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भाजपा सांसदों से हमेशा देशभक्ति की उम्मीद पूरी होती है।


IPS Kiran Bedi's photo.

भाजपा सांसदों से हमेशा देशभक्ति की उम्मीद पूरी होती है।

महेश गिरि , दिल्ली भाजपा सांसद, ने पीएम ने मुलाक़ात कर क्रूर औरेंजेब के नाम पर रखा रोड का नाम बदल कर एपीजे अब्दुल कलाम के नाम पर रखने के लिए पत्र सौंपा था ।

आप सबकी मेहनत रंग लाई । और आज से ‘औरंगजेब रोड’ का नाम बदल दिया गया … ‘अब्दुल कलाम रोड ‘ हुआ नया नाम !!

औरंगजेब क्रूर शासक था कितना कत्लेआम किया था ये लोगो को शायद पता नहीं । औरंगज़ेब ने मंदिर भी तुड़वाये, जबरन धर्मांतरण भी करवाया , हिन्दू औरतों से क्या-क्या नहीं किया गया । आज जो ISIS कर रहा है उससे भी ज्यादा खतरनाक था औरेंजेब।

औरंगजेब (१६५८-१७०७)
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इस बादशाह के हिन्दुओं पर अत्याचारों पर एक अलग ही पुस्तक लिखी जा सकती है। नमूने के तौर पर उसके कुछ कारनामों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित हैं :

अनेक लोग, जो मुसलमान बनने को तैयार नहीं हुए, नौकरी से निकाल दिये गये। नामदेव को इस्लाम ग्रहण करने पर ४०० का कमाण्डर बना दिया गया और अमरोहे के राजा किशनदास के पोते द्गिावसिंह को इस्लाम स्वीकार करने पर इम्तियाज गढ़ का मुशरिफ बना दिया गया। ‘समाचार पत्रों में नेकराम के धर्मान्तरण का जो राजा बना दिया गया और दिलावर का, जो १०००० का कमाण्डर बना दिया गया का वर्णन है।(१७) के.एस. लाल अपनी पुस्तक ‘इंडियन मुस्लिम व्हू आर दे’ में अनेकों उदाहरण देकर सिद्ध करते हैं कि इस प्रकार के लोभ के कारण और जिजिया कर से बचने के लिये बड़ी संखया में हिन्दुओं का धर्मान्तरण हुआ।

हिन्दू गृहस्थों और रजवाड़ों की लड़कियाँ, किस प्रकार दिन में उठाकर गुलाम रखैल बना ली जाती थी, उसका एक उदाहरण मनुक्की की आँखों देखा अनुभव है। वह नाचने वाली लड़कियों की एक लम्बी सूची देता है जैसे – हीरा बाई, सुन्दर बाई, नैन ज्योति बाई, चंचल बाई, अफसरा बाई, खुशहाल बाई, केसा बाई, गुलाल, चम्पा, चमेली, एलौनी, मधुमति, कोयल, मेंहदी, मोती, किशमिश, पिस्ता, इत्यादि। वह कहता है कि ये सभी नाम हिन्दू हैं और साधारणतया वे हिन्दू हैं जिनको बचपन में विद्रोही हिन्दू राजाओं के घरानों में से बलात उठा लिया गया था। नाम हिन्दू जरूर है, अब पर वे सब मुसलमान हैं।(९७क)

मराठों के जंजीरा के दुर्ग को जीतने के बाद सिद्‌दी याकूब ने उसके अंदर की सेना को सुरक्षा का वचन दिया था। ७०० व्यक्ति जब बाहर आ गये तो उसने सब पुरुषों को कत्ल कर दिया। परन्तु स्त्रियों और बच्चों को गुलाम बनाकर उनके मुसलमान बनने पर मजबूर किया।(९७ख)

औरंगजेब के गद्‌दी पर आते ही लोभ और बल प्रयोग द्वारा धर्मान्तरण ने भीषण रूप धारण किया। अप्रैल १६६७ में चार हिन्दू कानूनगो बरखास्त किये गये। मुसलमान हो जाने पर वापिस ले लिये गये। औरंगजेब कीघोषित नीति थी ‘कानूनगो बशर्ते इस्लाम’ अर्थात्‌ मुसलमान बनने पर कानूनगोई।(९९)

पंजाब से बंगाल तक, अनेक मुस्लिम परिवारों में ऐसे नियुक्ति पत्र अब भी विद्यमान हैं जिनसे यह नीति स्पष्ट सिद्ध होती है। नियुक्तियों और पदोन्नतियों दोनों के द्वारा इस्लाम स्वीकार करने का प्रलोभन दिया जाता था।(१००)

सन्‌ १६४८ ई. में जब वह शहजादा था, गुजरात में सीताराम जौहरी द्वारा बनवाया गया चिन्तामणि मंदिर उसने तुड़वाया। उसके स्थान पर ‘कुव्वतुल इस्लाम’ मस्जिद बनवाई गई और वहाँ एक गार्य कुर्बान की गई। (१०१)

सन्‌ १६४८ ई. में मीर जुमला को कूच बिहार भेजा गया। उसने वहाँ के तमाम मंदिरों को तोड़कर उनके स्थान पर मस्जिदें बना दी।(१०२)

सन्‌ १६६६ ई. में कृष्ण जन्मभूमि मंदिर मथुरा में दारा द्वारा लगाई गई पत्थर की जाली हटाने का आदेश दिया-‘इस्लाम में मंदिर को देखना भी पाप है और इस दारा ने मंदिर में जाली लगवाई?'(१०३)

सन्‌ १६६९ ई. में ठट्‌टा, मुल्तान और बनारस में पाठशालाएँ और मंदिर तोड़ने के आदेश दिये। काशी में विद्गवनाथ का मंदिर तोड़ा गया और उसके स्थान पर मस्जिद का निर्माण किया गया।(१०४)

सन्‌ १६७० ई. में कृष्णजन्मभूमि मंदिर, मथुरा, तोड़ा गया। उस पर मस्जिद बनाई गई। मूर्तियाँ जहाँनारा मस्जिद, आगरा, की सीढ़ियों पर बिछा दी गई।(१०५)

सोरों में रामचंद्र जी का मंदिर, गोंडा में देवी पाटन का मंदिर, उज्जैन के समस्त मंदिर, मेदनीपुर बंगाल के समस्त मंदिर, तोड़े गये।(१०६)

सन्‌ १६७२ ई. में हजारों सतनामी कत्ल कर दिये गये। गुरु तेग बहादुर का काद्गमीर के ब्राहम्णों के बलात्‌ धर्म परिवर्तन का विरोध करने के कारण वध करवाया गया।(१०७)

सन्‌ १६७९ ई. में हिन्दुओं पर जिजिया कर फिर लगा दिया गया जो अकबर ने माफ़ कर दिया था। दिल्ली में जिजिया के विरोध में प्रार्थना करने वालों को हाथी से कुचलवाया गया। खंडेला में मंदिर तुड़वाये गये।(१०८)

जोधपुर से मंदिरों की टूटी मूर्तियों से भरी कई गाड़ियाँ दिल्ली लाई गईं और उनको मस्जिदों की सीढ़ियों पर बिछाने के आदेश दिये गये।(१०९)

सन्‌ १६८० ई. में ‘उदयपुर के मंदिरों को नष्ट किया गया। १७२ मंदिरों को तोड़ने की सूचना दरबार में आई। ६२ मंदिर चित्तौड़ में तोड़े गये। ६६ मंदिर अम्बेर में तोड़े गये। सोमेद्गवर का मंदिर मेवाड़ में तोड़ा गया। सतारा में खांडेराव का मंदिर तुड़वायागया।'(११०)

सन्‌ १६९० ई. में एलौरा, त्रयम्वकेद्गवर, नरसिंहपुर एवं पंढारपुर के मंदिर तुड़वाये गये।(१११)

सन्‌ १६९८ ई. में बीजापुर के मंदिर ध्वस्त किये गये। उन पर मस्जिदें बनाई गई।(११२)

प्रो. मौहम्मद हबीब के अनुसार १३३० ई. में मंगोलों ने आक्रमण किया। पूरी कशमीर घाटी में उन्होंने आग लगाने बलात्कार और कत्ल करने जैसे कार्य किये। राजा और ब्राहम्ण (द्गिाक्षक) तो भाग गये। परन्तु साधारण नागरिक, जो रह गये, दूसरा कोई विकल्प न देखकर धीरे-धीरे मुसलमान हो गये।(११३)

इस प्रकार युद्ध से कैदी प्राप्त होते थे। कैदी गुलाम और फिर मुसलमान बना लिये जाते थे। नये मुसलमान दूसरे हिन्दुओं की लूट, बलात्कार और बलात्‌ धर्मान्तरण में उत्साहपूर्वक लग जाते थे क्योंकि वह अपने समाज द्वारा घृणित समझे जाने लगते थे।

मुस्लिम इतिहासकारों द्वारा दी गई उपरोक्त घटनाओं के विवरण को पढ़कर जिनके अनेक बार वे प्रत्यक्ष दद्गर्ाी थे, किसी भी मनुष्य का मन अपने अभागे हिन्दू पूर्वजों के प्रति द्रवित होकर करुणा से भर जाना स्वाभाविक है।

यह संसार का अद्‌भुत आद्गचर्य ही है कि इस्लाम के जिस आतंक से पूरा मध्य पूर्व और मध्य एद्गिाया कुछ दशाब्दियों में ही मुसलमान हो गया वह १००० वर्द्गा तक पूरा बल लगाकर भारत की आबादी के केवल १/५ भाग ही धर्म परिवर्तन कर सका।

इन बलात्‌ धर्म परिवर्तित लोगों में कुछ ऐसे भी थे जो अपनी संतानों के नाम एक लिखित अथवा अलिखित पैगाम छोड़ गये-‘हमने स्वेच्छा से अपने धर्म का त्याग नहीं किया है। यदि कभी ऐसा समय आवे जब तुम फिर अपने धर्म में वापिस जा सको तो देर मत लगाना। हमारे ऊपर किये गये अत्याचारों को भी भुलाना मत।’

बताया जाता है कि जम्मू में तो एक ऐसा परिवार है जिसके पास ताम्र पत्र पर खुदा यह पैगाम आज भी सुरक्षित है। किन्तु हिन्दू समाज उन लाखों उत्पीड़ित लोगों की आत्माओं की आकांक्षाओं को पूरा करने में असमर्थ रहा है। काद्गमीर के ब्रहाम्णों जैसे अनेक दृद्गटांत है जहाँ हिन्दूओं ने उन पूर्वकाल के बलात्‌ धर्मान्तरित बंधुओं के वंशजों को लेने के प्रद्गन पर आत्म हत्या करने की भी धमकी दे डाली और उनकी वापसी असंभव बना दी और हमारे इस धर्मनिरपेक्ष शासन को तो देखो जो मुस्लिम द्यशासकों के इन कुकृत्यों को छिपाना और झुठलाना एक राष्ट्रीय कर्तव्य समझता है।

राजस्थान, पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में विद्गनोई संप्रदाय के अनेक परिवार रहते हैं। इस सम्प्रदाय के लोगों की धार्मिक प्रतिबद्धता है कि हरे वृक्ष न काटे जाये और किसी भी जीवधारी का वध न किया जाये।

राजस्थान में इस प्रकार की अनेक घटनाएँ हैं, जब एक-एक वृक्ष को काटने से बचाने के लिये पूरा परिवार बलिदान हो गया।सऊदी अरब के कुछ विद्गिाद्गट आगुन्तकों को ग्रेट बस्टर्ड नामक पक्षी का राजस्थान में द्गिाकार करने की जब भारत सरकार द्वारा अनुमति दी गई तो इन विद्गनोइयों के तीव्र विरोध के कारण यह प्रोग्राम रद्‌द हो गया था। वह विद्गनोई सम्प्रदाय के प्रवर्तक संत जाम्भी जी की समाधि पर बनी छतरी पर मुस्लिम काल में लोधी मुस्लिम सुल्तानों द्वारा अधिकार कर लिया गया था। अकबर जैसे उदार बादशाह से जब फरियाद की गई तो उसने भी इन पाँच शर्तों पर यह छतरी विद्गनोई सम्प्रदाय को वापिस की-

१. मुर्दा गाड़ो,
२. चोटी न रखो,
३. जनेऊ धारण न करो,
४. दाढ़ी रखो,
५. विद्गणु के नाम लेते समय विस्मिल्लाह बोलो।

विद्गनोइयों ने मजबूरी की दशा में यह सब स्वीकार कर लिया। धीरे-धीरे जैसा कि अकबर को अभिद्गट था, विद्गनोई दो तीन सौ वर्ष में मुसलमान अधिक, हिन्दू कम दिखाई देने लगे। हिन्दुओं के लिये वह अछूत हो गये। परन्तु उन्होंने अपनी मजबूरी को भुलाया नहीं। आर्य समाज के जन्म के तुरंत बाद ही उन्होंने उसे अपना लिया। बिजनौर जनपद के मौहम्मदपुर देवमल ग्राम के द्गोख परिवार और नगीना के विद्गनोई सराय के विद्गनोई इसके उदाहरणहैं।

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मेगास्थनीज के नाम पर जो कुछ लिखा गया है


मेगास्थनीज के नाम पर जो कुछ लिखा गया है वह मेगास्थनीज का बिल्कुल उलटा है या निराधार है। स्वयं ग्रीक लेखकों ने कई प्रकार की जालसाजी की है। प्रायः ३०० ई.पू. में सुमेरियन लेखक बेरोसस ने लिखा है कि हेरोडोटस आदि इतिहास न जानते हैं न जानना चाहते हैं। वे केवल अपनी प्रशंसा के लिये झूठ और जालसाजी करते रहते हैं। आज तक यूरोपीय लेखकों की यही आदत है कि वे हर ज्ञान का केन्द्र ग्रीस को सिद्ध करना चाहते हैं। स्वयं हेरोडोटस अपोलोनियस आदि भारत में पढ़े थे। युक्लिड, टालेमी हिप्पार्कस आदि मिस्र में पढ़े थे। पर ग्रीस किसी भी काल में इतना सभ्य नहीं था कि वहां बाहर का कोई पढ़ने जाय। बाहरी व्यक्ति केवल गुलाम हो कर ही जा सकता था। आज भी यूरोपीय लेखक इतिहास के नाम पर केवल जालसाजी करते हैं कि ब्रिटेन आदि बहुत अच्छे हैं, केवल भारत को सभ्य बनाने के लिये पूरे संसार को लूटते रहे। हर जगह भेद पैदा कर कब्जा और लूटने की कोशिश करते रहे पर कैम्ब्रिज का भारत इतिहास, भाग ५ में लिखा है कि माउण्टबेटन का एकमात्र उद्देश्य था भारत को स्वतन्त्र करना और उसके विभाजन को रोकना। आधुनिक युग में भी ब्रिटेन, अमेरिका के अनुसार केवल इराक में ही संहार के शस्त्र हैं। ब्रिटेन अमेरिका के अणु बम केवल फूलों की वर्षा करते हैं (एक शस्त्र का नाम Daisy-cutter है)। केवल अमेरिका ने ही जापान के २ नगरों के लाखों निरपराध लोगों की हत्या की जब जापान समर्पण का निर्णय बता चुका था।
(१) मेगास्थनीज ने लिखा है कि विश्व में भारत एकमात्र देश है जहां कोई भी बाहर से नहीं आया है। पर अंग्रेजों को यह सिद्ध करना था कि उनकी तरह भारतीय लोग भी मध्य एशिया के आर्य थे जो बाहर से आये थे। कम से कम ३०० ई.पू. तक तो सभी पारसी, ग्रीक लेखकों को पता था कि भारतीय बाहर से नहीं आये थे। अतः अंग्रेजों ने इसको झूठा सिद्ध करने के लिये पश्चिमोत्तर भारत में खुदाई शुरु कर दी। वहां का इतिहास भी स्पष्ट रूप से मालूम था। ३०४२ ई.पू. में परीक्षित की हत्या तक्षक ने की जो तक्षशिला का नागवंशी राजा था। २७ वर्ष बाद इसका बदला उसके पुत्र जनमेजय ने लिया। जहां उसने पहली बार नागों को पराजित किया वहां लाहौर के निकट गुरु गोविन्द सिंह जी ने एक राम मन्दिर बनवाया था जिसमें यह घटना लिखी हुयी थी। दो नगरों को उसने श्मशान बना दिया जिसके कारण उनका नाम मोइन-जो-दरो = मुर्दों का स्थान, और हडप्पा = हड्डियों का ढेर पड़ गया। किसी भी अपराध के लिये भारत के लोग नरसंहार उचित नहीं समझते अतः सन्तों ने युद्ध बन्द कर प्रायश्चित्त करने का आदेश दिया उसके बाद अगला सूर्य ग्रहण पुरी में हुआ जब जयाभ्युदय युधिष्ठिर शक ८९ प्लवङ्ग सम्वत्सर पौष अमावास्या सोमवार को व्यतीपात योग था। उस समय जनमेजय ने ५ स्थानों पर दानपत्र दिये जिनमें केदारनाथ का पट्टा अभी तक चल रहा है। ये सभी जनवरी १९०० में मैसूर ऐण्टीकुअरी में प्रकाशित हुये थे। इनका समय २७-११-३०१४ ई.पू. आता है पर कोलब्रुक ने इसको ४५०० वर्ष बाद १५२६ ई. दिखाने की चेष्टा की। भारत के सेवकों में किसी ने इस चेष्टा का विरोध नहीं किया। इसके अनुसार मुगल काल में पाण्डवों का शासन चल रहा था। इन पट्टों के प्रकाशन के बाद खुदाई बहुत जरूरी थी अतः मोइन-जो-दरो और हड़प्पा में खुदाई कर मनमाना निष्कर्ष निकालने की चेष्टा हुई। आज तक वहां कोई लेख नहीं मिला है पर कई लोग लिपि पढ़ने का दावा कर चुके हैं। मिट्टी की कुछ मूर्त्तियों को लेख कह उसे वेद पुराण की कहानियों से जोड़ते रहते हैं। वेद नहीं पढ़ने पर भी कोई लड़का घोड़े की मूर्त्ति को घोड़ा ही कहेगा। जो लेख नहीं पढ़ा जा सका वह बिलकुल ठीक है। किन्तु जिस भागवत पुराण को लोग ५१०० वर्षों से पढ़ रहे हैं वह गलत है। अंग्रेजों के सहायक आर्यसमाजी मिल गये जिन्होंने बिना पढ़े ब्राह्मण ग्रन्थों और पुराणों को ब्राह्मणों की जालसाजी कह दिया। ब्राह्मण ग्रन्थॊं का ब्राह्मण जाति से कोई सम्बन्ध नहीं है। यह वेदों का व्याख्या भाग है पर ब्राह्मण घृणा के कारण यह वेद नहीं माना गया। पुराण भी नैमिषारण्य में रोमहर्षण सूत द्वारा सम्पादित हुये थे। महाभारत युद्ध का वर्णन करने वाला सञ्जय भी सूत जाति का था जिनपर आर्यसमाजियों वामपन्थियों के अनुसार ब्राह्मणों ने बहुत अत्याचार किये। पर ब्राह्मण इनके ग्रन्थों को ५००० वर्षों तक श्रद्धापूर्वक पढ़ते रहे।
(२) मेगास्थनीज ने लिखा है कि भारत सभी चीजों में स्वावलम्बी है अतः पिछ्ले १५००० वर्षों (१५३०० ई.पू. से पहले) भारत ने किसी देश पर कब्जा करने की चेष्टा नहीं की। इसका सम्बन्ध कार्त्तिकेय द्वारा १५८०० ई.पू. में क्रौञ्च द्वीप (उत्तर अमेरिका) पर आक्रमण से है जब महाभारत, वन पर्व २३०/८-१० के अनुसार उत्तर ध्रुव अभिजित् से दूर हट गया था और धनिष्ठा से वर्षा शुरु होती थी। भारत का इतना पुराना इतिहास मान्य नहीं था, अतः १५००० में एक शून्य कम कर मैक्समूलर ने वैदिक काल का इतिहास १५०० ई.पू. कर दिया जिसका आजतक और कोई आधार नहीं मिला है। इस सन्दर्भ को नकल करने के बाद नष्ट करना जरूरी था अतः १८८७ के श्वानबेक संस्करण को पुनः १९२७ में मैकक्रिण्डल ने प्रकाशित किया जिसमें नया वाक्य लिखा-भारत ने कभी दूसरे देशों पर आक्रमण नहीं किया(टिप्पणी-कायरता के कारण)। मेगाथनीज के लेख से दो बातें स्पष्ट थीं, भारतीय सभ्यता कम से कम १८००० वर्ष पुरानी है तथा सिकन्दर से अंग्रेजों तक सभी आक्रमण केवल लूटने के लिये हुये थे, भारत को सभ्य और शिक्षित बनाने के लिये नहीं।
Megasthenes: Indika
http://projectsouthasia.sdstate.edu/…/Megasthenes-Indika.htm
(36.) The inhabitants, in like manner, having abundant means of subsistence, exceed in consequence the ordinary stature, and are distinguished by their proud bearing….
(38.) It is said that India, being of enormous size when taken as a whole, is peopled by races both numerous and diverse, of which not even one was originally of foreign descent, but all were evidently indigenous; and moreover that India neither received a colony from abroad, nor sent out a colony to any other nation. .
(40 …. The land, thus remaining unravaged, and producing heavy crops, supplies the inhabitants with all that is requisite to make life very enjoyable.
BOOK IV. FRAGM. XLVI. Strab. XV. (6) … Its people, he says, never sent an expedition abroad, nor was their country ever invaded and conquered except by Herakles and Dionysos in old times, and by the Makedonians in our own.
(३) १८००० वर्ष पुराना इतिहास का उल्लेख नष्ट करने के बाद भी एक उल्लेख बच जाता है कि भारत पर पहला यवन आक्रमण डायोनिसस या फादर बाक्कस के द्वारा हुआ था। वह उस स्थान तक आया था, जहां मेगास्थनीज के समय स्तम्भ था। मेगास्थनीज ने इसे हरकुलस स्तम्भ कहा है, जो विष्णुध्वज का अनुवाद है। इसकी कुतुप काल की छाया से उत्तर दिशा का ज्ञान होता है अतः दिशा निर्देशक चुम्बक को भी कुतुबनुमा कहते थे तथा इसके लिये स्तम्भ को कुतुब मीनार कहा गया। पलिबोथ्रि उसने यमुना के किनारे लिखा है जिसके बाद यह् नदी गंगा में मिलती है। इसे लोगों ने पटना बना दिया। यह प्रभद्रक smile emoticon देहली) नगर था जहां श्रीहर्ष शक के आरम्भ ४५६ ई.पू. में स्तम्भ बना था। इब्न बतूता (१२०० ई) ने भी लिखा है कि उसके समय से १५०० वर्ष पहले से कुतुब मीनार है। बाक्कस ने सिकन्दर से ६४५१ वर्ष ३ मास पूर्व (भारतीय गणना के अनुसार, अर्थात् अप्रैल ६७७७ ई.पू.) आक्रमण किया था जिसमें पुराणों के अनुसार सूर्यवंशी राजा बाहु मारा गया था। १५ वर्ष बाद उसके पुत्र सगर ने इनको बाहर खदेड़ा और यवनों को भारत की पश्चिमी सीमा से ग्रीस भगा दिया। हेरोडोटस के अनुसार यवनों के आने के बाद ग्रीस का नाम इयोनिया (यूनान) हो गया। आज भी अरबी चिकित्सा को यूनानी कहते हैं। राजा बाहु से चन्द्रगुप्त-१ तक भारतीय राजाओं की १५४ पीढ़ी हुयी। चन्द्रगुप्त के पिता के नाम घटोत्कच का अनुवाद ग्रीक लोगों ने नाई किया है। गंजे आदमी को घटोत्कच कहते थे-घट = सिर, उत्कच = बिना केश का। पर इसको अंग्रेजों ने मौर्य काल के साथ मिला दिया और भारतीय इतिहास के १३०० वर्ष गायब करदिये। मौर्य से गुप्त काल के राजाओं की सूची का एकमात्र स्रोत पुराण ही हैं, पर उनकी नकल करने के बाद कालक्रम में मनमानी जालसाजी करते रहते हैं और पुराणों को झूठा बताते हैं। कुछ अन्य लेखकों ने लिखा है कि इस अवधि में दो बार प्रजातन्त्र था-(१) पहला ३ पीढ़ी या १२० वर्ष का। भारतीय परम्परा के अनुसार यह परशुराम काल में था। १२० वर्ष में २१ प्रजातन्त्र हुये जिनको २१ बार क्षत्रियों का विनाश कहा जाता है। परशुराम के देहान्त के बाद ६१७७ ई.पू. में कलम्ब सम्वत् आरम्भ हुआ जो आज भी केरल में कोल्लम के नाम से चल रह है। (२) दूसरा १० पीढ़ी अर्थात् ३०० वर्ष तक चला अर्थात् ७५६ ई.पू. के शूद्रक शक से ४५६ ई.पू. के श्रीहर्ष शक तक का मालव गण। चूंकि मालव गण की राजधानी उज्जैन शून्य देशान्तर था अतः यहीं के राजा नया कैलेण्डर चलाते थे। अतः अंग्रेजों ने सभी शककर्ता (वर्ष गणना चलाने वाले) राजाओं का नाम काल्पनिक कह कर मिटा दिया जिससे कालक्रम नष्ट किया जा सके। आज भी मनमानी विधियों से गणना नष्ट करने का काम चल रहा है।
FRAGM. LVI. Plin. Hist. Nat. VI. 21. 8-23 (22) …. The river Jomanes flows through the Palibothri into the Ganges between the towns Methora and Carisobora…
FRAGM. L. C. Plin. Hist. Nat.VI. xxi. 4-5. Of the Ancient History of the Indians.
For the Indians stand almost alone among the nations in never having migrated from their own country. From the days of Father Bacchus to Alexander the Great, their kings are reckoned at 154, whose reigns extend over 6451 years and 3 months.
Solin. 52. 5.– Father Bacchus was the first who invaded India, and was the first of all who triumphed over the vanquished Indians. From him to Alexander the Great 6451 years are reckoned with 3 months additional, the calculation being made by counting the, kings who reigned in the intermediate period, to the number of 153.
(४) विश्वविद्यालयों पर सिकन्दर के आक्रमण के ३ उद्देश्य थे-(१) भारत पढ़ने के लिये हेरोडोटस अपोलोनियस आदि आये थे वे तक्षशिला ही आये होंगे। पारसी इतिहास पुस्तक (१२वीं सदी का मुज़मा-ए-तवारीख Mujma-e-Tawarikh जो किसी लुप्त संस्कृत ग्रन्थ का अनुवाद कहा जाता है) के अनुसार महाभारत के पूर्व राजा दुर्योधन ने अपने ३६ वर्ष के शासन काल में यहां विश्वविद्यालय बनाया था जहां भारत के सभी भागों से ३०००० पण्डित अपने परिवार के साथ आये थे। इसमें ३००० शिक्षक और ३०,००० छात्रों के रहने की व्यवस्था थी। दुर्योधन द्वारा स्थापित होने के कारण यहां के नागवंशी राजाओं की पाण्डवों से शत्रुता चल रही होगी जो तक्षक द्वारा परीक्षित के वध का कारण हो सकता है। सिकन्दर काल में भी यहां के राजा द्वारा पुरुवंशी राजा का विरोध हुआ होगा। अधिकतर ग्रीक लोगों ने लिखा है कि पुरु (ग्रीक में पोरस) ७ फीट ६ इंच का था और हाथी पर बैठने पर ऐसा दीखता था जैसे अन्य लोग घोड़े पर दीखते हैं। उसे देखते ही बिना लड़ाई के सिकन्दर की सेना भाग गयी थी जिसे सिकन्दर की उदारता के रूप में बाद के लेखकों ने वर्णन किया। विश्वविद्यालयों से पुराना परिचय होने के कारण यहां का रास्ता ठीक मालूम था और यहां सम्पर्क के लोग भी रहे होंगे। (२) अन्य कारण है कि विश्वविद्यालय और पुस्तकालय नष्ट करने से वहां की सभ्यता नष्ट हो जायेगी और ग्रीस को ज्ञान का केन्द्र कहा जा सकता है। (३) सबसे बड़ा कारण है कि मन्दिर और विश्वविद्यालय में सेना नहीं रहती बल्कि सरकारी हस्तक्षेप से बचने के लिये उसे दूर रखा जाता है। अतः निहत्थे लोगों की हत्या कर युद्ध जीतने का सबसे सहज तरीका है। सभी मुस्लिम आक्रमणकारियों का भी मुख्य केन्द्र मन्दिर और विद्यालय ही थे।
(५) अन्य कई स्पष्ट रूप से मूर्खतापूर्ण वर्णन हैं जिनको वैज्ञानिक इतिहास कहा जाता है-(१) पाण्ड्य लड़कियां ६ वर्ष में बच्चे पैदा करती हैं, (२) एक आंख वाली जाति भारत में थी, (३) हेरोडोटस, मेगास्थनीज आदि के अनुसार भारत में सोने की खुदाई कर निकालने वाली चींटियां हैं।

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कामेश्वर धाम कारो – बलिया – यहाँ भगवान शिव ने कामदेव को किया था भस्म


कामेश्वर धाम कारो – बलिया – यहाँ भगवान शिव ने कामदेव को किया था भस्म

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कामेश्वर धाम कारो – बलिया – यहाँ भगवान शिव ने कामदेव को किया था भस्म

उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में है कामेश्वर धाम। इस धाम के बारे में मान्यता है कि यह, शिव पुराण मे वर्णित वही जगह है जहा भगवान शिव ने देवताओं के सेनापति कामदेव को जला कर भस्म कर दिया था। यहाँ पर आज भी वह आधा जला हुआ, हरा भरा आम का वृक्ष (पेड़) है जिसके पीछे छिपकर कामदेव ने समाधी मे लीन भोले नाथ को समाधि से जगाने के लिए पुष्प बाण चलाया था।

आखिर क्यों महादेव शिव ने कामदेव को भस्म किया ? :
भगवान शिव द्वारा कामदेव को भस्म करने कि कथा (कहानी) शिव पुराण मे इस प्रकार है। भगवान शिव कि पत्नी सती अपने पिता द्वारा आयोजित यज्ञ मे अपने पति भोलेनाथ का अपमान सहन नही कर पाती है और यज्ञ वेदी मे कूदकर आत्मदाह कर लेती है। जब यह बात शिवजी को पता चलती है तो वो अपने तांडव से पूरी सृष्टि मे हाहाकार मचा देते है। इससे व्याकुल सारे देवता भगवान शंकर को समझाने पहुंचते है। महादेव उनके समझाने से शान्त होकर, परम शान्ति के लिए, गंगा तमसा के इस पवित्र संगम पर आकर समाधि मे लिन हो जाते है।

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इसी बीच महाबली राक्षस तारकासुर अपने तप से ब्रह्मा जी को प्रसन्न करके ऐसा वरदान प्राप्त कर लेता है जिससे की उसकी मृत्यु केवल शिव पुत्र द्वारा ही हो सकती थी। यह एक तरह से अमरता का वरदान था क्योकि सती के आत्मदाह के बाद भगवान शिव समाधि मे लीन हो चुके थे।
इसी कारण तारकासुर का उत्पात दिनो दिन बढ़ता जाता है और वो स्वर्ग पर अधिकार करने कि चेष्टा करने लगता है। यह बात जब देवताओं को पता चलती है तो वो सब चिंतित हो जाते है और भगवान शिव को समाधि से जगाने का निश्चय करते है। इसके लिए वो कामदेव को सेनापति बनाकर यह काम कामदेव को सोपते है। कामदेव, महादेव के समाधि स्थल पहुंचकर अनेकों प्रयत्नो के द्वारा महादेव को जगाने का प्रयास करते है, जिसमे अप्सराओ के नृत्य इत्यादि शामिल होते है, पर सब प्रयास बेकार जाते है।
अंत में कामदेव स्वयं भोले नाथ को जगाने लिए खुद को आम के पेड़ के पत्तो के पीछे छुपाकर शिवजी पर पुष्प बाण चलाते है। पुष्प बाण सीधे भगवान शिव के हृदय मे लगता है, और उनकी समाधि टूट जाति है। अपनी समाधि टूट जाने से भगवान शिव बहुत क्रोधित होते है और आम के पेड़ के पत्तो के पिछे खडे कामदेव को अपने त्रिनेत्र से जला कर भस्म कर देते है।

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कई संतो कि तपोभूमि रहा है कामेश्वर धाम :
त्रेतायुग में इस स्थान पर महर्षि विश्वामित्र के साथ भगवान श्रीराम लक्ष्मण आये थे जिसका उल्लेख बाल्मीकीय रामायण में भी है। अघोर पंथ के प्रतिष्ठापक श्री कीनाराम बाबा की प्रथम दीक्षा यहीं पर हुर्इ थी। यहां पर दुर्वासा ऋषि ने भी तप किया था।
बताते हैं कि इस स्थान का नाम पूर्व में कामकारू कामशिला था। यही कामकारू पहले अपभ्रंश में काम शब्द खोकर कारूं फिर कारून और अब कारों के नाम से जाना जाता है।

कामेश्वर धाम कारो मे तीन प्राचीन शिवलिंग व शिवालय स्थापीत है।

श्री कामेश्वर नाथ शिवालय :
यह शिवालय रानी पोखरा के पूर्व तट पर विशाल आम के वृक्ष (पेड़) के नीचे स्थित है। इसमें स्थापित शिवलिंग खुदाई में मिला था जो कि ऊपर से थोड़ा सा खंडित है।

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श्री कवलेश्वर नाथ शिवालय :
इस शिवालय कि स्थापना अयोध्या के राजा कमलेश्वर ने कि थी। कहते है की यहां आकर उनका कुष्ट का रोग सही हो गया था इस शिवालय के पास मे हि उन्होने विशाल तालाब बनवाया जिसे रानी पोखरा कहते है।

श्री बालेश्वर नाथ शिवालय :
बालेश्वर नाथ शिवलिंग के बारे मे कहा जाता है कि यह एक चमत्कारिक शिवलिंग है। किवदंती है की जब 1728 में अवध के नवाब मुहम्मद शाह ने कामेश्वर धाम पर हमला किया था तब बालेश्वर नाथ शिवलिंग से निकले काले भौरो ने जवाबी हमला कर उन्हे भागने पर मजबूर कर दिया था।

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पटना की एक प्राथमिक पाठशाला की खिड़की।


निंदक नियरे राखिये's photo.

पटना की एक प्राथमिक पाठशाला की खिड़की।
क्या कमाल की सूझी है किसी जुगाडू सज्जन को!
कौन कहता है कि देश में कुछ रचनात्मक नहीं हो रहा?