पुरुषोत्तम मास की उत्पत्ति कथा –
हर वैष्णव को यह पढना ही चाहिये***
प्रत्येक राशि, नक्षत्र, करण व चैत्रादि बारह मासों के सभी के स्वामी है, परन्तु मलमास का कोई स्वामी नही है. इसलिए देव कार्य, शुभ कार्य एवं पितृ कार्य इस मास में वर्जित माने गये है.
इससे दुखी होकर स्वयं मलमास(अधिक मास) बहुत नाराज व उदास रहता था, इसी कारण सभी ओर उसकी निंदा होने लगी. मलमास को सभी ने असहाय, निन्दक, अपूज्य तथा संक्रांति से वर्जितकहकर लज्जित किया. अत: लोक-भत्र्सना से चिन्तातुर होकर अपार दु:ख समुद्र में मग्न हो गया. वह कान्तिहीन, दु:खों से युक्त, निंदा से दु:खी होकर मल मास भगवान विष्णु के पास वैकुण्ठ लोक में पहुंचा.
और मलमास बोला –
हे नाथ, हे कृपानिधे! मेरा नाम मलमास है. मैं सभी से तिरस्कृत होकर यहां आया हूं. सभी ने मुझे शुभ-कर्म वर्जित, अनाथ और सदैव घृणा-दृष्टि से देखा है. संसार में सभी क्षण, लव, मुहूर्त, पक्ष, मास, अहोरात्र आदि अपने-अपने अधिपतियों के अधिकारों से सदैव निर्भय रहकर आनन्द मनाया करते हैं.
मैं ऐसा अभागा हूं जिसका न कोई नाम है,न स्वामी, न धर्म तथा न ही कोई आश्रम है. इसलिए हे स्वामी, मैं अब मरना चाहता हूं.’ ऐसा कहकर वह शान्त हो गया.
तब भगवान विष्णु मलमास को लेकर गोलोक धाम गए. वहां भगवान श्रीकृष्ण मोरपंख का मुकुट व वैजयंती माला धारण कर स्वर्णजडि़त आसन पर बैठेथे. गोपियों से घिरे हुए थे.भगवान विष्णु ने मलमास को श्रीकृष्ण के चरणों में नतमस्तक करवाया व कहा – कि यह मलमास वेद-शास्त्र के अनुसार पुण्य कर्मों के लिए अयोग्य माना गया है
इसीलिए सभी इसकी निंदा करते हैं.
तब श्रीकृष्ण ने कहा – हे हरि! आप इसका हाथ पकड़कर यहां लाए हो. जिसे आपने स्वीकार किया उसे मैंने भी स्वीकार कर लिया है. इसे मैं अपने हीसमान करूंगा तथा गुण, कीर्ति, ऐश्वर्य, पराक्रम, भक्तों को वरदान आदि मेरे समान सभी गुण इसमें होंगे. मेरे अन्दर जितने भी सदॄगुण है, उन सभी को मैंमलमास में तुम्हे सौंप रहा हूँ मैं इसे अपना नाम ‘पुरुषोत्तम’ देता हूं और यह इसी नाम से विख्यात होगा.यह मेरे समान ही सभी मासों का स्वामी होगा. कि अब से कोई भी मलमास की निंदा नहीं करेगा. मैं इस मास का स्वामी बन गया हूं. जिस परमधाम गोलोक को पाने के लिए ऋषि तपस्या करते हैं वहीदुर्लभ पद पुरुषोत्तम मास में स्नान, पूजन, अनुष्ठान व दान करने वाले को सरलता से प्राप्त हो जाएंगे.इस प्रकार मल मास पुरुषोत्तम मास के नाम से प्रसिद्ध हुआ.यह मेरे समान ही सभी मासों का स्वामी होगा. अब यह जगत को पूज्य व नमस्कार करने योग्य होगा.यह इसे पूजने वालों के दु:ख-दरिद्रता का नाश करेगा. यह मेरे समान ही मनुष्यों को मोक्ष प्रदान करेगा. जो कोई इच्छा रहित या इच्छा वाला इसे पूजेगा वह अपने किए कर्मों को भस्म करके नि:संशय मुझ कोप्राप्त होगा.सब साधनों में श्रेष्ठ तथा सब काम व अर्थ का देने वाला यह पुरुषोत्तम मास स्वाध्याय योग्य होगा. इस मास में किया गया पुण्य कोटि गुणा होगा.जो भी मनुष्य मेरे प्रिय मलमास का तिरस्कार करेंगेऔर जो धर्म का आचरण नहीं करेंगे, वे सदैव नरक के गामी होंगे. अत: इस मास में स्नान, दान, पूजा आदि का विशेष महत्व होगा.इसलिए हे रमापते! आप पुरुषोत्तम मास को लेकर बैकुण्ठ को जाओ.’इस प्रकार बैकुण्ठ में स्थित होकर वह अत्यन्त आनन्द करने लगा तथा भगवान के साथ विभिन्न क्रीड़ाओं में मग्न हो गया. इस प्रकार श्रीकृष्ण ने मन से प्रसन्न होकर मलमास को बारह मासों में श्रेष्ठ बना दिया तथा वह सभी का पूजनीय बन गया. अत: श्रीकृष्ण से वर पाकर इस भूतल पर वह पुरुषोत्तम नाम से विख्यात हुआ.इस साल अधिकमास (मलमास) पड़ने के कारण लगभग सभी व्रत और त्योहार आम सालों की अपेक्षा कुछ जल्दी पड़ेंगे. २०१५ में अधिकमास अर्थात पुरुषोत्तममास के कारण दो आषाढ़ होंगे |
|| जय पुरुषोत्तम भगवान ||
।। राधे राधे ।।
Day: June 23, 2015
गुरुकुल कैसे खत्म हो गये ?
[23/06 16:24] Ajay Patel Rb: Please read this
[23/06 16:24] Ajay Patel Rb: Where we are?
[23/06 16:24] Ajay Patel Rb: भारतवर्ष में गुरुकुल कैसे खत्म हो गये ?
कॉन्वेंट स्कूलों ने किया बर्बाद 1858 में Indian Education Act बनाया गया।
इसकी ड्राफ्टिंग ‘लोर्ड मैकोले’ ने की थी। लेकिन उसके पहले उसने यहाँ (भारत) के
शिक्षा व्यवस्था का सर्वेक्षण कराया था, उसके पहले भी कई अंग्रेजों ने भारत के शिक्षा व्यवस्था के बारे में अपनी रिपोर्ट दी थी। अंग्रेजों का एक अधिकारी था G.W. Litnar और दूसरा था Thomas Munro, दोनों ने अलग अलग इलाकों का अलग-अलग समय सर्वे किया था। 1823 के आसपास की बात है ये Litnar , जिसने उत्तर भारत का सर्वे किया था,
उसने लिखा है कि यहाँ 97% साक्षरता है और Munro, जिसने दक्षिण भारत का सर्वे किया था, उसने लिखा कि यहाँ तो 100 % साक्षरता है, और उस समय जब भारत में इतनी साक्षरता है और मैकोले
का स्पष्ट कहना था कि भारत को हमेशा-हमेशा के लिए अगर गुलाम बनाना है तो इसकी “देशी और सांस्कृतिक शिक्षा व्यवस्था” को पूरी तरह से ध्वस्त करना होगा और उसकी जगह “अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था” लानी होगी और तभी इस देश में शरीर से हिन्दुस्तानी लेकिन दिमाग से अंग्रेज पैदा होंगे और जब इस देश की यूनिवर्सिटी से निकलेंगे तो हमारे हित में काम करेंगे और मैकोले एक मुहावरा इस्तेमाल कर रहा है: “कि जैसे किसी खेत में कोई फसल लगाने के पहले पूरी तरह जोत दिया जाता है वैसे ही इसे
जोतना होगा और अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था लानी होगी।”
इसलिए उसने सबसे पहले गुरुकुलों को गैरकानूनी घोषित किया, जब गुरुकुल
गैरकानूनी हो गए तो उनको मिलने वाली सहायता जो समाज के तरफ से होती थी वो गैरकानूनी हो गयी, फिर संस्कृत को गैरकानूनी घोषित किया और इस देश के
गुरुकुलों को घूम घूम कर ख़त्म कर दिया उनमे आग लगा दी, उसमें पढ़ाने वाले गुरुओं को उसने मारा- पीटा, जेल में डाला।
1850 तक इस देश में ’7 लाख 32 हजार’ गुरुकुल हुआ करते थे और उस समय इस देश में गाँव थे ’7 लाख 50
हजार’, मतलब हर गाँव में औसतन एक गुरुकुल और ये जो गुरुकुल होते थे वो सब के सब आज की भाषा में ‘Higher Learning Institute’ हुआ करते थे उन सबमे 18 विषय पढाया जाता था और ये गुरुकुल समाज के लोग मिल के चलाते थे न कि राजा, महाराजा, और इन गुरुकुलों में शिक्षा निःशुल्क दी जाती थी।
इस तरह से सारे गुरुकुलों को ख़त्म किया गया और फिर अंग्रेजी शिक्षा को कानूनी घोषित किया गया और कलकत्ता में पहला कॉन्वेंट स्कूल खोला गया, उस समय इसे ‘फ्री स्कूल’ कहा जाता था, इसी कानू न के तहत भारत में कलकत्ता यूनिवर्सिटी बनाई गयी, बम्बई यूनिवर्सिटी बनाई गयी, मद्रास यूनिवर्सिटी बनाई गयी और ये तीनों गुलामी के ज़माने के यूनिवर्सिटी आज भी इस देश में हैं और मैकोले ने अपने पिता को एक चिट्ठी लिखी थी बहुत मशहूर चिट्ठी है वो, उसमें वो लिखता है कि:
“इन कॉन्वेंट स्कूलों से ऐसे बच्चे निकलेंगे जो देखने में तो भारतीय होंगे लेकिन दिमाग से अंग्रेज होंगे और इन्हें अपने देश के बारे में कुछ पता नहीं होगा, इनको अपने संस्कृति के बारे में कुछ पता नहीं होगा, इनको अपने परम्पराओं के बारे में कुछ पता नहीं होगा, इनको अपने मुहावरे नहीं मालूम होंगे, जब ऐसे बच्चे होंगे इस देश में तो अंग्रेज भले ही चले जाएँ इस देश से अंग्रेजियत नहीं जाएगी।” उस समय लिखी चिट्ठी की सच्चाई इस देश में अब साफ़-साफ़ दिखाई दे रही है और उस एक्ट की महिमा देखिये कि हमें अपनी भाषा बोलने में शर्म आती है, अंग्रेजी में बोलते हैं कि दूसरों पर रोब पड़ेगा, अरे हम तो खुद में हीन हो गए हैं जिसे अपनी भाषा बोलने में शर्म आ रही है, दूसरों पर रोब क्या पड़ेगा।
लोगों का तर्क है कि अंग्रेजी अंतर्राष्ट्रीय भाषा है, दुनिया में 204 देश हैं और अंग्रेजी सिर्फ 11 देशों में बोली, पढ़ी और समझी जाती है, फिर ये कैसे अंतर्राष्ट्रीय भाषा है। शब्दों के मामले में भी अंग्रेजी समृद्ध नहीं दरिद्र भाषा है। इन अंग्रेजों की जो बाइबिल है वो भी अंग्रेजी में नहीं थी और ईशा मसीह अंग्रेजी नहीं बोलते थे।
ईशा मसीह की भाषा और बाइबिल की भाषा अरमेक थी। अरमेक भाषा की लिपि जो थी वो हमारे बंगला भाषा से मिलती जुलती थी, समय के कालचक्र में वो भाषा विलुप्त हो गयी। संयुक्त राष्ट संघ जो अमेरिका में है वहां की भाषा अंग्रेजी नहीं है, वहां का सारा काम फ्रेंच में होता है।
जो समाज अपनी मातृभाषा से कट जाता है उसका कभी भला नहीं होता और यही मैकोले की रणनीति थी।
कृपया आपको अगर ये जानकारी अच्छी और सही लगे तो शेयर करें…
👆यह मेसेज जरुर पढे हम कहा पीछे रहे
एक डाकू था जो साधू के भेष में रहता था।
Suzuka Singh
जय हिंदुत्व – 7:53 AM
डाकूओं के जाने के बाद व्यापारी अपनी थैली लेने वापस तंबू में आया। उसके आश्चर्य का पार न था। वह साधू तो डाकूओं की टोली का सरदार था। लूट के रुपयों को वह दूसरे डाकूओं को बाँट रहा था। व्यापारी वहाँ से निराश होकर वापस जाने लगा मगर उस साधू ने व्यापारी को देख लिया। उसने कहा; “रूको, तुमने जो रूपयों की थैली रखी थी वह ज्यों की त्यों ही है।”
अपने रुपयों को सलामत देखकर व्यापारी खुश हो गया। डाकू का आभार मानकर वह बाहर निकल गया। उसके जाने के बाद वहाँ बैठे अन्य डाकूओं ने सरदार से पूछा कि हाथ में आये धन को इस प्रकार क्यों जाने दिया। सरदार ने कहा; “व्यापारी मुझे भगवान का भक्त जानकर भरोसे के साथ थैली दे गया था। उसी कर्तव्यभाव से मैंने उन्हें थैली वापस दे दी।”
किसी के विशवास को तोड़ने से सच्चाई और ईमानदारी हमेशा के लिए शक के घेरे में आ जाती है।