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श्रीमद्भागवत गीता


श्रीमद्भागवत गीता – संसार का स्वरूप, जीवन का रहस्य

srimadbhagwatgeeta-in-hindi-achhibatein-dot-comधार्मिक ग्रंथों ने सदियों से ही मानवता को सही दिशा और जीवनशैली सिखाई है। हम जिस भी धर्म को मानते हैं उसी आदर्शों पर आगे बढ़ते हैं, ये आदर्श हमें धार्मिक ग्रंथों के माध्यम से मिलते है। पीढ़ी दर पीढ़ी हम इन्ही आदर्शों का पालन करते आये हैं।

हिन्दू धर्म में श्रीमदभागवतगीता को सबसे पवित्र  माना गया हैं। यह सबसे रहस्यमयी ग्रन्थ हैं। गीता मुश्किलों में राह दिखाती है, उलझनों को सुलझाने का तरीका बताती है, जिंदगी और मृत्यु का सत्य सुनाती है। इसमें सभी प्रश्नों का उत्तर हैं, जीवन जीने का तरीका बताया गया हैं।
आज, कल, जन्म मर्त्यु, धन-सम्पदा, प्रकर्ति, जलवायु, आदि-अन्त, परमात्मा सभी का पूर्ण वर्णन हैं यह बहुत ही Simple हैं लेकिन बहुत ही रहस्यमई पुस्तक हैं।
अगर श्रीमद्भागवत गीता का अध्ययन नित्य किया जाएँ तो इस बात का आभास होता है कि उसमें सिखाया कुछ नहीं गया है, बल्कि समझाया गया कि इस संसार का स्वरूप क्या है? उसमें यह कहीं नहीं कहा गया कि आप इस तरह चलें या फिर उस तरह चलें, बल्कि यह बताया गया है कि किस तरह की चाल से आप किस तरह की छबि बनायेंगे? उसे पढ़कर आदमी कोई नया भाव नहीं सीखता बल्कि संपूर्ण जीवन सहजता से व्यतीत करें, इसका मार्ग बताया गया है।

ये स्वयं परमपिता परमेश्वर के मुखकमल से प्रकट हुयी हैं, भगवान ने स्वयं सारें रहस्य का वर्णन स्वयं किया हैं।
इसमें के कुछ का मैं इस POST में वर्णन करने जा रहा हैं।

आशा हैं आप सभी ‘श्रीमदभागवतगीता’ की दिव्य आनंदरूपी बारिश की एक बूँद का आनंद उठाएंगे।

गीता में 18 अध्याय हैं, हर एक अध्याय में कुछ श्लोक हैं, जो की अपने आप में एक सफल और सुन्दर जीवन जीने का तरीका बताता हैं अथार्थ श्रीमद्भागवत गीता के हर श्लोक में ज्ञान की गंगा हैं।

मैं हर एक Chapter में से कुछ अंश आपके साथ share कर रहा हूँ।
आपके जीवन में कितना भी संघर्ष हो, और मन कितना ही विचलित हो – यह ज्ञान वंहा आपके काम अवश्य आयेगा।

अध्याय एक / Chapter 1
कुरुक्षेत्र के युद्धस्थल में सैन्य निरीक्षण (अर्जुन विशद योग)

अर्जुन अपने विपक्ष में प्रबल सैन्य व्यूह को देख कर भयभीत हो गए थे। उनके सगे-सम्बन्धी जीव-प्रेम ने देश और राजा के प्रति उनके कर्त्तव्य को भुला दिया। इस प्रकार साहस और विश्वास से भरे अर्जुन महायुद्ध का आरम्भ होने से पूर्व ही युद्ध स्थगित कर रथ पर बैठ जातें हैं। श्री कृष्ण से कहते हैं – “मैं युद्ध नहीं करूंगा।“ मैं पूज्य गुरुजनों तथा सम्बन्धियों को मार कर राज्य का सुख नहीं चाहता, भिक्षान्न खाकर जीवन धारण करना श्रेयस्कर मानता हूँ, ऐसा सुनकर भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को उनके कर्तव्य और कर्म के बारें में बताया।

गीता अध्याय-1 (read more)

अध्याय दो / Chapter 2
गीता का सार (सांख्ययोग)

शरीर नित्य और आत्मा जन्म-मृत्यु रहित हैं। निष्काम कर्म, निष्काम भक्ति और ज्ञान सम्मिलन के फलस्वरूप ब्रह्मप्राप्ति और स्तिथ प्रज्ञ अवस्था होती है, इस अवस्था में स्तिथ होकर मनुष्य निष्काम भाव से अपने वर्ण और आश्रम के कर्म करके अंत में ब्रह्मनिर्वाण या मोक्ष प्राप्त करते हैं।

गीता अध्याय-2 (read more)

अध्याय तीन / Chapter 3
(कर्मयोग)

कर्मयोग में सभी कर्म केवल दूसरों के लिए किये जाते हैं। हम सुख चाहते हैं, अमरता चाहतें हैं, निश्चिंतता चाहते हैं, निर्भरता चाहतें हैं, स्वाधीनता चाहते हैं लेकिन यह सब हमें संसार से नहीं मिलेगा, प्रत्युत संसार से सम्बन्ध विच्छेद से मिलेगा। हमें संसार से जो कुछ मिला है, उसको केवल संसार कि सेवा में समर्पित कर दें, यही कर्म योग है। यदि ज्ञान के संस्कार हैं तो स्वरुप का साक्षात्कार हो जाता है और यदि भक्ति से संस्कार है, तो भगवान् में प्रेम हो जाता है। जो कर्म हम अपने लिए नहीं चाहते हैं उसको दूसरों के प्रति न करें।

गीता अध्याय-3 (read more)

अध्याय चार / Chapter 4
दिव्य ज्ञान (ज्ञानयोग)

मनुष्य शरीर अपने किये हुए कर्मों का फल ही लोक तथा परलोक मैं भोगा जाता है। जैसे धूल का छोटा से छोटा कण भी विशाल पृथ्वी का ही एक अंश है, ऐसे ही यह शरीर भी विशाल ब्रह्माण्ड का ही एक अंश है। ऐसा मानने से कर्म तो संसार केलिए होंगें पर योग (नित्य योग) अपने लिए अर्थात परमात्मा का अनुभव हो जाएगा।
जैसे आकाश में विचरण करते वायु को कोई मुट्ठी में पकड़ सकता। इसी तरह मन को कोई नहीं पकड़ सकता।

गीता अध्याय-4 (read more)

अध्याय पांच / Chapter 5
कृष्णभावनाभावित कर्म (सन्यास योग)

कर्म के द्वारा ईश्वर के साथ संयोग ही कर्मयोग है। जिस कर्म में भगवान् का संयोग नहीं होता वह कर्मयोग नहीं, वह केवलकर्म मात्र है। कर्म सकाम होने से ही वह बंधन का कारण होता है और निष्काम होने पर चित्त शुद्धि क्रम से वह मोक्ष का कारण बनता है।

गीता अध्याय-5 (read more)

अध्याय छह / Chapter 6
(ध्यानयोग)

सूत में जरा सा रेशा भी रहने से वह सुई के छेद में नहीं घुसता, उसी तरह मन में मामूली वासना रहने से भी वह ईश्वर केचरणकमलों के ध्यान में लवलीन नहीं होता।

गीता अध्याय-6 (read more)

अध्याय सात / Chapter 7
भागवत ज्ञान (ज्ञान विज्ञानं योग)

जैसे घड़ा बनाने में कुम्हार और सोने के आभूषण बनाने में सुनार ही निमित कारण है, ऐसे ही संसारमात्र की उत्पत्ति में भगवान् ही निमित कारण हैं। ऐसा जानना ही ज्ञान है। सब कुछ भगवत्स्वरूप है। भगवान् के सिवाए दूसरा कुछ है ही नहीं, ऐसा अनुभव हो जाना ही ज्ञान है।

गीता अध्याय-7 (read more)

अध्याय आठ / Chapter 8
भागवत प्राप्ति (अक्षरब्रह्म योग)

ईश्वर के प्रति थोडा भी प्रेम हो तो मन में निर्मल आनंद का संचार होता है। उस समय एक बार राम नाम का उच्चारण करने से कोटि बार संध्या पूजा करने का फल मिलता है। मन का एक अंश ईश्वर मैं और दूसरा अंश संसार के कामों में लगाना होगा।

गीता अध्याय-8 (read more)

अध्याय नौ  / Chapter 9
परम गउह ज्ञान (राजविद्याराजगुह्य योग)

मैं अपनी प्रकृति को वशीभूत करके उसी प्रकृति की सहायता से अपने कर्मानुसार जन्म-मृत्यु के अधीन इन समस्त प्राणियों की पूर्वजीत अदृष्ट के अनुसार बार-बार विविध रूप से सृष्टि कर रहा हूँ। केवल भक्ति से ही परमात्मा का दर्शन सम्भव है।

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अध्याय दस / Chapter 10
श्रीभगवान का का ऐश्वर्य (विभूति योग)

भगवान् कहते हैं – देवतालोग या महर्षि लोग मेरा प्रभाव या महात्मय नहीं जानते क्योंकि मैं देवताओं तथा महर्षियों का आदि कारण हूँ। अतः. मेरी कृपा बिना कोई मुझे नहीं जान सकता भक्तों के प्रति कृपा करने के लिए वह उनकी बुद्धिवृति में अधिष्ठित होकर दीप्तिमान तत्व ज्ञान रूप प्रदीप के द्वारा अज्ञान से उत्पन्न संसार रूप अन्धकार का नाश करतें है।

गीता अध्याय-10 (read more)

अध्याय ग्यारह / Chapter 11
विराट रूप (विश्वरूप दर्शन योग)

अर्जुन ने श्री भगवान् के निकट “विश्वरूप दर्शन” के लिए कातर भाव से प्रार्थना की थी। चिन्मय रूप देखने के लिए चिन्मयदृष्टि की आवश्यकता है। इस कारण श्री भगवान् ने अर्जुन को दिव्य चक्षु दिए थे। दिव्य चक्षुओं के द्वारा अर्जुन ने श्रीभगवान का दिव्य रूप देखा था। जिस रूप का दर्शन होने से मनुष्य को परम गति मिलती है।

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अध्याय बारह / Chapter 12
(भक्ति योग)

कर्मयोग और ज्ञानयोग – ये दोनों लौकिक निष्ठाएं हैं। परन्तु भक्तियोग लौकिक निष्ठां अर्थात प्राणी की निष्ठां नहीं है। जो भगवान् में लग जाता है वह भगवन्निष्ठ होते हैं अर्थात उसकी निष्ठां भी अर्थात भक्ति से भक्ति पैदा होती है। श्रवण, कीर्तन, स्मरण, पादसेवन, अर्चन,  वंदन, दास्य, सांख्य और आत्म-निवेदन – यह नौ प्रकार की साधना भक्ति हैं तथा इनके आगे प्रेमलक्षणा भक्ति साध्य भक्ति है जो कर्मयोग और ज्ञानयोग सबकी साध्य है।

गीता अध्याय-12 (read more)

अध्याय तेरह / Chapter 13
प्रक्रति, पुरुष चेतना (क्षेत्रक्षेत्रज्ञ विभाग योग)

जिस प्रकार खेत में जैसा बीज बोया जाता है, वैसा ही अनाज पैदा होता है। उसी प्रकार शरीर में जैसे कर्म किये जातें हैं उनके अनुसार ही दुसरे शरीर परिस्तिथि आदि मिलते हैं। तात्पर्य है कि इस शरीर में किये गए कर्मों के अनुसार ही यह जीव बार-बार जन्म मरणरूप फल भोगता है। इसी दृष्टि से इसको क्षेत्र (खेत) कहा गया है।

गीता अध्याय-13 (read more)

अध्याय चौदह / Chapter 14
प्रक्रति के तीन गुण (गुणत्रयविभाग योग)

ये तीन सत्व, रज, तम प्रकृति के ये हीं गुण है। यदपि परमपुरुष निष्क्रिय है तो भी गुणों के संग के कारण मानो पुरुष का संसारबंधन होता है। ये तीन गुण एकत्र एक ही क्षेत्र में रहते हैं जब भी देहेन्द्रिय के किसी द्वार में ज्ञान रूप प्रकाश होता है तभी उस मनुष्य को सत्वगुण-संपन्न या सात्विक कहते हैं।

गीता अध्याय-14 (read more)

अध्याय पंद्रह / Chapter 15
(पुरुषोतम योग)

मैं प्रत्येक मनुष्य के अत्यंत नजदीक हृदय में रहता हूँ अतः किसी भी साधक को  (मेरे दूरी अथवा वियोग अनुभव करते हुए भी) मेरी प्राप्ति से निराश नहीं होना चाहिए। इसलिए पापी, पुण्यात्मा, मुर्ख, पंडित, निर्धन, धनवान, रोगी,  निरोगी आदि कोई भी स्त्री-पुरुष किसी भी जाति- वर्ण, सम्प्रदाय, आश्रम, देशकाल परिस्तिथि आदि में क्यों न हो भगवत्प्राप्ति का वह पूरा अधिकारी है।

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अध्याय सोलह / Chapter 16
(देवासुर सम्पदि भाग योग)

शास्त्रों के नियम का पालन न करके मनमाने ढंग से जीवन व्यतीत करने वाले तथा असुरी गुणों वाले व्यक्ति अधम योनियो को प्राप्त करते हैं और आगे भी भवबंधन में पड़े रहते हैं किन्तु दैवीगुणों से संपन्न तथा शास्त्रों को आधार मानकर नियमित जीवन बिताने वाले लोग अध्यात्मिक सिद्धि प्राप्त करते हैं।

गीता अध्याय-16 (read more)

अध्याय सतरह / Chapter 17
श्रदा के विभाग (श्रद्धात्रय विभाग योग)

पुण्य कर्म से पुण्य की उत्पत्ति होती है, और पाप कर्म से पाप की उत्पत्ति होती है। रमणीय आचरण करने वाले श्रैष्ठ योनियोंमें जन्म ग्रहण करतें हैं और निन्दित आचरण करने वाले निकृष्ट योनि में जाते हैं. यही संसार का शास्वत नियम है।

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अध्याय अठारह / Chapter 18
उपसंहार-सन्यास की सिद्धि (मोक्ष योग)

स्वयं भगवान् के शरणागत हो जाना – यह सम्पूर्ण साधनो का सार है। सर्व समर्थ प्रभु के शरण भी हो गए और चिंता भी करें, ये दोनों बात बड़ी विरोधी हैं, क्योंकि शरण हो गए तो चिंता कैसी? और चिंता होती है तो शरणागति कैसी?

गीता अध्याय-18 (read more)

दोस्तों, ये सब “Srimadbhagwat Geeta” में कही गई बातें और ऊपर POST में श्रीमदभागवत गीता के अध्यायों का सार मैंने काफी Search(गूगल, लेख, किताबो, पत्रिकाओं) करके आपके सामने प्रस्तुत किया हैं।

यधपि मैंने अपना पूरा प्रयास किया हैं कि कोई त्रुटि न रहे, अगर फिर भी ऊपर दिए गए किसी भी कथन या वाक्य में कोई गलती मिले तो please अपने comments के माध्यम से सूचित करें।

Srimad Bhagavad Gita Ansh

Shrimad Bhagavad Geeta Amrit Ansh
Some Srimad Bhagavad Geeta Slok Hindi Translation

geeta-saar

  • फल की कामना छोड़ कर कर्म करना ही मनुष्य का अधिकार हैं अत: कर्म के फल की इच्छा न करो तथा कर्म करने में अरुचि न रखो अथार्थ सदा कर्मशील बने रहो।
  • हे अर्जुन! निसंदेह मन बहुत चंचल हैं और बड़ी कठनाई से वश में होता हैं किन्तु सदा अभ्यास और वैराग्य से वह वश में हो जाता हैं।
  • हे अर्जुन! जब जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि हुई हैं तब-तब मैं अपने को रचता हूँ अथार्थ अवतरित होता हूँ।
  • साधु पुरुषो की रक्षा के लिए और दुष्कर्म करने वाले के नाश के लिए तथा धर्म की स्थापना करने के लिए में युग- युग में प्रकट होता हूँ।
  • अहिंसा, सत्य, क्रोध न करना, त्याग, शान्ति, निंदा न करना, दया लोभ का अभाव, मृदुलता लोक और सदाचार के विरुद्ध कार्य न करना, चंचलता का अभाव – ये मनुष्य के गुण हैं।
  • तेज, क्षमा, धर्य, पवित्रता, द्रोह (शत्रु-भाव) का अभाव, अभिमान रहित होना –ये सब देवीय-सम्पदा प्राप्त व्यक्ति के लक्षण हैं।
  • धर्य शान्ति, निग्रह नियंत्रण, पवित्रता, करुणा, मधुर वाणी, मित्रो के प्रति सदभाव-ये सातो गुण जिसमे होते हैं, वह सभी प्रकार से श्रीसंपन्न होता हैं।
  • सुख चाहने वालो को विधा कहाँ और विधार्थी को सुख कहाँ? सुख चाहने वाले विधा की आशा न रखे और विधार्थी सुख की इच्छा न रखे।
  • व्यक्ति को इन गुणों का कभी भी त्याग नहीं करना चाहिए-सत्य, दान, आलस्य का अभाव, निंदा न करना क्षमा और धर्य।
  • ये आठ गुण मनुष्य को यश देने वाले हैं –सद्विवेक, कुलीनता, निग्रह, सत्संग पराक्रम कम बोलना यथाशक्ति दान और कृतज्ञता।
  • विषयों का चिंतन करने से व्यक्ति विषयों के प्रति आसक्त हो जाता हैं आसक्ति से उन विषयों की कामना तीव्र होती हैं, कामना से क्रोध उत्पन्न होता हैं।
  • क्रोध से अविवेक उत्पन्न होता हैं, अविवेक से स्मरण शक्ति भ्रमित हो जाती हैं, स्मरण शक्ति के भ्रमित हो जाने से बुद्धि का नाश हो जाता हैं और बुद्दी के नाश से व्यक्ति का ही विनाश हो जाता हैं।
  • मनुष्य पुराने वस्त्रो को त्याग कर जैसे दुसरे नए वस्त्रो को धारण करते हैं वैसे ही जीवात्मा पुराने शरीरो को त्याग कर नए शरीरो को प्राप्त करती हैं।
  • इस आत्मा को शस्त्र नहीं काट सकते, आग नहीं जला सकती, जल गीला नहीं कर सकता और वायु सुखा नहीं सकती, इस संसार में ज्ञान के समान कोई पविता वस्तु नहीं हैं उस ज्ञान को योग से सिद्ध और समय से व्यक्ति स्वयं आत्मा में प्राप्त करता हैं।
  • श्रदावान और जितेन्द्र्य व्यक्ति ज्ञान प्राप्त करता हैं, ज्ञान प्राप्त करने पर शीघ्र परम शान्ति मिलती हैं।
  • दुखो में उद्वेग रहित, सुखो में इच्छा रहित, राग भय और क्रोध से रहित व्यक्ति स्थित घी (स्थिरबुद्धिवाला) कहलाता हैं।

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दोस्तों, श्रीमदभागवत गीता के बारे में आपने पहले भी काफी सुना होगा। ये ग्रन्थ हमारे जीवन का आधार हैं जो हमें जीना सिखाता हैं हमें बुराई और अच्छाई के बारे में बताता हैं हमारे जीवन का लक्ष्य बताता हैं, हमें कहाँ से आये हैं और क्यों आये हैं क्या हमें करना चाहिए, श्रीमदभागवत गीता साक्षात् भगवान की वाणी हैं।

मैंने ऊपर श्रीमदभागवत गीता के कुछ श्लोक का Hindi Translation प्रस्तुत किया हैं आशा हैं आपको पसंद आएगा।

निवेदन: कृपया comments के माध्यम से यह बताएं कि  यह POST आपको कैसा लगा अगर आपको यह पसंद आए तो दोस्तों के साथ (facebook, twitter, Google+) share जरुर करें।

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कंकड़-पत्थर से भरी तिज़ोरी


कंकड़-पत्थर से भरी तिज़ोरी

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Kankad Pathar Se Bhari Tizori” story in Hindi

किसी शहर में एक धनीराम नाम का सेठ रहता था, उसका अच्छा कारोबार था। रुपयों-पैसो की कमी नहीं थी,  लेकिन धनीराम का एक दोस्त था, जो उसके पास आकर बैठता था। धीरे-धीरे दोस्ती बढती चली गई, दोस्त आता था और बातें होती थी।

एक दिन धनीराम के सामने कुछ ऐसा काम आ पड़ा, जिसके लिए उसे परिवार के साथ बाहर जाना था। परन्तु समस्या यह थी कि जाते समय धन कहाँ रखा जाए?

परिवार के लोगो ने सलाह दी कि दोस्त किस काम आएगा? लेकिन दोस्त के बारे में वह ज्यादा नहीं जानता था और कभी दोस्त को परखने का मौका भी नहीं मिला था। ऐसे में जीवन भर की कमाई, जमापूंजी किस विश्वास से उसें सौप दे।

कुछ सोच कर धनीराम ने तिजोरी में ताला लगाया और दोस्त को बुलाकर साडी समस्या बताई, फिर उसे चाबी सौप दी। उसके बाद धनीराम अपने परिवार के साथ दूसरे शहर रवाना हो गया।

जब काम पूरा हो गया, तब धनीराम वापस शहर लौट आया। अगले दिन उसने अपने दोस्त को बुलाया लेकिन वह आते ही धनीराम से लड़ने लगा, “क्या तुम्हे मुझ पर भरोसा नहीं था, जो तुमने तिजोरी में कंकड़-पत्थर भर कर चाबी मुझे दे दी?

धनीराम का परिवार दोस्त की बात सुनकर हैरान हो गया, सभी के पैरो से जमीन खिसक गई। लेकिन धनीराम चुप था, उसके चहरे पर मुस्कराहट थी वह बोला, “तुम्हे कैसे पता लगा कि तिजोरी में कंकड़-पत्थर हैं? जरुर तुमने ताला तोड़-कर देखा होगा क्योकि मैंने जान-बुझ कर तिजोरी में कंकड़-पत्थर भरे थे, ताकि मैं तुम्हारी दोस्ती को परख सकू।

इसलिए दोस्तों पर सोच-समझ कर विश्वास कीजिए, नीचे कुछ गुरु मंत्र हैं, जो एक सही और सच्चे दोस्त की पहचान करने में आपकी सहायता करेंगे।

  1. जो आपकी जिन्दगी बदल दे, आपके अन्दर परिवर्तन लाये और आपकी सहायता करें, वही आपका सच्चा दोस्त हो सकता हैं।
  2. आपका सच्चा दोस्त वह होता हैं, जो आपके विषय में सब कुछ जानता हैं और उसी के अनुसार आपसे प्यार करता हैं।
  3. दोस्त का चयन करने के लिए एक सीढ़ी ऊपर चढिये और पत्नी का चयन करने के लिए एक सीढ़ी नीचे उतरिए।
  4. आपके दोस्त हज़ार हो, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता यदि आपका कोई एक सच्चा दोस्त हैं, तो वह हर जगह आपके साथ दिखाई देगा।
  5. यदि आप चाहते हैं कि आपके शत्रु अधिक हों, तो दुसरे लोगों से आप ज्यादा अच्छे बन जाइए और चाहते हैं कि दोस्त अधिक हों, तो दुसरे लोगो को अपने से अच्छा बनने दीजिएं।
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एक सड़क पर घूमते हुए एक आलसी व्यक्ति


मांगों और तुम्हे मिलेगा, खोजो और तुम पा जाओगे

achhibaatein-mango-aur-tumhe-mil-jayegaएक सड़क पर घूमते हुए एक आलसी व्यक्ति ने एक बूढ़े व्यक्ति को अपने मकान के दरवाजे पर बैठे हुए देखा। उसने ठहरकर उस बूढ़े से एक ग्राम का पता-ठिकाना पूछा। उसने पूछा, “अमुक-अमुक ग्राम यहाँ से कितनी दूर हैं”। बुड्ढा मौन रहा, उस आदमी ने कई बार उसी प्रश्न को दोहराया तब भी उसे कोई ज़बाब नहीं मिला। इससे झुंझलाकर व्यक्ति चलने के लिए जैसे ही मुड़ा, तभी बूढ़े के खड़े होकर कहा “अमुक ग्राम यहाँ से केवल एक मील दूर हैं”। क्या यात्री के कहा तुमने यहाँ बात जब मैंने पूछा तब क्यों नहीं बताई। बूढ़े ने कहा क्योकि, “तब तुम जाने के बारें में काफी उदासीन और ढीले दिखायीं दे रहे थे और अब तुम पक्के इरादे के साथ जाने के लिए तैयार देखते हो इसलिए तुम उत्तर पाने के अधिकारी हो गए हो।“

इस कहानी को याद रखों? कार्य में जुट जाओ, शेष साधन अपने आप पूरे हो जायेंगे भगवान ने गीता में भी कहा हैं-

अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जना: पर्युपासते ।
तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम् ।।

“जो अनन्य प्रेमी और भक्त जन मुझ परमेश्वर को निरन्तर चिन्तन करते हुए निष्काम भाव से भजते हैं, उन नित्य-निरन्तर मेरा चिन्तन करने वाले पुरुषों का योगक्षेम की चिंता मैं स्वयं करता हूँ ।।”

….ईसा के शब्दों को स्मरण रखो, “मांगों और वह तुम्हे मिलेगा, खोजो और तुम पा जाओगे थपथपाओ और द्वार तुम्हारे लिए खुल जायेंगे” ये शब्द सत्य हैं इनमें केवल रूपक या कल्पना नहीं हैं।

क्या कोई ऐसी वस्तु हैं जिसकी तुमने सच्चे अंत:करण से कामना की हो और न मिली हो ऐसा कभी नहीं हो सकता। इच्छा ने ही शरीर को पैदा किया हैं, प्रकाश ने ही तुम्हारे मस्तक पर दो छेद पैदा किये हैं जिन्हें तुम आँख कहते हो। यदि प्रकाश न होता तो तुम्हारे पास आँखे नहीं होती। शब्द ने कानों को बनाया। विषय पहले आयें और उन्हें ग्रहण करने वाली इन्द्रियां बाद में।

मांगों और तुम्हे मिलेगा

लेकिन ये बात तम्हे समझनी होगी की इच्छा-इच्छा में भी अंतर होता हैं।

एक शिष्य अपने गुरु के पास गया और बोला – “श्रीमान मैं इश्वर को पाना चाहता हूँ।” गुरु ने उस युवक की और देखा एक शब्द भी नहीं बोले और मुस्कुरा दिए। युवक प्रतिदिन आता था और आग्रह करता था, कि उसको ईश्वर चाहिए किन्तु, वृद्ध को युवक की अपेक्षा अधिक ज्ञान था। एक दिन जब बहुत गर्मी पड़ रही थी, गुरु ने उस युवक को अपने साथ चल कर नदी में स्नान करने को कहा। युवक ने जैसे ही नदी में डुबकी लगाई, वृद्ध ने पीछे से आकर उसे बलपूर्वक पानी में ही दबा लिया। जब युवक कुछ देर तक मुक्ति के लिए झटपटा चूका तब उन्होंने उसे छोड़ दिया और पूछा कि जब तुम पानी के अन्दर थे, तब तुम्हारी एकमेव इच्छा क्या थी? शिष्य ने उत्तर दिया “हवा की केवल एक सांस।” तब गुरु ने कहा क्या तुम्हारी ईश्वर को प्राप्त करने की इच्छा भी इतनी ही तीव्र हैं यदि हो तो वह तुम्हे एक क्षण में ही मिल जायेगा। जब तक तुम्हारी भूख तुम्हारी इच्छा इतनी ही तीव्र नहीं हैं, तब तक तुम परमात्मा को कदापि नहीं पा सकते, चाहे तुम कितना ही बौद्धिक व्यायाम अथवा कर्मकांड कर लो।

अत: एक लक्ष्य अपनाओ उस लक्ष्य को ही अपना जीवन कार्य समझो हर क्षण उसी का चिंतन करों, उसी का स्वप्न देखो उसी के सहारें जीवित रहो, मस्तिष्क, मांसपेशिया, नसें आदि शरीर के प्रत्येक अंग उसी विचार से ओतप्रोत हों और अब तक अन्य प्रत्येक विचार को किनारें पड़ा रहने दो। सफलता का यहीं राजमार्ग हैं, इसी मार्ग पर चल कर आध्यत्मिक महापुरुष पैदा हुए हैं जो अपने लक्ष्य के प्रति पागल हो गयें हैं, उसे ही प्रकाश के दर्शन होते हैं जो इधर-उधर ध्यान बांटते हैं वो कोई लक्ष्य पूर्ण नहीं कर पातें। वे कुछ समय के लिए तो बड़ा जोश दिखातें हैं, किन्तु वह शीघ्र ठण्डा हो जाता हैं।

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The cow is a very powerful Spirit Animal


The cow is a very powerful Spirit Animal. When Cow appears to you in dreams, visions, or on your path to work or play just think that HIGHER GODS are pleased with you..
The Spirit of Cow brings a sense of calm and stability, inviting you to release your worries and attune to the natural abundance around you. Cow embodies good fortune, comfort, grounding and emotional healing. The Cow gives you strength in a storm, and an increased ability to nurture and protect the things you hold dear.
The Cow is sacred in many cultures. A sign of motherhood, the Spirit of Cow is lucky for pregnant women and new parents. If you have a project or interest, , Cow power can stimulate its growth and success. Opening your mind to the Cow Spirit can give you mystical insight into past lives or events of the past.

Fertility, Nurturing : Cows are linked traditionally with the Goddess of Fertility such as Aphrodite (Greek Goddess), Bastet (Egyptian Goddess), Freya (Norse Goddess), Arianrhod (Welsh Goddess), Diana (Roman Goddess).

Cows in India are the SUPER SYMBOL of Gods’s direct energy and symbol of Motherhood. The Cow is associated with motherhood and nurturing since it provides food for mankind. Therefore, the Cow represents fertility through sacrifice. A Cow will always try to do what is best for itself and others, however, the herd needs are paramount. Nursemaid Cows who watch over the new calves while the Mothers and other herd members graze.

Steadfast : The Cow is known as being able to stand its ground through weather and predator.
Perception : As part of the food chain for large predators, the Cow is very alert and intelligent. Lead cows have led herds from pasture to pasture to avoid droughts and danger. Cows work with a sixth sense about danger and opportunity.
Compassion – Cows have large eyes that see all. The stare may be hypnotic and will tear down one’s walls to find the soul. The Cow’s eyes are full of compassion since they are an animal of continuous sacrifice. Cow has learned to put the herd before self, to put the calf before self, and to move in a way for the highest good of the herd.
PLEASE ENCOURAGE PEOPLE NOT TO EAT them but be their friends.

भारत वंशी गाय व् किसान बचाये Save Indian Cow & Farmer

Ved Vyas's photo.
Ved Vyas

The cow is a very powerful Spirit Animal. When Cow appears to you in dreams, visions, or on your path to work or play just think that HIGHER GODS are pleased wi

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मृत्यु से भय कैसा


मृत्यु से भय कैसा ………………..
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राजा परीक्षित को श्रीमद्भागवत पुराण सुनातें हुए जब शुकदेव जी महाराज को छह दिन बीत गए और तक्षक ( सर्प ) के काटने से मृत्यु होने का एक दिन शेष रह गया, तब भी राजा परीक्षित का शोक और मृत्यु का भय दूर नहीं हुआ।
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अपने मरने की घड़ी निकट आती देखकर राजा का मन क्षुब्ध हो रहा था।
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तब शुकदेव जी महाराज ने परीक्षित को एक कथा सुनानी आरंभ की।
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राजन ! बहुत समय पहले की बात है, एक राजा किसी जंगल में शिकार खेलने गया।
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संयोगवश वह रास्ता भूलकर बड़े घने जंगल में जा पहुँचा। उसे रास्ता ढूंढते-ढूंढते रात्रि पड़ गई और भारी वर्षा पड़ने लगी।
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जंगल में सिंह व्याघ्र आदि बोलने लगे। वह राजा बहुत डर गया और किसी प्रकार उस भयानक जंगल में रात्रि बिताने के लिए विश्राम का स्थान ढूंढने लगा।
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रात के समय में अंधेरा होने की वजह से उसे एक दीपक दिखाई दिया।
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वहाँ पहुँचकर उसने एक गंदे बहेलिये की झोंपड़ी देखी ।
वह बहेलिया ज्यादा चल-फिर नहीं सकता था, इसलिए झोंपड़ी में ही एक ओर उसने मल-मूत्र त्यागने का स्थान बना रखा था।
अपने खाने के लिए जानवरों का मांस उसने झोंपड़ी की छत पर लटका रखा था। बड़ी गंदी, छोटी, अंधेरी और दुर्गंधयुक्त वह झोंपड़ी थी।
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उस झोंपड़ी को देखकर पहले तो राजा ठिठका, लेकिन पीछे उसने सिर छिपाने का कोई और आश्रय न देखकर उस बहेलिये से अपनी झोंपड़ी में रात भर ठहर जाने देने के लिए प्रार्थना की।
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बहेलिये ने कहा कि आश्रय के लोभी राहगीर कभी-कभी यहाँ आ भटकते हैं। मैं उन्हें ठहरा तो लेता हूँ, लेकिन दूसरे दिन जाते समय वे बहुत झंझट करते हैं।
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इस झोंपड़ी की गंध उन्हें ऐसी भा जाती है कि फिर वे उसे छोड़ना ही नहीं चाहते और इसी में ही रहने की कोशिश करते हैं एवं अपना कब्जा जमाते हैं। ऐसे झंझट में मैं कई बार पड़ चुका हूँ।।
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इसलिए मैं अब किसी को भी यहां नहीं ठहरने देता। मैं आपको भी इसमें नहीं ठहरने दूंगा।
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राजा ने प्रतिज्ञा की कि वह सुबह होते ही इस झोंपड़ी को अवश्य खाली कर देगा। उसका काम तो बहुत बड़ा है, यहाँ तो वह संयोगवश भटकते हुए आया है, सिर्फ एक रात्रि ही काटनी है।
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बहेलिये ने राजा को ठहरने की अनुमति दे दी, पर सुबह होते ही बिना कोई झंझट किए झोंपड़ी खाली कर देने की शर्त को फिर दोहरा दिया।
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राजा रात भर एक कोने में पड़ा सोता रहा। सोने में झोंपड़ी की दुर्गंध उसके मस्तिष्क में ऐसी बस गई कि सुबह उठा तो वही सब परमप्रिय लगने लगा। अपने जीवन के वास्तविक उद्देश्य को भूलकर वहीं निवास करने की बात सोचने लगा।

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वह बहेलिये से और ठहरने की प्रार्थना करने लगा। इस पर बहेलिया भड़क गया और राजा को भला-बुरा कहने लगा।
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राजा को अब वह जगह छोड़ना झंझट लगने लगा और दोनों के बीच उस स्थान को लेकर बड़ा विवाद खड़ा हो गया।
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कथा सुनाकर शुकदेव जी महाराज ने परीक्षित से पूछा,” परीक्षित ! बताओ, उस राजा का उस स्थान पर सदा के लिए रहने के लिए झंझट करना उचित था ? ”
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परीक्षित ने उत्तर दिया,” भगवन् ! वह कौन राजा था, उसका नाम तो बताइये ? वह तो बड़ा भारी मूर्ख जान पड़ता है, जो ऐसी गंदी झोंपड़ी में, अपनी प्रतिज्ञा तोड़कर एवं अपना वास्तविक उद्देश्य भूलकर, नियत अवधि से भी अधिक रहना चाहता है। उसकी मूर्खता पर तो मुझे आश्चर्य होता है। ”

श्री शुकदेव जी महाराज ने कहा,” हे राजा परीक्षित ! वह बड़े भारी मूर्ख तो स्वयं आप ही हैं। इस मल-मूल की गठरी देह ( शरीर ) में जितने समय आपकी आत्मा को रहना आवश्यक था, वह अवधि तो कल समाप्त हो रही है। अब आपको उस लोक जाना है, जहाँ से आप आएं हैं। फिर भी आप झंझट फैला रहे हैं और मरना नहीं चाहते। क्या यह आपकी मूर्खता नहीं है ?”
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राजा परीक्षित का ज्ञान जाग पड़ा और वे बंधन मुक्ति के लिए सहर्ष तैयार हो गए।
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मेरे भाई – बहनों, वास्तव में यही सत्य है।
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जब एक जीव अपनी माँ की कोख से जन्म लेता है तो अपनी माँ की कोख के अन्दर भगवान से प्रार्थना करता है कि हे भगवन् ! मुझे यहाँ ( इस कोख ) से मुक्त कीजिए, मैं आपका भजन-सुमिरन करूँगा।
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और जब वह जन्म लेकर इस संसार में आता है तो ( उस राजा की तरह हैरान होकर ) सोचने लगता है कि मैं ये कहाँ आ गया ( और पैदा होते ही रोने लगता है ) फिर उस गंध से भरी झोंपड़ी की तरह उसे यहाँ की खुशबू ऐसी भा जाती है कि वह अपना वास्तविक उद्देश्य भूलकर यहाँ से जाना ही नहीं चाहता है।
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यही मेरी भी कथा है और आपकी भी।

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हिम्मत करने वालो की कभी हार नही होती


हिम्मत करने वालो की कभी हार नही होती”

 

 

 

 

https://blog4motivation.wordpress.com/2012/11/

एक बार की बात है दो मेंढक पक्के दोस्त थे! एक मेंढक मोटा था तथा दूसरा मेंढक दुबला पतला था ! एक बार भोजन की तलाश में निकले और भूलवश एक दूध की कढ़ाई में कूद पड़े ! काफी कोशिश करने पर भी दोनों दूध की कढ़ाई से बाहर नहीं निकल सके क्यूंकि दूध की वजह से कढ़ाई की किनारी काफी चिकनी हो गई थी ! काफी प्रयासों के बाद जब कोई सफलता नही मिली तो दोनों दूध की कढ़ाई में तैरने लगे !

मोटा मेंढक थक कर पतले मेंढक से बोला ” भाई इस प्रकार बेमतलब तैरने का कोई लाभ नही है  जल्द ही डूबने वाले है अतः इस प्रकार मेहनत का कोई मतलब नहीं है ! पतला मेंढक बोला ” भाई ज़रा हिम्मत करो भाई, घबराओ नहीं जल्द ही कोई न कोई  बाहर निकलने हमारी मदद अवश्य करेगा ! और दोनों यही  सोच कर घंटो तैरते रहे !
कुछ देर बाद मोटा मेंढक फिर से पतले मेंढक से बोला ” भाई मेंढक इस प्रकार अनायास ही प्रयास करना व्यर्थ है मैं बुरी से थक चूका हु और मैं और कोशिश नही कर सकता अब में डूबने जा रहा हूँ ! हम मूर्ख है आज तो रविवार है सब छुट्टी पर है कोई नहीं आयेगा हमे बचाने ! यहाँ से बाहर निकलने का कोई  नही है ! पतला मेंढक बोला ” भाई प्रयास करते रहो, तैरते रहो रुकना मत मुझे विश्वास है जल्द ही कोई न कोई रास्ता निकलेगा ! तैरते रहो ! इस प्रकार कुछ और घंटे बीत गए !

मोटा मेंढक बोला ” भाई में और अधिक देर तक नहीं तैर सकता मेरी हिम्मत समाप्त हो रही है  इस प्रकार मेहनत  का क्या  फायदा है आखिरकार हम डूबने ही वाले है तो भला इतनी मेहनत क्यों की जाये ! और यह कहकर मोटे मेंढक ने तैरना बंद कर दिया और जल्द ही डूब कर मर गया ! परन्तु पतला मेंढक ने हिम्मत नहीं हारी और निरंतर प्रयास करता रहा, तैरता रहा !

दस मिनट बाद ही पतले मेंढक के पैर के नीचे कुछ सख्त-सख्त महसूस हुआ उसके पैरो के नीचे मोटे मेंढक का शव आ गया था जो की डूब कर मरने की वजह से दूध के आ गया था ! पतला मेंढक मोटे मेंढक के मृत शरीर पर पैर रख कर उछल कर दूध की कढ़ाई से बाहर आ जाता है !

निष्कर्ष : जो विपरीत परिस्थतियो में हिम्मत नही हारता वह निश्चित ही सफलता पाता है ! क्योकि “हिम्मत करने वालो की कभी हार नही होती”

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महात्मा जी की बिल्ली


………………………………………महात्मा जी की बिल्ली……………………………..

एक बार एक महात्माजी अपने कुछ शिष्यों के साथ जंगल में आश्रम बनाकर रहते थें, एक दिन कहीं से एक बिल्ली का बच्चा रास्ता भटककर आश्रम में आ गया । महात्माजी ने उस भूखे प्यासे बिल्ली के बच्चे को दूध-रोटी खिलाया । वह बच्चा वहीं आश्रम में रहकर पलने लगा। लेकिन उसके आने के बाद महात्माजी को एक समस्या उत्पन्न हो गयी कि जब वे सायं ध्यान में बैठते तो वह बच्चा कभी उनकी गोद में चढ़ जाता, कभी कन्धे या सिर पर बैठ जाता । तो महात्माजी ने अपने एक शिष्य को बुलाकर कहा देखो मैं जब सायं ध्यान पर बैठू, उससे पूर्व तुम इस बच्चे को दूर एक पेड़ से बॉध आया करो। अब तो यह नियम हो गया, महात्माजी के ध्यान पर बैठने से पूर्व वह बिल्ली का बच्चा पेड़ से बॉधा जाने लगा । एक दिन महात्माजी की मृत्यु हो गयी तो उनका एक प्रिय काबिल शिष्य उनकी गद्दी पर बैठा । वह भी जब ध्यान पर बैठता तो उससे पूर्व बिल्ली का बच्चा पेड़ पर बॉधा जाता । फिर एक दिन तो अनर्थ हो गया, बहुत बड़ी समस्या आ खड़ी हुयी कि बिल्ली ही खत्म हो गयी। सारे शिष्यों की मीटिंग हुयी, सबने विचार विमर्श किया कि बड़े महात्माजी जब तक बिल्ली पेड़ से न बॉधी जाये, तब तक ध्यान पर नहीं बैठते थे। अत: पास के गॉवों से कहीं से भी एक बिल्ली लायी जाये। आखिरकार काफी ढॅूढने के बाद एक बिल्ली मिली, जिसे पेड़ पर बॉधने के बाद महात्माजी ध्यान पर बैठे।

विश्वास मानें, उसके बाद जाने कितनी बिल्लियॉ मर चुकी और न जाने कितने महात्माजी मर चुके। लेकिन आज भी जब तक पेड़ पर बिल्ली न बॉधी जाये, तब तक महात्माजी ध्यान पर नहीं बैठते हैं। कभी उनसे पूछो तो कहते हैं यह तो परम्परा है। हमारे पुराने सारे गुरुजी करते रहे, वे सब गलत तो नहीं हो सकते । कुछ भी हो जाये हम अपनी परम्परा नहीं छोड़ सकते।

यह तो हुयी उन महात्माजी और उनके शिष्यों की बात । पर कहीं न कहीं हम सबने भी एक नहीं; अनेकों ऐसी बिल्लियॉ पाल रखी हैं । कभी गौर किया है इन बिल्लियों पर ?सैकड़ों वर्षो से हम सब ऐसे ही और कुछ अनजाने तथा कुछ चन्द स्वार्थी तत्वों द्वारा निर्मित परम्पराओं के जाल में जकड़े हुए हैं।

ज़रुरत इस बात की है कि हम ऐसी परम्पराओं और अॅधविश्वासों को अब और ना पनपने दें , और अगली बार ऐसी किसी चीज पर यकीन करने से पहले सोच लें की कहीं हम जाने – अनजाने कोई अन्धविश्वास रुपी बिल्ली तो नहीं पाल रहे ?

Toshi Dogra's photo.
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उबलते पानी मे मेंढक


||| उबलते पानी मे मेंढक ||||

अगर मेंढक को गर्मा गर्म उबलते पानी में डाल दें तो वो छलांग लगा कर बाहर आ जाएगा और उसी मेंढक को अगर सामान्य तापमान पर पानी से भरे बर्तन में रख दें और पानी धीरे धीरे गरम करने लगें तो क्या होगा ?

मेंढक फौरन मर जाएगा ?
जी नहीं….

ऐसा बहुत देर के बाद होगा…
दरअसल होता ये है कि जैसे जैसे पानी का तापमान बढता है, मेढक उस तापमान के हिसाब से अपने शरीर को Adjust करने लगता है।

पानी का तापमान, खौलने लायक पहुंचने तक, वो ऐसा ही करता रहता है।अपनी पूरी उर्जा वो पानी के तापमान से तालमेल बनाने में खर्च करता रहता है।लेकिन जब पानी खौलने को होता है और वो अपने Boiling Point तक पहुंच जाता है, तब मेढक अपने शरीर को उसके अनुसार समायोजित नहीं कर पाता है, और अब वो पानी से बाहर आने के लिए, छलांग लगाने की कोशिश करता है।

लेकिन अब ये मुमकिन नहीं है। क्योंकि अपनी छलाँग लगाने की क्षमता के बावजूद , मेंढक ने अपनी सारी ऊर्जा वातावरण के साथ खुद को Adjust करने में खर्च कर दी है।

अब पानी से बाहर आने के लिए छलांग लगाने की शक्ति, उस में बची ही नहीं I वो पानी से बाहर नहीं आ पायेगा, और मारा जायेगा I

मेढक क्यों मर जाएगा ?

कौन मारता है उसको ?

पानी का तापमान ?

गरमी ?

या उसके स्वभाव से ?

मेढक को मार देती है, उसकी असमर्थता सही वक्त पर ही फैसला न लेने की अयोग्यता । यह तय करने की उसकी अक्षमता कि कब पानी से बाहर आने के लिये छलांग लगा देनी है।

इसी तरह हम भी अपने वातावरण और लोगो के साथ सामंजस्य बनाए रखने की तब तक कोशिश करते हैं, जब तक की छलांग लगा सकने कि हमारी सारी ताकत खत्म नहीं हो जाती ।

ये तय हमे ही करना होता है कि हम जल मे मरें या सही वक्त पर कूद निकलें।

(विचार करें, गलत-गलत होता है, सही-सही, गलत सहने की सामंजस्यता हमारी मौलिकता को ख़त्म कर देती है)

अन्याय करने से ज्यादा अन्याय सहने वाला दोषी होता है, उदाहरण भीष्म पितामह ।
– श्री कृष्ण

आप स्वयं विचार करें…….

दोस्तों आपको हमारी ये पोस्ट कैसी लगी हमे जरूर बताये और अधिक से अधिक शेयर करके अपने दोस्तों को भी पढ़वाये।

आपका दोस्त आदित्य।

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एक नन्हा बालक ईश्वर से मिलना चाहता था।


एक नन्हा बालक ईश्वर से मिलना चाहता था।

वह जानता था कि उसकी यह यात्रा लंबी होगी। इस कारण उसने अपने बैग में चिप्स के पैकेट और पानी की बोतलें रखीं और यात्रा पर निकल पड़ा।

वह अपने घर से कुछ ही दूर पहुंचा होगा कि उसकी नजर एक बुजुर्ग सज्जन पर पड़ी, जो पार्क में कबूतरों के एक झुंड को देख रहे थे।

वह बालक भी उनके पास जाकर बैठ गया।

कुछ देर बाद उसने पानी की बोतल निकालने के लिए अपना बैग खोला। उसे लगा कि वह बुजुर्ग सज्जन भी भूखे हैं, लिहाजा उसने उन्हें कुछ चिप्स दिए।

उन्होंने चिप्स लेते हुए बालक की तरफ मुस्कराकर देखा।

बालक को बुजुर्ग की मुस्कराहट बेहद भली लगी।

वह उसके दीदार एक बार फिर करना चाहता था, सो उसने उन्हें पानी की बोतल भी पेश की।

बुजुर्ग सज्जन ने पानी लेते हुए फिर मुस्कराकर उसकी तरफ देखा।

बालक यह देखकर बेहद खुश हुआ।

इसके बाद पूरी दोपहर वे साथ-साथ बैठे रहे। बालक उन्हें समय-समय पर पानी और चिप्स देता रहता। बदले में उसे उनकी भोली मुस्कराहट मिलती रही।

अब तक शाम होने को आई थी। बालक को भी थकान लगने लगी थी। उसने सोचा कि अब घर चलना चाहिए।

वह उठा और घर की ओर चलने लगा। कुछ कदम चलने के बाद वह ठिठका और पलटकर दौड़ते हुए वृद्ध के पास आया।

उसने वृद्ध को अपनी बांहों में भरा।

बदले में वृद्ध शख्स ने होंठों पर और भी बड़ी 😀 मुस्कराहट लाते हुए उसका आभार प्रकट किया।

कुछ देर बाद वह बालक अपने घर पर था। दरवाजा उसकी मां ने खोला और उसके होंठों पर खेलती मुस्कराहट देख पूछ बैठीं,

‘आज तुमने ऐसा क्या किया, जो तुम इतने खुश हो?’

बालक ने जवाब दिया, ‘आज मैंने ईश्वर के साथ लंच किया।’

इसके पहले कि मां कुछ और पूछती वह फिर बोला, ‘तुम्हें मालूम है मां? उनके जैसी मुस्कराहट मैंने आज तक नहीं देखी।’

उधर, वह बुजुर्ग सज्जन भी वापस अपने घर पहुंचे, जहां दरवाजा उनके बेटे ने खोला

बेटा अपने पिता के चेहरे पर शांति और संतुष्टि के भाव देख पूछ बैठा,

‘आज आपने ऐसा क्या किया है, जो आप इतने खुश लग रहे हैं।’

इस पर उन्होंने जवाब दिया,
‘मैंने पार्क में ईश्वर के साथ चिप्स खाए।’

इससे पहले की बेटा कुछ और कहता, वह आगे बोले,

‘तुम्हें मालूम है? मेरी अपेक्षा के अनुरूप ईश्वर कहीं छोटी उम्र के हैं।’

इस किस्से का निष्कर्ष यह निकलता है कि मुस्कराने में
अपने पल्ले से कुछ भी खर्च नहीं होता है। इसके उलट जिसकी तरफ मुस्कराकर देखा जाता है, वह इससे और समृद्ध ही महसूस करता है।

मुस्कराहट खरीदी नहीं जा सकती , उधार नहीं मांगी जा सकती , और इसे चोरी नहीं किया जा सकता ।

इसका तब तक कोई मूल्य नहीं है, जब तक कि किसी को मुस्कराकर देखा नहीं जाए।

इसके बावजूद कुछ लोग मुस्कराने में थकान का अनुभव करते हैं। वे इसमें कंजूसी बरतते हैं।

मुस्कराने के महत्व को समझते हुए मुस्कराएं। किसी को इससे ज्यादा और क्या चाहिए कि कोई उसे देखकरमुस्कराए।

किसी की तरफ मुस्कराकर देखने से हमारा कुछ घटता नहीं है, बल्कि संतुष्टि और प्रसन्नता का ही अनुभव होता है…

चलिए
एक बार अभी मुस्कुराइये ।

धन्यवाद मुस्कराते रहें

रजनेश राज

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ईश्वर की तरफ से शिकायत


ईश्वर की तरफ से शिकायत:

मेरे प्रिय…
सुबह तुम जैसे ही सो कर उठे, मैं तुम्हारे बिस्तर के
पास ही खड़ा था।
मुझे लगा कि तुम मुझसे कुछ बात
करोगे।
तुम कल या पिछले हफ्ते हुई किसी बात
या घटना के लिये मुझे धन्यवाद कहोगे।
लेकिन तुम
फटाफट चाय पी कर तैयार होने चले गए और
मेरी तरफ देखा भी नहीं!!!
फिर मैंने सोचा कि तुम
नहा के मुझे याद करोगे।
पर तुम इस उधेड़बुन में लग
गये कि तुम्हे आज कौन से कपड़े पहनने है!!!
फिर जब
तुम जल्दी से नाश्ता कर रहे थे और अपने ऑफिस के
कागज़ इक्कठे करने के लिये घर में इधर से उधर
दौड़ रहे थे…तो भी मुझे लगा कि शायद अब तुम्हे
मेरा ध्यान आयेगा,लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
फिर जब तुमने आफिस जाने के लिए ट्रेन
पकड़ी तो मैं समझा कि इस खाली समय का उपयोग
तुम मुझसे बातचीत करने में करोगे पर तुमने थोड़ी देर
पेपर पढ़ा और फिर खेलने लग गए अपने मोबाइल में
और मैं खड़ा का खड़ा ही रह गया।
मैं तुम्हें बताना चाहता था कि दिन का कुछ
हिस्सा मेरे साथ बिता कर तो देखो,तुम्हारे काम और
भी अच्छी तरह से होने लगेंगे, लेकिन तुमनें मुझसे बात
ही नहीं की…
एक मौका ऐसा भी आया जब तुम
बिलकुल खाली थे और कुर्सी पर पूरे 15 मिनट यूं
ही बैठे रहे,लेकिन तब भी तुम्हें मेरा ध्यान
नहीं आया। दोपहर के खाने के वक्त जब तुम इधर-
उधर देख रहे थे,तो भी मुझे लगा कि खाना खाने से
पहले तुम एक पल के लिये मेरे बारे में सोचोंगे,लेकिन
ऐसा नहीं हुआ।
दिन का अब भी काफी समय बचा था।
मुझे
लगा कि शायद इस बचे समय में हमारी बात
हो जायेगी,लेकिन घर पहुँचने के बाद तुम
रोज़मर्रा के कामों में व्यस्त हो गये।
जब वे काम निबट गये तो तुमनें टीवी खोल
लिया और घंटो टीवी देखते रहे। देर रात थककर
तुम बिस्तर पर आ लेटे।
तुमनें अपनी पत्नी,
बच्चों को शुभरात्रि कहा और चुपचाप चादर ओढ़कर
सो गये।
मेरा बड़ा मन था कि मैं
भी तुम्हारी दिनचर्या का हिस्सा बनूं…
तुम्हारे
साथ कुछ वक्त बिताऊँ…
तुम्हारी कुछ सुनूं…
तुम्हे कुछ
सुनाऊँ।
कुछ मार्गदर्शन करूँ तुम्हारा ताकि तुम्हें
समझ आए कि तुम किसलिए इस धरती पर आए हो और
किन कामों में उलझ गए हो, लेकिन तुम्हें समय
ही नहीं मिला और मैं मन मार कर ही रह गया।
मैं तुमसे बहुत प्रेम करता हूँ।
हर रोज़ मैं इस बात
का इंतज़ार करता हूँ कि तुम मेरा ध्यान करोगे और
अपनी छोटी छोटी खुशियों के लिए मेरा धन्यवाद
करोगे। पर तुम तब ही आते हो जब तुम्हें कुछ चाहिए
होता है। तुम जल्दी में आते हो और अपनी माँगें मेरे
आगे रख के चले जाते हो।और मजे की बात तो ये है
कि इस प्रक्रिया में तुम मेरी तरफ देखते
भी नहीं। ध्यान तुम्हारा उस समय भी लोगों की तरफ
ही लगा रहता है,और मैं इंतज़ार करता ही रह
जाता हूँ।
खैर कोई बात नहीं…हो सकता है कल तुम्हें
मेरी याद आ जाये!!!
ऐसा मुझे विश्वास है और मुझे तुम
में आस्था है।
आखिरकार मेरा दूसरा नाम…
आस्था और विश्वास ही तो है।
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तुम्हारा
ईश्वर…👣
✔जब भी बड़ो के साथ बैठो तो परमात्मा का धन्यवाद , क्योंकि कुछ लोग इन लम्हों को तरसते हैं ।

✔जब भी अपने काम पर जाओ तो परमात्मा का धन्यवाद , क्योंकि बहुत से लोग बेरोजगार हैं ।

✔परमात्मा का धन्यवाद कहो जब तुम तन्दुरुस्त हो , क्योंकि बीमार किसी भी कीमत पर सेहत खरीदने की ख्वाहिश रखते हैं ।

✔ परमात्मा का धन्यवाद कहो की तुम जिन्दा हो , क्योंकि मरे हुए लोगों से पूछो जिंदगी कीमत ।

दोस्तों की ख़ुशी के लिए तो कई मैसेज भेजते हैं । देखते हैं परमात्मा के धन्यवाद का ये मैसेज कितने लोग शेयर करते हैं ।
किसी पर कोई दबाव नही है

रजनीश राज