बृहस्पति पुत्र कच व शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी –
बार-बार देवताओ और राक्षसों में युद्ध होता रहा देवता जीतते हुए भी युद्ध हार जाते थे क्यों की राक्षसों के गुरु शुक्राचार्य के पास संजीवनी विद्या थी ! वे मृत व घायल राक्षसों को पुनः जिन्दा कर देते थे, राक्षस राजा वृषपर्वा और देवराज़ इंद्र के बीच युद्ध हुआ, युद्ध में देवताओ की पराजय हुई, देवता अपनी हार से बहुत दुखी थे सभी गुरु बृहस्पति के पास मंत्रणा हेतु पहुचे विचार-बिमर्ष में गुरु बृहस्पति ने कहा की शुक्राचार्य के पास संजीवनी विद्या है उसका तोड़ हमारे पास नहीं है इस नाते किसी को उनके पास जाकर यह विद्य सीखनी पड़ेगी तब हम विजय प्राप्त कर सकेगे, देवता बहुत दुखी हुए कौन जायेगा राक्षसों के यहाँ ? कौन अपनी जान खतरे में डालेगा ? उनके गुरुकुल में क्या राक्षस उसे पहचानेगे नहीं ? सभी एक दुसरे का मुख देखने लगे –तब-तक एक बालक ने कहा मै जाउगा संजीवनी विद्य सीखने के लिए –! यह साहसी बृहस्पति पुत्र कच था । देवराज इन्द्र इसके लिए तैयार नहीं थे, मै अपने स्वार्थ के लिए गुरु पुत्र का बलिदान नहीं ले सकता, इस पर गुरु पुत्र कच ने कहा की मै गुरु पुत्र हु हमारा कर्तब्य बनता है की मै अपने समाज, अपने राष्ट्र और अपने शिष्यों की रक्षा करू पिता बृहस्पति से आशीर्वाद के साथ वह शुक्राचार्य के आश्रम (गुरुकुल ) चला गया|
अप्रत्यासित घटना–! वह समिधा लेकर गुरु शुक्राचार्य के पास गया अपना परिचय दिया शुक्राचार्य अपने मित्र बृहस्पति के पुत्र को अपने गुरुकुल में शिक्षा देना है यह सोचकर बड़े प्रसंद हुए गुरुकुल में प्रवेश दे दिया, लेकिन बाद में उन्हें चिंता हुई की यदि राक्षसों को पता चला तो क्या होगा ? वे सतर्क रहते, कच आश्रम में बड़े ही लगन व प्रेम से रहता आश्रम वासियों का वह प्रिय हो गया राक्षसगुरु शुक्राचार्य पुत्री देवयानी उसकी प्रतिभा से अछूती न रह सकी धीरे-धीरे उसे कच से प्रेम होने लगा, कच प्रति दिन गाय चराने जंगल में जाता वहां से आश्रम हेतु लकड़ी लेकर आता वह बहुत अच्छा शिष्य था, कुछ दिन बीतने के पश्चात् राक्षसों को यह पता चल गया की शुक्राचार्य के गुरुकुल में देवताओं के गुरु बृहस्पति का लड़का पढता है उन्हें यह बात अच्छी नहीं लगी एक बार तो राक्षसराज ने विरोध भी किया लेकिन शुक्राचार्य ने इसकी परवाह नहीं किया, प्रति दिन की भांति कच जब गाय चराने गया था तो वह देर शाम तक नहीं लौटा आश्रम वासी बड़े दुखी हो गए सबने गुरु शुक्राचार्य से विनती की शुक्राचार्य ने ध्यान लगाया तो देखा कि राक्षसों ने उसकी हत्या कर दी, वे बहुत दुखी होते है की अपने सहपाठी बृहस्पति को क्या उत्तर देगे देवयानी सहित सभी आश्रमवासियों के प्रार्थना पर कच के मृत शरीर को मगाकर शुक्राचार्य ने संजीवनी विद्या से कच को जीवित कर दिया लेकिन उन्होंने कच से कहा की पुत्र तुम अब यहाँ से अपने देश पिता के यहाँ देवलोक चले जावो लेकिन कच का उद्देश्य तो संजीवनी विद्या सीखना था उसने कहा की आचार्य मै तो बिना शिक्षा पूर्ण किये नहीं जाउगा और देवयानी सहित सभी आश्रमवासी के आग्रह पर उसे रुकने की अनुमति इस शर्त पर मिल जाती है की वह आश्रम के बाहर सतर्कता के साथ जायेगा, यह बात राक्षसों को पता चल गया कि कच को आचार्य ने जिन्दा कर दिया वे उसकी हत्या करने की ताक में रहने लगे । दिन व् दिन -देवयानी का कच के प्रति आकृषण बढ़ता ही जा रहा था । देवयानी -कच से प्रेम करने लगी संयोग से एक दिन कच पुनः जंगल में आश्रम हेतु लकड़ी लेने गया था कि अवसर देखकर राक्षसों ने फिर उसकी हत्या कर उसके टुकड़े कर जंगल में बिखेर दिया, कच देर रात तक आश्रम नहीं लौटा आश्रमवासी बहुत चिंतित हो गए और देवयानी तो विह्बल हो गयी सबने मिलकर फिर शुक्राचार्य से कहा- कच कहाँ रह गया, चिंतित शुक्राचार्य ने ध्यान लगाया तो पता चला की उसे तो टुकड़े- टुकड़े कर राक्षसों ने जंगल में बिखेर दिया है बड़ी ही कठिनाई से आचार्य ने उसे इकठ्ठा करा पुनः इस शर्त पर जीवित किया की वह अपने राज्य चला जायेगा क्योंकि कब-तक उसे जीवित करते रहेगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ उसने पुनः वही शब्द दुहराया की मेरी शिक्षा का क्या होगा ? देवयानी भी जिद करने लगी की ये यहीं रहेगा और वह वही रहकर शिक्षा ग्रहण करने लगा, राक्षसों को जब यह पता चला की कच फिर जिन्दा हो गया है तो उन्हें लगा की कही उसे संजीवनी विद्या न सिखा दे, राक्षसों ने कड़ा पहरा लगा दिया कच भी बाहर नहीं निकलता लेकिन होनी को कौन टाल सकता था । एक दिन वह फिर जंगल लकड़ी लेने गया कि राक्षसों ने उसे मारकर उसके शरीर का सोमरस बनाकर शुक्राचार्य को पिला दिया, वह नहीं लौटा कहाँ है कच उसकी चिंता सबको सताने लगी, देवयानी बहुत ही दुखी हो गयी उसका दुःख शुक्राचार्य से नहीं देखा जाता था । वह उनकी कमजोरी थी । अब क्या करें ? उन्होंने फिर ध्यान किया तो पता चला कि वह तो मेरे पेट में है —-देवयानी से कहा -पुत्री वह तो मेरे पेट में है ! तुम्हे दोनों मे से एक ही मिलेगा पिता चाहिए अथवा कच, देवयानी बिना कच के नहीं रह सकती उसने कहा पिता जी मुझे पिता भी चाहिए कच भी !
अंत में शुक्राचार्य ने संजीवनी विद्या अपने पेट में ही कच को सिखाया शुक्राचार्य के पेट को आपरेशन कर कच को बाहर किया गया और कच ने उसी संजीवनी विद्या से शुक्राचार्य को जीवित किया, अब उसकी शिक्षा पूर्ण हो चुकी थी अपने गुरु को प्रणाम कर वह अपने देश जाने लगा देवयानी ने उसे रोकना चाहा और कहा- मै तुमसे प्रेम करती हूँ तुम मुझे छोड़कर कैसे जा सकते हो? कच ने कहा कि मै तो तुम्हे गुरु पुत्री के नाते अपनी बहन ही मानता रहा, प्रेम करता रहा आचार्य ने मुझे पुत्र के समान मानकर ही शिक्षा दी, मै ऐसा कैसे कर सकता हूँ मेरे लिए मानव जीवन मूल्य ही सर्वश्रेष्ठ है, देवयानी बहुत दुखी हुई वह बोली, ” मैं और मैरे कुल मे रक्त सम्बन्धों मे ही विवाह निषेध अतः आप मुझसे विवाह कर सकते है । तब कच ने कहा कि हमारा विवाह फिर भी नहीं हो सकता क्योंकि मेरा अन्तिम बार जन्म गुरु शुक्राचार्य के पेट से हुआ है अतः हमारा तुम्हारा रक्त संबंध भी हुआ इस नाते भी मे तुम्हारा भाई हुआ और तुमसे विवाह अधर्म होगा जो मे नहीं कर सकता । तब देवयानी ने क्रोध वश कच को शाप दिया कि जिस विध्या के कारण तुमने मुझे व मेरे पिता को छला है वह विध्या तुम्हारे लिए निरर्थक हो जाएगी तुम इसका प्रयोग नहीं कर पाओगे और यदि तुमने किसी को यह विध्या सिखाई तो तुम्हारी मृत्यु हो जाएगी । लेकिन कच ने तो अपने राष्ट्र, देश और देवताओ के गौरव को बचाने हेतु अपना सब कुछ न्यवछावर कर दिया था, वह देवताओ, आर्यों, स्वधर्म रक्षार्थ देवलोक लौट गया और वहाँ अपने पिता को संजीवनी विध्या सीखकर स्वम मृत्यु को प्राप्त हो गया । शापित होने के कारण संजीवनी विध्या का उस पर कोई प्रभाव नहीं हुआ । अतः अपने कुल और लोक कि रक्षा के कच ने अपना बलिदान दे दिया ।
