने
के लिये किये जाते है..!
मेरी अंगूठी दूसरी आ
जायेगी मगर टूटा हुवा विश्वास
छूटा हुवा बचपन
दोबारा नहीं लौटेंगे..!
जाओ..!
कहानी एक माँ चटाई पर लेटी आराम से सो रही थी
कहानी एक माँ चटाई पर लेटी आराम से सो रही थी……
मीठे सपनों से अपने मन को भिगो रही थी…….
तभी उसका बच्चा यूँ ही घूमते हुये समीप आया….
माँ के तन को छूकर हल्के हल्के से हिलाया…..
माँ अलसाई सी चटाई से बस थोड़ा उठी ही थी….
तभी उस नन्हें ने हलवा खाने की जिद कर दी….
माँ ने उसे पुचकारा और अपनी गोदी में ले लिया…..
फिर पास ही रखे ईटों के चूल्हे का रुख किया….
फिर उसने चूल्हे पर एक छोटी सी कढाई रख दी…
और आग जलाकर कुछ देर मुन्ने को ताकती रही….
फिर बोली बेटा जब तक उबल रहा है ये पानी….
क्या सुनोगे तब तक कोई परियों बाली कहानी…
मुन्ने की आंखें अचानक खुशी से थी खिल गयी….
जैसे उसको कोई मुँह मांगी मुराद ही मिल गयी…
माँ उबलते हुये पानी में कल्छी ही चलती रही….
परियों का कोई किस्सा मुन्ने को सुनाती रही….
फिर वो बच्चा उन परियों में ही जैसे खो गया….
चटाई पर बैठे बैठे ही लेटा और फिर वहीं सो गया…..
माँ ने उसे गोद में ले लिया और धीरे से मुस्कायी…..
फिर न जाने क्यूँ उसकी आंख भर आयी…..
जैसा दिख रहा था वहां पर, सब वैसा नहीं था…..
घर में रोटी की खातिर एक पैसा भी नहीं था….
राशन के डिब्बों में तो बस सन्नाटा पसरा था….
कुछ बनाने के लिए घर में कहाँ कुछ धरा था….
न जाने कब से घर में चूल्हा ही नहीं जला था…..
चूल्हा भी तो माँ के आंसुओं से ही बुझा था……
फिर मुन्ने को वो बेचारी हलवा कहां से खिलाती….
अपने जिगर के टुकड़े को रोता भी कैसे देख पाती…..
अपनी मजबूरी उस नन्हें मन को मां कैसे समझाती….
या फिर फालतू में ही मुन्नें पर क्यों झुंझलाती…..
हलवे की बात वो कहानी में टालती रही…..
जब तक वो सोया नहीं बस पानी उबालती रही…..
ऐसी होती है माँ….
नंगे पाव चलता इन्सान
नंगे पाव चलता इन्सान
को लगता है
.
कि “चप्पल होते
तो कितना अच्छा होता”
. बाद मेँ,
“साइकिल
होती तो कितना अच्छा होता”
.
उसके बाद,
“मोपेड होता तो थकान नही लगती”
.
बद मेँ सोचता है
“मोटर साइकिल
होती तो बातो-
बातो मेँ रास्ता कट जाता”
.
फिर ऐसा लगता है,
“कार होती तो धुप
नही लगती”
. फिर लगता है कि,
“हवाई जहाज
होती तो इन ट्राफिक
कि जंजट
नही होती”
. जब हवाई जहाज मेँ
बेठकर नीचे हरे-भरे घास
के मैदान
देखता है तो सोचता है,
कि “नंगे पाव घास मेँ
चलता तो दिल को कितनी तसल्ली मिलती”
.
.
“”जरुरत के मुताबिक
जिंदगी जिओ –
ख्वाहिशों के मुताबिक नहीं।
.
क्योंकि जरुरत
तो फकीरों की भी पूरी हो जाती है;
और
ख्वाहिशें बादशाहों की भी अधूरी रह
जाती है””