1857 की क्रांति से जुड़े दिल देहला देने वाले महत्तवपूर्ण तथ्य……जिसे सेक्युलर वामपंथी इतिहासकारो ने जानबूझकर छिपाया……




1857 की क्रांति से जुड़े दिल देहला देने वाले महत्तवपूर्ण तथ्य……
यह भारत में महाभारत के बाद लड़ा गया सबसे बडा युद्ध था। इस संग्राम की मूल प्रेरणा स्वधर्म की रक्षा के लिये स्वराज की स्थापना करना था। यह स्वाधीनता हमें बिना संघर्ष, बिना खड़ग-ढ़ाल के नहीं मिली, लाखों व्यक्तियों द्वारा इस महायज्ञ में स्वयं की आहुति देने से मिली है।
लार्ड डलहौजी ने 10 साल के अन्दर भारत की 21 हजार जमीदारियाँ जब्त कर ली और हजारों पुराने घरानों को बर्बाद कर दिया ब्रितानियों ने अपने अनुकूल नवशिक्षित वर्ग तैयार किया तथा भारतीय शिक्षा पर द्विसूत्रीय शिक्षा प्रणाली लागू की ताकि ये लोग ब्रितानी सरकार को चलाने मे मदद कर सके। ब्रिटिश सरकार ने 1834 में सभी स्कूलों में बाइबिल का अध्ययन अनिवार्य बना दिया क्योंकि ईस्ट इंडिया कंपनी के सभी अधिकारी सामान्यत: अपने व्यापारिक काम के साथ-साथ ईसाई मत का प्रचार करते हुए लोगों को धर्मांतरित करना अपना धर्मिक कर्त्तव्य मानते थे।
विश्व में चित्तौड ही एक मात्र वह स्थान है, जहाँ 900 साल तक आजादी की लड़ाई लड़ी गई।भारत में ब्रिटिश सरकार के शासन काल के समय जहां-जहां ब्रितानियों का राज था वहाँ आम लोग उनके सामने घुड़सवारी नहीं कर पाते थे।क्रांति के समय प्रत्येक गाँव में रोटी भेजी जाती थी जिसे सब मिलकर खाते व क्रांति का संकल्प करते थे। कई रोटियाँ बनकर आस पास के गाँवो में जाती। सिपाहियों के पास कमल के फ़ूल जाते व हर सैनिक इसे हाथ में लेकर क्रांति की शपथ लेता था।दिल्ली पर चारों तरफ़ से ब्रितानियों ने हमला किया जिसमें पहले ही दिन उनके तीन मोर्चो के प्रमुख कमांडर भयंकर रू प से घायल हुए, 66 अधिकारी व 404 जवान मृत हुए।
बनारस के आसपास जनरल नील ने बदले की भावना से भंयकर अत्याचार किए। हजारों लोगों को फ़ांसी देना, गाँव जलाकर लोगों को जिन्दा जलाना जैसे कई प्रकार के अत्याचार किए। वे बड़े वृक्ष की हर डाली पर लोगों को फ़ांसी पर लटकाते चले गये। 24 जुलाई को क्रांतिकारी पीर अली को ब्रितानियों ने पटना में फ़ांसी देते ही दानापुर की पलटन ने संग्राम प्रारम्भ कर दिया। उन्होंने जगदीशपुर के 80 साल के वयोवृद्ध राजपूत कुंवरसिह को अपना नेता बनाया। कुंवरसिह ने इस उम्र में जिस तरह से कई लड़ाइयां लड़ी वह वास्तव में प्रेरणादायी है। उनकी प्रेरणा से पटना आरा, गया, छपरा, मोतीहरी, मुज्जफ़रनगर आदि स्थानों पर भी क्रांति हो पाई थी।
भारत के वीर सेनानी तांत्या टोपे को ब्रितानियों ने 7 अप्रेल 1859 की सुबह गिरफ़्तार किया और 15 अप्रैल को ग्वालियर के निकट शिवपुरी में सैनिक न्यायालय में मुकदमे का नाटक किया गया और उनको फ़ांसी देने की घोषणा की गई। 18 अप्रैल 1859 को शाम 7 बजे उन्होंने वीर योद्धा की तरह खुद ही अपनी गर्दन फ़ांसी के फ़ंदे में डाली व अनंत यात्रा पर निकल पडे।
यह बात सरासर झूठ है कि 1857 की क्रांति केवल सिपाही विद्रोह था क्योंकि शहीद हुए 3 लाख लोगों में आधे से ज्यादा आम लोग थे। जब इतनी बड़ी संख्या में लोग शामिल होते हैं तो वह विद्रोह नहीं बल्कि क्रांति या संग्राम कहलाता है।केवल दिल्ली में 27,000 लोगों को फ़ांसी दी ग़यी। भगवा, विरसामंुडा जैसे कई जनजाति नेता, क्रांतिकारी वसुदेव, बलदेव फ़डके से लेकर सावरकर, चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह जैसे कई दीवाने एवं सुभाष की आजाद हिन्द फ़ौज तथा गाँधीजी का अहिंसक आंदोलन आदि सभी ने इसी 1857 की क्रांति से प्रेरणा पाई थी। इस क्रांति के समय मुम्बई में 1213, बंगाल में 1994, मद्रास में 1044 सैनिकों के कोर्ट मार्शल किये गये थे।इस आंदोलन में तीन लाख से भी अधिक लोग शहीद हुए, अकेले अवध में 1 लाख 20 हजार लोगेंे ने अपनी आहुति दी थी। लखनऊ में 20 हजार, इलाहबाद में 6000 लोगों को ब्रितानियों ने सरेआम कत्ल किया था।
1857 के स्वाधीनता संग्राम के बाद 1857 में ईस्ट इंडिया कम्पनी के 100 पाँड की कीमत का शेयर 10000 पाँड में खरीदकर ब्रिटिश सरकार ने भारत पर अपना अधिकार कर लिया था।