Posted in भारतीय मंदिर - Bharatiya Mandir

कुतुब मीनार से भी ऊंचा है ये मंदिर, 200 फीट पर बैठे हैं 51 फीट के हनुमान>


कुतुब मीनार से भी ऊंचा है ये मंदिर, 200 फीट पर बैठे हैं 51 फीट के हनुमान>>>>>>>
इंदौर. इंदौर में स्थित अपने राम का निरालाधाम एक ऐसा मंदिर है जहां 108 बार राम लिखने पर ही प्रवेश मिलता है। मंदिर का न तो कोई संचालक है न ही पुजारी और न कोई ट्रस्ट। इतना ही नहीं यहां कोई दानपेटी भी नहीं है। यहां कभी ताला भी नहीं लगता। भक्तों को कई किमी दूर से ही दर्शन हों इसलिए मंदिर में 200 फीट ऊंचाई पर 51 फीट की हनुमान प्रतिमा का निर्माण चल रहा है। मूर्ति सिंहस्थ तक तैयार हो जाएगी। जबकी कुतुब मिनार की ऊंचाई 237 फीट है।
11 हजार स्क्वेयर फीट में बने मंदिर में सब ओर राम लिखा है। राम दरबार के अलावा यहां रावण, विभीषण, कुंभकर्ण, कैकेयी, शबरी सहित रामायण के अन्य पात्रों की भी मूर्तियां हैं। मंदिर के सेवक जय सियाराम ने बताया वे और उनकी पत्नी ही यहां पूजा और साफ-सफाई करते हैं। निर्माण कैसे चल रहा है और मंदिर का संचालन कैसे होता है? इस पर उन्होंने कहा- सब कुछ करने वाले रामजी और हनुमानजी है। भक्तों से जो चढ़ावा आता है, उससे धीरे-धीरे निर्माण हो रहा है। 1990 में मंदिर की स्थापना हुई थी, तब से अनवरत निर्माण हो रहा है।
तीन किमी दूर से भी होंगे हनुमानजी के दर्शन
जय सियाराम ने बताया मंदिर बनने के बाद अब क्षेत्र में कई मल्टियां बन गई हैं। भक्त आसानी से पहुंच जाएं, इसलिए 200 फीट ऊंचाई पर हनुमानजी की मूर्ति बनाना तय किया गया। मूर्ति पूर्ण होने के बाद तीन किमी दूर से हनुमानजी भक्तों को दर्शन देंगे। इनसेट चित्र- मंदिर में हर जगह राम-राम लिखा है, जिससे इसकी सुंदरता और बढ़ गई है।
परिवार सहित शिवजी की पूजा कर रहा है रावण
>ब्रह्माजी, विष्णुजी सहित अन्य देवी-देवता लिख रहे हैं रामनाम।
>मंदिर के मुख्य द्वार के ठीक ऊपर हनुमानजी विराजमान हैं, जो रामचरित मानस सुन रहे हैं।
>मंदिर में 70 फीट ऊंचे विष्णुजी के विराट स्वरूप का निर्माण भी चल रहा है। सालभर में यह कार्य भी पूरा हो जाएगा।
>मंदिर के गर्भगृह में (हनुमानजी के मंदिर) के ऊपर भगवान रामेश्वरम् सहित 12 ज्योतिर्लिंग विराजमान हैं, रावण इनकी पूजा कर रहा है। वहीं हनुमानजी के पीछे परिक्रमा स्थल पर पाताल भैरवी मां विराजमान है।
>रावण का एक अलग मंदिर है। इसमें विभीषण और रावण का परिवार है, जो शिवजी की पूजा कर रहे हैं। एक हिस्से में कुंभकर्ण भी है जो शयन कर रहे हैं।
>एक मंदिर सिर्फ राम नाम का है। यहां कोई मूर्ति नहीं है। सिर्फ चारों ओर रामनाम लिखा है।

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Posted in भारत का गुप्त इतिहास- Bharat Ka rahasyamay Itihaas

[राजनीतिक फायदा के लिए भारत को बर्बाद कर रहे]


jai hind….

[राजनीतिक फायदा के लिए भारत को बर्बाद कर रहे]
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भारत को महान देश कहा जाता है लेकिन इस महान देश में आपको बेवकूफी के कुछ ऐसे उदहारण देखने को मिलेंगे जो दुनिया के किसी देश में नहीं हैं…क्या कभी सुना है की किसी देश के लोग उन लोगों को सम्मान के साथ पुकारते हों जिन्होंने उनपर आक्रमण किया,उनकी बहु बेटियों का निर्ममता से बलात्कार किया और जबरन उनके पूर्वजों का धर्म परिवर्तन कराया..नहीं न लेकिन भारत में तो ये आम बात है
जी हाँ हम मुग़ल शासकों की ही बात कर रहे हैं
कौन थे मुग़ल??क्या किया था उन्होंने भारतवासियों के साथ??क्या वे सम्मान के लायक हैं??
दोस्तों इस से बड़ी बेशर्मी की बात नहीं हो सकती हमारे लिए की हम उन लोगों को सम्मान का दर्जा दें जिन्होंने न सिर्फ भारत की संस्कृति को नष्ट किया बल्कि असहनीय यातनाएं देकर हमारे पूर्वजों का जबरन धर्म परिवर्तन करवाया…
आखिर क्या कारण है की हमारे हिन्दू भाई इन मुग़लों को इतनी इज्ज़त देते हैं??इसमें सबसे मुख्य कारण है हमारे इतहास को तोड़ मरोड़ कर हमारे सामने पेश किया जाना.९९% हिन्दू ये समझते हैं की मुग़ल भी हमारे महान क्रांतिकारियों में से ही एक हैं लेकिन ये उन महान क्रांतिकारियों का अपमान है जो हम उनकी तुलना इन नीच अधर्मियों के साथ करें…जहां एक तरफ हमारे शूरवीरों ने अपने बलिदान से हमें इन क्रूर शासकों से आज़ादी दिलाई वहीँ इन मुगलों ने बाहर से आकर हमारे धर्म,हमारे मंदिर हमारी संस्कृति को इतना नुक्सान पहुंचाया की उसका परिणाम हम आज भी झेल रहे हैं.
दूसरा मुख्य कारण है हमारे देश की फिल्म इंडस्ट्री जिन्होंने “मुग़ल ऐ आज़म” और “टीपू सुलतान” नाम की फिल्मे बना कर बची खुची संस्कृति को भी नष्ट कर दिया…इन फिल्मों में उन्हें शूरवीर बताया गया जबकि सत्य इसके बिलकुल विपरीत है.
आज हालात ऐसे हैं की अगर किसीको सही इतहास पढ़ाने जाओ तो कहता है नहीं नहीं ये सब गलत है जो फिल्म में है वही सत्य है…इस कदर हमारे भोले भाले भारतवासियों के दिमाग इस जहर को भर दिया गया है…
मेरी आपसे केवल यही विनंती है की अगर आपके दिलों थोडा सा भी सम्मान महाराज शिवाजी और रानी लक्ष्मीबाई जैसे हमारे महान पूर्वजों के लिए बचा है तो आज से प्रतिज्ञा लें की इस जूठे इतहास को अब नहीं मानेगे..और न ही औरों को मानने देंगे

इस पोस्ट में व्यक्त विचार ब्लॉगर के अपने विचार है। यदि आपको इस पोस्ट में कही गई किसी भी बात पर आपत्ति हो तो
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Posted in आयुर्वेद - Ayurveda

मित्रो कई बार चोट लग जाती है और कुछ छोटे बहुत ही गंभीर हो जाती है। और अगर किसी डाईबेटिक पेशेंट( शुगर का मरीज ) है


मित्रो कई बार चोट लग जाती है और कुछ छोटे बहुत ही गंभीर हो जाती है। और अगर किसी डाईबेटिक पेशेंट( शुगर का मरीज ) है और चोट लग गयी तो उसका सारा दुनिया जहां एक ही जगह है, क्योंकि जल्दी ठीक ही नही होता है। और उसके लिए कितनी भी कोशिश करे डॉक्टर को हर बार सफलता नहीं मिलती और अंत में वो चोट धीरे धीरे गैंग्रीन (अंग का सड़ जाना) में कन्वर्ट हो जाती है। और फिर वो अंग काटना पड़ता है, उतने हिस्से को शारीर से निकालना पड़ता है।

पूरी post नहीं पढ़ सकते यहाँ click करें !
http://goo.gl/u4np2D

ऐसी परिस्तिथि में एक औषधि है जो गैंग्रीन को भी ठीक करती है और Osteomyelitis (अस्थिमज्जा का प्रदाह) को भी ठीक करती है। गैंग्रीन माने अंग का सड़ जाना, जहाँ पर नई कोशिकाएं विकसित नही होती । न तो मांस में और न ही हड्डी में !और सब पुरानी कोशिकाएं भी मरती जाती है । इसीका एक छोटा भाई है Osteomyelitis इसमें भी कोशिका कभी पुनर्जीवित नही होती

जिस हिस्से में ये होता है वहाँ बहुत बड़ा घाव हो जाता है और वो ऐसा सड़ता है के डॉक्टर कहता है की इसको काट के ही निकलना है और कोई दूसरा उपाय नही है।। ऐसे परिस्थिति में जहां शारीर का कोई अंग काटना पड़ जाता हो या पड़ने की संभावना हो, घाव बहुत हो गया हो उसके लिए आप एक औषधि अपने घर में तैयार कर सकते है।

औषधि है देशी गाय का मूत्र लीजिये (सूती के आठ परत कपड़ो में छान लीजिये ) ,
हल्दी लीजिये और गेंदे के फूल लीजिये । गेंदे के फुल की पीला या नारंगी पंखरियाँ निकलना है, फिर उसमे हल्दी डालकर गाय मूत्र डालकर उसकी चटनी बनानी है।

अब चोट का आकार कितना बढ़ा है उसकी साइज़ के हिसाब से गेंदे के फुल की संख्या तय होगी, माने चोट छोटे एरिया में है तो एक फुल, काफी है चोट बड़ी है तो दो, तीन,चार अंदाज़े से लेना है। इसकी चटनी बनाके इस चटनी को लगाना है जहाँ पर भी बाहर से खुली हुई चोट है जिससे खून निकल जुका है और ठीक नही हो रहा। कितनी भी दावा खा रहे है पर ठीक नही हो रहा, ठीक न होने का एक कारण तो है डाईबेटिस दूसरा कोई जैनेटिक कारण भी हो सकते है।

इसको दिन में कम से कम दो बार लगाना है जैसे सुबह लगाके उसके ऊपर रुई पट्टी बांध दीजिये ताकि उसका असर बॉडी पे रहे; और शाम को जब दुबारा लगायेंगे तो पहले वाला धोना पड़ेगा ! इसको गोमूत्र से ही धोना है डेटोल जैसो का प्रयोग मत करिए, गाय के मूत्र को डेटोल की तरह प्रयोग करे। धोने के बाद फिर से चटनी लगा दे। फिर अगले दिन सुबह कर दीजिये।

यह इतना प्रभावशाली है इतना प्रभावशाली है के आप सोच नही सकते देखेंगे तो चमत्कार जैसा लगेगा। यहाँ आप मात्र post पढ़ रहे लेकिन अगर आपने सच मे किया तब आपको इसका चमत्कार पता चलेगा !इस औषधि को हमेशा ताजा बनाके लगाना है। किसीका भी जखम किसी भी औषधि से ठीक नही हो रहा है तो ये लगाइए। जो सोराइसिस गिला है जिसमे खून भी निकलता है, पस भी निकलता है उसके लीजिये भी यह औषधि पूर्णरूप से ठीक कर देती है।

अकसर यह एक्सीडेंट के केस में खूब प्रोयोग होता है क्योंकि ये लगाते ही खून बंद हो जाता है। ऑपरेशन का कोई भी घाव के लिए भी यह सबसे अच्छा औषधि है। गिला एक्जीमा में यह औषधि बहुत काम करता है, जले हुए जखम में भी काम करता है।

पुरी post पढ़ने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद !

यहाँ जरूर click कर विस्तार से देखें !

https://www.youtube.com/watch?v=Ejugs7kKBuA

अधिक से अधिक share करें आपके एक share से बहुत से पीड़ित लोगो का
भला हो सकता है !

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Posted in PM Narendra Modi

कांग्रेसी पत्रकारों की अम्‍मा आज मरने वाली है


‪#‎संदीपदेव‬ । कांग्रेसी पत्रकारों की अम्‍मा आज मरने वाली है, क्‍योंकि उनके बप्‍पा को 60 साल शासन करने के बाद भी सार्क देशों को सड़क मार्ग से जोड़ने और पर्यटन बढ़ाने का आयडिया नहीं आया था! और सेक्‍यूलरों की अम्मी भी कब्र में जाने वाली है, क्‍योंकि बंग्‍लादेश के साथ मुस्लिम तुष्टिकरण नहीं, बल्कि विकासपरक समझौता जो हुआ है!

अब आप अपनी कार से बंग्‍लादेश की राजधानी ढाका भी जा सकेंगे और भूटान की राजधानी थिम्पू भी। PMO India मोदी सरकार ने भूटान, बांग्लादेश और नेपाल के साथ एक समझौते पर दस्तख़त किया है। इससे इन देशों के बीच आप अपने वाहन से यात्रा कर कसेंगे।

और हां एक और खुशखबरी, समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, म्यांमार और थाईलैंड भी सार्क देशों की तर्ज़ पर भारत के साथ समझौते के लिए सहमत हो गए हैं। भारत के परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री Nitin Gadkari ने कहा, ”तीनों देशों ने सार्क देशों की तर्ज़ पर समझौते के लिए सहमति जताई है.”

‘बैंकॉक वाले पप्‍पू किसान’ और ‘कबीर वाले फ्रॉड फोर्ड’ की ब्रांडिंग में लगे ‪#‎Presstitutes‬हाथ मलते हुए टीवी के पर्दे से आपके ड्रॉइंग रूम में दाखिल होंगे और कहेंगे, ‘जी, भले ही भारत में हर चौथा व्‍यक्ति भूखा हो, भले ही लोगों को दो जून की रोटी नसीब न हो, लेकिन आप बंग्‍लादेश व भूटान की यात्रा सड़क मार्ग से कर सकते हैं! हम समझते हैं कि किसान को भले ही मौत मिल रही हो, लेकिन आप रात का डिनर भूटान में कर सकते हैं! देश आखिर किस ओर बढ़ रहा है? जी, जनता के सरोकार पर हावी यही विकास है!”

हाथ मलना बंद, लाइट, कैमरा बंद, फोन शुरू, पहले बैंकॉक से पोदीन उखाड़ कर भारत लौटे किसान को और फिर हरिश्‍चंद्र भाई साहब को- ”एंकरिंग कैसी कही? राज्‍सभा कब भेजोगे अब तो दाढी भी सफेद हो रही है?”

दूसरा अंग्रेजी में कान फोड़ू अंदाज में चिल्‍लाएगा, ‘द बिग डिबेट.. पीएम मोदी इग्‍नोर द पब्लिक सेंटीमेंट! सिक्‍यूरिटी एक्‍सपर्ट सेज, दिस इस नॉट द परफेक्‍ट एग्रीमेंट फॉर इंडिया फॉर सिक्‍योरिटी पर्पस!’

मरो प्रेस्‍टीटयूटों! वैसे अभी चार साल तक तुमलोगों को न जाने कितनी बार मरना पड़े! मेरी सलाह है कि मोदी सरकार में तुम्‍हें रोज उछल-कूद मचाने का अवसर मिलता रहेगा, अत: धीरे-धीरे पहले अपने बाल नोंचना शुरू करो, बीपी बढ़ेगा फिर बिना सूर्य नमस्‍कार किए योग करो! 21 जून की व्‍यवस्‍था तुम जैसों के लिए ही किया गया है! हां, सूर्य नमस्‍कार भूल कर भी मत करना, वर्ना सांप्रदायिक हो जाओगे, समझे!

योग से फ्रस्‍ट्रेशन कम न हो तो में घर में अपनी बीबी/पति और बच्‍चों पर खूब चिल्‍लाओ! मोदी सरकार आने के बाद से तुम्‍हारे घर की बातचीत कुछ इस तरह होती होगी- ”पिछली बार इटली के राजनीतिक सलाहकार ने यूरोप यात्रा स्‍पॉंन्‍सर्ड किया था, इस बार क्‍या कर रहे हो तुम? दिल्‍ली में गर्मी बहुत है और पूरा जून निकलने वाला है?” और फिर तुम घिघियाते हुए कहोगे, ‘ड्रार्लिंग अगले चार साल तक दो जून की रोटी से ही सब्र करो! चार साल बाद इटली के सलाहकार भाई साहब फिर फिनांस करने की स्थिति में होंगे तब घूमने चलेंगे!’ इसी तरह ख्‍यालीपुलाव पकाते और उसे ही खाते रहो! स्‍वीट ड्रीम ‪#‎प्रेस्‬‍टीटयूटों…!!Sandeep Kumar Deo ‪#‎SandeepDeo‬

Posted in भारत गौरव - Mera Bharat Mahan

Ancient Indian theories lacked an empirical base,


Ancient Indian theories lacked an empirical base, but they were brilliant imaginative explanations of the physical structure of the world, and in a large measure, agreed with the discoveries of modern physics.
– A.L. Basham, Australian Indologist
It would be surprising for many Indians today to know that the concepts of atom (Ann, Parmanu) and relativity (Sapekshavada) were explicitly stated by an Indian philosopher nearly 600 years before the birth of Christ. These ideas which were of fundamental import had been developed in India in a very abstract manner. This was so as their exponents were not physicians in today’s sense of the term. They were philosophers and their ideas about the physical reality were integrated with those of philosophy and theology….
READ COMPLETE ARTICLE HERE >> https://goo.gl/

It would be surprising for many Indians today to know that the concepts of atom (Ann, Parmanu) and relativity (Sapekshavada) were explicitly stated by an…
SANSKRITIMAGAZINE.COM
Posted in भारतीय शिक्षा पद्धति

भारत में अंग्रेजों के समय से जो इतिहास पढाया जाता है


jai hind…

भारत में अंग्रेजों के समय से जो इतिहास पढाया जाता है, वह चन्द्रगुप्त मौर्य के वंश से आरम्भ होता है। उस से पूर्व के इतिहास को ‘प्रमाण-रहित’ कह कर नकार दिया जाता है. हमारे ‘देसी अंग्रेजों’ को यदि सर जान मार्शल प्रमाणित नहीं करते तो हमारे ’बुद्धिजीवियों’को विशवास ही नहीं होना था कि हडप्पा और मोइन जोदडो स्थल ईसा से लगभग 5000 वर्ष पूर्व के समय के हैं और वहाँ पर ही विश्व की प्रथम सभ्यता ने जन्म लिया था……
विदेशी इतिहासकारों के उल्लेख विश्व की प्राचीनतम् सिन्धु घाटी सभ्यता मोइन जोदडो के बारे में पाये गये उल्लेखों को सुलझाने के प्रयत्न अभी भी चल रहे हैं. जब पुरातत्व शास्त्रियों ने पिछली शताब्दी में मोइन जोदडो स्थल की खुदाई के अवशेषों का निरीक्षण किया था तो उन्हों ने देखा कि वहाँ की गलियों में नर-कंकाल पडे थे। कई अस्थि पिंजर चित अवस्था में लेटे थे और कई अस्थि पिंजरों ने एक दूसरे के हाथ इस तरह पकड रखे थे. मानों किसी विपत्ति नें उन्हें अचानक उस अवस्था में पहुँचा दिया था। उन नर कंकालों पर उसी प्रकार की रेडियो – ऐक्टीविटी के चिन्ह थे जैसे कि जापानी नगर हिरोशिमा और नागासाकी के कंकालों पर एटम बम विस्फोट के पश्चात देखे गये थे…….
मोइन जोदडो स्थल के अवशेषों पर नाईट्रिफिकेशन के जो चिन्ह पाये गये थे, उस का कोई स्पष्ट कारण नहीं था. क्यों कि ऐसी अवस्था केवल अणु बम के विस्फोट के पश्चात ही हो सकती है…..
मोइनजोदडो की भूगोलिक स्थिति मोइन जोदडो सिन्धु नदी के दो टापुओं पर स्थित है। उस के चारों ओर दो किलोमीटर के क्षेत्र में तीन प्रकार की तबाही देखी जा सकती है, जो मध्य केन्द्र से आरम्भ हो कर बाहर की तरफ गोलाकार फैल गयी थी।
पुरात्तव विशेषज्ञ्यों ने पाया कि मिट्टी चूने के बर्तनों के अवशेष किसी ऊष्णता के कारण पिघल कर ऐक दूसरे के साथ जुड गये थे। हजारों की संख्या में वहां पर पाये गये ढेरों को पुरात्तव विशेषज्ञ्यों ने काले पत्थरों ‘बलैक -स्टोन्स’ की संज्ञा दी. वैसी दशा किसी ज्वालामुखी से निकलने वाले लावे की राख के सूख जाने के कारण होती है। किन्तु मोइन जोदडो स्थल के आस पास कहीं भी कोई ज्वालामुखी की राख जमी हुयी नहीं पाई गयी…..
निशकर्ष यही हो सकता है कि किसी कारण अचानक ऊष्णता 2000 डिग्री तक पहुँची, जिस में चीनी मिट्टी के पके हुये बर्तन भी पिघल गये. अगर ज्वालामुखी नहीं था तो इस प्रकार की घटना अणु बम के विस्फोट पश्चात ही घटती है…..
महाभारत के आलेख इतिहास मौन है. परन्तु महाभारत युद्ध में महा संहारक क्षमता वाले अस्त्र शस्त्रों और विमान रथों के साथ ऐक एटामिक प्रकार के युद्ध का उल्लेख भी मिलता है…..
महाभारत में उल्लेख है कि मय दानव के विमान रथ का परिवृत 12 क्यूबिट था और उस में चार पहिये लगे थे। देव दानवों के इस युद्ध का वर्णन स्वरूप इतना विशाल है, जैसे कि हम आधुनिक अस्त्र शस्त्रों से लैस सैनाओं के मध्य परिकल्पना कर सकते हैं। इस युद्ध के वृतान्त से बहुत महत्वशाली जानकारी प्राप्त होती है। केवल संहारक शस्त्रों का ही प्रयोग नहीं, अपितु इन्द्र के वज्र अपने चक्रदार रफलेक्टर के माध्यम से संहारक रूप में प्रगट होता है। उस अस्त्र को जब दाग़ा गया तो ऐक
विशालकाय अग्नि पुंज की तरह उस ने अपने लक्ष्य को निगल लिया था। वह विनाश कितना भयावह था इसका अनुमान महाभारत के निम्न स्पष्ट वर्णन से लगाया जा सकता हैः…..
“अत्यन्त शक्तिशाली विमान से ऐक शक्ति – युक्त अस्त्र
प्रक्षेपित किया गया. धुएँ के साथ अत्यन्त चमकदार ज्वाला, जिस की चमक दस हजार सूर्यों के चमक के बराबर थी, का अत्यन्त भव्य स्तम्भ उठा. वह वज्र के समान अज्ञात अस्त्र साक्षात् मृत्यु का भीमकाय दूत था, जिसने वृष्ण और अंधक के समस्त वंश को भस्म करके राख बना दिया. उनके शव इस प्रकार से जल गए थे कि पहचानने योग्य नहीं थे. उनके बाल और नाखून अलग होकर गिर गए थे. बिना किसी प्रत्यक्ष कारण के बर्तन टूट गए थे और पक्षी सफेद पड़ चुके थे. कुछ ही घण्टों में समस्त खाद्य पदार्थ संक्रमित होकर विषैले हो गए. उस अग्नि से बचने के लिए योद्धाओं ने स्वयं को अपने अस्त्र-शस्त्रोंसहित जलधाराओं में डुबा लिया”……
उपरोक्त वर्णन दृश्य रूप में हिरोशिमा और नागासाकी के परमाणु विस्फोट के दृश्य जैसा दृष्टिगत होता है…..
ऐक अन्य वृतान्त में श्री कृष्ण अपने प्रतिदून्दी शल्व का आकाश में पीछा करते हैं। उसी समय आकाश में शल्व का विमान ‘शुभः’ अदृष्य हो जाता है। उस को नष्ट करने के विचार से श्री कृष्ण नें ऐक ऐसा अस्त्र छोडा, जो आवाज के माध्यम से शत्रु को खोज कर उसे लक्ष्य कर सकता था। आजकल ऐसे मिस्साईल्स को हीट- सीकिंग और साऊड-सीकरस कहते हैं और आधुनिक सैनाओं दूारा प्रयोग किये जाते हैं……
राजस्थान से भी…
प्राचीन भारत में परमाणु विस्फोट के अन्य और भी अनेक साक्ष्य मिलते हैं। राजस्थान में जोधपुर से पश्चिम दिशा में लगभग दस मील की दूरी पर तीन वर्गमील का एक ऐसा क्षेत्र है, जहाँ पर रेडियोएक्टिव राख की मोटी सतह पाई जाती है. वैज्ञानिकों ने उसके पास एक प्राचीन नगर को खोद निकाला है, जिसके समस्त भवन और लगभग पाँच लाख निवासी आज से लगभग 8,000 से 12,000 साल पूर्व किसी विस्फोट के कारण नष्ट हो गए थे……
‘लक्ष्मण-रेखा’ प्रकार की अदृष्य ‘इलेक्ट्रानिक फैंस’ तो कोठियों में आज कल पालतु जानवरों को सीमित रखने के लिये प्रयोग की जातीं हैं, अपने आप खुलने और बन्द होजाने वाले दरवाजे किसी भी माल में जा कर देखे जा सकते हैं। यह सभी चीजे पहले आशचर्य जनक थीं, परन्तु आज ऐक आम बात बन चुकी हैं…
‘मन की गति से चलने वाले’ रावण के पुष्पक-विमान का ‘प्रोटोटाईप’ भी उडान भरने के लिये चीन ने बना लिया है…..
निस्संदेह रामायण तथा महाभारत के ग्रंथकार दो प्रथक-प्रथक ऋषि थे और आजकल की सैनाओं के साथ उन का कोई सम्बन्ध नहीं था। वह दोनो महाऋषि थे और किसी साईंटिफिक – फिक्शन के थ्रिल्लर – राईटर नहीं थे। उन के उल्लेखों में समानता इस बात की साक्षी है कि तथ्य क्या है और साहित्यक कल्पना क्या होती है? कल्पना को भी विकसित होने के लिये किसी ठोस धरातल की आवश्यक्ता होती है…
हमारे प्राचीन ग्रंथों में वर्णित ब्रह्मास्त्र, आग्नेयास्त्र जैसे अस्त्र अवश्य ही परमाणु शक्ति से सम्पन्न थे. किन्तु हम स्वयं ही अपने प्राचीन ग्रंथों में वर्णित विवरणों को मिथक मानते हैं और उनके आख्यान तथा उपाख्यानों को कपोल कल्पना….
हमारा ऐसा मानना केवल हमें मिली दूषित शिक्षा का परिणाम है जो कि अपने धर्मग्रंथों के प्रति आस्था रखने वाले पूर्वाग्रह से युक्त, पाश्चात्य विद्वानों की देन है. पता नहीं, हम कभी इस दूषित शिक्षा से मुक्त होकर अपनी शिक्षानीति के अनुरूप शिक्षा प्राप्त कर भी पाएँगे या नहीं??…..
खुद को भारतीय कहने वालो गर्व करो….

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ANCIENT ART BY KAKATIYAS ,BEAUTIFUL CARVING AND ART.KOTA GULLU TEMPLES .GROUP OF GHANPUR TEMPLES


ANCIENT ART BY KAKATIYAS ,BEAUTIFUL CARVING AND ART.KOTA GULLU TEMPLES .GROUP OF GHANPUR TEMPLES

Located in the Ghanpur Mandal at a distance of about 39 kms from Warangal, the Ghanpur Group of Temples are another spectacular piece of architecture belonging to the Kakatiyan era. They are more popularly known amongst the locals as Kota Gullu. The Ghanpur Temples bear a strong similarity to their more impressive contemporary the Ramappa Temple and therefore can be assumed to have also been built during the reign of King Ganapatideva of Kakatiya Dynasty
The Kota Gullu is a motley collection of 20-22 temples of varying shapes and sizes. The biggest and also the most famous of these is dedicated to the worship of Lord Shiva. It can also easily be identified as being the main temple. This temple showcases a rich display of carvings on its walls, balconies and porches and highlights the architectural genius and superb workmanship of the Kakatiyan craftsmen.
Ghanpur Group of Temples Warangal
Ghanpur Group of Temples Warangal – Image Courtesy:rebelchandu.blogspot.com
Towards the north of the main temple there exists another smaller temple. Though in ruins, the temple still houses a red polished Shiva Lingam in its inner chamber. In addition to this, the main temple is circled by 19 smaller temples each with a Garbagriha and an Antarala.
Rock cut architecture has been raised to amazing levels on the walls, ceilings and gateways of these temples. Flowers and figures have been effortlessly carved out of solid granite rocks to create designs of absolute beauty. Stories from the Shiva Purana are also found engraved on beams above the door of the main temple. It is a treat to the eyes and should not be missed.
Recent excavations have also unearthed some equally fantastic sculptures. Notable amongst these are the ones of Shiva holding a snake (sarpa) in one hand and a damru (little hand drum) in the other hand; there is another one of Lord Vishnu holding the chakra (wheel) in one hand and the Gada (mace) in the other. These are not only of religious significance but also speak volumes for the expert craftsmanship of the medieval sculptors.

"KOTA GULLU TEM, GHANPUR .TELANGANA"
"KOTA GULLU TEM, GHANPUR .TELANGANA"
"KOTA GULLU TEM, GHANPUR .TELANGANA"
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4,000 Year Old Vishnu Statue Discovered in Vietnam


4,000 Year Old Vishnu Statue Discovered in Vietnam

Growing INDIA, Growing Ourselves & making INDIA a better place to live in's photo.

4,000 Year Old Vishnu Statue Discovered in Vietnam
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According to a press release from the Communist Party of Vietnam’s Central Committee (CPVCC) the Vishnu sculpture is described as “Vishnu stone head from Oc Eo culture, dated back 4,000-3,500 years.”

This discovery of a 4,000 to 3,500 year old Vishnu sculpture is truly historic and it sheds new light upon our understanding of the history of not only Hinduism but of the entire world.

The 4000-3500 year old Vietnamese Vishnu sculpture is part of an exhibit featuring some of Vietnam’s most ancient artifacts. It was discovered in the region of Southern Vietnam’s Mekong Delta. The Mekong (Ma Ganga) River is named after the Ganges River of India. The entire region was once the home to several ancient and prosperous Vedic Kingdoms and many intriguing and unique Vedic artifacts have been discovered.

The Vishnu sculpture was officially presented during the 5th Quang Nam Heritage Festival in Hoi An City. The exhibition highlights many ancient objects dated from the Dong Son – Sa Huynh – Oc Eo eras of Vietnam’s ancient history.

The significance of this discovery cannot be overestimated. The entire history of Hinduism and Vedic culture, as taught is the academic institutions of the world, has been built upon a false construct.

This completely undermines the entire historic timeline developed by mainstream academia in regards to the development of both Vedic/Hindu civilization and Indian history.

The region of modern India has always been the epicenter of High Vedic/Hindu Civilization and culture. No one anywhere has ever suggested the region of modern Vietnam to be the origin of Hindu civilization yet it is in Vietnam that we now have the world’s most ancient example of Indic style Vedic Vaishnava art. Thus it stands to reason that if Vedic Vaishnava art, culture and religion flourished 4000 years ago in prehistoric Vietnam it was undoubtedly flourishing in ancient India as well.

Once again science and archeology have confirmed the Vedic conclusion. As the Vedic literature states 5000 years ago India was home to a highly evolved and advanced civilization. This civilization was centered on its sacred traditions. The worship of the Supreme Lord Vishnu, Lord Shiva, Lakshmi and Durga was widespread and in fact spanned the entire globe.

These traditions presented themselves in diverse manners, as seen in modern India, yet among this diversity was a commonality based upon the authority of the Vedic scriptures and traditions. The recognizably Indic forms of the Vedic traditions spanned the globe from the Philippines to the Middle East and Siberia to Australia. Yet the same Divinities were worshiped and the same traditions were practiced throughout the world.