Posted in रामायण - Ramayan

अयोध्या की खूनी कहानी जिसे पढ़कर आप रो पड़ेंगे


अयोध्या की खूनी कहानी जिसे पढ़कर आप रो पड़ेंगे। कृपया सच्चे हिन्दुओं की संतानें ही इस लेख को पढ़ें।
जब बाबर दिल्ली की गद्दी पर आसीन हुआ उस
समय जन्मभूमि सिद्ध महात्मा श्यामनन्द जी महाराज के अधिकार
क्षेत्र में थी।
महात्मा श्यामनन्द की ख्याति सुनकर ख्वाजा कजल अब्बास
मूसा आशिकान अयोध्या आये । महात्मा जी के शिष्य बनकर ख्वाजा कजल अब्बास मूसा ने योग और सिद्धियाँ प्राप्त कर ली और उनका नाम
भी महात्मा श्यामनन्द के ख्यातिप्राप्त शिष्यों में लिया जाने
लगा। ये सुनकर जलालशाह नाम का एक फकीर भी
महात्मा श्यामनन्द के पास आया और उनका शिष्य बनकर सिद्धियाँ प्राप्त करने लगा।
जलालशाह एक कट्टर मुसलमान था, और उसको एक ही सनक थी,
हर जगह इस्लाम का आधिपत्य साबित करना । अत: जलालशाह ने अपने काफिर गुरू की पीठ में छुरा घोंपकर
ख्वाजा कजल अब्बास मूसा के साथ मिलकर ये विचार
किया की यदि इस मदिर को तोड़ कर मस्जिद बनवा दी जाये तो इस्लाम का परचम हिन्दुस्थान में स्थायी हो जायेगा। धीरे
धीरे जलालशाह और ख्वाजा कजल अब्बास मूसा इस साजिश
को अंजाम देने की तैयारियों में जुट गए ।
सर्वप्रथम जलालशाह और ख्वाजा बाबर के विश्वासपात्र बने और दोनों ने अयोध्या को खुर्द
मक्का बनाने के लिए जन्मभूमि के आसपास की जमीनों में बलपूर्वक मृत मुसलमानों को दफन करना शुरू किया॥ और मीरबाँकी खां के माध्यम से बाबर को उकसाकर मंदिर के विध्वंस
का कार्यक्रम बनाया। बाबा श्यामनन्द जी अपने मुस्लिम शिष्यों की करतूत देख के बहुत दुखी हुए और अपने
निर्णय पर उन्हें बहुत पछतावा हुआ। दुखी मन से बाबा श्यामनन्द जी ने
रामलला की मूर्तियाँ सरयू में प्रवाहित किया और खुद हिमालय
की और तपस्या करने चले गए। मंदिर के पुजारियों ने मंदिर के
अन्य सामान आदि हटा लिए और वे स्वयं मंदिर के द्वार पर रामलला की रक्षा के लिए खड़े
हो गए। जलालशाह
की आज्ञा के अनुसार उन चारो पुजारियों के सर काट लिए गए.
जिस समय मंदिर को गिराकर मस्जिद बनाने की घोषणा हुई उस समय भीटी के
राजा महताब सिंह बद्री नारायण की यात्रा करने के लिए
निकले थे,अयोध्या पहुचने पर रास्ते में उन्हें ये खबर
मिली तो उन्होंने अपनी यात्रा स्थगित कर दी और अपनी छोटी सेना में रामभक्तों को शामिल कर १ लाख चौहत्तर हजार लोगो के साथ बाबर की सेना के ४ लाख ५० हजार सैनिकों से लोहा लेने निकल पड़े।
रामभक्तों ने सौगंध ले रक्खी थी रक्त की आखिरी बूंद तक
लड़ेंगे जब तक प्राण है तब तक मंदिर नहीं गिरने देंगे।
रामभक्त वीरता के साथ लड़े ७० दिनों तक घोर
संग्राम होता रहा और अंत में राजा महताब सिंह समेत
सभी १ लाख ७४ हजार रामभक्त मारे गए। श्रीराम जन्मभूमि रामभक्तों के रक्त से लाल हो गयी। इस भीषण कत्ले आम के बाद मीरबांकी ने
तोप लगा के मंदिर गिरवा दिया ।
मंदिर के मसाले से ही मस्जिद का निर्माण
हुआ पानी की जगह मरे हुए हिन्दुओं का रक्त इस्तेमाल
किया गया नीव में लखौरी इंटों के साथ ।
इतिहासकार कनिंघम अपने लखनऊ गजेटियर के
66वें अंक के पृष्ठ 3 पर लिखता है की एक लाख चौहतर हजार
हिंदुओं की लाशें गिर जाने के पश्चात मीरबाँकी अपने मंदिर
ध्वस्त करने के अभियान मे सफल हुआ और उसके बाद
जन्मभूमि के चारो और तोप लगवाकर मंदिर को ध्वस्त कर
दिया गया..
इसी प्रकार हैमिल्टन नाम का एक अंग्रेज बाराबंकी गजेटियर में
लिखता है की ” जलालशाह ने हिन्दुओं के खून का गारा बना के
लखौरी ईटों की नीव मस्जिद बनवाने के लिए दी गयी थी। “

उस समय अयोध्या से ६ मील की दूरी पर सनेथू नाम का एक गाँव के पंडित देवीदीन पाण्डेय ने वहां के आस पास के
गांवों सराय सिसिंडा राजेपुर आदि के सूर्यवंशीय
क्षत्रियों को एकत्रित किया॥
देवीदीन पाण्डेय ने सूर्यवंशीय क्षत्रियों से
कहा भाइयों आप लोग मुझे अपना राजपुरोहित मानते
हैं ..अप के पूर्वज श्री राम थे और हमारे पूर्वज
महर्षि भरद्वाज जी। आज मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम की जन्मभूमि को मुसलमान
आक्रान्ता कब्रों से पाट रहे हैं और खोद रहे हैं इस परिस्थिति में
हमारा मूकदर्शक बन कर जीवित रहने की बजाय
जन्मभूमि की रक्षार्थ युद्ध करते करते
वीरगति पाना ज्यादा उत्तम होगा॥
देवीदीन पाण्डेय की आज्ञा से दो दिन के भीतर ९० हजार
क्षत्रिय इकठ्ठा हो गए दूर दूर के गांवों से लोग समूहों में
इकठ्ठा हो कर देवीदीन पाण्डेय के नेतृत्व में जन्मभूमि पर
जबरदस्त धावा बोल दिया । शाही सेना से लगातार ५
दिनों तक युद्ध हुआ । छठे दिन मीरबाँकी का सामना देवीदीन
पाण्डेय से हुआ उसी समय धोखे से उसके अंगरक्षक ने एक
लखौरी ईंट से पाण्डेय जी की खोपड़ी पर वार कर दिया। देवीदीन
पाण्डेय का सर बुरी तरह फट गया मगर उस वीर ने अपने
पगड़ी से खोपड़ी से बाँधा और तलवार से उस कायर अंगरक्षक
का सर काट दिया। इसी बीच मीरबाँकी ने
छिपकर गोली चलायी जो पहले ही से घायल देवीदीन पाण्डेय
जी को लगी और वो जन्मभूमि की रक्षा में वीर
गति को प्राप्त हुए..जन्मभूमि फिर से 90 हजार हिन्दुओं के रक्त से लाल हो गयी।
देवीदीन पाण्डेय के
वंशज सनेथू ग्राम के ईश्वरी पांडे का पुरवा नामक जगह पर
अब भी मौजूद हैं॥

पाण्डेय जी की मृत्यु के १५ दिन बाद हंसवर के महाराज
रणविजय सिंह ने सिर्फ २५ हजार सैनिकों के साथ मीरबाँकी की विशाल और शस्त्रों से
सुसज्जित सेना से रामलला को मुक्त कराने के लिए आक्रमण किया । 10 दिन तक युद्ध
चला और महाराज जन्मभूमि के रक्षार्थ
वीरगति को प्राप्त हो गए। जन्मभूमि में 25 हजार हिन्दुओं का रक्त फिर बहा।

रानी जयराज कुमारी हंसवर के स्वर्गीय महाराज रणविजय सिंह
की पत्नी थी।जन्मभूमि की रक्षा में महाराज के
वीरगति प्राप्त करने के बाद महारानी ने उनके कार्य
को आगे बढ़ाने का बीड़ा उठाया और तीन हजार
नारियों की सेना लेकर उन्होंने जन्मभूमि पर हमला बोल
दिया और हुमायूं के समय तक उन्होंने छापामार युद्ध जारी रखा। रानी के गुरु स्वामी महेश्वरानंद जी ने
रामभक्तों को इकठ्ठा करके सेना का प्रबंध करके जयराज
कुमारी की सहायता की। साथ ही स्वामी महेश्वरानंद
जी ने सन्यासियों की सेना बनायीं इसमें उन्होंने २४ हजार
सन्यासियों को इकठ्ठा किया और रानी जयराज कुमारी के
साथ , हुमायूँ के समय में कुल १० हमले जन्मभूमि के उद्धार के
लिए किये। १०वें हमले में शाही सेना को काफी नुकसान
हुआ और जन्मभूमि पर रानी जयराज कुमारी का अधिकार
हो गया।
लेकिन लगभग एक महीने बाद हुमायूँ ने पूरी ताकत से शाही सेना फिर भेजी ,इस युद्ध में स्वामी महेश्वरानंद और
रानी कुमारी जयराज कुमारी लड़ते हुए अपनी बची हुई
सेना के साथ मारे गए और जन्मभूमि पर
पुनः मुगलों का अधिकार हो गया। श्रीराम जन्मभूमि एक बार फिर कुल 24 हजार सन्यासियों और 3 हजार वीर नारियों के रक्त से लाल हो गयी।

रानी जयराज कुमारी और स्वामी महेश्वरानंद जी के बाद यद्ध
का नेतृत्व स्वामी बलरामचारी जी ने अपने हाथ में ले
लिया। स्वामी बलरामचारी जी ने गांव गांव में घूम कर
रामभक्त हिन्दू युवकों और सन्यासियों की एक मजबूत
सेना तैयार करने का प्रयास किया और जन्मभूमि के
उद्धारार्थ २० बार आक्रमण किये. इन २० हमलों में काम से
काम १५ बार स्वामी बलरामचारी ने जन्मभूमि पर
अपना अधिकार कर लिया मगर ये अधिकार अल्प समय के
लिए रहता था थोड़े दिन बाद बड़ी शाही फ़ौज
आती थी और जन्मभूमि पुनः मुगलों के अधीन
हो जाती थी..जन्मभूमि में लाखों हिन्दू बलिदान होते रहे।

उस समय का मुग़ल शासक अकबर था। शाही सेना हर दिन के इन युद्धों से कमजोर हो रही थी.. अतः अकबर ने बीरबल और टोडरमल के
कहने पर खस की टाट से उस चबूतरे पर ३ फीट का एक
छोटा सा मंदिर बनवा दिया. लगातार युद्ध करते रहने के
कारण स्वामी बलरामचारी का स्वास्थ्य
गिरता चला गया था और प्रयाग कुम्भ के अवसर पर
त्रिवेणी तट पर स्वामी बलरामचारी की मृत्यु
हो गयी ..
इस प्रकार बार-बार के
आक्रमणों और हिन्दू जनमानस के रोष एवं हिन्दुस्थान पर मुगलों की
ढीली होती पकड़ से बचने का एक राजनैतिक प्रयास की अकबर की इस कूटनीति से कुछ दिनों के लिए जन्मभूमि में रक्त नहीं बहा।
यही क्रम शाहजहाँ के समय भी चलता रहा।

फिर औरंगजेब के हाथ
सत्ता आई वो कट्टर मुसलमान था और उसने समस्त भारत से काफिरों के सम्पूर्ण सफाये का संकल्प लिया था। उसने लगभग 10 बार अयोध्या मे
मंदिरों को तोड़ने का अभियान चलकर यहाँ के सभी प्रमुख
मंदिरों की मूर्तियों को तोड़ डाला।
औरंगजेब के समय में समर्थ गुरु श्री रामदास
जी महाराज जी के शिष्य श्री वैष्णवदास जी ने
जन्मभूमि के उद्धारार्थ 30 बार आक्रमण किये। इन
आक्रमणों मे अयोध्या के आस पास के गांवों के सूर्यवंशीय
क्षत्रियों ने पूर्ण सहयोग दिया जिनमे सराय के ठाकुर
सरदार गजराज सिंह और राजेपुर के कुँवर गोपाल सिंह
तथा सिसिण्डा के ठाकुर जगदंबा सिंह प्रमुख थे। ये सारे
वीर ये जानते हुए भी की उनकी सेना और हथियार
बादशाही सेना के सामने कुछ भी नहीं है अपने जीवन के
आखिरी समय तक शाही सेना से लोहा लेते रहे। लम्बे समय तक चले इन युद्धों में रामलला को मुक्त कराने के लिए हजारों हिन्दू वीरों ने अपना बलिदान दिया और अयोध्या की धरती पर उनका रक्त बहता रहा।
ठाकुर
गजराज सिंह और उनके साथी क्षत्रियों के वंशज आज भी सराय मे मौजूद हैं। आज
भी फैजाबाद जिले के आस पास के सूर्यवंशीय क्षत्रिय
सिर पर
पगड़ी नहीं बांधते,जूता नहीं पहनते, छता नहीं लगाते,
उन्होने अपने पूर्वजों के सामने ये प्रतिज्ञा ली थी की जब
तक श्री राम जन्मभूमि का उद्धार नहीं कर लेंगे तब तक
जूता नहीं पहनेंगे,छाता नहीं लगाएंगे, पगड़ी नहीं पहनेंगे।

1640 ईस्वी में औरंगजेब ने मन्दिर को ध्वस्त करने के लिए जबांज खाँ के नेतृत्व में एक
जबरजस्त सेना भेज दी थी, बाबा वैष्णव दास के साथ साधुओं की एक
सेना थी जो हर विद्या मे निपुण थी इसे
चिमटाधारी साधुओं की सेना भी कहते थे । जब
जन्मभूमि पर जबांज खाँ ने आक्रमण किया तो हिंदुओं के
साथ चिमटाधारी साधुओं की सेना की सेना मिल
गयी और उर्वशी कुंड नामक जगह पर जाबाज़ खाँ
की सेना से सात दिनों तक भीषण युद्ध किया ।
चिमटाधारी साधुओं के चिमटे के मार से
मुगलों की सेना भाग खड़ी हुई। इस प्रकार चबूतरे पर स्थित
मंदिर की रक्षा हो गयी ।
जाबाज़ खाँ की पराजित सेना को देखकर औरंगजेब बहुत
क्रोधित हुआ और उसने जाबाज़ खाँ को हटाकर एक अन्य
सिपहसालार सैय्यद हसन अली को 50 हजार
सैनिकों की सेना और तोपखाने के साथ अयोध्या की ओर भेजा और साथ मे
ये आदेश दिया की अबकी बार जन्मभूमि को बर्बाद करके वापस आना है ,यह समय सन् 1680 का था ।
बाबा वैष्णव दास ने सिक्खों के
गुरु गुरुगोविंद सिंह से युद्ध मे सहयोग के लिए पत्र के
माध्यम संदेश भेजा । पत्र पाकर गुरु गुरुगोविंद सिंह सेना समेत तत्काल अयोध्या आ
गए और ब्रहमकुंड पर अपना डेरा डाला । ब्रहमकुंड वही जगह जहां आजकल गुरुगोविंद सिंह
की स्मृति मे सिक्खों का गुरुद्वारा बना हुआ है।
बाबा वैष्णव दास एवं सिक्खों के
गुरुगोविंद सिंह रामलला की रक्षा हेतु एकसाथ रणभूमि में कूद पड़े ।इन वीरों कें सुनियोजित हमलों से
मुगलो की सेना के पाँव उखड़ गये सैय्यद हसन
अली भी युद्ध मे मारा गया। औरंगजेब हिंदुओं की इस
प्रतिक्रिया से स्तब्ध रह गया था और इस युद्ध के बाद 4 साल तक उसने अयोध्या पर
हमला करने की हिम्मत नहीं की।

औरंगजेब ने सन् 1664 मे एक बार फिर श्री राम
जन्मभूमि पर आक्रमण किया । इस
भीषण हमले में शाही फौज ने लगभग 10 हजार से ज्यादा हिंदुओं
की हत्या कर दी नागरिकों तक को नहीं छोड़ा। जन्मभूमि हिन्दुओं के रक्त से लाल हो गयी। जन्मभूमि के अंदर नवकोण के एक कंदर्प कूप
नाम का कुआं था, सभी मारे गए हिंदुओं की लाशें मुगलों ने
उसमे फेककर चारों ओर चहारदीवारी उठा कर उसे घेर
दिया। आज भी कंदर्पकूप “गज शहीदा” के नाम से प्रसिद्ध
है,और जन्मभूमि के पूर्वी द्वार पर स्थित है।

शाही सेना ने जन्मभूमि का चबूतरा खोद डाला बहुत
दिनो तक वह चबूतरा गड्ढे के रूप मे वहाँ स्थित था ।
औरंगजेब के क्रूर अत्याचारो की मारी हिन्दू जनता अब
उस गड्ढे पर ही श्री रामनवमी के दिन भक्तिभाव से
अक्षत,पुष्प और जल चढाती रहती थी.

नबाब सहादत अली के समय 1763 ईस्वी में जन्मभूमि के रक्षार्थ अमेठी के राजा गुरुदत्त सिंह और पिपरपुर के
राजकुमार सिंह के नेतृत्व मे बाबरी ढांचे पर पुनः पाँच
आक्रमण किये गये जिसमें हर बार हिन्दुओं की लाशें अयोध्या में गिरती रहीं।

लखनऊ गजेटियर मे कर्नल हंट लिखता है की
“ लगातार हिंदुओं के हमले से ऊबकर नबाब ने हिंदुओं और
मुसलमानो को एक साथ नमाज पढ़ने और भजन करने
की इजाजत दे दी पर सच्चा मुसलमान होने के नाते उसने काफिरों को जमीन नहीं सौंपी।
“लखनऊ गजेटियर पृष्ठ 62”
नासिरुद्दीन हैदर के समय मे मकरही के
राजा के नेतृत्व में जन्मभूमि को पुनः अपने रूप मे लाने के
लिए हिंदुओं के तीन आक्रमण हुये जिसमें बड़ी संख्या में हिन्दू मारे गये। परन्तु तीसरे आक्रमण में डटकर
नबाबी सेना का सामना हुआ 8वें दिन हिंदुओं
की शक्ति क्षीण होने लगी ,जन्मभूमि के मैदान मे हिन्दुओं
और मुसलमानो की लाशों का ढेर लग गया । इस
संग्राम मे भीती,हंसवर,,मकरही,खजुरहट,दीयरा अमेठी के
राजा गुरुदत्त सिंह आदि सम्मलित थे। हारती हुई हिन्दू सेना के साथ वीर चिमटाधारी साधुओं की सेना आ
मिली और इस युद्ध मे शाही सेना के चिथड़े उड गये और
उसे रौंदते हुए हिंदुओं ने जन्मभूमि पर कब्जा कर लिया।
मगर हर बार की तरह कुछ दिनो के बाद विशाल शाही सेना ने
पुनः जन्मभूमि पर अधिकार कर लिया और हजारों हिन्दुओं को मार डाला गया। जन्मभूमि में हिन्दुओं का रक्त प्रवाहित होने लगा।

नावाब वाजिदअली शाह के समय के समय मे पुनः हिंदुओं ने जन्मभूमि के
उद्धारार्थ आक्रमण किया । फैजाबाद गजेटियर में कनिंघम ने लिखा
“इस संग्राम मे बहुत ही भयंकर खूनखराबा हुआ ।दो दिन
और रात होने वाले इस भयंकर युद्ध में सैकड़ों हिन्दुओं के मारे जाने के बावजूद हिन्दुओं नें राम जन्मभूमि पर कब्जा कर लिया। क्रुद्ध हिंदुओं
की भीड़ ने कब्रें तोड़ फोड़ कर
बर्बाद कर डाली मस्जिदों को मिसमार करने लगे और पूरी ताकत से मुसलमानों को मार-मार कर अयोध्या से खदेड़ना शुरू किया।मगर
हिन्दू भीड़ ने मुसलमान स्त्रियों और बच्चों को कोई
हानि नहीं पहुचाई।
अयोध्या मे प्रलय मचा हुआ था ।
इतिहासकार कनिंघम लिखता है की ये
अयोध्या का सबसे बड़ा हिन्दू मुस्लिम बलवा था।
हिंदुओं ने अपना सपना पूरा किया और
औरंगजेब द्वारा विध्वंस किए गए चबूतरे को फिर वापस
बनाया । चबूतरे पर तीन फीट ऊँची खस की टाट से एक
छोटा सा मंदिर बनवा लिया ॥जिसमे
पुनः रामलला की स्थापना की गयी।
कुछ जेहादी मुल्लाओं को ये बात स्वीकार नहीं हुई और कालांतर में जन्मभूमि फिर हिन्दुओं के हाथों से निकल गयी।

सन 1857 की क्रांति मे बहादुर
शाह जफर के समय में बाबा रामचरण दास ने एक मौलवी आमिर अली के साथ जन्मभूमि के उद्धार का प्रयास किया पर
18 मार्च सन 1858 को कुबेर टीला स्थित एक इमली के
पेड़ मे दोनों को एक
साथ अंग्रेज़ो ने फांसी पर लटका दिया ।
जब अंग्रेज़ो ने ये
देखा कि ये पेड़ भी देशभक्तों एवं रामभक्तों के लिए एक
स्मारक के रूप मे विकसित हो रहा है तब उन्होने इस पेड़
को कटवा कर इस आखिरी निशानी को भी मिटा दिया…
इस प्रकार अंग्रेज़ो की कुटिल नीति के कारण रामजन्मभूमि के उद्धार का यह प्रयास विफल हो गया …

अन्तिम बलिदान …
३० अक्टूबर १९९० को हजारों रामभक्तों ने वोट-बैंक के लालची मुलायम सिंह यादव के द्वारा खड़ी की गईं
अनेक बाधाओं को पार कर अयोध्या में प्रवेश किया और
विवादित ढांचे के ऊपर भगवा ध्वज फहरा दिया।
लेकिन २ नवम्बर १९९०
को मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने कारसेवकों पर
गोली चलाने का आदेश दिया, जिसमें सैकड़ों
रामभक्तों ने अपने जीवन की आहुतियां दीं। सरकार ने मृतकों की असली संख्या छिपायी परन्तु प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार सरयू तट रामभक्तों की लाशों से पट गया था।
४ अप्रैल १९९१ को कारसेवकों के हत्यारे,
उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने
इस्तीफा दिया।
लाखों राम भक्त ६ दिसम्बर
को कारसेवा हेतु अयोध्या पहुंचे और राम जन्मस्थान पर बाबर
के सेनापति द्वार बनाए गए अपमान के प्रतीक
मस्जिदनुमा ढांचे को ध्वस्त कर दिया।

परन्तु हिन्दू समाज के अन्दर व्याप्त घोर संगठनहीनता एवं नपुंसकता के कारण आज भी हिन्दुओं के सबसे बड़े आराध्य भगवान श्रीराम एक फटे हुए तम्बू में विराजमान हैं।
जिस जन्मभूमि के उद्धार के लिए हमारे पूर्वजों ने अपना रक्त पानी की तरह बहाया। आज वही हिन्दू बेशर्मी से इसे “एक विवादित स्थल” कहता है।

सदियों से हिन्दुओं के साथ रहने वाले मुसलमानों ने आज भी जन्मभूमि पर अपना दावा नहीं छोड़ा है। वो यहाँ किसी भी हाल में मन्दिर नहीं बनने देना चाहते हैं ताकि हिन्दू हमेशा कुढ़ता रहे और उन्हें नीचा दिखाया जा सके।
जिस कौम ने अपने ही भाईयों की भावना को नहीं समझा वो सोचते हैं हिन्दू उनकी भावनाओं को समझे। आज तक किसी भी मुस्लिम संगठन ने जन्मभूमि के उद्धार के लिए आवाज नहीं उठायी, प्रदर्शन नहीं किया और सरकार पर दबाव नहीं बनाया आज भी वे बाबरी-विध्वंस की तारीख 6 दिसम्बर को काला दिन मानते हैं। और मूर्ख हिन्दू समझता है कि राम जन्मभूमि राजनीतिज्ञों और मुकदमों के कारण उलझा हुआ है।

ये लेख पढ़कर पता नहीं कितने हिन्दुओं को शर्म आयी परन्तु विश्व हिन्दू परिषद के कार्यकर्ता एक दिन श्रीराम जन्मभूमि का उद्धार कर वहाँ मन्दिर अवश्य बनाएंगे। चाहे अभी और कितना ही बलिदान क्यों ना देना पड़े।

जय श्री राम..।

Posted in AAP, राजनीति भारत की - Rajniti Bharat ki

Arvind Kejriwal


Arvind Kejriwal’s party received at least Rs 2 crore, within minutes on April 5 last year, through four “bogus” companies that were actually fronts for laundering money.

A search on AAP’s official website confirmed that four companies did ‘donate’ Rs 50 lakh each to it within minutes in April last year.

The AAP Volunteer Action Manch (AVAM), a breakaway faction of former party volunteers, also underlined that these firms share the same set of people as directors.

“These so-called donors have no business. They make no items, sell nothing but still donate huge sums to AAP. The four non-existent companies made the donations on April 5 midnight,” alleged Karan Singh of AVAM.

Arvind Kejriwal’s party received at least Rs 2 crore, within minutes on April 5 last year, through four “bogus” companies that were actually fronts for laundering money. 

A search on AAP’s official website confirmed that four companies did ‘donate’ Rs 50 lakh each to it within minutes in April last year. 

The AAP Volunteer Action Manch (AVAM), a breakaway faction of former party volunteers, also underlined that these firms share the same set of people as directors. 

“These so-called donors have no business. They make no items, sell nothing but still donate huge sums to AAP. The four non-existent companies made the donations on April 5 midnight,” alleged Karan Singh of AVAM.
Posted in श्रीमद्‍भगवद्‍गीता

Now I am become death, the destroyer of worlds


“Now I am become death, the destroyer of worlds. (quoting the Bhagavad-Gita after witnessing the first Nuclear explosion.)” 
― J. Robert Oppenheimer

“Now I am become death, the destroyer of worlds. (quoting the Bhagavad-Gita after witnessing the first Nuclear explosion.)”
― J. Robert Oppenheimer

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Shiva Temples Natarja Kshatriya Sects The Cham Vietnamese


Shiva Temples Natarja Kshatriya Sects The Cham Vietnamese

Ramanis blog

Santana Dharma,Hinduism made earlier inroads into Vietnam,

Shiva Linga in Vietnam.jpg Ancient Vedic Cham Vietnamese Shiva Linga at the My Son Temple Complex, Vietnam

Vietnam was the home to a vibrant Vedic civilization. Many spectacular temples and sculptures still remain to this day . Vedic Deities such as Shiva, Vishnu, Brahma and minor Deities were widely worshiped. Buddhism also has a certain role in Cham people, but Shiva sect has always been considered as the national religion. According to the statistics of Palumus, in total of 128 steles found out in Cham Pa , there were 92 ones of Shiva sect and Deities of Shiva sect, 3 ones of Vishnu sect, 5 ones of Brahma sect and 7 ones of Buddhism.

Nataraja In Vietnam.jpg Nataraja In Vietnam.

The Balamon Hindu Cham people of Vietnam consist of 70% Kshatriyas (pronounced in Vietnamese as “Satrias”). Although Balamon make up only 25% of the overall Cham population (the other…

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Posted in आयुर्वेद - Ayurveda

कोलस्ट्रोल बढ़ने के कारण हार्ट अटैक से होती हैं।


महत्वपूर्ण समाचारः-

ये याद रखिये की भारत मैं सबसे ज्यादा मौते
कोलस्ट्रोल बढ़ने के कारण हार्ट अटैक से होती हैं।

आप खुद अपने ही घर मैं ऐसे बहुत से लोगो को जानते होंगे जिनका वजन व कोलस्ट्रोल बढ़ा हुआ हे।

अमेरिका की कईं बड़ी बड़ी कंपनिया भारत मैं दिल के रोगियों (heart patients) को अरबों की दवाई बेच रही हैं !

लेकिन अगर आपको कोई तकलीफ हुई तो डॉक्टर कहेगा angioplasty (एन्जीओप्लास्टी) करवाओ।

इस ऑपरेशन मे डॉक्टर दिल की नली में एक spring डालते हैं जिसे stent कहते हैं।

यह stent अमेरिका में बनता है और इसका cost of production सिर्फ 3 डॉलर (रू.150-180) है।

इसी stent को भारत मे लाकर 3-5 लाख रूपए मे बेचा जाता है व आपको लूटा जाता है।

डॉक्टरों को लाखों रूपए का commission मिलता है इसलिए व आपसे बार बार कहता है कि angioplasty करवाओ।

Cholestrol, BP ya heart attack आने की मुख्य वजह है, Angioplasty ऑपरेशन।

यह कभी किसी का सफल नहीं होता।

क्यूँकी डॉक्टर, जो spring दिल की नली मे डालता है वह बिलकुल pen की spring की तरह होती है।

कुछ ही महीनो में उस spring की दोनों साइडों पर आगे व पीछे blockage (cholestrol व fat) जमा होना शुरू हो जाता है।

इसके बाद फिर आता है दूसरा heart attack ( हार्ट अटैक )

डॉक्टर कहता हें फिर से angioplasty करवाओ।

आपके लाखो रूपए लुटता है और आपकी जिंदगी इसी में निकल जाती हैं।

अब पढ़िए उसका आयुर्वेदिक इलाज।

अदरक (ginger juice) – यह खून को पतला करता है।

यह दर्द को प्राकृतिक तरीके से 90% तक कम करता हें।

लहसुन (garlic juice) – इसमें मौजूद allicin तत्व cholesterol व BP को कम करता है।

वह हार्ट ब्लॉकेज को खोलता है।

नींबू (lemon juice) – इसमें मौजूद antioxidants, vitamin C व potassium खून को साफ़ करते हैं।

ये रोग प्रतिरोधक क्षमता (immunity) बढ़ाते हैं।

एप्पल साइडर सिरका ( apple cider vinegar) –

इसमें 90 प्रकार के तत्व हैं जो शरीर की सारी नसों को खोलते है, पेट साफ़ करते हैं व थकान को मिटाते हैं।

इन देशी दवाओं को इस तरह उपयोग में लेवें :-

एक कप नींबू का रस लें;

एक कप अदरक का रस लें; 

एक कप लहसुन का रस लें;

एक कप एप्पल का सिरका लें;

चारों को मिला कर धीमीं आंच पर गरम करें जब 3 कप रह जाए तो उसे ठण्डा कर लें;

उसमें 3 कप शहद मिला लें

रोज इस दवा के 3 चम्मच सुबह खाली पेट लें जिससे
सारी ब्लॉकेज खत्म हो जाएंगी।

आप सभी से हाथ जोड़ कर विनती है कि इस मैसेज को ज्यादा से ज्यादा प्रसारित करें ताकि सभी इस दवा से अपना इलाज कर  सकें ; धन्यवाद

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Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

એક બહુમાળી ઇમારતનું બાંધકામ ચાલી રહ્યુ હતું.


એક બહુમાળી ઇમારતનું બાંધકામ ચાલી રહ્યુ હતું. લગભગ
10 માળ જેટલું કામ પુરુ થયું હતું. એક વાર સવારના સમયે
કંસ્ટ્રકશન કંપનીનો માલિક ઇમારતની મુલાકાતે આવ્યો.
એ 10માં માળની છત પર આંટા મારી રહ્યો હતો.
ત્યાંથી નીચે જોયુ તો એક મજુર કામ કરી રહ્યો હતો.
માલિકને મજુર સાથે વાત કરવાની ઇચ્છા થઇ.માલિકે
ઉપરથી મજુરને બુમ પાડી પણ મજુર કામમાં વ્યસ્ત
હોવાથી અને આસપાસ અવાજ થતો હોવાથી એને
માલિકનો અવાજ ન સંભળાયો. થોડીવાર પછી મજુરનું
ધ્યાન પોતાના તરફ ખેંચવા માટે માલિકે ઉપરથી 10
રૂપિયાનો સિક્કો ફેંક્યો. આ સિક્કો મજુર કામ
કરતો હતો ત્યાં જ પડ્યો. મજુરે તો સિક્કો ઉઠાવીને
ખીસ્સામાં મુકયો અને કામે વળગી ગયો.માલિકે હવે
100ની નોટ નીચે ફેંકી. નોટ
ઉડતી ઉડતી પેલા મજુરથી થોડે દુર પડી.
મજુરની નજરમાં આ નોટ આવી એટલે લઇને
ફરીથી ખિસ્સામાં મુકી દીધી અને કામ કરવા લાગ્યો.
માલિકે હવે 500ની નોટ નીચે ફેંકી તો પણ પેલા મજુરે એમ
જ કર્યુ જે અગાઉ બે વખત કર્યુ હતું. માલિકે હવે
હાથમાં નાનો પથ્થર લીધો અને પેલા મજુર પર માર્યો.
પથ્થર વાગ્યો એટલે મજુરે ઉપર જોયું અને
પોતાના માલિકને ઉપર જોતા તેની સાથે વાત ચાલુ
કરી.મિત્રો, આપણે પણ આ મજુર જેવા જ છીએ.
ભગવાનને આપણી સાથે વાત કરવાની ઇચ્છા હોય છે એ
આપણને સાદ પાડીને બોલાવે છે પણ આપણે
કામમાં એવા વ્યસ્ત છીએ કે પ્રભુનો સાદ આપણને
સંભળાતો જ નથી. પછી એ નાની નાની ખુશીઓ આપવાનું
શરુ કરે છે પણ આપણે એ ખુશીઓને ખિસ્સામાં મુકી દઇએ
છીએ ખુશી આપનારાનો વિચાર જ નથી આવતો. છેવટે
ભગવાન દુ:ખ રૂપી નાનો પથ્થર આપણા પર ફેંકે છે અને
તુંરત જ ઉપર ઉભેલા માલિક સામે જોઇએ છીએ.
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મિત્રો વાત ગમે તો શેર જરૂરથી કરજો..

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