Posted in हिन्दू पतन

ज्यादातर देवी मंदिर पहाड़ों पर ही क्यों हैं? आखिर इसके पीछे असली वजह क्या है?


विष्णु अरोङा's photo.
विष्णु अरोङा's photo.
विष्णु अरोङा added 2 new photos.

22 hrs ·

ज्यादातर देवी मंदिर पहाड़ों पर ही क्यों हैं? आखिर इसके पीछे असली वजह क्या है?
आपका ये मित्र नवऱात्र उत्सव के मौके पर बताने जा रहा है इस रहस्य के बारे में।

ऊंचे पहाड़ों पर बने देवी मंदिरों की बात होती है तो सबसे पहला नाम कश्मीर की वैष्णो देवी फिर हिमाचल की ज्वाला देवी, नयना देवी, मध्य प्रदेश की मैहरवाली मां शारदा, छत्तीसगढ़ डोँगरगढ़ की बम्लेश्वरी मां,पावागढ़ वाली माता का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। इनके अलावा हमारे देश में ऐसे कितने ही प्रसिद्ध मंदिर हैं जो ऊंचे पहाड़ों पर बने हैं।

आखिर अब प्रश्न उठता है कि ये मंदिर पहाड़ों पर क्यों बने हैं? पहाड़ों पर ऐसा क्या है जो समतल जमीन पर नहीं है? इस संबंध में जानकार लोग कहते हैं कि पहले और आज भी इन स्थानों को साधना केंद्र के रूप में जाना जाता था। पहले ऋषि-मुनि ऐसे स्थानों पर सालों तपस्या करके सिद्धि प्राप्त करते थे और उसका उपयोग मनुष्य के कल्याण के लिए करते थे। पहाड़ों पर एकांत होता है। धरती पर इंसान ज्यादातर समतल भूमि पर ही बसना पसंद करते हैं। लोगों ने घर बनाने के लिए पहाड़ी इलाकों की बजाय मैदानी क्षेत्रों को ही प्राथमिकता दी है। एकांत ने ही देवी मंदिरों के लिए पहाड़ों को महत्व दिया है। कार्य चाहे सांसारिक हो या आध्यात्मिक, उसकी सफलता मन की एकाग्रता (concentration of mind) पर ही निर्भर रहती है। पहाड़ों पर मन एकाग्र आसानी से हो जाता है। मौन, ध्यान एवं जप आदि कार्यों के लिए एकांत की जरूरत होती है और इसके लिए पहाड़ों से अच्छा कोई स्थान नहीं हो सकता।

प्राकृतिक सौन्दर्य- पहाड़ी क्षेत्रों पर इंसानों का आना-जाना कम ही रहता है, जिससे वहां का प्राकृतिक सौन्दर्य अपने असली रुप में जीवित रह पाता है। यह एक मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि सौन्दर्य इंसान को स्फूर्ति और ताजगी प्रदान करता है। कई बार लोगों को डॉक्टर भी पहाड़ी इलाके में कुछ दिन बिताने की सलाह देते हैं।

ऊंचाई का प्रभाव- वैज्ञानिक विश्लेषणों में पाया गया है कि निचले स्थानों की बजाय अधिक ऊंचाई पर इंसान का स्वास्थ्य अच्छा रहता है। लगातार ऊंचे स्थान पर रहने से जमीन पर होने वाली बीमारियां खत्म हो जाती हैं। ऐसे में पहाड़ी स्थानों पर इंसान की धार्मिक और आध्यात्मिक भावनाओं का विकास जल्दी होता है।

इनका कहना है- भोपाल के प्रख्यात ज्योतिषि पंडित प्रहलाद पंड्या का कहना है कि पहाड़ों पर दैवीय स्थल होने की वजह यह है कि देवी राजा हिमाचल की पुत्री हैं। इन्ही के नाम पर अब हिमाचल प्रदेश है। इस स्थान को देवभूमि भी कहा जाता है। देवी का जन्म यहीं हुआ इसी कारण से इन्हें पहाड़ों वाली माता कहा जाता है। देखा जाए तो देवी राक्षसों के नाश के लिए अवतरित हुईं थीं। राक्षस मैदानी इलाके से आते थे और देवी पहाड़ों से उनको देख उनका वध कर देती थीं। इसलिए भी देव स्थान ऊंचे पहाड़ों पर हैं।

Posted in संस्कृत साहित्य

महिलाओं के सौभाग्य के प्रतीक सिंदूर


Sumit Kumar's photo.
Sumit Kumar's photo.
Sumit Kumar's photo.
Sumit Kumar's photo.
Sumit Kumar added 4 new photos.

19 hrs ·

महिलाओं के सौभाग्य के प्रतीक सिंदूर के बारे में सब जानते हैं, लेकिन कम लोगों को जानकारी होगी कि दरअसल, सिंदूर पौधे का नाम है। इसका वानस्पतिक (biological) नाम बिक्सा ओरेलेना (Bixa Orellana) है। इसके बीजों से सिंदूर तैयार होता है।
बिहार के भागलपुर ज़िले के गांव कजरैली की महिलाएं खेत में सिन्दूर उगा रही हैं। सिन्दूर के इन पौधों के फलों से बीज निकाल कर उन्हें हथेली पर मसलने पर उनमें से सिन्दूर निकलता है। इसी प्राकृतिक सिन्दूर का महिलाएं इस्तेमाल कर रही हैं। इन महिलाओं की देखा-देखी आसपास के गांवों की महिलाओं ने भी घरों में सिंदूर के पौधे लगाने शुरू कर दिए हैं। बाज़ार में बिकने वाले सिन्दूर में केमिकल होने की वजह से यह नुक़सानदेह माना जाता है। प्राकृतिक सिन्दूर का बाज़ार में मिलना दुर्लभ ही है इसलिए इसकी व्यापारिक खेती भी काफी फायदेमंद साबित हो रही है। सिंदूर के पौधे तैयार होने में तीन से चार साल लगते हैं। परिपक्व होने पर उनमें फूल और बीज आते हैं। आयुर्वेद में प्राकृतिक सिन्दूर को तनाव से मुक्ति देने वाला, ठंढक प्रदान करने वाला, रक्त (blood) और तंत्रिका (nerves) सम्बन्धी बीमारियों से रक्षा करने वाला बताया गया है।
बिलासपुर कृषि विश्वविद्यालय, छत्तीसगढ़ में बड़े पैमाने पर सिंदूर के व्यावसायिक उत्पादन के साथ ही वनस्पति कीटनाशक के रूप में इसका इस्तेमाल करने पर शोध हो रहा है।