Posted in संस्कृत साहित्य

Benefits Of Eating With Hands


👍👍👍👍👍👍👍👍
👍👍👍👍👍👍👍👍

Benefits Of Eating With Hands

Many people find eating with hands unhygienic and disgusting but the connection of eating food with hands is not only with the body but also with the mind and soul. Lets know the benefits of it.

Within many Indian households nowadays, the practice of eating food with the hands has been replaced with the use of cutlery but very few know the benefits of having food with hands.
Benefits – Eating With Hands

The ancient tradition of eating with hands is derived from mudra (postures) practices and are widespread in many aspects within Hinduism. As we know that hands postures are used during mediation and Yoga. Even in many classical forms of dance, hand postures are important.

* As per Vedic knowledge, our hands and feet consist of the five elements – Space, Air, Fire, Water and Earth. Practice of eating with hands is also mentioned in Ayurveda. As per Ayurvedic texts, each finger is an extension of one of the five elements:

    Thumb: Fire
    Index finger: Air
    Middle finger: Heaven/ Ether
    Ring finger: Earth
    Little finger: Water

Five Elements in Hand

Each finger transforms food in digestive form before it passes to human digestion system. Improved digestion enhances the pleasure of eating as taste, texture and smell is felt better while having food with hands.

* The skin sends the senses to the brain about the temperature, texture of the food and this acts like a catalyst in the action of generating the necessary salivary juices.

* Eating with the hands, one can verify the temperature of the food before and it can prevent one from burning of the mouth.

* Some people believe that hands behave as energetic cleanser when the food passes via hand to mouth. Similar kind of tradition is followed in other religion also when people eat food after placing their palms above the food.

The logic behind it that food contains various external energies positives, negatives, pains, emotions, thoughts etc when it passes from various people like vegetable/ spice seller, cook, waiter etc. It is believed hands help cleaning all external energies so that it could not impact the human soul.

A similar pattern is found in many people coming from abroad that they feel suffocation and negative feelings when they eat through knife and fork. On the other hand, if they eat with their hands, they experience heavenly and divine feeling.
Science Behind Eating With Hands

We have some bacteria, known as normal flora, found on our skin. These bacteria are not harmful to human instead they protect us from many harmful bacteria from outside environment.

It is required to establish normal flora in various parts of our body like in mouth, throat, intestine, gut etc for the betterment of health.

Eating with spoon for long time can change the arrangement of normal flora. With this, the pattern of normal flora can be changed in the gut. It results reduced synchronous immunity to environmental bacterial germs.

Lets take an example, in India, when some people come from abroad after spending several years of staying there mostly suffer from acute gastroenteritis whereas the local people don’t, because their normal flora and gut flora are in sync.

Karaagre Vasate Lakssmih Karamadhye Sarasvati |
Karamuule Tu Govindah Prabhaate Karadarshanam ||

i.e. At the Top of the Palm Dwell Devi Lakshmi and at the Middle of the Hand Dwell Devi Saraswati, At the Base of the Hand Dwell Sri Govinda; Therefore one should Look at one’s Hands in the Early Morning and contemplate on Them. Hence, This shloka suggests that the divinity lies inside our hands.

Many things within Hindu culture seem weird and unusual but once we go deep into it, we find that a surprising and vast amount of knowledge is hidden in Vedic culture.

Good morning

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

Oh my god और pk पर कोर्ट में केस चला कांजी भाई और pk कोर्ट में हाजिर हुए


Oh my god और pk पर कोर्ट में केस चला कांजी भाई और pk कोर्ट में हाजिर हुए
>>•वकील : हाँ तो आप दोनों का कहना है कि इन्सान डर के कारण मंदिर जाता है और मूर्ति पूजा गलत है।
कांजी भाई : जी बिलकुल। ईश्वर तो सभी जगह है उसको मंदिर में ढूँढने की क्या आवश्यकता है।
वकील : आप का मतलब है कि मंदिर में नहीं है।
कांजी भाई : वहां भी है।
वकील : तो फिर आप लोगो को मंदिर जाना क्यों पाखंड लगता है?
कांजी भाई : हमारा मतलब है मंदिर ही क्यों जाना मूर्ति में ही क्यों??  जब सभी जगह है तो जरूरत ही क्या है पूजा करने की बस मन में ही पूजा कर लो।
वकील- ‘हा हा हा हा ‘
कांजी भाई- इसमें हंसने की क्या बात है??
( वकील दोनो को घूरते हुए आगे बड़ा )
और पुछा- एक बात बताइए आप पानी केसे पीते है?
‘पानी कैसे पीते है?’ ये कैसा पागलो जासा सवाल है जज साहब? कांजी बोला’

वकील लगभग चिल्लाते हुए – मैं पूछता हूँ आप पानी कैसे पीते है ?

कांजी भाई हडबडाते हुए – ज ज ज जी ग्लास से।
पॉइंट टू बी नोटेड मी लार्ड कांजी भाई ग्लास से पानी पीते है और ये pk तो इस ग्रह का आदमी नहीं है फिर भी पूछ लेते है। क्यों भाई तुम पानी कैसे पीते हो?
pk- जी मैं भी ग्लास से पीता हूँ।
वकील कांजी भाई की और मुड़ते हुए – कांजी भाई एक बात बताइए जब पानी हाइड्रोजन और आक्सीजन के रूप में इस हवा में भी मोजूद है तो आप हवा में से सूंघकर पानी क्यों नहीं पी लेते? और ऐसा कहकर वकील ने हवा में लगभग नाक को तीन बार अलग अलग घुसेड़ते हुए बताया मानो हवा से नाक से पानी पी रहा हो।
कांजी भाई झुंझलाकर बोला – जज साहब वकील साहब कैसी बाते कर रहे है?
भला इस प्रकार हवा से सूंघकर पानी कैसे पिया जा सकता है ?
पानी पीने के लिए किसी ग्लास की जरूरत तो पड़ेगी ही।
और वकील जेसे कांजी पर टूट पड़ा हो- इसी प्रकार कांजी भाई जैसे आप यह जानते हुए भी कि पानी सभी जगह मोजूद है आप को पानी पीने के लिए ग्लास की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार यह जानते हुए भी कि ईश्वर सभी जगह मोजूद है उसके बावजूद हमें मूर्ति , मंदिर या तीर्थस्थल की आवश्यकता होती है ताकि हम ईश्वर की सरलता से ध्यान लगाकर आराधना कर सके ।
•कांजी भाई चुप। 
और अब pk को भी बात समझ में आ चुकि थी की आदमी मंदिर क्यों जाता है…

Posted in हिन्दू पतन

हामिद अंसारी का हिन्दू धर्म और संस्कृति से नफरत जगजाहिर है,


हामिद अंसारी का हिन्दू धर्म और संस्कृति से नफरत जगजाहिर है, चाहे वो रामलीला के दौरान सरेआम मंच पर आरती से इंकार करने वाली घटना हो या वन्देमातरम का विरोध । योग दिवस पर ‪#‎NarendraModi‬ सरकार द्वारा इस कठमुल्ले को नहीं आमंत्रित करने पर हँगामा करने वालों को अंसारी का अतीत जानना चाहिए । RAW और हामिद अंसारी से जुड़ा अतीत ….

बात 1990 के दशक के आखिरी वर्षों का है जब, M.H Ansari ईरान मे भारत के Ambassador हुआ करते थे । उस समय तेहरान मे पोस्टेड RAW के जासूस Mr. Kapoor को तेहरान मे किडनेप कर लिया गया । इस young operative को लगातार 3 दिनों तक बुरी तरह टोर्चर किया गया, ड्रग्स के डोज़ दिये गए और आखिर मे उसे तेहरान के सुनसान सड़क पे फेंक दिया गया । पर Ambassador अंसारी ने इस मुद्दे पर तनिक भी ध्यान नहीं दिया न ही भारत सरकार को इस बाबत खबर दी ।

इसी दौरान कश्मीर के कुछ Trainee इमाम तेहरान के नजीदक Qom नामक Religious Center मे ट्रेनिंग के लिए इकट्ठा होते थे, जिस पर RAW ने नजर रखा हुआ था, और इसकी पूरी जानकारी दिल्ली हेडक्वार्टर भेजा जा रहा था । M.H Ansari के एक जानकार के माध्यम से RAW जासूस Mr. Mathur ने इस संगठन मे अपने जासूस फिट किए थे ।

इसी बीच अचानक Mr. Mathur का भी तेहरान जासूसों ने किडनेप कर लिया, जिसका पूरा शक अंसारी के मुखबिरी का था । इंडियन इंटेलिजेंस खेमा हरकत मे आया और माथुर की तलाश ईरान मे शुरू हुई, पर Ambassador होते हुए अंसारी न कोई मदद किया और नहीं इस घटना की सूचना भारत सरकार को दी गयी ।
.
आखिर 2 दिन बाद जब इंटेलिजेंस ऑफिसर के बीबी-बच्चे अंसारी के घर के गेट पर प्रदर्शन करना शुरू किया । पर अंसारी इंटेलिजेंस वालों के परिवार वालों से मिलने से इंकार कर दिया, Mr. Mathur की पत्नी ने अंसारी के केबिन मे घुस उसे बुरी तरह लताड़ा । हताश RAW ने दिल्ली हेडक्वार्टर को इन्फॉर्म किया और तब के PM Atal Bihari Vajpayee जी से बात की । ‪#‎PMO‬ के दखल से कुछ ही घंटे मे ईरानी जासूसों ने Mr. Mathur को आजाद कर दिया ।
.
Mr. Mathur को थर्ड डिग्री दी गयी थी, पर उन्होने तेहरान मे स्थित किसी जासूस या कोई भी सीक्रेट जानकारी उन्हे नहीं दिया । पर ईरान स्थित दूसरे RAW agents का मनोबल टूट चुका था ….
.
नोट:- सारे तथ्य RAW के declassified files से लिए गए हैं ।

Aditi Gupta's photo.
Aditi Gupta's photo.
Posted in भारतीय उत्सव - Bhartiya Utsav

पुरुषोत्तम मास की उत्पत्ति कथा


पुरुषोत्तम मास की उत्पत्ति कथा –
हर वैष्णव को यह पढना ही चाहिये***
प्रत्येक राशि, नक्षत्र, करण व चैत्रादि बारह मासों के सभी के स्वामी है, परन्तु मलमास का कोई स्वामी नही है. इसलिए देव कार्य, शुभ कार्य एवं पितृ कार्य इस मास में वर्जित माने गये है.
इससे दुखी होकर स्वयं मलमास(अधिक मास) बहुत नाराज व उदास रहता था, इसी कारण सभी ओर उसकी निंदा होने लगी. मलमास को सभी ने असहाय, निन्दक, अपूज्य तथा संक्रांति से वर्जितकहकर लज्जित किया. अत: लोक-भत्र्सना से चिन्तातुर होकर अपार दु:ख समुद्र में मग्न हो गया. वह कान्तिहीन, दु:खों से युक्त, निंदा से दु:खी होकर मल मास भगवान विष्णु के पास वैकुण्ठ लोक में पहुंचा.
और मलमास बोला –
हे नाथ, हे कृपानिधे! मेरा नाम मलमास है. मैं सभी से तिरस्कृत होकर यहां आया हूं. सभी ने मुझे शुभ-कर्म वर्जित, अनाथ और सदैव घृणा-दृष्टि से देखा है. संसार में सभी क्षण, लव, मुहूर्त, पक्ष, मास, अहोरात्र आदि अपने-अपने अधिपतियों के अधिकारों से सदैव निर्भय रहकर आनन्द मनाया करते हैं.
मैं ऐसा अभागा हूं जिसका न कोई नाम है,न स्वामी, न धर्म तथा न ही कोई आश्रम है. इसलिए हे स्वामी, मैं अब मरना चाहता हूं.’ ऐसा कहकर वह शान्त हो गया.
तब भगवान विष्णु मलमास को लेकर गोलोक धाम गए. वहां भगवान श्रीकृष्ण मोरपंख का मुकुट व वैजयंती माला धारण कर स्वर्णजडि़त आसन पर बैठेथे. गोपियों से घिरे हुए थे.भगवान विष्णु ने मलमास को श्रीकृष्ण के चरणों में नतमस्तक करवाया व कहा – कि यह मलमास वेद-शास्त्र के अनुसार पुण्य कर्मों के लिए अयोग्य माना गया है
इसीलिए सभी इसकी निंदा करते हैं.
तब श्रीकृष्ण ने कहा – हे हरि! आप इसका हाथ पकड़कर यहां लाए हो. जिसे आपने स्वीकार किया उसे मैंने भी स्वीकार कर लिया है. इसे मैं अपने हीसमान करूंगा तथा गुण, कीर्ति, ऐश्वर्य, पराक्रम, भक्तों को वरदान आदि मेरे समान सभी गुण इसमें होंगे. मेरे अन्दर जितने भी सदॄगुण है, उन सभी को मैंमलमास में तुम्हे सौंप रहा हूँ मैं इसे अपना नाम ‘पुरुषोत्तम’ देता हूं और यह इसी नाम से विख्यात होगा.यह मेरे समान ही सभी मासों का स्वामी होगा. कि अब से कोई भी मलमास की निंदा नहीं करेगा. मैं इस मास का स्वामी बन गया हूं. जिस परमधाम गोलोक को पाने के लिए ऋषि तपस्या करते हैं वहीदुर्लभ पद पुरुषोत्तम मास में स्नान, पूजन, अनुष्ठान व दान करने वाले को सरलता से प्राप्त हो जाएंगे.इस प्रकार मल मास पुरुषोत्तम मास के नाम से प्रसिद्ध हुआ.यह मेरे समान ही सभी मासों का स्वामी होगा. अब यह जगत को पूज्य व नमस्कार करने योग्य होगा.यह इसे पूजने वालों के दु:ख-दरिद्रता का नाश करेगा. यह मेरे समान ही मनुष्यों को मोक्ष प्रदान करेगा. जो कोई इच्छा रहित या इच्छा वाला इसे पूजेगा वह अपने किए कर्मों को भस्म करके नि:संशय मुझ कोप्राप्त होगा.सब साधनों में श्रेष्ठ तथा सब काम व अर्थ का देने वाला यह पुरुषोत्तम मास स्वाध्याय योग्य होगा. इस मास में किया गया पुण्य कोटि गुणा होगा.जो भी मनुष्य मेरे प्रिय मलमास का तिरस्कार करेंगेऔर जो धर्म का आचरण नहीं करेंगे, वे सदैव नरक के गामी होंगे. अत: इस मास में स्नान, दान, पूजा आदि का विशेष महत्व होगा.इसलिए हे रमापते! आप पुरुषोत्तम मास को लेकर बैकुण्ठ को जाओ.’इस प्रकार बैकुण्ठ में स्थित होकर वह अत्यन्त आनन्द करने लगा तथा भगवान के साथ विभिन्न क्रीड़ाओं में मग्न हो गया. इस प्रकार श्रीकृष्ण ने मन से प्रसन्न होकर मलमास को बारह मासों में श्रेष्ठ बना दिया तथा वह सभी का पूजनीय बन गया. अत: श्रीकृष्ण से वर पाकर इस भूतल पर वह पुरुषोत्तम नाम से विख्यात हुआ.इस साल अधिकमास (मलमास) पड़ने के कारण लगभग सभी व्रत और त्योहार आम सालों की अपेक्षा कुछ जल्दी पड़ेंगे. २०१५ में अधिकमास अर्थात पुरुषोत्तममास के कारण दो आषाढ़ होंगे |
|| जय पुरुषोत्तम भगवान ||
।। राधे राधे ।।

Posted in भारतीय शिक्षा पद्धति

गुरुकुल कैसे खत्म हो गये ?


[23/06 16:24] Ajay Patel Rb: Please read this
[23/06 16:24] Ajay Patel Rb: Where we are?
[23/06 16:24] Ajay Patel Rb: भारतवर्ष में गुरुकुल कैसे खत्म हो गये ?

कॉन्वेंट स्कूलों ने किया बर्बाद 1858 में Indian Education Act बनाया गया।
इसकी ड्राफ्टिंग ‘लोर्ड मैकोले’ ने की थी। लेकिन उसके पहले उसने यहाँ (भारत) के
शिक्षा व्यवस्था का सर्वेक्षण कराया था, उसके पहले भी कई अंग्रेजों ने भारत के शिक्षा व्यवस्था के बारे में अपनी रिपोर्ट दी थी। अंग्रेजों का एक अधिकारी था G.W. Litnar और दूसरा था Thomas Munro, दोनों ने अलग अलग इलाकों का अलग-अलग समय सर्वे किया था। 1823 के आसपास की बात है ये Litnar , जिसने उत्तर भारत का सर्वे किया था,
उसने लिखा है कि यहाँ 97% साक्षरता है और Munro, जिसने दक्षिण भारत का सर्वे किया था, उसने लिखा कि यहाँ तो 100 % साक्षरता है, और उस समय जब भारत में इतनी साक्षरता है और मैकोले
का स्पष्ट कहना था कि भारत को हमेशा-हमेशा के लिए अगर गुलाम बनाना है तो इसकी “देशी और सांस्कृतिक शिक्षा व्यवस्था” को पूरी तरह से ध्वस्त करना होगा और उसकी जगह “अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था” लानी होगी और तभी इस देश में शरीर से हिन्दुस्तानी लेकिन दिमाग से अंग्रेज पैदा होंगे और जब इस देश की यूनिवर्सिटी से निकलेंगे तो हमारे हित में काम करेंगे और मैकोले एक मुहावरा इस्तेमाल कर रहा है:   “कि जैसे किसी खेत में कोई फसल लगाने के पहले पूरी तरह जोत दिया जाता है वैसे ही इसे
जोतना होगा और अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था लानी होगी।”
इसलिए उसने सबसे पहले गुरुकुलों को गैरकानूनी घोषित किया, जब गुरुकुल
गैरकानूनी हो गए तो उनको मिलने वाली सहायता जो समाज के तरफ से होती थी वो गैरकानूनी हो गयी, फिर संस्कृत को गैरकानूनी घोषित किया और इस देश के
गुरुकुलों को घूम घूम कर ख़त्म कर दिया उनमे आग लगा दी, उसमें पढ़ाने वाले गुरुओं को उसने मारा- पीटा, जेल में डाला।
1850 तक इस देश में ’7 लाख 32 हजार’ गुरुकुल हुआ करते थे और उस समय इस देश में गाँव थे ’7 लाख 50
हजार’, मतलब हर गाँव में औसतन एक गुरुकुल और ये जो गुरुकुल होते थे वो सब के सब आज की भाषा में ‘Higher Learning Institute’ हुआ करते थे उन सबमे 18 विषय पढाया जाता था और ये गुरुकुल समाज के लोग मिल के चलाते थे न कि राजा, महाराजा, और इन गुरुकुलों में शिक्षा निःशुल्क दी जाती थी।
इस तरह से सारे गुरुकुलों को ख़त्म किया गया और फिर अंग्रेजी शिक्षा को कानूनी घोषित किया गया और कलकत्ता में पहला कॉन्वेंट स्कूल खोला गया, उस समय इसे ‘फ्री स्कूल’ कहा जाता था, इसी कानू न के तहत भारत में कलकत्ता यूनिवर्सिटी बनाई गयी, बम्बई यूनिवर्सिटी बनाई गयी, मद्रास यूनिवर्सिटी बनाई गयी और ये तीनों गुलामी के ज़माने के यूनिवर्सिटी आज भी इस देश में हैं और मैकोले ने अपने पिता को एक चिट्ठी लिखी थी बहुत मशहूर चिट्ठी है वो, उसमें वो लिखता है कि:
“इन कॉन्वेंट स्कूलों से ऐसे बच्चे निकलेंगे जो देखने में तो भारतीय होंगे लेकिन दिमाग से अंग्रेज होंगे और इन्हें अपने देश के बारे में कुछ पता नहीं होगा, इनको अपने संस्कृति के बारे में कुछ पता नहीं होगा, इनको अपने परम्पराओं के बारे में कुछ पता नहीं होगा, इनको अपने मुहावरे नहीं मालूम होंगे, जब ऐसे बच्चे होंगे इस देश में तो अंग्रेज भले ही चले जाएँ इस देश से अंग्रेजियत नहीं जाएगी।” उस समय लिखी चिट्ठी की सच्चाई इस देश में अब साफ़-साफ़ दिखाई दे रही है और उस एक्ट की महिमा देखिये कि हमें अपनी भाषा बोलने में शर्म आती है, अंग्रेजी में बोलते हैं कि दूसरों पर रोब पड़ेगा, अरे हम तो खुद में हीन हो गए हैं जिसे अपनी भाषा बोलने में शर्म आ रही है, दूसरों पर रोब क्या पड़ेगा।
लोगों का तर्क है कि अंग्रेजी अंतर्राष्ट्रीय भाषा है, दुनिया में 204 देश हैं और अंग्रेजी सिर्फ 11 देशों में बोली, पढ़ी और समझी जाती है, फिर ये कैसे अंतर्राष्ट्रीय भाषा है। शब्दों के मामले में भी अंग्रेजी समृद्ध नहीं दरिद्र भाषा है। इन अंग्रेजों की जो बाइबिल है वो भी अंग्रेजी में नहीं थी और ईशा मसीह अंग्रेजी नहीं बोलते थे।
ईशा मसीह की भाषा और बाइबिल की भाषा अरमेक थी। अरमेक भाषा की लिपि जो थी वो हमारे बंगला भाषा से मिलती जुलती थी, समय के कालचक्र में वो भाषा विलुप्त हो गयी। संयुक्त राष्ट संघ जो अमेरिका में है वहां की भाषा अंग्रेजी नहीं है, वहां का सारा काम फ्रेंच में होता है।
जो समाज अपनी मातृभाषा से कट जाता है उसका कभी भला नहीं होता और यही मैकोले की रणनीति थी।

कृपया आपको अगर ये जानकारी अच्छी और सही लगे तो शेयर करें…
👆यह मेसेज जरुर पढे हम कहा पीछे रहे

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

एक डाकू था जो साधू के भेष में रहता था।


Suzuka Singh

जय हिंदुत्व  –  7:53 AM

एक डाकू था जो साधू के भेष में रहता था। वह लूट का धन गरीबों में बाँटता था। एक दिन कुछ व्यापारियों का जुलूस उस डाकू के ठिकाने से गुज़र रहा था। सभी व्यापारियों को डाकू ने घेर लिया। डाकू की नज़रों से बचाकर एक व्यापारी रुपयों की थैली लेकर नज़दीकी तंबू में घूस गया। वहाँ उसने एक साधू को माला जपते देखा। व्यापारी ने वह थैली उस साधू को संभालने के लिए दे दी। साधू ने कहा की तुम निश्चिन्त हो जाओ।

डाकूओं के जाने के बाद व्यापारी अपनी थैली लेने वापस तंबू में आया। उसके आश्चर्य का पार न था। वह साधू तो डाकूओं की टोली का सरदार था। लूट के रुपयों को वह दूसरे डाकूओं को बाँट रहा था। व्यापारी वहाँ से निराश होकर वापस जाने लगा मगर उस साधू ने व्यापारी को देख लिया। उसने कहा; “रूको, तुमने जो रूपयों की थैली रखी थी वह ज्यों की त्यों ही है।”
अपने रुपयों को सलामत देखकर व्यापारी खुश हो गया। डाकू का आभार मानकर वह बाहर निकल गया। उसके जाने के बाद वहाँ बैठे अन्य डाकूओं ने सरदार से पूछा कि हाथ में आये धन को इस प्रकार क्यों जाने दिया। सरदार ने कहा; “व्यापारी मुझे भगवान का भक्त जानकर भरोसे के साथ थैली दे गया था। उसी कर्तव्यभाव से मैंने उन्हें थैली वापस दे दी।”
किसी के विशवास को तोड़ने से सच्चाई और ईमानदारी हमेशा के लिए शक के घेरे में आ जाती है।

Posted in भारत का गुप्त इतिहास- Bharat Ka rahasyamay Itihaas

मुगल सम्राट औरंगजेब


jai hind….

मुगल सम्राट औरंगजेब ने 9 अप्रैल 1669, को बनारस के “काशी विश्वनाथ मंदिर” तोड़ने का आदेश जारी किया था…..जिसका पालन कर अगस्त 1669, को काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़कर ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण किया गया था…उस आदेश की कॉपी आज भी एशियाटिक लाइब्रेरी, कोलकाता में सुरक्षित रखी हुयी है ( उस आदेश की कॉपी साथ दे रही हू स्क्रीन शॉट में खुद देखे )

अपने बाप को कैद करने और प्यास से तड़पाने वाले आतातयी तथा धर्माध मुग़ल शासक औरंगजेब ने हिन्दुओं के श्रध्दा और आस्था के केंद्र बनारस सहित प्रमुख तीर्थ स्थलों के मंदिरों को अपने शासन काल में तोड़ने और हिन्दुओं को मानसिक रूप से पराजित करने के हरसंभव प्रयास किये…..औरंगजेब के गद्‌दी पर आते ही लोभ और बल प्रयोग द्वारा धर्मान्तरण ने भीषण रूप धारण किया था अप्रैल 1669 में चार हिन्दू कानूनगो बरखास्त किये गये…… जिन्हे मुसलमान हो जाने पर वापिस ले लिये गया …. औरंगजेब की घोषित नीति थी ‘कानूनगो बशर्ते इस्लाम’ अर्थात्‌ मुसलमान बनने पर कानूनगोई…

द्वादश ज्योतिर्लिंगों में प्रमुख काशी विश्वनाथ मंदिर अनादिकाल से काशी में है… यह स्थान शिव और पार्वती का आदि स्थान है इसीलिए आदिलिंग के रूप में अविमुक्तेश्वर को ही प्रथम लिंग माना गया है.. इसका उल्लेख महाभारत और उपनिषद में भी किया गया है।

ईसा पूर्व 11वीं सदी में राजा हरीशचन्द्र ने जिस विश्वनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था उसका सम्राट विक्रमादित्य ने जीर्णोद्धार करवाया था। उसे ही 1194 में मुहम्मद गौरी ने लूटने के बाद तुड़वा दिया था। इतिहासकारों के अनुसार इस भव्य मंदिर को सन् 1194 में मुहम्मद गौरी द्वारा तोड़ा गया था। इसे फिर से बनाया गया, लेकिन एक बार फिर इसे सन् 1447 में जौनपुर के सुल्तान महमूद शाह द्वारा तोड़ दिया गया। पुन: सन् 1585 ई. में राजा टोडरमल की सहायता से पं. नारायण भट्ट द्वारा इस स्थान पर फिर से एक भव्य मंदिर का निर्माण किया गया। इस भव्य मंदिर को सन् 1632 में शाहजहां ने आदेश पारित कर इसे तोड़ने के लिए सेना भेज दी। सेना हिन्दुओं के प्रबल प्रतिरोध के कारण विश्वनाथ मंदिर के केंद्रीय मंदिर को तो तोड़ नहीं सकी, लेकिन काशी के 63 अन्य मंदिर तोड़ दिए गए।

डॉ. एएस भट्ट ने अपनी किताब ‘दान हारावली’ में इसका जिक्र किया है कि टोडरमल ने मंदिर का पुनर्निर्माण 1585 में करवाया था। 18 अप्रैल 1669 को औरंगजेब ने एक फरमान जारी कर काशी विश्वनाथ मंदिर ध्वस्त करने का आदेश दिया। यह फरमान एशियाटिक लाइब्रेरी, कोलकाता में आज भी सुरक्षित है।

उस समय के लेखक साकी मुस्तइद खां द्वारा लिखित ‘मासीदे आलमगिरी’ में इस ध्वंस का वर्णन है। औरंगजेब के आदेश पर यहां का मंदिर तोड़कर एक ज्ञानवापी मस्जिद बनाई गई… 2 सितंबर 1669 को औरंगजेब को मंदिर तोड़ने का कार्य पूरा होने की सूचना दी गई थी… औरंगजेब ने प्रतिदिन हजारों ब्राह्मणों को मुसलमान बनाने का आदेश भी पारित किया था।

आज उत्तर प्रदेश के 90 प्रतिशत मुसलमानों के पूर्वज हिन्दू है.. सन् 1752 से लेकर सन् 1780 के बीच मराठा सरदार दत्ताजी सिंधिया व मल्हारराव होलकर ने मंदिर मुक्ति के प्रयास किए… 7 अगस्त 1770 ई. में महादजी सिंधिया ने दिल्ली के बादशाह शाह आलम से मंदिर तोड़ने की क्षतिपूर्ति वसूल करने का आदेश जारी करा लिया, परंतु तब तक काशी पर ईस्ट इंडिया कंपनी का राज हो गया था इसलिए मंदिर का नवीनीकरण रुक गया… 1777-80 में इंदौर की महारानी अहिल्याबाई द्वारा इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया गया था… अहिल्याबाई होलकर ने इसी परिसर में विश्वनाथ मंदिर बनवाया जिस पर पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह ने सोने का छत्र बनवाया,.. ग्वालियर की महारानी बैजाबाई ने ज्ञानवापी का मंडप बनवाया और महाराजा नेपाल ने वहां विशाल नंदी प्रतिमा स्थापित करवाई।

सन् 1809 में काशी के हिन्दुओं ने जबरन बनाई गई मस्जिद पर कब्जा कर लिया था, क्योंकि यह संपूर्ण क्षेत्र ज्ञानवापी मं‍डप का क्षेत्र है जिसे आजकल ज्ञानवापी मस्जिद कहा जाता है…. 30 दिसंबर 1810 को बनारस के तत्कालीन जिला दंडाधिकारी मि. वाटसन ने ‘वाइस प्रेसीडेंट इन काउंसिल’ को एक पत्र लिखकर ज्ञानवापी परिसर हिन्दुओं को हमेशा के लिए सौंपने को कहा था, लेकिन यह कभी संभव नहीं हो पाया… इतिहास की किताबों में 11 से 15वीं सदी के कालखंड में मंदिरों का जिक्र और उसके विध्वंस की बातें भी सामने आती हैं… मोहम्मद तुगलक (1325) के समकालीन लेखक जिनप्रभ सूरी ने किताब ‘विविध कल्प तीर्थ’ में लिखा है कि बाबा विश्वनाथ को देव क्षेत्र कहा जाता था। लेखक फ्यूरर ने भी लिखा है कि फिरोजशाह तुगलक के समय कुछ मंदिर मस्जिद में तब्दील हुए थे… 1460 में वाचस्पति ने अपनी पुस्तक ‘तीर्थ चिंतामणि’ में वर्णन किया है कि अविमुक्तेश्वर और विशेश्वर एक ही लिंग है।

वामपंथी (हिन्दू विरोधी), सेक्युलर विचारधारा के इतिहासकार मंदिर को तोडना सही ठहराते है ये देश द्रोही इतिहासकार विदेशी मजहब से पैसे लेकर यही लिखे है >>>>>

सन 1669 ईस्वी में औरंगजेब अपनी सेना एवं हिन्दू राजा मित्रों के साथ वाराणसी के रास्ते बंगाल जा रहा था.रास्ते में बनारस आने पर हिन्दू राजाओं की पत्नियों ने गंगा में डुबकी लगा कर काशी विश्वनाथ मंदिर में पूजा करने की इच्छा व्यक्त की …जिसे औरंगजेब सहर्ष मान गया, और, उसने अपनी सेना का पड़ाव बनारस से पांच किलोमीटर दूर ही रोक दिया..फिर उस स्थान से हिन्दू राजाओं की रानियां पालकी एवं अपने अंगरक्षकों के साथ गंगाघाट जाकर गंगा में स्नान कर विश्वनाथ मंदिर में पूजा करने चली गई …पूजा के उपरांत सभी रानियां तो लौटी लेकिन कच्छ की रानी नहीं लौटी , जिससे औरंगजेब के सेना में खलबली गयी और, उसने अपने सेनानायक को रानी को खोज कर लाने का हुक्म दिया …औरंगजेब का सेनानायक अपने सैनिकों के साथ रानी को खोजने मंदिर पहुंचा … जहाँ, काफी खोजबीन के उपरांत “”भगवान गणेश की प्रतिमा के पीछे”” से नीचे की ओर जाती सीढ़ी से मंदिर के तहखाने में उन्हें रानी रोती हुई मिली…. जिसकी अस्मिता और गहने मंदिर के पुजारी द्वारा लुट चुके थे …इसके बाद औरंगजेब के लश्कर के साथ मौजूद हिन्दू राजाओ ने मंदिर के पुजारी एवं प्रबंधन के खिलाफ कठोरतम करवाई की मांग की…जिससे विवश होकर औरंगजेब ने सभी पुजारियों को दण्डित करने एवं उस “”विश्वनाथ मंदिर”” को ध्वस्त करने के आदेश देकर मंदिर को तोड़वा दिया उसी जगह ज्ञानवापी मस्जिद बना दी…..

हिन्दू विरोधी इन इतिहासकारों कि कहानी का झूठ >>>>>

झूठ न.1-औरंगजेब कभी भी बनारस और बंगाल नहीं गया था.उसकी जीवनी में भी यह नहीं लिखा है.किसी भी इतिहास कि किताब में यह नहीं लिखा है. उसकी इन यात्राओ का जिक्र नही…

झूठ न.2- इस लुटेरे हत्यारे ऐयाश औरंगजेब ने हजारो मंदिरों को तोड़ा था..इसलिए इन इतिहासकारों की लिखे हुए इतिहास कूड़ा में फेकने के लायक है..और ये वामपंथी इतिहासकार इस्लाम से पैसे लेकर ”हिन्दुओ के विरोध ”में आज भी बोलते है लिखते है..किन्तु ये इतिहासकार मुसलमानों को अत्याचारी
नहीं कहते है.. मुग़ल इस देश के युद्ध अपराधी है…यह भी कहने और लिखने की हिम्मत इन इतिहासकारों में नहीं है…

झूठ न.3-युद्ध पर जाते मुस्लिम शासक के साथ हिन्दू राजा अपनी पत्नियों को साथ नहीं ले जा सकते है.क्योकि मुस्लिम शासक लूट पाट में औरतो को बंदी बनाते थे.

झूठ न.4- जब कच्छ की रानी तथा अन्य रानिया अपने अंगरक्षकों के साथ मंदिर गयी थी.तब किसी पुजारी या महंत द्वारा उसका अपहरण कैसे संभव हुआ. पुजारी द्वारा ऐसा करते हुए किसी ने क्यों नहीं देखा.…

झूठ न.5- अगर, किसी तरह ये न हो सकने वाला जादू हो भी गया था तो साथ के हिन्दू राजाओं ने पुजारी को दंड देने एवं मंदिर को तोड़ने का आदेश देने के लिए औरंगजेब को क्यों कहा. हिन्दू
राजाओं के पास इतनी ताकत थी कि वो खुद ही उन पुजारियों और मंदिर प्रबंधन को दंड दे देते…

झूठ न.6 -क्या मंदिरों को तोड़कर वहां पर मस्जिद बनाने की प्रार्थना भी साथ गए हिन्दू राजाओं ने ही की थी.

झूठ न.7 -मंदिर तोड़ने के बाद और पहले के इतिहास में उस तथाकथित कच्छ की रानी का जिक्र क्यों नहीं है…

इन सब सवालों के जबाब किसी भी वामपंथी (हिन्दू विरोधी) इतिहासकार के पास नहीं है क्योंकि यह एक पूरी तरह से मनगढंत कहानी है…. जो वामपंथी (हिन्दू विरोधी) इतिहासकारों ने इतिहास की किताबो में अपने निजी स्वार्थ और लालच के लिए लिखी……

हकीकत बात ये है कि औरंगजेब मदरसे में पढ़ा हुआ एक कट्टर मुसलमान और जेहादी था,लुटेरा हत्यारा अरबी मजहब का औरंगजेब ने हिन्दुओं को अपमानित करने के लिए,हिन्दू धर्म को समाप्त करने के लिए ना सिर्फ काशी विश्वनाथ बल्कि, कृष्णजन्म भूमि मथुरा के मंदिर अन्य सभी प्रसिद्द मंदिरों को ध्वस्त कर वहां मस्जिदों का निर्माण करवा दिया था…..जिसे ये मनहूस वामपंथी सेक्युलर इतिहासकार किसी भी तरह से न्यायोचित ठहराने में लगे हुए हैं….

और .. अपने पुराने विश्वनाथ मंदिर की स्थिति ये है कि…..वहां औरंगजेब द्वारा बनवाया गया ज्ञानवापी मस्जिद आज भी हम हिन्दुओं का मुंह चिढ़ा रहा है … और, मुल्ले उसमे नियमित नमाज अदा करते हैं…..जबकि आज भी ज्ञानवापी मस्जिद के दीवारों पर हिन्दू देवी -देवताओं के मूर्ति अंकित हैं.ज्ञानवापी मस्जिद के दीवार में ही श्रृंगार गौरी की पूजा हिन्दू लोग वर्ष में 1 बार करने जाते है. और मस्जिद के ठीक सामने भगवान विश्वनाथ की नंदी विराजमान है….!

इसीलिए…..हे हिन्दुओं जागो–जानो अपने सही इतिहास को क्योंकि इतिहास की सही जानकारी ही….. इतिहास की पुनरावृति को रोक सकती है…!

Rss Kailash Sharma's photo.
Rss Kailash Sharma's photo.
Rss Kailash Sharma's photo.
Rss Kailash Sharma's photo.
Posted in भारतीय मंदिर - Bharatiya Mandir

मंदार पर्वत, जिससे समुद्र-मंथन हुआ था. कहाँ है वह ?


मंदार पर्वत, जिससे समुद्र-मंथन हुआ था. कहाँ है वह ?
:
मंदार पर्वत, वही जिसे मथानी बना कर समुद्र-मंथन किया गया था। कहां है वह ? क्या उसका अस्तित्व है ?
यदि उस मूक साधक को देखना चाहते हैं तो आपको बिहार के बांका जिले के बौंसी गांव तक जाना पड़ेगा। यह करीब सात सौ फुट ऊंची पहाड़ी भागलपुर से 30-35 मील दूर स्थित है। जहां रेल या बस किसी से भी सुविधापूर्वक जाया जा सकता है। बौंसी से इसकी दूरी करीब पांच मील की है।
जब समुद्र मंथन किया गया तो मंदार पर्वत को मथनी और उस पर वासुकी नाग को लपेट कर रस्सी का काम लिया गया था। पर्वत पर अभी भी धार दार लकीरें दिखती हैं जो एक दूसरे से करीब छह फुट की दूरी पर बनी हुई हैं और ऐसा लगता है कि किसी गाड़ी के टायर के निशान हों। ये लकीरें
किसी भी तरह मानव निर्मित नहीं लगतीं। जन विश्वास है कि समुद्र मंथन के दौरान वासुकी के शरीर की रगड़ से यह निशान बने हैं। मंथन के बाद जो हुआ वह अलग कहानी है। पर अभी भी पर्वत के ऊपर शंख-कुंड़ में एक विशाल शंख की आकृति स्थित है। कहते हैं शिवजी ने इसी महाशंख से विष
पान किया था।
.
पुराणों के अनुसार एक बार विष्णुजी के कान के मैल से मधु और कैटभ नाम के दो राक्षस भाईयों का जन्म हुआ। पर धीरे-धीरे इनका उत्पात इतना बढ गया कि सारे देवता इनसे भय खाने लगे। हद से गुजरने के बाद आखिर इन्हें खत्म करने के लिए विष्णुजी को इनसे युद्ध करना पड़ा। इसमें भी मधु का अंत करने में विष्णुजी परेशान हो गये। हजारों साल के
युद्ध के बाद अंत में उन्होंने उसका सिर काट उसे मंदार पर्वत के नीचे दबा दिया। पर उसकी वीरता से प्रसन्न हो कर उसके सिर की आकृति पर्वत पर बना दी गयी। जो अब यहां आने वालों के लिए दर्शनीय स्थल बन चुकी है।
.
वैसे तो यहां अनगिनत सरोवर और मंदिर हैं, सबकी अपनी-अपनी कहानी भी है पर पर्वत के नीचे बने जल-कुंड़ का अपना महत्व है। इसके पानी को रोगों से मुक्ति दिलाने वाला माना जाता है।
.
तस्वीर में मंदार पर स्थित मधु दैत्य की विशाल आकृति! इसी पर्वत पर भगवान विष्णु ने मधु दैत्य का वध किया
था ! इसी कारणवश विष्णु का नाम “मधुसूदन” पड़ा! यह पर्वत श्रष्टि के आदि मेँ उत्पन्न हुआ था, जो पृथ्वी की मूल नाभि है! मंदार क्षेत्र मेँ ही पृथ्वी सर्वप्रथम अस्तित्व मेँ आई, इसलिए पृथ्वी का प्रथम नाम “मेदिनी” है!

Sumit Kumar's photo.
Like ·
Posted in भारत का गुप्त इतिहास- Bharat Ka rahasyamay Itihaas

क्या इन मुद्दों की CBI जाँच नहीं होनी चाहिए


क्या इन मुद्दों की CBI जाँच नहीं होनी चाहिए …
1- रानी लक्ष्मी बाई की मौत के पीछे सिंधिया परिवार का कितना हाथ था ??
2- चन्द्र शेखर आज़ाद की मृत्यु नेहरू के घर पर गरमा गरम बहस के कुछ घंटे बाद ही क्यों हो जाती है ??
3- भगत सिंह के पहचान में मुख्य भूमिका निभाने वाले शोभा सिंह से ऐसा कांग्रेसियों का कौन सा प्रेम है जो उसके नाम पर दिल्ली में सरकारी इमारतों का नाम रखवा दिया ??
4- नेता जी सुभाष चन्द्र बोस की मौत के पीछे नेहरु की कितनी भूमिका रही ??
5- लोर्ड माउंट बेटन की बीबी से नेहरू के ऐसे कौन से रिश्ते थे जिस कारण वह अंग्रेजो की हर बात मान लेते थे और भारत माता के दो टुकड़े करने के लिए राज़ी हो गए ??
6- सरदार पटेल जैसे महान नेता को नेपथ्य में धकेलने में नेहरू का कितना हाथ था ??
7- कश्मीर के मुद्दे को जान बुझकर अपने कश्मीरी रिश्तेदारों के कारण लटकाकर रखने में नेहरू की कितनी भूमिका थी ??
8- नेहरु के समय जनसंघ के महान नेता श्यामा प्रसाद के मौत के पीछे नेहरु की कितनी भूमिका रही ??
9- लाल बहादुर शास्त्री के मौत में इंदिरा गांधी का क्या योगदान था ??
10- जनसंघ के महान विचारक और प्रसिद्द दार्शनिक पंडित दीन दयाल उपाध्याय एवं श्यामा प्रसाद मुख़र्जी की मौत में इंदिरा गांधी एवं कांग्रेस की क्या भूमिका थी ??
11- संजय गांधी के मौत में इंदिरा गांधी का क्या योगदान रहा ??
12- इंदिरा गांधी के गोली मारे जाने के बाद सोनिया गांधी द्वारा उन्हें अस्पताल में ले जाने में की गयी देरी जान बूझकर थी या संयोग था, इसकी जांच क्यों न की जाय ??
13-भोपाल गैस त्रासदी के मुख्य अभियुक्त एंडरसन को देश से भगाने में गांधी परिवार का क्या योगदान रहा ??
14- 1984 में दंगाईयो को भड़का कर लाखों सिक्ख भाइयो को मरवाने वाला कौन है ??
15- माधव राव ऐसा कौन सा राज़ जानते थे जिसके कारण उनकी असामयिक मौत हो गयी ??
16- राजेश पायलेट की असामयिक मृत्यु के पीछे किसका हाथ हैं ??
17- क्वात्रोची के बंद खातो को चुपके से बिना देश को बताये चालू कर देने के पीछे किसका हाथ था ??
18- रोबेर्ट वाड्रा के परिवार वालो के रहस्यमय मौत की जिम्मेवारी किस पर है ??
19- सुल्तानपुर के गेस्ट हाउस में रात को शराब पीकर अपने अंग्रेज मित्रो के साथ लड़की के साथ बलात्कार करने वाला कौन है ??
20- राहुल गांधी किस नियम के अंतर्गत अवैध होते हुए भी भारत में दोहरी नागरिकता ग्रहण किये हुए है ??
21- किस हैसियत से सोनिया गाँधी भारतीय वायुसेना के विमानों में सफर करती थी ??
22- रोबर्ट वाड्रा को किस अधिकार से एअरपोर्ट चेकिंग से छूट मिली हुई थी ??
23- सोनिया गाँधी का इलाज सरकारी खजाने से क्यों कराया जाता था , उन्हें ऐसी कौनसी बीमारी है जिसका इलाज भारत में नहीं हो सकता ??

fb.com/jatindivecha19

fb.com/jatindivecha19

fb.com/jatindivecha19

जय हिन्दुराष्ट्र

Jatin Divecha's photo.
Posted in गौ माता - Gau maata

गाय के घी के लाभ:


गाय के घी के लाभ:
आज खाने में घी ना लेना एक फेशन बन गया है . बच्चे के जन्म के बाद डॉक्टर्स भी घी खाने से मना करते है . दिल के मरीजों को भी घी से दूर रहने की सलाह दी जाती है .ये गौमाता के खिलाफ एक खतरनाक साज़िश है . रोजाना कम से कम २ चम्मच गाय का घी तो खाना ही चाहिए .
– यह वात और पित्त दोषों को शांत करता है .
– चरक संहिता में कहा गया है की जठराग्नि को जब घी डाल कर प्रदीप्त कर दिया जाए तो कितना ही भारी भोजन क्यों ना खाया जाए , ये बुझती नहीं .
– बच्चे के जन्म के बाद वात बढ़ जाता है जो घी के सेवन से निकल जाता है . अगर ये नहीं निकला तो मोटापा बढ़ जाता है .
– हार्ट की नालियों में जब ब्लोकेज हो तो घी एक ल्यूब्रिकेंट का काम करता है .
– कब्ज को हटाने के लिए भी घी मददगार है .
– गर्मियों में जब पित्त बढ़ जाता है तो घी उसे शांत करता है .
– घी सप्तधातुओं को पुष्ट करता है .
– दाल में घी डाल कर खाने से गेस नहीं बनती .
– घी खाने से मोटापा कम होता है .
– घी एंटी ओक्सिदेंट्स की मदद करता है जो फ्री रेडिकल्स को नुक्सान पहुंचाने से रोकता है .
– वनस्पति घी कभी न खाए . ये पित्त बढाता है और शरीर में जम के बैठता है .
– घी को कभी भी मलाई गर्म कर के ना बनाए . इसे दही जमा कर मथने से इसमें प्राण शक्ति आकर्षित होती है . फिर इसको गर्म करने से घी मिलता है

अध्यापक भारत's photo.