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मुगल सम्राट औरंगजेब


jai hind….

मुगल सम्राट औरंगजेब ने 9 अप्रैल 1669, को बनारस के “काशी विश्वनाथ मंदिर” तोड़ने का आदेश जारी किया था…..जिसका पालन कर अगस्त 1669, को काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़कर ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण किया गया था…उस आदेश की कॉपी आज भी एशियाटिक लाइब्रेरी, कोलकाता में सुरक्षित रखी हुयी है ( उस आदेश की कॉपी साथ दे रही हू स्क्रीन शॉट में खुद देखे )

अपने बाप को कैद करने और प्यास से तड़पाने वाले आतातयी तथा धर्माध मुग़ल शासक औरंगजेब ने हिन्दुओं के श्रध्दा और आस्था के केंद्र बनारस सहित प्रमुख तीर्थ स्थलों के मंदिरों को अपने शासन काल में तोड़ने और हिन्दुओं को मानसिक रूप से पराजित करने के हरसंभव प्रयास किये…..औरंगजेब के गद्‌दी पर आते ही लोभ और बल प्रयोग द्वारा धर्मान्तरण ने भीषण रूप धारण किया था अप्रैल 1669 में चार हिन्दू कानूनगो बरखास्त किये गये…… जिन्हे मुसलमान हो जाने पर वापिस ले लिये गया …. औरंगजेब की घोषित नीति थी ‘कानूनगो बशर्ते इस्लाम’ अर्थात्‌ मुसलमान बनने पर कानूनगोई…

द्वादश ज्योतिर्लिंगों में प्रमुख काशी विश्वनाथ मंदिर अनादिकाल से काशी में है… यह स्थान शिव और पार्वती का आदि स्थान है इसीलिए आदिलिंग के रूप में अविमुक्तेश्वर को ही प्रथम लिंग माना गया है.. इसका उल्लेख महाभारत और उपनिषद में भी किया गया है।

ईसा पूर्व 11वीं सदी में राजा हरीशचन्द्र ने जिस विश्वनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था उसका सम्राट विक्रमादित्य ने जीर्णोद्धार करवाया था। उसे ही 1194 में मुहम्मद गौरी ने लूटने के बाद तुड़वा दिया था। इतिहासकारों के अनुसार इस भव्य मंदिर को सन् 1194 में मुहम्मद गौरी द्वारा तोड़ा गया था। इसे फिर से बनाया गया, लेकिन एक बार फिर इसे सन् 1447 में जौनपुर के सुल्तान महमूद शाह द्वारा तोड़ दिया गया। पुन: सन् 1585 ई. में राजा टोडरमल की सहायता से पं. नारायण भट्ट द्वारा इस स्थान पर फिर से एक भव्य मंदिर का निर्माण किया गया। इस भव्य मंदिर को सन् 1632 में शाहजहां ने आदेश पारित कर इसे तोड़ने के लिए सेना भेज दी। सेना हिन्दुओं के प्रबल प्रतिरोध के कारण विश्वनाथ मंदिर के केंद्रीय मंदिर को तो तोड़ नहीं सकी, लेकिन काशी के 63 अन्य मंदिर तोड़ दिए गए।

डॉ. एएस भट्ट ने अपनी किताब ‘दान हारावली’ में इसका जिक्र किया है कि टोडरमल ने मंदिर का पुनर्निर्माण 1585 में करवाया था। 18 अप्रैल 1669 को औरंगजेब ने एक फरमान जारी कर काशी विश्वनाथ मंदिर ध्वस्त करने का आदेश दिया। यह फरमान एशियाटिक लाइब्रेरी, कोलकाता में आज भी सुरक्षित है।

उस समय के लेखक साकी मुस्तइद खां द्वारा लिखित ‘मासीदे आलमगिरी’ में इस ध्वंस का वर्णन है। औरंगजेब के आदेश पर यहां का मंदिर तोड़कर एक ज्ञानवापी मस्जिद बनाई गई… 2 सितंबर 1669 को औरंगजेब को मंदिर तोड़ने का कार्य पूरा होने की सूचना दी गई थी… औरंगजेब ने प्रतिदिन हजारों ब्राह्मणों को मुसलमान बनाने का आदेश भी पारित किया था।

आज उत्तर प्रदेश के 90 प्रतिशत मुसलमानों के पूर्वज हिन्दू है.. सन् 1752 से लेकर सन् 1780 के बीच मराठा सरदार दत्ताजी सिंधिया व मल्हारराव होलकर ने मंदिर मुक्ति के प्रयास किए… 7 अगस्त 1770 ई. में महादजी सिंधिया ने दिल्ली के बादशाह शाह आलम से मंदिर तोड़ने की क्षतिपूर्ति वसूल करने का आदेश जारी करा लिया, परंतु तब तक काशी पर ईस्ट इंडिया कंपनी का राज हो गया था इसलिए मंदिर का नवीनीकरण रुक गया… 1777-80 में इंदौर की महारानी अहिल्याबाई द्वारा इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया गया था… अहिल्याबाई होलकर ने इसी परिसर में विश्वनाथ मंदिर बनवाया जिस पर पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह ने सोने का छत्र बनवाया,.. ग्वालियर की महारानी बैजाबाई ने ज्ञानवापी का मंडप बनवाया और महाराजा नेपाल ने वहां विशाल नंदी प्रतिमा स्थापित करवाई।

सन् 1809 में काशी के हिन्दुओं ने जबरन बनाई गई मस्जिद पर कब्जा कर लिया था, क्योंकि यह संपूर्ण क्षेत्र ज्ञानवापी मं‍डप का क्षेत्र है जिसे आजकल ज्ञानवापी मस्जिद कहा जाता है…. 30 दिसंबर 1810 को बनारस के तत्कालीन जिला दंडाधिकारी मि. वाटसन ने ‘वाइस प्रेसीडेंट इन काउंसिल’ को एक पत्र लिखकर ज्ञानवापी परिसर हिन्दुओं को हमेशा के लिए सौंपने को कहा था, लेकिन यह कभी संभव नहीं हो पाया… इतिहास की किताबों में 11 से 15वीं सदी के कालखंड में मंदिरों का जिक्र और उसके विध्वंस की बातें भी सामने आती हैं… मोहम्मद तुगलक (1325) के समकालीन लेखक जिनप्रभ सूरी ने किताब ‘विविध कल्प तीर्थ’ में लिखा है कि बाबा विश्वनाथ को देव क्षेत्र कहा जाता था। लेखक फ्यूरर ने भी लिखा है कि फिरोजशाह तुगलक के समय कुछ मंदिर मस्जिद में तब्दील हुए थे… 1460 में वाचस्पति ने अपनी पुस्तक ‘तीर्थ चिंतामणि’ में वर्णन किया है कि अविमुक्तेश्वर और विशेश्वर एक ही लिंग है।

वामपंथी (हिन्दू विरोधी), सेक्युलर विचारधारा के इतिहासकार मंदिर को तोडना सही ठहराते है ये देश द्रोही इतिहासकार विदेशी मजहब से पैसे लेकर यही लिखे है >>>>>

सन 1669 ईस्वी में औरंगजेब अपनी सेना एवं हिन्दू राजा मित्रों के साथ वाराणसी के रास्ते बंगाल जा रहा था.रास्ते में बनारस आने पर हिन्दू राजाओं की पत्नियों ने गंगा में डुबकी लगा कर काशी विश्वनाथ मंदिर में पूजा करने की इच्छा व्यक्त की …जिसे औरंगजेब सहर्ष मान गया, और, उसने अपनी सेना का पड़ाव बनारस से पांच किलोमीटर दूर ही रोक दिया..फिर उस स्थान से हिन्दू राजाओं की रानियां पालकी एवं अपने अंगरक्षकों के साथ गंगाघाट जाकर गंगा में स्नान कर विश्वनाथ मंदिर में पूजा करने चली गई …पूजा के उपरांत सभी रानियां तो लौटी लेकिन कच्छ की रानी नहीं लौटी , जिससे औरंगजेब के सेना में खलबली गयी और, उसने अपने सेनानायक को रानी को खोज कर लाने का हुक्म दिया …औरंगजेब का सेनानायक अपने सैनिकों के साथ रानी को खोजने मंदिर पहुंचा … जहाँ, काफी खोजबीन के उपरांत “”भगवान गणेश की प्रतिमा के पीछे”” से नीचे की ओर जाती सीढ़ी से मंदिर के तहखाने में उन्हें रानी रोती हुई मिली…. जिसकी अस्मिता और गहने मंदिर के पुजारी द्वारा लुट चुके थे …इसके बाद औरंगजेब के लश्कर के साथ मौजूद हिन्दू राजाओ ने मंदिर के पुजारी एवं प्रबंधन के खिलाफ कठोरतम करवाई की मांग की…जिससे विवश होकर औरंगजेब ने सभी पुजारियों को दण्डित करने एवं उस “”विश्वनाथ मंदिर”” को ध्वस्त करने के आदेश देकर मंदिर को तोड़वा दिया उसी जगह ज्ञानवापी मस्जिद बना दी…..

हिन्दू विरोधी इन इतिहासकारों कि कहानी का झूठ >>>>>

झूठ न.1-औरंगजेब कभी भी बनारस और बंगाल नहीं गया था.उसकी जीवनी में भी यह नहीं लिखा है.किसी भी इतिहास कि किताब में यह नहीं लिखा है. उसकी इन यात्राओ का जिक्र नही…

झूठ न.2- इस लुटेरे हत्यारे ऐयाश औरंगजेब ने हजारो मंदिरों को तोड़ा था..इसलिए इन इतिहासकारों की लिखे हुए इतिहास कूड़ा में फेकने के लायक है..और ये वामपंथी इतिहासकार इस्लाम से पैसे लेकर ”हिन्दुओ के विरोध ”में आज भी बोलते है लिखते है..किन्तु ये इतिहासकार मुसलमानों को अत्याचारी
नहीं कहते है.. मुग़ल इस देश के युद्ध अपराधी है…यह भी कहने और लिखने की हिम्मत इन इतिहासकारों में नहीं है…

झूठ न.3-युद्ध पर जाते मुस्लिम शासक के साथ हिन्दू राजा अपनी पत्नियों को साथ नहीं ले जा सकते है.क्योकि मुस्लिम शासक लूट पाट में औरतो को बंदी बनाते थे.

झूठ न.4- जब कच्छ की रानी तथा अन्य रानिया अपने अंगरक्षकों के साथ मंदिर गयी थी.तब किसी पुजारी या महंत द्वारा उसका अपहरण कैसे संभव हुआ. पुजारी द्वारा ऐसा करते हुए किसी ने क्यों नहीं देखा.…

झूठ न.5- अगर, किसी तरह ये न हो सकने वाला जादू हो भी गया था तो साथ के हिन्दू राजाओं ने पुजारी को दंड देने एवं मंदिर को तोड़ने का आदेश देने के लिए औरंगजेब को क्यों कहा. हिन्दू
राजाओं के पास इतनी ताकत थी कि वो खुद ही उन पुजारियों और मंदिर प्रबंधन को दंड दे देते…

झूठ न.6 -क्या मंदिरों को तोड़कर वहां पर मस्जिद बनाने की प्रार्थना भी साथ गए हिन्दू राजाओं ने ही की थी.

झूठ न.7 -मंदिर तोड़ने के बाद और पहले के इतिहास में उस तथाकथित कच्छ की रानी का जिक्र क्यों नहीं है…

इन सब सवालों के जबाब किसी भी वामपंथी (हिन्दू विरोधी) इतिहासकार के पास नहीं है क्योंकि यह एक पूरी तरह से मनगढंत कहानी है…. जो वामपंथी (हिन्दू विरोधी) इतिहासकारों ने इतिहास की किताबो में अपने निजी स्वार्थ और लालच के लिए लिखी……

हकीकत बात ये है कि औरंगजेब मदरसे में पढ़ा हुआ एक कट्टर मुसलमान और जेहादी था,लुटेरा हत्यारा अरबी मजहब का औरंगजेब ने हिन्दुओं को अपमानित करने के लिए,हिन्दू धर्म को समाप्त करने के लिए ना सिर्फ काशी विश्वनाथ बल्कि, कृष्णजन्म भूमि मथुरा के मंदिर अन्य सभी प्रसिद्द मंदिरों को ध्वस्त कर वहां मस्जिदों का निर्माण करवा दिया था…..जिसे ये मनहूस वामपंथी सेक्युलर इतिहासकार किसी भी तरह से न्यायोचित ठहराने में लगे हुए हैं….

और .. अपने पुराने विश्वनाथ मंदिर की स्थिति ये है कि…..वहां औरंगजेब द्वारा बनवाया गया ज्ञानवापी मस्जिद आज भी हम हिन्दुओं का मुंह चिढ़ा रहा है … और, मुल्ले उसमे नियमित नमाज अदा करते हैं…..जबकि आज भी ज्ञानवापी मस्जिद के दीवारों पर हिन्दू देवी -देवताओं के मूर्ति अंकित हैं.ज्ञानवापी मस्जिद के दीवार में ही श्रृंगार गौरी की पूजा हिन्दू लोग वर्ष में 1 बार करने जाते है. और मस्जिद के ठीक सामने भगवान विश्वनाथ की नंदी विराजमान है….!

इसीलिए…..हे हिन्दुओं जागो–जानो अपने सही इतिहास को क्योंकि इतिहास की सही जानकारी ही….. इतिहास की पुनरावृति को रोक सकती है…!

Rss Kailash Sharma's photo.
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Posted in भारतीय मंदिर - Bharatiya Mandir

मंदार पर्वत, जिससे समुद्र-मंथन हुआ था. कहाँ है वह ?


मंदार पर्वत, जिससे समुद्र-मंथन हुआ था. कहाँ है वह ?
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मंदार पर्वत, वही जिसे मथानी बना कर समुद्र-मंथन किया गया था। कहां है वह ? क्या उसका अस्तित्व है ?
यदि उस मूक साधक को देखना चाहते हैं तो आपको बिहार के बांका जिले के बौंसी गांव तक जाना पड़ेगा। यह करीब सात सौ फुट ऊंची पहाड़ी भागलपुर से 30-35 मील दूर स्थित है। जहां रेल या बस किसी से भी सुविधापूर्वक जाया जा सकता है। बौंसी से इसकी दूरी करीब पांच मील की है।
जब समुद्र मंथन किया गया तो मंदार पर्वत को मथनी और उस पर वासुकी नाग को लपेट कर रस्सी का काम लिया गया था। पर्वत पर अभी भी धार दार लकीरें दिखती हैं जो एक दूसरे से करीब छह फुट की दूरी पर बनी हुई हैं और ऐसा लगता है कि किसी गाड़ी के टायर के निशान हों। ये लकीरें
किसी भी तरह मानव निर्मित नहीं लगतीं। जन विश्वास है कि समुद्र मंथन के दौरान वासुकी के शरीर की रगड़ से यह निशान बने हैं। मंथन के बाद जो हुआ वह अलग कहानी है। पर अभी भी पर्वत के ऊपर शंख-कुंड़ में एक विशाल शंख की आकृति स्थित है। कहते हैं शिवजी ने इसी महाशंख से विष
पान किया था।
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पुराणों के अनुसार एक बार विष्णुजी के कान के मैल से मधु और कैटभ नाम के दो राक्षस भाईयों का जन्म हुआ। पर धीरे-धीरे इनका उत्पात इतना बढ गया कि सारे देवता इनसे भय खाने लगे। हद से गुजरने के बाद आखिर इन्हें खत्म करने के लिए विष्णुजी को इनसे युद्ध करना पड़ा। इसमें भी मधु का अंत करने में विष्णुजी परेशान हो गये। हजारों साल के
युद्ध के बाद अंत में उन्होंने उसका सिर काट उसे मंदार पर्वत के नीचे दबा दिया। पर उसकी वीरता से प्रसन्न हो कर उसके सिर की आकृति पर्वत पर बना दी गयी। जो अब यहां आने वालों के लिए दर्शनीय स्थल बन चुकी है।
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वैसे तो यहां अनगिनत सरोवर और मंदिर हैं, सबकी अपनी-अपनी कहानी भी है पर पर्वत के नीचे बने जल-कुंड़ का अपना महत्व है। इसके पानी को रोगों से मुक्ति दिलाने वाला माना जाता है।
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तस्वीर में मंदार पर स्थित मधु दैत्य की विशाल आकृति! इसी पर्वत पर भगवान विष्णु ने मधु दैत्य का वध किया
था ! इसी कारणवश विष्णु का नाम “मधुसूदन” पड़ा! यह पर्वत श्रष्टि के आदि मेँ उत्पन्न हुआ था, जो पृथ्वी की मूल नाभि है! मंदार क्षेत्र मेँ ही पृथ्वी सर्वप्रथम अस्तित्व मेँ आई, इसलिए पृथ्वी का प्रथम नाम “मेदिनी” है!

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क्या इन मुद्दों की CBI जाँच नहीं होनी चाहिए


क्या इन मुद्दों की CBI जाँच नहीं होनी चाहिए …
1- रानी लक्ष्मी बाई की मौत के पीछे सिंधिया परिवार का कितना हाथ था ??
2- चन्द्र शेखर आज़ाद की मृत्यु नेहरू के घर पर गरमा गरम बहस के कुछ घंटे बाद ही क्यों हो जाती है ??
3- भगत सिंह के पहचान में मुख्य भूमिका निभाने वाले शोभा सिंह से ऐसा कांग्रेसियों का कौन सा प्रेम है जो उसके नाम पर दिल्ली में सरकारी इमारतों का नाम रखवा दिया ??
4- नेता जी सुभाष चन्द्र बोस की मौत के पीछे नेहरु की कितनी भूमिका रही ??
5- लोर्ड माउंट बेटन की बीबी से नेहरू के ऐसे कौन से रिश्ते थे जिस कारण वह अंग्रेजो की हर बात मान लेते थे और भारत माता के दो टुकड़े करने के लिए राज़ी हो गए ??
6- सरदार पटेल जैसे महान नेता को नेपथ्य में धकेलने में नेहरू का कितना हाथ था ??
7- कश्मीर के मुद्दे को जान बुझकर अपने कश्मीरी रिश्तेदारों के कारण लटकाकर रखने में नेहरू की कितनी भूमिका थी ??
8- नेहरु के समय जनसंघ के महान नेता श्यामा प्रसाद के मौत के पीछे नेहरु की कितनी भूमिका रही ??
9- लाल बहादुर शास्त्री के मौत में इंदिरा गांधी का क्या योगदान था ??
10- जनसंघ के महान विचारक और प्रसिद्द दार्शनिक पंडित दीन दयाल उपाध्याय एवं श्यामा प्रसाद मुख़र्जी की मौत में इंदिरा गांधी एवं कांग्रेस की क्या भूमिका थी ??
11- संजय गांधी के मौत में इंदिरा गांधी का क्या योगदान रहा ??
12- इंदिरा गांधी के गोली मारे जाने के बाद सोनिया गांधी द्वारा उन्हें अस्पताल में ले जाने में की गयी देरी जान बूझकर थी या संयोग था, इसकी जांच क्यों न की जाय ??
13-भोपाल गैस त्रासदी के मुख्य अभियुक्त एंडरसन को देश से भगाने में गांधी परिवार का क्या योगदान रहा ??
14- 1984 में दंगाईयो को भड़का कर लाखों सिक्ख भाइयो को मरवाने वाला कौन है ??
15- माधव राव ऐसा कौन सा राज़ जानते थे जिसके कारण उनकी असामयिक मौत हो गयी ??
16- राजेश पायलेट की असामयिक मृत्यु के पीछे किसका हाथ हैं ??
17- क्वात्रोची के बंद खातो को चुपके से बिना देश को बताये चालू कर देने के पीछे किसका हाथ था ??
18- रोबेर्ट वाड्रा के परिवार वालो के रहस्यमय मौत की जिम्मेवारी किस पर है ??
19- सुल्तानपुर के गेस्ट हाउस में रात को शराब पीकर अपने अंग्रेज मित्रो के साथ लड़की के साथ बलात्कार करने वाला कौन है ??
20- राहुल गांधी किस नियम के अंतर्गत अवैध होते हुए भी भारत में दोहरी नागरिकता ग्रहण किये हुए है ??
21- किस हैसियत से सोनिया गाँधी भारतीय वायुसेना के विमानों में सफर करती थी ??
22- रोबर्ट वाड्रा को किस अधिकार से एअरपोर्ट चेकिंग से छूट मिली हुई थी ??
23- सोनिया गाँधी का इलाज सरकारी खजाने से क्यों कराया जाता था , उन्हें ऐसी कौनसी बीमारी है जिसका इलाज भारत में नहीं हो सकता ??

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जय हिन्दुराष्ट्र

Jatin Divecha's photo.
Posted in गौ माता - Gau maata

गाय के घी के लाभ:


गाय के घी के लाभ:
आज खाने में घी ना लेना एक फेशन बन गया है . बच्चे के जन्म के बाद डॉक्टर्स भी घी खाने से मना करते है . दिल के मरीजों को भी घी से दूर रहने की सलाह दी जाती है .ये गौमाता के खिलाफ एक खतरनाक साज़िश है . रोजाना कम से कम २ चम्मच गाय का घी तो खाना ही चाहिए .
– यह वात और पित्त दोषों को शांत करता है .
– चरक संहिता में कहा गया है की जठराग्नि को जब घी डाल कर प्रदीप्त कर दिया जाए तो कितना ही भारी भोजन क्यों ना खाया जाए , ये बुझती नहीं .
– बच्चे के जन्म के बाद वात बढ़ जाता है जो घी के सेवन से निकल जाता है . अगर ये नहीं निकला तो मोटापा बढ़ जाता है .
– हार्ट की नालियों में जब ब्लोकेज हो तो घी एक ल्यूब्रिकेंट का काम करता है .
– कब्ज को हटाने के लिए भी घी मददगार है .
– गर्मियों में जब पित्त बढ़ जाता है तो घी उसे शांत करता है .
– घी सप्तधातुओं को पुष्ट करता है .
– दाल में घी डाल कर खाने से गेस नहीं बनती .
– घी खाने से मोटापा कम होता है .
– घी एंटी ओक्सिदेंट्स की मदद करता है जो फ्री रेडिकल्स को नुक्सान पहुंचाने से रोकता है .
– वनस्पति घी कभी न खाए . ये पित्त बढाता है और शरीर में जम के बैठता है .
– घी को कभी भी मलाई गर्म कर के ना बनाए . इसे दही जमा कर मथने से इसमें प्राण शक्ति आकर्षित होती है . फिर इसको गर्म करने से घी मिलता है

अध्यापक भारत's photo.
Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

मांस का मूल्य


(मांस का मूल्य )
मगध के सम्राट् श्रेणिक ने एक बार अपनी राज्य-सभा में पूछा कि- “देश की खाद्य समस्या को सुलझाने के लिए सबसे सस्ती वस्तु क्या है? ”
मंत्रि-परिषद् तथा अन्य सदस्य सोचमें पड़ गये। चावल, गेहूं, आदि पदार्थ तो बहुत श्रम बाद मिलते हैं और वह भी तब, जबकि प्रकृति का प्रकोप न हो। ऐसी हालत में अन्न तो सस्ता हो नहीं सकता। शिकार का शौक पालने वाले एक अधिकारी ने सोचा कि मांस ही ऐसी चीज है, जिसे बिना कुछ खर्च किये प्राप्त किया जा सकता है।
उसने मुस्कराते हुए कहा-
“राजन्! सबसे सस्ता खाद्य पदार्थ तो मांस है। इसे पाने में पैसा नहीं लगता और पौष्टिक वस्तु खाने को मिल जाती है।”
सबने इसका समर्थन किया, लेकिन मगध का प्रधान मंत्री अभय कुमार चुप रहा।
श्रेणिक ने उससे कहा, “तुम चुप क्यों हो? बोलो, तुम्हारा इस बारेमें क्या मत है?”
प्रधान मंत्री ने कहा, “यह कथन कि मांस सबसे सस्ता है, एकदम गलत है। मैं अपने विचार आपके समक्ष कल रखूंगा।”
रात होने पर प्रधानमंत्री सीधे उस सामन्त के महल पर पहुंचे, जिसने सबसे पहले अपना प्रस्ताव रखा था।
अभय ने द्वार खटखटाया।
सामन्त ने द्वार खोला। इतनी रात गये प्रधान मंत्री को देखकर वह घबरा गया। उनका स्वागत करते हुए उसने आने का कारण पूछा।
प्रधान मंत्री ने कहा –
“संध्या को महाराज श्रेणिक बीमार हो गए हैं। उनकी हालत खराब है। राजवैद्य ने उपाय बताया है कि किसी बड़े आदमी के हृदय का दो तोला मांस मिल जाय तो राजा के प्राण बच सकते हैं। आप महाराज के विश्ववास-पात्र सामन्त हैं। इसलिए मैं आपके पास आपके हृदय का दो तोला मांस लेने आया हूं। इसके लिए आप जो भी मूल्य लेना चाहें, ले सकते हैं। कहें तो लाख स्वर्ण मुद्राएं दे सकता हूं।”
यह सुनते ही सामान्त के चेहरे का रंग फीका पड़ गया। वह सोचने लगा कि जब जीवन ही नहीं रहेगा, तब लाख स्वर्ण मुद्राएं भी किस काम आएगी!
उसने प्रधान मंत्री के पैर पकड़ कर माफी चाही और अपनी तिजौरी से एक लाख स्वर्ण मुद्राएं देकर कहा कि इस धन से वह किसी और सामन्त के हृदय का मांस खरीद लें।
मुद्राएं लेकर प्रधानमंत्री बारी-बारी से सभी सामन्तों के द्वार पर पहुंचे और सबसे राजा के लिए हृदय का दो तोला मांस मांगा, लेकिन कोई भी राजी न हुआ। सबने अपने बचाव के लिए प्रधानमंत्री को एक लाख, दो लाख और किसी ने पांच लाख स्वर्ण मुद्राएं दे दी। इस प्रकार एक करोड़ से ऊपर स्वर्ण मुद्राओं का संग्रह कर प्रधान मंत्री सवेरा होने से पहले अपने महल पहुंच गए और समय पर राजसभा में प्रधान मंत्री ने राजा के समक्ष एक करोड़ स्वर्ण मुद्राएं रख दीं।
श्रेणिक ने पूछा, “ये मुद्राएं किसलिए हैं?”
प्रधानमंत्री ने सारा हाल कह सुनाया और बोले –
” दो तोला मांस खरीदने के लिए इतनी धनराशी इक्कट्ठी हो गई किन्तु फिर भी दो तोला मांस नहीं मिला। अपनी जान बचाने के लिए सामन्तों ने ये मुद्राएं दी हैं। अब आप सोच सकते हैं कि मांस कितना सस्ता है?”
जीवन का मूल्य अनन्त है। हम यह न भूलें कि जिस तरह हमें अपनी जान प्यारी होती है, उसी तरह सभी जीवों को अपनी जान प्यारी होती है ।
जियो और जीने दो
🐤?🐇🐏🐐?🐅🐃🐂🐖🐕🐆🐪🐃
प्राणी मात्र की रक्षा हमारा धर्म है..!!
शाकाहार अपनाओ… धन्यवाद!!

संजय कुमार's photo.
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भारत-विरोधी मुसलमानों का एक ऐसा षड्यंत्र जिसे पढ़ कर आपके दिमाग के चूल्हे हिल जायेगे


jai hind….

भारत-विरोधी मुसलमानों का एक ऐसा षड्यंत्र जिसे पढ़ कर आपके दिमाग के चूल्हे हिल जायेगे…. जिसे सरदार पटेल ने अपनी सूझबूझ से विफल क्या बिना किसी राजनैतिक दवाव में आये… अगर यह षड्यंत्र सफल हो जाता तो आज 1/4 भारत का हिस्सा पाकिस्तान में होता..!!

जिस समय ब्रिटिश भारत छोड़ रहे थे, उस समय यहाँ के 562 रजवाड़ों में से सिर्फ़ तीन को छोड़कर सभी ने भारत में विलय का फ़ैसला किया. ये तीन रजवाड़े थे कश्मीर, जूनागढ़ और हैदराबाद.

अंग्रेज़ों के दिनों में भी हैदराबाद की अपनी सेना, रेल सेवा और डाक तार विभाग हुआ करता था. उस समय आबादी और कुल राष्ट्रीय उत्पाद की दृष्टि से हैदराबाद भारत का सबसे बड़ा राजघराना था. उसका क्षेत्रफल 82698 वर्ग मील था जो कि इंग्लैंड और स्कॉटलैंड के कुल क्षेत्रफल से भी अधिक था…..हैदराबाद की आबादी का अस्सी फ़ीसदी हिंदू लोग थे जबकि अल्पसंख्यक होते हुए भी मुसलमान प्रशासन और सेना में महत्वपूर्ण पदों पर बने हुए थे…..उस पर तुर्रा ये भी था कि कट्टरपंथी क़ासिम राज़वी के नेतृत्व मे रज़ाकार हैदराबाद की आज़ादी के समर्थन में जन सभाएं कर रहे थे और उस इलाक़े से गुज़रने वाली ट्रेनों को रोक कर न सिर्फ़ ग़ैर-मुस्लिम यात्रियों पर हमले कर रहे थे बल्कि हैदराबाद से सटे हुए भारतीय इलाक़ों में रहने वाले लोगों को भी परेशान कर रहे थे.

निज़ाम, हैदराबाद के भारत में विलय के किस क़दर ख़िलाफ थे, इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने जिन्ना को संदेश भेजकर ये जानने की कोशिश की थी कि क्या वह भारत के ख़िलाफ़ लड़ाई में हैदराबाद का समर्थन करेंगे? (के एम मुंशी, एंड ऑफ़ एन एरा)…..कुलदीप नैयर ने अपनी आत्मकथा ‘बियॉंन्ड द लाइंस’ में लिखा है कि जिन्ना ने इसका इसका जवाब देते हुए कहा था कि वो मुट्ठी भर आभिजात्य वर्ग के लोगों के लिए पाकिस्तान के अस्तित्व को ख़तरे में नहीं डालना चाहेंगे.( जो भारत के मुसलमानो के मुह पर एक करारा तमाचा था )

उधर नेहरू माउंटबेटन की उस सलाह को गंभीरता से लेने के पक्ष में थे कि इस पूरे मसले का हल शांतिपूर्ण ढंग से किया जाना चाहिए….सरदार पटेल नेहरू के इस आकलन से सहमत नहीं थे. उनका मानना था कि उस समय का हैदराबाद ‘भारत के पेट में कैंसर के समान था,’ जिसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता था.

पटेल को इस बात का अंदाज़ा था कि हैदराबाद पूरी तरह से पाकिस्तान के कहने में था. यहां तक कि पाकिस्तान पुर्तगाल के साथ हैदराबाद का समझौता कराने की फ़िराक़ में था जिसके तहत हैदराबाद गोवा में बंदरगाह बनवाएगा और ज़रूरत पड़ने पर वो उसका इस्तेमाल कर सकेगा…..इतना ही नहीं हैदराबाद के निज़ाम अपने एक संवैधानिक सलाहकार सर वाल्टर मॉन्कटॉन के ज़रिए लॉर्ड माउंटबेटन से सीधे संपर्क में थे. मॉन्कटॉन के कंज़र्वेटिव पार्टी से भी नज़दीकी संबंध थे.

जब माउंटबेटन ने उन्हें सलाह दी कि हैदराबाद को कम से कम संवैधानिक सभा में तो अपना प्रतिनिधि भेजना चाहिए तो मॉन्कटॉन ने जवाब दिया था कि अगर वह ज़्यादा दवाब डालेंगे तो वे पाकिस्तान के साथ विलय के बारे में बहुत गंभीरता से सोचने लगेंगे..और तो और उन्होंने राष्ट्रमंडल का सदस्य बनने की भी इच्छा प्रकट की थी जिसे इटली सरकार ने ठुकरा दिया था (इंदर मल्होत्रा, द हॉरसेज़ दैट लेड ऑपरेशन पोलो)

निजाम ने भारत के खिलाफ विद्रोह करने की पूरी तैयारी कर ली थी…. निज़ाम के सेनाध्यक्ष मेजर जनरल एल एदरूस ने अपनी किताब ‘हैदराबाद ऑफ़ द सेवेन लोव्स’ में लिखा है कि निज़ाम ने उन्हें ख़ुद हथियार ख़रीदने यूरोप भेजा था. लेकिन वह अपने मिशन में सफल नहीं हो पाए थे क्योंकि हैदराबाद को एक आज़ाद देश के रूप में मान्यता नहीं मिली थी….मज़े की बात ये थी कि एक दिन अचानक वह लंदन में डॉर्सटर होटल की लॉबी में माउंटबेटन से टकरा गए. माउंटबेटन ने जब उनसे पूछा कि वह वहाँ क्या कर रहे हैं तो उन्होंने झेंपते हुए जवाब दिया था कि वह वहाँ अपनी आंखों का इलाज कराने आए हैं..माउंटबेटन ने मुस्कराते हुए उन्हें आँख मारी. लेकिन इस बीच लंदन में निज़ाम के एजेंट जनरल मीर नवाज़ जंग ने एक ऑस्ट्रेलियाई हथियार विक्रेता सिडनी कॉटन को हैदराबाद को हथियारों की सप्लाई करने के लिए राज़ी कर लिया.

भारत को जब ये पता चला कि सिडनी कॉटन के जहाज़ निज़ाम के लिए हथियार ला रहे हैं तो उसने इन उड़ानों पर प्रतिबंध लगा दिया.

एक समय जब निज़ाम को लगा कि भारत हैदराबाद के विलय के लिए दृढ़संकल्प है तो उन्होंने ये पेशकश भी की कि हैदराबाद को एक स्वायत्त राज्य रखते हुए विदेशी मामलों, रक्षा और संचार की ज़िम्मेदारी भारत को सौंप दी जाए..लेकिन इस प्रस्ताव को अमली जामा इसलिए नहीं पहनाया जा सका क्योंकि वो रज़ाकारों के प्रमुख क़ासिम राज़वी को इसके लिए राज़ी नहीं करवा सके.

रज़ाकारों की गतिविधियों ने पूरे भारत का जनमत उनके ख़िलाफ़ कर दिया. 22 मई को जब उन्होंने ट्रेन में सफ़र कर रहे हिंदुओं पर गंगापुर स्टेशन पर हमला बोला तो पूरे भारत में सरकार की आलोचना होने लगी कि वो उनके प्रति नर्म रुख़ अपना रही है.

भारतीय सेना के पूर्व उपसेनाध्यक्ष लेफ़्टिनेंट जनरल एसके सिन्हा अपनी आत्मकथा स्ट्रेट फ्रॉम द हार्ट में लिखते हैं, “मैं जनरल करियप्पा के साथ कश्मीर में था कि उन्हें संदेश मिला कि सरदार पटेल उनसे तुरंत मिलना चाहते हैं. दिल्ली पहुंचने पर हम पालम हवाई अड्डे से सीधे पटेल के घर गए. मैं बरामदे में रहा जबकि करियप्पा उनसे मिलने अंदर गए और पाँच मिनट में बाहर आ गए. बाद में उन्होंने मुझे बताया कि सरदार ने उनसे सीधा सवाल पूछा जिसका उन्होंने एक शब्द में जवाब दिया.”

सरदार ने उनसे पूछा कि अगर हैदराबाद के मसले पर पाकिस्तान की तरफ़ से कोई सैनिक प्रतिक्रिया आती है तो क्या वह बिना किसी अतिरिक्त मदद के उन हालात से निपट पाएंगे? करियप्पा ने इसका एक शब्द का जवाब दिया ‘हाँ’ और इसके बाद बैठक ख़त्म हो गई.

इसके बाद सरदार पटेल ने हैदराबाद के ख़िलाफ़ सैनिक कार्रवाई को अंतिम रूप दिया. भारत के तत्कालीन सेनाध्यक्ष जनरल रॉबर्ट बूचर इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ थे. उनका कहना था कि पाकिस्तान की सेना इसके जवाब में अहमदाबाद या बंबई पर बम गिरा सकती है…दो बार हैदराबाद में घुसने की तारीख़ तय की गई लेकिन राजनीतिक दबाव के चलते इसे रद्द करना पड़ा ( क्युकी नेहरू नही चाहते थे सैन्य कार्यवाही ). निज़ाम ने गवर्नर जनरल राजगोपालाचारी से व्यक्तिगत अनुरोध किया कि वे ऐसा न करें.

राजा जी और नेहरू की बैठक हुई और दोनों ने कार्रवाई रोकने का फ़ैसला किया. निज़ाम के पत्र का जवाब देने के लिए रक्षा सचिव एचएम पटेल और वीपी मेनन की बैठक बुलाई गई…दुर्गा दास अपनी पुस्तक इंडिया फ़्रॉम कर्ज़न टू नेहरू एंड आफ़्टर में लिखते हैं, “जब पत्र के उत्तर का मसौदा तैयार हुआ तभी पटेल ने घोषणा की कि भारतीय सेना हैदराबाद में घुस चुकी है और इसे रोकने के लिए अब कुछ नहीं किया जा सकता.”

नेहरू और राजा जी चिंतित थे कि इससे पाकिस्तान जवाबी कार्रवाई करने के लिए प्रेरित हो सकता है लेकिन चौबीस घंटे तक पाकिस्तान की तरफ़ से कुछ नहीं हुआ तो उनकी चिंता मुस्कान में बदल गई.

हाँ, जैसे ही भारतीय सेना हैदराबाद में घुसी, पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री लियाक़त अली ख़ाँ ने अपनी डिफ़ेंस काउंसिल की बैठक बुलाई और उनसे पूछा कि क्या हैदराबाद में पाकिस्तान कोई ऐक्शन ले सकता है? बैठक में मौजूद ग्रुप कैप्टेन एलवर्दी (जो बाद में एयर चीफ़ मार्शल और ब्रिटेन के पहले चीफ़ ऑफ डिफ़ेंस स्टाफ़ बने) ने कहा ‘नहीं.’लियाक़त ने ज़ोर दे कर पूछा ‘क्या हम दिल्ली पर बम नहीं गिरा सकते हैं?’ एलवर्दी का जवाब था कि हाँ ये संभव तो है लेकिन पाकिस्तान के पास कुल चार बमवर्षक हैं जिनमें से सिर्फ़ दो काम कर रहे हैं.’ इनमें से एक शायद दिल्ली तक पहुँच कर बम गिरा भी दे लेकिन इनमें से कोई वापस नहीं आ पाएगा.’

भारतीय सेना की इस कार्रवाई को ऑपरेशन पोलो का नाम दिया गया क्योंकि उस समय हैदराबाद में विश्व में सबसे ज़्यादा 17 पोलो के मैदान थे…पांच दिनों तक चली इस कार्रवाई में 1373 रज़ाकार मारे गए. हैदराबाद स्टेट के 807 जवान भी खेत रहे. भारतीय सेना ने अपने 66 जवान खोए जबकि 97 जवान घायल हुए.

नोट – रजाकार एक निजी सेना (मिलिशिया) थी जो निजाम ओसमान अली खान आसफ जाह VII के शासन को बनाए रखने तथा हैदराबाद को नवस्वतंत्र भारत में विलय का विरोध करने के लिए बनाई थी। यह सेना कासिम रिजवी द्वारा निर्मित की गई थी। रजाकारों ने यह भी कोशिश की कि निजाम अपनी रियासत को भारत के बजाय पाकिस्तान में मिला दे। रजाकारों का सम्बन्ध ‘मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन’ नामक राजनितिक दल से था।

रजाकार के मुकाबले में स्वामी रामानंद तीर्थ के नेतृत्व में तेलंगाना के लोगोंं के साथ मिलकर आंध्र हिंदू महासभा का गठन किया और भारत के साथ राज्य के एकीकरण की मांग की। रजाकार तेलंगाना और मराठवाड़ा क्षेत्र में कई लोगों की नृशंस हत्या, बलात्कार आदि के लिए जिम्मेदार थे। आखिरकार, भारतीय सेना ने ऑपरेशन पोलो के दौरान रजाकर का खात्मा करके कासिम रज़वी को पकड़ लिया। शुरू में उसे जेल में बंद किया और फिर शरण प्रदान करके पाकिस्तान जाने वाली की अनुमति दी थी।

नोट – क्या था ऑपरेशन पोलो ?? किस तरह सरदार पटेल ने पहुंचा दिया था 2000 से भी ज्यादा भारत-विरोधी मुसलमानों को सीधा नर्क में… यह जानने के लिए इस लिंक को खोल के पढ़े

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Rss Kailash Sharma's photo.
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