अक्रूर जी भगवान श्री कृष्ण की सुरक्षा को लेकर बेहद चिंतित थे, कियोंकि उन्हें अपने दिए हुए वचन के अनुसार कृष्ण जी को कंस द्वारा की जा रही प्रतियोगिता में लेकर जाना था, जबकि अक्रूर जी को कंस की चाल का भी पता था की कंस कृष्ण जी को वहां बुलाकर उनकी जान लेना चाहता है। इसलिए उनका सारा ध्यान श्री कृष्ण जी की सुरक्षा में लगा हुआ था। अक्रूर जी को चिंतित देख कर भगवान् श्री कृष्ण ने कहा की आप इतने चिंतित क्यों है, तो अक्रूर जी उन्हें बताते है की वे चिंतित नहीं है वे तो केवल अपने राजकुमार की सुरक्षा को लेकर सावधान है कियोंकि उन्हें कंस पर बिलकुल भरोषा नहीं है उसके सैनिक आप पर कभी भी हमला कर सकते है और मैं तो अपना सेनापति का धर्म निभा रहा हूँ मेरा एक मात्र लक्ष्य आपकी सुरक्षा करना है। फिर वे अपनी योजना के बारे में बताते हैं की आपकी सुरक्षा के लिए हमने पग पग पर अपने सैनिक खड़े किये हुए है जो साधारण वेश में दूर दूर तक आपकी सुरक्षा पर नजर बनाये हुए। और कुछ वीर सैनिकों थोड़े से फासले पर हमारे साथ चल रहे है। ये सब वे बड़े अभिमान से बता रहे है की उन्होंने कितनी सावधानी से श्री कृष्ण जी की सुरक्षा के लिए इतनी उतम योजना बनाई है। ये सुनकर भगवान् श्री कृष्ण कहते है की मान गये काका आपकी योजना को आपने बहुत उतम रणनीति बनाई है लेकिन जितना भरोषा आप अपने सैनिकों पर करते है इतना भरोषा हम दोनों भाइयों पर भी करके देखो। लेकिन अक्रूर जी फिर अपने सैनिक और अपनी रणनीति के बारे में अहंकार दिखाने लगते है। यह देखकर की अक्रूर जी ऐसे नहीं मानेगे तो श्री कृष्ण जी चुप हो जाते है। फिर रथ रोकता है और अक्रूर जी बताते है की ये भी उनकी योजना का हिस्सा है, यहाँ से वे नदी में चार बार डूबकी लगा कर अपने दूर खड़े सैनकों को इशरा करेंगे। फिर वे अपने वस्त्र उतार कर नदी में जाते है। बलराम कान्हा से कहते है कान्हा, अक्रूर जी आपके सच्चे भक्त है उन पर कृपा करो। तो कृष्ण जी कहते है की हाँ वे मेरे सच्चे भक्त है लेकिन अहंकार ने उन्हें जकड़ा हुआ है उन्हें अब अहंकार से मुक्त करने का समय आ गया है। फिर जैसे ही अक्रूर जी नदी में पहली डुबकी लगाते है तो उन्हें पानी के अन्दर ही कृष्ण जी और बलराम खड़े दिखाई देते है। वे उन्हें पानी में देखकर घबरा जाते है वे फिर तुरंत पानी से बहार निकलते है तो देखते है की वे तो रथ पर बैठे है। ये देख कर वे सोचते है की जरूर ये उनका भ्रम होगा वे फिर दूसरी दुबकी लगाते है तो फिर देखते है की कृष्ण जी पानी में एक बड़े से सिंघाशन पर विराजमान है और बलराम उनके पास खड़े है। वे फिर घबरा कर पानी से बहार आते है तो देखते है की कृष्ण जी और बलराम जी तो रथ पर ही बैठे है वे फिर उसे अपने मन का भ्रम समझ कर तीसरी डूबकी लगाते है। तो वह किया देखते है की पानी में पूरा प्रकाश का तेज फैला हुआ है और सारे देवता, सारा जगत श्री कृष्ण जी के नाम की स्तुति कर रहे है। भगवान् श्री कृष्ण जी अक्रूर जी को अपने नाम का ज्ञान देते है और उन्हें अपने नूरी स्वरूप का दर्शन कराते है और कहते है की आपने मेरे जीवन की सुरक्षा का इतना चिंतन किया की मैं आपके चित में समा गया, और आपका हर क्षण मेरे ध्यान में बिता, मेरा इतना ध्यान तो बड़े से बड़े योगी भी नहीं कर पाए जितना आपने किया। मैं आपकी भक्ति से बहुत खुश हूँ। ये सब आपके पूर्व जन्मो और इस जन्म की निस्वार्थ भक्ति का फल है की आपको मेरे इस नूरी स्वरूप के दर्शन हुए, आज से आप जन्म मरन के बंधन से मुक्त होकर मेरे धाम को प्राप्त हुए। तथास्तु! कह भगवान अद्रश्य हो जाते है, और अक्रूर जी पानी से बहार हा जाते है तो उन्हें बहार आता देख उनके सैनिक कहते है की आपने चोथी डूबकी तो लगाई नहीं, तो अक्रूर जी कहते है अब चिंता करने की कोई बात नहीं जो सबकी रक्षा करते है, हम उनकी रक्षा किया करें, और वे श्री कृष्ण से अपने अहंकार के लिए क्षमा मंगाते है। और कहते है की अब जैसा आप कहेंगे हम वैसा ही करेंगे प्रभु। इसलिए अगर हमें किसी की चिंता करनी भी है तो उस मालिक के नाम की करनी चाहिए कियोंकि अगर उसका चिंतन मन में बस जाये तो हमारा जीवन सार्थक हो जायेगा।
।। जय श्री राधे जय श्री कृष्णा जी ।।
जय श्रीकृष्ण
