मैं जब भी रिटायर लोगों को देखता हूँ तब मेरे मन में एक सवाल हमेशा उत्पन्न होता हैं की, ये लोग हमेशा अपने से छोटे लोगों को बिन वजह उपदेश देने में लगे रहते हैं। इससे क्या होता हैं? दूसरे लोगो को तकलीफ़ होती हैं और साथ ही साथ घर में तनाव बना रहता हैं। ऐसे वक़्त में कोई भी बात पर घर के छोटे-बड़े लोगों में सहमति नहीं बन पाती और घर का वातावरण तनावपूर्ण बना रहता हैं।
हिंदू धर्म बड़ा अच्छा धर्म हैं और कुछ कुछ बातें बहुत अच्छी हैं। प्राचीन काल में सामाजिक व्यवस्था के दो स्तंभ थे- वर्ण और आश्रम। व्यक्तिगत संस्कार के लिए मनुष्य के जीवन का विभाजन चार आश्रमों में किया गया था। ये चार आश्रम थे- ( १ ) ब्रह्मचर्य ( २ ) गृहस्था ( ३ ) वानप्रस्थ ( ४ )संन्यास। उम्र के ५ साल तक बच्चा अपने माता -पिता के साथ रहता था और उसके बाद उसे गुरुकुल में भेज दिया जाता था। गुरुकुल में गुरु अपने शिष्यों को विविध विषयों का एवं चीज़ो का नॉलेज देते थे। मनुष्य का आचरण कैसा हो? आदि के बारे में बताते थे। इस आश्रम में विद्यार्थी अपना जीवन शिक्षा ग्रहण करने में व्यतीत करता हैं। ये सब चीज़े ब्रह्मचर्य में आती हैं और ये मनुष्य के आयु के २५ वर्ष तक रहता था। फिर उसके बाद गृहस्थाश्रम हैं जो की २५ से ५० वर्ष तक रहता था। इसमें मनुष्य की शादी हो जाती है और मनुष्य का काम घर चलाने के लिए पैसे कमाना और घर के सारे व्यक्तियों का ध्यान रखना होता था। गृहस्थाश्रम में अर्थ, मोक्ष, धर्म और काम ये चार प्रमुख ध्येय होते थे। जब घर की जिम्मेदारियां ख़त्म हो जाती है, तब मनुष्य का काम धीरे धीरे अपना मन सामाजिक कार्य करने में लगता हैं और इसे वानप्रस्थाश्रम कहते हैं और ये मनुष्य के ५० से ७५ वर्ष के आयु तक रहता था। संन्यासाश्रम में मनुष्य अपना ध्यान घर से पूरी तरह हटाकर सामाजिक कार्य में लगा देता था। जब मनुष्य की आयु ७५ वर्ष से ज्यादा हो जाती है तब इस आश्रम के अनुसार उसे जीवन व्यतीत करना होता हैं। इस आश्रम का उद्देश्य मोक्ष प्राप्ति का होता था। इस तरह मनुष्य का जीवन चार भागों में बाँटा गया था।
जैसे जैसे जमाना मॉडर्न होता गया आश्रम पद्धति को छोड़ दिया गया। अब क्या होता है की आदमी मरने तक अपने घर के प्रति ही जिम्मेदार रहता हैं और हमेशा से टेंशन में ही रहता हैं। जो लोग रिटायर हो जाते है वो लोग सामाजिक कार्य तो करते नहीं लेकिन दूसरों के काम में टांग डालने का काम ज़रूर करते हैं। समझो घर का कोई कपड़े ख़रीद के लाता हैं तो घर के बुजुर्ग कहते है की, कितना महँगा कपड़ा लाए हों, हम इतने के लाते थे ऐसा वैसा कहते हैं। अब २५-३० साल पहले के सैलरी में जितना फर्क हैं उतना ही कपड़े के कीमतों में भी हो चुका हैं, लेकिन उन्हें सैलरी का फर्क नहीं दिखता। बहुत सारे लड़के लोग चाहते हैं की अपने माता-पिता उसी के पास रहे, लेकिन माता-पिता कहते हैं की, बेटा हम तो यहाँ ही जिंदगी भर रहे और यही मरेंगे। लड़कों की प्रॉब्लम यह है की वो नौकरी छोड़कर नहीं आ सकते और माता-पिता का मन नयी जगह पे नहीं लगता। अब किसी ना किसी को तो अपना हट छोड़ना पड़ेगा। यहाँ पे माता-पिता को अपना हट छोड़कर अपने बच्चों के साथ रहने चले जाना चाहिए ऐसा मुझे लगता हैं। आपका मत मेरे मत से अलग भी हो सकता हैं और ये बातें परिस्थितियों पे डिपेंड होता हैं। जब लोग रिटायर हो जाते है तब उन्हें अपना जीवन अपने नाती-पंतियो को धर्म, आचरण के प्रति उपदेश देते और कई सामाजिक कार्य करते बिताना चाहिए। कुछ कुछ बातें नौजवान लोगों को भी बुजुर्गों से सीखनी चाहिए। बुजुर्गों को अपना जीवन भगवान का नाम लेते व्यतीत करना चाहिए और कुछ कुछ बातों में ही रखना चाहिए। जब तक ऐसा नहीं होगा तब तक घर में तनाव रहेगा ही और अशांति बने रहेगी। उन्हें सुबह-श्याम घूमना, भगवान की पूजा करना, और दूसरों को अच्छी बातें सीखने में व्यतीत करना चाहिए और यही उनकी next inning होंगी।……हर्षद अशोदिया
Thise is very important of me thangs to give me the information 😊😊
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Great Collection
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हमें चारों आश्रमों के नाम चाहिए
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