Posted in भारत का गुप्त इतिहास- Bharat Ka rahasyamay Itihaas

एक अंग्रेज अपने आत्मकथा में लिखता है


Rajan Verma एक अंग्रेज अपने आत्मकथा में लिखता है :-
“हिन्दूस्तान को गुलाम बनाने के लिए जब हमने पहला युद्द किया और जीतने के बाद हम जब जुलुस निकाल रहे थे । तब सारे हिन्दू जुलुस देख कर ताली बजा रहे थे । अपने ही देश के राजा के हारने पर वे खुशी से हमारा स्वागत कर कर र
हे थे ।
आगे अंग्रेज़ लिखता है …
अगर हिन्दू उसी समय हम लोगो को सिर्फ एक-एक पत्थर उठाकर ही मार देते तो, हिन्दूस्तान सन् 1700 में ही आजाद हो जाता , उस समय हम अंग्रेज सिर्फ 3000 थे ।”
आज भी हिन्दू सुधरा नहीं है, हालत वही है ….
आज भी हिन्दू दिल्ली मे #मोदी की हार पर सऊदी अरब, पाकिस्तान और बांग्लादेश, चीन और अमेरिका के साथ मिलकर ताली बजा रहे है ।

Posted in गौ माता - Gau maata

कहीं आप विदेशी जर्सी गाय का दूध तो नहीं ए\पी रहें ??


कहीं आप विदेशी जर्सी गाय का दूध तो नहीं ए\पी रहें ??
_________________________________________________
कृप्या बिना पूरी post पढ़ें ऐसी कोई प्रतिक्रिया ना दें ! कि अरे तुमने गाय मे भी स्वदेशी -विदेशी कर दिया ! अरे गाय तो माँ होती है तुमने माँ को भी अच्छी बुरी कर दिया !! लेकिन मित्रो सच यही है की ये जर्सी गाय नहीं ये पूतना है ! पूतना की कहानी तो आपने सुनी होगी भगवान कृष्ण को दूध पिलाकर मारने आई थी वही है ये जर्सी गाय !!

पूरी post नहीं पढ़ सकते तो यहाँ click करें !
https://www.youtube.com/watch?v=AclsCffns1c

सबसे पहले आप ये जान लीजिये की स्वदेशी गाय और विदेशी जर्सी गाय (सूअर ) की पहचान क्या है ? देशी और विदेशी गाय को पहचाने की जो बड़ी निशानी है वो ये की देशी गाय की पीठ पर मोटा सा हम्प होता है जबकि जर्सी गाय की पीठ समतल होती है ! आपको जानकर हैरानी होगी दुनिया मे भारत को छोड़ जर्सी गाय का दूध को नहीं पीता ! जर्सी गाय सबसे ज्यादा डैनमार्क ,न्यूजीलैंड , आदि देशो मे पायी जाती है ! डैनमार्क मे तो कुल लोगो की आबादी से ज्यादा गाय है ! और आपको ये जानकार हैरानी होगी की डैनमार्क वाले दूध ही नहीं पीते ! क्यों नहीं पीते ? क्योंकि कैंसर होने की संभवना है ,घुटनो कर दर्द होना तो आम बात है ! मधुमेह (शुगर होने का बहुत बड़ा कारण है ये जर्सी गाय का दूध ! डैनमार्क वाले चाय भी बिना दूध की पीते है ! डैनमार्क की सरकार तो दूध ज्यादा होने पर समुद्र मे फेंकवा देती है वहाँ एक line बहुत प्रचलित है
! milk is a white poison !

और जैसा की आप जानते है भारत मे 36000 कत्लखानों मे हर साल 2 करोड़ 50 गाय काटी जाती है और जो 72 लाख मीट्रिक टन मांस का उत्पन होता है वो सबसे ज्यादा अमेरिका और उसके बाद यूरोप और फिर अरब देशों मे भेजा जाता है ! आपके मन मे स्वाल आएगा की ये अमेरिका वाले अपने देश की गाय का मांस क्यो नहीं खाते ?

दरअसल बात ये है की यूरोप और अमेरिका की जो गाय है उसको बहुत गंभीर बीमारियाँ है और उनमे एक बीमारी का नाम है Mad cow disease ! इस बीमारी से गाय के सींघ और पैरों मे पस पर जाती और घाव हो जाते हैं सामान्य रूप से जर्सी गायों को ये गंभीर बीमारी रहती है अब इस बीमारी वाली गाय का कोई मांस अगर खाये तो उसको इससे भी ज्यादा गंभीर बीमारियाँ हो सकती है ! इस लिए यूरोप और अमेरिका के लोग आजकल अपने देश की गाय मांस कम खाते हैं भारत की गाय के मांस की उन्होने ज्यादा डिमांड है ! क्योंकि भारत की गायों को ये बीमारी नहीं होती है ! आपको जानकार हैरानी होगी जर्सी गायों को ये बीमारी इस लिए होती है क्योंकि उसको भी मांसाहारी भोजन करवाया जाता है ताकि उनके शरीर मे मांस और ज्यादा बढ़े ! यूरोप और अमेरिका के लोग गाय को मांस के लिए पालते है मांस उनके लिए प्राथमिक है दूध पीने की वहाँ कोई परंपरा नहीं है वो दूध पीना अधिक पसंद भी नहीं करते !!

तो जर्सी गाय को उन्होने पिछले 50 साल मे इतना मोटा बना दिया है की वे भैंस से भी ज्यादा बत्तर हो गई है ! यूरोप की गाय की जो मूल प्रजातियाँ है holstein friesian ,jarsi ये बिलकुल विचित्र किसम की है उनमे गाय का कोई भी गुण नहीं बचा है ! जितने दुर्गुण भैंस मे होते हैं वे सब जर्सी गाय मे दिखाई देते हैं !
उदाहरण के लिए जर्सी गाय को अपने बचे से कोई लगाव नहीं होता और जर्सी गाय अपने बच्चे को कभी पहचानती भी नहीं ! कई बार ऐसा होता है की जर्सी गाय का बच्चा किसी दूसरी जर्सी गाय के साथ चला जाए उसको कोई तकलीफ नहीं !

लेकिन जो भारत की देशी गाय है वो अपने बच्चे से इतना प्रेम करती है इतना लगाव रखती है की अगर उसके बच्चे को किसी ने बुरी नजर से भी देखा तो वो मर डालने के लिए तैयार हो जाती है ! देशी गाय की जो सबसे बड़ी विशेषता है वो ये की वह लाखो की भीड़ मे अपने बच्चे को पहचान लेती है और लाखो की भीड़ मे वो बच्चा अपनी माँ को पहचान लेता हैं ! जर्सी गाय कभी भी पैदल नहीं चल पाती ! चलाने की कोशिश करो तो बैठ जाती है ! जबकि भारतीय गाय की ये विशेषता है
उसे कितने भी ऊंचे पहाड़ पर चढ़ा दो चढ़ती चली जाएगी !

कभी आप हिमालय पर्वत की परिक्रमा करे जितनी ऊंचाई तक मनुष्य जा सकता है उतनी ऊंचाई तक आपको देशी गाय देखने को मिलेगी ! आप ऋषिकेश ,बद्रीनाथ ,आदि जाए जितनी ऊंचाई पर जाए 8000 -9000 फिट तक आपको देशी गाय देखने को मिलेगी ! जर्सी गाय को 10 फिट ऊपर चढ़ाना पड़े तकलीफ आ जाती है
जर्सी गाय का पूरा का पूरा स्वभाव भैंस जैसा है बहुत बार ऐसा होता है जर्सी गाय सड़क पर बैठ जाये और पीछे से लोग होरन बजा बजा कर पागल हो जाते है लेकिन वो नहीं हटती ! क्योंकि हटने के लिए जो i q चाहिए वो उसमे नहीं है !!
_______________

सामान्य रूप से ये जो जर्सी गाय उसके बारे मे यूरोप के लोग ऐसा मानते है की इसको विकसित किया गया है डुकर (सूअर )के जीन से ! भगवान ने गाय सिर्फ भारत को दी है और आपको सुन कर हैरानी होगी ये जितनी भी जर्सी गाय है यूरोप और अमेरिका मे इनका जो वंश बढ़ाया गया है वो सब artificial insemination से बढ़ाया गया और आप सब जानते है artificial insemination मे ये गुंजाइश है की किसी भी जानवर का जीन चाहे घोड़े ,का चाहें सूअर का उसमे डाल सकते है ! तो इसे सूअर से विकसित किया गया है ! और artificial insemination से भी उसको गर्भवती बनाया जाता है ये उनके वहाँ पिछले 50 साल से चल रहा है !!

यूरोप और अमेरिका के भोजन विशेषज्ञ (nutrition expert ) हैं ! उनका कहना है की अगर जर्सी गाय का भोजन करे तो 15 से 20 साल मे कैंसर होने की संभवना ,घुटनो का दर्द तो तुरंत होता है ,sugar,arthritis,ashtma और ऐसे 48 रोग होते है इसलिए उनके देश मे आजकल एक अभियान चल रहा है की अपनी गाय का मांस कम खाओ और भारत की सुरक्षित गाय मांस अधिक खाओ ! इसी लिए यूरोपियन कमीशन ने भारत सरकार के साथ समझोता कर रखा है और हर साल भारत से 72 लाख मीट्रिक टन मांस का निर्यात होता है जिसके लिए 36000 कत्लखाने इस देश मे चल रहें हैं !!
__________________________

तो मित्रो उनके देश के लोग ना तो आजकल अपनी गाय का मांस खा रहे हैं और ना ही दूध पी रहें हैं ! और हमारे देश के नेता इतने हरामखोर है की एक तरह तो अपनी गाय का कत्ल करवा रहें हैं और दूसरी तरफ उनकी सूअर जर्सी गाय को भारत मे लाकर हमे बर्बाद करने मे लगे है ! पंजाब और गुजरात से सबसे ज्यादा जर्सी गाय है ! और एक गंभीर बात आपको सुन कर हैरानी होगी भारत की बहुत सी घी बेचने वाली कंपनियाँ बाहर से जर्सी गाय का दूध import करती है !

दूध को दो श्रेणियों मे बांटा गया है A1 और A2 !
A1 जर्सी का A2 भारतीय देशी गाय का !

तो होता ये है की इन कंपनियो को अधिक से अधिक रोज घी बनाना है अब इतनी गाय को संभलना उनका पालण पोषण करना वो सब तो इनसे होता नहीं ! और ना ही इतनी गाय ये फैक्ट्री मे रख सकते है तो ये लोग क्या करते है डैनमार्क आदि देशो से A1 दूध (जर्सी गाय ) का मँगवाते है powder (सूखा दूध )के रूप मे ! उनसे घी बनाकर हम सबको बेच रहें है ! और हम सबकी मजबूरी ये है की आप इनके खिलाफ कुछ कर नहीं सकते क्योंकि भारत मे कोई ऐसा कानून नहीं बना जो ये कहता है की जर्सी गाय का दूध A1 नहीं पीना चाहिए ! अगर कानून होगा तो ही आप कुछ करोगे ना ? यहाँ A1 – को जाँचने की लैब तक नहीं ! नेता देश बेचने मे मस्त हैं
_______________________
तो आप सबसे निवेदन है की आप देसी गाय का ही दूध पिये उसी के गोबर से राजीव भाई द्वारा बताए फार्मूले से खाद बनाए और खेती करे ! देशी गाय की पहचान हमने ऊपर बताई थी की उसकी पीठ पर मोटा सा हम्प होता है ! दरअसल ये हम्प ही सूर्य से कुछ अलग प्रकार की तिरंगे लेता है वही उसके दूध ,मूत्र और गोबर को पवित्र बनाती है जिससे उसमे इतने गुण है ! गौ माता सबसे पहले समुन्द्र मंथन से निकली थी जिसे कामधेनु कहते है गौ माता को वरदान है की इसके शरीर से निकली को भी वस्तु बेकार नहीं जाएगी ! दूध ,हम पी लेते है ,मूत्र से ओषधि बनती है ,गोबर से खेती होती है ! और गोबर गैस गाड़ी चलती है , बिजली बनती है ! सूर्य से जो किरणे इसके शरीर मे आती है उसी कारण इसे दूध मे स्वर्ण गुण आता है और इसके दूध का रंग स्वर्ण (सोने जैसा होता है ) ! और गाय के दूध से 1 ग्राम भी कोलोस्ट्रोल नहीं बढ़ता !

कल से ही देशी गाय का दूध पिये अपने दूध वाले भाई से पूछे वो किस गाय का दूध लाकर आपको दे रहा है (वैसे बहुत से दूध वालों को देशी -जर्सी गाय का अंतर नहीं पता होगा ) आप बता दीजिये दूध देशी गाय का ही पिये ! और घी भी देशी गाय का ही खाएं !! गाय के घी के बारे मे अधिक जानकारी के लिए ये जान लीजिये !

गाय का घी मुख्य रूप से 2 तरह का है एक खाने वाला घी है और दूसरा पंचग्व्या नाक मे डालकर इलाज करने वाला ! ( पंचग्व्या घी की लागत कम होती है क्योंकि 2 -2 बूंद नाक मे या नाभि मे पड़ता है 48 रोग ठीक करता है ( 8 से 10 हजार रूपये लीटर बिकता है ) लेकिन 10 ML ही महीना चल जाता है ! इसको असली विधि जो आयुर्वेद मे लिखी उसी ढंग से बनाने वाले भारत मे ना मात्र लोग है !
एक गुजरात मे भाई है dhruv dave जी वैसे वो सबको नहीं बेचते केवल रोगी को ही देते हैं लेकिन फिर भी कभी एक बार इस्तेमाल करने की इच्छा हो तो आप email से संपर्क कर सकते हैं davedhruvever@gmail.com अगर उत्पादन मे हुआ तो शायद आपको मिल जाएँ !

आयुर्वेद मे खाने वाला गाय के दूध का घी निकालने की जो विधि लिखी है उस विधि से आप घी निकले तो आपको 1200 से 2000 रुपए किलो पड़ेगा ! क्योकि 1 किलो घी के लिए 25 से 30 लीटर दूध लग जाता है ! महंगा होने का कारण ये भी है की देशी गाय की संख्या काम होती जा रही है कत्ल बहुत हो रहा है वैसे तो यही घी सबसे बढ़िया है ! लेकिन एक दूसरे ढंग से भी आजकल निकालने लग गए हैं ! जिससे दूध से सीधा क्रीम निकालकर घी बनाया जाता है ! अब समस्या ये है की लगभग सभी कंपनियाँ या तो भैंस का घी बेचती है या गाय का घी बोलकर जर्सी का बेच रही है !

आपको अगर घी खाना ही है तो भारत की सबसे बड़ी गौशाला – विश्व की भी सबसे बढ़ी गौशाला वो है राजस्थान मे उसका नाम है पथमेढ़ा गौ शाला ! उनका घी खा सकते हैं पथमेढ़ा गौशाला मे 3 लाख देशी गाय है ! इनके घी की सबसे बड़ी विशेषता है ये है की ये देशी गाय का घी ही बेचते हैं ! बस अंतर ये है की यह क्रीम वाले ढंग से निकाला बनाया जाता है लेकिन फिर भी भैंस और जर्सी सूअर के घी की तुलना मे बहुत बहुत बढ़िया है ! लेकिन इसका मूल्य साधारण घी से थोड़ा ज्यादा है ये 1 लीटर 600 रूपये मे उपलब्ध है ! भगवान की अगर आप पर आर्थिक रूप से ज्यादा कृपा तो आप देशी गाय ही घी खाएं !! कम खा लीजिये लेकिन जर्सी का कभी मत खाएं !! और दूध भी हमेशा देशी गाय का ही पिये !

और अंत मे एक और बात जान लीजिये अब इन विदेशी लोगो को भारत की गाय की महत्ता का अहसास होने लगा है आपको जानकर हैरानी होगी भारतीय नस्ल की सबसे बढ़िया गाय( गीर गाय ) को जर्मनी वाले अपने देश मे ले जाकर इनका वंश आगे बढ़ाकर 2 लाख डालर (लगभग 1 करोड़ की एक गाय बेच रहें है !
जबकि भारत मे ये गीर गाय सिर्फ 5000 ही रह गई है !! तो मित्रो सबसे पहला कार्य अगर आप देश के लिए करना चाहते हैं तो गौ रक्षा करें गौ रक्षा ही भारत रक्षा है !!

आपने पूरी पोस्ट पढ़ी बहुत बहुत धन्यवाद !
एक बार यहाँ जरूर click करें

https://www.youtube.com/watch?v=AclsCffns1c

अमर बलिदानी राजीव दीक्षित जी की जय !
जय गौ माता जय भारत माता !

Posted in भारत का गुप्त इतिहास- Bharat Ka rahasyamay Itihaas

मेवाड़ और मारवाड़


कृपया जरूर पढ़ें और शेयर भी करें—–
मेवाड़ और मारवाड़ का सीमा निर्धारण।

जय राजपूताना———
कृपया पूरा पढ़े और अधिक से अधिक शेयर करें…….
===============================
“जहाँ बबूल वहाँ मारवाड और जहाँ आम वह मेवाड़”

राजस्थान में मेवाड़ और मारवाड़ सबसे शक्तिशाली राज्य माने जाते थे।तुर्क/मुगल/पठान आक्रमणकारियों के विरुद्ध इन्होंने कई बार एक दूसरे का सहयोग किया।किन्तु कई बार सीमा विवाद को लेकर इनके बीच संघर्ष भी होता था।ऐसे में राजपूताने की एकता के लिए इन राज्यों के बीच सीमा निर्धारण आवशयक था।

“ऐसे हुआ था मेवाड़ और मारवाड में सीमा निर्धारण”

मेवाड़ और मारवाड के बीच स्थायी सीमा निर्धारण महाराणा कुम्भा और जोधा के वक़्त हुआ. पर इसके पीछे की कहानी बहुत रोचक है. सीमा तय करने के लिए जोधा और कुम्भा के मध्य संधि हुई. “जहाँ बबूल वहाँ मारवाड और जहाँ आम-आंवला वह मेवाड़” की तर्ज पर सीमा निर्धारण था. क्या था बबूल और आम का अर्थ. इसे समझने के लिए संक्षिप्तता में रहते हुए इतिहास में चलते है.

सन 1290 में दिल्ली में जलालुद्धीन ने खिलजी वंश की स्थापना की. उस वक्त मध्य भारत पर कब्ज़ा करने के लिए उसने अपने भतीजे और दामाद अलाउद्दीन खिलजी को मालवा पर आक्रमण के लिए भेजा. बाद में विंध्यांचल पार कर उसने देवगिरी (वर्तमान औरंगाबाद) के राजा रामचंद्र को हराया. तत्काल बाद उसने अपने श्वसुर जलालुद्दीन की हत्या कर खुद को दिल्ली का शासक घोषित कर दिया. 1310 में उसने चित्तोड़ पर आक्रमण किया. उस वक़्त चित्तोड़ पर रावल रतनसिंह (पहले मेवाड़ के शासक रावल उपाधि धारण करते थे) का शासन था. सुल्तान लड़कर नहीं किन्तु छल कर सफल हुआ. यहाँ पहले पद्मिनी की शीशे में शक्ल देखने और बाद में जौहर का वृतांत है. चित्तोड़ किले की तलहटी में स्थित एक मकबरे में 11 मई 1310 में चित्तोड़ फतह का जिक्र है. अलाउद्दीन ने चित्तोड़ अपने बेटे खिजर को दिया और चित्तोड़ को नया नाम मिला: खिजराबाद.
यह वर्णन गौरीशंकर ओझा की “उदयपुर राज्य का इतिहास” में मिलता है. बाद में खिजर दिल्ली चला गया और पीछे रतनसिंह के भांजे मालदेव सोनगरा को करदाता के रूप में चित्तोड़ सौंप दिया. बाद में हम्मीर ने चित्तोड़ पर गुहिल वंश का राज पुनः कायम किया. हम्मीर सिसोद जागीर से था सो यह वंश सिसोदिया कहलाया.

हम्मीर के समय से मेवाड़ के शासकों ने “राणा” उपाधि को धारण किया. हम्मीर ने मेवाड़ का पुनः उद्धार किया. इडर, बूंदी आदि को पुनः जीता. हम्मीर के बाद क्रमशः उसका पुत्र क्षैत्र सिंह और पौत्र लक्षसिंह राणा बना. लक्षसिंह राना लाखा के नाम से प्रसिद्द हुआ. लाखा के वक़्त जावर गांव में चांदी की खाने निकल आई और मेवाड़ समृद्ध राज्य बना.

इसके बाद की घटना बहुत अद्वितीय घटी. मंडोर के राठोड़ चूंडा ने अपने छोटे बेटे कान्हा को युवराज बनाना चाहा, जो उस वक़्त की शासन परंपरा के खिलाफ था. चूंडा का ज्येष्ठ पुत्र रणमल नाराज होकर राना लाखा की शरण में मेवाड़ आ गया. रणमल के साथ उसकी बहन हंसाबाई भी मंडोर से मेवाड़ आ गयी. रणमल ने बहन हंसाबाई की शादी लाखा के बड़े बेटे “चूंडा” से करवाने की चाह में राणा के पास शकुन का नारियल भेजा. राणा उस वक्त दरबार में थे और उन्होंने ठिठोली में कह दिया कि उन्हें नहीं लगता कि उन जैसे बूढ़े के लिए ये नारियल आया है सो चूंडा आकर ये नारियल लेगा. मजाक में कही गयी बात से लाखा के बेटे को लगा कि राणा की अनुरक्ति हंसाबाई की ओर है. उन्होंने आजीवन कुंवारा रहने और हंसाबाई का विवाह अपने पिता से करवाने की भीष्म प्रतिज्ञा की. यह भी प्रण किया कि राणा और हंसाबाई की औलाद ही मेवाड़ की शासक बनेगी.

राणा लाखा और हंसाबाई के पुत्र मोकल को मेवाड़ की गद्दी मिली. मरते वक़्त लाखा ने ये व्यवस्था की कि मेवाड़ के महाराणाओ की ओर से जो भी नियम पट्टे जारी किये जायेंगे उन पर भाले का राज्य-चिन्ह चूंडा और उसके वंशधर करेंगे, जो बाद में सलूम्बर के रावत कहलाये.

चूंडा ने मोकल के साथ मिलकर मेवाड़ को मजबूत करने में कोई कसर नहीं छोड़ी किन्तु मामा रणमल को यह डर था कि चूंडा मौका मिलने पर मोकल को मरवा देगा. उसने बहन हंसाबाई के कान भरे. हंसाबाई ने चूंडा को विश्वासघाती बताकर मेवाड़ से चले जाने का आदेश दे दिया. व्यथित चूंडा ने मेवाड़ छोड़ने का निश्चय किया किन्तु इतिहासकार लिखते है कि उसने राजमाता से कहा था कि अगर मेवाड़ में कुछ भी बर्बादी हुई तो वह पुनः लौटेगा. चूंडा ने अपने भाई राघवदेव को मोकल की रक्षार्थ मेवाड़ में छोड़ दिया.चूंडा के जाते ही रणमल ने अपने भांजे मोकल का संरक्षक बन गया. वह कई बार मोकल के साथ राजगद्दी पर बैठ जाता, जो मेवाड़ के सामंतो को बुरा लगता. रणमल स्वयं मेवाड़ का सामंत तो हो गया पर उसका पूरा ध्यान अपने मूल राज्य मंडोर की तरफ था. उसने मंडोर से राठोडों को बुलाकर मेवाड़ के मुख्य पद उन्हें दिए.

राजा श्यामलदास “वीर विनोद” में लिखते है कि मेवाडी सामंतों को यह नागवार गुज़रा. उन्हें लगता था कि मेवाड़ अब मारवाड का हिस्सा हो जायेगा ! इसी दौरान जब मारवाड में उत्तराधिकार का संकट आया तो रणमल ने मेवाड़ की सेना के सहारे मंडोर पर कब्ज़ा कर लिया. एक बार मौका पाकर रणमल ने भरे दरबार में चूंडा के भाई राघवदेव की हत्या कर दी. इस दौरान गुजरात के सुल्तान अहमदशाह से युद्ध के दौरान मोकल के साथ स्व. राणा लाखा की पासबान (रखैल ) के दो बेटे चाचा और मेरा, भी मोकल के साथ हुए. युद्ध जीत लिया गया किन्तु चाचा और मेरा को यथोचित सम्मान नहीं मिला. कारण था रखैल के पुत्र होना. बाद में इन दोनों ने मोकल को धोखे से मार डाला. विविध घटनाक्रम के बाद मोकल का बेटा कुम्भकर्ण (कुम्भा) राणा बना.

कुम्भा को भी रणमल का साथ मिला. किन्तु एक बार रणमल ने नशे में किसी पासबान दासी को कह दिया कि वह कुम्भा को मार कर मेवाड़ और मारवाड का शासक बनेगा. बात जब कुम्भा तक पहुंची तो उन्हें यह नागवार गुज़रा. रणमल स्थिति भांपकर चित्तोड़ दुर्ग छोडकर तलहटी में आकर रहने लगा. इसी दौरान रणमल की हत्या कर दी गई. उसका बेटा जोधा मेवाड़ से भाग निकला.

बाद में मंडोर, लूनकरनसर, पाली, सोजत, मेड़ता आदि राज्य भी मेवाड़ के अंतर्गत हो गए. ऐसे में जोधा छिपते छिपाते बीकानेर के पास जाकर छिप गया. कालांतर में राजमाता हंसाबाई ने अपने पौत्र कुम्भा से भतीजे जोधा के लिए अभयदान माँगा. महाराणा कुम्भा ने वचन दिया. उसी से अभय होकर जोधा ने मडोर पुनः अपने कब्ज़े में किया. किन्तु अभयदान के चलते वह धीरे धीरे सोजत, पाली तक बढ़ आया. किन्तु जब वह मेवाड़ के परगनो पर आक्रमण करने लगा तो बात ज्यादा बढ़ गयी. कुम्भा वचन में बंधा था. यहाँ गौरीशंकर ओझा लिखते है कि एक बार जोश में आकर जोधा ने चित्तोड़ तक पर आक्रमण का फैसला लिया. वह अपने पिता की हत्या का बदला लेना चाहता था. जोधपुर के चारण साहित्य में तो यहाँ तक कहा गया है कि जोधा ने चित्तोड़ पर आक्रमण कर उसके दरवाज़े जला दिए. किन्तु इतिहासकार इसे सच नहीं मानते. क्योंकि उस दौर में कुम्भा ने गुजरात, मंदसौर, सिरोही, बूंदी, डूंगरपुर आदि शासकों को हराया था. उस वक़्त मेवाड़ की सीमा सीहोर (म.प्र.) से हिसार (हरियाणा) तक थी. केवल हाडोती के रावल (हाडा) और मेरवाडा (अजयमेरू अथवा अजमेर) अपनी स्वतंत्रता अक्षुण बनाये हुए थे.

जोधा द्वारा बार बार मेवाड़ के परगनो पर आक्रमण और कुम्भा द्वारा उसे कुछ नहीं कहे जाने को लेकर दोनों पक्षों के बीच संधि हुई. इतिहासकार लिखते है कि इस वक़्त जोधा ने अपनी बेटी “श्रृंगार देवी” का विवाह कुम्भा के बेटे रायमल से किया. अनुमान होता है कि जोधा ने मेवाड़ से अपना बैर बेटी देकर मिटाने की कोशिश की हो. किन्तु मारवाड के इतिहास में इस घटना का उल्लेख नहीं मिलता. मेवाड़ के इतिहास (वीर विनोद एवं कर्नल जेम्स टोड) में इस विवाह के बारे में लिखा गया है. बाद में इसी श्रृंगार देवी ने चित्तोड़ से बारह मील दूर गौसुंडी गांव में बावडी बनवाई,जिसके शिलालेख अब तक विद्यमान है.

मेवाड़ और मारवाड में हुई संधि में सीमा निर्धारण की आवश्यकता हुई. तय किया गया कि जहाँ जहाँ तक बबूल के पेड है, वह इलाका मारवाड में और जहाँ जहाँ आम-आंवला के पेड हो, वह स्थान हमेशा के लिए मेवाड़ का रहेगा. यह सीमांकन प्रायः स्थायी हो गया. इस सीमांकन के बाद सोजत (मेरवाडा-अजमेर के ब्यावर की सीमा तक) से थार (वर्तमान पाकिस्तान के सिंध की सीमा तक) तक और बीकानेर राज्य से बाड़मेर तक का भाग मारवाड के पास तथा बूंदी से लेकर वागड़ (डूंगरपुर) तथा इडर से मंदसौर तक का भाग मेवाड़ कहलाया. यद्यपि मेवाड़ इस से भी बड़ा था किन्तु आम्बेर (जयपुर), झुंझुनू, मत्स्य नगर, भरतपुर आदि मेवाड़ के करदाता के रूप में जाने जाते थे.
उस वक़्त मेवाड़ मुस्लिम त्रिकोण (नागौर- गुजरात-मालवा) के बीच फंसा राजपूती राज्य था. एक समय में जब कुम्भा ने मालवा की राजधानी मांडू और गुजरात की राजधानी “अहमद नगर’ पर हमला किया तो दोनों मुस्लिम शासकों ने कुम्भा को “हिंदू-सुरत्राण” की उपाधि से नवाजा. इसके शिला लेख कुम्भलगढ़ और राणकपुर के मंदिरों में मिलते है.

बाद में कुम्भा के बेटे महाराणा सांगा ने जब खानवा में बाबर से युद्ध किया तो मारवाड ने मेवाड़ का बराबर साथ दिया. इस से पता चलता है कि बैर सदा नहीं रहता. जोधा ने भी मेवाड़ की ओर से आक्रमण के आशंकाएं खत्म होते ही जोधपुर नगर बसाया….!
Copied from—गंगा सिंह मूठली