Rajputana Soch राजपूताना सोच और क्षत्रिय इतिहास
सभी मित्रों का स्वागत है इस मुहिम में राजपूत और हिंदू भाईयों भारत जैसे पवित्र देश के राष्ट्र पिता गांधी नही चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य परमार जैसे महान राजा होने चाहिए तो आइये आज हम सभी महाराजा विक्रमादित्य को राष्ट्र पिता के पद पर सुशोभित करे ।
चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य जिनके जैसा राजा , प्रजापालक , धर्मात्मा, आदर्श पति , आदर्श पिता , आदर्श पुत्र आज तक संसार में नहीं हुआ हम आपको महाराज विक्रमादित्य के बारे में छोटी से छोटी और बडी बडी बात बताएंगे ।
।। चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य के जन्म की कथा ।।
आज से 2100 वर्ष पहले मालवा प्रदेश की ऐतिहासिक नगरी उज्जैनी में हुआ था उनका जन्म उज्जैनी राजपूत परमार वंश में हुआ था । उनके पिता का नाम महाराजा गंधर्व सेन वह महारानी सौम्या ( महारानी राजमहिषि) था । विक्रमादित्य के बडे भाई का नाम योगीराज भृतहरि था वह उनकी बहन का नाम रानी मैनावती था । विक्रमादित्य का जन्म हिंदू नववर्ष की तिथि पर हुआ था उनके पैदा होते ही कहा जाता है स्वर्ग से फूलों की बारिश हुई थी । तो यह थी उनके जन्म की कथा ।
।। चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य के बचपन की कथा वह प्रभु मिलन की कथा ।।
सम्राट विक्रमादित्य के जन्म के बाद वे अपने माता पिता के लिए खुशी का कारण बन के आये समय बीत ता गया अब वे 5 वर्ष के हो चुके थे और बालक विक्रम महज 5 वर्ष की उम्र में जंगल में भगवान महाकाल की भक्ति करने गये थे 12 वर्ष बित ते ही उन्हें महाकाल के दर्शन प्राप्त हुए और वे 17 वर्ष की उम्र में पुनः उज्जैन लोट आए वहीं जब उनके माता पिता को यह खबर मिली वे उनका स्वागत करने आए भगवान महाकाल के दर्शन के बाद विक्रमादित्य के चेहरे पर तेज बहुत बड चुका था ।
।। शकों और हूणों के बर्बर अत्याचार भारत भूमि पर ।।
विक्रमादित्य जब भक्ति कर के लोटे उस बिच उन्होंने अपनी नगरी उज्जैन में उनके आने की खुशियों के बीच एक दुख का अंधकार देखा लोग दुखी थे विक्रमादित्य महल पहुंचे उन्होंने अपने पिता महाराजा गंधर्वसेन वह अपने बडे भाई भतृहरि से पुछा भारत वर्ष की पवित्र भूमि पर इस दुख का कारण क्या है तब उन्हें बताया गया की उज्जैनी को छोड कर पुरा देश विदेशी शकों और हूणों के अधीन है और शक और हूण इनके अत्याचार इतने भयानक थे की मुगलों और अंग्रेजों के अत्याचार भी कुछ नही थे ऐसे की ये जिंदा लोगों का खून पीते थे महिलाओं के साथ बलात्कार करते थे गऊ माता की हत्या करते थे पुरे देश में अंधकार छा गया था सारे भारतवासी अब आस छोड चुके थे कभी ना खत्म होने वाली गुलामी को स्वीकार कर चुके थे शकों और हूणों ने देश के सारे मंदिर तोड दिये थे समस्त भारत वासी अपने ही देश में गुलाम बन चुके थे ।
(नोट–आज भारत में जाट और गुर्जर जातियां खुद को इन बर्बर शक हूणों का वंशज मानती हैं जो भारत में बच गए थे और खेती पशुपालन करने लगे थे)
तब विक्रमादित्य पुरे देश के लिए आस बन कर आए विक्रमादित्य ने तुरंत पुरी उज्जैनी की सेना तैयार की उस समय उज्जैनी में सिंहस्थ था विक्रमादित्य ने वही सभी को संगठित किया वे अपने पिता को उज्जैनी संभालने का कह कर खुद युद्ध लडने के लिए निकले युद्ध में जाने से पहले वे अपनी आराध्य देवी हरसिद्धि के मंदिर गये वह माँ हरसिद्धि के सामने प्रतिज्ञा की जब तक पुरे देश को नही बचा लैता तब तक युद्ध खत्म नहीं करूंगा ।
विक्रमादित्य ने शको हूणों को मारकर उन्हें अरब तक खदेड़ दिया और शकारि की उपाधि ग्रहण की।उन्होंने अरब में मक्केश्वर महादेव की स्थापना की थी।उनको अरब साहित्य और इतिहास में भी खूब याद किया जाता है।कहा जाता है कि तत्कालीन रोमन सम्राट को भी उन्होंने बन्दी बना लिया था और उसे उज्जैन की सड़कों पर घुमाया था।
।।सम्राट विक्रमादित्य का राज्यअभिषेक ।।
भतृहरि महाराज के संत बन ने के बाद उज्जैनी का राजसिंहासन खाली हो चुका था सभी की नजरों में योग्य विक्रमादित्य ही थे विक्रमादित्य के राज्यअभिषेक में ऋषि मूनी सहित सभी ब्राह्मण मौजूद थे विक्रमादित्य का राज्यअभिषेक दिपावली पर हुआ था कहा जाता है विक्रमादित्य के राजा बनते ही हिंदू धर्म का उदय हुआ वो इस लिए क्योंकि विक्रमादित्य एक मात्र ऐसे हिंदू राजा जिन्होंने पूरी पृथ्वी पर शासन किया था । तो यह थी उज्जैन के महाराज विक्रमादित्य के राज्यअभिषेक की कथा ।
विक्रमादित्य भारतीय इतिहास के सर्वोत्तम शासक थे जिनका शासन भारत से भी बाहर सुदूर अरब तक था।उनके राज्य में देश में खुशहाली थी और प्रजा सुरक्षित थी।
इसलिए महात्मा गांधी के स्थान पर वीर विक्रमादित्य को भारतवर्ष का राष्ट्रपिता घोषित कराने की मुहीम के साथ जरूर जुड़िये।
।। चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य की जय ।।
साभार–नीरज राजपुरोहित जी
— with Sahil Kalsi, Muktesh Singh, Devendra Singh Tanwar, Vikram Singh Rathore, रघुविरसिंह जाडेजा, Thakur Ajaysingh Sengar, Rajputana Club, जय राजपूताना and Sagarsinhji Maharaul