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चार आश्रम थे- ( १ ) ब्रह्मचर्य ( २ ) गृहस्था ( ३ ) वानप्रस्थ ( ४ )संन्यास।


          मैं जब भी रिटायर लोगों को देखता हूँ तब मेरे मन में एक सवाल हमेशा उत्पन्न होता हैं की, ये लोग हमेशा अपने से छोटे लोगों को बिन वजह उपदेश देने में लगे रहते हैं। इससे क्या होता हैं? दूसरे लोगो को तकलीफ़ होती हैं और साथ ही साथ घर में तनाव बना रहता हैं। ऐसे वक़्त में कोई भी बात पर घर के छोटे-बड़े लोगों में सहमति नहीं बन पाती और घर का वातावरण तनावपूर्ण बना रहता हैं।
          हिंदू धर्म बड़ा अच्छा धर्म हैं और कुछ कुछ बातें बहुत अच्छी हैं। प्राचीन काल में सामाजिक व्यवस्था के दो स्तंभ थे- वर्ण और आश्रम। व्यक्तिगत संस्कार के लिए मनुष्य के जीवन का विभाजन चार आश्रमों में किया गया था। ये चार आश्रम थे- ( १ ) ब्रह्मचर्य ( २ ) गृहस्था ( ३ ) वानप्रस्थ ( ४ )संन्यास। उम्र के ५ साल तक बच्चा अपने माता -पिता के साथ रहता था और उसके बाद उसे गुरुकुल में भेज दिया जाता था। गुरुकुल में गुरु अपने शिष्यों को विविध विषयों का एवं चीज़ो का नॉलेज देते थे। मनुष्य का आचरण कैसा हो? आदि के बारे में बताते थे। इस आश्रम में विद्यार्थी अपना जीवन शिक्षा ग्रहण करने में व्यतीत करता हैं। ये सब चीज़े ब्रह्मचर्य में आती हैं और ये मनुष्य के आयु के २५ वर्ष तक रहता था। फिर उसके बाद गृहस्थाश्रम हैं जो की २५ से ५० वर्ष तक रहता था। इसमें मनुष्य की शादी हो जाती है और मनुष्य का काम घर चलाने के लिए पैसे कमाना और घर के सारे व्यक्तियों का ध्यान रखना होता था। गृहस्थाश्रम में अर्थ, मोक्ष, धर्म और काम ये चार प्रमुख ध्येय होते थे। जब घर की जिम्मेदारियां ख़त्म हो जाती है, तब मनुष्य का काम धीरे धीरे अपना मन सामाजिक कार्य करने में लगता हैं और इसे वानप्रस्थाश्रम कहते हैं और ये मनुष्य के ५० से ७५ वर्ष के आयु तक रहता था। संन्यासाश्रम में मनुष्य अपना ध्यान घर से पूरी तरह हटाकर सामाजिक कार्य में लगा देता था। जब मनुष्य की आयु ७५ वर्ष से ज्यादा हो जाती है तब इस आश्रम के अनुसार उसे जीवन व्यतीत करना होता हैं। इस आश्रम का उद्देश्य मोक्ष प्राप्ति का होता था। इस तरह मनुष्य का जीवन चार भागों में बाँटा गया था।
          जैसे जैसे जमाना मॉडर्न होता गया आश्रम पद्धति को छोड़ दिया गया। अब क्या होता है की आदमी मरने तक अपने घर के प्रति ही जिम्मेदार रहता हैं और हमेशा से टेंशन में ही रहता हैं। जो लोग रिटायर हो जाते है वो लोग सामाजिक कार्य तो करते नहीं लेकिन दूसरों के काम में टांग डालने का काम ज़रूर करते हैं। समझो घर का कोई कपड़े ख़रीद के लाता हैं तो घर के बुजुर्ग कहते है की, कितना महँगा कपड़ा लाए हों, हम इतने के लाते थे ऐसा वैसा कहते हैं। अब २५-३० साल पहले के सैलरी में जितना फर्क हैं उतना ही कपड़े के कीमतों में भी हो चुका हैं, लेकिन उन्हें सैलरी का फर्क नहीं दिखता। बहुत सारे लड़के लोग चाहते हैं की अपने माता-पिता उसी के पास रहे, लेकिन माता-पिता कहते हैं की, बेटा हम तो यहाँ ही जिंदगी भर रहे और यही मरेंगे। लड़कों की प्रॉब्लम यह है की वो नौकरी छोड़कर नहीं आ सकते और माता-पिता का मन नयी जगह पे नहीं लगता। अब किसी ना किसी को तो अपना हट छोड़ना पड़ेगा। यहाँ पे माता-पिता को अपना हट छोड़कर अपने बच्चों के साथ रहने चले जाना चाहिए ऐसा मुझे लगता हैं। आपका मत मेरे मत से अलग भी हो सकता हैं और ये बातें परिस्थितियों पे डिपेंड होता हैं। जब लोग रिटायर हो जाते है तब उन्हें अपना जीवन अपने नाती-पंतियो को धर्म, आचरण के प्रति उपदेश देते और कई सामाजिक कार्य करते बिताना चाहिए। कुछ कुछ बातें नौजवान लोगों को भी बुजुर्गों से सीखनी चाहिए। बुजुर्गों को अपना जीवन भगवान का नाम लेते व्यतीत करना चाहिए और कुछ कुछ बातों में ही  रखना चाहिए। जब तक ऐसा नहीं होगा तब तक घर में तनाव रहेगा ही और अशांति बने रहेगी। उन्हें सुबह-श्याम घूमना, भगवान की पूजा करना, और दूसरों को अच्छी बातें सीखने में व्यतीत करना चाहिए और यही उनकी next inning होंगी।……हर्षद अशोदिया
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गोसंवर्द्धन और सुरक्षा


गोसंवर्द्धन और सुरक्षा    
1.   मा नस्तोके तनये मा नो आयौ मा नो गोषु मानो अश्वेषु रीरिष: |वीरान्‌ मा नो रुद्र भामितो वधीर्हविष्मन्त: सदमित्वा हवामहे || ऋ1.114.8
गौओं घोड़ों इत्यदि में गर्भ में पूर्ण अवस्था से पूर्व प्रसव काल में  उचित चिकित्सा का प्रबन्ध और अग्निहोत्र द्वारा वातावरण के  स्वच्छता की व्यवस्था करनी चहिए.
Develop expert veterinary care for preterm (premature)  born to domestic cows and horses etc. Agnihotra should also be regularly performed for sanitizing the atmosphere there.   
2.  दुहीयन्‌ मित्रधितये युवाकु राये च नो मिमीतं वाजवत्यै |
इषे च नो मिमीतं धेनुमत्यै ||1.120.9दुधारु गौएं आर्थिक लाभ के साथ पौष्टिक आहार द्वारा रोग निरोधक  शक्ति भी बढ़ाती हैं . जो लोग स्वेच्छा से गोभक्ति से प्रेरित हो कर गोसेवा करना चहते हैं,उन्हें उत्तम गोसेवा के साधनों का प्रशिक्षण देना चाहिए.
Milk giving cows provide financial benefits and promote good nutrition for immunity from diseases. Provide cow related knowledge to the persons desiring to engage in maintaining cows to ensure affectionate handling of the cows.
3.  अध प्र जज्ञे  तरणिर्मत्तु प्र रोच्यस्या उषसो न सूर: |
इन्दुर्येभिराष्ट  स्वेदुहव्यै स्रुवेण सिञ्चज्जराणाभि  धाम || ऋ1.121.6
जिस प्रकार सूर्य प्रात:काल के अपनी ज्योति से आरम्भ कर के समस्त संसार के  कल्याण , समृद्धि और स्वास्थ्य का हेतु है, उसी  प्रकार गोदोहन और उस के स्वादिष्ट पौष्टिक आहार और अग्निहोत्र में हवि  समाज के कल्याण, समृद्धि  और स्वास्थ्य का साधन होते हैं.
In a manner similar to how an individual obtains bounties by collecting the radiation from the sunrise in the mornings, individuals  that obtain milk etc from  cows and share its products  with community and by providing havi in  Agnihotra fires for ridding the disease causing ENVIRONMENTS and promote health and prosperity for his home and society. 
                                 
4.  तुभ्यं पयो यत्‌ पितरावनीतां राध: सुरेतस्तुरणे भुरण्यु |
शुचि यत्ते रेक्ण आयजन्त सबुर्दुधाया: पय उस्रियाया: || ऋ1.121.5
हमारे पितरों माता पिता ने आतुरता से  गोदुग्ध पान किया जिस से उत्तम वीर्य और उत्तम सिद्धियां प्राप्त कराने वाला धन प्राप्त होता है. वैसे ही उत्तम सिद्धि कराने वाले धन और संतान को प्राप्त करने के लिए ,दयालु प्रवृत्ति से सदैव स्वच्छ पीने योग्य दूध से सुख देने वाली  गौ  की निरन्तर सेवा करना चहिए  और गौ को प्रसन्न रखने के व्यवहार का सदा पालन करें.
Our forefathers eagerly sought milk of cows that provided them with good fertility and wealth the provider of excellent bounties and comforts. In the same manner, you should also devote yourself to care and love cows to be blessed with clean health invigorating milk to have good progeny and virtuous, prosperous life.   
5.  अष्टा महो दिव आदो हरि इह द्युमनसाहमभि योधान्‌ उत्सम्‌ |
हरि यत्ते मन्दिनं दुक्षन्‌ वृधे गोरसमद्रिभिर्वाताप्यम्‌||1.121.8
जिस प्रकार सर्वत्र पृथ्वी पर सूर्य की ज्योति द्वारा  सुखों की वृद्धि के लिए मेघादि और खाद्य पदार्थों में रसादि की उत्पत्ति होती है, उसी प्रकार राजा का समाज के प्रति कर्तव्य है कि संसार में शुद्ध जल के साधन और मनोहर शुद्ध वायु  को उपलब्ध कराए जिस से गौ और अश्वादि समाज को पूर्ण उन्नति प्रदान कर के राजा का सम्मान बढ़ावें .
Just like sun that enriches life on earth by rains and solar energy to sanitize the atmosphere and provide plants produce for delicious food .King should earn respect of all by ensuring clean air (ENVIRONMENTS) and good drinking water made freely available. This enables the cows to fulfill our needs for excellent milk and farm products and horses to provide for our comfort
गोरक्षा
6.  त्वामयसं प्रति वर्त्तयो गोर्दिवो अश्मानमुपनीतमृभ्वा |
कुत्साय यत्र पुरुहूत वन्वञ्छुष्णमनन्तै: परियासि वधै: ||  ऋ 1.121.9
जैसे सूर्य मेघ को बरसा कर और अपने  प्रकाश से सारे विश्व को आनंदित करता है, वैसे ही हे मनुष्यो तुम बुद्धीमान जनों के परामर्श और शस्त्रों द्वारा गौ हिंसा करने वालों  को रोक कर गौ की रक्षा करो.
Just as sun spreads prosperity and joy on earth by rains and light, for the same purpose men should protect cows from those who kill them by use of iron weapons guided by advice of wise men.
गो मन्त्रालय
7.  त्वं नो असि भारताsग्ने वशाभिरुक्षभि: |
अष्टापदीभिराहुत: || ऋ2.7.5
राष्ट्र के भरण पोषण के हेतु गौओं और बैलों की सुरक्षा के लिए उत्तम भूमि (गोचरों) , मेघों,नदियों की व्यवस्था के लिए  आट सचिव रूप पदाधिकारी जनों से विचार विमर्श कर के सुनिश्चित नीति निर्धारित करो, जिस का सब पालन करें
Tasks for Cow ministry  गो मंत्रालय के दायित्व.
8.  यो मे शता च विंशतिं च गोनां हरी च युक्ता सुधुरा ददाति |
वैश्वानर सुष्टतो वावृधानोsग्ने यच्छ त्र्यरुणाय शर्म|| ऋ 5.27.2
गोकृषि द्वारा जो सहस्रों अथवा बीसियों गौओं के पालान और उत्तम बैलो को हल में युक्त करके उत्तमघोड़ों को रथादि में युक्त कर के जीवन यापन करते हैं उन के तीनों आश्रमों (ब्रह्मचारियों को गुरुकुलों में गोकृषि के ज्ञान और विद्या की,गृहस्थ आश्रम में उचित निवास वेतन आदि की और वानप्रस्थ में अपने जीवन के अनुभव को जिज्ञासुओं को शिक्षा देने की ) उचित व्यवस्था करो.
Agenda for Cow Ministry.
1.  ब्रह्मचर्याश्रम Education and training:
Adequate arrangements and facilities should be developed to impart education and training in all aspects of excellent animal husbandry practices. This should cover very large facilities that may have thousands of cows to small scale house holders that may have about a dozen cows.
2.  गृहस्थाश्रम Welfare of people engaged in cow keeping:
Adequate HOUSING and remuneration should be ensured for the people engaged in cow care activities.
3.  वानप्रस्थाश्रम People that have taken retirement from active cow care duties should be utilized by imparting the lifelong expertise in cow care to train youth in the finer aspects of cow care.
Forest protection Development & Cows
आरन्यकों पर्यावरण और गो सम्वर्द्धन
9.  स्विध्मा यद्‌ वनदिपरिरपस्यात्‌  सूरो अध्वरे परि रोधना गो: |
यद्ध  प्रभासि  कृत्याँ अनु द्यूननर्विशे पश्विषे तुराय|| ऋ 1.121.7
बिना हिंसा किए ( अग्निहोत्रादि से पर्यावरण की सुरक्षा द्वारा )  ,वनों को धारण और उन की सुरक्षा, गोवंश का सम्वर्द्धन और रक्षा ,रथों गाड़ियों के शीघ्र वाहन के योग्य पशुओं की सुरक्षा  जैसे  उत्तम कार्य , सूर्य के समान प्रतिदिन प्रकाशित हो कर करने चाहिएं.
Forests should be protected and developed by performing Agnihotras ( to promote regular rain precipitation from bacteria ‘pseudomonas Syringe’ in the undergrowth ) to provide regular forage for cows and fast moving horses. This has to be performed with regularity shown by Sun in its every day bringing sunshine for growth and maintenance of the world.
गोचर व जल संरक्षण Pasture and water harvesting
10.            उद्वत्स्वस्मा  अकृणोतना तृणं निवस्वप: स्वपस्यया नर: |
अगोह्यस्य यदसस्तना गृहे तदद्येदमृभवो नानु गच्छथ || ऋ 1.161.11
हे जनों ऊंचे स्थानों पर पशुवर्ग (गोआदि ) के हितार्थ उत्तम घास आदि चारे कि  व्यवस्था करो. निचले गहरे स्थानों पर उत्तम कर्मों की इच्छा और परोपकार से प्रेरित हो कर जल एकत्रित करो. जो साधन सुगमता से उपलब्ध हैं उन को नष्ट न करो  और इस प्रकार की परम्परा का पालन करो.
Develop systems for growing excellent fodder grasses on higher grounds. Harness and store rain water on low deep levels for public welfare. Thus do not waste your resources and honor these traditions to be able to enjoy peaceful sleep at night.
पशु आवास  Cow Shelters
11.            या ते अष्ट्रा गोओपशाssघृणे  पशुसाधनी |
तस्यास्ते सुम्नमीमहे|| ऋ6.53.9
सब प्रकार से गोपालन में समर्थ वास्तुशास्त्र विद्वान गौओं के निवास  के साधनों को ऋतु अनुसार गौओं के सोने और सुख से रहने की व्यवस्था करें.
Veterinary science experts /Architects should design the stalls in such manner that cows are comfortable and have adequate space to sleep.
गो आहार   Cow Feed & Nutrition
12.            उत नो गोषणिं धियमश्वसां वाजसामुत |
नृवत्कृणुहि वीतये|| ऋ 6.53.10  
पशु पालन के विद्वान गौओं घोड़ों को अलग अलग करके उन के आवश्यकता अनुसार उपयुक्त  अन्नदि आहार की उत्तम व्यवस्था करो
Nutrition feed experts should segregate and arrange to provide cow herd according to its requirements of nutritive feeds. 
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गुरूत्वाकर्षण सिद्धान्त ( Law Of Gravitation ) :-


गुरूत्वाकर्षण सिद्धान्त ( Law Of Gravitation ) :-

वेद और वैदिक आर्ष ग्रन्थों में गुरूत्वाकर्षण के नियम को समझाने के लिये पर्याप्त सूत्र हैं । परन्तु जिनको न जानकर हमारे आजकल के युवा वर्ग केवल पाश्चात्य वैज्ञानिकों के पीछे ही श्रद्धाभाव रखते हैं । जबकि यह करोड़ों वर्ष पहले वेदों में सूक्ष्म ज्ञान के रूप में ईश्वर ने हमारे लिये पहले ही वर्णन कर दिया है । तो ऐसे मूर्ख लोग जिसको Newton’s Law Of Gravitation कहते फिरते हैं । वह वास्तव में Nature’s Law Of Gravitation होना चाहिये । तो लीजिये हम अनेकों प्रमाण देते हैं कि हमारे ऋषियों ने जो बात पहले ही वेदों से अपनी तपश्चर्या से जान ली थी उसके सामने ये Newton महाराज कितना ठहरते हैं ।

आधारशक्ति :- बृहत् जाबाल उपनिषद् में गुरूत्वाकर्षण सिद्धान्त को आधारशक्ति नाम से कहा गया है ।
इसके दो भाग किये गये हैं :-
(१) ऊर्ध्वशक्ति या ऊर्ध्वग :- ऊपर की ओर खिंचकर जाना । जैसे अग्नि का ऊपर की ओर जाना ।

(२) अधःशक्ति या निम्नग :- नीचे की ओर खिंचकर जाना । जैसे जल का नीचे की ओर जाना या पत्थर आदि का नीचे आना ।

आर्ष ग्रन्थों से प्रमाण देते हैं :-

(१) यह बृहत् उपनिषद् के सूत्र हैं :-

अग्नीषोमात्मकं जगत् । ( बृ० उप० २.४ )
आधारशक्त्यावधृतः कालाग्निरयम् ऊर्ध्वगः । तथैव निम्नगः सोमः । ( बृ० उप० २.८ )

अर्थात :- सारा संसार अग्नि और सोम का समन्वय है । अग्नि की ऊर्ध्वगति है और सोम की अधोःशक्ति । इन दोनो शक्तियों के आकर्षण से ही संसार रुका हुआ है ।

(२) १५० ई० पूर्व महर्षि पतञ्जली ने व्याकरण महाभाष्य में भी गुरूत्वाकर्षण के सिद्धान्त का उल्लेख करते हुए लिखा :-

लोष्ठः क्षिप्तो बाहुवेगं गत्वा नैव तिर्यक् गच्छति नोर्ध्वमारोहति ।
पृथिवीविकारः पृथिवीमेव गच्छति आन्तर्यतः । ( महाभाष्य :- स्थानेन्तरतमः, १/१/४९ सूत्र पर )

अर्थात् :- पृथिवी की आकर्षण शक्ति इस प्रकार की है कि यदि मिट्टी का ढेला ऊपर फेंका जाता है तो वह बहुवेग को पूरा करने पर, न टेढ़ा जाता है और न ऊपर चढ़ता है । वह पृथिवी का विकार है, इसलिये पृथिवी पर ही आ जाता है ।

(३) भास्कराचार्य द्वितीय पूर्व ने अपने सिद्धान्तशिरोमणि में यह कहा :-

आकृष्टिशक्तिश्च महि तया यत्
खस्थं गुरूं स्वाभिमुखं स्वशक्त्या ।
आकृष्यते तत् पततीव भाति
समे समन्तात् क्व पतत्वियं खे ।। ( सिद्धान्त० भुवन० १६ )

अर्थात :- पृथिवी में आकर्षण शक्ति है जिसके कारण वह ऊपर की भारी वस्तु को अपनी ओर खींच लेती है । वह वस्तु पृथिवी पर गिरती हुई सी लगती है । पृथिवी स्वयं सूर्य आदि के आकर्षण से रुकी हुई है,अतः वह निराधार आकाश में स्थित है तथा अपने स्थान से हटती नहीं है और न गिरती है । वह अपनी कील पर घूमती है।

(४) वराहमिहिर ने अपने ग्रन्थ पञ्चसिद्धान्तिका में कहा :-

पंचभमहाभूतमयस्तारा गण पंजरे महीगोलः ।
खेयस्कान्तान्तःस्थो लोह इवावस्थितो वृत्तः ।। ( पंच०पृ०३१ )

अर्थात :- तारासमूहरूपी पंजर में गोल पृथिवी इसी प्रकार रुकी हुई है जैसे दो बड़े चुम्बकों के बीच में लोहा ।

(५) आचार्य श्रीपति ने अपने ग्रन्थ सिद्धान्तशेखर में कहा है :-

उष्णत्वमर्कशिखिनोः शिशिरत्वमिन्दौ,.. निर्हतुरेवमवनेः स्थितिरन्तरिक्षे ।। ( सिद्धान्त० १५/२१ )
नभस्ययस्कान्तमहामणीनां मध्ये स्थितो लोहगुणो यथास्ते ।
आधारशून्यो पि तथैव सर्वधारो धरित्र्या ध्रुवमेव गोलः ।। ( सिद्धान्त० १५/२२ )

अर्थात :- पृथिवी की अन्तरिक्ष में स्थिति उसी प्रकार स्वाभाविक है, जैसे सूर्य्य में गर्मी, चन्द्र में शीतलता और वायु में गतिशीलता । दो बड़े चुम्बकों के बीच में लोहे का गोला स्थिर रहता है, उसी प्रकार पृथिवी भी अपनी धुरी पर रुकी हुई है ।

(६) ऋषि पिप्पलाद ( लगभग ६००० वर्ष पूर्व ) ने प्रश्न उपनिषद् में कहा :-

पायूपस्थे – अपानम् । ( प्रश्न उप० ३.४ )
पृथिव्यां या देवता सैषा पुरुषस्यापानमवष्टभ्य० । ( प्रश्न उप० ३.८ )
तथा पृथिव्याम् अभिमानिनी या देवता … सैषा पुरुषस्य अपानवृत्तिम् आकृष्य…. अपकर्षेन अनुग्रहं कुर्वती वर्तते । अन्यथा हि शरीरं गुरुत्वात् पतेत् सावकाशे वा उद्गच्छेत् । ( शांकर भाष्य, प्रश्न० ३.८ )

अर्थात :- अपान वायु के द्वारा ही मल मूत्र नीचे आता है । पृथिवी अपने आकर्षण शक्ति के द्वारा ही मनुष्य को रोके हुए है, अन्यथा वह आकाश में उड़ जाता ।

(७) यह ऋग्वेद के मन्त्र हैं :-

यदा ते हर्य्यता हरी वावृधाते दिवेदिवे ।
आदित्ते विश्वा भुवनानि येमिरे ।। ( ऋ० अ० ६/ अ० १ / व० ६ / म० ३ )

अर्थात :- सब लोकों का सूर्य्य के साथ आकर्षण और सूर्य्य आदि लोकों का परमेश्वर के साथ आकर्षण है । इन्द्र जो वायु , इसमें ईश्वर के रचे आकर्षण, प्रकाश और बल आदि बड़े गुण हैं । उनसे सब लोकों का दिन दिन और क्षण क्षण के प्रति धारण, आकर्षण और प्रकाश होता है । इस हेतु से सब लोक अपनी अपनी कक्षा में चलते रहते हैं, इधर उधर विचल भी नहीं सकते ।

यदा सूर्य्यममुं दिवि शुक्रं ज्योतिरधारयः ।
आदित्ते विश्वा भुवनानी येमिरे ।।३।। ( ऋ० अ० ६/ अ० १ / व० ६ / म० ५ )

अर्थात :- हे परमेश्वर ! जब उन सूर्य्यादि लोकों को आपने रचा और आपके ही प्रकाश से प्रकाशित हो रहे हैं और आप अपने सामर्थ्य से उनका धारण कर रहे हैं , इसी कारण सूर्य्य और पृथिवी आदि लोकों और अपने स्वरूप को धारण कर रहे हैं । इन सूर्य्य आदि लोकों का सब लोकों के साथ आकर्षण से धारण होता है । इससे यह सिद्ध हुआ कि परमेश्वर सब लोकों का आकर्षण और धारण कर रहा है ।
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गुरूत्वाकर्षण सिद्धान्त ( Law Of Gravitation ) :- 

वेद और वैदिक आर्ष ग्रन्थों में गुरूत्वाकर्षण के नियम को समझाने के लिये पर्याप्त सूत्र हैं । परन्तु जिनको न जानकर हमारे आजकल के युवा वर्ग केवल पाश्चात्य वैज्ञानिकों के पीछे ही श्रद्धाभाव रखते हैं । जबकि यह करोड़ों वर्ष पहले वेदों में सूक्ष्म ज्ञान के रूप में ईश्वर ने हमारे लिये पहले ही वर्णन कर दिया है । तो ऐसे मूर्ख लोग जिसको Newton's Law Of Gravitation कहते फिरते हैं । वह वास्तव में Nature's Law Of Gravitation होना चाहिये । तो लीजिये हम अनेकों प्रमाण देते हैं कि हमारे ऋषियों ने जो बात पहले ही वेदों से अपनी तपश्चर्या से जान ली थी उसके सामने ये Newton महाराज कितना ठहरते हैं । 

आधारशक्ति :- बृहत् जाबाल उपनिषद् में गुरूत्वाकर्षण सिद्धान्त को आधारशक्ति नाम से कहा गया है । 
इसके दो भाग किये गये हैं :- 
(१) ऊर्ध्वशक्ति या ऊर्ध्वग :- ऊपर की ओर खिंचकर जाना । जैसे अग्नि का ऊपर की ओर जाना । 

(२) अधःशक्ति या निम्नग :- नीचे की ओर खिंचकर जाना । जैसे जल का नीचे की ओर जाना या पत्थर आदि का नीचे आना ।

आर्ष ग्रन्थों से प्रमाण देते हैं :- 

(१) यह बृहत् उपनिषद् के सूत्र हैं :- 

अग्नीषोमात्मकं जगत् । ( बृ० उप० २.४ )
आधारशक्त्यावधृतः कालाग्निरयम् ऊर्ध्वगः । तथैव निम्नगः सोमः । ( बृ० उप० २.८ )

अर्थात :- सारा संसार अग्नि और सोम का समन्वय है । अग्नि की ऊर्ध्वगति है और सोम की अधोःशक्ति । इन दोनो शक्तियों के आकर्षण से ही संसार रुका हुआ है । 

(२) १५० ई० पूर्व महर्षि पतञ्जली ने व्याकरण महाभाष्य में भी गुरूत्वाकर्षण के सिद्धान्त का उल्लेख करते हुए लिखा :- 

लोष्ठः क्षिप्तो बाहुवेगं गत्वा नैव तिर्यक् गच्छति नोर्ध्वमारोहति । 
पृथिवीविकारः पृथिवीमेव गच्छति आन्तर्यतः । ( महाभाष्य :- स्थानेन्तरतमः, १/१/४९ सूत्र पर ) 

अर्थात् :- पृथिवी की आकर्षण शक्ति इस प्रकार की है कि यदि मिट्टी का ढेला ऊपर फेंका जाता है तो वह बहुवेग को पूरा करने पर, न टेढ़ा जाता है और न ऊपर चढ़ता है । वह पृथिवी का विकार है, इसलिये पृथिवी पर ही आ जाता है । 

(३) भास्कराचार्य द्वितीय पूर्व ने अपने सिद्धान्तशिरोमणि में यह कहा :- 

आकृष्टिशक्तिश्च महि तया यत् 
खस्थं गुरूं स्वाभिमुखं स्वशक्त्या ।
आकृष्यते तत् पततीव भाति 
समे समन्तात् क्व पतत्वियं खे ।। ( सिद्धान्त० भुवन० १६ ) 

अर्थात :- पृथिवी में आकर्षण शक्ति है जिसके कारण वह ऊपर की भारी वस्तु को अपनी ओर खींच लेती है । वह वस्तु पृथिवी पर गिरती हुई सी लगती है । पृथिवी स्वयं सूर्य आदि के आकर्षण से रुकी हुई है,अतः वह निराधार आकाश में स्थित है तथा अपने स्थान से हटती नहीं है और न गिरती है । वह अपनी कील पर घूमती है।

(४) वराहमिहिर ने अपने ग्रन्थ पञ्चसिद्धान्तिका में कहा :- 

पंचभमहाभूतमयस्तारा गण पंजरे महीगोलः ।
खेयस्कान्तान्तःस्थो लोह इवावस्थितो वृत्तः ।। ( पंच०पृ०३१ )

अर्थात :- तारासमूहरूपी पंजर में गोल पृथिवी इसी प्रकार रुकी हुई है जैसे दो बड़े चुम्बकों के बीच में लोहा ।

(५) आचार्य श्रीपति ने अपने ग्रन्थ सिद्धान्तशेखर में कहा है :- 

उष्णत्वमर्कशिखिनोः शिशिरत्वमिन्दौ,.. निर्हतुरेवमवनेः स्थितिरन्तरिक्षे ।। ( सिद्धान्त० १५/२१ )
नभस्ययस्कान्तमहामणीनां मध्ये स्थितो लोहगुणो यथास्ते ।
आधारशून्यो पि तथैव सर्वधारो धरित्र्या ध्रुवमेव गोलः ।। ( सिद्धान्त० १५/२२ )

अर्थात :- पृथिवी की अन्तरिक्ष में स्थिति उसी प्रकार स्वाभाविक है, जैसे सूर्य्य में गर्मी, चन्द्र में शीतलता और वायु में गतिशीलता । दो बड़े चुम्बकों के बीच में लोहे का गोला स्थिर रहता है, उसी प्रकार पृथिवी भी अपनी धुरी पर रुकी हुई है । 

(६) ऋषि पिप्पलाद ( लगभग ६००० वर्ष पूर्व ) ने प्रश्न उपनिषद् में कहा :-

पायूपस्थे - अपानम् । ( प्रश्न उप० ३.४ ) 
पृथिव्यां या देवता सैषा पुरुषस्यापानमवष्टभ्य० । ( प्रश्न उप० ३.८ )
तथा पृथिव्याम् अभिमानिनी या देवता ... सैषा पुरुषस्य अपानवृत्तिम् आकृष्य.... अपकर्षेन अनुग्रहं कुर्वती वर्तते । अन्यथा हि शरीरं गुरुत्वात् पतेत् सावकाशे वा उद्गच्छेत् । ( शांकर भाष्य, प्रश्न० ३.८ ) 

अर्थात :- अपान वायु के द्वारा ही मल मूत्र नीचे आता है । पृथिवी अपने आकर्षण शक्ति के द्वारा ही मनुष्य को रोके हुए है, अन्यथा वह आकाश में उड़ जाता । 

(७) यह ऋग्वेद के मन्त्र हैं :- 

यदा ते हर्य्यता हरी वावृधाते दिवेदिवे ।
आदित्ते विश्वा भुवनानि येमिरे ।। ( ऋ० अ० ६/ अ० १ / व० ६ / म० ३ ) 

अर्थात :- सब लोकों का सूर्य्य के साथ आकर्षण और सूर्य्य आदि लोकों का परमेश्वर के साथ आकर्षण है । इन्द्र जो वायु , इसमें ईश्वर के रचे आकर्षण, प्रकाश और बल आदि बड़े गुण हैं । उनसे सब लोकों का दिन दिन और क्षण क्षण के प्रति धारण, आकर्षण और प्रकाश होता है । इस हेतु से सब लोक अपनी अपनी कक्षा में चलते रहते हैं, इधर उधर विचल भी नहीं सकते । 

यदा सूर्य्यममुं दिवि शुक्रं ज्योतिरधारयः ।
आदित्ते विश्वा भुवनानी येमिरे ।।३।। ( ऋ० अ० ६/ अ० १ / व० ६ / म० ५ ) 

अर्थात :- हे परमेश्वर ! जब उन सूर्य्यादि लोकों को आपने रचा और आपके ही प्रकाश से प्रकाशित हो रहे हैं और आप अपने सामर्थ्य से उनका धारण कर रहे हैं , इसी कारण सूर्य्य और पृथिवी आदि लोकों और अपने स्वरूप को धारण कर रहे हैं । इन सूर्य्य आदि लोकों का सब लोकों के साथ आकर्षण से धारण होता है । इससे यह सिद्ध हुआ कि परमेश्वर सब लोकों का आकर्षण और धारण कर रहा है ।
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Posted in भारत का गुप्त इतिहास- Bharat Ka rahasyamay Itihaas

”मैं तुम्हारे पास मीर हुसैन अली के साथ अपने दो अनुयायी भेज रहा हूँ। उनके साथ तुम सभी हिन्दुओं को बन्दी बना लेना और यदि वो इस्लाम कबूल ना करे तो उनका वध कर देना।”


”मैं तुम्हारे पास मीर हुसैन अली के साथ अपने दो अनुयायी भेज रहा हूँ। उनके साथ तुम सभी हिन्दुओं को बन्दी बना लेना और यदि वो इस्लाम कबूल ना करे तो उनका वध कर देना।”

टीपू सुल्तान ने १४ दिसम्बर १७८८ को कालीकट के अपने सेना नायक को पत्र लिखा-
”मैं तुम्हारे पास मीर हुसैन अली के साथ अपने दो अनुयायी भेज रहा हूँ। उनके साथ तुम सभी हिन्दुओं को बन्दी बना लेना और यदि वो इस्लाम कबूल ना करे तो उनका वध कर देना।” मेरा आदेश है कि बीस वर्ष से कम उम्र वालों को काराग्रह में रख लेना और शेष में से पाँच हजार का पेड़ पर लटकाकार वध कर देना।”
(भाषा पोशनी-मलयालम जर्नल, अगस्त १९२३)
(२) बदरुज़ समाँ खान को पत्र लिखा (दिनांक १९ जनवरी १७९०)
”क्या तुम्हें मालूम नहीं है कि मैंने मलाबार में एक बड़ी विजय प्राप्त की है चार लाख से अधिक हिन्दुओं को मुसलमान बना लिया गया । मैंनें अब उस रमन नायर की ओर बढ़ने का निश्चय किया हैं ताकि उसकी प्रजा को इस्लाम में धर्मान्तरित किया जाए। मैंने रंगापटनम वापस जाने का विचार त्याग दिया है।”
(उसी पुस्तक में)
‌३)अब्दुल कादर को पत्र लिखा (दिनांक २२ मार्च१७८८)
“बारह हजार से अधिक, हिन्दुओं को इस्लाम में धर्मान्तरित किया गया। इनमें अनेकों नम्बूदिरी थे। इस उपलब्धि का हिन्दुओं के बीच व्यापक प्रचार किया जाए। ताकि स्थानीय हिन्दुओं में भय व्याप्त हो और उन्हें इस्लाम में धर्मान्तरित किया जाए। किसी भी नम्बूदिरी को छोड़ा न जाए।”
(उसी पुस्तक में)
टीपू ने हिन्दुओं पर अत्यार एवं उनके धर्मान्तरण के लिए कुर्ग एवं मलाबार के विभिन्न क्षेत्रों में अपने सेना नायकों को अनेकों पत्र लिखे थे। जिन्हें प्रख्यात विद्वान और इतिहासकार सरदार पाणिक्कर ने लन्दन के इन्डिया आॅफिस लाइब्रेरी तक पहुँच कर ढूँढ निकाला था।
इन सूचनाओं, सन्देशों एवं पत्रों को आप भी RTI के माध्यम से प्राप्त कर पढ़ सकते हैं..।
टीपू का अपने सेनानायक को एक और पत्र-
”जिले के प्रत्येक हिन्दू का इस्लाम में धर्मान्तरण किया जाना चाहिए; अन्यथा उनका वध करना सर्वोत्तम है; उन्हें उनके छिपने के स्थान में खोजा जाना चाहिए; उनका इस्लाम में सम्पूर्ण धर्मान्तरण के लिए सभी मार्ग व युक्तियाँ सत्य-असत्य, कपट और बल सभी का प्रयोग किया जाना चाहिए।”
(हिस्टौरीकल स्कैचैज ऑफ दी साउथ ऑफ इण्डिया इन
एन अटेम्पट टू ट्रेस दी हिस्ट्री ऑफ मैसूर- मार्क विल्क्स, खण्ड २ पृष्ठ १२०)
मैसूर के तृतीय युद्ध (१७९२) के पहले से ही टीपू अफगानिस्तान के कट्टर इस्लामी शासक जमनशाह जो भारत में हिन्दुओं के खून की होली खेलने वाले अहमदशाह अब्दाली का परपोता था को पत्र लिखा करता था जिसे कबीर कौसर ने अपनी पुस्तक ‘हिस्ट्री ऑफ टीपू सुल्तान’ (पृ’१४१-१४७) में इसका अनुवाद किया है।
उस पत्र व्यवहार के कुछ अंश पढ़िये-
टीपू के ज़मन शाह के लिए पत्र
(i) ”महामहिम आपको सूचित किया गया होगा कि,
मेरी महान अभिलाषा का उद्देश्य जिहाद (धर्म युद्ध)
है। मेरी इस युक्ति का अल्लाह ‘नोआ के आर्क’ की भाँति रक्षा करता है और त्यागे हुए काफिरों की बढ़ी हुई भुजाओं को काटता रहता है।”
(ii) ”टीपू से जमनशाह को, पत्र दिनांक शहबान
का सातवाँ १२११ हिजरी (तदनुसार ५ फरवरी १७९७):
”… .इन परिस्थितियों में जो, पूर्व से लेकर पश्चिम तक,मैं विचार करता हूँ कि अल्लाह और उसके पैगम्बर के आदेशों से हमें अपने धर्म के शत्रुओं के विरुद्ध जिहाद करने के लिए, संगठित हो जाना चाहिए। इस क्षेत्र में इल्लाम के अनुयाई, शुक्रवार के दिन एक निश्चित किये हुए स्थान पर एकत्र होकर प्रार्थना करते हैं।
”हे अल्लाह! उन लोगों को, जिन्होंने इस्लाम का मार्ग रोक रखा है, कत्ल कर दो। उनके पापों को लिए, उनके निश्चित दण्ड द्वारा, उनके सिरों को दण्ड दो।”
मेरा पूरा विश्वास है कि सर्वशक्तिमान अल्लाह अपने प्रियजनों के हित के लिए उनकी प्रार्थनाएं स्वीकार कर लेगा और”तेरी (अल्लाह की) सेनायें ही विजयी होंगी”,
टीपू ने अपनी बहुचर्चित तलवार’ पर फारसी भाषा में लिखवाया-
”मेरे मालिक मेरी मदद कर कि मैं संसार से सभी काफिरों(गैर-मुसलमानों) को समाप्त कर दूँ”!
(हिस्ट्री ऑफ मैसूर सी.एच. राव खण्ड ३, पृष्ठ
१०७३)
श्री रंगपटनम के किले में प्राप्त टीपू का खुद लिखवाया एक शिला लेख पढ़िये-
शिलालेख के शब्द इस प्रकार हैं- ”हे सर्वशक्तिमान
अल्लाह! काफिरों(गैर-मुसलमानों) के समस्त समुदाय को समाप्त कर दे। उनकी सारी जाति को बिखरा दो, उनके पैरों को लड़खड़ा दो अस्थिर कर दो! और उनकी बुद्धियों को फेर दो! मृत्यु को उनके निकट ला दो, उनके पोषण के
साधनों को समाप्त कर दो। उनकी जिन्दगी के दिनों को कम कर दो। उनके शरीर सदैव उनकी चिंता के विषय बने रहें, उनके नेत्रों की दृष्टि छीन लो, उनके चेहरे काले कर दो, उनकी जीभ को बोलने के अंग को, नष्ट कर दो! उन्हें शिदौद की भाँति कत्ल कर दो जैसे फ़रोहा को डुबोया था, उन्हें भी डुबो दो, और उन पर अपार क्रोध करो। हे संसार के मालिक मुझे अपनी मदद दो।”
(उसी पुस्तक में पृष्ठ १०७४)
टीपू का जीवन चरित्र
टीपू की फारसी में लिखी, ‘सुल्तान-उत-तवारीख’
और ‘तारीख-ई-खुदादादी’ नाम वाली दो जीवनियाँ हैं।
ये दोनों ही जीवनियाँ लन्दन की इण्डिया ऑफिस लाइब्रेरी में एम.एस. एस. क्रमानुसार ५२१ और २९९ रखी हुई हैं। इन
दोनों जीवनियों में टीपू ने स्वयं को इस्लाम का सच्चा नायक दिखाने के लिए हिन्दुओं पर ढाये अमानवीय अत्याचारों और यातनाओं, का विस्तृत वर्णन खुद ही किया है।
यहाँ तक कि मोहिब्बुल हसन, जिसने अपनी पुस्तक, हिस्ट्री ऑफ टीपू सुल्तान में टीपू को एक समझदार, उदार, और धर्मनिरपेक्ष शासक बताया था उसको भी स्वीकार करना पड़ा था कि
”तारीख यानी कि टीपू की जीवनियों के पढ़ने के बाद टीपू का जो चित्र उभरता है वह एक ऐसे धर्मान्ध, काफिरों से नफरत के लिए मतवाले पागल का है जो गैर-मुस्लिम लोगों की हत्या और उनके इस्लाम में बलात परिवर्तन कराने में सदैव लिप्त रहा आया।”
(हिस्ट्री ऑफ टीपू सुल्तान, मोहिब्बुल हसन, पृष्ठ ३५७)
टीपू ने १७८६ में गद्दी पर बैठते ही मैसूर को मुस्लिम राज्य घोषित कर दिया था और एक आम दरबार में घोषणा की —
“मैं सभी काफिरों को मुसलमान बनाकर रहूंगा। “तुंरत ही उसने सभी हिन्दुओं को फरमान भी जारी कर दिया और मैसूर के गाँव- गाँव के मुस्लिम अधिकारियों के पास लिखित सूचना भिजवादी कि,
“सभी हिन्दुओं को इस्लाम में दीक्षा दो। जो स्वेच्छा से मुसलमान न बने उसे बलपूर्वक मुसलमान बनाओ और जो पुरूष विरोध करे, उनका कत्ल करवा दो। उनकी स्त्रियों को पकड़कर उन्हें दासी बनाकर मुसलमानों में बाँट दो।”
यह तांडव टीपू ने इतनी तेजी से चलाया कि, पूरे हिंदू समाज में त्राहि त्राहि मच गई. इस्लामिक दानवों से बचने का कोई उपाय न देखकर धर्म रक्षा के विचार से
हजारों हिंदू स्त्री पुरुषों ने अपने बच्चों सहित तुंगभद्रा आदि नदियों में कूद कर जान दे दी। हजारों ने अग्नि में प्रवेश कर अपनी जान दे दी।
इतिहासकार पाणिक्कर के अनुमान से टीपू ने अपने राज्य में लगभग ५ लाख हिन्दुओं को जबरन मुसलमान बनाया था जबकि वास्तविक संख्या इससे कहीं अधिक है।
प्रत्यक्षदर्शियों के वर्णन-
दक्षिण भारत में इस्लाम के प्रसार के लिए टीपू द्वारा किये गये भीषण अत्याचारों और यातनाओं को एक पुर्तगाली यात्री और इतिहासकार, फ्रा बारटोलोमाको ने १७९० में अपनी आँखों से देखा था।
उसने जो कुछ मलाबार में देखा उसे अपनी पुस्तक, ‘वौयेज टू ईस्ट इण्डीज’ में लिख दिया था-
”कालीकट में हिन्दू आदमियों और औरतों को छोटी गलतियों के लिए फाँसी पर लटका दिया जाता था। ताकि वो जल्दी से जल्दी इस्लाम स्वीकार कर लें।
पहले माताओं को उनके बच्चों को उनकी गर्दनों से बाँधकर लटकाकर फाँसी दी जाती थी। उस बर्बर टीपू द्वारा नंगे हिन्दुओं और ईसाई लोगों को हाथियों की टांगों से बँधवा दिया जाता था और हाथियों को तब तक दौड़ाया जाता था जब तक कि उन असहाय निरीह विपत्तिग्रस्त प्राणियों के शरीरों के चिथड़े-चिथड़े नहीं हो जाते थे।
मन्दिरों और गिरिजों में आग लगाने, खण्डित करने, और ध्वंस करने के आदेश दिये जाते थे।
टीपू की सेना से बचकर भागने वालों और वाराप्पुझा पहुँच पाने वाले अभागे व्यक्तियों से सुनकर मैं विचलित हो उठा था… मैंने स्वंय अनेकों ऐसे विपत्ति ग्रस्त व्यक्तियों को वाराप्पुझा नदी को नाव द्वारा पार जाने के लिए सहयोग किया था।’ ‘
(वौयेज टू ईस्ट इण्डीजः फ्रा बारटोलोमाको पृष्ठ १४१-१४२)
टीपू द्वारा मन्दिरों का विध्वंस
दी मैसूर गज़टियर बताता है कि ‘ ‘टीपू ने दक्षिण भारत में आठ सौ से अधिक मन्दिर नष्ट किये थे।”
के.पी. पद्मानाभ मैनन द्वारा लिखित, ‘हिस्ट्री ऑफ कोचीन और श्रीधरन मैनन द्वारा लिखित, हिस्ट्री ऑफ केरल’ उन नष्ट किये गये मन्दिरों में से कुछ का वर्णन करते हैं-
”चिन्गम महीना ९५२ मलयालम कैलेंडर यानी अगस्त १७८६ में टीपू की फौज ने प्रसिद्ध पेरुमनम मन्दिर की मूर्तियों का ध्वंस किया और त्रिचूर ओर करवन्नूर नदी के मध्य के सभी मन्दिरों का ध्वंस कर दिया।
इरिनेजालाकुडा और थिरुवांचीकुलम के भव्य मन्दिरों को भी टीपू की सेना द्वारा नष्ट किया गया।
”अन्य प्रसिद्ध प्राचीन मन्दिरों में से कुछ, जिन्हें लूटा गया और नष्ट किया गया, था, वे थे-
त्रिप्रंगोट, थ्रिचैम्बरम्, थिरुमवाया, थिरवन्नूर, कालीकट थाली, हेमम्बिका मन्दिरपालघाट का जैन मन्दिर, माम्मियूर, परम्बाताली, पेम्मायान्दु, थिरवनजीकुलम, त्रिचूर का बडक्खुमन्नाथन मन्दिर, वेलूर शिवा मन्दिर आदि।”
टीपू ने अपनी डायरी में लिखा-
“चिराकुल राजा ने मेरी सेना द्वारा स्थानीय मन्दिरों को विनाश से बचाने के लिए मुझे चार लाख रुपये का सोना चाँदी देने का प्रस्ताव रखा था। किन्तु मैंने उत्तर दिया ”यदि सारी दुनिया भी मुझे दे दी जाए तो भी मैं हिन्दू मन्दिरों को ध्वंस करने से नहीं रुकूँगा”
(फ्रीडम स्ट्रगिल इन केरल : सरदार के.एम.पाणिक्कर)
टीपू द्वारा केरल की विजय का प्रलयंकारी एवं सजीव वर्णन, ‘गजैटियर ऑफ केरल के सम्पादक और विखयात इतिहासकार ए. श्रीधर मैनन द्वारा किया गया है। उसके अनुसार-
“हिन्दू लोग, विशेष कर नायर और सरदार जाति के लोग जिन्होंने टीपू के पहले से ही इस्लामी आक्रमणकारियों का प्रतिरोध किया था, टीपू के क्रोध का प्रमुख निशाना बन गये थे।
सैकड़ों नायर महिलाओं और बच्चों को पकड़ कर श्री रंगपटनम ले जाया गया और डचों के हाथ दास के रूप में बेच दिया गया था। हजारों ब्राह्मणों, क्षत्रियों और हिन्दुओं के अन्य सम्माननीय जाति के लोगों को इस्लाम या मृत्यु में से एक चुनने को बाध्य किया गया।”
हमारे मार्क्सिस्ट इतिहासकारों ने धर्मनिरपेक्षता का झूठा ढोंग कर टीपू सुल्तान को वीर और देशभक्त पुरुष के रूप में वर्णन किया है। किन्तु सच्चाई तो ये है कि टीपू का सम्बन्ध उस राष्ट्र,उस मिट्टी से कभी भी नहीं रहा जो उसका गृह स्थान था। वह केवल हिन्दू भूमि का एक मुस्लिम शासक था। जैसा उसने स्वंय कहा था उसके जीवन का उद्देश्य अपने राज्य को दारुल इस्लाम (इस्लामी देश) बनाना था। टीपू ब्रिटिशों से अपने ताज की सुरक्षा के लिए लड़ा था न कि देश को विदेशी गुलामी से मुक्त कराने के लिए।
उसने तो स्वयं भारत पर आक्रमण करने, और राज्य करने के लिए अफगानिस्तान के जहनशाह को आमंत्रित
किया था।(जहनशाह को लिखे पत्रों को पढ़िये)
भारत के सैक्यूलरिस्टों ने राष्ट्रीय एकता और धर्मनिरपेक्षता की आड़ लेकर हमेशा से ही इतिहास, साहित्य और पुस्तकों से लेकर आजादी की लड़ाई और आजादी के बाद के भारत-पाकिस्तान युद्धों तक में मुस्लिमों को जबरदस्ती हीरो बनाने की कोशिश की है। प्रयास अच्छा है परन्तु इस प्रयास में हमलावरों, लुटेरों, खूनियों और हत्यारों को भी नायकों की तरह प्रस्तुत करना समझ से परे है।
लेकिन अब वोटबैंक के लालची राजनीतिज्ञों के आदेश पर लिखने वाले इन पैसों के भूखे लेखकों की समझ में आ जाना चाहिए कि इन मुस्लिम अत्याचारियों और हमलावरों के, हिन्दुओं पर किये गये अत्याचारों, को दबाने, छिपाने से, कोई भी लाभ नहीं हो सकेगा क्योंकि अब राष्ट्रवादियों के हाथों में सदी के संचार का सबसे बड़ा हथियार सोशल मीडिया आ चुका है। जो इन नकली धर्मनिरपेक्ष लेखकों के हर झूठ की परतें उघाड़ कर रख देगा।
सामान्य हिन्दुओं को भी समझ लेना चाहिए कि, अपने देश के इतिहास का पूर्ण ज्ञान, और अपने पूर्वजों के भाग्य-दुर्भाग्य, से पाठ सीख लेना अनिवार्य है; क्योंकि इतिहास की पुनरावृत्ति जरूर होती है।

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